Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Friday, August 9, 2013

अस्कोट वन्यजीव विहार की परिधि से 111 गांवों को बाहर करने का सच

  • अस्कोट वन्यजीव विहार की परिधि से 111 गांवों को बाहर करने का सच

    Posted: 08 Aug 2013 05:18 AM PDT

    पिथौरागढ़ जिले के अंतर्गत आने वाले अस्कोट वन्यजीव विहार की परिधि से 111 गांवों को बाहर करने का सच जानकर आप हैरान रह जाएंगें, दरअसल इसके पीछे भी पावर प्रोजेक्‍ट का हित छिपा हुआ है, वही इतनी सफाई से यह कार्य किया गया कि चैनल व क्षेत्रीय विधायक गुणगान करते नहीं थक रहे हैं, अगर इसके पीछे पावर प्रोजेक्‍ट लगाने की योजना नहीं बन रही है तो इन 111 को ही क्‍यों बाहर किया गय जबकि इनके बगल में लगते गांवों को क्‍यों छोड दिया गया, जिम काबेट के गांवों को क्‍यों छोड दिया गया, पेश है चन्‍द्रशेखर जोशी की विशेष रिपोर्ट

    उत्तराखंड में पिथौरागढ़ जिले के अंतर्गत आने वाले अस्कोट वन्यजीव विहार की परिधि से गांवों को बाहर करना राज्य की विजय बहुगुणा सरकार ने टीवी चैनलों को विज्ञापन बांट कर स्वयं का खूब गुणगान कराया, इसे देर से लिया गया सही फैसला बताया गया। यह कहा गया कि वन कानून के चलते उत्तराखंड में विकास की गति पर असर पड़ रहा था। जनचर्चा के अनुार पिथौरागढ़ जिले के अंतर्गत आने वाले अस्कोट वन्यजीव विहार की परिधि से 111 गांवों को बाहर करने के पीछे इन क्षेत्रों की नदियों में पावर प्रोजेक्ट लगाये जाने की संभावना तलाशी जा रही है, क्या् आप समझते हैं कि इन गावों के पिछडनपन को देखते हुए इनके प्रति दयाभावना जाग्रत हो गयी, जी नहीं, इसके पीछे इन क्षेत्रों की नदियों में पावर प्रोजेक्टद लगाये जाने की संभावना तलाशी जारही है-

    आरक्षित वन के अन्तमर्गत अस्कोट संरक्षित क्षेत्रों के रूप में घोषित था। 1986 में अस्कोट कस्तूरा मृग विहार की प्रारंभिक अधिसूचना तो निर्गत की गई, लेकिन इसमें आरक्षित वन को छोड़ अन्य क्षेत्रों का सीमांकन स्पष्ट नहीं किया गया। तब इसमें धारचूला, मुनस्यारी और डीडीहाट तहसीलों के जो हिस्से शामिल किए गए, उन्हें इस अभयारण्य का हिस्सा मान लिया गया। इसके अंतर्गत पड़ने वाले सभी 111 गांव अभयारण्य का हिस्सा मान लिया गया। लंबे इंतजार के बाद अचानक सरकार को महसूस हुआ कि इस अभयारण्य के सीमांकन में खामियां हैं, इस पर सीमाओं को स्पष्ट कर इसकी अंतिम अधिसूचना जारी करके स्थानीय निवासियों को राहत देने की बात कही गयी।

    आम चर्चा है कि वन कानूनों को हटाने के बाद भी क्याक इस सीमांत क्षेत्र का विकास हो सकेगा। वही अस्कोट अभयारण्य की सीमा में आने वाले गांवों को भले ही राहत मिल गई है, लेकिन अन्य संरक्षित क्षेत्रों और उनसे सटे गांवों का क्या होगा, जिनके मामले भी वर्षो से लंबित हैं। गोविंद वन्यजीव विहार के अंतर्गत आने वाले चार गांवों के अन्यत्र पुनर्वास का प्रस्ताव है, लेकिन अभी तक कोई पहल नहीं हो पाई है। कार्बेट नेशनल पार्क, राजाजी नेशनल पार्क समेत अन्य क्षेत्रों से भी गांवों के विस्थापन के मसले लटके पड़े हैं। सवाल उठ रहा है कि राज्य सरकार ने अस्कोट की भांति दूसरे संरक्षित क्षेत्रों के अंतर्गत आने वाले अथवा उनकी सीमा से सटे गांवों के संबंध में कोई फैसला क्यों् नहीं लिया।

    अब हम आपको अवगत कराते हैं उत्तराखण्ड की नदियों के बारे में,

    इस प्रदेश की नदियाँ भारतीय संस्कृति में सर्वाधिक स्थान रखती हैं। उत्तराखण्ड अनेक नदियों का उद्गम स्थल है। यहाँ की नदियाँ सिंचाई व जल विद्युत उत्पादन का प्रमुख संसाधन है। इन नदियों के किनारे अनेक धार्मिक व सांस्कृतिक केन्द्र स्थापित हैं। हिन्दुओं की अत्यन्त पवित्र नदी गंगा का उद्गम स्थल मुख्य हिमालय की दक्षिणी श्रेणियाँ हैं। गंगा का प्रारम्भ अलकनन्दा व भागीरथी नदियों से होता है। अलकनन्दा की सहायक नदी धौली, विष्णु गंगा तथा मंदाकिनी है। गंगा नदी भागीरथी के रुप में गोमुख स्थान से २५ कि.मी. लम्बे गंगोत्री हिमनद से निकलती है। भागीरथी व अलकनन्दा देव प्रयाग संगम करती है जिसके पश्चात वह गंगा के रुप में पहचानी जाती है। यमुना नदी का उद्गम क्षेत्र बन्दरपूँछ के पश्चिमी यमनोत्री हिमनद से है। इस नदी में होन्स, गिरी व आसन मुख्य सहायक हैं। राम गंगा का उद्गम स्थल तकलाकोट के उत्तर पश्चिम में माकचा चुंग हिमनद में मिल जाती है। सोंग नदी देहरादून के दक्षिण पूर्वी भाग में बहती हुई वीरभद्र के पास गंगा नदी में मिल जाती है।
    Like ·  · 

No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Welcome

Website counter

Followers

Blog Archive

Contributors