अबतक रिहा नहीं हुए जीतन मरांडी
- THURSDAY, 05 APRIL 2012 20:31
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अबतक रिहा नहीं हुए जीतन मरांडी
मरांडी पर सीसीए लगाया जाना राज्य सरकार की हताशा को सरेआम करता है. पुलिस पहले मानवाधिकार संगठनों को बेवकूफ बनाती थी, अब अदालतों को बना रही है. जो आदमी पिछले चार वर्षों से जेल में बंद है, उस पर सीसीए लगाने के क्या मायने हैं...
जनज्वार. झारखंड हाईकोर्ट द्वारा लोकगायक और संस्कृतिकर्मी जीतन मरांडी को फांसी की सजा से मुक्त कर दिये जाने के बाद भी वे पिछले साढ़े तीन महीनों से रांची के बिरसा मुंडा जेल में बंद हैं. चिलखारी हत्याकांड में 15 दिसंबर को हाईकोर्ट से अपने तीन अन्य साथियों के साथ बरी हुए जीतन मरांडी को लेकर जेल प्रशासन का कहना है कि उसे मरांडी के रिहाई आदेश की कॉपी अबतक नहीं मिली है. 16 मार्च को गिरिडीह से चला रिहाई आदेश अभी रांची जेल प्रशासन तक नहीं पहुंचा है. दूसरी तरफ गिरडीह के जिलाधिकारी ने मरांडी पर क्राइम कंट्रोल एक्ट (सीसीए) लगा दिया है.
बिरसा मुंडा सेंट्रल जेल के अधीक्षक नरेंद्र सिंह का कहना है कि 'अगर उन्हें जीतन की रिहाई की कॉपी मिल भी जाती है तो भी वह रिहा नहीं कर सकते क्योंकि राज्य के ही गिरिडीह जिले में उनपर सीसीए (गुंडा एक्ट) के तहत मुकदमा दर्ज है.'
गिरिडीह के जिलाधिकारी ने सीसीए को जायज ठहराते हुए कहा है कि मरांडी माओवादी हैं और उनकी रिहाई से राज्य में माओवादी गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा और कानून-व्यवस्था में दिक्कते आयेंगी. हालांकि जिलाधिकारी के इन आरोपों को पुलिस को दो सप्ताह में साबित करना होगा, जिसमें से एक सप्ताह बीत चुका है.
गौरतलब है कि जीतन मरांडी पिछले चार वर्षों से अधिक समय से जेल में बंद हैं. झारखंड हाईकोर्ट ने चिलखारी हत्याकांड मामले में 15 दिसंबर को जीतन समेत चार अन्य अभियुक्तों को रिहा कर दिया. इस हत्याकांड में 19 लोग मारे गये थे, जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के बेटे अनूप मरांडी की भी मौत हो गयी थी. पुलिस का आरोप था कि इस हत्याकांड को माओवादियों ने अंजाम दिया था, जिसका मास्टर मांइड जीतन मरांडी है. हालांकि पिछले दिनों पुलिस ने बिहार में प्रवेश नाम के एक माओवादी को गिरफ्तार कर दावा किया है कि चिलखारी हत्याकांड वह मास्टर माइंड है.
मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल के झारखंड महासचिव शशिभूषण पाठक ने कहना है कि 'मरांडी पर सीसीए लगाया जाना राज्य सरकार की हताशा को सरेआम करता है. पुलिस पहले मानवाधिकार संगठनों को बेवकूफ बनाती थी, अब अदालतों को बना रही है. जो आदमी पिछले चार वर्षों से जेल में बंद है, उस पर सीसीए लगाने के क्या मायने हैं. सरकार खुद अपनी छिछालेदर कराने पर तुली है. '
हाल ही में जीतन से मिलने गये उनके दोस्त सुशांत के मुताबिक 'जेल प्रशासन जीतन मरांडी से जबरन किसी दस्तावेज पर दस्तखत कराना चाह रहा था, लेकिन जीतन ने मना कर दिया. मना किये जाने के बाद जेल प्रशासन ने उनपर सीसीए के तहत मुकदमा दर्ज कर दिया.
अदालत ने 15 दिसंबर को दिये अपने फैसले में कहा था कि बिना ठोस सबूतों के उन गवाहों के आधार पर सजा नहीं दी जा सकती जो खुद ही आपरधिक पृष्ठभूमि से आते हैं. जीतन मरांडी, मनोज रजवार, छतर मंडल और अनिल राम को गिरिडीह की जिला अदालत ने 22 जून 2011 को चिलखारी हत्याकांड में फांसी की सजा सुनाई थी. इन सभी के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि निरोधक कानून (यूएपीए) समेत देशद्रोह और हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया था.
जीतन की पत्नी अपर्णा ने कहती हैं, 'राज्य सरकार को अदालत के फैसले से खुशी नहीं हुई है, इसीलिए उसने जीतन को बंधक बना रखा है. लेकिन जैसे ही जीतन मरांडी जेल से बाहर आयेंगे, वह राज्य मशीनरी की इन क्रुरताओं को फिर से सरेआम करेंगे.'
जीतन मरांडी की रिहाई में सक्रिय रहे एक कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि 'जीतन की रिहाई में देरी सरकारी कोशिश तो है, लेकिन हमारे साथियों की लापरवाही भी एक बड़ा कारण है. कुछ लोग इसे बड़ा मुद्दा बनाने के फेर में मामले को लंबा खींच रहे हैं.' ऐसे में देखना यह है कि 16 मार्च को गिरिडीह से चला जीतन मरांडी का रिहाई पत्र जेल प्रशासन तक कबतक पहुंचता है और मरांडी पर लगाये गये सीसीए के लिए सरकार क्या नया पैंतरा करती है.
