अदम गोंडवी का निधन: एक श्रद्धांजलि
जिस्म क्या है रूह तक सब कुछ ख़ुलासा देखिये
आप भी इस भीड़ में घुस कर तमाशा देखिये
जो बदल सकती है इस पुलिया के मौसम का मिजाज़
उस युवा पीढ़ी के चेहरे की हताशा देखिये
जल रहा है देश यह बहला रही है क़ौम को
किस तरह अश्लील है कविता की भाषा देखिये
मतस्यगंधा फिर कोई होगी किसी ऋषि का शिकार
दूर तक फैला हुआ गहरा कुहासा देखिये.
By | Source Agency
अदम गोंडवी
रामनाथ सिंह | ||||
| ||||
उपनाम | अदम गोंडवी | |||
जन्म स्थान | आटा ग्राम, परसपुर, गोंडा, उत्तर प्रदेश | |||
कुछ प्रमुख कृतियाँ | धरती की सतह पर, समय से मुठभेड़ | |||
विविध | ||||
जीवनी | अदम गोंडवी / परिचय | |||
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कविता संग्रह
प्रतिनिधि रचनाएँ
- आँख पर पट्टी रहे और अक़्ल पर ताला रहे / अदम गोंडवी
- आप कहते हैं सरापा गुलमुहर है ज़िन्दगी / अदम गोंडवी
- काजू भुनी प्लेट में ह्विस्की गिलास में / अदम गोंडवी
- किसको उम्मीद थी जब रौशनी जवां होगी / अदम गोंडवी
- ग़ज़ल को ले चलो अब गाँव के दिलकश नज़ारों में / अदम गोंडवी
- ग़र चंद तवारीखी तहरीर बदल दोगे / अदम गोंडवी
- घर में ठण्डे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है / अदम गोंडवी
- चाँद है ज़ेरे क़दम, सूरज खिलौना हो गया / अदम गोंडवी
- जिसके सम्मोहन में पागल धरती है आकाश भी है / अदम गोंडवी
- जिस्म क्या है रूह तक सब कुछ ख़ुलासा देखिये / अदम गोंडवी
- जुल्फ अँगड़ाई तबस्सुम चाँद आइना गुलाब / अदम गोंडवी
- जो उलझ कर रह गई है / अदम गौंडवी
- जो उलझ कर रह गयी है फाइलों के जाल में / अदम गोंडवी
- जो डलहौज़ी न कर पाया वो ये हुक़्क़ाम कर देंगे / अदम गोंडवी
- तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है / अदम गोंडवी
- न महलों की बुलन्दी से , न लफ़्ज़ों के नगीने से / अदम गोंडवी
- बज़ाहिर प्यार की दुनिया में जो नाकाम होता है / अदम गोंडवी
- बताओ कैसे लिख दूं धूप फागुन की नशीली है / अदम गोंडवी
- बेचता यूँ ही नहीं है आदमी ईमान को / अदम गोंडवी
- भुखमरी की ज़द में है या दार के साये में है / अदम गोंडवी
- भूख के एहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो / अदम गोंडवी
- मुक्तिकामी चेतना अभ्यर्थना इतिहास की / अदम गोंडवी
- मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको / अदम गोंडवी
- विगट बाढ़ की करुण कहानी / अदम गोंडवी
- वेद में जिनका हवाला हाशिये पर भी नहीं / अदम गोंडवी
- वो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है / अदम गोंडवी
- हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है / अदम गोंडवी
- हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये / अदम गोंडवी
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आँख पर पट्टी रहे और अक़्ल पर ताला रहे / अदम गोंडवी
आँख पर पट्टी रहे और अक़्ल पर ताला रहे
अपने शाहे-वक़्त का यूँ मर्तबा आला रहे
तालिबे शोहरत हैं कैसे भी मिले मिलती रहे
आए दिन अख़बार में प्रतिभूति घोटाला रहे
एक जनसेवक को दुनिया में अदम क्या चाहिए
चार छ: चमचे रहें माइक रहे माला रहेधरती के कागज़ पर मेरी तस्वीर अधूरी रहनी थीकुमार विश्वास, कवि और गीतकारFirst Published:18-12-11 07:40 PMअदम गोंडवी एक ऐसी सैर पर निकल गए, जहां बस पुकार पहुंचती है, आकार नहीं। उनकी गजलें हमारे वक्त के अनगाए विक्षोभ की उन तरंगों की तरह थीं, जो चेतना के जमे हुए बेशर्म पानी में असहमति की हिलोर उठाती हैं। असहमति की छटपटाहट और उसकी तल्खियां जब उनके शेरों में पूरी तरह न समा सकीं तो उन्होंने शायद थक-हार कर अमृत-रूप हो जाने से पहले के उस हलाहल में भी शरण पायी, जो देवताओं तक को बरगला देता है।
मैं रहूँ या न रहूँ, भूख मेजबाँ होगी।'
अदम जी के बारे में यह निर्मम समाचार मुझे तब मिला जब मैं अपने गीत-कुल के एक और आदरणीय को अलविदा कह रहा था। धर्मवीर भारती के बाद मेरे सर्वाधिक प्रिय गीतकार थे भारत भूषण यानी भारत दादा। भौगोलिक सीमाएं, कला-चेतना को कभी कभी बाँधने की बजाए विस्तृत भी करती है, ये मुझे तब पता चला जब मेरे मन में भारत दादा के 'अपने जिले' का होने को लेकर एक प्रकार का आत्म-विश्वास जागा। मेरे शुरुआती गीतों में भारती जी के साथ-साथ उनके गीत-बिम्ब तैरते-उतरते साफ़ दिखते हैं। कवि-सम्मेलनों का शुरुआती दौर था।
'तू मन अनमना न कर अपना
इसमें कुछ दोष नहीं तेरा
धरती के कागज़ पर मेरी
तस्वीर अधूरी रहनी थी...'
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
undefinedundefinedबगावत के शायर अदम गोंडवी आखिर चले ही गये!
18 DECEMBER 2011 2 COMMENTS[X]आज सुबह पांच बज कर दस मिनट पर जनकवि अदम गोंडवी ने लखनऊ के पीजीआई हॉस्पीटल में आखिरी सांसें ले ही लीं। तब, जबकि उनकी सेहत में सुधार की खबरें लगातार आ रही थीं, इस मनहूस खबर ने सबको चौंका दिया है। इस बीच उनकी मदद के लिए आगे आये लोगों का शुक्रिया। कविता कोश पर उनके बारे में चंद वाक्य छपे हुए हैं, जो उनके जीवन और उनकी शायरी के बारे में एक संक्षिप्त परिचय देते हैं। पढ़िए जरा… मॉडरेटर
♦ अदम गोंडवी की कुछ कविताएं यहां पढ़ें:जनता के पास एक ही चारा है बगावत।♦ उनके इलाज से जुड़ी दो अलग अलग अपील यहां हैं, जिसका अब शायद कोई मतलब नहीं:अदम जनता के कवि हैं, उन्हें बचाने के लिए आगे आएं और अदम गोंडवी को बचाना बगावत की कविता को बचाना है!
♦ अदम की बाकी कविताएं यहां पढ़ें:कविताकोश
22अक्तूबर 1947 को गोस्वामी तुलसीदास के गुरु स्थान सूकर क्षेत्र के करीब परसपुर (गोंडा) के आटा ग्राम में स्व श्रीमती मांडवी सिंह एवं श्री देवी कलि सिंह के पुत्र के रूप में बालक रामनाथ सिंह का जन्म हुआ जो बाद में "अदम गोंडवी" के नाम से सुविख्यात हुए।
अदम गोंडवी कबीर की परंपरा के कवि थे। अंतर यही कि अदम ने कागज-कलम छुआ, पर उतना ही जितना किसान ठाकुर के लिए जरूरी था।
देखना सुनना व सच कहना जिन्हें भाता नहीं
कुर्सियों पर फिर वही बापू के बंदर आ गयेकल तलक जो हाशिये पर भी न आते थे नजर
आजकल बाजार में उनके कलेंडर आ गयेदुष्यंत ने अपनी गजलों से शायरी की जिस नयी राजनीति की शुरुआत की थी, अदम ने उसे उस मुकाम तक पहुंचाने की कोशिश की है, जहां से एक-एक चीज बगैर किसी धुंधलके के पहचानी जा सके।
जो उलझ कर रह गयी है फाइलों के जाल में
गांव तक वह रौशनी आएगी कितने साल मेंबूढ़ा बरगद साक्षी है किस तरह से खो गयी
राम सुधि की झौपड़ी सरपंच की चौपाल मेंखेत जो सीलिंग के थे सब चक में शामिल हो गये
हम को पट्टे की सनद मिलती भी है तो ताल मेंमुशायरों में घुटनों तक मटमैली धोती, सिकुड़ा मटमैला कुरता और गले में सफेद गमछा डाले एक ठेठ देहाती इंसान, जिसकी ओर आपका शायद ध्यान ही न गया हो, यदि अचानक माइक पे आ जाए और फिर ऐसी रचनाएं पढ़े कि आपका ध्यान और कहीं जाए ही न, तो समझिए वो इंसान और कोई नहीं अदम गोंडवी हैं। उनकी निपट गंवई अंदाज में महानगरीय चकाचौंध और चमकीली कविताई को हैरान कर देने वाली अदा सबसे जुदा और विलक्षण है।
किसको उम्मीद थी जब रौशनी जवां होगी
कल के बदनाम अंधेरों पे मेहरबां होगीखिले हैं फूल कटी छातियों की धरती पर
फिर मेरे गीत में मासूमियत कहां होगीआप आएं तो कभी गांव की चौपालों में
मैं रहूं या न रहूं भूख मेजबां होगीअदम शहरी शायर के शालीन और सुसंस्कृत लहजे में बोलने के बजाय ठेठ गंवई दो टूकपन और बेतकल्लुफी से काम लेते थे। उनके कथन में प्रत्यक्षा और आक्रामकता और तड़प से भरी हुई व्यंग्मयता है।
वस्तुतः ये गजलें अपने जमाने के लोगों से 'ठोस धरती की सतह पर लौट' आने का आग्रह कर रही हैं।
गजल को ले चलो अब गांव के दिलकश नजारों में
मुसलसल फन का दम घुटता है इन अदबी इदारों मेंअदीबों ठोस धरती की सतह पर लौट भी आओ
मुलम्मे के सिवा क्या है फलक के चांद तारों मेंअदम की शायरी में आज जनता की गुर्राहट और आक्रामक मुद्रा का सौंदर्य मिसरे-मिसरे में मौजूद है, ऐसा धार लगा व्यंग है कि पाठक का कलेजा चीर कर रख देता है। आप इस किताब का कोई सफा पलटिए और कहीं से भी पढ़ना शुरू कर दीजिए, आपको मेरी बात पर यकीन आ जाएगा।
काजू भुने पलेट में व्हिस्की गिलास में
उतरा है रामराज्य विधायक निवास मेंपक्के समाजवादी हैं तस्कर हों या डकैत
इतना असर है खादी के उजले लिबास मेंजनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूं मैं होशो हवास मेंअदम साहब की शायरी में अवाम बसता है, उसके सुख-दुःख बसते हैं, शोषित और शोषण करने वाले बसते हैं। उनकी शायरी न तो हमें वाह करने के अवसर देती है और न आह भरने की मजबूरी परोसती है। सीधे सच्चे दिल से कही उनकी शायरी सीधे सादे लोगों के दिलों में बस जाती है।
बेचता यूं ही नहीं है आदमी ईमान को
भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पर इंसान कोसब्र की इक हद भी होती है तवज्जो दीजिए
गर्म रक्खें कब तलक नारों से दस्तरखान कोशबनमी होंठों की गर्मी दे न पाएगी सुकून
http://mohallalive.com/2011/12/18/adam-gondvi-is-no-more/
