[LARGE][LINK=/vividh/13492-2013-08-02-13-16-04.html]एफबी पर सौ में पचासी की बात और जातिगत जहर बुझे तीर[/LINK] [/LARGE]
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Details Category: [LINK=/vividh.html]विविध[/LINK] Created on Friday, 02 August 2013 18:46 Written by दयानंद पांडेय
Dayanand Pandey : कुछ लोग हैं जो फ़ेसबुक पर सिर्फ़ जातियों की गिनती, उन के उत्थान का ठेका आदि लिए न सिर्फ़ दिन रात एक किए पड़े हैं बल्कि जातिगत उत्थान में लिपटे जहर बुझे तीर चलाने में भी सिद्धहस्त हो चले हैं और फ़ुल बेशर्मी से। कुतर्कों की बाड़ लगाते हुए। एक तरफा बात करते हुए। उन के फ़ालोवर भी खूब हैं उन्हीं की राग में हुआं- हुआं करते हुए। ऐसे ही लोगों में एक हैं दिलीप मंडल। अभी एक पोस्ट उन की आई है जिस की ध्वनि यह है कि ८५ प्रतिशत लोगों के लिए ५० प्रतशत आरक्षण बहुत कम है। थोड़ा खिसकिए, एड्जस्ट कीजिए। बड़ा कंजस्टेड हो रहा है। आदि-आदि।
दिलीप जी की दिक्कत यह है कि वह ज़रा नहीं पूरे अधपढ़ हैं। सिर्फ़ जहर बुझी बातें करने के आदी। शगल ही है यह उन का और उन की मित्रमंडली का। दिलीप मंडल भूल जा रहे हैं कि जो ८५ प्रतिशत की बात वह कर रहे हैं यह लोहिया जी की अवधारणा है। और इस अवधारणा में सिर्फ़ दलित और पिछड़े ही नहीं सारी जातियों की स्त्रियां भी आती हैं। और जो वह भी आ गईं तो दिलीप मंडल जैसों के जहर बुझे बयानों को कंजस्टेड फ़ील होने लगेगा। दिलीप जैसे लोग अपनी धुन में यह भी भूल जाते हैं कि शोषक और शोषित क्या बला है। दूसरे यह भी कि लोहिया तो जाति तोड़ो का पहाड़ा भी पढ़ाते थे। लेकिन दिलीप या इन जैसे अधपढ़ लोग जातियों की गिनती और जातिगत जहर से मुक्त ही नहीं हो पा रहे। भोजपुरी में एक कविता है न कि दुनिया गइल चनरमा पर, तें अबहिन भकुअइले बाड़े ! मेरा मानना है कि सचमुच सौ में पचासी की बात तो होनी ही चाहिए। वह चाहे आरक्षण की बात हो या कहीं की भी बात हो। पर उस पचासी में हमारी आधी दुनिया भी आती है यानी हमारी सभी स्त्रियां। तो पार्टनर इस तरफ से आंख मूंद लेने से काम चलने वाला है नहीं। इस छेद को कब तक आप जातियों के जहर में डुबो कर बंद रखे रहेंगे। लोहिया तो समूची स्त्री जाति को दलित मानते थे और स्थितियां स्त्रियों की आज भी बदली हुई नहीं हैं।
Sandeep Verma आपकी स्त्रियों को गिनने के बाद भी परसेंट में कोई फर्क नहीं पड़ने वाला . वैसे जैसे प्रयास आपने अपनी स्त्रियों के उत्थान के लिए किया है यदि वैसा ही प्रयास सभी स्त्रियों के लिए किया होता तो अब तक समस्या ही आधी रह गयी होती . दूसरी बात स्त्रियों की कोई जाति नहीं होती . इसलिए हमारी -तुम्हारी स्त्रियों का संबोधन भी उचित नहीं है .
Shivnath Shukla सब फालतू की बातें है , असल समस्या पर आप लोग क्यों नहीं जाते? अवधारणाओ की दुहाई दे कर कब तक ऐसी तैसी कराते रहेंगे? आप जब तक अकर्मण्य हैं तब तक कंज्सटेड महसूस होता ही रहेगा. आपने कर्तव्य किया नहीं और रोना रोते है! बिना कुछ किये ही पाना अकर्मण्यता की निशानी है .
Ramji Yadav आपकी स्त्रियाँ !! यानि आपकी स्त्रियाँ भी 15% में नहीं आतीं । यानि उन्हें आप स्वीकारते नहीं । उपयोग करते हैं और गिनती के वक्त 85 की ओर ठेल देते हैं !
