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Thursday, June 25, 2015

आरएसएश देश में इस वक्त सबसे बड़ा एनजीओ,जो विदेशी फंड से चलता है और नवीन जिंदल अमेरिका दखल करने का ग्लोबल हिंदुत्व का दांव।

आरएसएश देश में इस वक्त सबसे बड़ा एनजीओ,जो विदेशी फंड से चलता है और नवीन जिंदल अमेरिका दखल करने का ग्लोबल हिंदुत्व का दांव।
पलाश विश्वास
हजारों की तादाद में एऩजीओ के लाइसेंस कैंसिल किये जे रहे हैं।किन गैरसरकारी संगठनों के लाइसेंस रद्द किये जा रहे हैं,क्या वजहें हैं,इसकी न कोई सूची है और न कोई ब्यौरा है।जबकि सबसे बड़ा सच है कि देश में विदेशी वित्त पोषित जबसे बड़ा एनजीओ राष्ट्रीयस्वयंसेवक संघ है,जिसका एक मात्र एजंडा विधर्मी मुक्त अखंड हिंदू राष्ट्र की वैश्विक मनुस्मृति व्यवस्था का निर्माण है।इस जनविध्वंसी एजंडे के लिए मिल रहे वेश्विक चंदे में रक्षा सौदों का कमीशन जो है सो है,अबाध विदेशी पूंजी और एफडीआई भी है।
संपूर्ण निजीकरण,संपूर्ण विनिवेश का यह मेकिंग इन आरएशऐश का मूसलाधार कारोबार है।
अमेरिका को भी सीआईए,नाटो और अंतरिक्ष तक के वर्चस्व के बाद मालूम नहीं है कि मध्यपूर्व और उससे भी पहले वियतनाम में हुई सैन्य पराजय से भी भय़ंकर परिणति अमेरिकी साम्राज्य की होने जा रही है कि उसने ग्लोबल हिंदुत्व और इजराइल के बूस्टर से अपनी शैतानी विश्व व्यवस्था को मजबूत करने का आत्मध्वंसी विकल्प चुनकर अमेरिकी स्वतंतत्रता के इतिहास और रंगभेद और गुलामी के विरुद्ध अमेरिका के महासंग्राम को मनुस्मृति में निष्णात कर देने का आत्मघात करके मनुष्यता,सभ्यता और समूची कायनात को तेल कुंओं की आग में झोंक दिया है।
बाराक हुसैन ओबामा ने अपने प्रशासन में जा.नी और हिंदुत्व का जो रसायन तैयार किया है,उसके नतीजे बतौर रंगभेद की आंच व्हाइटहाउस तक पहुंचने लगी है और मिस्टर प्रेसीडंट और मिसेज फर्स्ट लेडी का गुलामी का अतीत उन्हें अब बेतरह कुरेदना लगा है जो भारतीय उपमहाद्वीप में अखंड हिंदू राष्ट्र का अखंड रंगभेदी असम अन्यायपूर्ण सामाजिक यथार्थ है,हिंदुत्व का नर्क है।
अब अमेरिका ने गुजरात दंगोंके महायुद्धअपराधी को क्लीन चिट देकर समूची वैश्विक व्यवस्था हिंदू साम्राज्यवाद को हस्तांतरित करने का बंदोबस्त भी कर दिया है।
रिपब्लिकन पार्टी के प्रेसीडेंट प्राथी की दौड़ में बाबी जिंदल का मजबूत दांव ग्लोबल हिंदुत्व का महाविस्फोट है।जिंदल हारे या जीते,फर्क नहीं पड़ता ,लेकिन अमेरिका के रोम रोम में हिंदुत्व का जहर फैलने लगा है।
विडंबना है कि हिंदू साम्राज्यवाद के एजंडे से वाकिफ अमेरिका इस्लाम का नामोनिशां मिटाने के लिए इजराइल के साथ हिंदू साम्राज्यवादियों का पार्टनर बनकर आरएशऐश को ही मजबूत कर रहा है।