पेट के भूगोल में उलझे हुए इंसान को[LARGE][LINK=/print/1067-2011-12-13-13-43-43.html]बीमार अदम गोंडवी और फासिस्ट हिंदी लेखक : एक ट्रेजडी कथा[/LINK] [/LARGE][*] [LINK=/print/1067-2011-12-13-13-43-43.html?tmpl=component&print=1&layout=default&page=][IMG]/templates/gk_twn2/images/system/printButton.png[/IMG][/LINK] [/*][*] [LINK=/component/mailto/?tmpl=component&template=gk_twn2&link=c525cd4ca202036b42ee022f47db8b0d5786805d][IMG]/templates/gk_twn2/images/system/emailButton.png[/IMG][/LINK] [/*]Details Category: [LINK=/print.html]प्रिंट, टीवी, वेब, ब्लाग, सिनेमा, साहित्य...[/LINK] Published on Tuesday, 13 December 2011 22:43 Written by दयानंद पांडेय:[B] तो आमीन अदम गोंडवी, आमीन![/B] : क्या आदमी इतना कृतघ्न हो गया है? खास कर हिंदी लेखक नाम का आदमी। इसमें हिंदी पत्रकारों को भी जोड़ सकते हैं। पर फ़िलहाल यहां हम हिंदी लेखक नाम के आदमी की चर्चा कर रहे हैं क्योंकि पूरे परिदृश्य में अभी हिंदी पत्रकार इतना आत्मकेंद्रित नहीं हुआ है, जितना हिंदी लेखक। हिंदी लेखक सिर्फ़ आत्म केंद्रित ही नहीं कायर भी हो गया है। कायर ही नहीं असामाजिक किस्म का प्राणी भी हो चला है। जो किसी के कटे पर क्या अपने कटे पर भी पेशाब करने को तैयार नहीं है। दुनिया भर की समस्याओं पर लफ़्फ़ाज़ी झोंकने वाला यह हिंदी लेखक अपनी किसी भी समस्या पर शुतुर्मुर्ग बन कर रेत में सिर घुसाने का आदी हो चला है। एक नहीं अनेक उदाहरण हैं। ताज़ा उदाहरण अदम गोंडवी का है।अदम गोंडवी की शायरी में घुला तेज़ाब समूची व्यवस्था में खदबदाहट मचा देता है। झुलसा कर रख देता है समूची व्यवस्था को। और आज जब वह खुद लीवर सिरोसिस से तबाह हैं तो उनकी शायरी पर दंभ करने वाला यह हिंदी लेखक समाज शुतुरमुर्ग बन गया है। अदम गोंडवी कुछ समय से बीमार चल रहे हैं। उनके गृह नगर गोंडा में उनका इलाज चल रहा था। पैसे की तंगी वहां भी थी। पर वहां के ज़िलाधिकारी राम बहादुर ने प्रशासन के खर्च पर उनका इलाज करवाने का ज़िम्मा ले लिया था। न सिर्फ़ इलाज बल्कि उनके गांव के विकास के लिए भी राम बहादुर ने पचास लाख रुपए का बजट दिया है। लेकिन जब गोंडा में इलाज नामुमकिन हो गया तो अदम गोंडवी बच्चों से कह कर लखनऊ आ गए। बच्चों से कहा कि लखनऊ में बहुत दोस्त हैं। और दोस्त पूरी मदद करेंगे। बहुत अरमान से वह आ गए लखनऊ के पीजीआई। अपनी रवायत के मुताबिक पीजीआई ने पूरी संवेदनहीनता दिखाते हुए वह सब कुछ किया जो वह अमूमन मरीजों के साथ करता ही रहता है। अदम को खून के दस्त हो रहे थे और पीजीआई के स्वनामधन्य डाक्टर उन्हें छूने को तैयार नहीं थे। उनके पास बेड नहीं था। अदम गोंडवी ने अपने लेखक मित्रों के फ़ोन नंबर बच्चों को दिए। बच्चों ने लेखकों को फ़ोन किए। लेखकों ने खोखली संवेदना जता कर इतिश्री कर ली। मदद की बात आई तो इन लेखकों ने फिर फ़ोन उठाना भी बंद कर दिया। ऐसी खबर आज के अखबारों में छपी है। क्या लखनऊ के लेखक इतने लाचार हैं? बताना ज़रूरी है कि लखनऊ से गोंडा दो ढाई घंटे का रास्ता है। गोंडा भी उन्हें देखने कोई एक लेखक उन्हें लखनऊ से नहीं गया। हालांकि लखनऊ में करोड़ों की हैसियत वाले भी एक नहीं अनेक लेखक हैं। लखपति तो ज़्यादातर हैं ही। यह लेखक अमरीका और उसकी बाज़ारपरस्ती पर चाहे जितनी हाय तौबा करें पर बच्चे उनके मल्टी नेशनल कंपनियों में बड़ी बड़ी नौकरियां करते हैं। दस बीस हज़ार उनके हाथ का मैल ही है। लेकिन वह अदम गोंडवी को हज़ार पांच सौ भी न देना पड़ जाए इलाज के लिए, इसलिए अदम गोंडवी के बच्चों का फ़ोन भी नहीं उठाते। देखने जाने में तो उनकी रूह भी कांप जाएगी। अब आइए ज़रा साहित्य की ठेकेदार सरकारी संस्थाओं का हाल देखें।उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के कार्यकारी उपाध्यक्ष का बयान छपा है कि अगर औपचारिक आवेदन आए तो वह विचार कर के पचीस [IMG]http://www.bhadas4media.com/images/stories/agondavi.jpg[/IMG]अदम गोंडवीहज़ार रुपए की भीख दे सकते हैं। इसी तरह उर्दू अकादमी ने भी औपचारिक आवेदन आने पर दस हज़ार रुपए देने की बात कही है। अब भाषा संस्थान के गोपाल चतुर्वेदी ने बस सहानुभूति गीत गा कर ही इतिश्री कर ली है। अब इन ठेकेदारों को यह नहीं मालूम कि अदम इलाज कराएं कि औपचारिक आवेदन लेकर इन संस्थानों से भीख मांगें। और इन दस बीस हज़ार रुपयों से भी उनका क्या इलाज होगा भला, यह इलाज करवाने वाले लोग भी जानते हैं। रही बात मायावती सरकार की तो खैर उनको इस सबसे कुछ लेना देना ही नहीं। साहित्य संस्कृति से इस सरकार का वैसे भी कभी कोई सरोकार नहीं रहा। वह तो भला हो मुलायम सिंह यादव का जो उन्होंने यह पता चलते ही कि अदम बीमार हैं और इलाज नहीं हो पा रहा है, खबर सुन कर अपने निजी सचिव जगजीवन को पचास हज़ार रुपए के साथ पीजीआई भेजा। पैसा पाते ही पीजीआई की मशीनरी भी हरकत में आ गई। और डाक्टरों ने इलाज शुरू कर दिया। मुलायम के बेटे अखिलेश का बयान भी छपा है कि अदम के पूरे इलाज का खर्च पार्टी उठाएगी। यह संतोष की बात है कि अदम के इलाज में अब पैसे की कमी तो कम से कम नहीं ही आएगी। और अब यह जान कर कि अदम को पैसे की ज़रूरत नहीं है, उनके तथाकथित लेखक मित्र भी अब शायद पहुंचें उन्हें देखने। हो सकता है कुछ मदद पेश कर उंगली कटा कर शहीद बनने की भी कवायद करें। पर अब इस से क्या हसिल होगा अदम गोंड्वी को? अपने हिंदी लेखकों ने तो अपना चरित्र दिखा ही दिया ना!अभी कुछ ही समय पहले इसी लखनऊ में श्रीलाल शुक्ल बीमार हो कर हमारे बीच से चले गए। वह प्रशासनिक अधिकारी थे। उनके पास पैसे की कोई कमी नहीं थी। सो इन लेखकों ने उनकी ओर से कभी आंख नहीं फेरी। सब उनके पास ऐसे जाते थे गोया तीर्थाटन करने जा रहे हों। चलते चलते उन्हें पांच लाख रुपए का ज्ञानपीठ भी मिला और साहित्य अकादमी, दिल्ली ने भी इलाज के लिए एक लाख रुपए दिया। लेकिन कुछ समय पहले ही अमरकांत ने अपने इलाज के लिए घूम घूम कर पैसे की गुहार लगाई। किसी ने भी उन्हें धेला भर भी नहीं दिया। तो क्या जो कहा जाता है कि पैसा पैसे को खींचता है वह सही है? आज तेरह तारीख है और कोई तेरह बरस पहले मेरा भी एक भयंकर एक्सीडेंट हुआ था। कह सकता हूं कि यह मेरा पुनर्जन्म है। यही मुलायम सिंह यादव तब संभल से चुनाव लड़ रहे थे। उनके कवरेज के लिए हम जा रहे थे। उस अंबेसडर में हम तीन पत्रकार थे। जय प्रकाश शाही, मैं और गोपेश पांडेय। सीतापुर के पहले खैराबाद में हमारी अंबेसडर सामने से आ रहे एक ट्रक से लड़ गई। आमने सामने की यह टक्कर इतनी ज़बरदस्त थी कि जय प्रकाश शाही और ड्राइवर का मौके पर ही निधन हो गया। दिन का एक्सीडेंट था और मैं भाग्यशाली था कि मेरे आईपीएस मित्र दिनेश वशिष्ठ उन दिनों सीतापुर में एसपी थे। मेरा एक्सीडेंट सुनते ही वह न सिर्फ़ मौके पर आए बल्कि हमें अपनी गाड़ी में लाद कर सीतापुर के अस्पताल में फ़र्स्ट एड दिलवा कर सीधे खुद मुझे पीजीआई भी ले आए। मैं उन दिनों गृह मंत्रालय भी देखता था। सो तब के प्रमुख सचिव गृह राजीव रत्न शाह ने भी पूरी मदद की। स्टेट हेलीकाप्टर तक की व्यवस्था की मुझे वहां से ले आने की। मेरा जबड़ा, सारी पसलियां, हाथ सब टूट गया था। छह महीने बिस्तर पर भले रहा था और वह तकलीफ़ सोच कर आज भी रूह कांप जाती है। लेकिन समय पर इलाज मिलने से बच गया था।यह 18 फ़रवरी, 1998 की बात है। उस वक्त मेरे इलाज में भी काफी पैसा खर्च हुआ। पर पैसे की कमी आड़े नहीं आई। मैं तो होश में नहीं था पर उस दिन भी पीजीआई में मुझे देखने यही मुलायम सिंह यादव सबसे पहले पहुंचे थे। और खाली हाथ नहीं पहुंचे थे। मेरी बिलखती पत्नी के हाथ पचीस हज़ार रुपए रखते हुए कहा था कि इलाज में पैसे या किसी भी चीज़ की कमी नहीं आएगी। आए तब के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह भी और एक लाख रुपए और मुफ़्त इलाज का ऐलान लेकर आए। अटल बिहारी वाजपेयी से लगायत सभी नेता तमाम अफ़सर और पत्रकार भी। नात-रिश्तेदार, मित्र -अहबाब और पट्टीदार भी। सभी ने पैसे की मदद की बात कही। पर किसी मित्र या रिश्तेदार से परिवारीजनों ने पैसा नहीं लिया। ज़रूरत भी नहीं पडी। सहारा के चेयरमैन सुब्रत राय सहारा जैसा कि कहते ही रहते हैं कि सहारा विश्व का विशालतम परिवार है, इस पारिवारिक भावना को उन्होंने अक्षरश: निभाया भी। हमारे घर वाले अस्पताल में मेहमान की तरह हो गए थे। सहाराश्री और ओपी श्रीवास्तव खुद अस्पताल में खड़े रहे और सारी व्यवस्था खर्च से लेकर इलाज तक की संभाल ली थी। बाद में अस्पताल से घर आने पर अपनी एक बुआ से बात चली तो मैंने बडे फख्र से इन सब लोगों के अलावा कुछ पट्टीदारों, रिश्तेदारों का ज़िक्र करते हुए कहा कि देखिए सबने तन मन धन से साथ दिया। सब पैसा लेकर खड़े रहे। मेरी बुआ मेरी बात चुपचाप सुनती रही थीं। बाद में टोकने पर भोजपुरी में बोलीं, 'बाबू तोहरे लगे पैसा रहल त सब पैसा ले के आ गईल। नाईं रहत त केहू नाई पैसा ले के खडा होत! सब लोग अखबार में पढि लेहल कि हेतना पैसा मिलल, त सब पैसा ले के आ गइल!' मैं उन का मुंह चुपचाप देखता रह गया था तब। पर अब श्रीलाल शुक्ल और अदम गोंडवी का यह फ़र्क देख कर बुआ की वह बात याद आ गई।