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Wednesday, December 14, 2016

नोटबंदी से बैंकों का काम तमाम और अब राज्यों का खजाना खाली #NarcissismWikipedia #StatesDeprivedofRevenue #LongLivetheKingPeoplemustDie भारत की जनता की चुनी हुई सरकार पगला गयी है और यह किसी आत्ममुग्ध पागल तानाशाह का राजकाज है। न संविधान है।न लोकतंत्र है।न कानून का राज है।न संसदीय प्रणाली है।न स्वतंत्रता है।न संप्रभुता है।न अवसर है।ऩ आजीविका है न रोजगार।न समता है न न्याय है।न सहिष्णुता है और न उदारता है।बहुप्रतचारित विविधता औ�


नोटबंदी से बैंकों का काम तमाम और अब राज्यों का खजाना खाली

#NarcissismWikipedia

#StatesDeprivedofRevenue

#LongLivetheKingPeoplemustDie

भारत की जनता की चुनी हुई सरकार पगला गयी है और यह किसी आत्ममुग्ध पागल तानाशाह का राजकाज है।

न संविधान है।न लोकतंत्र है।न कानून का राज है।न संसदीय प्रणाली है।न स्वतंत्रता है।न संप्रभुता है।न अवसर है।ऩ आजीविका है न रोजगार।न समता है न न्याय है।न सहिष्णुता है और न उदारता है।बहुप्रतचारित विविधता और बहुलता भी सिरे से गायब हैं नरसंहार संस्कृति में।सिर्फ घृणा और हिंसा का राजकाज।

अब यह देश को माफिया गिरोह की तरह टुकड़ा टुकडा़ बांट करके तबाह करने की राजनीति है।यह देश मृत्यु उपत्यका ही नहीं गैस चैंबर है।दम तोड़ रहे हैं लोग।लाशों से घिरे हुए हैं लोग लेकिन इस तिलिस्म का अंध राष्ट्रवाद कुछ और है।


पलाश विश्वास

इस देश को माफिया गिरोह की तरह टुकड़ा टुकडा़ बांट करके तबाह करने की राजनीति है।यह माफियाराज है।ग्रीक मिथकों के राजा नरसिस का राज है यह।

राजा नरसिस को जानने के लिए पढ़ेंः#NarcissismWikipedia

हम ग्रीक त्रासदी में आत्ममुग्ध अहंकारी  निरंकुश तानाशाह के बलिप्रदत्त प्रजाजन हैं तो हम ग्रीक अर्थव्वस्था की त्रासदी को भी मौज मस्ती में जी रहे हैं।

मुझे शुरु से ही यह कहने में कोई हिचक नहीं हुई कि मुक्तबाजारी अर्थव्यवस्था का अश्वमेधी नस्ली नरसंहारी अभियान है।

यह मैंने लगातार 1991 से ही सार्वजनिक सभाओं,सम्मेलनों,यूट्यूब पर कहा है और लिखा है।इसी वजह से कारपोरेट मीडिया की काली सूची में मैं हमेशा के लिए दर्ज हो गया और इसका मुझे कोई अफसोस नहीं है।

मैं जब अमेरिका से सावधान लिख रहा था पहले खाड़ी युद्ध से ही,तब भी प्रबुद्धजनों को लगा कि यह बकवास है।हमने तो सृजन से छुट्टी ले ली है,सृजनशील रचनाकारों ने समाज को अपनी प्रतिष्ठा और पुरस्कारों के बदले दिया क्या है।

नोटबंदी की शुरुआत से ही हम लिखते रहे हैं कि कालाधन बहाना है,कारपोरेट एकाधिकार के लिए कृषि के बाद व्यवसाय से भी आम जनता और खासतौर पर बहुजनों को बेदखल करके सत्तावर्ग का नस्ली वर्चस्व का यह हिंदुत्व का एजंडा है, जिसके लिए असली मकसद कैशलैस इंडिया के जरिये देश में फिर कंपनी राज बहाल करना है।

