फिर उसी मुक्तिबोध के अंधेरे में-
गेरुआ मौसम उड़ते हैं अंगार
जंगल जल रहे जिन्दगी के अब
जिनके कि ज्वलंत-प्रकाषित भीषण
फूलों से बहती वेदना नदियां
जिनके कि जल में
सचेत होकर सैकड़ों सदियां, ज्वलंत अपने
बिम्ब फेंकती।
पलाश विश्वास
फिर उसी मुक्तिबोध के अंधेरे में-
गेरुआ मौसम उड़ते हैं अंगार
जंगल जल रहे जिन्दगी के अब
जिनके कि ज्वलंत-प्रकाषित भीषण
फूलों से बहती वेदना नदियां
जिनके कि जल में
सचेत होकर सैकड़ों सदियां, ज्वलंत अपने
बिम्ब फेंकती।
आज का संवाद
फिर भी हम मुक्तिबोध के उस आह्वान के प्रत्युत्तर में निरुत्तर ही हैं कि तय करो कि किस ओर हो तुम!
मुक्तिबोध थे कि मध्यवर्ग के अवसरवाद और समझौतापरस्त चरित्र की शिनाख्त करती उनकी यह कविता आगे बढ़ती है और ऐसी लड़ाई में उसकी किसी भी प्रकार की सकारात्मक भूमिका को सिरे से तब तक खारिज करती है जब तक कि वह खुद को वैचारिक रूप से डीक्लास करके सर्वहारा वर्ग में शामिल न कर ले। विडंबना अब यह है कि इसी मध्यवर्गीय पहचान को सर्वहारा का अमोघ मुक्तिमार्ग बतौर स्थापित करने वाले मध्यवर्गीय ईश्वरों के आध्यात्मिक तिलिस्म में पूरा का पूरा देश अंधंरे में डूब गया है और फिर भी हम मुक्तिबोध के उस आह्वान के प्रत्युत्तर में निरुत्तर ही हैं कि तय करो कि किस ओर हो तुम!
आह्वान टीम के लिए
Palash Biswas असहमति के बावजूद हम चाहते हैं कि इस अनिवार्य मुद्दे पर संवाद जारी रहे।आह्वान टीम अपने असहमत साथियों के साथ जो निर्मम भाषा का प्रयोग करती है,उसे थोड़ा सहिष्णु बनाने का यत्न करें तो यह विमर्श सार्थक संवाद में बदल सकता है।
तेलतुंबड़े अंबेडकरवादियों में एकमात्र ऎसे विचारक हैं जो समसामयिक य़थार्थ से टकराने की कोशिश करते हैं।
सबकी अपनी सीमाबद्धता है।अंबेडकर की भी अपनी सीमाबद्धता रही है। मार्क्स भी सीमाओं के आर पार नहीं थे।न माओ।लेकिन सबने इतिहास में निश्चित भूमिका का निर्वाह किया है।
हम मानते हैं कि आह्वाण की युवा प्रतिबद्ध टीम भी एक ऎतिहासिक भूमिका में है और उसे इसका निर्वाह और अधिक वस्तुवादी तरीके से करना चाहिए।लेकिन जब हम आम जनता को संबोधित करते हैं तो हमें इस बात का भी ख्याल रखना चाहिए कि वे अकादमिक या वस्तुवादी भाषा में अनभ्यस्त हैं और उनका संसार पूरी तरह भाववादी है।
इस द्वंद्व के समाधान के लिए भाषा की तैयारी मुकम्मल होनी चाहिए।
आप अंबेडकर,तेलतुंबड़े और दूसरे तमाम समकालीन प्रतिबद्ध असहमत लोगों के प्रति भाषा की सावधानी बरतें तो हमें लगता है कि आपका यह प्रयास और ज्यादा संप्रेषक और प्रभावशाली होगा।
याद करें कि आपके आधारपत्र और वीडियो रपट देखने के बाद हमें तत्काल बहस से बाहर जाना पड़ा। क्योंकि हम जिन लोगों के साथ काम कर रहे हैं वे इस भाषा में अंबेडकर का मूल्यांकन करना नहीं चाहते।
दरअसल मूर्तिपूजा के अभ्यस्त जनता से आप सीधे तौर पर उनकी मूर्तियां खंडित करने के लिए कहेंगे तो संवाद की गुंजाइश बनेगी ही नहीं।
उन्हें अपने स्तर तक लाने से पहले उनके स्तर पर खड़े होकर उनके मुहावरों में संवाद हमारा प्रस्थानबिंदु होना चाहिए।
माओ ने इसीलिए जनता के बीच जाकर जनता से सीखने का सबक दिया था।
भारतीय यथार्थ गणितीय नहीं है और न ही उसे सुलझाने का कोई गणितीय वैज्ञानिक पद्धति का आविस्कार हुआ है।
हर प्रदेश,हर क्षेत्र की अपनी अपनी अस्मिता है।हर समुदाय की अस्मिता अलग है।ये असमिताएं आपस में टकरा रहीं हैं,जिसका सत्तावर्ग गृहयुद्ध और युद्ध की अर्थव्यवस्था में बखूब इस्तेमाल कर रहा है।
मनुस्मृति भी एक बहिस्कार और विशुद्धता के सिद्धांत पर आधारित अर्थशास्त्र ही है,ऎसा हम बार बार कहते रहे हैं।
हमें आपकी दृष्टि से कोई तकलीफ नहीं है,न आपके विश्लेषण से। हम सहमत या असहमत हो सकते हैं। लेकिन हम चाहते हैं कि जिस ईमानदारी से आप संवाद और विमर्श का बेहद जरुरी प्रयत्न कर रहे हैं,वह बेकार न हों।
तेलतुंबड़े को झूठा साबित करना मेरे ख्याल से क्रांति का मकसद नहीं हो सकता।बाकी आपकी मर्जी।
आप इस बहस को आह्वान के मार्फत व्यापक पाठकवर्ग तक पहुंचा रहे हैं,इसके लिए आभार।हम इस प्रयत्न का अपनी असहमतियों के बावजूद स्वागत करते हैं।संवादहीन समाज में समस्याओं की मूल वजह संवादहीनता की घनघोर अमावस्या है,आप लोग उसे तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं।
आपकी आस्था वैज्ञानिक पद्धति में है।हमारी भी है।लेकिन शायद आपकी तरह दक्षता हमारी है नहीं है।
हम अपने सौंदर्यबोध में वस्तुवादी दृष्टि के साथ जनता को संबोधित करने लायक भाववादी सौंदर्यशास्त्र का भी इस्तेमाल करते हैं अपने नान प्रयोग में इसी संवादहीनता को तोड़ने के लिए।
कृपया इसे समझने का कष्ट करें कि आपके शत्रु वास्तव में कौन हैं और मित्र कौन।
पचास साल बाद भी मुक्तिबोध की कविता अंधेरे में आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना जब वह रची गयी थी।बल्कि अह अंधेरा बेहद गहरा गया है और उसे अंधेरे के प्रहार से हम रात दिन सातों दिन बारह महीने अविराम र्काक्त हुए जाते हैं।लेकिन इस अधंरे को तोड़कर कोई आलोकपथ के निर्माम की दिशा अब भी बनी नही है।
छायावादी कविता की सतह से उठकर मुक्तिबोध के सौजन्य से ही भारतीय कविता,हां महज हिंदी नहीं,गौर करें,भारतीय कविता सामाजिक यथार्थ की जमीन पर मजबूती से खड़ी हुई।
बांग्ला में सुकांत भट्टाचार्य की घोर यथार्थवादी कविताओं और इप्टा के नाट्यांदोलन के बावजूद बांग्ला कविता साठ के दशक से लेकर अब तक शक्ति सुनील के आत्मध्वंसी कवित्व में उलझी हुई है।
बीच में सत्तर का दशक आया और चला गया। मृत्यु उपत्यका की चीखें कभी बांग्ला कविता का मुख्य स्वर या स्थायी भाव नहीं बन सका। बाकी भारतीय भाषाओं में हमारी जानकारी के मुताबिक कमोबेश यही स्थिति है।
इसके विपरीत यह मानना होगा कि जीवन में कभी प्रतिष्ठा का चेहरा न देखने वाले गजानन माधव मुक्तिबोध ने अपनी प्रखर दृष्टि से हिंदी भाषा और हिंदी कविता के लिए एक सुप्रशस्त आलोकपथ का निर्माण कर गये।ध्यान देने योग्य है कि उनकी कविता में न कोई पोस्टर है और न बंदूक की ऊंचाई का कोई पौधा है और न गीतों का उद्वेलित करने वाला कोई आह्वान।
गजानन माधव मुक्तिबोध की कोई भी कविता गहीनतम समुद्र में गोताखोरी के अहसास से कम नहीं है।अंधेरे की गहराइयों को हम आज तक नाप ही नहीं सके हैं।
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने भी छायावाद को तोड़ा है। उनकी कविताओं से भी यथार्थ की रोशनी फूट निकलती है लेकिन उनपर राविंद्रिक प्रभाव भी प्रबल है।जबकि मुक्तिबोध का सामाजिक यथार्थ सीधे मध्यमवर्ग की तिलस्मी दीवारों को तोड़ते हुए एकदम सतह पर या सतह से भी नीचे जो सर्वहारा है,उसको हिंदी कविता में स्थापित करता है और उसीके पक्ष में जनपक्षधरता का निर्माण करता है।
भाषा शैली के मामले में उनकी कविताएं कला और सौंदर्यबोध,दक्षता और बिंब संयोजन,शब्द चयन में सत्तर के दशक से प्रचलित भारतीय जनवादी कविता से कहीं मेल नहीं खाती,लेकिन इसके बावजूद सच यह है कि तमाम कोलाहली जनकवियों के मध्य सबसे बड़ा भारतीय जनकवि आज भी मराठी मूल के अहिंदीभाषी कवि गजानन माधव मुक्तिबोध हैं।
हिंदी में और हिंदी समाज में पूरे भारत को और भारत की तमाम अस्मिताओं को स्थान देने की जो आत्मशक्ति है,उसकी बेहतरीन उपलब्धियां हैं गजानन माधव मुक्तिबोध की कविताएं।
उनकी उस छायावादी जैसी लगने वाली भाषा का हर बिंब उनकी प्रखर वस्तुवादी दृष्टि से आलोकित है जो पल प्रतिपल अंधेरे के तिलिस्म से टकराती हुई नजर आती है।
माफ करना बंधुओं ,कालजयी तमाम कवियों के मुकाबले हमें तो अपने यही मुक्तिबोध भारतीय परिप्रेक्ष्य में अकेले महाकवि नजर आते हैं ठीक वैसे ही जैसे तालों में ताल नैनीताल,बाकी ताल तलैया।
अंग्रेजी के क्रांतिकारी कवि टीएस इलियट ने परंपरा का बहुत खूबसूरती से इस्तेमाल किया है तो आलोचक काडवेल ने इल्यजन माया को तार तार किया है।लेकिन कविता के मायावी संसार को परंपरा को प्रस्थानबिंदू बनाकर सामाजिक प्रतिबद्धता से जोड़ने वाले दुनियाभर के कवियों में शायद गजानन माधव मुक्तिबोध का कोई जोड़ है ही नहीं।
कोई जादुई यथार्थ का उत्तरआधुनिकताबोध और विचारहीन अराजकता मुक्तिबोध की कविता को जल जंगल जमीन से बेदखल कर ही नहीं सकती।
वे जन्मजात छत्तीसगढ़ी थे और छत्तीसगढ़ी जलसंघर्ष की परंपराएं ही उनकी कविताओं की असली ताकत है,जिसका उन्होंने शायद ही कभी जिक्र किया है।किया भी हो तो हम जैसे अपढ़ व्यक्ति को मालूम ही नहीं है।
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Abhinav Sinha पलाश जी, आपके सुझावों का स्वागत है। लेकिन यह समझने की आवश्यकता है कि राजनीतिक बहस में एक-दूसरे का गाल नहीं सहलाया जा सकता है। इसमें call a spade a spade की बात लागू होती है। तेलतुंबडे जी ने अपने लेख में हमारे प्रति कोई रू-रियायत नहीं बरती है, और न ही हमने अपने लेख में उनके प्रति कोई रू-रियायत बरती है। इसमें दुखी होने, कोंहां जाने, कोपभवन में बैठ जाने वाली कोई बात नहीं है। यह शिकायत जब तेलतुंबडे जी की ही नहीं है (क्योंकि वे स्वयं भी उसी भाषा का प्रयोग अपने लेख में करते हैं, जिस पर पलाश जी की गहरी आपत्ति है) तो फिर किसी और के परेशान होने की कोई बात नहीं है।
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दूसरी बात, यहां बहस व्यक्तियों की सीमाबद्धता की है ही नहीं। यहां बहस विज्ञान पर है। सवाल इस बात का है कि अंबेडकर के पास दलित मुक्ति की कोई वैज्ञानिक परियोजना थी? क्या उनके पास एक समतामूलक समाज बनाने की कोई वैज्ञानिक परियोजना थी ? निश्चित रूप से सीमाओं से परे न तो मार्क्स हैं और न ही माओ। ठीक वैसे ही जैसे आइंस्टीन या नील्स बोर भी नहीं थे। लेकिन अंबेडकर से अलग मार्क्स ने सामाजिक क्रांति का विज्ञान दिया। अंबेडकर अपने तमाम जाति-विरोधी सरोकारों के बावजूद सुधारवाद, व्यवहारवाद के दायरे से बाहर नहीं जा सके; सामाजिक परिवर्तन के विज्ञान को समझने में वे नाकाम रहे। और हमारे लिए अंबेडकर की अन्य व्यक्तिगत सीमाओं का कोई महत्व नहीं है, लेकिन उनकी इस असफलता का महत्व दलित मुक्ति की पूरी परियोजना के लिए है।
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इसलिए व्यक्तियों की सीमाएं होती हैं, इस सर्वमान्य तथ्य पर बहस ने हमने अपने लेख में की है, और न ही हम आगे ऐसी बहस कर सकते हैं।
