Thursday, June 26, 2014

H L Dusadh Dusadh अनुराधा जी के जीवन पर बन सकती है कोई विश्व-स्तरीय फिल्म.


 
अनुराधा जी के जीवन पर बन सकती है कोई विश्व-स्तरीय फिल्म.
मित्रों!कल परिनिवृत अनुराधा जी पर दिलीप मंडल साहब का एक पोस्ट पढ़ कर तीन लम्बे कमेन्ट के जरिये जानने का विनम्र आग्रह किया था कि आखिर कैंसर से आक्रांत हो कर भी उन्हें जीवन को सकारात्मक भाव से जीने की प्रेरणा कहाँ से मिली.मैंने भारतीय साहित्य में ऐसा कोई चरित्र नहीं पढ़ा जो अनुराधा जी के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकता था.संभावित प्रेरणा स्रोत के तौर पर फिल्म आनंद के ‘आनंद’की ओर संकेत करने का प्रयास किया था.सचमुच आनंद ने ढेरों कैंसर पीड़ितों को जीवन के शेष बचे पलों को हँसते-खेलते उपभोग करने के लिए प्रेरित किया था.किन्तु आनंद हो या एरिक सेगल के ‘लव स्टोरी’ और ऋषिकेश मुखर्जी के ‘मिली’ फिल्म की कैंसर पीड़ित नायिकाएं ,यह सब एक आम चरित्र थे.यह सब अनुराधा जी के प्रेरणा के पात्र नहीं हो सकते.अनुराधा जी एक विदुषी महिला थीं.उन्हें भारतीय भाषाओँ में मराठी,तेलगु,बांग्ला,हिंदी और भोजपुरी के साथ अंग्रेजी और फ्रेंच जैसी दो विदेशी भाषाओँ का भी ज्ञान था.उन्होंने लगभग तीन दर्जन किताबों का संपादन किया.मंडल साहब से उनके विषय में विस्तृत जानकारी पाने के बाद मुझे लगता है,उनका कोई विशेष प्रेरणा स्रोत नहीं था.मुझे लगता है लेखिका के तौर पर उनकी सामाजिक जिम्मेवारियों ने ही शायद कर्कट रोग के खिलाफ लड़ने की जीवनी शक्ति प्रदान किया.उन्हें पता था कुछ रचनात्मक योगदान देने के लिए उनके पास अनंत नहीं,मात्र सीमित समय है.इसलिए कैंसर की पीड़ा को नज़रंदाज़ कर लेखन के लिए टूट पड़ी थीं.उन्होंने कैंसर से लड़ने के लिए अपना मेंटल लेवल उस उंचाई पर पहुंचा दिया कि डॉक्टर भी बहुत हताश –निराश मरीजों को उनसे मिल लेने की सलाह देते रहे.अर्थात वह अपने जीवितावस्था में ही कैंसर पीड़ितों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गयीं थीं.
फिल्म आनंद के आनंद के चिंता के दायरे में उसके निकट के मित्र थे,जिन्हें अपने दुःख की छाया से मुक्त रखने के लिए ,वह ठहाके लगाते रहता था.उसका निकट आती मौत की उपेक्षा कर आने वाले छः महीनों में लाखों पलों को ठहाके लगाते रहने के पीछे का जीवन –दर्शन सभी को स्पर्श किया.किन्त अनुराधा निकट आती मौत की उपेक्षा कर महज हंसते-खेलते जीवन जीने के किरदार का नाम नहीं है.उन्होंने सामाजिक सरोकार के समक्ष कैंसर को बौना बनाये रखा.इसलिए चाहे आनंद हो या कैंसर को मात देने के लिए अपना स्तन विसर्जित करने वाली अनंत रूपराशि की स्वामिनी एन्जिलेना जोली,अनुराधा जी का कैंसर विरोधी संग्रामी-चरित्र इनसे बहुत ऊपर था.मेरे ख्याल से उनके चरित्र में कैंसर पीड़ितों को प्रेरित करने के लायक इतना अपार मैटेरियल रहा कि उन पर एक विश्व स्तरीय फिल्म बन सकती है. हाल के दिनों में कई सफल लोग दुनिया छोड़े,किन्तु अनुराधा जी का जाना लोगों के मर्म को जितना स्पर्श किया,वह कुछ हद तक यूनिक है.

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