डिजिटल इंडिया का सीधा मतलब है अर्थव्यवस्था और उत्पादन प्रणाली का विध्वंस और सत्तावर्ग से बाहर मेहनतकशों,बहुजनों और आम जनता का नस्ली नरसंहार।

नोटबंदी के बाद लगातार भारतीय बैंकों के अफसरों और कर्मचारियों से मेरी लगभग रोजाना बातचीत होती रही है।बैंकों को जानबूझकर दिवालिया बनाने और नानबैंकिंग कारपोरेट कंपनियों के हवाले करेंसी सौंपने के बारे में मैं वर्षों से लिख रहा हूं।नोटबंदी ने बैंकों में लोगों की आस्था खत्म कर दी है।

डा.अमर्त्यसेन,कौशिक बसु,अभिरुप सरकार जैसे तमाम अर्थशास्त्री चेता चुके हैं।दीपक पारेख,अरुंधती भट्टाचार्य और एब विमल जालान भी नोटबंदी पर बोलने लगे हैं और बैंकों की समस्याओं का खुलासा करने लगे हैं।

हम कोई अर्थशास्त्री नहीं हैं और न हम फिल्मस्टार हैं कि आप हमारी बात गौर से सुनेंगे।हम बैंकों के तमाम मित्रों को आगाह करते रहे हैं कि बैंकों को दिवालिया बनाकर उन तमाम बैंक अफसरों और कर्मचारियों का कत्लेआम है यह नोटबंदी।

अब बैंकों के घाटे का हजारों करोड़ के आंकड़े आने लगे हैं।लोग अब अपनी नौकरियां बचा लें,बैंक तो बचेंगे नहीं।मसलन

Public sector banks post net loss of Rs 17993 crore in last

Economic Times

Over 2000 Odisha cooperative banks incur losses

India Today

Sensex slips into red, bank, telecom lead losses

Daily News & Analysis

हमने जीवन बीमा निगम और भारतीय स्टेट बैंक के सत्यानाश का ब्यौरा पिछले बीस साल में बांग्ला,हिंदी और अंग्रेजी में सैकड़ों बार दिया है।

आप हमें पढ़ने की तकलीफ नहीं उठाते।फेसबुक पर हमें लाइक भले ही कर दें तो शेयर नहीं करते।हमारे ब्लाग आप पढ़ते नहीं।अखबार हमें छापते नहीं हैं।

हम क्या करें,हमारी समझ से बाहर है।

लिखने के दौरान पोस्ट करने से पहले एक एक लाइन पोस्ट करता हूं कि आपकी कोई प्रतिक्रिया मिल जाये तो ज्यादा जानकारी दे सकता हूं।जो कभी नहीं होता।

पोस्टआफिस और भारतीय स्टेट बैंक का बैंड बाजा बज गया तो भारतीय अर्थव्यवस्था के नाम पर बचेगा सिर्फ भालुओं और सांढ़ों का सर्कस शेयर बाजार।

बहराहाल नोटबंदी के पहले दिनेसे,हम शुरु से कह लिख रहे हैं कि भारत की जनता की चुनी हुई सरकार पगला गयी है और यह किसी आत्ममुग्ध पागल तानाशाह का राजकाज है।

न संविधान है।न लोकतंत्र है।न कानून का राज है।न संसदीय प्रणाली है।न स्वतंत्रता है।न संप्रभुता है।न अवसर है।ऩ आजीविका है न रोजगार।न समता है न न्याय है।न सहिष्णुता है और न उदारता है।बहुप्रतचारित विविधता और बहुलता भी सिरे से गायब हैं नरसंहार संस्कृति में।सिर्फ घृणा और हिंसा का राजकाज।

अब यह देश को माफिया गिरोह की तरह टुकड़ा टुकडा़ बांट करके तबाह करने की राजनीति है।यह देश मृत्यु उपत्यका ही नहीं गैस चैंबर है।दम तोड़ रहे हैं लोग।लाशों से घिरे हुए हैं लोग लेकिन इस तिलिस्म का अंध राष्ट्रवाद कुछ और है।