तो क्या अब यह हिंदी के लेखक अदम गोंडवी से मिलने जाएंगे अस्पताल? पचास हज़ार ही सही उन्हें इलाज के लिए मिल तो गया ही है। आगे का अश्वासन भी। और मुझे लगता है कि आगे भी उनके इलाज में मुलायम पैसे की दिक्कत तो नहीं ही आने देंगे। क्योंकि मुझे याद है कि इंडियन एक्सप्रेस के एसके त्रिपाठी ने मुलायम के खिलाफ़ जितना लिखा, कोई सोच भी नहीं सकता। मुलायम की हिस्ट्रीशीट भी अगर आज तक किसी ने छापी तो इन्हीं एसके त्रिपाठी ने। पर इसी पीजीआई में जब एसके त्रिपाठी कैंसर से जूझ रहे थे तब मुलायम न सिर्फ़ उन्हें देखने गए थे बल्कि मुख्यमंत्री के विवेकाधीन कोष से उन्हें दस लाख रुपए भी इलाज के लिए दिए थे। मुझे अपना इलाज भी याद है कि जब मैं अस्पताल से घर लौटा था तब जाकर पता चला कि आंख का रेटिना भी डैमेज है। किसी ने मुलायम को बताया। तब वह दिल्ली में थे। मुझे फ़ोन किया और कहा कि, 'पांडेय जी घबराइएगा नहीं, दुनिया में जहां भी इलाज हो सके कराइए। मैं हूं आपके साथ। सब खर्च मेरे ऊपर।' हालांकि कहीं बाहर जाने की ज़रूरत नहीं पड़ी। इलाज हो गया। लखनऊ में ही। वह फिर बाद में न सिर्फ़ मिलने आए बल्कि काफी दिनों तक किसी न किसी को भेजते रहे थे। मेरा हालचाल लेने। पर हां, बताना तकलीफ़देह ही है, पर बता रहा हूं कि मेरे परिचित लेखकों में से \[मित्र नहीं कह सकता आज भी] कभी कोई मेरा हाल लेने नहीं आया। मैं तो खैर जीवित हूं पर कानपुर की एक लेखिका डा सुमति अय्यर की 5 नवंबर, 1993 में निर्मम हत्या हो गई। आज तक उन हत्यारों का कुछ अता-पता नहीं चला। सुमति अय्यर के एक भाई हैं आर. सुंदर। पत्रकार हैं। उन्होंने इसके लिए बहुत लंबी लडाई लडी कि हत्यारे पकडे जाएं। पर अकेले लडी। कोई भी लेखक और पत्रकार उनके साथ उस लडाई में नहीं खडा हुआ। एक बार उन्होंने आजिज आ कर राज्यपाल को ज्ञापन देने के लिए कुछ लेखकों और पत्रकारों से आग्रह किया। वह राजभवन पर घंटों लोगों का इंतज़ार करते खडे रहे। पर कोई एक नहीं आया। सुंदर बिना ज्ञापन दिया लौट आए राजभवन से और बहन के हत्यारों के खिलाफ़ लडाई बंद कर दी। लेकिन वह टीस अभी भी उनके सीने में नागफनी सी चुभती रहती है कि क्यों नहीं आया कोई उस दिन राजभवन ज्ञापन देने के लिए!तो अदम गोंडवी आप ऐसे हिंदी लेखक समाज में रहते हैं जो संवेदनहीनता और स्वार्थ के जाल में उलझा पैसों, पुरस्कारों और जुगाड़ के वशीभूत आत्मकेंद्रित जीवन जीता है और जब माइक या कोई और मौका हाथ में आता है तो ''पाठक नहीं है'' का रोना रोता है। समाज से कट चुका यह हिंदी लेखक अगर आप की अनदेखी करता है तो उस पर तरस मत खाइए। न खीझ दिखाइए। अमरीकापरस्ती को गरियाते-गरियाते अब यह लेखक अमरीकी गूगल और फ़ेसबुक की बिसात पर क्रांति के गीत गाता है। और ऐसे समाज की कल्पना करता है जो उसे झुक झुक कर सलाम करे। फासीवाद का विरोध करते करते आप का यह लेखक समाज खुद बड़ा फ़ासिस्ट बन गया है अदम गोंड्वी!आप गज़ल लिखते हैं तो एक गज़ल के एक शेर में ही बात को सुनिए...[B]'पत्थर के शहर, पत्थर के खुदा, पत्थर के ही इंसा पाए हैं,[/B][B]तुम शहरे मुहब्बत कहते हो हम जान बचा कर आए हैं!' [/B][IMG]http://www.bhadas4media.com/images/stories/africa/dnp.jpg[/IMG]तो आमीन अदम गोंड्वी, आमीन ![B]लेखक दयानंद पांडेय वरिष्ठ पत्रकार तथा उपन्यासकार हैं. दयानंद से संपर्क 09415130127, 09335233424 और के जरिए किया जा सकता है. भड़ास पर दयानंद पांडेय के लिखे लेख, आलेख, विश्लेषण, उपन्यास, कहानी, संस्मरण आदि को पढ़ने के लिए क्लिक करें- [LINK=http://www.bhadas4media.com/component/search/?searchword=%E0%A4%A6%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%82%E0%A4%A6%20%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A5%87%E0%A4%AF&ordering=newest&searchphrase=exact&limit=20]दनपा1[/LINK] और [LINK=http://old.bhadas4media.com/component/search/?searchword=%E0%A4%A6%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%82%E0%A4%A6+%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A5%87%E0%A4%AF&ordering=newest&searchphrase=exact&limit=100]दनपा2[/LINK] [/B][HR]इन्हें भी पढ़ सकते हैं-[LINK=http://www.bhadas4media.com/edhar-udhar/718-2011-11-28-07-32-36.html]अदम गोंडवी का लीवर डैमेज, अस्पताल में भर्ती[/LINK][LINK=http://www.bhadas4media.com/article-comment/786-2011-12-01-03-56-21.html]क्या अदम को भी तब याद करेंगे?[/LINK][LINK=http://www.bhadas4media.com/print/810-2011-12-02-02-33-37.html]अबे, जे हैं अदम गोंडवी![/LINK]अदम गोंडवी
ग़ज़ल को ले चलो अब गाँव के दिलकश नज़ारों में
ग़ज़ल को ले चलो अब गाँव के दिलकश नज़ारों में
मुसल्सल फ़न का दम घुटता है इन अदबी इदारों मेंन इनमें वो कशिश होगी, न बू होगी, न रानाई
खिलेंगे फूल बेशक लॉन की लम्बी क़तारों मेंअदीबों! ठोस धरती की सतह पर लौट भी आओ
मुलम्मे के सिवा क्या है फ़लक़ के चाँद-तारों मेंरहे मुफ़लिस गुज़रते बे-यक़ीनी के तज़रबे से
बदल देंगे ये इन महलों की रंगीनी मज़ारों मेंकहीं पर भुखमरी की धूप तीखी हो गई शायद
जो है संगीन के साये की चर्चा इश्तहारों में.भूख के एहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो
भूख के एहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो
या अदब को मुफ़लिसों की अंजुमन तक ले चलोजो ग़ज़ल माशूक के जल्वों से वाक़िफ़ हो गयी
उसको अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलोमुझको नज़्मो-ज़ब्त की तालीम देना बाद में
पहले अपनी रहबरी को आचरन तक ले चलोगंगाजल अब बुर्जुआ तहज़ीब की पहचान है
तिश्नगी को वोदका के आचरन तक ले चलोख़ुद को ज़ख्मी कर रहे हैं ग़ैर के धोखे में लोग
इस शहर को रोशनी के बाँकपन तक ले चलो.
मुक्तिकामी चेतना अभ्यर्थना इतिहास कीमुक्तिकामी चेतना अभ्यर्थना इतिहास की
यह समझदारों की दुनिया है विरोधाभास कीआप कहते है जिसे इस देश का स्वर्णिम अतीत
वो कहानी है महज़ प्रतिरोध की, संत्रास कीयक्ष प्रश्नों में उलझ कर रह गई बूढ़ी सदी
ये प्रतीक्षा की घड़ी है क्या हमारी प्यास की?इस व्यवस्था ने नई पीढ़ी को आख़िर क्या दिया
सेक्स की रंगीनियाँ या गोलियाँ सल्फ़ास कीयाद रखिये यूँ नहीं ढलते हैं कविता में विचार
होता है परिपाक धीमी आँच पर एहसास की.विकट बाढ़ की करुण कहानी
विकट बाढ़ की करुण कहानी नदियों का संन्यास लिखा है।
बूढ़े बरगद के वल्कल पर सदियों का इतिहास लिखा है।।क्रूर नियति ने इसकी किस्मत से कैसा खिलवाड़ किया है।
मन के पृष्ठों पर शाकुंतल अधरों पर संत्रास लिखा है।।छाया मदिर महकती रहती गोया तुलसी की चौपाई
लेकिन स्वप्निल स्मृतियों में सीता का वनवास लिखा है।।नागफनी जो उगा रहे हैं गमलों में गुलाब के बदले
शाखों पर उस शापित पीढ़ी का खंडित विश्वास लिखा है।।लू के गर्म झकोरों से जब पछुआ तन को झुलसा जाती
इसने मेरे तन्हाई के मरूथल में मधुमास लिखा है।।अर्धतृप्ति उद्दाम वासना ये मानव जीवन का सच है
धरती के इस खंडकाव्य पर विरहदग्ध उच्छ्वास लिखा है।।वेद में जिनका हवाला हाशिये पर भी नहीं
वेद में जिनका हवाला हाशिये पर भी नहीं
वे अभागे आस्था विश्वास लेकर क्या करेंलोकरंजन हो जहां शंबूक-वध की आड़ में
उस व्यवस्था का घृणित इतिहास लेकर क्या करेंकितना प्रगतिमान रहा भोगे हुए क्षण का इतिहास
त्रासदी, कुंठा, घुटन, संत्रास लेकर क्या करेंबुद्धिजीवी के यहाँ सूखे का मतलब और है
ठूँठ में भी सेक्स का एहसास लेकर क्या करेंगर्म रोटी की महक पागल बना देती है मुझे
पारलौकिक प्यार का मधुमास लेकर क्या करेंवो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है
वो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है
उसी के दम से रौनक आपके बंगले में आई हैइधर एक दिन की आमदनी का औसत है चवन्नी का
उधर लाखों में गांधी जी के चेलों की कमाई हैकोई भी सिरफिरा धमका के जब चाहे जिना कर ले
हमारा मुल्क इस माने में बुधुआ की लुगाई हैरोटी कितनी महँगी है ये वो औरत बतलाएगी
जिसने जिस्म गिरवी रख के ये क़ीमत चुकाई हैहिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए
हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए
अपनी कुरसी के लिए जज्बात को मत छेड़िएहममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है
दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िएग़र ग़लतियाँ बाबर की थी; जुम्मन का घर फिर क्यों जले
ऐसे नाज़ुक वक़्त में हालात को मत छेड़िएहैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ
मिट गये सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िएछेड़िए इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के खिलाफ़
दोस्त मेरे मजहबी नग़मात को मत छेड़िएजिसके सम्मोहन में पागल धरती है आकाश भी है
जिसके सम्मोहन में पागल धरती है आकाश भी है
एक पहेली-सी दुनिया ये गल्प भी है इतिहास भी है
चिंतन के सोपान पे चढ़ कर चाँद-सितारे छू आये
लेकिन मन की गहराई में माटी की बू-बास भी है
इन्द्र-धनुष के पुल से गुज़र कर इस बस्ती तक आए हैं
जहाँ भूख की धूप सलोनी चंचल है बिन्दास भी है
कंकरीट के इस जंगल में फूल खिले पर गंध नहीं
स्मृतियों की घाटी में यूँ कहने को मधुमास भी है.जिस्म क्या है रूह तक सब कुछ ख़ुलासा देखिये
जिस्म क्या है रूह तक सब कुछ ख़ुलासा देखिये
आप भी इस भीड़ में घुस कर तमाशा देखिये
जो बदल सकती है इस पुलिया के मौसम का मिजाज़
उस युवा पीढ़ी के चेहरे की हताशा देखिये
जल रहा है देश यह बहला रही है क़ौम को
किस तरह अश्लील है कविता की भाषा देखिये
मतस्यगंधा फिर कोई होगी किसी ऋषि का शिकार
दूर तक फैला हुआ गहरा कुहासा देखिये.ग़र चंद तवारीखी तहरीर बदल दोगे
गर चंद तवारीखी तहरीर बदल दोगे
क्या इनसे किसी कौम की तक़दीर बदल दोगे
जायस से वो हिंदी की दरिया जो बह के आई
मोड़ोगे उसकी धारा या नीर बदल दोगे ?
