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विश्व के इंडिजिनस पिपुल (आदिवासी) के मानवाधिकारों को लागू करने और उनके संरक्षण के लिए 1982 मेँ संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) ने एक कार्यदल (UNWGEP) के उपआयोग का गठन हुआ जिसकी पहली बैठक 9 अगस्त 1982 को हुई थी ।आदिवासी समाज की समस्याओ के निराकरण हेतु विश्व के देशों का ध्यानाकर्षण के लिए सबसे पहले यूएनओ ने विश्व पृथ्वी दिवस 3 जून 1992 में होने वाले सम्मेलन के 300 पन्ने के एजेण्डे मे 40 विषय जो चार भागो मे बाटे गये तीसरे भाग मे रिओ-डी-जनेरो (ब्राजील) सम्मेलन मेँ विश्व के आदिवासियों की स्थिति की समीक्षा और चर्चा कर प्रस्ताव पारित किया गया ऐसा विश्व मेँ पहली बार हुआ । यूएनओ ने अपने गठन के 50वे वर्ष मे यह महसूस किया कि 21 वीँ सदी में भी विश्व के विभिन्न देशों में निवासरत आदिवासी समाज अपनी उपेक्षा,गरीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा का अभाव,बेरोजगारी एवं बन्धुआ व बाल मजदूरी जैसी समस्याओ से ग्रसित है । अतः 1993 मेँ UNWGEP कार्यदल के 11 वेँ अधिवेशन मेँ आदिवासी अधिकार घोषणा प्रारुप को मान्यता मिलने पर 1993 को आदिवासी वर्ष व 9 अगस्त को आदिवासी दिवस घोषित किया गया ।अतः आदिवासियों को अधिकार दिलाने और उनकी समस्याओ का निराकरण,भाषा संस्कृति, इतिहास के संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा द्वारा 9 अगस्त 1994 में जेनेवा शहर में विश्व के आदिवासी प्रतिनिधियों का विशाल एवं विश्व का प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस सम्मेलन आयोजित किया । आदिवासियो की संस्कृति,भाषा, आदिवासियों के मूलभूत हक का सभी ने एक मत से स्वीकार किया और आदिवासियों के सभी हक बरकरार है इस बात की पुष्ठी कर दी गई और विश्व राष्ट्र समूह ने " हम आपके साथ है " यह वचन आदिवासियोँ को दिया । विश्व राष्ट्र समूह (UNO) की जनरल असेम्बली (महासभा) ने व्यापक चर्चा के बाद Dec 21,1993 से Dec.20,2004 तक "आदिवासी दशक " और 9 अगस्त को " International Day of the world's Indigenous people " (आदिवासी दिवस) मनाने का फैसला लेकर विश्व के सभी सदस्य देशो को मनाने के निर्देश दिये । विश्व के सभी देशो मे इस दिवश को मनाया जाने लगा पर अफसोस भारत की मनुवादी सरकारोँ ने आदिवासियो के साथ धोखा किया न बताया और ना मनाया । यूएनओ ने 16Dec.,2005 से Dec15,2014 को फिर "आदिवासी दशक" घोषित कर दिया है। आश्चर्य इस बात का है घोषणा के 18 वर्ष बाद भी भारत के अधिकांश आदिवासियो और उनके जनप्रतिनिधि,समाज चिन्तक बुध्दिजीवियो व अधिकारियो को पूर्ण रुप से यह ज्ञात भी नहीँ हुआ कि आदिवासी दिवस क्या है ? और इसे क्यों मनाया जाना चाहिए ? इस पर आपके क्या विचार है ?