राज्यों का राजस्व खत्म हुआ जा रहा है।

नोटबंदी के बाद राज्यों का राजस्व आधा हो गया है।

जीएसटी पर सर्वदलीय सहमति है।

डीटीसी पर सर्वदलीय सहमति है।

कर सुधार पर सर्वदलीय सहमति है।

निजीकरण विनिवेश अबाध पूंजी पर सर्वदलीय सहमति है।

कंपनी राज पर सर्वदलीय सहमति है।

बिल्डर माफिया प्रोमोटर राज पर सर्वदलीय सिंडिकेट सहमति है।

सैन्यदमन और सलवा जुड़ुम पर सर्वदलीय सहमति है।

शोरशराबे की नौटंकी संसदीय प्रणाली है।

सुधारों पर सर्वदलीय सहमति है।

राज्य सरकारों और वहां सत्ता पर काबिज ओवरड्राप्ट पैकेज सत्ता के क्षत्रपों को कोई फिक्र नहीं है।उन्हें या कुनबा पालना है या उन्हें कैडर समृद्धि की परवाह है।मूर्तियां गढ़नी हैं।आम जनता किस खेत की मूली है।मूली का जबाव फिर गाजर है।

रोजगार नहीं है तो रोजगार के अवसर नहीं हैं और न रोजगार सृजन है।सिर्फ अंतहीन बेदखली है।अंतहीन विस्थापन है।अंतहीन पलायन है।वोट हैं,लेकिन नागरिक मानवाधिकार नहीं है।नागरिकता भी नहीं है।वोट हैं लेकिन मनुष्य नहीं है।

जीेएसटी लागू होने के बाद राज्य भारतीय बैंकों की तरह दिवालिया होने वाले हैं।अब कश्मीर और तमिलनाडु हमारे सामने हैं,जहां राजकाज केंद्र के पैसे से चलता रहा है।तमिलनाडु का मुख्यमंत्री चाहे कोई हो,केंद्र की सत्ता से नत्थी होना उसकी अनिवार्यता है।नये राज्यों का हाल यही होना है।उत्तराखंड,झारखंड और छत्तीसगढ़ समृद्ध हैं तो वहां सबसे ज्यादा लूटखसोट है।उनकी अकूत प्राकृतिक संपदा की खुली लूट है और जनता दाने दाने को मोहताज बेरोजगार या बेदखल हैं।अंतहीन पलायन है।

इसी तरह कश्मीर में आजादी के बाद से तमाम सरकारें केंद्र की सत्ता से नत्थी रही है।इन दो बड़े राज्यों के अलावा असम को छोड़कर पूर्वोत्तर के सभी राज्यों का यही हाल है।पांडिचेरी और गोवा का भी यही हाल है।

दिल्ली में सरकार किसी की हो,वहां राजकाज केंद्र का होता है।

यूपी बंगाल और बिहार जैसे राज्यों में केंद्र के पैकेज के लिए मारामारी है।केंद्र से ओवरड्राफ्ट लेकर राज्यों की सरकारें चल रही हैं।वेतन भत्ता का टोटा है।कैडर कोटा है।

देश के संघीय ढांचे  को तहस नहस कर दिया गया है।

राज्यों के क्षत्रप इसके खिलाफ कभी प्रतिरोध नहीं कर सकते।

अब यह देश को माफिया गिरोह की तरह टुकड़ा टुकडा़ बांट करके तबाह करने की राजनीति है।यह देश मृत्यु उपत्यका ही नहीं गैस चैंबर है।दम तोड़ रहे हैं लोग।लाशों से घिरे हुए हैं लोग लेकिन इस तिलिस्म का अंध राष्ट्रवाद कुछ और है।


राजनीतिक समीकरण साधने के लिए वे चाहे राजनीति जो करें,राज्यों का राजकाज केंद्र की मदद के बिना नहीं चल सकता।

