भारत में पांच लाख लोग ढोते सिर पर मैला
- TUESDAY, 03 APRIL 2012 09:12
नौ वर्ष बाद सरकार ने सोमवार 2 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह इस कुप्रथा पर रोक लगाने के लिए जल्द ही संसद में विधेयक लाएगी. मानसून की बरसात में मैला बह कर मिट्टी में मिल जाता है या संसद के मानसून सत्र में यह विधेयक कानून बनेगा, इंतजार कीजिए...
संजय स्वदेश
देश में ढेरों ऐसे कार्य हैं जिस पर प्रतिबंध लगाने के लिए देश की आजादी के तुरंत बाद कोशिश होनी चाहिए थी. लेकिन सरकार ने ऐसे अनेक मामलों की सुध नहीं ली. अधिकतर मामलों में सुध तब ली जब जनता उग्र हुई या तब कोर्ट ने आंखे तरेरी. ऐसा ही एक मामला है सिर पर मैला ढोने की कुप्रथा की.
इक्कीसवीं सदी में विकास के दम भरते हुए विश्व शक्ति के दावों के बीच देश में मैला ढोने के पेशे से लगे लोगों की सुध लेने वाला कोई नहीं है. देशभर में पांच लाख से अधिक लोग इस घिनौने कार्य में लगे हैं. इस मामले में करीब नौ वर्ष पहले सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी. पर हाय रे कोर्ट की सुनवाई. ऐसा लगता है जैसे समाज में जिस तरह से लोग मैला ढोने वालों को देखकर लोग नाक भौं सिकोडकर दूर भागते हैं, वैसा ही कुछ व्यवहार इस केस के साथ कोर्ट में हुआ.
नहीं तो नौ वर्ष में सरकार का कान मरोड़ कर कोर्ट जरूर पूछ लेती कि बताओ आजादी के बाद भी पांच लाख लोगों की इस पेश से जोड़े रखने की बेबसी की बेडियां कब टूटेगी. हालांकि कोर्ट ने तल्खी दिखाते हुए इस प्रथा को रोकने के लिए उचित कार्रवाई करने के लिए सरकार को आदेश भी दिया था, लेकिन कोर्ट के आदेश से सरकार पर बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है.
आदेशों को टालने के लिए सरकार के पास रोने धोने के बहुत बहाने होते हैं. उत्तराखंड सरकार को तो कोर्ट का आदेश नहीं मानने के कारण अवमानना का नोटिस भी जारी हो गया, पर ढीठ सरकार ने नोटिस का अब तक जवाब नहीं दिया. क्या कर लेगी सर्वोच्च अदालत. सरकार आदमी तो है नहीं कि जेल में डाल दें. मामला मैला का है, उससे तो हर कोई दूर भागता है. फिर सरकार भला इसकी दुर्गंध क्यों सुंघे.
देशभर में मैला ढोने के काम में 5,77,228 लोगों के लगे होने का जिक्र करने वाली वर्ष 2003 की याचिका इंप्लायमेंट ऑफ़ मैन्यूएल स्कैंवेंजर एंड कंस्ट्रक्शन ऑफ़ ड्राइ लैट्रिंस (प्रोहिबिशन) एक्ट, 1993 को लागू करने के लिए है ताकि सिर पर मैला ढ़ोने की प्रथा पर रोक लगे.
जनहित याचिका के नौ वर्ष बाद सरकार ने सोमवार 2 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह इस कुप्रथा पर रोक लगाने के लिए जल्द ही संसद में विधेयक लाएगी. आपको बता दें कि सरकार ने मानसून सत्र में दर्जनों विधेयक लाने का वायदा किया है. उन विधेयकों की भीड़ में मैला ढोने की प्रथा रोकने वाला विधेयक दमादारी से पेश हो पाएगा, गुंजाईश कम बनती है. मानसून की बरसात में मैला बह कर मिट्टी में मिल जाता है. संसद के मानसून सत्र में यह विधेयक कानून बनेगा या यह भी कही गुम हो जाएगा- मानसून सत्र तक इंतजार कीजिए.
संजय स्वदेश रायपुर में पत्रकार हैं और समाचार विस्फोट के संपादक हैं.
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