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Friday, August 1, 2014

इस देश के अग्नाशय में लाइलाज कैंसर President Pranab Mukherjee today advocated for training the huge number unskilled or semi-skilled labourers to skilled ones. Of the 125 crore people of the country, 58 per cent were job seekers and they should be turned into skilled workers, Mukherjee emphasised.

इस देश के अग्नाशय में लाइलाज कैंसर

President Pranab Mukherjee today advocated for training the huge number unskilled or semi-skilled labourers to skilled ones.


Of the 125 crore people of the country, 58 per cent were job seekers and they should be turned into skilled workers, Mukherjee emphasised.


पलाश विश्वास

President Pranab Mukherjee today advocated for training the huge number unskilled or semi-skilled labourers to skilled ones.


Of the 125 crore people of the country, 58 per cent were job seekers and they should be turned into skilled workers,Mukherjee emphasised.


He was addressing a gathering while inaugurating the academic campus of Ghani Khan Choudhury Institute of Engineering & Technology, near here in Malda district.


The President said only one third of the present work force in the country were skilled while others were unskilled or semi-skilled.


Stating that those unskilled or semi-skilled workers should be given training to turn them into skilled ones, he said the opportunity for doing so was maximum in the manufacturing sector.


"Within a few years we have to develop skill in 50 crore people," Mukherjee said.


The Ghani Khan Choudhury Institute of Engineering & Technology was established in 2010 by the Union Ministry of Human Resource Development in the memory of former union minister ABA Ghani Khan Choudhury, who contributed a lot in developing Malda.


The President, who planted a sapling in the compound, said Ghani Khan Choudhury had nurtured a dream to set up an institute like this where there would be innovation in both teaching and learning.


इस देश के अग्नाशय में लाइलाज कैंसर है।देश का दिलोदिमाग कैंसर से संक्रमित हो रहा है।कोशिकाओं में रक्तबीज की तरह जड़ें जमा चुका है कैंसर।


इस कैंसर का नाम है मुक्त बाजार।


जिसने इस देश को सही मायने में मृत्यु उपत्यका में तब्दील कर दिया।


राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने मालदह में कहा है कि देश में 67 करोड़ लोग बेरोजगार हैं जो रोजगार की तलाश में है।उनकी शिकायत है कि रोजगार के मौके बन नहीं रहे हैं।


ऐसा उन्होंने न राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा है और न संसद के अभिभाषण में।इसलिए यह मान लेना चाहिए कि देश के अव्वल नंबर नागरिक भारत सरकार के अनुमोदित वक्तव्य के बजाय कुछ और कह रहे हैं और उनका कहा हुआ पिछले तेईस साल के विकास कामसूत्र को झुठला रहा है।


टीवी समाचार देखता कम हूं। इसलिए दफ्तर जाने से पहले मालूम ही न था कि नवारुण दा नहीं रहे।अनुराधा मंडल की कैंसर से मृत्यु के बाद यह दूसरी दुर्घटना है।हम जानते थे परिणति।मानसिक तैयारी भी थी।लेकिन हाथों में संवादादता की खबर आते ही सन्न रह गया।


बहुत दिनों बाद इतनी थकान महसूस हुई कि आंखें बोझिल हो गयीं।संस्करण निकालने के बाद बैठना मुश्किल हो गया।घर लौटकर अपनी पीसी के सामने बैठ नहीं सके।


सविता को दफ्तर से ही हादसे की खबर दे दी थी।उस परिवार में सविता का भी आना जाना रहा है।वह तब से टीवी चैनलों में नवारुणदा को खंगाल रही हैं।


सुबह पता चला कि कोई अखबार नहीं आया।नींद से जागकर एजंट के पास गया तो उसने हाकर को फोन लगाया,जिसने कहा कि सारे अखबार हमारी खिड़की पर ठूंस गया वह।उन लगं ने कहा कि अब लोग ताजा अखबार भी चुराने लगे हैं।


रोजगार सृजन का यही हाल है।


सविता ने पूछा भी, इतने स्तब्ध क्यों हो,ता कहने से रोक नहीं पाया कि आज मेरे लिए सातवें दशक का अवसान हो गया।इस मृत्यु उपत्यका में फिर सातवें दशक की वापसी न होगी।इस पर सविता फिर बोली कि सातवां दशक तो कब बीत गया,रीत गया।जो है ही नहीं,उसका क्या शोक।