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अगर भाषा के आधार पर ही बहस से बाहर जाना उचित होता हो, साथी, तो फिर हमें तेलतुंबडे जी द्वारा प्रयोग की जाने वाली भाषा पर तुरंत ही बहस से बाहर जाना चाहिए था। हमारे लिए भाषा तब भी उतनी अहमियत नहीं रखती थी, और अब भी नहीं रखती है। मूल बात है बहस के आधारभूत मुद्दे। अगर भाषा पर ही आपकी पूरी आपत्ति ही है तो आपको यह सीख पहले तेलतुंबडे जी को देनी चाहिए, जो बेवजह ही हमें अपना शत्रु समझते हैं। विचारधारात्मक बहस आप तीखेपन से चलायें तो सही है, अगर हम चलायें तो ग़लत। यह कहां की नैतिकता है? तेलतुंबडे जी ने अपने वक्तव्य में असत्यवचन कहा था। तो अब हम क्या करें ? क्या इस बात की ओर इंगित न करें ? क्या इसी प्रकार से बहस चलायी जाती है ? हमें लगता है कि यह बौद्धिक-राजनीतिक बेईमानी होगी।
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जहां तक भारत की जटिलता का प्रश्न है, तो आपके अस्मिताओं, गणितीय-गैरगणितीय यथार्थ और उनके गणितीय व गैर-गणितीय समाधानों के बारे में विचारों पर अपनी प्रतिक्रिया हम संक्षेप में नहीं दे सकते हैं। लेकिन इस पर आह्वान के उपरोक्त लेख में ही हमारे विचार स्पष्ट हैं। आप उन्हें ही संदर्भित कर सकते हैं। संक्षेप में इतना ही कि इस जटिलता से हम भी वाकिफ हैं और हम इसका कोई 'दो दुनाई चार' वाला समाधान प्रस्तावित भी नहीं कर रहे हैं। अगर आप गौर से हमारे लेख का अवलोकन करें तो स्वयं ही यह बात स्पष्ट हो जायेगी।
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Palash Biswas अभिनव जी,हम आपका लेख पढ़ चुके हैं और वक्तव्य भी सुन चुके हैं। हम कोई तेलतुंबड़े जी का पक्ष नहीं ले रहे हैं और न आपके पक्ष का खंडन कर रहे हैं। हम सारे लोग अलग अलग तरीके से भारतीय यथार्थ को संबोधित कर रहे हैं। अगर हम राज्यतंत्र में परिवर्तन चाहते हैं और उसके लिए हमारे पास परियोजना है,तो उस परियोजना का कार्यान्वयन भी बहुसंख्य जनगण को ही करना है।
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हीरावल दस्ते के जनता के बहुत आगे निकल जाने से सत्तर के दशक की सबसे प्रतिबद्ध सबसे ईमानदार पीढ़ी का सारा बलिदान बेकार चला गया।क्योंकि जनता से संवाद की स्थिति ही नहीं बनी।
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विचारधारा अपनी जगह सही है,लेकिन उसे आम जनता को,जो हमसे भी ज्यादा अपढ़ और हमसे भी ज्यादा भाववादी है,उस तक आप वैज्ञानिक पद्धति से वस्तुपरक विश्लेषण संप्रेषित करके उन्हें मुक्ति कामी जनसंघर्ष के लिए देशभर में तमाम अस्मिताओं के तिलिस्म तोड़कर कैसे संगठित करेंगे,जनपक्षधर मोर्चे की बुनियादी चुनौती यही है।
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अवधारणाएं और विचारधारा अपनी जगह सही हैं,लेकिन तेलतुंबड़े हों या आप,या हम या दूसरे लोग,हम सामाजिक यथार्थ के मद्देनजर मुद्दों को टाले बिना एकदम तुरंत जनता को संबोधित नहीं कर पा रहे हैं।
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यह आह्वान टीम ही नहीं,पूरे जनपक्षधर मोर्चे की भारी समस्या है।शत्रू पक्ष के लोगों में वैचारिक सांगठनिक असहमति होने के बावजूद जबर्दस्त समन्वय और अविराम औपचारिक अनौपचारिक संवाद है।
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लेकिन आप जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं,वैसे देश के अलग अलग हिस्से में हमारे तमाम लोग बेहद जरुरी काम कर रहे हैं।लेकिन हमारे बीच कोई आपसी संवाद और समन्वय नहीं है।
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जब हमारा बुनियादी लक्ष्य मुक्तिकामी जनता को राज्यतंत्र में बुनियादी परिवर्तन के लिए जातिविहीन वर्गविहीन समाज की स्थापना के लिए संगठित करना है,तो आपस में संवाद में हार जीत और रियायत के सवाल गैरप्रासंगिक हैं।
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जब आप सांगठनिक तौर पर नीतियां तय कर रहे होते हैं,तो वस्तुपरक दृष्टि से पूरी निर्ममता से चीजों का विश्लेषण होना ही चाहिए।
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लेकिन जब आप सार्वजनिक बहस करते हैं या लिखते हैं तो आपको जनता के हर हिस्से को और खासकर जिस बहुसंख्य सर्वहारा वर्ग को आप संबोधित कर रहे हैं,उसपर होने वाले असर का आपको ख्याल रखना होगा।
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यह कोप भवन में जाने की बात नहीं है। हम जिन तबकों के साथ जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं,वे मसीहों और दूल्हों के शिकंजे में फंसे मूर्ति पूजक संप्रदाय है तो सीधे अंबेडकर की मूर्ति को एक झटके से गिराकर उनके बीच आप काम नहीं कर सकते हैं।वे तो आपको सुनते ही नहीं है। न वे विचारधारा समझते हैं,न राज्य का चरित्र जानते हैं,न राजकाज की गतिविधियों पर उनकी दृष्ठि है और न वे अर्थव्यवस्था के बुनियादी सिद्धांतों के जानकार हैं।
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जाति विमर्श जब आप चला रहे थे,तब आपके आक्रामक तेवर से जो बातें संप्रेषित हो रही थीं,उसे आगे बढ़ते देने से अंबेडकर के पुनर्मूल्यांकन का काम और मुश्किल हो जाता।यह अनिवार्य कार्यभार है और आपने इस पर विमर्श की पहल करके भी बढ़िया ही किया है।लेकिन इस विमर्श और संवाद में अंबेडकर अनुयायियों को जबतक शामिल नहीं करते तब तक यह सत्तावर्ग का विमर्श बना रहेगा,सर्वस्वहाराओं का विमर्श बनने की जगह।आप जो कह रहे हैं,वे बातें अंततः रंग बिरंगे अंबेडकरी आंदोलन के परचम के नीचे धर्मोनमादी राष्ट्रवाद की पैदल सेनाओं में तब्दील वंचित तमाम समुदाय जो वास्तव में भारत में बहुसंख्य हैं,उनके दिलो दिमाग में पहुंचनी चाहिए।तेलतुंबड़े या पलाश विश्वास क्या बोलते लिखते समझते हैं,इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।इस मोड में बहस में शामिल होते रहने से जमीनी स्तर पर अंबेडकरवादियों से दशभर में जो मेरा संवाद का क्रम जारी है,वह तभी भंग हो जाता।आगे काम और बेहतर तरीके से करने के लिए बेहतर है कि इस समस्या को आप सारे युवाजन समझ लें और हमसे बेहतर तरीके से इसे संबोधित भी करें।
अब देशभर में कश्मीर से लेकर कन्याकुमरी तक हजारों की तादाद में ऐसे पुरातन बीएसपी और बामसेफ के कार्यक्रता भी हमारे साथ हैं,जो अंबेडकरी आंदोलन की चीड़फाड़ के लिए तैयार हैं और अस्मिताओं से ऊपर उठकर अंबेडकर के जाति उन्मूलन के मूल एजंडा के तहत ही उनका मूल्यांकन करने को तैयार हैं और जनसंहारी अर्थ व्यवस्था के विरुद्ध देश व्यापी जनप्रतिरोध के साझ मोर्चे के लिए तैयार हैं। जब आपने विमर्श चलाया तब यह हालत नहीं थी।तेलतुंबड़े जी भी इस बहस को जारी रखने के हक में हैं।देश भर में और भी लोग जो वाकई बदलाव चाहते हैं, इस विमर्श को जारी रखने की अनिवार्यता मानते हैं।
अब बुनियादी समस्या लेकिन वही है कि हमें उस भाषा और माध्यम पर मेहनत करनी होगी, जिसके जरिये हम वंचितों को तृणमूल स्तर पर इस विमर्श में शामिल कर सकें,ताकि अस्मिताओं का तिलिस्म टूटे और अंधेरा छंटे। विश्लेषण आप भले ही सही कर रहे हों,उसे आडियेंस तक सहीतरीके से संप्रेषित करना आपकी सबसे बड़ी चुनौती है।
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दुनियाभर में इसलिए क्रांतिकारी आंदोलन में लोगों तक साहित्य और अध्ययन चक्र की परंपरा रही है।ताकि हम जो कहते ,लिखते हैं, वह एकतरफा न हो,हम आम जनता को भी संवाद में शामिल कर सकें।
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हालात तो तभी बदलेंगे जब अभिनव सिन्हा जो सोचते हैं,वैसा तेलतुंबड़े या पलास विश्वास न भी सोचें तो चलेगा,लेकिन आम जनता की समझ में बात आनी चाहिए।हमारा निवेदन सिर्फ इतना है कि हम सभी,माननीय तेलतुंबड़े जी भी और आप भी यह कोशिश करें कि कैसे हम मूक भारतीय जनगण को उनकी आवाज कम से कम लौटा सकें।
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वे जब बोलने लगेंगे,चीजों को सिलसिलेवार वैज्ञानिक दृष्टि से समझने लगेंगे,तब जाकर बात बनेगी।
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हमारी तुलना में आप लोग युवा हैं, तकनीक दक्ष हैं,विश्लेषण पारंगत प्रतिबद्ध टीम है तो अब आपको इस चुनौती का सामना तो करना ही होगा कि बेहतर तरीके से हम अपनी बात कैसे वंचित तबके तक ले जायें।
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क्योंकि अंबेडकर के खिलाफ वंचित तबके के लोग कुछ भी सुनना नहीं चाहते।वे तेलतुंबड़े को भी नही पढ़ते हैं और न सुनते हैं।
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पहले उन्हें इस विमर्श के लिए मानसिक तौर पर तैयार करना होगा वरना आप जो कर रहे हैं,वह सत्तावर्ग की समझ में तो आयेगा लेकिन सर्वहारा जिस हालत में हैं, वे वहां से एक कदम आगे नहीं बढ़ेंगे।
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आगे भविष्य आप लोगों का है,हम लोग तेजी से अतीत में बदल रहे हैं।
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आपसे ही उम्मीदे हैं कि आप इन समस्याओं का समाधान निकालकर माध्यमों का बेहतर इस्तेमाल करके वंचित समुदायों समेत देश भर के सर्वहारा सर्वस्वहारा तबकों को बुनियादी परिवर्तन के लिए संगठिक करेंगे।
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मैं कोई आपकी आलोचना के लिए आपको यह सुझाव नहीं दे रहा हूं,बल्कि जो काम आप लोग कर रहे हैं,उसे अति महत्वपूर्ण मानते हुए उसको पूरे देश को संप्रेषित करने की गरज से ऎसा कर रहा हूं।
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जैसा कि आप बार बार बोलते लिखते रहे हैं ,इस प्रकरण में न अभिनव सिन्हा महत्वपूर्ण है,न तेलतुंबड़े और न पलाश विश्वास।महत्वपूर्ण है भारत का सर्वहारा और सर्वस्वहारा वर्ग,अंततः जिन्हें हमें संबोधित करना है।
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हाशिया
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26-12-2013 - मुक्तिबोध की कविता अंधेरे में के पचास साल पूरे होने पर इस कविता और मुक्तिबोध के बारे में बहस एक बार फिर तेज हुई है. नए संदर्भों और हालात में कवि और कविता को देखने का आग्रह बढ़ा है. कवि, कार्यकर्ता और भोर के प्रधान संपादक रंजीत ...
