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Monday, January 30, 2012

‘सैटेनिक वर्सेज’ में सनसनी से मुसलमान हुए आहत :काटजू

'सैटेनिक वर्सेज' में सनसनी से मुसलमान हुए आहत :काटजू

Monday, 30 January 2012 17:19

नयी दिल्ली, 30 जनवरी (एजेंसी) काटजू ने कहा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जनहित के अनुरूप होनी चाहिए। भारतीय प्रेस परिषद अध्यक्ष मार्कण्डेय काटजू ने सलमान रूश्दी की आलोचना करते हुए आज कहा कि उनकी पुस्तक 'सैटेनिक वर्सेज' में मौजूद 'सनसनी' ने मुसलमानों की भावनाओं को गंभीर रूप से आहत किया है और किसी व्यक्ति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जनहित के अनुरूप होनी चाहिए।
पिछले हफ्ते रूश्दी को 'निम्नस्तरीय लेखक' बताने वाले न्यायमूर्ति काटजू ने इस लेखक को 'बुकर पुरस्कार' से सम्मानित किए जाने पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि उन्हें यह पुरस्कार क्यों मिला...यह 'रहस्य' है।  
उन्होंने यहां एक बयान में कहा, ''कुछ लोग रूश्दी को महान लेखक बताते हैं क्योंकि उन्हें बुकर पुरस्कार मिला है। इस सिलसिले में, मैं यह कहना चाहता हूं कि साहित्य पुरस्कार अक्सर रहस्य होते हैं। अब तक साहित्य के लिए लगभग 100 नोबेल पुरस्कार दिए जा चुके हैं लेकिन किसी को भी 80 या इससे अधिक विजेताओं के नाम याद नहीं हैं।''
काटजू ने सैटेनिक वर्सेज का जिक्र करते हुए कहा कि रूश्दी ने निश्चित तौर पर अप्रत्यक्ष रूप से इस्लाम और पैगंबर पर हमला किया है। इस तरह की सनसनी से भले ही रूश्दी ने लाखों डॉलर हासिल किए हों लेकिन इसने मुसलमानों की भावनाओं को गंभीर रूप से आहत किया है।

 

हाल फिलहाल तक  उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश रहे न्यायमूर्ति काटजू ने कहा कि किसी व्यक्ति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जनहित के अनुरूप हो। 

उन्होंने कहा, ''दूसरे शब्दों में दोनों के बीच एक संतुलन कायम करना होगा।'' काटजू ने इस बात का जिक्र किया कि संविधान का अनुच्छेद 19 :2: देश की सुरक्षा, कानून व्यवस्था और नैतिकता के हित में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर तार्किक प्रतिबंध लगाता है।
इस साल जयपुर साहित्य समारोह में रूश्दी विवाद छाया रहा।  पीसीआई अध्यक्ष ने इसमें कहा था, ''रूश्दी ने 'सैटेनिक वर्सेज' के जरिए मुसलमानों की भावनाओं को गंभीर रूप से आहत किया है। फिर जयपुर में उन पर इतना ध्यान केंद्रित क्यों किया गया? क्या हिंदू और मुसलमानों को बांटने की यह कोई चाल थी? ''
उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि किसी भारतीय या विदेशी लेखक पर मुश्किल से कोई चर्चा हुई। ''रूश्दी को नायक बना दिया गया।''
न्यायमूर्ति काटजू ने रूश्दी की रचनाओं की सामाजिक प्रासंगिकता पर भी सवाल उठाते हुए कहा, ''क्या रूश्दी के लेखन कार्यों से भारतीयों को फायदा हुआ है।''
साहित्य को बेरोजगारी, कुपोषण और किसानों की आत्महत्या की समस्याओं का समाधान करना चाहिए या नहीं...इस बारे में काटजू ने कहा, ''मेरे मुताबिक भारतीयों के लिए आजादी का मतलब भूख, अज्ञानता, बेरोजगारी, रोग और सभी तरह के अभावों से मुक्ति है, न कि मि. रूश्दी की दोयम दर्जे की किताबों को पढ़ने की स्वतंत्रता।''

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