जो अक्स उभरता है रसख़ान की नज्मों में
क्या कृष्ण की वो मोहक तस्वीर बदल दोगे ?
तारीख़ बताती है तुम भी तो लुटेरे हो
क्या द्रविड़ों से छीनी जागीर बदल दोगे ?तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी हैउधर जम्हूरियत का ढोल पीटे जा रहे हैं वो
इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है, नवाबी हैलगी है होड़-सी देखो अमीरी औ गरीबी में
ये गांधीवाद के ढाँचे की बुनियादी खराबी हैतुम्हारी मेज चाँदी की तुम्हारे ज़ाम सोने के
यहाँ जुम्मन के घर में आज भी फूटी रक़ाबी हैघर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है
घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है।
बताओ कैसे लिख दूँ धूप फागुन की नशीली है।।
भटकती है हमारे गाँव में गूँगी भिखारन-सी।
सुबह से फरवरी बीमार पत्नी से भी पीली है।।
बग़ावत के कमल खिलते हैं दिल की सूखी दरिया में।
मैं जब भी देखता हूँ आँख बच्चों की पनीली है।।
सुलगते जिस्म की गर्मी का फिर एहसास हो कैसे।
मोहब्बत की कहानी अब जली माचिस की तीली है।।चाँद है ज़ेरे क़दम, सूरज खिलौना हो गया
चाँद है ज़ेरे क़दम. सूरज खिलौना हो गया
हाँ, मगर इस दौर में क़िरदार बौना हो गया
शहर के दंगों में जब भी मुफलिसों के घर जले
कोठियों की लॉन का मंज़र सलौना हो गया
ढो रहा है आदमी काँधे पे ख़ुद अपनी सलीब
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा जब बोझ ढोना हो गया
यूँ तो आदम के बदन पर भी था पत्तों का लिबास
रूह उरियाँ क्या हुई मौसम घिनौना हो गया
अब किसी लैला को भी इक़रारे-महबूबी नहीं
इस अहद में प्यार का सिम्बल तिकोना हो गया.जो उलझ कर रह गई फाइलों के जाल में
जो उलझ कर रह गई फाइलों के जाल में
गाँव तक वो रोशनी आयेगी कितने साल में
बूढ़ा बरगद साक्षी है किस तरह से खो गई
रमसुधी की झोपड़ी सरपंच की चौपाल में
खेत जो सीलिंग के थे सब चक में शामिल हो गए
हमको पट्टे की सनद मिलती भी है तो ताल में
जिसकी क़ीमत कुछ न हो इस भीड़ के माहौल में
ऐसा सिक्का ढालिए मत जिस्म की टकसाल मेंआप कहते हैं सरापा गुलमुहर है ज़िन्दगी
आप कहते हैं सरापा गुलमुहर है ज़िन्दगी
हम ग़रीबों की नज़र में इक क़हर है ज़िन्दगी
भुखमरी की धूप में कुम्हला गई अस्मत की बेल
मौत के लम्हात से भी तल्ख़तर है ज़िन्दगी
डाल पर मज़हब की पैहम खिल रहे दंगों के फूल
ख़्वाब के साये में फिर भी बेख़बर है ज़िन्दगी
रोशनी की लाश से अब तक जिना करते रहे
ये वहम पाले हुए शम्सो-क़मर है ज़िन्दगी
दफ़्न होता है जहां आकर नई पीढ़ी का प्यार
शहर की गलियों का वो गंदा असर है ज़िन्दगी.काजू भुने प्लेट में विस्की गिलास में
काजू भुने प्लेट में विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में
पक्के समाजवादी हैं तस्कर हों या डकैत
इतना असर है खादी के उजले लिबास में
आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में
पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गयी है यहाँ की नखास में
जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास मेंन महलों की बुलंदी से न लफ़्ज़ों के नगीने से
न महलों की बुलंदी से न लफ़्ज़ों के नगीने से
तमद्दुन में निखार आता है घीसू के पसीने से
कि अब मर्क़ज़ में रोटी है, मुहब्बत हाशिये पर है
उतर आई ग़ज़ल इस दौर में कोठी के ज़ीने से
अदब का आइना उन तंग गलियों से गुज़रता है
जहाँ बचपन सिसकता है लिपट कर माँ के सीने से
बहारे-बेकिराँ में ता-क़यामत का सफ़र ठहरा
जिसे साहिल की हसरत हो उतर जाए सफ़ीने से
अदीबों की नई पीढ़ी से मेरी ये गुज़ारिश है
सँजो कर रक्खें 'धूमिल' की विरासत को क़रीने से.मैं चमारों की गली में ले चलूंगा आपको
आइए महसूस करिए ज़िंदगी के ताप को
मैं चमारों की गली तक ले चलूंगा आपको
जिस गली में भुखमरी की यातना से ऊब कर
मर गई फुलिया बिचारी इक कुएँ में डूब कर
है सधी सिर पर बिनौली कंडियों की टोकरी
आ रही है सामने से हरखुआ की छोकरी
चल रही है छंद के आयाम को देती दिशा
मैं इसे कहता हूँ सरजूपार की मोनालिसा
कैसी यह भयभीत है हिरनी-सी घबराई हुई
लग रही जैसे कली बेला की कुम्हलाई हुई
कल को यह वाचाल थी पर आज कैसी मौन है
जानते हो इसकी ख़ामोशी का कारण कौन है
थे यही सावन के दिन हरखू गया था हाट को
सो रही बूढ़ी ओसारे में बिछाए खाट को
डूबती सूरज की किरनें खेलती थीं रेत से
घास का गट्ठर लिए वह आ रही थी खेत से
आ रही थी वह चली खोई हुई जज्बात में
क्या पता उसको कि कोई भेड़िया है घात में
होनी से बेख़बर कृष्ना बेख़बर राहों में थी
मोड़ पर घूमी तो देखा अजनबी बाहों में थी
चीख़ निकली भी तो होठों में ही घुटकर रह गई
छटपटाई पहले, फिर ढीली पड़ी, फिर ढह गई
दिन तो सरजू के कछारों में था कब का ढल गया
वासना की आग में कौमार्य उसका जल गया
और उस दिन ये हवेली हँस रही थी मौज में
होश में आई तो कृष्ना थी पिता की गोद में
जुड़ गई थी भीड़ जिसमें ज़ोर था सैलाब था
जो भी था अपनी सुनाने के लिए बेताब था
बढ़ के मंगल ने कहा काका तू कैसे मौन है
पूछ तो बेटी से आख़िर वो दरिंदा कौन है
कोई हो संघर्ष से हम पाँव मोड़ेंगे नहीं
कच्चा खा जाएंगे ज़िन्दा उनको छोडेंगे नहीं
कैसे हो सकता है होनी कह के हम टाला करें
और ये दुश्मन बहू-बेटी से मुँह काला करें
बोला कृष्ना से- बहन, सो जा मेरे अनुरोध से
बच नहीं सकता है वो पापी मेरे प्रतिशोध से
पड़ गई इसकी भनक थी ठाकुरों के कान में
वे इकट्ठे हो गए सरपंच के दालान में
दृष्टि जिसकी है जमीं भाले की लम्बी नोक पर
देखिए सुखराज सिंह बोले हैं खैनी ठोंक कर
क्या कहें सरपंच भाई! क्या ज़माना आ गया
कल तलक जो पाँव के नीचे था रुतबा पा गया
कहती है सरकार कि आपस में मिलजुल कर रहो
सुअर के बच्चों को अब कोरी नहीं हरिजन कहो
देखिए ना यह जो कृष्ना है चमारों के यहाँ
पड़ गया है सीप का मोती गँवारों के यहाँ
जैसे बरसाती नदी अल्हड़ नशे में चूर है
न पुट्ठे पे हाथ रखने देती है, मगरूर है
भेजता भी है नहीं ससुराल इसको हरखुआ
फिर कोई बाहों में इसको भींच ले तो क्या हुआ
आज सरजू पार अपने श्याम से टकरा गई
जाने-अनजाने वो लज्जत ज़िंदगी की पा गई
वो तो मंगल देखता था बात आगे बढ़ गई
वरना वह मरदूद इन बातों को कहने से रही
जानते हैं आप मंगल एक ही मक्कार है
हरखू उसकी शह पे थाने जाने को तैयार है
कल सुबह गरदन अगर नपती है बेटे-बाप की
गाँव की गलियों में क्या इज्जत रहेगी आपकी
बात का लहजा था ऐसा ताव सबको आ गया
हाथ मूँछों पर गए माहौल भी सन्ना गया
क्षणिक आवेश जिसमें हर युवा तैमूर था
हाँ, मगर होनी को तो कुछ और ही मंज़ूर था
रात जो आया न अब तूफ़ान वह पुरज़ोर था
भोर होते ही वहाँ का दृश्य बिलकुल और था
सिर पे टोपी बेंत की लाठी संभाले हाथ में
एक दर्जन थे सिपाही ठाकुरों के साथ में
घेरकर बस्ती कहा हलके के थानेदार ने -
"जिसका मंगल नाम हो वह व्यक्ति आए सामने"
निकला मंगल झोपड़ी का पल्ला थोड़ा खोलकर
एक सिपाही ने तभी लाठी चलाई दौड़ कर
गिर पड़ा मंगल तो माथा बूट से टकरा गया
सुन पड़ा फिर "माल वो चोरी का तूने क्या किया"
"कैसी चोरी माल कैसा" उसने जैसे ही कहा
एक लाठी फिर पड़ी बस, होश फिर जाता रहा
होश खोकर वह पड़ा था झोपड़ी के द्वार पर
ठाकुरों से फिर दरोगा ने कहा ललकार कर -
"मेरा मुँह क्या देखते हो! इसके मुँह में थूक दो
आग लाओ और इसकी झोपड़ी भी फूँक दो"
और फिर प्रतिशोध की आँधी वहाँ चलने लगी
बेसहारा निर्बलों की झोपड़ी जलने लगी
दुधमुँहा बच्चा व बुड्ढा जो वहाँ खेड़े में था
वह अभागा दीन हिंसक भीड़ के घेरे में था
घर को जलते देखकर वे होश को खोने लगे
कुछ तो मन ही मन मगर कुछ ज़ोर से रोने लगे
"कह दो इन कुत्तों के पिल्लों से कि इतराएँ नहीं
हुक्म जब तक मैं न दूँ कोई कहीं जाए नहीं"
यह दरोगा जी थे मुँह से शब्द झरते फूल से
आ रहे थे ठेलते लोगों को अपने रूल से
फिर दहाड़े "इनको डंडों से सुधारा जाएगा
ठाकुरों से जो भी टकराया वो मारा जाएगा"
इक सिपाही ने कहा "साइकिल किधर को मोड़ दें
होश में आया नहीं मंगल कहो तो छोड़ दें"
बोला थानेदार "मुर्गे की तरह मत बांग दो
होश में आया नहीं तो लाठियों पर टांग लो
ये समझते हैं कि ठाकुर से उलझना खेल है
ऐसे पाजी का ठिकाना घर नहीं है जेल है"
पूछते रहते हैं मुझसे लोग अकसर यह सवाल
"कैसा है कहिए न सरजू पार की कृष्ना का हाल"उनकी उत्सुकता को शहरी नग्नता के ज्वार को
सड़ रहे जनतंत्र के मक्कार पैरोकार को
धर्म संस्कृति और नैतिकता के ठेकेदार को
प्रांत के मंत्रीगणों को केंद्र की सरकार को
मैं निमंत्रण दे रहा हूँ आएँ मेरे गाँव में
तट पे नदियों के घनी अमराइयों की छाँव में
गाँव जिसमें आज पांचाली उघाड़ी जा रही
या अहिंसा की जहाँ पर नथ उतारी जा रही
हैं तरसते कितने ही मंगल लंगोटी के लिए
बेचती हैं जिस्म कितनी कृष्ना रोटी के लिए !