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आपने इस पृष्ठ पर कई बार विज़िट किया है. पिछला विज़िट: 11/12/13
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गजानन माधव मुक्तिबोध - कविता कोश - हिन्दी ...
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www.kavitakosh.org/kk/गजानन_माधव_मुक्तिबोध
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11-09-2013 - ... नयी कविता का आत्मसंघर्ष, नये साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र(आखिर रचना क्यों), समीक्षा की समस्याएँ, एक साहित्यिक ... लम्बी कविताएँ. अंधेरे में / गजानन माधव मुक्तिबोध · एक अंतर्कथा / गजानन माधव मुक्तिबोध · कहने दो उन्हें जो यह ...
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मुक्तिबोध की कविता 'अंधेरे में' के पचास साल - Apni ...
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'अंधंरे में' मुक्तिबोध की प्रसिद्ध कविता है। इस रचना के पचास साल पूरे हो रहे हैं। यह कविता परम अभिव्यक्ति की खोज में जिस तरह की फैंटेसी बुनती है तथा इसमें जिस तरह की बहुस्तरीयता व संकेतोंमें विविधता है, इसे लेकर हिन्दी के विद्वान ...
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आज के अंधेरे में 'अंधेरे में' | PrabhatKhabar.com : Hindi ...
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26-08-2013 - मुक्तिबोध की कविता 'अंधेरे में' का लेखन-प्रकाशन जवाहरलाल नेहरू के समय हुआ. इसकी 50वीं वर्षगांठ उस समय मनायी जा रही है, जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री हैं. भारत के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू और वर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह में ...
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मुक्तिबोध | Sahapedia
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sahapedia.org/मुक्तिबोध/
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'अंधेरे में' और 'ब्रह्मराक्षस' मुक्तिबोध की सर्वाधिक महत्वपूर्ण रचनायें मानी जाती हैं. 'ब्रह्मराक्षस'कविता में कवि ने 'ब्रह्मराक्षस' के मिथक के जरिये बुद्धिजीवी वर्ग के द्वंद्व और आम जनता से उसके अलगाव की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया ...
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कभी-कभार : अंधेरों में कविता - जनसत्ता
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www.jansatta.com/index.php/component/.../53134-2013-10-20-05-11-1...
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20-10-2013 - निराला की पुण्यतिथि के अवसर पर अपने वार्षिक आयोजन में निराला साहित्य संस्थान इलाहाबाद ने कवि अरुण कमल, कवि ... किया कि निराला के अंधकार-बोध के हवाले से हममुक्तिबोध की लंबी और क्लैसिक कविता 'अंधेरे में' पर विचार करें।
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हिंदी दिवस: सौ बरस, 10 श्रेष्ठ कविताएं - BBC Hindi - भारत
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www.bbc.co.uk/.../130914_hindi_special_mangalesh_dabaral_poem_ak...
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14-09-2013 - अंधेरे में – गजानन माधव मुक्तिबोध. आधुनिक हिंदी कविता में सन् 2013 एक ख़ास अहमियत रखता है क्योंकि इस वर्ष गजानन माधव मुक्तिबोध की लंबी कविता 'अंधेरे में' की अर्धशती शुरू हो रही है. सन् 1962-63 में लिखी गई और नवंबर 1964 की ...
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आंतरिक संघर्ष और अन्तर्द्वन्द्व के कवि - मुक्तिबोध
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मुक्तिबोध की शेष कविताओं में ऐसा द्वंद्वग्रस्त और विभाजित व्यक्तित्व कवि उभर कर सामने आता है, जिसके हृदय का घोर असंतोष ... ऐसी कविताओं में 'चांद का मुंह टेढा है', 'अंधेरे में', 'जब प्रश्नचिह्न बौखला उठे', 'लकडी का बना हुआ रावण', 'एक भूतपूर्व ...
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मुक्तिबोध की कविता 'अंधेरे में' पर लखनऊ में ...
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mediamorcha.com/.../मुक्तिबोध-की-कविता-'अंधेरे-में'-प...
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26-08-2013 - लखनऊ। वह कविता महत्वपूर्ण होती है जो एक साथ अतीत, वर्तमान और भविष्य की यात्रा करे। यह क्षमता मुक्तिबोध की कविता 'अंधेरे में' है। अपने रचे जाने के पचास साल बाद भी हमें प्रेरित करती है। इ...
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जनपक्ष: मुक्तिबोध की याद
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13-11-2013 - अंधेरे में पर हिन्दी में बहुत चर्चा हुई है। मैं मुक्तिबोध के कविता-संसार में जाता हूं तो चकमक की चिनगारियां भी उससे कम महत्वपूर्ण नहीं लगती। मुक्तिबोध की कविता के विशद विवेचन में जाना हो तो अंधेरे में और यदि नए कवियों को ...
अंधेरे में / भाग 1 / गजानन माधव मुक्तिबोध
ज़िन्दगी के...
कमरों में अँधेरे
लगाता है चक्कर
कोई एक लगातार;
आवाज़ पैरों की देती है सुनाई
बार-बार....बार-बार,
वह नहीं दीखता... नहीं ही दीखता,
किन्तु वह रहा घूम
तिलस्मी खोह में ग़िरफ्तार कोई एक,
भीत-पार आती हुई पास से,
गहन रहस्यमय अन्धकार ध्वनि-सा
अस्तित्व जनाता
अनिवार कोई एक,
और मेरे हृदय की धक्-धक्
पूछती है--वह कौन
सुनाई जो देता, पर नहीं देता दिखाई !
इतने में अकस्मात गिरते हैं भीतर से
फूले हुए पलस्तर,
खिरती है चूने-भरी रेत
खिसकती हैं पपड़ियाँ इस तरह--
ख़ुद-ब-ख़ुद
कोई बड़ा चेहरा बन जाता है,
स्वयमपि
मुख बन जाता है दिवाल पर,
नुकीली नाक और
भव्य ललाट है,
दृढ़ हनु
कोई अनजानी अन-पहचानी आकृति।
कौन वह दिखाई जो देता, पर
नहीं जाना जाता है !!
कौन मनु ?
बाहर शहर के, पहाड़ी के उस पार, तालाब...
अँधेरा सब ओर,
निस्तब्ध जल,
पर, भीतर से उभरती है सहसा
सलिल के तम-श्याम शीशे में कोई श्वेत आकृति
कुहरीला कोई बड़ा चेहरा फैल जाता है
और मुसकाता है,
पहचान बताता है,
किन्तु, मैं हतप्रभ,
नहीं वह समझ में आता।
अरे ! अरे !!
तालाब के आस-पास अँधेरे में वन-वृक्ष
चमक-चमक उठते हैं हरे-हरे अचानक
वृक्षों के शीशे पर नाच-नाच उठती हैं बिजलियाँ,
शाखाएँ, डालियाँ झूमकर झपटकर
चीख़, एक दूसरे पर पटकती हैं सिर कि अकस्मात्--
वृक्षों के अँधेरे में छिपी हुई किसी एक
तिलस्मी खोह का शिला-द्वार
खुलता है धड़ से
........................
घुसती है लाल-लाल मशाल अजीब-सी
अन्तराल-विवर के तम में
लाल-लाल कुहरा,
कुहरे में, सामने, रक्तालोक-स्नात पुरुष एक,
रहस्य साक्षात् !!
तेजो प्रभामय उसका ललाट देख
मेरे अंग-अंग में अजीब एक थरथर
गौरवर्ण, दीप्त-दृग, सौम्य-मुख
सम्भावित स्नेह-सा प्रिय-रूप देखकर
विलक्षण शंका,
भव्य आजानुभुज देखते ही साक्षात्
गहन एक संदेह।
वह रहस्यमय व्यक्ति
अब तक न पायी गयी मेरी अभिव्यक्ति है
पूर्ण अवस्था वह
निज-सम्भावनाओं, निहित प्रभावों, प्रतिमाओं की,
मेरे परिपूर्ण का आविर्भाव,
हृदय में रिस रहे ज्ञान का तनाव वह,
आत्मा की प्रतिमा।
प्रश्न थे गम्भीर, शायद ख़तरनाक भी,
इसी लिए बाहर के गुंजान
जंगलों से आती हुई हवा ने
फूँक मार एकाएक मशाल ही बुझा दी-
कि मुझको यों अँधेरे में पकड़कर
मौत की सज़ा दी !
किसी काले डैश की घनी काली पट्टी ही
आँखों में बँध गयी,
किसी खड़ी पाई की सूली पर मैं टाँग दिया गया,
किसी शून्य बिन्दु के अँधियारे खड्डे में
गिरा दिया गया मैं
अचेतन स्थिति में !