नवारुणदा को अग्नाशय में कैंसर था।लाइलाज।


1994 में इसी कोलकाता में मेरी चाची जो बचपन में मेरी मां और मेरी ताई से ज्यादा प्रिय थीं और बाकायदा साहित्य की हिस्सेदारी भी जिनके साथ थी,उनका निधन भी अग्नाशय के कैंसर से हुआ।सविता के अलावा किसी की हिम्मत नहीं होती थी उनके असहनीय दर्द को शेयर करते हुए उनकी तीमारदारी करना।


उतना दर्द किसी दूसरे को मरते हुए सहते नहीं देखा।तभीसे हम जानते रहे हैं कि अग्नाशय का कैंसर लाइलाज है।जिस ठाकुरपुकुर कैंसर अस्पताल में नवारुण दा ने आखिरी सांसें लीं,वहां भी चाची का इलाज करा पाना संभव नहीं हुआ।


नवारुण दा का दिल लेकिन लड़ता रहा शारीरिक अस्वस्थता के विरुद्ध। बेकल होते अंग प्रत्यंग के बावजूद आखिरी वक्त तक उनका दिल काम करता रहा।वैसे ही जैसे मेरे पिता के साथ हुआ।


पिता की रीढ़ में कैंसर था।नईदिल्ली के आयुर्वज्ञान संस्थान के मेडिकल बोर्ड ने कह दिया कि अब अंतिम घड़ी का ही इंतजार करना है।हमने उनके एक एक अंग को मरते हुए देखा।

लेकिन आखिरी वक्त तक उनका दिलोदिमाग दुरुस्त था।


इसीलिए मरणासण्ण पिता ने दिनेशपुर में कैंसर रोगियों के इलाज के लिए अस्पताल बनाने का आग्रह किया था बाद में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनने वाले अपने मित्र नारायण दत्त तिवारी से पूरे होशोहवास में।एनडी ने उनसे आखिरी इच्छा पूछी थी।


बोलना बंद हो गया था।दर्द का अहसास तक खत्म हो चला था।


आजीवन जुनून का अंत दिल के फेल हो जाने की वजह से ही हुआ।


विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक  हाकिंस ने साबित कर दिया कि शारीरिक सीमाबद्धता ज्ञान के लिए बाधक नहीं है,वैज्ञानिक अति सक्रियता के रास्ते में भी बाधक नहीं।


मेरे पिता और नवारुण दा दोनों ने एक बेहद अबूझ पहेली खड़ी कर दी है मेरे लिए कि क्या दिल का हाल सही सलामत रखने के लिए गैरसमझौतावादी प्रखर जनप्रतिबद्धता की कोई भूमिका है ही नहीं।


मैंने अपने पिता का अंतिम दर्शन नहीं किया।मैं उनके अंतिम संस्कार में शामिल न हुआ।मैंने पिता को मुखाग्नि नहीं दी।लेकिन उनके संघर्ष की विरासत मेरे कंधे वेताल की तरह सवार है।


अशरीरी पिता मेरे साथ हैं और मेरी चेतना को निर्देशित भी वे ही करते हैं।हो सकता है कि हमारे वंशधारा में अमिट हो यह चेतनाधारा,ह सकता है कि नहीं भी हो,जैसा कि पतनशील सांढ़ संस्कृति में चेतना के विलोप की दशा है।


नवारुण दा से हमारे रिश्ते अजीबोगरीब रहे  हैं।उनकी माता महाश्वेता दी को 1980 से जानता रहा हूं।लेकिन नवारुण दा से संवाद का सिलसिला शरु हुआ भाषा बंधन से।


महाश्वेतादी ने हम जैसे लोगों को भाषाबंधन संपादकीय में रखा था और इस नाते बार बार गोल्फ ग्रीन में नवारुण दा और महाश्वेतादी  के घर जाना हुआ।सविता भी जाती रही है।उस परिवार के तमाम लोगों से परिचय हुआ।


नंदीग्राम सिंगुर प्रकरण में हम सब साथ साथ थे।फिर अचानक महाश्वेतादी परिवर्तनपंथी हो गयीं।