गोंडा। हिंदी के जनवादी कवि और गजलकार रामनाथ सिंह 'अदम गोंडवी का लीवर की गंभीर बीमारी के कारण निधन हो गया। उन्हें लीवर सिरोसिस की बीमारी थी। यह बीमारी उन्हें जहरखुरानी के कारण हुई थी। वे 63 वर्ष के थे। 22 अक्टूबर 1947 को गोस्वामी तुलसीदास के गुरु स्थान सूकर क्षेत्र के करीब परसपुर (गोंडा) के अटा ग्राम में स्व. श्रीमती मांडवी सिंह एवं देवी कलि सिंह के पुत्र के रूप में बालक रामनाथ सिंह का जन्म हुआ जो बाद में अदम गोंडवी के नाम से सुविख्यात हुए। उनके एक पुत्र और दो पुत्रियां हैं।
उनका महीने भर से इलाज चल रहा था। रविवार की सुबह लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनका अंतिम संस्कार कल उनके पैतृक गांव परसपुर विकासखंड के आटा गांव में किया जाएगा। अदम गोंडवी मटमैली धोती में लिपटा इकहरा बदन, उनकी हड्डियों में ज्यादा ज़ोर शायद न होगा, पर जब उनकी गज़लें बोलती हैं तो हुकूमतें सिहर जाती हैं।
अदम गोंडवी के बारे में अक्सर कहा जाता है कि हिंदी गज़लों की दुनिया में दुष्यंत कुमार के बाद ही शीर्षस्थ रचनाकार हैं, अदम ने अपना जीवन सामंतवादी ताकतों, भ्रष्टाचारियों, कालाबाजारियों और पाखंडियों के खिलाफ लिखते हुए बिताया धरती की सतह पर व 'समय से मुठभेड़ जैसे गजल संग्रह से उन्होंने खूब नाम कमाया. भारत से लेकर सुदूर रूस तक वे पढ़े जाते हैं, वर्ष ।998 में उन्हें मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें दुष्यंत कुमार पुरस्कार से नवाजा।
उन्होंने समाज की तल्ख सच्चाई हमेशा समाज के सामने रखी। युवा पीढ़ी की उपेक्षा व उन्हें गलत दिशा में व्यवस्था द्वारा धकेलने पर उन्होंनें लिखा...'इस व्यवस्था ने नई पीढ़ी को आखिर क्या दिया। सेक्स की रंगीनियां या गोलियां सल्फास की। रोज-रोज देश में होने वाले घोटालों ने इस देश को खोखला कर दिया। इन घोटालों में ज्यादातर राजनेता ही शामिल रहे। इन नेताओं पर सीधा प्रहार करते हुए अदम ने लिखा... 'जो डलहौजी न कर पाया वो ये हुक्मरान कर देंगे, कमीशन दो तो हिन्दुस्तान को नीलाम कर देंगे। ये बंदेमातरम का गीत गाते हैं सुबह उठकर, मगर बाजार में चीजों का दुगुना दाम कर देंगे।
सदन में घूस देकर बच गई कुर्सी तो देखोगे, अगली योजना में घूसखोरी आम कर देंगे। एक रचना में उन्होंने लिखा है...'फटे कपड़ों में तन ढांके, गुजरता हो जिधर कोई, समझ लेना वो पगडंडी अदम के गांव जाती है उनके बीमार पडऩे के बाद नर्सिग होम में मुलाकात करने गए जिलाधिकारी राम बहादुर को जब उन्होंने अपने गांव की कहानी बताई तो न केवल उन्होंने विकास कार्यों के लिए अदम जी के पूरे गांव को गोद लेने की घोषणा की ।
कमीशन दो तो हिंदुस्तान को नीलाम कर देंगे: जनकवि अदम गोंडवी
गरीब के दर्द को अपनी गजलों में व्यक्त करने वाले अदम गोंडवी(रामनाथ सिंह) बहुत जल्दी चले गए। आर्थिक तंगी, बीमारी और समाज से संघर्ष करते हुए, चिट्ठी न कोई संदेश- अदम चले गए। जिंदगी भर उन्होंने समाज के किसी संघर्ष और गरीबों के शोषण पर लिखा। दुष्यंत कुमार ने हिंदी गजल की परंपरा प्रारंभ की और अदम गोंडवी ने उसे परवान चढ़ाया। शरद जोशी और जीवनलाल वर्मा 'विद्रोही ने व्यवस्था पर जो प्रहार अपने व्यंग्य लेखों में किया, वही दुष्यंत कुमार और अदम गोंडवी ने हिंदी गजलों में किया। नागार्जुन भी इसी मिजाज के कवि थे। अदम, नागार्जुन और प्रेमचंद तीनों ही गांव और गरीब की दुनिया के रचनाकार हैं।
हिंदी और उर्दू में वे समान रूप से लोकप्रिय थे। कम पढ़े-लिखे, साधारण धोती-कुर्ता पहनने और गले में गमछा डालने वाले अदम ने जो लिखा, उससे लगता है कि उन्होंने भारत की असली सूरत को न- केवल करीब से देखा, उससे कहीं अधिक महसूस भी किया है। बाढ़ राहत की लूटखसोट पर वे लिखते हैं- 'महज तनख्वाह से निबटेंगे क्या नखरे लुगाई के, हजारों रास्ते हैं सिन्हा साहब की कमाई के। मिसेज सिन्हा के हाथों में जो बेमौसम खनकते हैं, पिछली बाढ़ के तोहफे हैं ये कंगन कलाई के।
जनकवि अदम कबीर की परंपरा के हैं। अपने गांव को वे ऐसे व्यक्त करते हैं-'फटे कपड़ों में तन ढांके गुजरता हो जिधर कोई, समझ लेना वो पगडंडी अदम के गांव जाती है। आज की भ्रष्ट व्यवस्था पर वे कहते हैं-'काजू भुने हुए ह्विस्की गिलास में, उतरा है रामराज विधायक निवास में। उनकी रचनाएं हिंदी कविता के शास्त्रीय अनुशासन, बिंब विधान और प्रतीकों से सर्वथा अलग हमें उस दुनिया में ले जाती हैं, जिसे हम हर क्षण देखते, भोगते और बर्दाश्त करते हैं। जैसे उनकी ये पंक्तियां, जो आज भी प्रासंगिक हैं-'जो डलहौजी न कर पाया वे ये हुक्मरान कर देंगे, कमीशन दो तो हिंदुस्तान को नीलाम कर देंगे।
सदियों से गांवों में सवर्णों द्वारा कमजोर तबके का जिस तरह से शोषण किया जा रहा है, उस पर अदम की एक बहुत प्रसिद्ध और मार्मिक लंबी गजल है-'आइए महसूस करिए जिंदगी के नाम को, मैं चमारों की गली तक ले चलूंगा आप को। आज के साहित्य समाज पर ही उन्होंने यह व्यंग्य किया था-'गजल को ले चलो अब गांव के दिलकश नजारों में, मुसलसल फन का दम घुटता है इन अदबी इदारों में।
एकांत शर्मा
आग उगलती पंक्तियों के रचियता जाने माने शायर और ख्यातिनाम जनकवि रामनाथ सिंह उर्फ अदम गोंडवी के निधन की खबर हडकंप मचाने वाले सर्द कोहरे से ढकी दिल्ली में अचानक आई जिससे साहित्य जगत में शोक की लहर है. हिन्दी गजल के क्षेत्र में अदम गोंडवी एक बहुत पहचाना और स्वीकारा हुआ नाम रहा है. 'अदम गोंडवी' का रविवार तड़के लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में निधन हो गया, वे 64 वर्ष के थे. पारिवारिक सूत्रों के मुताबिक़ अदमजी क्रानिक लीवर डिजीज का इलाज करा रहे थे.
रविवार सुबह लखनऊ स्थित संजय गांधी परास्नातक आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) में निधन हो गया. साधारण व्यक्तित्व और सरल अंदाज में साफगोई से अपना लेखन धर्म निबाहने वाले अदमजी के बारे में ख़बरें थी कि आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण वे अपना इलाज ठीक से नहीं करा पा रहे थे. उन्हें हाल ही में लखनऊ के संजय गांधी परास्नातक आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती कराया गया था.
22 अक्तूबर 1947 को उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के आटा परसपुर गांव में जन्में अदम साहब जनचेतना के प्रखर कवि थे. दुष्यंत कुमार के बाद सच को बगैर चाश्ने में लपेटे सीना तान कर चिंघाड़ने वाले अदम गोंडवी की कविताओं और गजलों में आम आदमी झांकता था और सदा उसके साथ घटित अघटित चीजें ही कवित्त होती थी, यह अदम साहब की खासियत थी. जैसे प्रजातंत्र के लिए कहा जाता है जनता के लिए जनता के द्वारा और जनता के निमित्त उसी तरह अदम साहब आम आदमी के लिए आम आदमी के द्वारा और आम आदमी के निमित्त रचनाएं गढ़ते थे.
रचना जगत में उनका ऊंचा कद था. आगे भी रहेगा. अदम गोंडवी के सिर्फ दो संग्रह प्रकाशित हुए लेकिन महज दो प्रकाशित कृत्यों के माध्यम से उन्होंने देश भर में एक साख बना ली. धरती की सतह पर उनकी पहली कविता पुस्तक थी. उन्होंने हिंदी गजल को आम आदमी के दुःख दर्द से जोड़ा। मुशायरों में जब वे घुटनों तक मटमैली धोती पहने और सिकुड़ा मटमैला कुरता धारण करके गले में सफ़ेद गमछा डाल कर निपट देहाती अंदाज में पहुंचते थे तो लोग सोचते थे कि वे भला क्या सुनाएंगे मगर पर जब वह रचनाओं का पथ शुरू करते तो सब सन्न रह जाते थे । 'धरती की सतह पर ' के अलावा 'समय से मुठभेड़' उनकी प्रमुख पुस्तकें रही हैं।
काजू प्लेट में ,विस्की भरी गिलास में,
उतरा है रामराज विधायक निवास में ...
पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत
इतना असर है ख़ादी के उजले लिबास में
आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में
इन चर्चित पंक्तियों को लिखने वाले ठेंठ गंवई अंदाज़ में धोती खुंटियाये अदम गोंडवी कभी किसी राज दरबार में पद्म-श्री मांगने नही गए. कभी उन्होंने दरबारों की आरतियां नही गाईं. वह आदमी को हताश कर देने वाली व्यवस्था से इतना आजिज आ गए गए थे कि उनकी गज़लों में भूख और लाचारी के साथ साथ विद्रोह भी सुलगता था. लगी है होड सी देखो अमीरों और गरीबों में/ ये गांधीवाद के ढांचे की बुनियादी खराबी है/ तुम्हारी मेज़ चांदी की तुम्हारे जाम सोने के/ यहां जुम्मन के घर में आज भी फूटी रकाबी है।
एक और बानगी देखिए-
घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है/
बताओ कैसे लिख दूं धूप फागुन की नशीली है।
................