अबतक रिहा नहीं हुए जीतन मरांडी
मरांडी पर सीसीए लगाया जाना राज्य सरकार की हताशा को सरेआम करता है. पुलिस पहले मानवाधिकार संगठनों को बेवकूफ बनाती थी, अब अदालतों को बना रही है. जो आदमी पिछले चार वर्षों से जेल में बंद है, उस पर सीसीए लगाने के क्या मायने हैं...
जनज्वार. झारखंड हाईकोर्ट द्वारा लोकगायक और संस्कृतिकर्मी जीतन मरांडी को फांसी की सजा से मुक्त कर दिये जाने के बाद भी वे पिछले साढ़े तीन महीनों से रांची के बिरसा मुंडा जेल में बंद हैं. चिलखारी हत्याकांड में 15 दिसंबर को हाईकोर्ट से अपने तीन अन्य साथियों के साथ बरी हुए जीतन मरांडी को लेकर जेल प्रशासन का कहना है कि उसे मरांडी के रिहाई आदेश की कॉपी अबतक नहीं मिली है. 16 मार्च को गिरिडीह से चला रिहाई आदेश अभी रांची जेल प्रशासन तक नहीं पहुंचा है. दूसरी तरफ गिरडीह के जिलाधिकारी ने मरांडी पर क्राइम कंट्रोल एक्ट (सीसीए) लगा दिया है.
बिरसा मुंडा सेंट्रल जेल के अधीक्षक नरेंद्र सिंह का कहना है कि 'अगर उन्हें जीतन की रिहाई की कॉपी मिल भी जाती है तो भी वह रिहा नहीं कर सकते क्योंकि राज्य के ही गिरिडीह जिले में उनपर सीसीए (गुंडा एक्ट) के तहत मुकदमा दर्ज है.'
गिरिडीह के जिलाधिकारी ने सीसीए को जायज ठहराते हुए कहा है कि मरांडी माओवादी हैं और उनकी रिहाई से राज्य में माओवादी गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा और कानून-व्यवस्था में दिक्कते आयेंगी. हालांकि जिलाधिकारी के इन आरोपों को पुलिस को दो सप्ताह में साबित करना होगा, जिसमें से एक सप्ताह बीत चुका है.
गौरतलब है कि जीतन मरांडी पिछले चार वर्षों से अधिक समय से जेल में बंद हैं. झारखंड हाईकोर्ट ने चिलखारी हत्याकांड मामले में 15 दिसंबर को जीतन समेत चार अन्य अभियुक्तों को रिहा कर दिया. इस हत्याकांड में 19 लोग मारे गये थे, जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के बेटे अनूप मरांडी की भी मौत हो गयी थी. पुलिस का आरोप था कि इस हत्याकांड को माओवादियों ने अंजाम दिया था, जिसका मास्टर मांइड जीतन मरांडी है. हालांकि पिछले दिनों पुलिस ने बिहार में प्रवेश नाम के एक माओवादी को गिरफ्तार कर दावा किया है कि चिलखारी हत्याकांड वह मास्टर माइंड है.
मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल के झारखंड महासचिव शशिभूषण पाठक ने कहना है कि 'मरांडी पर सीसीए लगाया जाना राज्य सरकार की हताशा को सरेआम करता है. पुलिस पहले मानवाधिकार संगठनों को बेवकूफ बनाती थी, अब अदालतों को बना रही है. जो आदमी पिछले चार वर्षों से जेल में बंद है, उस पर सीसीए लगाने के क्या मायने हैं. सरकार खुद अपनी छिछालेदर कराने पर तुली है. '
हाल ही में जीतन से मिलने गये उनके दोस्त सुशांत के मुताबिक 'जेल प्रशासन जीतन मरांडी से जबरन किसी दस्तावेज पर दस्तखत कराना चाह रहा था, लेकिन जीतन ने मना कर दिया. मना किये जाने के बाद जेल प्रशासन ने उनपर सीसीए के तहत मुकदमा दर्ज कर दिया.
अदालत ने 15 दिसंबर को दिये अपने फैसले में कहा था कि बिना ठोस सबूतों के उन गवाहों के आधार पर सजा नहीं दी जा सकती जो खुद ही आपरधिक पृष्ठभूमि से आते हैं. जीतन मरांडी, मनोज रजवार, छतर मंडल और अनिल राम को गिरिडीह की जिला अदालत ने 22 जून 2011 को चिलखारी हत्याकांड में फांसी की सजा सुनाई थी. इन सभी के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि निरोधक कानून (यूएपीए) समेत देशद्रोह और हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया था.
जीतन की पत्नी अपर्णा ने कहती हैं, 'राज्य सरकार को अदालत के फैसले से खुशी नहीं हुई है, इसीलिए उसने जीतन को बंधक बना रखा है. लेकिन जैसे ही जीतन मरांडी जेल से बाहर आयेंगे, वह राज्य मशीनरी की इन क्रुरताओं को फिर से सरेआम करेंगे.'
जीतन मरांडी की रिहाई में सक्रिय रहे एक कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि 'जीतन की रिहाई में देरी सरकारी कोशिश तो है, लेकिन हमारे साथियों की लापरवाही भी एक बड़ा कारण है. कुछ लोग इसे बड़ा मुद्दा बनाने के फेर में मामले को लंबा खींच रहे हैं.' ऐसे में देखना यह है कि 16 मार्च को गिरिडीह से चला जीतन मरांडी का रिहाई पत्र जेल प्रशासन तक कबतक पहुंचता है और मरांडी पर लगाये गये सीसीए के लिए सरकार क्या नया पैंतरा करती है.
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