नवारुण दा परिवर्तनपंथी या सत्ता समर्थक हो ही नहीं सकते थे।


वे अपनी कविता के अवस्थान से एक चूल इधर उधर ने थे।


महाश्वेता दी और नवारुण अलग अलग थे।


इसी बीच हमने कोलकाता के राजनीतिसर्वस्व साहित्यिक सांस्कृतिक परिदृश्य से भी खुद को अलग कर लिया।


नवारुण दा से छिटपुट मुलाकाते होतीं रहीं।लेकिन वह परिवार कहीं टूट गया जिसमें नवारुण दा के साथ हम भी थे।


नवारुण दा का अंतिम दर्शन करने लायक ऊर्जी मुझमें नहीं है।उनकी मां और हमारी महाश्वेता दी या उनकी पत्नी ,उनके बेटे ,बहू से अब बात करने की हालत में नहीं हूं।


औपचारिक रस्म अदायगी मेरी आदत नहीं रही है।


लेकिन जैसे मैं अपने पिता के संघर्ष को जी रहा हूं,नवारुणदा की प्रखर जनचेतना का अंशीदार बना रहना चाहुंगा आजीवन।


नवारुण दा का अवसान मेरे लिए सत्तर दशक का अवसान है क्योंकि कम से कम साहित्य में सत्तर के दशक के सही प्रतिनिधि वे ही थे जो सत्तर के दशक के अवसान के बावजूद भी सत्तर के दशक की निरंतरता बनाये हुए थे।


मैं कह नहीं सकता कि मैं नवारुण दा की मृत्यु से ज्यादा दुःखी हूं कि उस सत्तर के दशक के अवसना से हतप्रभ ज्यादा।


नवारुण का का दिल काम कर रहा था जबकि अंग अंग उनका बेकल हो रहा था।


हम यह दावा फिरभी नहीं कर सकते कि अग्नाशय के कैंसर से पीड़ित इस देश का दिल किस हालत में है।


अब आपको तय करने का है कि इस देश के राष्ट्रपति झूठ बोल रहे हैं या प्रधानमंत्री।67 करोड़ लोगों के बेरोजगार होने का मतलब है कि इस देश की आधी से ज्यादा आबादी आजीविका वंचित है।जिनकी आजीविका है ही नहीं,उनकी गरीबी दूर करने का दावा कितना सही है,कितना गलत इसका फैसला भी अब आप ही करें।


इंदिरासमय के वित्तमंत्री और यूपीए समय के भी वित्तमंत्री जो कह रहे हैं,ऐसा कभी बजट पेश करते हुए उन्होंने लेकिन कहा ही नहीं है।खासकर 1991 से अब तक के सारे वित्तमंत्री जो कुछ कहते रहे हैं,उसके उलट है पूर्व वित्तमंत्री का यह हैरतअंगेज बयान।


अगर भारत के राष्ट्रपति सच बोल रहे हैं तो भारत सरकार के तमाम तथ्य, आंकड़े, परिभाषाएं,नीतियां और रोजमर्रे के राजकाज सरासर झूठ के अलावा कुछ भी नहीं हैं।


विकास की कलई पुणे से लेकर पहाड़ों में हो रही आपदाओं की निरंतरता जिस बारंबारता के साथ खलल रही है,उससे भी हम होश में नहीं हैं,तो सच और झूठ को अपने अपने पक्ष विपक्ष,हित अहित में जांचना परखना तो मुक्त बाजार का दस्तूर है ही।


पुणे भूस्खलन में मृतकों की संख्या 51 हुई

आज तक

- ‎13 मिनट पहले‎







मालिन गांव में हुए भूस्खलन के कारण रात 10 और शवों को बाहर निकाले जाने के बाद मरने वाले लोगों की संख्या बढ़ कर 51 हो गयी है. जिला नियंत्रण कक्ष के एक अधिकारी ने बताया कि मरने वालों में 22 महिलाएं, 23 पुरुष और छह बच्चे शामिल हैं. उन्होंने बताया कि अब तक आठ घायल लोगों को बचाया गया है और उनका नजदीकी अस्पतालों में इलाज किया जा रहा है. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन बल (एनडीआरएफ) के 300 से अधिक जवान मलबे के टीले में जीवित लोगों को खोजने के लिए लगातार बचाव कार्य में लगे हुये हैं. अंबेगांव तालुका के गांव में घटना के 48 घंटे के बाद लोगों के बचे होने की संभावना नहीं लगती है.

