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Wednesday, April 4, 2012

Fwd: अज्ञेय की धूम के पीछे



---------- Forwarded message ----------
From: reyaz-ul-haque <beingred@gmail.com>
Date: 2012/4/4
Subject: अज्ञेय की धूम के पीछे
To: abhinav.upadhyaya@gmail.com


पिछले दो-तीन वर्षों में जिस तरह अज्ञेय और उनके साहित्य को फिर से स्थापित करने की कोशिशें हुई हैं, उनसे हिंदी साहित्य पर साम्राज्यवादी वित्त पूंजी के बढ़ते दबाव का पता लगता है. अज्ञेय हिंदी साहित्य में इस उत्पीड़क वित्त पूंजी के केंद्रीय प्रतिनिधि थे. इसीलिए यह हैरानी की बात नहीं है कि जब साम्राज्यवाद की पैरोकार सरकार देश की आदिवासी-दलित जनता के खिलाफ अपनी सेना और वायुसेना को उतार चुकी है, अमेरिकी और इस्राइली सैनिक निर्देशन में बाकायका युद्ध चला रही है, हिंदी साहित्य में इस पर एकदम चुप्पी है और अज्ञेय का शोर है. यह शोर कथित प्रगतिशील और खुद को नक्सलबाड़ी की विरासत से जोड़नेवाले खेमों में भी दिखता है. इसके बारे में  विस्तार से और भी बातें होंगी, अभी पढ़ते हैं रविभूषण का यह आलेख.

अज्ञेय की धूम के पीछे



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