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Tuesday, June 16, 2015

कहाँ-कहाँ से चले आते हैं नैनीताल !

कहाँ-कहाँ से चले आते हैं नैनीताल !

लेखक : भुवन बिष्ट :::: वर्ष :: :

नैनीताल समाचार

लो सपने संजोये जिसका इंतजार था, वो सीजन आ ही गया। सीजन कभी अकेला नहीं आता, अपने साथ कई फजीहतें भी साथ लाता है। मंत्री, संत्री, भिखारी, मदारी, सीजनल पुलिस और गिरहकटों के साथ-साथ 'एफ टीवी' से निकले लोग भी चले आते हैं। नैनीताल वाले हमेशा दुआ माँगते हैं कि इस बार सीजन में वी.आई.पी. और बरसात न आये। मगर ये दोनों बिना बताये आ धमकते हैं। आते भी अलग-अलग हैं, साथ आयें तो पता लगे कि सड़क टूटने पर फँसना किसे कहते हैं ? उफनते हुए गटरों के बीच से बच कर कैसे निकला जाता है ? बिजली पानी गुल होने पर कितनी परेशानी होती है ? जाम लगने पर पैदल चलना तक दूभर हो जाता है।

तल्लीताल डांठ पर तगड़ा जाम लगा है। गाडि़यों के हॉर्न और पुलिस की सीटियों की आवाजें व्यवस्था बनाने की कोशिश कर रही हैं। तभी एक लक्जरी कार के सवार ट्रैफिक वाले से पूछते हैं, ''सर, ये राजभवन का रास्ता कौन सा है ?'' जवाब में पुलिस वाला कहता है, ''गाड़ी हटा यहाँ से, मैं सीजन ड्यूटी में आया हूँ। मुझे कुछ पता नहीं है। जाम मत लगा। अगर ज्यादा परेशानी है तो एक गाइड़ क्यों नहीं कर लेता है।' गाड़ी गाइड़ की तलाश में आगे बढ़ जाती है। ''सुनो यहाँ कोई गाइड मिलेगा ?''

एक साथ कई गाइड कार की ओर लपकते हैं। आपसी तू-तड़ाक, गाली-गुपताली के बाद एक गाइड कार की अगली सीट पर बैठ जाता है।

''पूरे दिन का कितना पैसा लोगे ?''

''हजार रुपया। ये मत कहना कि ज्यादा है, पूरा नैनीताल दर्शन करवाउँगा। आप बाद में इनाम देकर जायेंगे। शहर का नम्बर वन गाइड हूँ। अभी आपने देख ही लिया होगा।''

''कहाँ-कहाँ घुमाओगे ? सबसे पहले हमें राजभवन दिखा दो।''

''आप गाड़ी आगे तो बढ़ाओ। मैं पूरे दिन आपके साथ हूँ। रही राजभवन की बात, वहाँ तो परिंदा भी पर नहीं मार सकता है। हफ्ता भर पहले ही राज्यपाल आयी हैं। जल सेना, थल सेना, वायु सेना के अध्यक्ष आये हैं। वहाँ जाने का विचार छोड़ दो। मैं आपको कैद किये हुए जानवर दिखाता हूँ। आप मेरे साथ 'जू' चलो।''

''नहीं हमें तो राजभवन जाना हैं।''

''जैसी आपकी मर्जी। बाद में पैसे के लिये आनाकानी मत करना।''

''वो कौन सी जगह है ?''

''वो चीना पीक है ?''

''सुना है वहाँ से चीन की दीवार दिखती है।''

''आप जायेंगे क्या वहाँ ? बारह किलोमीटर है। वो चढ़ाई आपके बस की नहीं है। पैदल चलने में पूरा दिन निकल जायेगा।''

''जाना तो नहीं है। पर क्या सच में चीन की दीवार दिखती है ?''

''हाँ, दिखती है। पहले उसमें शांति का सफेद रंग था। अब लाल रंग लगा दिया है। वैसे भी चीनी रंग बदलने में माहिर हैं।''

'वो सामने क्या है ?'

''वो टिफन टॉप है। एक बार एक अंग्रेज वहाँ टिफन भूल गया था। तब से वहाँ का नाम टिफन टॉप पड़ गया।''

''ये सड़क कहाँ जाती है ?''

'सड़क कहीं नहीं जाती। गाडि़याँ आती-जाती हैं, वो भी जाम न लगे तो। वैसे इसमें आगे पड़ता है भाऊवाली फिर कैंची, फिर पड़ता है गरम पानी उसके बाद खैर ना। आप वहाँ चलेंगे क्या ?''

''नहीं-नहीं, जहाँ खैर हो वहाँ ले चलो।''

''ले तो तब चलूँ जब जाम खुले।''

''इस ताल में पानी कहाँ से आता है ?''