आप सबको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जब प्रथम आदिवासी दिवस सम्मेलन 1994 मे जेनेवा मे यूएनओ द्वारा आयोजित हुआ जिसमे सभी सदस्य देशो से प्रतिनिधि बुलाये थे अगस्त 2011 के आदिवासी सत्ता पत्रिका के अंक मे सम्पादक के आर शाह ने सम्पादकीय में उनकी डॉ. रामदयाल मुण्डा के साथ हुई वार्तानुसार - भारत के वरिष्ठ शिक्षाविद साहित्यकार, लेखक व प्रखर आदिवासी विचारक रांचि (झारखण्ड) निवासी स्व. डॉ. रामदयाल मुण्डा के बतायेनुसार, इस समारोह मेँ उन्होंने गैर सरकारी प्रतिनिधि के रुप मेँ भा लिया था । भारत सरकार की तरफ से तत्कालीन केन्द्रीय राज्य मंत्री के नेतृत्व मेँ एक प्रतिनिधि मंडल ने जिनेवा सम्मेलन मेँ भाग लिया था इस सम्मेलन मे भारत सरकार ने अपने प्रतिनिधि द्वारा सँयुक्त राष्ट्र संघ को अवगत कराया था कि भारत में 'संयुक्त राष्ट्र द्वारा परिभाषित देशज लोग भारतीय आदिवासी या अनुसूचित जनजातियां नहीं हैं, बल्कि भारत के सभी लोग देशज लोग हैं और न यहां के आदिवासी या अनुसूचित जनजातियां किसी प्रकार के सामाजिक, राजनीतिक या आर्थिक शिकार के पक्षपात हो रहे हैं'. इससे बड़ा झूठ और क्या होगा?
मुण्डा ने भारत सरकार के इस प्रतिवेदन का देश वापसी पर मुम्बई मे प्रेस कान्प्रेन्स बुलाकर विरोध किया । बाद में डॉं मुण्डा एक प्रतिनिधि मण्डल लेकर राष्ट्रपति और प्रधान मंत्री जी से मिलकर ज्ञापन भी दिया जिस पर संसद में विचार करने का आश्वासन मिला जो आज तक संभवतः आश्वासन ही है और मुण्डा जी इस संसार को छोड़कर चले गये । इसलिए आज भी इस समारोह को सरकारी स्तर पर नही मनाया जाता श्री शाह और डॉ मुण्डा की पहल पर इसे सामाजिक स्तर पर मनाना प्रारम्भ हुआ ।
संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्यानुसार हमारे सभी संगठनो द्वारा आदिवासी संरक्षण और सम्पुर्ण विकास अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकारों के अनुरुप हो के लिए सरकार पर दबाव बनाये ।
यह भारत के आदिवासियो का दुर्भाग्य है कि वो जिस सरकार का निर्वाचन करते है वह सरकार संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्देश के बावजुद भारत मेँ केन्द्र या राज्य की सरकारें 9 अगस्त को देश के भीतर आदिवासी दिवस पर आदिवासी विकास की समीक्षा जैसे समरोह का आयोजन नहीँ करती । करना तो दूर रहा अस्तित्व ही स्वीकार नही कर रही और पार्टियो के जड़खरीद गुलाम नेताओ यह तक पता नही कि यह दिवस क्या है वो मुक बधिर बन्धुआ गुलाम की तरह उनकी हाँ मे हाँ मिलाते है । पर अबकी बार उनको एहसास कराना है कि आप पार्टी के टिकट से नही हमारे वोट से जितते हो ।सामाजिक स्तर पर मनाने की शुरुआत देरी से ही सही हुई तो सही हमें इसका महत्व समझना होगा और हमारे लोगो को समझाना होगा । हमें हर स्तर पर व्यापक प्रचार प्रसार के साथ आदिवासी समुदायोँ द्वारा 9 अगस्त आदिवासी दिवस को मनाया जाना चाहिए और इस पर संगौष्ठियां,सेमीनार,सभा,सम्मेलन और सांस्कृतिक आयोजन करने चाहिए यह दिवस मनाकर हमें हमारा वजुद दिखाना चाहिए, आदिवासी समस्याओ पर एक मांग पत्र तैयार किया जाये, हमारी संस्कृति, भाषा, इतिहास, परम्पराओ का संरक्षण हो हमारे संवैधानिक व मूलाधिकारोँ जल जँगल जमीन का अधिकार और हमारा अस्तित्व बना रहे इसके लिए हमेँ संगठीत होना होगा और इसके लिए 9 अगस्त आदिवासी दिवस से बेहतर अवसर कोई नही ।