Jagadishwar Chaturvedi
मनमोहन सरकार तुरंत हस्तक्षेप करके चुनाव आयोग और गूगल में हुए करार को रद्द कराने की व्यवस्था करे। यह करार भारत के गोपनीयता कानून और अन्य निजता कानूनों का सीधे उल्लंघन है ।
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Prof Kapil Kumar Wo parvah kartai hai kya?
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Jagadishwar Chaturvedi अब परवाह करनी पडेगी, कोई न कोई बंदा अदालत जरुर जा सकता है वरना राजनीतिक दबाव पैदा करना होगा ।
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2 hours ago · Edited · Like
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Prof Kapil Kumar Bhul jai ! Sab milai huai hai !
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2 hours ago · Like · 1
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Prof Kapil Kumar PM, ex RBI governor General, ex UGC chairman, ex Finance Minister, prof Deli School of Economics,etc etc kaisai ak parivarik neta kki chakri karta hai !
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Palash Biswas बायोमेट्रिक आधार और ड्रोन तंत्र पर भी तो लिखें पंडितजी।
Jagadishwar Chaturvedi
समाचार टीवी चैनलों को चुनाव आयोग और गूगल कंपनी के बीच हुए करार के खिलाफ हर हालत में आवाज बुलंद करनी चाहिए। यह समझौता भारत के नागरिकों के अधिकारों का हनन है । भारत के नागरिक की सूचनाएं जानने का किसी भी कंपनी को कोई कानूनी हक नहीं है । चुनाव आयोग ने करार करके गलत फैसला किया है । विभिन्न राजनीतिक दलों को भी खुलकर इस मसले पर अपनी राय जाहिर करनी चाहिए।
गूगल और सीआईए के बीच करार है और भारत के नागरिकों की निगरानी अप्रत्यक्षतौर पर अमेरिका के जरिए होने लगेगी।
मनमोहन सरकार ने यह करार करके साइबर गुलामी की दिशा में फैसला लिया है । तुरंत पीएमओ से हस्तक्षेप होना चाहिए और राहुल गांधी को भी इस दिशा में सोचना चाहिए ।
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Palash Biswas पंडित जी,नागरिकों की निजता ौर गोपनीयता भंग करने के उपक्रम पर आप जरा विस्तार से लिखें तो बड़ी कृपा होगी।
सामाजिक-राजनीतिक सिंबल के तौर पर झाड़ू का इस्तेमाल पहले भी एक बार हुआ है. झाड़ू से उन्हें काफी पुराना प्यार है. आरक्षण विरोधी आंदोलन में रेल ट्रैक पर झाड़ू लगाते इंजीनियरिंग और मेडिकल स्टूडेंट्स की तस्वीर. वर्ष -2006
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Dilip C Mandal shared his photo.
भारतीय इतिहास में झाड़ू का प्रतीक के तौर पर यह तीसरा इस्तेमाल है. पहली बार गांधी ने किया. जब उन्होंने अपना टॉयलेट (दूसरों का नहीं) साफ करके एक भ्रम पैदा किया.
दूसरी बार इसका व्यापक इस्तेमाल आरक्षण विरोधी इस्तेमाल में हुआ. यह बताने के लिए कि देखिए सरकार ने SC-ST-OBC को रिजर्वेशन देकर हम ऊंची जात वालों का क्या हाल कर दिया है कि हमारे सामने ऐसा गंदा काम करने की नौबत आ गई है.
झाड़ू का तीसरा इस्तेमाल केजरीवाल ने किया है.
झाड़ू जिनकी मजबूरी नहीं है, वे उसका बहुत "क्रिएटिव" इस्तेमाल करते हैं. है कि नहीं?
सामाजिक-राजनीतिक सिंबल के तौर पर झाड़ू का इस्तेमाल पहले भी एक बार हुआ है. झाड़ू से उन्हें काफी पुराना प्यार है. आरक्षण विरोधी आंदोलन में रेल ट्रैक पर झाड़ू लगाते इंजीनियरिंग और मेडिकल स्टूडेंट्स की तस्वीर. वर्ष -2006
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Aam Aadmi Party
The #AAP government in Delhi will get CWG scam investigated.
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आम आदमी पार्टी दिल्ली में हुए कॉमनवेल्थ गेम घोटालों की जांच कराएगी. — with Kaushik K Roy Chowdhury and 2 others.
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Official website of Aam Aadmi Party -www.aamaadmiparty.org
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With the Lok Sabha elections just months away, the Aam Aadmi Party held its two-day National Executive meeting in Delhi to launch itself at the national level. AAP ideologue Yogendra Yadav said the party will conduct a membership drive from January 10 to engage the 'aam aadmi' in their campaign. The membership drive will be carried on till January 26, he said.
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"Any person from across the country can put in the application at the district level. All applications will be screen...See More
Aam Aadmi Party shared a link.
Delhi government on Friday announced that it would be opening 100 new night shelters across the city over the next few days with a view to provide relief to the homeless from the biting cold.
Urban Development Minister Manish Sisodia: "At some places, the SDMs found more than 100 homeless in flocks... at some places, 30-40 people, while at many others, they found 15 to 20 people who were without shelter. Of these 212 locations, we have found that we need to provide shelters at 100 places. Some of the night shelters will be bigger, accommodating 100 to 300 people. Such shelters will be opened near hospitals, railway stations and bus terminuses."
100 new night shelters to be opened for homeless: Sisodia
Jagadishwar Chaturvedi
'आप 'पार्टी की दिल्ली विजय और आगामी लोकसभा चुनाव लड़ने की घोषणा ने टीवी चैनलों पर मोदीउन्माद को कम कर दिया है ।
दूसरी ओर भाजपा की दो दलीय चुनाव रणनीति को नष्ट कर दिया है ।
आगामी लोकसभा चुनाव को दो दलीय राजनीतिक ध्रुवीकरण में तब्दील करने की कोशिशों को 'आप 'के राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव में कूदने से बुनियादी अंतर आया है । ख़ासकर युवाओं में भ्रष्टाचार विरोधी ईमेज को वोट में तब्दील करने की मोदी की कोशिशों को इससे धक्का लगा है ।
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Palash Biswas सहमत
Jayantibhai Manani shared पी एन बैफलावत's photo.
जयपाल सिंह मुंडा का जन्म का जन्म 3 जनवरी 1903 को झारखंड राज्य के जिला रांची के उपखंड खूंटी के रेमोटे तपकारा गाँव में हुवा था. तपकारा गाँव में अधिकांश मुंडा लोग रहते है जो इसाई है. प्रारंभिक शिक्षा गाँव के चर्च में हुई उसके बाद सेंट पाल्स स्कुल रांची गए..
जयपाल सिंह प्रतिभाशाली छात्र थे बहुत कम उम्र में उनमे अदभुत नेतृत्व क्षमता पनप चुकी थी मिशनरीज इस क्षमता और प्रतिभा को पहचानकर उन्हें उच्च शिक्षा के लिए ऑक्सफ़ोर्ड युनिवेर्सिटी इंगलैंड भेज दिया गया. मुंडा जी ऑक्सफ़ोर्ड युनिवेर्सिटी इंगलैंड की हाकी टीम के सद्श्य बन गए..
वे सविधान सभा के सद्श्य भी बने सविधान की पाचवी और छठी अनुसूची व आदिवासियों के लिए अन्य प्रावधान उनके सहयोग से ही बनाये गए उन्होंने सविधान में आदिवासी शब्द को जुडवाने के लिए भी भरपूर कोशिश की पर सफलता नहीं मिली.
सविधान सभा की बैठक में आदिवासियों के अधिकारों पर मजबूती से पक्ष रखा. संविधान सभा में जयपाल सिंह मुंडा जी ने कहा था की "मैं भी सिंधु घाटी की सभ्यता की ही संतान हूं. उसका इतिहास बताता है कि आप में से अधिकांश बाहर से आए हुए घुसपैठिए है. जहां तक हमारी बात है, बाहर से आए हुए लोगों ने हमारे लोगों को सिंधु घाटी से जंगल की ओर खदेड़ा. हम लोगों का समूचा इतिहास बाहर से यहां आए लोगों के हाथों निरंतर शोषण और बेदखल किए जाने का इतिहास है."
आजाद भारत में आदिवासी बुलंद आवाज !!! जन्म दिन पर हार्दिक नमन !! जयपाल सिंह मुंडा का जन्म का जन्म 3 जनवरी 1903 को झारखंड राज्य के जिला रांची के उपखंड खूंटी के रेमोटे तपकारा गाँव में हुवा था | तपकारा गाँव में अधिकांश मुंडा लोग रहते है जो इसाई है | प्रारंभिक शिक्षा गाँव के चर्च में हुई उसके बाद सेंट पाल्स स्कुल रांची गए After initial schooling at the village church school, Jaipal Singh shifted to St.Paul's School, Ranchi run by the Christian Missionaries of the SPG Mission of the Church of England. A keen and gifted field hockey player,जयपाल सिंह प्रतिभाशाली छात्र थे बहुत कम उम्र में उनमे अदभुत नेतृत्व क्षमता पनप चुकी थी मिशनरीज इस क्षमता और प्रतिभा को पहचानकर उन्हें उच्च शिक्षा के लिए ऑक्सफ़ोर्ड युनिवेर्सिटी इंगलैंड भेज दिया गया | मुंडा जी ऑक्सफ़ोर्ड युनिवेर्सिटी इंगलैंड की हाकी टीम के सद्श्य बन गए . The hallmark of his game a s a deep defender were his clean tackling, sensible gameplay and well directed hard hits. He was the most versatile player in the Oxford University Hockey Team. His contribution to the University Hockey Team was recognized and he became the first Indian student to be conferred "Oxford Blue" in Hockey. In 1928, while he was in England, Jaipal Singh was asked to captain the Indian Hockey Team for the Amsterdam Olympics, 1928. Under Jaipal Singh's captaincy the Indian team played 17 matches in the League Stage of which 16 were won and one drawn. Due,however, to an unfortunate incident of tiff with the English Team A.B.Rossier, Jaipal Singh left the Team after League phase and therefore could not play in the games in the knockout stage. In the final, the Indian Team defeated Holland by 3-0. On returning to India, Jaipal Singh was associated with Mohan Bagan Club of Calcutta, where he started the Hockey Team of the Club in 1929. He led its hockey team in various tournaments. After retirement from active hockey, Jaipal Singh served as Secretary of Bengal Hockey Association and as a member of Indian Sports Council. वे सविधान सभा के सद्श्य भी बने सविधान की पाचवी और छठी अनुसूची व आदिवासियों के लिए अन्य प्रावधान उनके सहयोग से ही बनाये गए उन्होंने सविधान में आदिवासी शब्द को जुडवाने के लिए भी भरपूर कोशिश की पर सफलता नहीं मिली | सविधान सभा की बैठक में आदिवासियों के अधिकारों पर मजबूती से पक्ष रखा | संविधान सभा में जयपाल सिंह मुंडा जी ने कहा था की " मैं भी सिंधु घाटी की सभ्यता की ही संतान हूं। उसका इतिहास बताता है कि आप में से अधिकांश बाहर से आए हुए घुसपैठिए हैं। जहां तक हमारी बात है, बाहर से आए हुए लोगों ने हमारे लोगों को सिंधु घाटी से जंगल की ओर खदेड़ा। हम लोगों का समूचा इतिहास बाहर से यहां आए लोगों के हाथों निरंतर शोषण और बेदखल किए जाने का इतिहास है।''
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Pushya Mitra
यह क्योंकर हुआ कि एक तरफ राहुल गांधी नियमगिरी के आदिवासियों को कहते थे कि फिक्र मत करो दिल्ली में तुम्हारा अपना आदमी बैठा है और चिदंबरम झारखंड-छत्तीसगढ़ और ओड़िशा के जंगलों में आपरेशन ग्रीन हंट चलाते थे. ऐसा क्यों होता रहा कि एक तरफ भोजन के अधिकार की गारंटी के कानून बनते रहे और दूसरी तरफ सिलेंडर का कोटा तय होता रहा. क्यों एक तरफ भूमि अधिग्रहण कानून बन रहा था और दूसरी तरफ नगड़ी, चुटका, सिवनी मालवा और नियमगिरी में जमीन पर हक के लिए लड़ाइयां लड़ी जा रही थी. क्यों एक तरफ लोकपाल कानून बन रहा था और राहुल गांधी भ्रष्टाचार को मिटाने की बात कर रहे थे और दूसरी तरफ महाराष्ट्र विधानसभा आदर्श घोटाले की जांच को खारिज करने में जुटी थी. यह द्वंद्व 2008 के बाद के यूपीए की पहचान है और परमाणु करार की देन है, जिसे माननीय मनमोहन सिंह की अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं. और कहीं न कहीं परमाणु करार की सबसे बड़ी उपलब्धि वाम दलों से यूपीए का छुटकारा और कॉरपोरेट को लूट की खुली छूट मिलना ही है.