चल रही है छंद के आयाम को देती दिशा
मैं इसे कहता हूं सरजूपार की मोनालिसा
कैसी यह भयभीत है हिरनी-सी घबराई हुई
लग रही जैसे कली बेला की कुम्हलाई हुई
कल को यह वाचाल थी पर आज कैसी मौन है
जानते हो इसकी ख़ामोशी का कारण कौन है
उन्होंने लिखा था- गर्म रोटी की महक पागल बना देती मुझे/
पारलौकिक प्यार का मधुमास लेकर क्या करें/
जो डलहौजी न कर पाया वो ये हुक्काम कर देंगे/
कमीशन दो तो हिंदुस्तान को नीलाम कर देंगे/
उनको लीवर सीरोसिस की समस्या के बारे में बताया जाता है कि एक बार वह ट्रेन से दिल्ली से आ रहे थे तब रास्ते में उन के साथ जहर खुरानी हो गई। उनको होश तो आया मगर सामान के साथ उदर का सुख भी लुट गया और लीवर की समस्या स्थायी हो गई.
रविवार, १८ दिसम्बर २०११
चल दिए सू-ए-अदम - अदम गोंडवी
स्मरण
अदम गोंडवी की ग़ज़लें
सुप्रसिद्ध कवि अदम गोंडवी ऊर्फ रामनाथ सिंह का 18 दिसंबर को निधन हो गया. वे पिछले कई महीने से बीमार चल रहे थे. यहां हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुये उनकी कुछ ग़ज़ले प्रस्तुत कर रहे हैं.
काजू भुने प्लेट में, व्हिस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में
पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत
इतना असर है ख़ादी के उजले लिबास में
आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में
पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गयी है यहाँ की नख़ास में
जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में
000
मुक्तिकामी चेतना अभ्यर्थना इतिहास की
यह समझदारों की दुनिया है विरोधाभास की
आप कहते हैं इसे जिस देश का स्वर्णिम अतीत
वो कहानी है महज़ प्रतिरोध की, संत्रास की
यक्ष प्रश्नों में उलझ कर रह गई बूढ़ी सदी
ये परीक्षा की घड़ी है क्या हमारे व्यास की?
इस व्यवस्था ने नई पीढ़ी को आखिर क्या दिया
सेक्स की रंगीनियाँ या गोलियाँ सल्फ़ास की
याद रखिये यूँ नहीं ढलते हैं कविता में विचार
होता है परिपाक धीमी आँच पर एहसास की.
000
वो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है
उसी के दम से रौनक आपके बंगले में आई है
इधर एक दिन की आमदनी का औसत है चवन्नी का
उधर लाखों में गांधी जी के चेलों की कमाई है
कोई भी सिरफिरा धमका के जब चाहे जिना कर ले
हमारा मुल्क इस माने में बुधुआ की लुगाई है
रोटी कितनी महँगी है ये वो औरत बताएगी
जिसने जिस्म गिरवी रख के ये क़ीमत चुकाई है
000
हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये
अपनी कुरसी के लिए जज्बात को मत छेड़िये
हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है
दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िये
ग़र ग़लतियाँ बाबर की थीं; जुम्मन का घर फिर क्यों जले
ऐसे नाजुक वक्त में हालात को मत छेड़िये
हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ
मिट गये सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िये
छेड़िये इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के ख़िलाफ़
दोस्त, मेरे मजहबी नग्मात को मत छेड़िये
000
जो उलझ कर रह गयी है फाइलों के जाल में
गाँव तक वह रौशनी आएगी कितने साल में
बूढ़ा बरगद साक्षी है किस तरह से खो गयी
राम सुधि की झोपड़ी सरपंच की चौपाल में
खेत जो सीलिंग के थे सब चक में शामिल हो गए
हम को पट्टे की सनद मिलती भी है तो ताल में
000
तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है
उधर जम्हूरियत का ढोल पीटे जा रहे हैं वो
इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है, नवाबी है
लगी है होड़-सी देखो अमीरी औ गरीबी में
ये गांधीवाद के ढाँचे की बुनियादी खराबी है
तुम्हारी मेज़ चांदी की तुम्हारे जाम सोने के
यहाँ जुम्मन के घर में आज भी फूटी रक़ाबी है
000
वेद में जिनका हवाला हाशिये पर भी नहीं
वे अभागे आस्था विश्वास लेकर क्या करें
लोकरंजन हो जहां शम्बूक-वध की आड़ में
उस व्यवस्था का घृणित इतिहास लेकर क्या करें
कितना प्रतिगामी रहा भोगे हुए क्षण का इतिहास
त्रासदी, कुंठा, घुटन, संत्रास लेकर क्या करें
बुद्धिजीवी के यहाँ सूखे का मतलब और है
ठूंठ में भी सेक्स का एहसास लेकर क्या करें
गर्म रोटी की महक पागल बना देती मुझे
पारलौकिक प्यार का मधुमास लेकर क्या करें
18.12.2011, 12.57 (GMT+05:30) पर प्रकाशित
http://raviwar.com/footfive/f36_adam-gondvi-poem-and-gazal.shtml
अदम गोंडवी / परिचय
बाईस अक्तूबर १९४७ को गोस्वामी तुलसीदास के गुरु स्थान सूकर क्षेत्र के करीब परसपुर (गोंडा) के आटा ग्राम में स्व. श्रीमती मांडवी सिंह एवं श्री देवी कलि सिंह के पुत्र के रूप में बालक रामनाथ सिंह का जन्म हुआ जो बाद में "अदम गोंडवी" के नाम से सुविख्यात हुए।
अदम जी कबीर परंपरा के कवि हैं, अंतर यही कि अदम ने कागज़ कलम छुआ पर उतना ही जितना किसान ठाकुर के लिए जरूरी था।
देखना सुनना व् सच कहना जिन्हें भाता नहीं
कुर्सियों पर फिर वही बापू के बन्दर आ गए
कल तलक जो हाशिए पर भी न आते थे नज़र
आजकल बाजार में उनके कलेंडर आ गए
दुष्यंत जी ने अपनी ग़ज़लों से शायरी की जिस नयी राजनीति की शुरुआत की थी, अदम ने उसे उस मुकाम तक पहुँचाने की कोशिश की है जहाँ से एक एक चीज़ बगैर किसी धुंधलके के पहचानी जा सके.
जो उलझ कर रह गयी है फाइलों के जाल में
गाँव तक वह रौशनी आएगी कितने साल में
बूढ़ा बरगद साक्षी है किस तरह से खो गयी
राम सुधि की झौपड़ी सरपंच की चौपाल में
खेत जो सीलिंग के थे सब चक में शामिल हो गए
हम को पट्टे की सनद मिलती भी है तो ताल में
मुशायरों में ,घुटनों तक मटमैली धोती, सिकुड़ा मटमैला कुरता और गले में सफ़ेद गमछा डाले एक ठेठ देहाती इंसान जिसकी और आपका शायद ध्यान ही न गया हो यदि अचानक माइक पे आ जाए और फिर ऐसी रचनाएँ पढे के आपका ध्यान और कहीं जाए ही न तो समझिए वो इंसान और कोई नहीं अदम गोंडवी हैं. उनकी निपट गंवई अंदाज़ में महानगरीय चकाचौंध और चमकीली कविताई को हैरान कर देने वाली अदा सबसे जुदा और विलक्षण है.
किसको उम्मीद थी जब रौशनी जवां होगी
कल के बदनाम अंधेरों पे मेहरबां होगी
खिले हैं फूल कटी छातियों की धरती पर
फिर मेरे गीत में मासूमियत कहाँ होगी
आप आयें तो कभी गाँव की चौपालों में
मैं रहूँ या न रहूँ भूख मेज़बां होगी
अदम शहरी शायर के शालीन और सुसंस्कृत लहजे में बोलने के बजाय वे ठेठ गंवई दो टूकपन और बेतकल्लुफी से काम लेते हैं। उनके कथन में प्रत्यक्षा और आक्रामकता और तड़प से भरी हुई व्यंग्मयता है.
वस्तुतः ये गज़लें अपने ज़माने के लोगों से 'ठोस धरती की सतह पर लौट ' आने का आग्रह कर रही हैं.
ग़ज़ल को ले चलो अब गाँव के दिलकश नजारों में
मुसलसल फन का दम घुटता है इन अदबी इदारों में
अदीबों ठोस धरती की सतह पर लौट भी आओ
मुलम्मे के सिवा क्या है फ़लक के चाँद तारों में
अदम जी की शायरी में आज जनता की गुर्राहट और आक्रामक मुद्रा का सौंदर्य मिसरे-मिसरे में मौजूद है, ऐसा धार लगा व्यंग है के पाठक का कलेजा चीर कर रख देता है.आप इस किताब का कोई सफह पलटिए और कहीं से भी पढ़ना शुरू कर दीजिए, आपको मेरी बात पर यकीन आ जायेगा.
काजू भुने प्लेट में व्हिस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में
पक्के समाजवादी हैं तस्कर हों या डकैत
इतना असर है खादी के उजले लिबास में
जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो हवाश में
अदम साहब की शायरी में अवाम बसता है उसके सुख दुःख बसते हैं शोषित और शोषण करने वाले बसते हैं. उनकी शायरी न तो हमें वाह करने के अवसर देती है और न आह भरने की मजबूरी परोसती है. सीधे सच्चे दिल से कही उनकी शायरी सीधे सादे लोगों के दिलों में बस जाती है.