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मसलन यह सरकार कह रही है और मीडिया भी जर शोर से प्रचारित कर रहा है कि आर्थिक सुधारों के बिना ,विनिवेश के बिना,प्रत्यक्ष विनिवेश के बिना,पीपीपी माडल के बिना रोजगार सृजन होगा नहीं और इसके लिए तमाम कानून बदले जाने जरुरी हैं।


हो इसका उलट रहा है. लोग रोज रोजगार और आजीविका से बेदखल हो रहे हैं।


हो इसका उलट रहा है.लोग रोज जल जंगल जमीन नागरिकता नागरिक मानवअधिकारों से बेदखल हो रहें हैं।


हमेन बगुला भगतों की कथा बहले ही सुना दी है।


भारत के संविधान के मुताबिक भारत की सरकार संसद के जरिये जनता के प्रति जवाबदेह है।


संसदीय विधि के मुताबिक किसी भी कानून में संसोधन के लिए विधेयक पेस करना जरुरी होता है।


उस विधेयक का मसविदा सार्वजनिक करना जरुरी होता है।


उस सार्वजनिक हुए विधेयक पर आम जनता से राय मांगना जरुरी होता है।


विभिन्न पक्षों की राय पर जनसुनवाई भी जरुरी होती है।


सुनवाई के लिए संसदीय समिति बनायी जाती है।


संसदीय समिति जब सरकार को वह मसविदा विधेयक लौटा दें तब मंत्रिमंडल में बिल पास करने की नौबत आती है।


बिल को दोनों सदनों में बहुमत से पास कराना जरुरी होता है।


किसी भी कानून को संविधान के मूल दायरे से बाहर या मौजूदा संवैधानिक प्रवधानों के प्रतिकूल नहीं होने चाहिए।


हुए तो ऐसा कानून पास करने से पहले दो तिहाई बहुमत से दोनों सदनों में संविधान संशोदन कानून बनाने से पहले जरुरी होता है।


श्रम कानूनों में जो एक नहीं,दो नहीं,पूरे 54 संसोदन प्रस्तावित है बगुला समिति की सिफारिशों के मुताबिक क्या मीडिया या सरकार ने उन प्रस्तावित संशोधनों का खुलासा किया है,सवाल यह है।


सवाल यह है, वे 54 संसशोधन क्या क्या होंगे और उनका ब्यौरा कहां है।


सवाल यह है,संसदीय राजनीति में शामिल राजनीतिक दलों ने ,चुने हुए जनप्रतिनिधियों ने या ट्रेड यूनियनों ने उन संशोधनों का ब्यौरा हासिल किया है।किया है तो वे जनता के साथ उस जानकारी कोशेयर क्यों नहीं कर रहे हैं।


सवाल यह है कि मसौदा विधयेक के बिना कैबिनेट सीधे बगुला समिति की रपट पर सारे कानूनी संशोधनों को हरी झंडी कैसे दे सकती है ,बगुला समितियों के जरिये विनिवेश, एफडीआई, पीपीपी, पर्यावरण हरीझंडियों की तरह।


अगर मसविदा विधेयक पर बगुला समिति की सिफारिशें है तो उन सिफारिशों का खुलासा क्यों नहीं कर रही है सरकार और उन सिफारिशों के बाद मसविदा विधेयक का इतिहास भूगोल क्यों छुपाने लगी है सरकार।


बिना सार्वजनिक सुनवाई,बिना संसदीय समिति के अनुमोदन के कैसे केबिनेट किसी कानून को बदलने का फैसला कर सकती है,यह भी विचारणीय है।


इसी के मध्य इजरायल और हमास के बीच 72 घंटे का युद्धविराम कुछ ही घंटों में टूट गया। शुक्रवार को युद्धविराम की घोषणा के बाद इजरायल ने हवाई और जमीनी हमले शुरू कर दिए। इजरायल ने सीजफायर खत्म करने की घोषणा करते हुए दक्षिणी गाजा पट्टी के शहर रफा पर रॉकेट हमले किए, जिसमें 40 लोगों की मौत हो गई है। इजरायल का आरोप है कि हमास ने युद्धविराम का पालन नहीं किया। वहीं, हमास ने इजरायली टैंक हमले में चार फलस्तीनियों के मारे जाने की बात की है। इजरायल ने कहा है कि वह हमले जारी रखेगा और उसने गाजा में लोगों को घरों में रहने की चेतावनी भी जारी कर दी है।