हजारों ख्वाहिशें ऐसी: यूपीए 2004-2014 (चार स्टार-दो स्टार= दो स्टार)
ये आरजू भी बङी चीज है मगर हमदम, विसाल ए यार फकत आरजू की बात नहीं
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Diwakar Ghosh and 7 others like this.
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Ravi Shankar Singh थान लेकर गज़ देना इनकी पुरानी आदत है ……
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Pushya Mitra थोड़ी अलग कथा है भाई, समय हो तो पढियेगा... Ravi Shankar Singh
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Ravi Shankar Singh इतना तो तय है की कोई कमजोर कड़ी लग गयी है पहले धड़े के प्रमुख की, दुसरे धड़े के हाथ !
2013: Another Year Of Slaughter In Iraq Claims The Lives Of At Least 21 Media Professionals
By Dirk Adriaensens
http://www.countercurrents.org/adriaensens040114.htm
In Iraq , at least 404 media professionals have been killed since the US invasion in 2003, among them 374 Iraqis, according to The B Russell s Tribunal statistics. The impunity in Iraq is far worse than anywhere else in the world. None of the journalist murders recorded in Iraq in the past decade has been solved. Not a single case of journalists' killings has been investigated to identify and punish the killers
Will Lebanon Survive 2014? Should It?
By Franklin Lamb
http://www.countercurrents.org/lamb040114.htm
Another week, another terrorist bombing. It's beginning to look a lot like that here in Lebanon these days. Another apparent suicide bomber detonated a car rigged with explosives in the southern suburbs yesterday killing at least five people and injuring at least 77. The health ministry released a statement just a short while ago reporting that an additional 67 people were treated in hospitals for wounds and released, while 10 people remained hospitalized with more severe injuries
Top 10 Proofs People Can Be Completely Manipulated Without Hypnosis
By David Swanson
http://www.countercurrents.org/swanson040114.htm
People have been dying since before recorded history, and yet only those who pretend to believe nobody dies can be considered serious, honest, upstanding folk. That there's another longer life helps us not worry so much about getting screwed during this one. Perhaps it also helps us in allowing our "representatives" to routinely end the lives of so many foreign, and thus ignorant, people
The Ambani Car And The Immunity For The Privileged
By Vidyadhar Date
http://www.countercurrents.org/date010413.htm
The fact is that the rich and arrogant are playing havoc on our roads. But a concerted effort is made by the car lobby to blame pedestrians. A short film shown by a prominent TV channel during the current safety week showed a pedestrian coming under the wheels of a car allegedly because of his own fault
Child Abuse At The Vavuniya Children's Home And The Lack Of
Prudent And Independent Action By Governmental Institutions
By Women's Action Network
http://www.countercurrents.org/wan040114.htm
At a time when the Sri Lankan government claims to be on a path of peace and development post war and calls Sri Lanka the wonder of Asia in international forums, it is imperative that the violence that is taking place against women and children is stopped, especially violence against women and children from minority communities
Weeding A Field: The Importance Of Self-Examination
By Maulana Wahiduddin Khan
http://www.countercurrents.org/mwk040114.htm
This weeding of a field is what every individual should do with regard to his own self. In the terminology of the Islamic law or shariah, this is called muhasabah. As in a field where crops grow along with weeds, whenever one obtains something good, along with it a 'weed' begins to grow, all on its own, from inside. It is important to be aware of the presence of this 'weed' and to remove it from inside oneself and throw it away. If you do not do this, you will face the same predicament as a field that is left without being weeded
Jignesh Mevani
http://www.truthofgujarat.com/upper-class-upper-caste-rule-modi-trying-crush-safai-workers-struggle/
Himanshu Kumar
आज अपने साथियों के साथ मलकपुर राहत शिविर जा रहा हूँ .
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Rajiv Nayan Bahuguna, Uday Prakash, Ashutosh Kumar and 137 others like this.
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Meherzaman Khan अपने ही मुल्क मे शरणार्थियो की तरह रहना सिर्फ इस कारण के आपके धार्मिक विश्वास मुझसे अलग हो.... बेहद शर्मनाक है..... ये घटनाये इस बात की गवाह है कि आज भी मानव इक हिसंक प्राणी ही है और सिर्फ़ कानून का भय ही उसे सभ्य बनाता है... जब ये आधार कमज़ोर होता है तब वह अपने मूल स्वरुप मे आने का प्रयत्न करता है
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Shabbir Husain Qureshi यू.पी. में सपा के सभी मुस्लिम विधायको को पार्टी से इस्तीफा देकर अखिलेश सरकार को गिरा देना चाहिए !
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Harnam Singh Verma Aap apna kaam karte rahiye. Baaki tow log dekh hi rahe hain
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Zubair Ahmed filth stay stay filth , if it is pushed under the carpet , stinks more .
The Upper Class-Upper Caste Rule of Modi trying to crush the Safai-workers struggle - Truth Of...
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Satya Narayan
तेलतुम्बडे यहाँ असत्य वचन का सहारा ले रहे हैं कि उन्होंने मार्क्सवाद और अम्बेडकरवाद के मिश्रण या समन्वय की कभी बात नहीं की या उसे अवांछित माना है। 1997 में उन्होंने पुणे विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग में एक पेपर प्रस्तुत किया, 'अम्बेडकर इन एण्ड फॉर दि पोस्ट-अम्बेडकर दलित मूवमेण्ट'। इसमें दलित पैंथर्स की चर्चा करते हुए वह लिखते हैं, "जातिवाद का असर जो कि दलित अनुभव के साथ समेकित है वह अनिवार्य रूप से अम्बेडकर को लाता है, क्योंकि उनका फ्रेमवर्क एकमात्र फ्रेमवर्क था जो कि इसका संज्ञान लेता था। लेकिन, वंचना की अन्य समकालीन समस्याओं के लिए मार्क्सवाद क्रान्तिकारी परिवर्तन का एक वैज्ञानिक फ्रेमवर्क देता था। हालाँकि, दलितों और ग़ैर-दलितों के बीच के वंचित लोग एक बुनियादी बदलाव की आकांक्षा रखते थे, लेकिन इनमें से पहले वालों ने सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तन के उस पद्धति को अपनाया जो उन्हें अम्बेडकरीय दिखती थी, जबकि बाद वालों ने मार्क्सीय कहलाने वाली पद्धति को अपनाया जो कि हर सामाजिक प्रक्रिया को महज़ भौतिक यथार्थ का प्रतिबिम्बन मानती थी। इन दोनों ने ही ग़लत व्याख्याओं को जन्म दिया। पैंथर्स को यह श्रेय जाता है कि पहली बार देश में उन्होंने इन दोनों विचारधाराओं के मिश्रण का प्रयास किया लेकिन बदकिस्मती से इन दोनों विचारधाराओं को अस्पष्ट प्रभावों से मुक्त करने के प्रयासों और उनके मिलनसार (नॉन-कॉण्ट्राडिक्टरी) सारतत्व पर ज़ोर देने के प्रयासों की अनुपस्थिति में यह प्रयास बीच में ही अवरुद्ध हो गया। न तो इन दोनों विचारधाराओं को समेकित करने का कोई सैद्धान्तिक प्रयास किया गया, और न ही जाति के सामाजिक आयामों को गाँव के परिवेश में भूमि के प्रश्न से जोड़ने जैसा कोई व्यावहारिक प्रयास किया गया।" अब पाठक ही बतायें कि तेलतुम्बडे जो दावा कर रहे हैं, क्या उसे झूठ की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए? क्या यहाँ पर 'अम्बेडकरीय' और 'मार्क्सीय' दोनों को 'अम्बेडकरवाद' और 'मार्क्सवाद' के अर्थों में यानी 'दो विचारधाराओं' के अर्थों में प्रयोग नहीं किया गया है? फिर तेलतुम्बडे यह आधारहीन और झूठा दावा क्यों करते हैं कि उन्होंने कभी 'अम्बेडकरवाद' शब्द का प्रयोग नहीं किया क्योंकि वह नहीं मानते कि ऐसी कोई अलग विचारधारा है? क्या यहाँ पर उन्होंने अम्बेडकर की विचारधारा और मार्क्स की विचारधारा और उनके मिश्रण की वांछितता की बात नहीं की? हम सलाह देना चाहेंगे कि तेलतुम्बडे के कद के एक जनपक्षधर बुद्धिजीवी को बौद्धिक नैतिकता का पालन करना चाहिए और इस प्रकार सफ़ेद झूठ नहीं बोलना चाहिए।
http://ahwanmag.com/archives/3376
जाति प्रश्न और अम्बेडकर के विचारों पर एक अहम बहस
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Rukhsana Maqsood
आम आदमी पार्टी के नेता योगेंद्र यादव ने बताया कि पार्टी 10 जनवरी से एक देशव्यापी अभियान शुरू करेगी, जिसका नाम होगा 'मैं भी आम आदमी'। इस अभियान में पार्टी लोगों से अपील करेगी कि आम आदमी पार्टी की सदस्यता ग्रहण करें
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Vivek Chauhan was tagged in Bharat Kamdar's photo.
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India Today
After Delhi victory, AAP declares to go national
After Delhi victory, AAP declares to go national : North, News - India Today
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Mamata Banerjee
I am very happy to share with all of you a landmark decision.
Essential medicines and available diagnostic services will now be provided free of cost to rural people in government run health centres and hospitals.
I am also happy to share with you that Bankura Medical College, Malda Medical College and North Bengal Medical College will soon be upgraded at an estimated cost of Rs.450 Crore and facilities of trauma care, specialized services on areas like oncology, nephrology, endocrinology, paediatric surgery and more will be provided.
This is in addition to the 35 Multi/Super-Specialty Hospitals that we are already building to boost the health infrastructure facilities in the state.