सही मायने में भारत में राज्य सरकारें केंद्र की बंधुआ सरकारों में तब्दील हैं और इसी वजह से मुक्तबाजारी अश्वमेधी अभियान इतना निरंकुश हैं।

केंद्र की निरंकुश सरकार गिरायी नहीं जा सकती क्योंकि क्षत्रप पिछवाड़ा उठाये हुए हैं।राजनीतिक अस्थिरता है लेकिन कायदा कानून क्षत्रपों के समर्थन से लगातार बेरोकटोक बदल रहे हैं।जनविरोधी कानीन इसीतरह बन रहे हैं।लागू भी हो रहे हैं।

यही हमारा संघीय ढांचा है।लूटखसोट डकैती का स्थाई बंदोबस्त।

जो क्षत्रप केंद्र की मदद के बिना सरकार नहीं चला सकते,वे जनता के हक हकूक के लिए केंद्र से पंगा कैसे लेंगे,समझने वाली बात है।

फिर ये तमाम क्षत्रप दूध के धुले भी कतई नहीं हैं,जिस वजह से सींग चाहे कितनी तेज हों,इन सबकी नकेल केंद्र के हाथ में है।

भ्रष्टाचार के मामलों में केद्रीय जांच एंजसियों खासकर सीबीआई का इस्तेमाल संघ राज्य संबंध और देश के संघीय ढांचे के चरित्र का पैमाना है।सौदेबाजी के तहत सत्ता समीकरण बनाये ऱखना ही संघीय ढांचा है अब।

इतने सारे मामले चल रहे हैं,इतने आरोप प्रत्यारोप हैं,लेकिन क्षत्रपों और उनके अनुयायियों पर कभी कोई छापा जैसे अबतक नहीं पडा़ है,नोटबंदी में कालाधन की तलाश करने वाले रैडर के दायरे के बाहर हैं सारे क्षत्रप और उनके तमाम कमांडर,यह हैरतअंगेज है।

इंडिया टुडे का स्टिंग आपरेशन में दिखाया गया है कि कैसे अकेले गाजियाबाद और नोएडा में क्षत्रपों के यहां कालाधन सफेद करने का खुल्ला खेल फर्ऱूखाबादी चल रहा है।चालीस फीसद कमीशन पर खास दिल्ली की गोद में जब जिला स्तर के क्षत्रप सिपाहसालार दस दस करोड़ का कालाधन सफेद कर रहे हैं तो देश भर में रोजाना करोंडों की नकदी और सोना वगैरह वगैरह बरामद करने वाली सेना की नजर में या गिरफ्त में कोई क्षत्रप या उनका कोई अनुयायी उसीतरह नहीं है जैसे नोटबंदी से पहले तमाम पूंजी पति,उद्योगपति और सत्ता दल से संतरी से लेकर सिपाहसालार को कालाधन सफेद करने का आजादी मिली हुई है।

यानी सीधे तौर पर कालेधन के खिलाप इस मुहिम का राजनेता वर्ग पर कोई असर जैसे नहीं है,वैसे ही पूंजीपति वर्ग पर भी कोई असर नहीं है।सभी भाई बिरादर हैं।मंच पर एकदम फिटमफिट अभिनय कर रहे हैं और किसी का कुछ बिगड़ नहीं रहा है।

जनता दिलफरेब नारों से मदहोश है और नशाखुरानी बेरोकटोक है।

आयकर में छूट देने का गाजर बजट से पहले फिर लटकाया गया है ताकि वेत और पेंशन न मिलने से नाराज सफेदकालर दो करोड़ पढ़ेलिखे लोग बाग बाग हो जाये कि जैसे आडवाणी को जुबान खोलते न खोलते संघ परिवार राष्ट्रपति पद की पेशकश करने लगा है,वैसे ही उन्हें भी घर में टैक्स में छूट की वजह से ज्यादा रकम वापस लाने की आजादी मिलने वाली है।भले ही बैंकों एटीेम की कतार में जान चली जाये।

