Wednesday, September 1, 2021

वैज्ञानिक सत्यशोधक होता है और आस्था विज्ञान के खिलाफ।पलाश विश्वास

 वैज्ञानिक सत्यशोधक होता है और आस्था विज्ञान के खिलाफ

पलाश विश्वास




तस्लीमा नसरीन के इस्लाम की आलोचना से बाग बाग लोगों को अपने मिथकों की आलोचना पर इतना गुस्सा क्यों आता है?  

अम्बेडकर को जाहिर है कि पढ़ने से परहेज है,भले ही उसकी जय जय करते रहे। 

दयानन्द सरस्वती,राजा राममोहन राय, विवेकानन्द, रामकृष्ण, हरिचांद ठाकुर,पेरियार, गौतम बुद्ध,गुरु नानक और कबीर के नाम तो जानते ही होंगे।

शंकराचार्य के शाश्त्रार्थ के बारे में मालूम तो होगा?

वैदिकी काल में वेद,उपनोशद,स्मृति, ब्राह्मण, पुराण की आलोचना करने वाले नास्तिक चार्वाक और लोकायत दर्शन की लंबी परम्परा के बारे में कुछ तो जाना होगा।

यूरोप के नवजागरण,सुधार आंदोलन,भारत के सन्त आन्दोलम  और तुर्की में कमाल पाशा की गौरवशाली आंदोलनों के बारे में कुछ तो जानते होंगे?

आर्यसमाज और ब्रह्मसमाज क्या हैं?

 कुछ भी नही जाना समझा तो विज्ञान और तकनीक तो जानते ही होंगे?

असहमति पर इतनी तीखी प्रतिक्रिया तो इस्लमामिक कट्टरपंथ की आलोचना क्यों करते हैं?

आप जायज हैं तो वे क्यों नाजायज है?

हम जितने तस्लीमा और दूसरी धर्म सत्ता या राज सत्ता के खिलाफ विचारों के साथ हैं उतने ही असहमति के स्वरों का समर्थन करते हैं,उनके साथ खड़े हैं।

भले ही हम उनसे असहमत हों।हम तस्लीमा की सारी बातों से सहमत नहीं है।

जनता की आस्था का भो मैं सम्मान करता हैं और मैने अपने लेखन में हमेशा जनता की आस्था का सम्मान किया है।

लेकिन आलोचक हमेशा प्रगति और विकास में सहायक है।

आलोचना और प्रश्न,जिज्ञासा और सत्य की खोज धर्म भी है और विज्ञान भी।

कोपरनिकस ने जब कहा था कि पृथ्वी सूरज की परिक्रमा करती है,न कि सूरज पृथ्वी की परिक्रमा करता है।यह धर्म विरोधी बात थी और कोपरनिकस को जनता के गुस्से का सामना करना पड़ा।

सूकरात को आस्था के मुकाबले सच कहने के लिए जहर पीना पड़ा।

ऐसे ही लोगों की बदौलत आज यह वैज्ञानिक तकनीकी आधुनिक सभ्यता है।

विज्ञान हर प्रश्न का जवाब अनेसन्धान और शोध में करता है।हर वैज्ञानिक सत्यशोधक होता है।

सत्य और आस्था दोनों में अन्तर्विरोध है लेकिन इसी टकराव से होती है प्रगति।प


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