आज से कोई सवा तीन साल पहले लंदन की एक अदालत में ललित मोदी ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया था। कोर्ट की यह घटना 20 मार्च 2012 की है। एक निजी सुरक्षा कंपनी 'पेज ग्रुप' ने 2010 में ललित मोदी को अपनी सेवाएं दी थीं। 'पेज ग्रुप' ने बकाया 65 हजार पाउंड (लगभग 65 लाख 69 हजार रुपये) नहीं मिलने पर ललित मोदी को अदालत में घसीटा था। ललित मोदी जिस के.के. मोदी ग्रुप नामक बिजनेस हाउस के सर्वेसर्वा होने का दावा अपने पोर्टल पर करते हैं, वह 2.8 अरब डॉलर की कंपनी बताई जाती है।
लोग धीरे-धीरे 'ललितगेट' को भूल जाएंगे!
आज से कोई सवा तीन साल पहले लंदन की एक अदालत में ललित मोदी ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया था। कोर्ट की यह घटना 20 मार्च 2012 की है। एक निजी सुरक्षा कंपनी 'पेज ग्रुप' ने 2010 में ललित मोदी को अपनी सेवाएं दी थीं। 'पेज ग्रुप' ने बकाया 65 हजार पाउंड (लगभग 65 लाख 69 हजार रुपये) नहीं मिलने पर ललित मोदी को अदालत में घसीटा था। ललित मोदी जिस के.के. मोदी ग्रुप नामक बिजनेस हाउस के सर्वेसर्वा होने का दावा अपने पोर्टल पर करते हैं, वह 2.8 अरब डॉलर की कंपनी बताई जाती है। के.के. मोदी ग्रुप के एग्रो कैमिकल, तंबाकू, चाय-बेवरिज, शिक्षा, इंटरटेनमेंट, खुदरा व्यापार, नेटवर्क मार्केटिंग, इतालवी-थाई रेस्टोरेंट जैसे वेंचरों में 28 हजार कर्मचारी काम करते हैं। 10 मई 2010 को भारत छोडक़र लंदन भाग जाने वाले ललित मोदी की कहानियों में जितने 'कट' हैं, उतने सालों-साल चलने वाले किसी सीरियल में भी नहीं मिलेंगे।
एक दिवालिया व्यक्ति के पास आज की तारीख में कितनी कंपनियां हैं? ललित मोदी के पोर्टल खोलिये, और उसकी कंपनियां, वेंचर्स को सिलसिलेवार पढ़ लीजिए। कलरबार कॉस्मेटिक्स, बीना फैशन, हांगकांग में शंघाई टांग नामक इंटरनेशनल क्लोथिंग चेन, दक्षिण दिल्ली में रेस्टोरेंट-'इगो इटैलियन, इगो थाई, इगो-33 कैफे', स्ट्रैटफोर्ड युनिवर्सिटी वर्जिनिया व इग्नू से टाईअप कर 'एमएआईआई' ग्रेजुएट, अंडरग्रेजुएट प्रोग्राम का शिक्षा व्यापार, जिसमें 20 लाख छात्र रजिस्टर्ड हैं। एग्रोकैमिकल बनाने वाली कंपनी 'इंडोफिल इंडस्ट्री लिमिटेड के भारत में तीन हजार वितरक, 38 हजार डीलर, 29 डिपो हैं। सालाना 2800 करोड़ टर्नओवर वाली तंबाकू कंपनी 'गोडफ्रे फिलिप्स इंडिया' की दिल्ली, गाजियाबाद, मुंबई, आंध्र के गुंटूर में शाखाएं हैं, जिसके जरिये अफ्रीकी देशों से लेकर, एशिया, दक्षिण-मध्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया तक फैला तंबाकू का कारोबार है। फोर्स-टेन, जैसलमेर, ओरिजिनल्स, अल्टीमा जैसे ब्रांड वाले तंबाकू की सप्लाई ललित मोदी की कंपनी करती है। भारत में दुनिया की नामी सिगार कंपनियों के डिस्ट्रीब्यूटर, सभी बड़े शहरों में सिगार के गोदाम हैं। 