जिन्हें टैक्स माफी देनी है ,उन्हें अरबों का फायदा हो ही चुका है।

जिन्हें साठ फीसद आयकर देना था,वे नोटबंदी से पहले  30 सितंबर तक कालाधन बताकर पैंतालीस फीसद टैक्स कुल देकर सफेद धन वाले हो गये।यानी पंद्रह प्रतिशत आयकर में छूट।सरचार्ज और पेनाल्टी माफ।

नोटबंदी के बाद बाकी लोगों को कालाधन के एवज में पैंतालीस फीसद से कम कुल टैक्स आयकर, सरचार्ज,पेनाल्टी मिलाकर पचास फीसद टैक्से देना है साठ फीसद सिर्फ आयकर के बदले दस फीसद टैक्स छूट के साथ।आम जनता भले ही सफेद धन के लिए साठ फीसद तक टैक्स भरती रहे,कालाधन के लिए आम माफी आम है।

नोटबंदी का यह खेल दरअसल कालाधन आम माफी योजना का सेल है,पचास फीसद तक छूट।

अब आप हिसाब जोड़ते रहें कि बजट में दस बीस पचास हजार तक की सीमा बढ़ने से आपको कितने करोड़ या अरब रुपयों का फायदा होना है,जो बड़े खिलाड़ियों को अब तक हो चुका है।

उनका लाखों करोड़ का कर्ज माफ।बैंकों को चूना।किसानों की थोक आत्मह्त्या।

उनका लाखों करोड़ का टैक्स हर साल माफ।टैक्स फारगन।बजट घाटे में।

उनको विदेशों में आपके इकलौते दो हजार के नोट के मुकाबले अरबों डालरषअरबों पौंड के निवेश की छूट बदले में देश में निवेश शून्य।

अनुदान सब्सिडी प्रावधान में कटौती और उनको हर सेक्टर में लाखों करोड़ की मुनाफावसूली का चाकचौबंद इंतजाम।

खुले बाजार की कैशलेस फेसलेस डिजिटलइकोनामी में आम लोगों के सफाया के बाद उनकी कंपनियों की मोनोपाली।

शेयर बाजार के उछलकूद में करोड़ों आम निवेशकों की जेबें खाली और सारी अरबों अरबों की मुनाफावसूली उन्हीं की।उन्ही की बारह मास दिवाली होली।

अब आप हिसाब जोड़ते रहे कि ऐसे सुनहले दिनों की सरकार के राजकाज में आयकर छूट से आप कितने करोड़,कितने अरब उनकरे एकराधिकार बाजार में खरीददारी के लिए बचा लेंगे।

कृपया इस खबर पर गौर करेंः

जीएसटी पर तलवार लटकती नजर आ रही है। तृणमूल कांग्रेस नोटबंदी का जबरदस्त विरोध कर रही है। आपको बता दें कि ये वही क्षेत्रीय पार्टी है जिसने सबसे पहले जीएसटी का समर्थन किया था। नोटबंदी से क्यों अटक सकता है जीएसटी इसके बारे में सीएनबीसी-आवाज़ ने बात की पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा से।


पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा का कहना है कि जीएसटी से 5 साल के लिए वित्तीय अस्थिरता की आशंका थी, फिर भी हमने जीएसटी का पूरा समर्थन किया। लेकिन अब नोटबंदी से दूसरा झटका लगा है, और इससे राज्य की आमदनी घट गई है। नोटबंदी राज्यों के लिए जीएसटी से भी बड़ा झटका है।


अमित मित्रा के मुताबिक राज्य जीएसटी के बाद नोटबंदी का दोहरा झटका नहीं सह पाएंगे। नोटबंदी से राज्यों की कर वसूली कम हो जाएगी। अमित मित्रा ने ये भी कहा कि जीएसटी में काउंसिल लगातार नए बदलाव कर रही है, ऐसे में अगली बैठक में जीएसटी पर चर्चा संभव है।


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