Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Saturday, August 3, 2013

कातिलों, जालिमों और फासिस्टों को अपने भरोसे से खेलने मत दीजिए

कातिलों, जालिमों और फासिस्टों को अपने भरोसे से खेलने मत दीजिए

Posted by Reyaz-ul-haque on 8/03/2013 06:02:00 PM


रमजान के महीने में इफ़्तार की राजनीति बहुत होती है. शासक वर्ग की सारी पार्टियाँ इफ्तार करा कर मुस्लिम समाज को इस भुलावे में रखने की मंशा रखती हैं कि वे इस समाज की भलाई चाहने वाली पार्टियाँ हैं. इससे बड़ा झूठ  और फरेब क्या होगा कि जिन दलों और निज़ाम की वजह से मुस्लिम और दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय इतनी बदहाली, शोषण और नाइंसाफी के शिकार हैं, वही दल और निज़ाम उनको इफ्तार करा कर उनके संघर्षों और आवाज़ को छीन लेना चाहे. आज जेएनयू में ऐसे ही एक शासक वर्गीय दल का छात्र संगठन एनएसयूआई इफ्तार करा रहा है. इसके खिलाफ जेएनयू के कुछ छात्रों और छात्राओं  ने एक पोस्टर जारी किया है, जिसे कई जगहों पर एनएसयूआई के गुंडों ने फाड़ दिया है. चूंकि इफ्तार की राजनीति पूरे देश में होती है, इसे हाशिया पर पोस्ट किया जा रहा है. पोस्टर हल्ला बोल के नाम से लाया गया है.


कातिलों, जालिमों और फासिस्टों को अपने भरोसे से खेलने मत दीजिए  

NSUI की इफ्तार की दावत के बारे में चंद बातें 

आज शाम को कांग्रेसी छात्र संगठन NSUI ने इफ्तार के लिए बुलाया है. इस बारे में हम कुछ बातें करना चाहते हैं. हम इस पर बात करना चाहते हैं कि इफ्तार की दावत देने के पीछे की सियासत क्या है. यह बताने की जरूरत नहीं है कि कांग्रेस का इतिहास मुस्लिमों, दलितों, आदिवासियों, औरतों, कश्मीरियों और पूर्वोत्तर की आवाम के खिलाफ घिनौने और जालिमाना हमलों का इतिहास है. यह वही पार्टी है, जिसने 1947 में और उसके ठीक बाद हैदराबाद रियासत में बीसियों हजार मुसलमानों का कत्ल किया और किसी पर इल्जाम तक नहीं लगने दिया, गुनहगारों की सजा की बात को भूल जाइए. यह फासिस्ट हिंदुस्तानी निजाम का वही मजबूत हाथ है, जिसने हरदम मजलूम और सताए हुए अवाम पर जुल्म ढाने, नाइंसाफी करने और उसके हुकूक (अधिकार) और वसाएल (संसाधन) छीनने में अमेरिकी साम्राज्यवाद और ब्राह्मणवाद की सेवा की है. यह हुकूमत का वही चेहरा है, जिसने बाबरी मस्जिद में मूर्तियां बनी रहने दीं, जिसने 1980 के दशक में मस्जिद का ताला खोला और आखिरकार 1992 में दक्षिणपंथी फासिस्टों से मिला कर मस्जिद को शहीद कर दिया. यह वही कांग्रेस है, जिसकी हुकूमतों में पिछले 60-65 बरसों से लाखों मुसलमान नौजवान फर्जी मुकदमों में जेलों में बंद किए गए, झूठे मामलों में उन्हें सख्त सजाएं हुईं, दंगों के नाम पर मुसलमान जानो-माल पर हमले हुए, उन्हें लूटा गया, उनकी औरतों को जलील किया गया. साठ साल की अल्पसंख्यक विरोधी हिंदुस्तानी हुकूमत ने मुसलमानों को तबाह कर के और उन्हें तरक्की के सारे जरियों से महरूम करके हाशिए पर धकेल दिया. मुसलमान अपनी बदहाली के लिए इस निजाम से नफरत करते हैं तो वाजिब ही करते हैं. क्या आपको यह बताने की जरूरत है कि पिछले सात दशकों में मुसलमानों पर हुए हरेक हमले के पीछे इसी कांग्रेस और उसकी हुकूमतों का हाथ रहा है. भागलपुर से लेकर रुद्रपुर, भरतपुर और सैकड़ों ऐसी मिसालें गिनाई जा सकती हैं, जहां सेकुलर होने का ढोंग रचनेवाली कांग्रेसी हुकूमतों ने भाजपा-आरएसएस-वीएचपी और ब्राह्मणवादियों के साथ मिल कर मुसलमानों का कत्लेआम किया. क्या यह भुलाया जा सकता है कि कांग्रेसी हुकूमतों ने फर्जी मुठभेड़ों में सैकड़ों मुसलमान नौजवानों की हत्याएं कीं और गुनहगार पुलिस वाले तरक्की और इनाम हासिल करते रहे. यह वही निजाम है, जो अमेरिका के साथ मिल कर मिडिल ईस्ट के देशों पर हमले कर रहे हैं, उनको तबाह कर रहा है और उन्हें लूट रहा है. ये लोग अमेरिकी वार ऑन टेरर के सबसे अगुआ साथियों में से हैं. इनमें से किसी भी बात में ये भाजपाइयों और आरएसएस से अलग नहीं हैं. हर जगह मुसलमानों, दलितों, आदिवासियों, औरतों, कश्मीरियों और उत्तर-पूर्व के लोगों पर हमले में ये एक साथ रहते हैं. कांग्रेस और भाजपा-आरएसएस हिंदुस्तानी फासिस्ट निजाम के जालिमाना सिक्के के दो घिनौने पहलू हैं.