आज देश के आदिवासियोँ को ईमानदार संरक्षण और संवैधानिक प्रावधानों के अनुरुप विकास चाहिए । आदिवासी मांगता नहीँ है या यूँ कहेँ कि उसे मांगना आता ही नहीँ है । अपनी समस्याओ के निराकरण हेतु जब कभी भी आदिवासी आन्दोलन, धरना, जुलुस व रैली की शक्ल में राजधानी आता है । तो परम्परागत वेशभूषा के साथ अपने वद्य यंत्रों को लाना नहीँ भूलता । जल जंगल और जमीन आदिवासियों की प्राणवायु होती है भाषा संस्कृति व लोक संगीत उनकी आत्मा । प्राण वायु से वंचित करने का अपराध सरकारेँ आज तक करती आयी है । अब इसे बंद करना चाहिए । हम सरकारो के इन अपराधो को आदिवासी दिवस के अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर उठाकर बेनकाब किया जायेगा ।
श्व के इंडिजिनस पिपुल (आदिवासी) के मानवाधिकारों को लागू करने और उनके संरक्षण के लिए 1982 मेँ संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) ने एक कार्यदल (UNWGEP) के उपआयोग का गठन हुआ जिसकी पहली बैठक 9 अगस्त 1982 को हुई थी । अतः 1993 मेँ UNWGEP कार्यदल के 11 वेँ अधिवेशन मेँ आदिवासी अधिकार घोषणा प्रारुप को मान्यता मिलने पर 1993 को आदिवासी वर्ष व 9 अगस्त को आदिवासी दिवस घोषित किया गया । प्रतिनिधित्व के अधिकार से अब तक जितने भी आदिवासियों ने अपने जीवन स्तर को सुधारा है उन्हें भी अपने सामाजिक दायित्वों का बोध होना चाहिए । विकास का जो लाभ (आंशिक ही सही) हमें मिला है । उसका कुछ हिस्सा समाज में वितरण करना होगा । प्रतिनिधित्व के जो सुविधाएँ मिली है उनका निजीकरण करना बड़ा सामाजिक अपराध है । यह अवगुण आदिवासी सामाजिक विकास मेँ भी बाधक है । सरकारी सुविधाओ से शिक्षित और सम्पन्न होते अपने भाईयो से अनेकानेक अपेक्षाएँ है । प्रतिनिधित्व के अधिकार के नाते आप किसी दफतर मे अपने समुदाय के लोगो के काम करते कोई जातिवाद करने का आरोप लगाये तो आपको कहना है भाई मैँ इस पद पर मेरे लोगो के प्रतिनिधि के रुप मे काम करने के लिए संविधान ने नियुक्त किया । देश के आदिवासियोँ को अब अपनी बोली,भाषा, लिपि,संस्कृति, धर्म, परम्पराएँ व अपनी सभ्यता पर समझौता नहिं करना चाहिए । अपने मान, सम्मान और स्वाभिमान के प्रति सजग होकर विलुप्त होते गौरवशाली इतिहास को पुनर्जीवीत करना चाहिए । ऐसा तभी संभव होगा जब हम जाति वैमनस्यता और क्षेत्रिय संकीर्णता का अन्त कर, अशिक्षा, अजागरुकता, अंधविश्वास, कुरुतियां,रुढ़ियाँ, ब्राह्मणवाद के फेर व शराब मे लिप्त रहने जैसी बिमारियों को दूर करने मेँ सफलता प्राप्त कर लेँ । आओ दोस्तो हम जाति पांति भुला,हमारे अधिकार,हमारी संस्कृति,भाषा, इतिहास को बचाने के लिए संगठीत आवाज बनने के लिए विश्व आदिवासी दिवस 9 अगस्त को प्रत्येक आदिवासी अपने घरों में एकता का एक दीप जलाएँ, रोशनी करेँ तथा आदिवासी सेमीनार, सभा, सम्मेलन व सांस्कृतिक दंगल का आयोजन करें । आपस मेँ " हेप्पी आदिवासी डे " की हार्दिक शुभकामनाएँ एक दूसरे को देते हुए एक अधिकार प्राप्त करने के संघर्ष का शंख नाद करे । आप सभी दोस्तों ! को "विश्व आदिवासी दिवस" की हार्दिक शुभकामनाएँ ! —
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