बेचता यूँ ही नहीं है आदमी ईमान को
भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पर इंसान को
सब्र की इक हद भी होती है तवज्जो दीजिए
गर्म रक्खें कब तलक नारों से दस्तरखान को
शबनमी होंठों की गर्मी दे न पाएगी सुकून
पेट के भूगोल में उलझे हुए इंसान को
- योगगुरु रामदेव बने कवि, कवितापाठ किया
- कविता संग्रह: जीवन के कच्चे-पक्के रंग
- कविता संग्रह: छुवा-छुवौवल की थकान | LIVE TV
- कविता संग्रह: संवाद के पुल | LIVE अपडेट
- http://aajtak.intoday.in/videoplay.php/videos/view/687511/Adam-gondvi-dead.html
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अदम जनता के कवि हैं, उन्हें बचाने के लिए आगे आएं
16 DECEMBER 2011 8 COMMENTS[X]♦ कौशल किशोर
जनकवि रामनाथ सिंह उर्फ अदम गोंडवी की हालत अब भी चिंताजनक बनी हुई है। अपनी गजलों व शायरी से आम जन में नयी स्फूर्ति व चेतना भर देने वाले अदम लखनऊ के संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (पीजीआई) के गेस्ट्रोलॉजी विभाग (पांचवा तल, जी ब्लॉक, बेड नं 3) में भर्ती हैं। उनकी चेतना जब भी वापस आती है, वे अपने भतीजे दिलीप कुमार सिंह को सख्त हिदायत देते हैं कि मेरे इलाज के लिए अपनी तरफ से किसी से सहयोग मत मांगो। जैसे कहना चाहते हैं कि सारी जिंदगी संघर्ष किया है, अपनी बीमारी से भी लड़ेगे। उसे भी परास्त करेंगे। वे जब भी आंख खोलते हैं, चारों तरफ अपने साथियों को पाते हैं। उनके चेहरे पर नयी चमक सी आ जाती है। एक साथी उन्हें सुनाते हैं, 'काजू भुनी पलेट में, ह्विस्की ग्लास में / उतरा है रामराज्य विधायक निवास में' और अदम अपना सारा दर्द पी जाते हैं और उनके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान फैल जाती है।
अदम गोंडवी का लीवर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुका है। किडनी भी ठीक से काम नहीं कर रही है। पेट फूला हुआ है। मुंह से पानी का घूंट भी ले पाना उनके लिए संभव नहीं है। खून में हीमोग्लोबीन का स्तर भी नीचे आ गया है। सोमवार की रात तीन बोतल खून चढ़ाया गया। संभव है आगे और खून चढ़ाना पड़े। मंगलवार को अदम गोंडवी का इंडोस्कोपी हुआ तथा कई जांचें की गयी। इनकी रिपोर्ट आने के बाद आगे के इलाज की दिशा तय होगी। पीजीआई के डाक्टरों का कहना है कि अदम गोंडवी के इलाज में करीब तीन लाख रुपये के आसपास खर्च आएगा।
लखनऊ के एक स्थानीय अखबार में उनकी बीमारी की खबर तथा सहयोग की अपील का अच्छा असर देखने में आया है। आज सुबह से ही लेखकों, संस्कृतिकर्मियों का पीजीआई आना शुरू हो गया। कई संगठन और व्यक्ति भी सहयोग के लिए सामने आये। जो किसी कारणवश नहीं पहुंच पाये, वे भी लगातार हालचाल पूछते रहे। पहुंचने वालों में वीरेंद्र यादव, प्रो रमेश दीक्षित, राकेश, भगवान स्वरूप कटियार, आरके सिन्हा, श्याम अंकुरम, आदियोग, संजीव सिन्हा, पीसी तिवारी, रामकिशोर आदि प्रमुख थे।
अदम गोंडवी के इलाज के लिए सहयोग जुटाने के मकसद से कई संगठन सक्रिय हो गये हैं। जसम, प्रलेस, जलेस, कलम, आवाज, ज्ञान विज्ञान समिति आदि संगठनों की ओर से राज्यपाल व मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा गया तथा उनसे मांग की गयी कि अदम गोंडवी के इलाज का सारा खर्च प्रदेश सरकार उठाये। ऐसा ही ज्ञापन उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान और भाषा संस्थान को भी भेजा गया है। लेखक संगठनों का कहना है कि अदम गोंडवी ने सारी जिंदगी जनता की कविताएं लिखीं, जन संघर्षों को वाणी दी। ये हमारे समाज और प्रदेश की धरोहर है। इनका जीवन बचाना सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है। वह आगे आये। रचना व साहित्य के लिए बनी सरकारी संस्थाओं का भी यही दायित्व है।
सोमवार 12 दिसंबर को अदम गोंडवी को गोंडा से लखनऊ के पीजीआई में लाया गया था। उनकी हालत काफी गंभीर थी। वे नीम बेहोशी की हालत में थे। कई घंटे वे बिना भर्ती व इलाज के पड़े रहे। इससे उनकी हालत और भी खराब होती गयी। बाद में पीजीआई के इमरजेंसी वार्ड में भर्ती हुए। सबसे बड़ी दिक्कत पैसे की थी। परिवार के पास इलाज के लिए पैसे नहीं थे। सबसे पहले मुलायम सिंह यादव का सहयोग सामने आया। उन्होंने पचास हजार का सहयोग दिया। एडीएम, मनकापुर ने दस हजार का सहयोग दिया। गोंडा में जिस प्राइवेट नर्सिंग होम में उनका इलाज चला, वहां के डाक्टर राजेश कुमार पांडेय ने दस हजार का सहयोग दिया।
12 तारीख से चले इलाज से इतना फर्क आया है कि उस दिन जहां वे नीम बेहोशी में थे, आज लोगों को पहचान रहे हैं। थोड़ी-बहुत बातचीत भी कर रहे हैं। लेकिन अदम गोंडवी का यह इलाज लंबा चलेगा। इसमें अच्छे-खासे धन की जरूरत होगी। इसके लिए सभी को जुटना होगा। उस समाज को तो जरूर ही आगे आना होगा जिसके लिए अदम गोंडवी ने सारी जिंदगी संघर्ष किया। कहते हैं बूंद-बूद से घड़ा भरता है। लोगों का छोटा सहयोग भी इस मौके पर बड़ा मायने रखता है। वे सहयोग के लिए आगे आ सकते हैं। इस सहयोग से हम अपने कवि का जीवन बचा सकते हैं। सहयोग के लिए दिलीप कुमार सिंह से 09958253708 पर संपर्क करें या सीधे अदम गोंडवी के एकाउंट में भी धन जमा किया जा सकता है। उनका एकाउंट स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की परसपुर शाखा में है। एकाउंट नंबर है… 31095622283
(कौशल किशोर। सुरेमनपुर, बलिया, यूपी में जन्म। जनसंस्कृति मंच, यूपी के संयोजक। 1970 से आज तक हिन्दी की सभी प्रमुख पत्रिकाओं में कविताओं का प्रकाशन। रेगुलर ब्लॉगर, यूआरएल हैkishorkaushal.blogspot.com। उनसे kaushalsil.2008@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)
जनवादी कवि अदम गोंडवी का जन को आखिर सलाम | |||||||||
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जनवादी कवि-शायर राम नाथ सिंह 'अदम गोंडवी' का रविवार तड़के लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में निधन हो गया.
राम नाथ सिंह 'अदम गोंडवी' ने हिन्दी गजल के क्षेत्र में हिन्दुस्तान के कोने-कोने में अपनी पहचान बना ली थी. वे 63 वर्ष के थे.
पारिवारिक सूत्रों ने आज यहां बताया कि अदम जी क्रानिक लीवर डिजीज से पीड़ित थे और उनका इलाज करीब एक माह से चल रहा था. काफी दिन तक गोंडा के एक निजी नर्सिग होम में इलाज कराने के बाद करीब एक सप्ताह पूर्व उन्हें लखनऊ स्थित पीजीआई ले जाया गया था. जहां उनका इलाज चल रहा था. आज तड़के पांच बजे उन्होंने अंतिम सांस ली.
गोंडवी का अंतिम संस्कार सोमवार को उनके पैतृक गांव परसपुर विकास खण्ड के आटा में किया जाएगा. उनके परिवार में एक पुत्र और दो पुत्रियां हैं.अदम गोंडवी ने हमेशा समाज के दबे कुचले एवं कमजोर वर्ग के लोगों की आवाज उठाई.
'धरती की सतह पर' व 'समय से मुठभेड़' जैसे गजल संग्रह से उन्होंने खूब नाम कमाया.वर्ष 1998 में उन्हें मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें दुष्यंत कुमार पुरस्कार से नवाजा.उन्होंने समाज की तल्ख सच्चाई हमेशा समाज के सामने रखी.
युवा पीढ़ी की उपेक्षा व उन्हें गलत दिशा में व्यवस्था द्वारा धकेलने पर उन्होंनें लिखा...
'इस व्यवस्था ने नई पीढ़ी को आखिर क्या दिया। सेक्स की रंगीनियां या गोलियां सल्फास की।'
रोज-रोज देश में होने वाले घोटालों ने इस देश को खोखला कर दिया। इन घोटालों में ज्यादातर राजनेता ही शामिल रहे। इन नेताओं पर सीधा प्रहार करते हुए अदम ने लिखा...
'जो डलहौजी न कर पाया वो ये हुक्मरान कर देंगे, कमीशन दो तो हिन्दुस्तान को नीलाम कर देंगे।
ये बंदेमातरम का गीत गाते हैं सुबह उठकर, मगर बाजार में चीजों का दुगुना दाम कर देंगे।
सदन में घूस देकर बच गई कुर्सी तो देखोगे, अगली योजना में घूसखोरी आम कर देंगे।'
अदम जी ने पूंजीवाद पर भी करारी चोट करते हुए लिखा है...
'लगी है होड़ सी देखो अमीरी और गरीबी में, ये पूंजीवाद के ढांचे की बुनियादी खराबी है।
तुम्हारी मेज चांदी की, तुम्हारे जाम सोने के, यहां जुम्मन के घर में आज भी फूटी तराबी है।'
बाढ़ की राहत सामग्री की 'लूट' पर अदम अपनी कलम नहीं रोक पाये। उन्होंने लिखा...
'महज तनख्वाह से निबटेंगे क्या नखरे लुगाई के। हजारों रास्ते हैं सिन्हा साहब की कमाई के।
मिसेज सिन्हा के हाथों में जो बेमौसम खनकते हैं। पिछली बाढ़ के तोहफे हैं ये कंगन कलाई के।'
अदम जी बेहद कम पढ़े-लिखे तथा हमेशा जमीन से जुड़ी बात करते थे.
एक रचना में उन्होंने लिखा है...'फटे कपड़ों में तन ढांके, गुजरता हो जिधर कोई, समझ लेना वो पगडंडी अदम के गांव जाती है'
उनके बीमार पड़ने के बाद नर्सिग होम में मुलाकात करने गए जिलाधिकारी राम बहादुर को जब उन्होंने अपने गांव की कहानी बताई तो न केवल उन्होंने विकास कार्यों के लिए अदम जी के पूरे गांव को गोद लेने की घोषणा की.
बीते 14 दिसम्बर को उस पगडंडी को सीसी रोड बनाने के लिए भूमि पूजन करके काम भी शुरू करवा दिया.
गांव के विकास के लिए शासन द्वारा संचालित विभिन्न सरकारी परियोजनाओं के लिए 65 लाख रुपए की कार्ययोजना को भी उसी दिन मंजूरी देकर काम शुरू करा दिया गया. किंतु अफसोस कि अदम जी अपने गांव की बदलती सूरत को देखने के लिए नहीं रहे.
28 टिप्पणियाँ:
सलाम।
verma ji,
bahut sundar aur saarthak post, aabhaar sweekaaren.
काजू भुनी पिलेट में, ह्विस्की गिलास में,
उतरा है रामराज विधायक निवास में!
बहुत पहले पढ़ा था यह, पर पता नहीं था कि गोंडवी साहब ने लिखा है, आज पत
ा चला है तो गोंडवी साहब नहीं हैं। विनम्र श्रद्धांजलि।
आपके पोस्ट से ही जान पाया। रामनाथ सिंह जैसे जनकवि बिरले ही होते हैं। सच्ची श्रद्धांजलि तो उनके लिखे को और पढ़कर, उनके बताये रास्ते पर चलकर ही दी जा सकती है।
भूख है पर भूख में आक्रोश वो दिखता नहीं
सोचता हूँ आज कोई ऐसा क्यूँ लिखता नहीं!
..आपने संक्षेप में उनकी लेखनी से रू-ब-रू तो करा ही दिया। कविता कोष में भी उनको तत्काल पढ़ा जा सकता है।
कुछ लोग जहां कहीं भी रहें अपने अमिट निशान छोड़ते हैं ...वे भी ऐसे ही थे !
विनम्र श्रद्धांजलि और इस पोस्ट के लिए आपका आभार सलिल भाई !
गोंडवी साहब की एक गज़ल जो मुझे बहुत अच्छी लगती है...
चाँद है ज़ेरे क़दम. सूरज खिलौना हो गया
हाँ, मगर इस दौर में क़िरदार बौना हो गया
शहर के दंगों में जब भी मुफलिसों के घर जले
कोठियों की लॉन का मंज़र सलौना हो गया
ढो रहा है आदमी काँधे पे ख़ुद अपनी सलीब
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा जब बोझ ढोना हो गया
यूँ तो आदम के बदन पर भी था पत्तों का लिबास
रूह उरियाँ क्या हुई मौसम घिनौना हो गया
'अब किसी लैला को भी इक़रारे-महबूबी नहीं'
इस अहद में प्यार का सिम्बल तिकोना हो गया.
कई दिनों से अदम गोंडवी जी के बारे में और उनके शेर फ़िर से पढ़ रहे थे। आज सुबह खबर आई थी कि उनकी तबियत में सुधार हो रहा है। दोपहर को पता चला कि उनका निधन हो गया।
स्व.अदम गोंडवी को विनम्र श्रद्धांजलि।
:( chacha...wo mere bhi bhut priy shayar the...
कल ही मैंने अपने एक IAS मित्र से बात की थी कि अदम साहब को कुछ सरकारी अनुदान मिल सके तो उनका इलाज बहेतर तरीके से संभव हो सकेगा ... पर इस से पहले कि वो या कोई और कुछ कर पाता ... सब कुछ ख़त्म हो गया !
विनम्र श्रधांजलि ...
अदम गोंडवी जी को विनम्र श्रद्धांजलि.
अदम गोंडवी जी को विनम्र श्रद्धांजलि.....