अब हिंदुस्तान में छपे इस आलेख पर गौर करें और मौजूदा परिप्रेक्ष्य में इन उच्च विचारों और भारतीय राजनय और विदेश नीति का आकलन करेंः


साझा हितों की बुनियाद पर खड़ी दोस्ती

डेनियल कारमन, राजदूत, इजरायल


First Published:31-07-14 08:40 PM

एक राजनयिक को अपने करियर में सौभाग्य से ही ऐसी महत्वपूर्ण नियुक्ति मिलती है, जब उसे पारंपरिक कूटनीति के तत्वों के साथ विकासशील राजनय के नए साधनों, जैसे आधुनिक मीडिया और सोशल नेटवर्क को जोड़ते हुए काम करने का मौका मिले। इजरायल और भारत के बीच पूर्ण राजनयिक संबंध को भले ही अभी 22 साल हुए हैं, तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिंह राव के समय दोनों देशों के बीच यह कूटनीतिक रिश्ता कायम हुआ था, लेकिन दोनों देशों की सभ्यताओं के बीच का संबंध हजारों वर्ष पुराना है। भारत में रह रहा यहूदी समुदाय हमारे प्राचीन संबंध की एक बानगी है। यहूदी समुदाय के लोग पीढ़ियों से शांतिपूर्ण तरीके से भारत में रहते आए हैं। भारत के अनूठे, सहिष्णु और मेहमाननवाज समाज ने इन यहूदियों को न सिर्फ फलने-फूलने का भरपूर मौका मुहैया कराया है, बल्कि उन्हें अपने अंग के तौर पर स्वीकार किया है। यह भारत की अनोखी विशेषता है और अपनी इस खूबी के लिए वह पूरी दुनिया में सराहा जाता रहा है। इजरायल और भारत के रिश्ते साझा मूल्यों, साझी चुनौतियों और साझे हितों पर आधारित हैं। हम दोनों ही लोकतांत्रिक देश हैं, जहां अभिव्यक्ति की आजादी को भरपूर प्रोत्साहन मिलता है और नए मार्गों, नई उद्यमिता को पर्याप्त बढ़ावा दिया जाता है। बहुत छोटी उम्र से ही हम अपने लोगों को अपनी चाहत के अनुरूप तरक्की करने और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं।


भारत और इजरायल के बीच साझेदारी मेरे लिए कोई नई बात नहीं है। पिछले नौ वर्षों में मैं कई अंतरराष्ट्रीय मुद्दों से करीब से जुड़ा रहा हूं। संयुक्त राष्ट्र के स्तर पर भी और अपने देश के स्तर पर भी। इजरायल द्वारा कृषि और उद्यमिता के विकास के संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र में पेश किए जाने वाले कई प्रस्तावों की पहल से मैं जुड़ा रहा हूं, खासकर पिछले तीन वर्षों में विदेश मंत्रालय के उप-महानिदेशक और इजरायल के इंटरनेशनल डेवलपमेंट कॉपरेशन एजेंसी 'माशव' के प्रमुख के रूप में वैश्विक मसलों से मेरा साबका पड़ता रहा है। अभी हाल तक मैंने दुनिया की सबसे बड़ी कृषि परियोजना का नेतृत्व किया, जिससे इजरायल जुड़ा है। इस परियोजना से हिन्दुस्तान के लाखों किसानों को फायदा हुआ है। भारत-इजरायल कृषि सहयोग के तहत पूरे भारत में 28 विशिष्ट केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं, जो स्थानीय भारतीय किसानों की उत्पादन क्षमता में बढ़ोतरी के लिए काम करेंगे।


इजरायलियों और भारतीयों की प्रतिबद्धता यह दिखाती है कि हम दोनों देश न केवल एक बेहतर साझेदारी का निर्माण कर रहे हैं, बल्कि हम साथ मिलकर टिकाऊ समाधान भी विकसित कर रहे हैं। इस साल 20 विशिष्ट केंद्रों में विभिन्न स्तर पर ऑपरेशन शुरू होने के साथ ही कृषि कार्य योजना का पहला चरण पूरा होने को है। हमें उम्मीद है कि अगले तीन वर्षों में हमारा साझा कार्यक्रम और विकसित होगा व आगे बढ़ेगा। मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक ऐसे देश का प्रतिनिधित्व कर रहा हूं, जो एक जीवंत 'विकास की प्रयोगशाला' रहा है, बल्कि कई मायने में आज भी है। पिछले दशकों में हमने ऐसे कई प्रयोग किए और कामयाबियां हासिल कीं, जिन्हें भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 'ट्राई-कलर  रिवॉल्यूशन' कहते हैं।


