पहाड़ों का यह हश्र,टायट्रेन की भी सुधि नहीं!
किसी सुबास घीसिंग या विमल गुरुंग को अवतार बना देने से ही पहाड़ की समस्याओं को संबोधित करने का सही तरीका नहीं हो सकता।
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
बंगाल के बहाड़ों में इस वक्त दावानल है।कल तक मुस्कुरा रहा पहाड़ जल रहा है।मैदानों में स्वाभाविक तौर पर लोग पहाड़ के बंगाल से अलगाव के गोरखालैंड आंदोलन के खिलाफ हैं।अलगाव के बाद बने राज्यों के विकास को पैमाना माना जाये, तो अलगाव पहाड़ की समसयाओं का समाधान हो ही नहीं सकता। लेकिन पहाडों में असंतुलित विकास की समस्या और वहां रहने वाले लोगों की पहचान और अस्मिता के जायज सवाल अभी अनुत्तरित हैं।यह तेलंगाना को अलग राज्य बनाने के कांग्रेस की बहुविलंबित मुहर और केंद्र सरकार के इस मामले को लटकाये जाने का नतीजा है ,ऐसा मानना समस्या की जड़ो तक पहुंचने में सहायक नहीं है।दरअसल सत्ता पक्ष ने हमेशा अलगाववादियों को मोहरा बनाकर पहाड़ों की समस्याओं को दीर्घ काल से अवहेलित कर रखा है,इसी का परिणाम है ताजा विस्फोट। महज राजनीतिक सौदेबाजी के जरिये इस समस्या को लंबे समय तक लटकाये रखने के बेहद खतरनाक परिणाम हो सकते हैं।अब बहुत हद तक हमारे दिलोदिमाग में साफ हो जाना चाहिए कि किसी सुबास घीसिंग या विमल गुरुंग को अवतार बना देने से ही पहाड़ की समस्याओं को संबोधित करने का सही तरीका नहीं हो सकता।
सत्ता की राजनीति पहाड़ों से क्या खेल करती है,इसका ज्वलंत उदाहरण दार्जिलिंग है,जहां दशकों से विकास का काम बाधित है।चायउद्योग तहस नहस है।तमाम पर्यटनस्थलों के मुकाबले दार्जिलिंग जाने वाली सड़कें सबसे खस्ताहाल हैं। दार्जिलिंग शहर जैसा था वहीं ठहरा हुआ है।इसे महसूस करने के लिए दार्जिलिंग होकर तनिक सिक्किम घूम आइये।सिक्किम की सीमा में दाखिल होते ही नजारे बदल जायेंगे।
सबसे बड़ा सबूत है कि वैश्विक विरासत दार्जिलिंग की टाय ट्रेन सेवा करीब ढाई साल से बंद है।फिल्म आराधना और हाल में बर्फी के दृश्यों में इस टायट्रेन की झांकियां मन को भाती हैं,दार्जिलिंग ने जाने वाले लोगों को भी दार्जिलिंग का दर्शन करा देती है टायट्रेन।
दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे के तहत 78 किमी का शफर पूरा करके न्यू जलपाईगुड़ी से रवाना होकर विलंबित संगीत का मजा देती हुई टाय ट्रेन दार्जिलिंग तक पहुंचती रही है और वह यात्रा थम गयी है ,जिसके जल्दी शुरु होने के आसार नहीं है।जबकि 1999 में यूनेस्को ने इसे वर्ल्ड हेरिटेज का तमगा दिया हुआ है।लेकिन न केद्र,न राज्य और न गोरखालैंट आंदोलनकारियों को इस वैश्विक विरासत की तनिक परवाह है। कंचनजंघा पर सूर्योदय को बंगीय रोमांस का पर्याय बताया जाता है और बंगाल उस रोमांस से बेदखल होने की आशंका का शिकार है।लेकिन पहाड़ के जख्मों पर मलहम लगाये बिना।
ढाई साल पहले पागलाझोरा और तीनधारिया में भूस्खलन से टाय ट्रेन का यात्रापथ लापता हो गया है,जिसे आजतक खोजा नहीं जा सका।भूस्खलन पहाड़ में कहां नहीं होते?
अभी केदारघाटी में जलप्रलय के कारण हिमाचल से लेकर नेपाल तक भूस्खलन हुआ है।सड़कें गायब हो गयी हैं। हर साल ऐसा होता है। लेकिन कहीं भूस्खलन के बाद यात्रापथ हमेशा गायब होने की नजीर सिर्फ दार्जिलिंग में ही है।
बंगाल के ही रेल राज्यमंत्री इसकी वजह राज्य सरकार की लापरवाही बताते हैं।उनाक अभियोग है कि राज्य सरकार अकी दिलचस्पी इस वैश्विक विरासत को बचाने में कतई नहीं है।
बहरहाल दार्जिलिंग से घूम और न्यूजलपाई गुड़ी से रंगटंग के बीच टायट्रेन अब भी चलती है। वहां कहीं भूस्खलन हुआ तो यह सीमाबद्ध यात्रा भी थम जायेगी।
अधीर चौधरी का आरोप है कि रेल बजट में क्षतिग्रस्त टायट्रेन लाइन की मरम्मत के लिए 83 करोड़ रुपये दिये गये हैं। अब मरम्मत का काम राज्य सरकार को करना है,जो वह कर नहीं रही है। जबकि राज्य सरकार को पूरा पैसा मिल गया है।
इसके जवाब में उत्तरबंग उन्नयन मंत्री गौतम देव का कहना है कि रेल राज्य मंत्री असत्य बोल रहे हैं।वैसे देशभर में रेलवे लाइन की मरम्मत का काम रेलवे की ओर से होता है, टाय ट्रेन की लाइन की मरम्मत राज्य सरकार की कैसे हो गयी,इसका खुलासा होना अभी बाकी है।लेकिन यह साफ हो गया है कि इस काम को अंजाम देने में किसी पक्ष की ोर से कोई तकाजा या पहल नहीं है।
दार्जिलिंग की कथा व्यथा का यह एक बिंब मात्र हैं।
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