Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Sunday, April 5, 2015

शासन और साम्प्रदायिकता: हाशिमपुरा जनसंहार मामले में इंसाफ का माखौल’पर सभा

जन हस्तक्षेप
फासीवादी मंसूबों के खिलाफ अभियान
आमंत्रण

'शासन और साम्प्रदायिकता: हाशिमपुरा जनसंहार मामले में इंसाफ का माखौल'पर सभा

तारीख: 09 अप्रैल, 2015 (गुरूवार)
समय: शाम 0530 बजे
स्थान: गांधी शांति प्रतिष्ठान, दीनदयाल उपाध्याय मार्ग (आईटीओ के नजदीक), नई दिल्ली 

वक्ता:
 न्यायमूर्ति (अवकाशप्राप्त) राजिन्दर सच्चर (इस जनसंहार का तथ्यान्वेषण करने वाले पीपुल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टीज के दल के सदस्य),
 रेबेका जान (पीडि़तों के वकील),
 सईद नकवी (वरिष्ठ पत्रकार) 
 कॉलिन गोन्ज़ाल्वेज़ (वरिष्ठ मानवाधिकार वकील)
 नीलाभ मिश्र (संपादक, ऑउटलुक (हिंदी))

साथियो,
   चुनावी फायदे के लिए साम्प्रदायिक भावनाओं को भड़काना और मजहबी हत्याओं को अंजाम देना सिर्फ फिरकापरस्त संगठनों का काम नहीं है। इस खेल में तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दल भी शामिल हैं जिससे न्यायपालिका समेत शासन के विभिन्न अंगों के साम्प्रदायीकरण को बढ़ावा मिल रहा है। हाशिमपुरा जनसंहार मामले पर अदालत का हाल का फैसला शासन और न्यायपालिका के साम्प्रदायिक गठजोड़ की जीती-जागती मिसाल है। वर्ष 1987 की इस घटना में उत्तर प्रदेश पीएसी के कर्मियों ने 42 बेगुनाहों की हत्या कर दी थी। 
   तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की कांग्रेस सरकार ने 1986 में लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व वाले, भारतीय जनता पार्टी के मंदिर अभियान का मुकाबला करने के लिए अयोध्या में बाबरी मस्जिद (जिसका अब नामोनिशान तक नहीं है) का ताला खोल दिया। समाज के विभिन्न तबकों ने सरकार के इस फैसले का जगह-जगह विरोध किया। मुस्लिम समुदाय इस फैसले से सीधे प्रभावित था इसलिए मुसलमानों ने कांग्रेस सरकार के इस साम्प्रदायिक कदम का बड़े पैमाने पर विरोध किया। 
   मुसलमानों के किसी भी बड़े विरोध प्रदर्शन को दंगा करार देना इस देश में रवायत बन चुका है। रिपोर्टों के मुताबिक तत्कालीन गृह राज्यमंत्री पी चिदंबरम ने उत्तर प्रदेश सरकार को मुसलमानों के विरोध को कुचल देने का निर्देश दिया। अपने हिंसक साम्प्रदायिक बर्ताव के लिए कुख्यात पीएसी ने 22 और 23 मई, 1987 की रात मेरठ शहर के हाशिमपुरा में धावा बोल दिया। मस्जिद के बाहर से मुसलमान पुरुषों को उठा कर एक ट्रक में ठूंस दिया गया। उन्हें गंग नहर के किनारे एक सुनसान जगह पर ले जाया गया। पीएसी के कर्मियों ने उनमें से कइयों को गोलियों से मार डाला और उनकी लाशें नहर में फेंक दीं। बाकियों को हिंडन नदी के किनारे ले जाकर गोली मारी गई और लाशों को वहीं फेंक दिया गया। 
   अदालत ने इस सरकार प्रायोजित जघन्य हत्याकांड के सभी अभियुक्तों को 28 साल तक चले मुकदमे के बाद बरी कर दिया। उसने इस जनसंहार के दौरान किसी तरह अपनी जान बचाने में कामयाब रहे पांच पीडि़तों की गवाहियों को दरकिनार करते हुए अपराधी पुलिसकर्मियों को संदेह का लाभ दे दिया। 
   दलितों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ जघन्य अपराधों के दोषियों को अदालत से बरी किए जाने के बढ़ते वाकये गंभीर चिंता का विषय हैं। बिहार में लक्ष्मणपुर बाथे और बथानी टोला में दलितों की हत्या के दोषियों को भी हाल ही में अदालत से बरी कर दिया गया है। 
   इस तरह के अपराध सरकारी तंत्र के सहयोग और सक्रिय हिस्सेदारी के बिना मुमकिन नहीं हैं। लिहाजा ऐसी घटनाओं में सरकार और पुलिस सुनिश्चित करती है कि सभी सबूतों को नष्ट कर दिया जाए ताकि अपराधी बच सकें। इंसाफ की हत्या के इन मामलों में शासक वर्ग की राजनीतिक पार्टियां भी पीडि़तों के लिए जुबानी जमाखर्च के सिवा कुछ नहीं करतीं। न्याय के लिए सतत अभियान की जगह सिर्फ बयानबाजी और प्रतीकात्मक विरोध ने ले ली है। 
   जनहस्तक्षेप सुरक्षा बलों और न्यायपालिका के साम्प्रदायीकरण के सवाल पर व्यापक विमर्श चाहता है जिसमें आपकी हिस्सेदारी अपेक्षित है।

ह0/
ईश मिश्र
संयोजक

No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Welcome

Website counter

Followers

Blog Archive

Contributors