संदीप द्विवेदी उचित कथन आदरणीय! मैं भी भी कभी दिलीप मंडल जी की लिस्ट में था मगर उनके इन्हीं विषाक्त बाणों का जब प्रत्युत्तर दिया तो कुतर्क प्रारंभ हो गया और मैंने समझ लिया कि यहाँ बात बढ़ाने का अर्थ है समय व्यर्थ करना अतः उसी क्षण इति श्री कर ली!
Dayanand Pandey संदीप वर्मा जी और राम जी यादव, आप लोग अपनी आंख का मोतियाबिंद जाने कब उतारेंगे? जाति की लड़ाई में आप लोग इतनी बदबू मारने लगे हैं कि सिवाय कुतर्क के आप सभी को कुछ सूझता ही नहीं। हमारी स्त्रियां मतलब सभी स्त्रियां ! इस या उस जाति की स्त्रियां नहीं। सौ प्रतिशत स्त्रियां। १५ या २० प्रतिशत नहीं। ज़रा मोतियाबिंद उतारिए और मेरी टिप्पणी पर फिर से गौर कीजिए। पाकिस्तान की तरह अंधा हो कर एकतरफा बात करना किसी भी समाज के लिए शुभ नहीं है। मन करे तो लोहिया और उन की अवधारणा को आरक्षण की मलाई से इतर हो कर फिर से पढ़िए। आप लोगों ने तो लोहिया छोड़िए अंबेडकर को भी उतना ही चाहते हैं जितना आप की सुविधा में समाय। अंबेडकर और लोहिया के विचारों को एक बार फिर से पढ़िए। तब आप लोग कुतर्क करना भूल कर सही बात कह और सुन पाएंगे। नहीं कौआ कान ले गया सुन कर कौआ के पीछे कब तक भागते फिरेंगे भला?
Sudha Shukla चलिये आप उतरे तो मैदान मे वरना एकतरफा बमबारी ही चल रही थी जो लोग जाति इतना रोना मचाए है उसे मुकुट की तरह सजा के क्यों रखते हैं उछिस्त की तरह उतार फेंकें न लेकिन फिर एकला कुश्ती कैसे लड़ेंगे लोग । खाते भी जाएंगे और महा बाभन की नौ अर्राते भी जाएंगे तभी न देश का श्राद्ध कर पाएंगे एक औरत ने जरा सा दम दिखा दिया तो सीएम तक रोना पीटना मन गया है । अरे बात करनी है तो रोजगार बदने की कीजिये नियुक्तियों की कीजिये लोग परीक्षा पास कर इंतेजर मे बूढ़ा रहें है लेकिन अदालत मे स्टे पर स्टे है गर्हित सोच के साथ नए फार्मूले गड रहे हैं और लोगों को सरकारी मलाई ही चाहिए । फड़ाई मे आरक्षण admisson मे आरक्षण फीस मे छूट नौकरी मे आरक्षण आखिर एक सुविधा कितनी बार लेंगे ?btecएमबीबीएस सब जगह आरक्षण के चलते स्तर कितना गिर गया है दुनिया के institution मे देश के संस्थान का नाम गायब हो गया सरकारी अस्पताल मे लोग इलाज नहीं करानाचाहते जो आरक्षण का राग अलापते है वो भी 65 साल मे आदमी पैदा होकर मर भी जाता है लेकिन एक इंसान की उम्र भर के बाद अब सबको घर बैठे ही सबकुछ चाहिए ऐसे लोगो को lolypop तो देने का वादा किया है यूपीए ने आज । जो सरकार खाना 1 रु और 5 रु मे खिला रही है वह मानरेगा मे फ्री मोबाइल बाटने वाली है ,लेकिन यहाँ तो फ्री मे दो तो दो दो वाले है ।
Sandeep Verma पिछडो के आरक्षण के जो बिंदु है उनमे सामाजिक पिछड़ापन को पैमाना बनाया गया है .उन पैमानों में जो भी जातिया चाहे वह ब्राम्हण हो या वैश्य या शूद्र या मुस्लिम सभी के पुरुष और स्त्रियाँ शामिल है . अगर सामाजिक पैमाने के पिछड़ापन में कुछ जातियों की स्त्रियो की गिनती पिछड़ेपन में नहीं आई है तो इसके लिए उन पैमानों को दोष दीजिये . उक्त पैमाने कहते है कि कुछ समाजो की स्त्रियाँ की स्तिथि पिछड़े-पन की नहीं है . अगर कुछ महिलायों को मलाईदार मानकर या जानकार नहीं शामिल किया गया है तो अधिक दुःख नहीं होना चाहिए क्यों कि पचासी प्रतिशत में साढ़े-बयालीस प्रतिशत तो स्त्रिया आ ही गयी है . आप सिर्फ मलाईदार वर्ग की साढ़े सात प्रतिशत स्त्रियों के बारे में ही तो चिंतित हो रहे है .