'टी सिटी' ब्रांड से असम, दार्जिलिंग और ग्रीन टी के निर्माता, पान बिलास, पान मसाला, फंडा मिंट-फंडा गोली के मालिक भी हैं ललित मोदी। मोदी हेल्थकेयर प्लेसमेंट के जरिये अमेरिका, यूरोप में नर्सों का 'निर्यात' भी करते हैं। 'मोदी केयर' का 2700 शहरों में 40 सेंटर, ट्वेंटीफोर सेवन डिपार्टमेंटल स्टोर चल रहा है। पूरे भारतवर्ष में ऐसे सौ रीटेल स्टोर खोलने की योजना है। भारत में पैरिस की सबसे ग्लैमरस 'देसांगे सैलून' की शाखाएं मोदी ग्रुप द्वारा खोली गई हैं। कार्पोरेट ट्रेवल के क्षेत्र में 'बेकन ट्रेवल' के नाम से मोदी ग्रुप का भारत में कारोबार है। 'मोदी इंटरप्राइजेज' से जुड़ी कंपनी 'गोडफ्रे गु्रप' ने तमिलनाडु के 36 लाख सिगरेट पीने वाले ग्राहकों पर अपनी पकड़ बनाये रखने के लिए मई 2009 में 470 करोड़ रुपये का निवेश किया है।
विश्वास नहीं होता कि इतनी ही राशि (470 करोड़ रुपये) के लिए ललित मोदी भगोड़ा बन गया। इतने सारे धंधे चलाने वाले व्यक्ति का सालाना टर्न ओवर कम से कम दस हजार करोड़ होना चाहिए। अभी मोदी समूह की अचल संपत्ति का कोई हिसाब नहीं मिला है। मोदी नगर से लेकर ग्वालियर, जयपुर और देश के सभी मेट्रो शहरों में कई लाख करोड़ की अचल संपत्ति का आकलन इस परिवार को जानने वाले करते हैं। ऐसे औद्योगिक घराने का व्यक्ति लंदन की अदालत में खुद को दिवालिया घोषित कर ले, और उसके तीन साल बाद दुनिया के सर्वाधिक महंगे मोंटेनीग्रो के रिसार्ट पर मस्ती करता मिल जाए, तो इससे बड़ा फरेब क्या हो सकता है? ललित मोदी इस देश में नहीं है, लेकिन उसकी कंपनियां हज़ारों करोड़ मुनाफे कमा रही हैं। ललित मोदी के विरूद्ध पहली बार प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) 'रेड कॉर्नर नोटिस' भेजेगा। तब भी वह भारत नहीं आया तो क्या मोदी की कंपनियों के खाते, उसकी चल-अचल संपत्तियां कुर्क की जाएंगी? इस देश में हर साल हजारों गरीबों की संपत्ति इसलिए कुर्क कर ली जाती है, क्योंकि वह समय पर कर्ज नहीं चुका पाते।
भारतीय मूल के विवादास्पद ब्रिटिश सांसद कीथ वाज के माध्यम से वीजा और ट्रेवल डॉक्यूमेंट रातोंरात दिलाने का आधार 'मानवीय' था, ऐसा जब विदेश मंत्री सुषमा स्वराज स्वीकार करती हैं, तो जुगुप्सा का भाव पैदा होता है। इस 'मानवीय आधार' पर निर्णय से पहले प्रवर्तन निदेशालय से पूछना क्यों जरूरी नहीं समझा गया? ललित मोदी की कैंसर पीडि़त पत्नी के लिए सुषमा जी को 'मानवीय आधार' दिखता है, लेकिन तंबाकू के कारोबार करने वाले मोदी ग्रुप ने न जाने कितने हजार लोगों को कैंसर बांटा होगा, उनके परिजनों के प्रति क्या कोई मानवीय आधार है? जिस प्रधानमंत्री कार्यालय की सहमति के बगैर केंद्र सरकार के किसी मंत्रालय में पत्ता तक नहीं हिल रहा था, ऐसे माहौल में यह कैसे संभव था कि विदेशमंत्री सुषमा स्वराज अकेले फैसला ले लेतीं? कुछ तो गड़बड़ है।