विश्व बैंक औऱ अमेरिकी वित्तीय संस्थानों से पोषित जो एनजीओ संसार है,जो संजोग से जनसंगठनों और जनांदोलनों का एकमात्र पर्याय बन गया है भारत में,उसे भी हिंदुत्व का बवंडर खत्म कर रहा है।

तमाम एनजीओ की पारदर्शिता पर सवाल खड़े करके उनके लाइसेंस को खत्म करने के फासिज्म के राजकाज की नैतिकता हाल में हो रहे भ्रष्टाचार के महाविस्फोट में हम संघी अलमारी से निकल रहे नरकंकालों के हुजूम से जगजाहिर है और वैदिकी सभ्यता की विशुद्धता का खुलासा विदेशी पूंजी के साथ साथ भगोड़ों और आर्थिक अपराधियों के निर्लज्ज बचाव से हो रहा है।
इसी सिलसिले में पेश है यह रपटः

An unnoticed fact: the RSS, India's biggest NGO, gets foreign funding too

In 2002, a citizens' report documented how a US-based charity was funneling funds to Sangh entities in India.
Naresh Fernandes  · Jun 13, 2014 · 02:54 pm
An unnoticed fact: the RSS, India's biggest NGO, gets foreign funding too

Over the past couple of days, the alleged misdeeds of NGOs have been hotly debated in television studios and on the social media. The storm was set off by a series in The Indian Express, revealing that a 21-page Intelligence Bureau report has claimed that foreign-funded non-governmental organisations have been "negatively impacting economic development".

The newspaper said that the environmental group Greenpeace had been singled out for attention, as had other groups agitating against nuclear power projects, mining plans and attempting to organise construction labour. It has since transpired that a portion of the IB report plagiarised portions of a speech delivered by Narendra Modi in 2006 to mark the launch of a book called NGOs, Activists & Foreign Funds: Anti-Nation Industry.

The Express series has triggered an outcry against all NGOs, which are being denounced with special vehemence on Twitter as frauds and scoundrels, as anti-national entities that are dishonest about the source of their funding.  The critics seem blind to the transformative role played by non-profits such as the women's group SEWA and the child-support serviceChildline, among others.

There is some irony to this. The mushrooming of NGOs in recent decades is a direct consequence of the neoliberal philosophy of which Prime Minister Narendra Modi is a passionate advocate. As in the west, NGOs are filling the holes in social services created by minimal governments aspiring to maximum governance. NGOs are a cornerstone of the public-private partnerships for social development that are seen as a vital part of this economic model. Other non-profits are adjuncts of the corporate world, established to avail of tax breaks for corporate social responsibility initiatives.

Amidst this debate about non-profits, one fact seems to have gone largely unremarked upon: India's biggest NGO, one that played a crucial role in installing Modi as prime minister, also receives foreign funds.

The Rashtriya Swayamsevak Sangh, which has an estimated 2.5 million members, created an army of panna prabharis to help Modi during the election campaign. Each prabhari was entrusted with contacting voters on a single page of the electoral rolls and getting them to the polling booth. As Scroll.in has reported, this strategy paid rich dividends.

Modi's wariness of foreign-funded NGOs evidently does not extend to the RSS, of which he has been a member since 1971. In 2002, a report titled The Foreign Exchange of Hate: IDRF and the American Funding of Hindutva, put together by a group called The Campaign To Stop Funding Hate, documented how the India Development and Relief Fund, a charity based in the US state of Maryland, was funnelling funds to Sangh institutions in India. It claimed that the IDRF had sent more than $3 million to Sangh institutions in the seven years before the report was published.

With NGOs being put under the scanner, this may be a good time to officially scrutinise the funding of the Brotherhood in Saffron.
http://scroll.in/article/667071/an-unnoticed-fact-the-rss-indias-biggest-ngo-receives-foreign-funding-tooPhoto Credit: Prakash Singh/A


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