चन्द्रशेखर करगेती shared a photo.
हर तरफ़ काला कानून दिखाई देगा....
(बल्ली सिंह चीमा की एक कविता नैनीताल के एसएसपी डॉ० सदानन्द दाते को समर्पित )
हर तरफ़ काला कानून दिखाई देगा ।
तुम भले हो कि बुरे कौन सफ़ाई देगा ।
सैकड़ों लोग मरे, क़ातिल मसीहा है बना,
कल को सड़कों पर बहा ख़ून गवाही देगा ।
वो तुम्हारी न कोई बात सुनेंगे, लोगो !
शोर संसद का तुम्हें रोज़ सुनाई देगा ।
इस व्यवस्था के ख़तरनाक मशीनी पुर्ज़े,
जिसको रौंदेंगे वही शख़्स सुनाई देगा ।
अब ये थाने ही अदालत भी बनेंगे 'बल्ली'
कौन दोषी है ये जजमेंट सिपाही देगा ।
यह कविता मेरे आदर्श जननेता श्री बहादुर सिंह "जंगी" का जन समस्याओं को निरंतर उठाने की एवज में नैनीताल एसएसपी द्वारा देशद्रोही कहे जाने पर विरोध स्वरूप पोस्ट की गयी है, यह हमारे राज्य उत्तराखण्ड का दुर्भाग्य है कि, डॉ० सदानन्द दाते जैसे उच्च शिक्षित अधिकारी जो ना यहाँ के इतिहास से वाकिफ है ना यहाँ के जमीन से जुड़े लोगो से ? आज जंगी जी जैसे राज्य आंदोलनकारियों और सक्रीय विपक्षी राजनेता को राजद्रोही के आरोप में यदि गिरफ्तार किया जाता है, तो लानत हैं ऐसी सोच पर !
आप भी जाने कौन है श्री बहादुर सिंह जंगी......
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जंगी ने सिखाई हक-हकूक की जंग (आज उनका जन्मदिन भी है)
होश था पर जोश दिखाने का जुनून नहीं, जुबान थी तो बोलने की हिम्मत नहीं पड़ती थी, अत्याचार भी सहते रहे लेकिन विरोध का साहस कभी नहीं जुटा पाए। इस बीच जन्मे एक बहादुर,श्री बहादुर सिंह जंगी ने जब हक-हकूक की अलख जगाई तो उन्हीं लोगों में होश के साथ जोश भी दिखने लगा और अधिकारों के लिए तनकर खड़े होने का जज्बा भी आ गया। बरेली रोड स्थित फत्ताबंगर में भूमिहीन परिवार में 16 अक्टूबर 1949 को जन्मे बहादुर सिंह जंगी के परिजन मजदूरी करते थे। शिक्षा-दीक्षा हासिल करने के दौरान 18 वर्ष की आयु में ही श्री जंगी का चयन 1966 में भारतीय सेना में हो गया। तैनाती जम्मू के कुपवाड़ा क्षेत्र में मिली।
उसी दौरान दिसंबर 1967 में किसान नेता चारु मजूमदार के नेतृत्व में भूमिहीन किसानों ने बड़ा किसान आंदोलन छेड़ दिया। स्थितियां बिगड़ती चली गई। किसान विद्रोह को रोकने के लिए केंद्र की इंदिरा गांधी सरकार को सेना की मदद लेनी पड़ी। इस क्रम में आंध्र प्रदेश में जिन जबानों की बटालियन लगी थी। उनमें श्री जंगी भी थे। किसान विद्रोह को कुचलने के लिए जब अधिकारियों ने लाठी चार्ज और फिर गोली चलाने के निर्देश दिए।