जस्टिस उमेशचन्द्र बनर्जी अब इस दुनिया में नहीं रहे। पर उन्होंने अपनी डायरी में दर्ज टिप्पणी में ललित मोदी से पूरी सहानुभूति दिखाई थी। न्यायमूर्ति बनर्जी की धारणा थी कि ललित मोदी के साथ जो कुछ हुआ, वह सब कुछ तत्कालीन संप्रग सरकार और उनके अधिकारियों का किया-धरा था। ये वही जस्टिस उमेशचन्द्र बनर्जी थे, जो गोधरा ट्रेन अग्निकांड की जांच कर रहे थे। उनका निष्कर्ष था कि गोधरा ट्रेन के डिब्बों में आग, महज 'एक दुर्घटना' थी। क्या गोधरा से लेकर गांधीनगर तक का सियासी गलियारा ललित मोदी में कोई दिलचस्पी ले रहा था? ललित मोदी के ताजा बयानों से पता चलता है कि उसने कैसे सत्ता-विपक्ष के नेताओं को बगलगीर कर रखा था।
यों, दुनिया के हर हिस्से में सत्ता के शार्टकट रास्ते का पता ललित मोदी को है। भारतीय मूल के विवादास्पद ब्रिटिश सांसद कीथ वाका के माध्यम से वीकाा और ट्रेवल डॉक्यूमेंट रातोंरात दिलाने का आधार क्या सचमुच 'मानवीय' था? विश्वास नहीं होता। पैसे लेन-देन के मामले में कीथ वाका का कैरेक्टर कितना ढीला है, यह ब्रिटिश संसद के गलियारों में विचरण करने वालों को पता है। कीथ वाका को न जाने कितनी बार पैसों की गड़बड़ी के कारण जिम्मेदार पदों से हटाया गया है। एक भागे हुए अभियुक्त की मदद, उस अभियुक्त से वकील पति और बेटी के व्यावसायिक व निजी संबंधों के बीच जो अदृश्य लक्ष्मण रेखा है, उसे क्या सुषमा स्वराज जैसी परिपक्व, समझदार मंत्री अनजाने में कैसे पार कर सकतीं हैं?
पैंतालीस साल तक कमल खिलाते रहने, बीच में जेपी की 'संपूर्ण क्रांति' से जुड़े रहने के बाद, पहली बार सुषमा स्वराज के दामन पर कीचड़ उछला है। स्वराज परिवार इससे इंकार करने की हालत में नहीं है कि ललित मोदी से पिछले 20 वर्षों से निजी संबंध रहे हैं। इतना निजी कि स्वराज कौशल और उनकी बेटी बांसुरी कौशल ने मोदी के पक्ष में केस लडऩे का पैसा तक नहीं लिया था। ऐसा कैसे हो सकता है? निजी संबंध तो कई पुश्तों से वसुंधरा राजे से भी थे। लेकिन जब फोरेक्स उल्लंघन की जांच में प्रत्यर्पण विभाग के अधिकारी आगे बढ़ रहे थे, तो मोदी की कंपनी 'आनंद हेरिटेज होटल प्रायवेट लिमिटेड'(एएचएचपीएल) के जरिये 2006 में जयपुर के आमेर पैलेस इलाके में दो हवेलियों की खरीद का पता चला, जिसे 2010 में गहलोत सरकार के आने के बाद सीका कर दिया गया था। मोदी की कंपनी 'आनंद हेरिटेज होटल प्रायवेट लिमिटेड' (एएचएचपीएल) और वसुंधरा राजे के सांसद बेटे दुष्यंत सिंह और उनकी पत्नी निहारिका की कंपनी 'नियंत हेरिटेज होटल प्रायवेट लिमिटेड' (एनएचएचपीएल) ने मॉरिशस से हवाला पैसों को कैसे वैध रूप दिया, इसे जानकर देश का आम आदमी भी हैरान रह जाता है।