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Rajiv Nayan Bahuguna
" परान्न भोजी , चिर प्रवासी , परा वसन शायी
यावद्द्जिवेत , तावदमरणं , यन मरणं तन तस्य विश्रामम "
( दूसरों का दिया खाने वाला , घर से लम्बे समय तक दूर रहने वाला और दूसरों के द्वारा प्रदत्त वस्त्र पहनने और पराई शय्या पर सोने वाला , जब तक जीता है , तब तक मरता है , और जब सच में मर जाता है तो वह उसका विश्राम समझो ) . शास्त्र की यह उक्ति मुझ पर चरितार्थ होती है . मैं इसी लिए स्वयं को "छुट्टा पत्रकार " कहता हूँ . दिन का भोजन शायद ही कभी अपने घर पर करता हूँ . जहाँ सींग समाये , वहां चलाजाता हूँ . अक्सर मेरा दिन का भोजन अपने मामा विद्या सागर नौटियाल के घर पर होता है . लेकिन वहां जाने का मौक़ा न मिला तो लंच टाइम पर कहीं भी चला जाता हूँ . जब गृह स्वामिनी मुझे चाय के लिए पूछती है , तो तपाक से कहता हूँ की अब तो सीधे कहीं जाकर खाना ही खाऊंगा . झक मार कर उन्हें मेरे लिये खाना लगाना ही पड़ता है . जब तक न खिलाया , तब तक वहां से हिलता नहीं . एक आध बार भीतर जाकर यह भी चेक कर लेता हूँ , घर देखने के बहाने , की कहीं वह चोरी छुपे अपने पति तथा बच्चों को खिला तो नहीं रही ? महीने में पन्द्रह दिन के आस पास तो प्रवास पर रहता हूँ . एक बार घर से बाइक लेकर सब्जी लेने निकला , और काठमांडू पंहुच गया . पंद्रह दिन बाद लौटा . पिछले अठारह वर्षों से शायद ही कभी स्वयं के लिए वस्त्र खरीदे हों . कोई मुझे किसी कार्यक्रम या व्याख्यान के लिए बुलाता है , तो एक जोडी कपडे पहन कर जाता हूँ , और आयोजक से कह देता हूँ की मैं जल्दी में कपडे नहीं ला सका . अब वह भला क्यों चाहेगा , की उसका अतिथि मैले कपडे पहन कर भाषण दे . खरीद लाता है . इसी लिए मेरे पास भाँती - भाँती की वस्त्र संपदा है . ईश्वर मेरी आत्मा को शान्ति प्रदान करे
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Surendra Grover, Sudha Raje, Mohan Shrotriya and 91 others like this.
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ProfSurendra Kala वाह उच्चकोटि की जीवन शैली है-इसे यदि कोई नाम दे तो यह है फक्कड़ मस्ती और जिंदादिली की जीवन शैली. बहुत बहुत आशीर्वाद. घुमंतू जीवन बड़े बिरलों को ही नसीब होता है.
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2 hours ago · Like · 4
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Pushpa Joshi आजकल अधिकतर लोगों पर यह उक्ति चरितार्थ होती ,कुछ ही भाग्यहीन अछूते हैं(बेचारे)
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Tara Singh Chuphal kumauni main khavat hai ser'klyo bevaiki gyo kvas khani ai' arthat beej lane bheja to phaliyan khate hu aya'
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39 minutes ago via mobile · Like
Shewli Hira
MaR jhharu mar
Tradus posted an offer.Get Offer
Rs.5 for Aam Aadmi Ki Jhadu. Celebrate the Birth of new Corruption Free Delhi!
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Rajiv Nayan Bahuguna
जाको हरि दारुण दुःख देहीं
वाकी मति पहले हरि लेंहीं
उत्तराखंड के अवांछित मुख्य मंत्री विजय बहुगुणा को हटाने की तैयारी कर लेने के बाद भी कांग्रेस के आकाओं ने , अज्ञात कारणों से उन्हें उत्तराखंड की प्राकृतिक वन तथा जन संपदा को प्रताड़ित करने के लिए विद्यमान रखा है . इससे यही प्रतीत होता है कि कांग्रेस आला कमान को यहाँ की पाँचों लोक सभा सीटों पर ज़मानत ज़ब्त करवाने में सघन रूचि है
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Surendra Grover, Sudha Raje, Mohan Shrotriya and 69 others like this.
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Pardeep D Raturi Shubh samachar
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6 hours ago via mobile · Like · 1
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Surendra Singh Kandari भैजी ताबूत में आखिरी कील ठोकने के लिए बंगाली ही चाहिए हाई कमान को
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K.d. Kandwal फ्री का चन्दन घिस मेरे नन्दन l फोकट का मॉल खाए भांजे राजा l ऊपर से शक करे कि मामी कहीं अपने स्वामी और बच्चों को उस्से छिपाकर तो नहीं खिला रही और उसके खाने में कहीं जहर तो नहीं मिला रही l
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ProfSurendra Kala होई हैं वही जो -----रूचि राखा.
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Surendra Grover
कुछ मित्रों को परेशानी है कि मैं रोजाना तीन वक्त खाना खाता हूँ.. धोबी का गधा भी तब तक ही काम करता है जब तक धोबी उस पर बोझ लाद उसे हांकता है.. पर यहाँ तो हालत ऐसी है कि हमें हर वक़्त अपने ग्राहकों को सपोर्ट देने के लिए मुस्तैद रहना पड़ता है.. कई कॉल सेंटर हमारे दिए सर्वर्स पर चलते हैं.. जिसे ज़रा सी दिक्कत होती है, भागे चले आते हैं कि यह दिक्कत हो गई.. अब दिक्कत भले ही उनके खुद के कारण पैदा हुई हो.. पर हम सिर्फ इसलिए उनकी दिक्कत दूर करते हैं कि हमारा ग्राहक है, उसकी परेशानी दूर करनी चाहिए.. इस चक्कर में दिन हो या रात हर समय काम करते रहते हैं.. अपनी इसी आय का करीब पच्चीस प्रतिशत मीडिया दरबार पर भी खर्च करते हैं..
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Anita Bharti
http://epaper.prabhatkhabar.com/c/2170098
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गंगा सहाय मीणा, Sanjay Kumar, Pushya Mitra and 58 others like this.
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Farook Shah यथार्थ चिंता प्रस्तुत करता लेख.
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Arjun Savedia perfect chintan "wakai saman avsar dene ki jarurat he. achchha ho ki Kejariwal heh samajen. BHAVTU SABB MANGLAM.
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Ramesh Kumar This is only possible if all schools are nationalized .No separate schools for rich .Read my book "The War of Book "The war of Middle Class" how to implement since school mafia wont allow such laws.https://www.facebook.com/.../Book-The-war.../532228386819095
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Since the inception of US economic meltdown in 2008, there has been a growing fe...See More
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Ramesh Kumar https://www.facebook.com/.../Book-The-war.../532228386819095
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Since the inception of US economic meltdown in 2008, there has been a growing fe...See More
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Uday Prakash
यह मान लेने में शायद कोई हर्ज़ नहीं है कि नेहरू परिवार या 'नेहरू डाइनेस्टी' के किसी सदस्य ने अभी तक अपनी ओर से प्रधानमंत्री बनने में कोई साफ़ दिलचस्पी नहीं दिखाई है. ऐसी कोई आधिकारिक घोषणा भी कांग्रेस पार्टी की ओर से अभी तक नहीं हुई है.
यह मान लेने में भी कोई हर्ज़ नहीं है कि सोनिया गांधी, राहुल गांधी या प्रियंका गांधी में से यदि कोई ऐसा इरादा करे तो फ़िलहाल, २०१४ के चुनाव परिणाम सामने आने तक इसमें कोई अड़चन नहीं है. अगर अतीत में तेरह दिन या चालीस दिन वाले भी प्रधानमंत्री हो सकते हैं, तो अभी पांच महीने का सत्ता-सुख कम आकर्षक नहीं है. सोनिया गांधी अगर चाहतीं तो नौ साल पहले ही प्रधानमंत्री बन चुकी होतीं. या अगर राहुल गांधी चाहते तो 'पप्पू' होने का खिताब हासिल करने के बावज़ूद, पांच साल पहले यह कुर्सी पा सकते थे. अभी भी पा सकते हैं.
मैं कोई राजनीतिक व्यक्ति तो नहीं हूं, लेकिन ऐसी कोई उदग्र आकांक्षा फ़िलहाल मुझे नेहरू-गांधी परिवार की ओर से दिखाई नहीं देती. अभी तक सिर्फ़ बीजेपी ने ही नरेंद्र मोदी को अपना पी.एम. का उमीदवार घोषित किया है और अपनी समूची ताकत इसमें झोंक दी है. यह भी याद आता है कि 'ज़ीरो' से राजनीति शुरू करने वाले राजीव गांधी को भी परिस्थितियों ने ही प्रधानमंत्री बनाया था और अपनी मां, इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजे 'सहानुभूति की लहर' पर सवारी कर के वे सत्ता में आये थे. अपनी पत्नी सोनिया गांधी की स्पष्ट अनिच्छा के बावज़ूद. लेकिन अपनी मां की तरह ही वे भी राजनीतिक हिंसा के शिकार हुए और अपनी जान गंवा बैठे.
मनमोहन सिंह के रिटायर होने की घोषणा के बाद शायद अब भी इस परिवार के भीतर इस पद पर अपने किसी सदस्य का दावा पेश करने के बारे में असमंजस होगा. भले ही दस जनपथ या चौबीस अकबर रोड के उनके सभासद इसका मनुहार करें. भ्रष्टाचार, महंगाई, चौतरफ़ा असफलता और हाल के चुनावों में सफ़ाये की ओर बढ़ते जर्जर कांग्रेस के डूबते जहाज का कप्तान बनने का साहस नेहरू-गांधी परिवार में से शायद ही किसी को होगा. (बडेरा के बारे में कुछ कह नहीं सकते.)
राहुल गांधी के इरादे कांग्रेस और उसके साथ-साथ देश के हालात दुरुस्त करने के बारे में नेक हो सकते हैं लेकिन वे आम जनता के लिए स्वीकार्य नहीं हैं. उनमें वह लोकप्रिय करिश्माती अपील नहीं है, जो किसी ज़माने में उनकी दादी इंदिरा गांधी में होती थी. अपनी टूटी-फूटी हिंदी किसी कदर बोल पाने में सफल हो पाने वाली उनकी मां सोनिया गांधी में भी एक कोई पाप्युलर करिश्मा था, जिसके बलबूते उन्होंने दो बार कांग्रेस के विरोधियों को पराजित किया. अब वे भी बीमार हो चुकी हैं. आज की तारीख़ में कांग्रेस के भीतर कोई ऐसा नहीं है, जिसे २०१४ के चुनावों में प्रधानमंत्री के पद के लिए उतारा जा सके.
ऐसे में एक सबसे बड़ा विकल्प यही है कि सांप्रदायिकता के नये राजनीतिक उभार को थाम लेने के लिए कांग्रेस राजधानी दिल्ली के ही माडल को अखिल-भारतीय माडल के बतौर स्वीकार करे.
यानी दिल्ली के मुख्यमंत्री को ही भारत का अगला प्रधानमंत्री मान कर २०१४ का चुनाव लड़े. ऐसे में यह 'पहले' और 'तीसरे' मोर्चे की अपूर्व एकता होगी.
और 'दूसरा मोर्चा' यानी एन.डी.ए. दिल्ली की तरह ही मुंह की खायेगा.
(हा ... हा ...हा ...! लेकिन क्या ऐसा हो सकेगा ? शायद नहीं . फिर भी ऐसा सोचने में क्या जाता है ? है ना ? अब 'सिस्टम' को सुधारने की बात सोचने का हक तो हर नागरिक को तो होता ही है.)
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Sudha Raje, Avinash Das, Mohan Shrotriya and 138 others like this.
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Chandramohan Jyoti आपका सोचना कतई गलत नहीं है उदय जी। वर्त्तमान परिस्थिति जन्य घटनायें ये बता रही हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव में घमासान मोदी और ''आप'' के ही बीच होने वाला है। कांग्रेस-बीजेपी-आप के बीच नहीं। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जो जन सहानुभूति के चलते जो गलती राजी...See More
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2 hours ago · Like · 1
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Uday Prakash हां, कुछ-कुछ ऐसा ही लगता है.