हमने कृषि, दुग्ध उद्योग, सौर ऊर्जा और जल-प्रबंधन व संरक्षण में विशेषज्ञता अजिर्त की है। इसलिए दोनों देशों के नागरिक समाज और विद्वानों के साथ-साथ इन क्षेत्रों में हमारा सहयोग होना जरूरी है। शोध व विकास के क्षेत्र में हमारे कई साझा कार्यक्रम और मंच पहले से काम कर रहे हैं। हमारी साझेदारी के स्तंभों में से एक मजबूत स्तंभ हमारा द्विपक्षीय कारोबारी रिश्ता है, जो आगे और ठोस होगा। महात्मा गांधी ने कहा है कि 'यह धरती, हवा, भूमि और जल हमारे पुरखों की विरासत नहीं हैं, बल्कि ये हमारी संततियों का हम पर कर्ज हैं। इसलिए हमें अपनी आने वाली पीढ़ियों को ये कुदरती चीजें उसी रूप में सौंपना होगा, जिस रूप में ये हमें सौंपी गई हैं।' ये दूरदर्शी शब्द हमारा मार्गदर्शन करते हैं कि हम अपने बच्चों और उनके बच्चों को एक सुरक्षित व बेहतर दुनिया सौंप सकें।


दूसरे अनेक इजरायलियों की तरह मैं भी अपने परिवार का कोई पहला व्यक्ति नहीं हूं, जो भारत के प्रति आकर्षित रहा हूं। मेरे दो बच्चे पहले ही पूरे भारत की यात्रा कर चुके हैं। ठीक उसी तरह, जैसे करीब 40,000 इजरायली हर साल भारत घूमने आते हैं और तकरीबन इतनी ही संख्या में हिन्दुस्तानी पर्यटक भी इजरायल जाते हैं। इस संख्या को बढ़ाने के लिए हमने हाल ही में मुंबई में पर्यटन मंत्रालय का एक दफ्तर खोला है। एक और महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जहां दोनों देशों के रिश्ते निरंतर मजबूत हो रहे हैं और यह क्षेत्र है रक्षा-सहयोग का। इजरायल और भारत लगभग एक जैसे खतरों और चुनौतियों से जूझ रहे हैं और इनका मिलकर मुकाबला किया जा सकता है। हमने 'होमलैंड सिक्युरिटी' और आतंकवाद के मुकाबले के लिए एक साझा ढांचा तैयार करने के लिए हाल ही में समझौता किया है।


इस तरह की कवायद से हमें इजरायलियों और भारतीयों की बेशकीमती जिंदगियों को बचाने में मदद मिलेगी। दहशत और राज्य-प्रायोजित आतंकवाद हम सभी के लिए एक वैश्विक खतरा है। आतंकी हमले हमारी जिंदगी के हरेक पहलू को प्रभावित करते हैं और इस हकीकत से भारत तथा इजरायल के लोग अच्छी तरह वाकिफ हैं। दहशतगर्द कट्टर सोच और विचारधारा से पैदा होते हैं और ये उन तमाम लोगों को अपना निशाना बनाते हैं, जो उसकी मान्यताओं से, उनके विचार से इत्तफाक नहीं रखते। आतंक येरुशलम, मुंबई या मोसुल में भले अलग-अलग रूपों में दिखाई देते हैं, मगर उनके पीछे की विचारधारा एक है और इसका मुकाबला करने का सबसे बेहतर तरीका है कि हम एक-दूसरे से हाथ मिलाएं। जब मैं कुछ दिनों पहले नई दिल्ली आया, तब मुझे भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के मुंह से भारत-इजरायल रिश्तों का क्या महत्व है, यह सुनने को मिला और यकीन जानिए, यह सुनकर मुझे काफी संतोष का अनुभव हुआ। इजरायल सरकार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारत की नई सरकार के साथ मिलकर हर मोर्चे पर द्विपक्षीय संबंधों को नई ऊंचाई देने के लिए प्रतिबद्ध है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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