''बरसात में नालियों से आता है। ये जो बड़े-बड़े टीले दिख रहे न। बरसात के बाद पता भी नहीं लगेगा कि कभी यहाँ थे।''

''ये रुका हुआ पानी है। इसमें कीड़े तो नहीं पड़ते।''

''ये चमत्कारी पानी है। एक साध्वी ने इसे शुद्ध किया था। आप इसे 'डाइरेक्ट' पी सकते हैं। रही कीड़ों की बात, अगर नगरपालिका वालों को कीड़ों के बारे में पता चल गया तो वह उन पर भी टैक्स लगा देगी। बेचारे डर के मारे पैदा ही नहीं होते।''

''ये चारों तरफ कूड़ा फैला है। जब से नैनीताल आये हैं, सड़क के किनारे पेशाब करते हुए लोग ही देखे हैं। ये सब भी तो ताल में जाता होगा।''

''अरे साब, जब तक कूड़ा ताल में न जाये, तो निकाला कैसे जायेगा। यहाँ मशीनों से कूड़ा निकालते हैं। एक-दो थैलियों के लिए मशीन बुलवाना ठीक नहीं है। जब मशीन लायक कूड़ा ताल में चला जायेगा तो निकाल लिया जायेगा।''

''तुम ऐसे कह रहे हो, जैसे तुम यहाँ रहते ही नहीं हो। तुम्हें ताल की कोई चिन्ता नहीं है। ताल न हो तो यहाँ कौन आयेगा। वैसे तुम रहते कहाँ हो ?''

''मैं सूखाताल में रहता हूँ। न तो वो ताल मैंने सुखाया है और न ही इसे सुखाना चाहता हूँ। जब यहाँ के लोगों को परवाह नहीं है तो आप क्यों परेशान होते हैं।''

गाड़ी सरकते हुए आगे बढ़ती है। पूरी चढ़ाई में जाम लगा हुआ है। गाड़ी के 'क्लच प्लेट' फ़ुँकते-फुँकते बचती है। डाँठ से राजभवन पहुँचने में पूरे-पूरे दो घण्टे लग जाते हैं। गाड़ी जैसे ही राजभवन के गेट पर रुकती है, दो-तीन पुलिस वाले ड्राइवर के गाल और गले की नाप लेकर गाड़ी को आगे को रवाना कर देते हैं। ऊपर से पूरे शहर की सड़कें दिखायी देती हैं, जिनमें जाम लगा है। पूरे शहर से हार्न की आवाज आ रही हैं, कमी इस बात की है कि कोई 'कन्टर' में पत्थर भरकर लुढ़का क्यों नहीं रहा है।

''इस ताल की लम्बाई-चौड़ाई कितनी है ?''

''यहाँ से लेकर वहाँ तक लम्बाई है और इधर से उधर तक चौड़ाई है। पानी गंदा हो गया है इसलिये गहराई बता पाना मुश्किल है।''

''तो क्या वी.आई.पी. भी इसी पानी को पीते हैं ?''

''अरे साब, वो तो इससे हाथ तक नहीं धोते हैं। उनका बिजली-पानी अलग ही होता है। उनके लिये 'इन्वर्टर' है जैनरेटर है, ये भी कम पड़े तो 'सरुली-परुली' है।''

''ये सरुली-परुली क्या होती है ?''nainital-lake-and-boats

''सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा।''

''यहाँ की जनसंख्या कितनी है।''

''मतलब लोकल ? यहाँ कई किस्म के लोकल रहते हैं। पहले वो जो केवल मई और जून में यहाँ आते हैं। अपनी प्रोपर्टी का निरीक्षण करते हैं। पड़ोसियों को धमकाते हैं। नैनीताल के विकास के लिए कसमें खाते हैं। दूसरे वो जो मार्च से दिसम्बर तक यहाँ रहते हैं। इनके नेताओं और प्रशासन से मधुर सम्बन्ध होते है। शहर से पलायन करने के लिये इनके बच्चे महंगे स्कूलों में पढ़ते हैं। तीसरे वो जो बारह महीने यहीं रहते हैं। सीजन आते ही उनकी शामत आ जाती है। गाड़ी वाला गाड़ी खड़ी नहीं कर सकता। फड़वाला फड़ नहीं लगा सकता। न जोर से हँस सकता है, न बोल सकता है। इन सब लोकलों में भले ही कितना ही फर्क क्यों न हो, पर सब मिलकर सीजन का इंतजार करते है।''

''ये ताल में क्या सिर्फ स्कूलों के बच्चे ही बोटिंग करते हैं ?''

''नहीं तो..आप जिसे स्कूल ड्रेस समझकर धोखा खा रहे हैं, दरअसल वो 'लाइफ जैकेट' हैं।''

''तो नाव वाले ने क्यों नहीं पहनी है ?''

''साहब आप भी कमाल करते हैं। मास्साब भी कहीं ड्रेस पहनते हैं ?''

(अगले अंक में जारी)

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