नैनीताल डीएसबी कालेज से पढ़ा लिखा। पर्यटन स्थलों और पर्यटन में मेरी रुचि नहीं रही। देश को देखने समझने में ज़िन्दगी खपा दी।
इंडियन एक्सप्रेस समुह में संपादकी की तो सारी ऊर्जा देश के लोग,उनके इतिहास भूगोल,उनके जीवन यापन,उनकी भाषा,संस्कृति, उनकी समस्याओं और उनके संघर्ष में लगा दी।
विदेश से आमंत्रण आते रहे।लेकिन मैंने पासपोर्ट भी नही बनाया।बांग्लादेश और नेपाल भी नहीं गए। कोलकाता से दक्षिणपूर्व एशिया इतना नजदीक था, जा नहीं सका।
किसी देश में रचे बसे बिना यात्रा वृत्तांत के लिए जाने की पर्यटन इच्छा और समय की कमी रही।
फिर ग्लोबल दुनिया तो हाथ की मुट्ठी में है। विदर्श यात्रा से क्या इससे ज्यादा जान समझ पाता।
दुनिया नहीं देखी,इसका अफसोस नहीं है।
अफसोस यह है कि पूरी ज़िंदगी खपा देने के बावजूद देश को न पूरा देख सका और न समझ सका। देश के लोग अब भी अजनबी जैसे अनजाने हैं।
यह हमारी सबसे बड़ी असफलता है किनपनी जमीन और जड़ों किंफचन भी नहीं है और हवाई उड़ानें अनन्त हैं।
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