एक ऐसे वक्त में, जब बटला हाउस में बहा बेगुनाह नौजवानों का खून अभी सूखा नहीं है और हमारे इन बेगुनाह नौजवानों की शहादतें हमसे इंसाफ के लिए लंबी और समझौताविहीन लड़ाई की उम्मीद लिए हमारी तरफ देख रही हैं, जबकि शहजाद जैसे दूसरे सैकड़ों नौजवानों को इंसाफ दिलाने और गुनहगार पुलिस वालों और हुक्मरानों को सजा दिलाने की जिम्मेदारियों से हम फारिग नहीं हुए हैं, अभी जब हमें छत्तीसगढ़ और दूसरे अनेक राज्यों में कत्ल कर दिए गए, उजाड़ दिए गए, जेलों में बंद कर दिए हजारों-लाखों आदिवासियों, दलितों के इंसाफ के लिए आवाज उठाना और लड़ना है, तब ये इफ्तार की दावत के जरिए और दिग्विजय सिंह जैसे झूठे और मक्कार चेहरों के जरिए अवाम को भ्रम और धोखे में रखना चाहते हैं. ये चाहते हैं कि अवाम अनके असली चेहरे को भूल जाए और इनकी दावतों और मीठी-मीठी बातों के बहलावे में आ जाए. यह कांग्रेस का पुराना तौर-तरीका रहा है. 

इसलिए क्या ऐसे किसी इफ्तार में शामिल हुआ जा सकता है, जो हिंदुस्तान के फासीवादी निजाम और कांग्रेस के जनविरोधी, मुस्लिम और दलित विरोधी तारीख और चेहरे को छुपाने के लिए रचे गए नाटक का हिस्सा हो? क्या इफ्तार को हत्यारे और जालिम हुक्मरानों और उनकी सियासी पार्टियों के असली और नापाक चेहरों को छिपाने वाला मुखौटा बनाए जाने की इजाजत दी जा सकती है? यह मौका है यह बता देने का कि इफ्तार इस्लामी समाज की एक ऐसी चीज है, जिसे कातिल और जालिम हुक्मरान अपने खून से सने हाथों को छुपाने वाले दस्ताने के रूप में इस्तेमाल नहीं कर सकते. वे कोशिश कर रहे हैं ऐसी दावतों में बुला कर अवाम का मुंह बंद कर दें ताकि वह परेशान और बेचैन कर देने सवाल न पूछे और लड़ना बंद कर दे.

छत्तीसगढ़ और झारखंड-उड़ीसा में पुलिस और सीआरपीएफ के हाथों हुई आदिवासियों की शहादतों पर, खैरलांजी और बथानी टोला में मार दिए गए दलितों की शहादतों पर, शहीद आतिफ अमीन और मो. साजिद की कब्रों पर, शहीद मकबूल बट और शहीद अफजल गुरु की मजारों पर इंसाफ की उम्मीदों के फूल उगने लगने हैं. क्या उन्हें कुचल देने की इजाजत दी जा सकती है?

- अजरम रहमान, श्रीया, रूबीना, बैशाली, देविका, दावा

No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Welcome

Website counter

Followers

Blog Archive

Contributors