यह मोदी-राजे लिंक का जादू था कि दुष्यंत सिंह के दस रुपये के शेयर की कीमत 96 हज़ार 190 रुपये हो गई। मॉरिशस की कंपनी 'विल्टन इंवेस्टमेंट लिमिटेड' ने ऐसे दो करोड़, 10 लाख, 83 हजार, 348 शेयर खरीदे। दुष्यंत और निहारिका की कंपनी ने दस रुपये वाले पांच हजार शेयर खरीदे थे, या उससे ज़्यादा? क्या दुष्यंत की कंपनी में वाकई ललित ने 11.63 करोड़ रुपये लगाये थे? वित्त मंत्री को बिना देर किये इसे स्पष्ट करना चाहिए। 'मॉरिशस ट्रेल' का सारा खेल मार्च 2007 से लेकर जनवरी 2009 के बीच हुआ है। दुष्यंत सिंह दावा करते हैं कि उनकी कंपनी 'नियंत हेरिटेज होटल प्रायवेट लिमिटेड' के माध्यम से जो कुछ लेन-देन हुआ, सभी वैध हैं। आयकर और 'कंपनी लॉ' में इसकी बाकायदा इंट्री है।
ललित मोदी, 'डी कंपनी' से अपनी जान की दुहाई देते हुए देश से निकल लेने का जो तर्क दे रहे हैं, वह गढ़ी हुई कहानी भी हो सकती है। लंदन जाने से कोई सुरक्षित नहीं हो जाता। डी कंपनी, या किसी अंतरराष्ट्रीय अपराधी गैंग के लिए लंदन से लेकर मोंटेनीग्रो के रिसार्ट पर अपने किसी 'टारगेट' को ठोक देना कौन सी बड़ी बात है? प्रिंसेस डायना की रहस्यमय मौत इसका प्रमाण है कि ब्रिटेन दुनिया भर के हाईप्रोफाइल अपराधियों से भरा पड़ा है। फरवरी 2013 में बकिंघम पैलेस के सामने हत्या हो गई थी। अप्रैल 2009 में महाराष्ट्र खुफिया विभाग के जिस कमिशनर डी. शिवनंदन ने छोटा शकील गैंग से खतरे को देखते हुए ललित मोदी और उसके परिवार की सुरक्षा की अनुसंशा की थी, वही अधिकारी साल भर बाद मुंबई पुलिस का कमिश्नर होता है, और उनकी सुरक्षा एक समीक्षा के बाद वापिस ले ली जाती है। मोदी ने अपनी सुरक्षा के वास्ते हर बार 'बीजेपी माइंडेड' होने की दुहाई दी है। सवाल यह है कि इस देश में जिसकी सुरक्षा पुलिस वापिस ले लेती है, क्या उसे देश से भाग जाना चाहिए?
'ललितगेट' कांड में होगा क्या? सुषमा स्वराज पद छोड़ती हैं, या वसुंधरा? या फिर, दोनों में से कोई भी नहीं! कई कयास लग रहे हैं। लेकिन इतना तो हुआ कि अब 'भ्रष्टाचार मुक्त सरकार' का ताल ठोको कार्यक्रम कम हो जाएगा। यूपीए-टू के लिए यह एक ऐसा हथियार है कि जब भी '2जी स्पैक्ट्रम' और 'कोलगेट' की आवाज उठेगी, उसके प्रतिरोध में 'ललितगेट' का प्रक्षेपास्त्र छोड़ा जाएगा। लोगों की याददाश्त बहुत छोटी है। चंद दिन बाद आपातकाल की चालीसवीं बरसी शुरू होगी। उससे पहले अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर इतना लोम-विलोम होगा कि लोग धीरे-धीरे 'ललितगेट' को भूल जाएंगे!
पुष्परंजन के आलेख
- लोग धीरे-धीरे 'ललितगेट' को भूल जाएंगे!
- संडे हो या मंडे, कैसे खायें अंडे !
- आईएसआई का नया अखाड़ा अफगानिस्तान
- नेपाल में राहत देने वालों को कर रहे हैं आहत
- गजेन्द्र सिंह की आत्महत्या पर मत रो !
- अफसोस कि जनरल सिंह को 'रोमांच' नजर आता है!
- आम आदमी पार्टी से आगे भी जहां है !
- कमज़ोर मेरूदंड से कंट्रोल नहीं होगा कश्मीर
- मदर टेरेसा पर कीचड़ उछालने के बहाने
No comments:
Post a Comment