सन 2011 बहुत कीमत लेकर जा रहा है, कितने ही लीजेंड नाता तुड़ाकर चले गये।
अभी कल परसों पढ़ा था कि गोंडवी साहब के गाँव तक की सड़क बन रही है, लेकिन उन्हें उस सड़क पर थोड़े ही जाना था। आम आदमी के दर्द को अपने लफ़्ज़ों के जरिये बयान करने वाले उस हरदिल अजीज शायर को विनम्र श्रद्धांजलि।
अदम गोंडवी साहब को हार्दिक श्रद्धांजलि।
उनके चहरे से कभी ऐसा नहीं लगा कि उन्होंने कोइ बड़ी बात कह दी हो. आज जब किसी शायर को, शेर के वज़न से ज़्यादा, खुद की एक्टिंग से शेर में असर पैदा करते देखता/सुनता हूँ, तो लगता है कि अदम साहब की सादगी ही उनका बयान थी.
अदम नाम में ही इसका रहस्य छुपा लगता है, सलिल भाई !
विनम्र श्रद्धांजलि.....
जनाब राम नाथ सिंह उर्फ अदम गोंडवी को विनम्र श्रद्धांजलि!!!
क्या हम और हमारी सरकार ऐसी आत्माओं को शांति दिलाने वाले काम करेंगे???
वाक़ई शायर मा आग है! इस आग को सलाम!!
@ देश की आज़ादी के दो महीने बाद (२२ अक्टूबर १९४७) पैदा हुए राम नाथ सिंह को दिखा होगा कि मुल्क आज़ाद नहीं हुआ है.
एक शे'र अदम गोंदवी साहब क याद आ गया।
आज़ादी का वो जश्न मनाएं तो किस तरह,
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में।
***
बहुत अच्छे शायर और बहुत अच्छे इंसान को खो देना बहुत दुखदायी है।
कैसे-कैसे लोग रुख़सत कारवां से हो गये
कुछ फ़रिश्ते चल रहे थे जैसे इंसानों के साथ।
श्रद्धांजलि !!!
गोंडवी साहब को श्रद्धांजलि
हत्यारी सा लग रहा है भैया..
आज सुबह ही अखबार से उनका एकाउंट नंबर नोट किया और सोचा था, कल पैसे डलवाउंगी ...
क्या कहूँ कुछ समझ नहीं आ रहा...
अदम गोंडवी जी का असली नाम आज आपकी पोस्ट से पता चला .. सार्थक प्रस्तुति ...
उनके लिए विनम्र श्रद्धांजलि
दुखद खबर है, श्रद्धांजलि। उनके शब्दों से प्रभावित रहा हूँ। आज आपके द्वारा उनके जीवन के कुछ अन्य पक्ष जानने को मिले, आभार!
अदम गोंडवी को विनम्र श्रद्धांजलि!!!
अदम गोंडवी साहब को विनम्र श्रद्धांजलि।
आपकी इस प्रस्तुति से उनके व्यक्तित्व और कृतित्व का नया रूप महसूस किया।
उनके शब्द हमेशा चिंगारी की तरह रहेंगे.
गोंडवी जी को विनर्म श्रद्धांजलि.
कहर बन के टूटा है ये साल,दाऊ ! ऐसी चोट दी है इसने कि अदाकारी शायरी और मौसिकी को संभलने में मुद्दत बीत जायेगी ! अदम जी के शेरों में आदम की ज़िंदगी के सबसे तीखे रंग दिखते हैं !
वो खाका जो उन्होने 'मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको' में खींचा था… जेहन में चिपका हुआ सा रहा करता है…।
अदम को नमन !
अदम जी से हम लोगों के बहुत घनिष्ट सम्बन्ध रहे हैं.....वे मेरे पतिदेव के अभिन्न मित्रों में रहे हैं.....बहुत बार सुना है कवि सम्मेलनों से ले कर अपने घर में हुई बहुत आत्मीय गोष्ठियों तक में......बहुत पीड़ा हुई जान कर की इस तरह उन्हें जाना पड़ा.....बहुत बहुत श्रध्धान्जलियाँ उन्हें अर्पित हैं.....
Vinamr shaddhanjali.
Aalekh bahut prabhavi hai.
अदम गोंडवी को बचाना बगावत की कविता को बचाना है!
♦ कौशल किशोर
जनकवि अदम गोंडवी की हालत में फिलहाल सुधार दिख रहा है। यह राहत देने वाली बात है। अब वे मिलने वाले साथियों को पहचान रहे हैं। उनसे बातचीत भी कर रहे हैं। साथियों के आने व बतियाने से वे ताजगी भी महसूस कर रहे हैं। इससे उन्हें ताकत और अपनी बीमारी से लड़ने की मानसिक खुराक मिल रही है। उनकी तीमारदारी कर रहे उनके भतीजे दिलीप कुमार सिंह और उनके बेटे आलोक के चेहरे पर भी वैसा तनाव नहीं है, जैसा सोमवार को था जब उन्हें गोंडवी से लखनऊ के पीजीआई में लाया गया था।
इस सबके बावजूद उनकी हालत गंभीर है। अदम गोंडवी को लीवर सिरोसिस है। इस बीमारी को देखते हुए जरूरी है कि अदम गोंडवी का इलाज सही दिशा में चले तथा उनके इलाज मे आना वाला खर्च जुटे। कल 'दस्तक टाइम्स' पत्रिका के संपादक रामकुमार सिंह की ओर से इक्कीस हजार रुपये अदम गोंडवी के खाते में जमा किया गया तथा कथाकार सुभाषचंद्र कुशवाहा की ओर से व्यक्तिगत सहयोग दिया गया।
अदम 'कबीरा खड़ा बाजार में, लिये लुकाठी हाथ' वाली कबीर परंपरा के कवि हैं। ये उस किसान की तरह हैं, जो मौसम और समय की मार झेलता है। अन्न पैदाकर सबको खिलाता है, पर अपने भूखा रहता है, अभाव में जीता है। यही अभाव अदम के जीवन में रहा है। अदम ऐसे कवि हैं, जिनके लिए कविता करना धन व ऐश्वर्य जुटाने, कमाई करने का साधन नहीं है बल्कि उनके लिए "शायरी समाज को बदलने के संघर्ष में "शामिल होने का माध्यम है, सामाजिक प्रतिबद्धता है।
यही कारण है कि अदम की कविताएं व गजलें इस राजनीतिक तंत्र पर पुरजोर तरीके से चोट करती हैं। यह तंत्र आमजन को तबाह-बर्बाद कर रहा है। वह विपन्नता व दरिद्रता में जीने के लिए बाध्य है। इसके लिए आजादी का कोई अर्थ बचा है क्या? अदम इसी जनता का पक्ष लेते हैं और पैसे के बूते सत्ता पर काबिज तस्करों व डकैतो की इस व्यवस्था के खिलाफ मोर्चा खोलते हैं। जनता की जबान में जनता का दुख.दर्द बयां करते हैं : 'आजादी का वो जश्न मनाएं तो किस तरह | जो आ गये फुटपाथ पर घर की तलाश में' और 'जनता के पास एक ही चारा है बगावत | यह बात कह रहा हूं मैं होशो-हवास में'।
इसीलिए अदम गोंडवी के जीवन को बचाना बगावत की कविता को बचाना है, जनता की संघर्षशील परंपरा को बचाना है। विद्रोह का यह स्वर हमारी फिजां में गूंजे, इसके लिए जरूरी है कि अदम हमारे बीच रहें, वे दीर्घायु हों। यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम देखें कि अदम के इलाज में कोई कमी न रह जाए। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि हम तभी जागते हैं, जब कोई साहित्यकार बीमार होता है या उसके ऊपर कोई बड़ा संकट आता है। इस हालत में हम यही उम्मीद लगाते हैं कि सरकार आगे आये, कुछ करे। अदम गोंडवी के संबंध में राज्य सरकार से बार-बार अपील की गयी। उनके पीजीआई में भर्ती हुए चार दिन हो गये। राज्य सरकार से आर्थिक मदद तो दूर की बात है, हालचाल लेने भी अब तक कोई अधिकारी नहीं आया। बेशक प्रदेश के राज्यपाल की ओर से पच्चीस हजार रुपये के अनुदान की घोषणा की गयी है। पीजीआई के डाक्टरों ने कहा है कि अदम के इलाज पर तीन लाख से ज्यादा का खर्च आएगा। इसे देखते हुए राज्यपाल के इस अनुदान को खानापूर्ति ही कहा जाएगा। सांस्कृतिक संगठनों ने इसे अदम का अपमान कहा है।
सोमवार को जब अदम गोंडवी को गोंडवी से लाया गया था, उस वक्त उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के निदेशक की ओर से कहा गया था कि संस्थान इलाज के मद में सहयोग कर सकता है बशर्ते सहयोग का प्रस्ताव आये। उत्तर प्रदेश भाषा परिषद के गोपाल उपाध्याय, जो स्वयं हिंदी के वरिष्ठ लेखक है, ने परिषद की ओर से आर्थिक सहयोग की बात कही थी। लगता है प्रस्ताव के बहाने जहां हिंदी संस्थान ने अपना पल्ला झाड़ लिया है, वहीं भाषा परिषद ने अखबारी घोषणा करके अपने कर्तव्य की इतिश्री कर दी है। इनकी ओर से अभी तक कोई आर्थिक सहयोग नहीं आया है। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि साहित्य के उत्थान व उन्नयन के लिए बनी सरकारी संस्थाएं इस कदर संवेदनहीन हो गयी हैं कि प्रदेश का रचनाकार असाध्य बीमारी से जूझ रहा है और संस्थाओं के अफसर कुशल क्षेम जानने-पूछने की जरूरत भी नहीं समझते। ऐसी ही संस्कृतिविहीन व संवेदनहीन हमारी राजनीतिक व्यवस्था है। इस व्यवस्था से क्या उम्मीद?
फिर इसका विकल्प क्या है? हो यह रहा है कि लेखक के बीमार होते ही हमारी भागदौड़ शुरू होती है और इस संकट के थमने के साथ ही यह मुद्दा ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। यह स्वतःस्फूर्तता है। इससे काम चलने वाला नहीं है। दक्षिण के कुछ राज्यों में संकटकालीन स्थितियों से निपटने के लिए साहित्यकारों ने सहकारी संस्थाएं बना रखी हैं। हिंदी-उर्दू की यह पट्टी बहुत बड़ी है। लिखने-पढ़ने वालों का समाज भी विशाल है। लेकिन इस क्षेत्र में ऐसी सहकारी संस्थाओं का अभाव है, जो संकटकालीन स्थिति में साहित्यकारों-संस्कृतिकर्मियों को मदद कर सके। बेशक कुछ छोटी-मोटी कोशिशें जरूर हुई हैं। जैसे जन संस्कृति मंच ने 'सांस्कृतिक संकुल' बना रखा है, जिसकी तरफ से पिछले दिनों वरिष्ठ कथाकार अमरकांत, कवि शिवकुटी लाल वर्मा, रंगकर्मी अतिरंजन और कवयित्री प्रेमलता वर्मा को उनकी बीमारी में सहयोग दिया गया। लेकिन यह सब अपर्याप्त तथा अभी बहुत आरंभिक स्टेज में है।
अदम की बीमारी ने साहित्यकारों-संस्कृतिकर्मियों की सहकारी संस्थाओं के निर्माण की जरूरत को सामने ला दिया है। इस पर गंभीरता से विचार हो, कारगर कदम उठाये जाएं तथा प्रगतिशील व जनवादी संगठनों का यह कार्यभार बने। ऐसा करके ही हम अदम जैसे अपने प्रिय रचनाकारों के जीवन को बचा सकते हैं।
अदम गोंडवी को दिये जाने वाले सहयोग का संपर्क है : दिलीप कुमार सिंह 09958253708 तथा कौशल किशोर 08400208031…
(कौशल किशोर। सुरेमनपुर, बलिया, यूपी में जन्म। जनसंस्कृति मंच, यूपी के संयोजक। 1970 से आज तक हिन्दी की सभी प्रमुख पत्रिकाओं में कविताओं का प्रकाशन। रेगुलर ब्लॉगर, यूआरएल हैkishorkaushal.blogspot.com। उनसे kaushalsil.2008@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)