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2 hours ago · Like · 1
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Uday Prakash वैसे आज Prakash K Ray जी ने एक 'लिंक' शेयर किया है. बहुत अर्थपूर्ण और किसी सलाह या चेतावनी जैसी है.
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Rakesh Narayan Dwivedi केजरीवाल पर कांग्रेस गठबंधन के बाद कुछ संशय बढ़े हैं, इस सुझाव के लागू होने के बाद तो केजरीवाल की साख भी जाती रहेगी ।।
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53 minutes ago via mobile · Like · 1
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Palash Biswas संवाद समाहित।
Faisal Anurag and 2 other friends shared a link.
नमो के डेढ़ सौ करोड़ के दफ्तर की खबर हटाई टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने..मीडिया दरबार « मीडिया दरबार
कॉरपोरेट्स से मीडिया के रिश्तों की ख़बरें पुरानी पड़ चुकी हैं. अब तो मीडिया और नरेन्द्र मोदी के बीच पक रही खिचड़ी सामने आ रही है. इसकी बानगी मिलती है टाइम्स ऑफ़ इ
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Faisal Anurag
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यह है भाजपा की सादगी और असलियत
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://mediadarbar.com/25485/toi-removed-news-of-new-office-of-narendra-modi/
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Like · · Share · 824 · 3 hours ago ·
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Sheeba Aslam Fehmi
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Be-imaan media !
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Like · · Share · 2226 · 20 hours ago ·
लोकशाही रमतूला
January 5, 2014 at 8:59am
Sudha Raje
भारतीय जन मानस के लोक मिथक के
अनुसार बङहनिया झाङू
बुहारी आदि को लक्ष्मी यक्षिणी मानक
पाँव नहीं लगाते और गृहिणी सबसे पहले
झाङू लगाकर ही चाय पानी पीती है ।
तो क्यों नही चेत जाते बाकी दल कि अब
हिंदू मुसलिम दलित सवर्ण और
पूँजी मजदूर की खाईयाँ खोदने की बजाय
कर्मठ और ईमानदार प्रशासन देने के
प्लान को जनता के सामने रखें ।
माननीयगण याद रखें अब
जनता इंटरनेशनल लेबल की नॉलेज
रखती है और नेताओं की पूरी भीङ से
अधिक जीनियस और पढ़े लिखे लोग भीङ
वोटर और गली मुहल्ले में मौजूद हैं ।
कब सुधरोगे?
तो
2014के लिये जाति धरम से ऊपर
क्या एजेण्डा ला रहे हैं माननीय??
©®सुधा राजे
Thursday at 10:41am
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You, Anurag Tiwari and 26
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निरुपमा मिश्रा
2014के लिये जाति धरम से ऊपर
क्या एजेण्डा ला रहे हैं माननीय??,,,,
अपरिहार्य प्रश्न ,,,,
Unlike · 1 · Delete · Thursday at
9:53pm
Richa Srivastava
बिलकुल सत्य..
Unlike · 2 · Delete · Thursday at
9:58pm
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Sudha Raje and 7 others like this.
Lenin Raghuvanshi
New year brings many challenges such as sustainability of PVCHR and my own health. Malfunction of liver,increase of cholesterol and slight increase of blood pressure are new challenge in front of my health.We shall overcome someday.
Like · · Share · Yesterday at 10:02am ·
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Shirin Shabana Khan, Shruti Nagvanshi, Pradeep Esteves and 28 others like this.
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Pradeep Esteves Do take care Lenin... all the best..
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13 hours ago · Like · 1
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Lenin Raghuvanshi Thanks for wishes and advices. I felt very relax and BP went down from high.Most important I started to focus on my health with all my discipline.
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5 hours ago · Like · 2
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Manav Adhikar Ashram yes, its right.
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5 hours ago · Like · 1
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Gangi Reddy take care and serve to community long live
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4 hours ago · Like · 1
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Palash Biswas पहले ्पनी सेहत सुधारिये।पीवीसीआर की चिंता वाजिब नहीं है।
Surendra Grover
Sanjay Garg जी, क्या यही है आपका आदर्श, जो गुजरात के विकास मॉडल के सहारे देश को नए विकास पथ पर अग्रसर करना चाहता है..? इसी व्यवस्था की हिमायत कर रहे हो आप..? यदि यह व्यवस्था पूरे देश में नहीं फैली तो फिर से गुलाम हो जायेगा यह देश..?
http://www.youtube.com/watch?v=shukXgZHY50
प्राइम टाइम : गुजरात बनाम गुजरात
Like · · Share · 16 hours ago near New Delhi ·
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8 people like this.
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Gulshan Kumar वास्तव में गुजरात "मॉडल" नायाब है पर समस्या ये है कि इसपर केवल मोदी और बीजेपी ही गर्व कर सकते हैं.
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5 hours ago · Like · 2
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Sanjay Garg ग्रोवर साहब आदर्श तो नहीं कह सकते क्योकि मोदी की शैली में भी कई खामियां है !लेकिन आज यदि सबसे बेहतर उम्मीदवार के हिसाब से देखते हैं तो मुझे मोदी से बेहतर कोई नजर नहीं आता ! कांग्रेस ने भ्रष्टाचार ही नहीं किया वल्कि गलत नीतियों से देश को तबाह किया है अब...See More
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4 hours ago · Like · 2
Surendra Grover
फेसबुक पर पनपी कुछ प्रवृतियों की बानगी जानिए...
http://www.storypick.com/ultimate-list-21-types-of-facebook-friends-everyone-has/
The Ultimate List - 21 Types of Facebook Friends Everyone Has
Like · · Share · 36 minutes ago ·
Alok Putul
http://cgkhabar.com/loksabha-election-announce-20140104/
Like · · Share · 22 hours ago ·
TaraChandra Tripathi
हमारा समाज भी क्या है? भ्रष्ट और शक्तिशाली के लिए क्षमाशील और जो सही रास्ते पर चाह्ता है, उसके पावों की विचलन को भी मिलीमीटर में नापता है. प्रतीक्षा करता है कि उसका पाँव जरा सा विचले और उस पर शब्दों की लाठी बरसाने का मौका मिले.अनाचारी भी अपनी पत्नी को परफेक्ट सती देखना चाहता है. उसके आचरण की माइक्रोस्कोपिक जाँच करने में पीछे नहीं रहता. . यही हाल हमारे राजनीतिक दुश्शासनों का भी है.
अपने करम जैसे भी हों दूसरे को सन्त होना चाहिए.
Like · · Share · 211 · 5 hours ago ·
Pankaj Chaturvedi
ताजे ताजे केजरीयापा से ग्रस्त कुछ घर बैठ कर क्रांति करने वाले अब उन सबकों गरिया रहे हैं या उन्हें भाजपाई कह रहे हैं जिन्होंने केजरीवाल के बंगले वाले मामले में चुटकी ली थीा सीधी सीधी बात यदि वह मकान लेना सही था तो खुद केजरीवाल उस नर्णिय को बदलते नहींा वे अन्य किसी की आलोचना से घबराने वाले इंसान तो हैं नहीं जब तक उन्हें नहीं लगे कि कुछ गलत है वह अपने फैसले बदलते नहीं हैंा हालांकि मेरा निजी खयाल है कि केजरीवाल को भगवानदास रोड वाला डूपलेक्स लेना चाहिए, अपने लिए नहीं, दिल्ली के मुख्यमंत्री केलिए ा उनके पास देश विदेश के महमान आएंगे, समर्थक, बिंतवार आएंगे, उन सबके लिए माकूल जगह साथ में ही काम करने का माहौल होना चाहिएा हां उन्हें अब समझ लेना चाहिए कि बेवजह की लफफाजी व गाली गालौच से सरकारें नहीं चलतीं , वरना वे अपने पूरे कार्यकाल में बस आलेाचना ही सुनते रहेंगे
Like · · Share · 8 hours ago near Sahibabad ·
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Jagadishwar Chaturvedi, Himanshu Kumar, प्रेम जनमेजय and 87 others like this.
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Mahendra Yadav बंगले और सुविधाओं का मामला इन्होंने ही उठाया था, वरना सरकारी मकान और सुविधाओं के औचित्य पर कब सवाल उठाया गया ?
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3 hours ago via mobile · Like · 1
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Gyanendra Pandey Sahi kaha prabho !
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3 hours ago · Like · 1
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Ajay Aggarwal kejrwal ko sab chor kar Rozgar Roti Uplabd karni chahiye bekar ke mamle ko tul dene se Labh nahi h
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2 hours ago · Like · 1
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Chandra Bhushan Pandey i agree with your suggetion
Pankaj Chaturvedi
असल में अरविंद केजरीवाल एक व्यक्ति नहीं हैं, वे हमारी समूची व्यवस्था विधायाी, कार्यकारी के प्रतीक बन गए हैंा 45 साल से कम उम्र का एक आला अफसर जिसकी मासिक आय - पत्नी की मिला कर - एक लाख से उपर मासिक हो, फिर भी वह आम आदमी कहलाए- इतनी मेहनत व औसत जिंदगी जीने के बावजूद अपने साथ उच्च रक्तचाप व डायबीटिज की बीमारी रखे होा जिसके पास पूरी दिल्ली की सत्ता हो और वह अपनी मर्जी से रह तक नहीं पाता हो, जिसके तहत सैंकडो डाक्टर अस्पताल आते हों व खुद की खांसी तक नहीं ठीक करवा पाता हो ा यह हमारी व्यवस्था का प्रतीक चिन्ह है
Like · · Share · 2 hours ago near New Delhi · Edited ·
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Pushya Mitra, संजय महापात्र, Shiv Deshwal and 55 others like this.
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Raghavendra Narayan mahatma gandhi bhi aam kaha the sir ji aam aadmi naam rakh lene se log aam nahi ho jate rahi baat high BP ki to wo to mahatma gandhi ko bhi thi.
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about an hour ago via mobile · Like · 1
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Neel Kamal पंकज जी व्यक्ति की आलोचना से उसकी बीमारियों को अलग रखा जाए । खुदा न करे ये आपको हमको किसी को कभी भी लग सकती है और यकीन मानिए इन्हें ठीक करवा पाना हमेशा अपने वश में नहीं होता …
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about an hour ago via mobile · Like · 2
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Nirupama Agarwal Vyavastha badlna alag baat h use ek ek kadam jama kr sudharna alag
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50 minutes ago via mobile · Like
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8 minutes ago via mobile · Like
Musafir D. Baitha
वाम और अम्बेडकरवाद के 'पूजक' लोग भी जब 'शुभकामना', 'आशीर्वाद' की दक्षिणी-खेती करते पाए जाते हैं तो....!
Like · · Share · 7 hours ago ·
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गंगा सहाय मीणा, Ashok Dusadh, Faisal Anurag and 19 others like this.
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Buddhi Lal Pal Aisa to nahi ki mayavati dalit se sawarn hoti gai aur vp sawarn se dalit hota gaya..?
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3 hours ago via mobile · Like
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Subhash Chandra Kushwaha नमस्ते की तरह ही शुभकामना देने की संस्कृति बिना किसी धार्मिकता, आग्रह और अनुग्रह के होती है यह कोई आपत्ति की बात नहीं . हाथ मिलाने , जयहिंद करने जैसा ही है. हाँ इसके पीछे कोई नीति, धार्मिक गति , आग्रह , अन्धविश्वास नहीं होना चाहिए . आख़िर हम आंबेडकर, मार्क्स के फोटो पर माला तो पहना ही देते हैं , यह जानते हुए की यह महज चित्र है . निर्जीव .