Ramji Yadav आप लोग अपनी आंख का मोतियाबिंद जाने कब उतारेंगे? जाति की लड़ाई में आप लोग इतनी बदबू मारने लगे हैं कि सिवाय कुतर्क के आप सभी को कुछ सूझता ही नहीं। हमारी स्त्रियां मतलब सभी स्त्रियां ! इस या उस जाति की स्त्रियां नहीं। सौ प्रतिशत स्त्रियां। १५ या २० प्रतिशत नहीं। ...पांडे कौन कुमति टोहें लागी । काहें बक्कइ गारी ?
Dayanand Pandey रामजी यादव जी, जब तर्क और तथ्य नहीं होता है तो आदमी कुमति जैसे विशेषणों की आड़ ले ही लेता है। और संदीप जी, आप बरगलाइए नहीं। आरक्षण के लाभ के हश्र के व्यौरों में भी जाइए और बताइए कि आरक्षण का कैसे तो कुछ मुट्ठी भर लोगों ने दुरुपयोग कर भ्रष्टाचार के दुर्ग खड़े किए हैं। असली हकदार वह चाहे दलित हों या पिछड़े बिचारे जहां के तहां मुंह बाए खड़े हैं इतने सालों बाद भी। इन मसलों पर बोलिए और आंख खोलिए। आप अपनी फ़ोटो की जगह विश्वनाथ प्रताप सिंह की फ़ोटो लगा कर कब तक लोगों को बहकाएंगे और बरगलाएंगे? लीजिए इसी बात पर विश्वनाथ प्रताप सिंह की एक कविता सुनिए और गौर कीजिए इस पर। शीर्षक है लिफ़ाफ़ा। 'पैगाम उन का/ पता तुम्हारा/ बीच में फाड़ा मैं ही जाऊंगा।' और सोचिए कि कब तक देश में वंचितों के साथ छल होता रहेगा। कब तक बिचारे लिफ़ाफ़ा बने फटते रहेंगे? जातियों के महायुद्ध से निकल कर वंचितों की लड़ाई लड़िए। जो गांधी कहते थे कि कतार के आखिरी आदमी की बात उस पर सोचिए। लफ़्फ़ाज़ी से न कोई देश चलता है, न कोई समाज, न ही कोई आइडियालजी ! लफ़्फ़ाज़ी से सिर्फ़ आदमी का स्वार्थ चलता है और अहंकार पलता है। कुछ और नहीं।
Sandeep Verma दयानंद जी ,आरक्षित वर्ग के जिन लोगो ने भी भ्रष्टाचार में दुर्ग खड़े कर लिए हो उनके बारे में कोई सर्वे हुवा है क्या ...फिलहाल तो बिना आरक्षण वाले सवर्ण नौकर-शाहों के बारे में ही पढ़ा करते है . मेरिट वाले प्रदीप शुक्ल हो या अखंड प्रताप सिंह ..भ्रस्ताचार के दुर्ग तो सवर्ण नौकरों के ही दीखते है . वैसे भी क़ानून है उसे काम करने दीजिये . सरकारी नौकरी ना तो सवर्णों को ना ही पिछडो के लिए भ्रस्ताचार करने का लाईसेंस है . ऐसे लोगो को बचाने की आप कोशिश क्यों कर रहे है . पुनः एक कमीशन बिठाइये ,मगर उससे पहले आपको आरक्षित पदों को भरने का काम तो करना ही पड़ेगा . यह थोड़े चलेगा कि योग्य अभ्यर्थी ना मिलने के कारण आरक्षित कोटे में सवर्णों की भाई-भतीजा वाद के कारण भर्ती कर दी गयी .
Dayanand Pandey संदीप जी, एकतरफ़ा बात करने से कोई फ़ायदा है भला? मैं वंचितों की बात कर रहा हूं और कि आप जातियों में ही उलझे पड़े हैं। रही बात भ्रष्टाचार की तो प्रदीप शुक्ला के पिता जी हैं बाबू सिंह कुशवाहा, अखंड प्रताप सिंह के पिता जी हैं मुलायम सिंह यादव। नीरा यादव को आप भूल ही गए हैं। पी. एल. पुनिया जैसे होशियार तो तमाम भ्रष्टाचार कर साफ निकल गए। आप को मालूम है कि मायावती के सचिव रहे फ़तेहबहादुर सिंह की माली हालत क्या है? और कि कितने दलित अफ़सरों के खिलाफ़ आय से अधिक संपत्ति की जांच चल रही है? और कि कितने सी.बी.आई.की जांच के घेरे में हैं? अदालत द्वारा दोषी होने के बावजूद अखिलेश के राज में राजीव कुमार नियुक्ति सचिव बने बैठे हैं। अनीता सिंह जो अखिलेश की 'माता जी' ही हैं सचिव बनी बैठी हैं। लंबी सूची है। ए राजा, कनिमोझी, मुलायम, मायावती,लालू प्रसाद यादव, जयललिता आदि तो भ्रष्टाचार और आरक्षण दोनों ही के सरताज हैं। आय से अधिक संपत्ति के कितने मामले हैं इन के खिलाफ़ आप नहीं जानते हैं कि लोग नहीं जानते? लालू के खिलाफ़ फ़ैसला आने को होता है तो कानूनी खुरपेंच का सहारा ले कर जज बदलवा लेते हैं। मुलायम के खिलाफ़ मामला सुनते सुनते जज रिटायर हो जाता है। मायावती के खिलाफ़ कोई मामला आता है तो दलित की बेटी बन जाती हैं। नहीं हीरे का मुकुट पहन लेती हैं। यह सब क्या है? वंचितों की लड़ाई है? मायावती मंत्रीमंडल के कितने मंत्री जेल में हैं और कितने जाने की तैयारी में हैं? और इस में कितने लोग आरक्षण का गुलगुला चाभ कर यह सब बड़ी बेशर्मी से करते रहे हैं? मायावती और मुलायम को या करुणानिधि को भी यू पी ए सरकार से समर्थन वापसी सोचते ही सांस क्यों फूल जाती है? सोचा है कभी? ममता ने तो आनन-फानन समर्थन वापस ले लिया। ममता बनर्जी की सांस क्यों नहीं फूली? बातों की तफ़सील ज़रा नहीं बहुत लंबी है। तो ज़रा इन बातों पर भी खुल कर बहस होनी चाहिए न?
Sandeep Verma इन नामो में कितने लोग आरक्षण का फायदा उठा रहे है ?
Dayanand Pandey क्या संदीप जी, आप तो बहुत मासूम और नादान हैं !
Sandeep Verma ये मलाईदार यानी क्रीमी-लेयर भी कुछ होता है .
Dayanand Pandey जी होता तो है। आप ही उस की तफ़सील में जा कर खुलासा कर दीजिए। लेकिन दो ठो नाम अगर आप बता दीजिए जो क्रीमीलेयर में आ कर आरक्षण का गुलगुला चाभना बंद कर दिए हों। क्रीमी-लेयर बढ़ने के लगातार रिकार्ड से भी आप परिचित ही होंगे। योजना विभाग के आंकड़ों में गरीब घट रहे हैं, क्रीमी-लेयर बढ़ रहा है। यह सब वैसे ही है जैसे अपने नेता लोग ५ रुपए या १२ रुपए में भरपेट भोजन करवा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के एक मुख्य न्यायाधीश हुए हैं जस्टिस बालाकृष्णन। नाम सुने ही होंगे आप भी। यह भी आरक्षण का गुलगुला खाते हैं। पर इकलौते मुख्य न्यायाधीश हैं यह सुप्रीम कोर्ट के जिन के खिलाफ़ आय से अधिक संपत्ति मामले की जांच चल रही है। संदीप, जी मैं फिर दुहरा रहा हूं कि वंचितों की बात कीजिए। जातियों की गर्त से निकलिए। कुछ नहीं रखा है इस में। बाकी तो चचा गालिब फ़रमा ही गए हैं दिल को बहलाने को गालिब ये खयाल अच्छा है। देश बेचने वालों के खिलाफ़ खड़े होइए। जातिगत बुझे तीरों में इन मसलों का हल नहीं है। वंचितों के हक की लड़ाई लड़िए। आप् लोग अभी जो लड़ाई लड़ रहे हैं वह नकली लड़ाई है। असली लड़ाई लड़िए, वंचितों की लड़ाई।
[B]वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार दयानंद पांडेय के फेसबुक वॉल से.[/B]
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