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2 hours ago · Like · 1
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Musafir D. Baitha सतर्कता रहनी चाहिए। शुभ अशुभ का फेरा धर्म-हदी है। बुद्धिवाद के साथ होने में किंचित बाधक! माला पहनना भी अन्धविश्वास है।
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पटना में राजेंद्र यादव की मृत्यु पर एक स्मरण-गोष्ठी हुई। इसमें न तो उनके चित्र पर माला डाली गयी न ही मौन रखकर उनकी कथित आत्मा को शांति दी गयी।
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विकारों-व्यर्थ के बाह्याचारों को भरसक तोड़ा छोड़ा जाए।
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2 hours ago via mobile · Edited · Like
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Buddhi Lal Pal Prachalit arth me sad-ichha subhkamna happy birth day shabdon me bahut jayada antar nahi..shabd dhwani me ek se hi hain....mujhe lagta hai baitha dwara subhkamna shabd ko daxini shabd kahne ke pichhe ka aashay shayad is tarah.. subhkamna me shubh shabd pahle hai aur shubh ka arth sanatani rup me swastik chinh shubh labh ke rup me hai..?
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about an hour ago via mobile · Edited · Like
Reuters India
Around 50 people were working at the site at the time and at least a dozen were trapped under the concrete, according to witness accounts cited in media reports.
Building collapse kills 11 in Goa, many feared trapped
Like · · Share · 2 · 21 minutes ago ·
Dilip C Mandal
कॉमनवेल्थ घोटाला हुआ ही नहीं था, तो पकड़ेंगे किसे और 70,000 करोड़ रुपए रिकवर करने का तो सवाल ही नहीं है. दिल्ली जल बोर्ड में भी कोई घोटाला नहीं हुआ था, और पुल वगैरह तो गिरते रहते हैं. पिछले 15 साल में दिल्ली में कोई घोटाला हुआ ही नहीं था. भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन तो मनोरंजन के लिए था. मतलब समझिए कि नुक्कड़ नाटक का रिहर्सल टाइप.
भ्रष्टाचार एक मानसिक विचार है. एक बौद्धिक विकार है. इसके लिए कोई अफसर, नेता, ठेकेदार, सप्लायर, कंपनी दोषी नहीं होती.
भ्रष्टाचार दूर करने के लिए योगा करना चाहिए और दिन में तीन बार जनलोकपाल जिंदाबाद, भारत माता की जय, वंदे मातरम और जय हिंद बोलना चाहिए.
इसके अलावा भ्रष्टाचार दूर करने के लिए कुछ चपरासी, सफाई कर्मचारियों, बस कंडक्टरों को सस्पेंड करना काफी होगा.
Unlike · · Share · Yesterday at 1:20pm ·
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You, Ajit Rai, Jayantibhai Manani, Udit Raj Ex Irs and 200 others like this.
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Bhupender Kumar Chaudhary Nice sir g,,Agreed with you
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Hans Raj Kabir Jab tak Mansikata nahi badlegi corruption ka end nahi hoga...
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15 hours ago · Like · 1
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Harshu Panwar Ekdammm sahi h shayad
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5 hours ago via mobile · Like
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तुषार भडके वंदे मातरम् - भ्रष्टाचार खतम
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3 hours ago via mobile · Like
गंगा सहाय मीणा
हम लोग विशेषज्ञों का एक ग्रुप बना रहे हैं जो 10 वीं के बाद विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा और कैरियर के बारे में मार्गदर्शन करे. हमें लगता है कि छोटे शहरों और कस्बों में युवा आगे की शिक्षा और नौकरी के बारे में बहुत कन्फ्यूज हैं. इस बारे में उनकी जानकारी भी बहुत सीमित होती है. उन्हें उचित मार्गदर्शन की जरूरत है. इसलिए हमारी योजना है कि हम तहसील मुख्यालयों पर स्कूल-कॉलेजों में जाकर विद्यार्थियों को आगे की शिक्षा और सही जॉब चुनने के लिए गाइड करेंगे. साथ ही ऑनलाइन भी हम यह काम जारी रखेंगे. क्या आप हमारी टीम का हिस्सा होना चाहेंगे? हमें आपमें से हर किसी की जरूरत होगी अपने कस्बे-शहर में.
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Jayantibhai Manani, Nomad's Hermitage, Musafir D. Baitha and 109 otherslike this.
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Naveen Raman सहमति. और साथ दोनों
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Marinder Mishra Ji bilkul. Svagatyogya pahal
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10 minutes ago via mobile · Like
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राकेश कुमार मीणा of course sir
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Shyam Sundar very nice job , can i help u.....
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Palash Biswas अति उत्तम।
Gladson Dungdung
In light of the allegations against TEHELKA founder and former editor-in-chief Tarun Tejpal, TEHELKA seems to have lost the credibility and high moral ground that it had achieved through its unique brand of journalism. It will be very unfortunate if an institution like TEHELKA is forced to close down because of one alleged incident of sexual assault. If that happens, India's Adivasis, who have been betrayed by the "mainstream" in almost every sphere of life, would be losing a rare friend among media organisations. That's a reputation TEHELKA has earned over the years through its indomitable coverage of issues concerning Adivasis and other marginalised sections of the society.http://www.tehelka.com/tehelka-is-the-only-voice-of-the-adivasis-in-new-delhi/
'TEHELKA is the only voice of the Adivasis in New Delhi' | Tehelka.com
Gladson Dungdung | Jharkhand-based Human Rights Activist
Like · · Share · 19 hours ago ·
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गंगा सहाय मीणा, Chittibabu Padavala and 19 others like this.
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Gladson Dungdung Manoj Praveen Lakra da I think you took it wrongly, I'v not said anything in support of Tarun Tejpal but its only about Tehelka.
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Rp Shahi Gladson, The media which is owned by creamy layer or owners of media who always want to grow money tree,. can never take up the cause of suppressed people. These issues are taken up to foll the mass and once circulation or TRP increases, he real motive...See More
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9 hours ago · Like · 5
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Viva Revolucinema What about Tehelka's open collaboration with companies that are displacing and killing Adivasi like Tata and Essar?
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8 hours ago · Like · 3
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Viva Revolucinema http://www.indiaresists.com/tehelka-stink2013-the.../
Satya Narayan
"आदमी का हृदय जब वीर कृत्यों के लिए छटपटाता हो, तो इसके लिए वह सदा अवसर भी ढूँढ लेता है। जीवन में ऐसे अवसरों की कुछ कमी नहीं है और अगर किसी को ऐसे अवसर नहीं मिलते, तो समझ लो कि वह काहिल है या फिर कायर या यह कि वह जीवन को नहीं समझता।"
-बुढ़िया इजरगिल
(मक्सिम गोर्की की कहानी 'बुढ़िया इजरगिल' की एक पात्र)
Unlike · · Share · 17 hours ago ·
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You, Hyder Ginwalla, Kalpesh Dobariya and 34 others like this.
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Sanjay Rawat मक्सिम गोर्की की कहानी में यदि ये लिखा है तो मैं सहमत नहीं हूँ.बिना अवसर के वीर कैसे छटपटायेगा. ये तो उस कहावत को झुटलाना है- का वर्षा जब कृषि सुखानी...............
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Suchhit Kapoor suder
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Rakesh Catalyst well said ever......
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2 hours ago via mobile · Like
Afroz Alam Sahil
मुज़फ़्फ़रनगर की यह न्यूज़ आपको किसी मीडिया में देखने को नहीं मिलेगी... अगर आप मुज़फ्फरनगर से ज़रा सा भी हमदर्दी रखते हैं तो यहां मुज़फ्फरनगर के असल गुनाहगारों की इस कहानी को ज़रूर पढ़े, और इसे अधिक से अधिक शेयर करें ताकि यह सच देश के हर नागिरक तक पहंच सके...http://beyondheadlines.in/2014/01/culprit-of-muzaffarnagar/
Like · · Share · 17 hours ago near New Delhi ·
Sudha Raje
बङा खतरनाक हाल है आज यूँही घूमने निकले ।
देखा दस दस रूपये में भीङ लगी है
क्या है??
एक पार्टी का सदस्यता मेला ।
दस रुपये में एक टोपी भी बाद में मिलेगी ।
ग्रामीण कहते जा रहे थे लै भय्या
टोपी बीस की मिल्लयई खादी आसरम पै ।
जि तै पीसा बसूल है ग्या
सँभल जाओ ।सियासत जात पात मजहब पै करने वालो!!!
@सुधा राजे
Like · · Share · 11 minutes ago ·
Uttam Sengupta
Politics, crane and a camera ! Read how the camera works and how it enhances a crowd of five thousand to make it look like 50,000 ! Long live journalism !!
Distortions in news broadcasting - Livemint
Like · · Share · 4 hours ago ·
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Buroshiva Dasgupta and 5 others like this.
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Sunil Umarao visual illiteracy makes things worse....earlier all the boat club demonstration for the still camera.....if you had the chance to see the demonstration n what pics communicated next day in newspapers....you were always in store for shock......there was always a consensus how group -50-200 habitual n most of the time paid could make a nice dramatic pic day in n out !
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4 hours ago · Like · 1
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Avinash Bhardwaj Height of mental bankruptcy of the writer..!!! Or may be he is too fearful or corrupt to accept changes in society.
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Sam Appan Now started wondering how much mass the Aam Aadmi resurgence actually has!
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Sunil Umarao Off late AAP supporters have started behaving like Modi one...God Helppppppp!
Bodhi Sattva
कोई खो गया
कोई छूट गया
कोई रह गया
कोई मिट गया
कोई धूल हुआ
कोई राख हुआ
कोई उड़ गया
कोई मुड़ गया
कोई मिला नहीं
कोई ओझल हुआ
कोई अलोप हुआ
यह हर कोई मैं हूँ
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Bodhi Sattva, Jitendra Visariya, विमलेश त्रिपाठी and 48 others like this.
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Sanjay Kumar कोई मिल गया
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4 hours ago · Like · 1
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Sanjay Kumar कोई आ गया
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4 hours ago · Like · 1
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Sanjay Kumar कोई पा गया
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4 hours ago · Like · 1
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Sanjay Kumar कोई छा गया
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4 hours ago · Like · 1
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Palash Biswas बहुत खूब
Dilip C Mandal
केजरीवाल अगर दूसरा गांधी है, तो समझ लीजिए कि किसी 'पूना पैक्ट' की मार पड़ने ही वाली है. लंगोटीवादी सादगी में बहुत जोखिम है. बीजेपी-कांग्रेस के मुकाबले इसे सरप्राइज एलिमेंट समझिए.
Unlike · · Share · 17 hours ago ·
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You, गंगा सहाय मीणा, Virendra Yadav, Ashok Dusadh and 193 others like this.
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Shivam Yadav दूसरा गांधी तो अन्ना है, कजरी तो दूसरा नेहरू है
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4 hours ago · Like · 1
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Lalit Kumar Modi sonia kejriwal ka jeena haram kar denge
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4 hours ago via mobile · Like · 1
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Shashwat Haha comments on this thread lol XD
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3 hours ago via mobile · Like
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Palash Biswas सहमत
Avinash Das
जाड़े में व्हिस्की-रम की दमकल रख लेते हैं
और साथ में पानी की बोतल रख लेते हैं
स्वेटर मफलर और जुराबें कम पड़ जाएंगी
ऐसा करते हैं कि कुछ कंबल रख लेते हैं
उबड़ खाबड़ पर हम पूरी देह टिका देंगे
सिरहाने की मिट्टी को समतल रख लेते हैं
थोड़ा काम बचा है उसको पूरा तो कर लें
अपना मिलना आज नहीं हम कल रख लेते हैं
जाने वाले जाते हैं तो जाने देते हैं
चाहत और मोहब्बत के कुछ पल रख लेते हैं
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