बस, यहीं आकर श्री जंगी की मन बदल गया और उन्हें यह याद आ गया कि उनका परिवार भी एक भूमिहीन किसान परिवार है। मन ने जब साथ नहीं दिया तो उन्होंने फौज की नौकरी छोड़ने की पेशकश कर दी। अधिकारियों ने समझाते हुए प्रार्थनापत्र को निरस्त कर दिया। समझाने के बाद भी जब जंगी नहीं माने तो इसे अनुशासनहीनता करार देते हुए उन्हें एक माह के लिए जेल भेज दिया। उसके बाद ड्यूटी पर फिर ले लिया। 1970 में अरूणांचल प्रदेश में लगाया गया, वहां फौज के कई भ्रष्टाचार के मामले देखे तो उसका विरोध शुरू कर दिया। आखिरकार जंगी को सेना से बाहर करना ही पड़ा।
सरकारी बेडि़यों से मुक्त हुए जंगी ने भूमिहीन किसानों की आवाज बुलंद करने का बीड़ा उठाया और लौटकर अपने घर फत्ताबंगर आ गए। यहां देखा कि फत्ताबंगर, बिंदूखत्ता, खुडि़याखत्ता (श्रीलंका टापू), बिरखन, कूल और मदकीना क्षेत्र के भूमिहीन लोगों के मन में भी भूमि पर मालिकाना हक पाने की कसक है तो श्री जंगी ने भी हक-हकूक के लिए तनकर खड़े होने का जज्बा पैदा कर दिया। फिर क्या था, किसान विद्रोह की सुलग रही चिंगारी ने भी आग का रूप ले लिया। जन बल के हथियार को लेकर संघर्ष करने वाले श्री जंगी ने फत्ताबंगर, मोतीनगर की सरकारी भूमि पर भूमिहीन किसानों को बसाया। 1972 में बिंदुखत्तावासियों को बसाने के लिए संघर्ष किया।
उस वक्त प्रदेश में काबिज चौधरी चरण सिंह सरकार ने इस संघर्ष को कुचलने के लिए भारी पुलिस बल और सेना लगाई। मगर आंदोलन नहीं डिगा, बल्कि भूमिहीन परिवारों ने बिंदुखत्ता की जमीन को जोत डाला। संघर्ष के लिए हरित श्वेत क्रांतिकारी परिषद का गठन कर लिया। सोसलिस्ट और कम्युनिस्ट विचारधारा के लोग इस परिषद के बैनर तले एकत्र हुए और फिर सरकार से मोर्चा लेते हुए चरणबद्ध आंदोलन चलता रहा। सरकार का दमन भी झेलते रहे। सरकार को जब आंदोलन थमता नहीं दिखा तो 1983 में आंदोलन के अगुवा बहादुर सिंह जंगी और उनके दो साथी अंबादत्त खोलिया व सूबेदार बहादुर सिंह चुफाल पर नेशनल सिक्योरिटी एक्ट (रासुका) लगा दी।
पहले हल्द्वानी जेल में रखा फिर इन्हें बरेली सेंट्रल जेल भेज दिया। बावजूद आंदोलन नहीं टूटा और इससे जुड़े लोग इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंच गए। हाईकोर्ट के निर्देश पर श्री जंगी को छोड़ना पड़ा। जेल से छूटे जंगी ने आंदोलन को और धार दी, जिसका परिणाम यह रहा कि वन विभाग समेत सरकार ने उन पर अलग-अलग तरह से करीब 32 मुकदमे लगा दिए। वर्ष 1986 और 87 में इन्हें फिर जेल भेज दिया गया। इनकी गिरफ्तारी का लाभ उठाकर शासन ने बिंदुखत्ता में बसे करीब छह हजार भूमिहीन परिवारों को बेदखली का नोटिस भेज दिया और हल्द्वानी व रुद्रपुर एसडीएम कोर्ट में सभी पर मुकदमे लगा दिए। जेल से छूटने पर जंगी ने मुकदमे की पैरवी बंद करने का निर्णय लिया। ऐसे में कोई भी मुकदमा की तारीख पर नहीं गया। आखिरकार सरकार को बेदखली की कार्रवाई भी रोकनी ही पड़ी।
इसी बीच श्री जंगी ने राशन कार्ड मुहैया कराने की आवाज बुलंद कर दी। सरकार ने फिर श्री जंगी समेत 13 लोगों को जेल भेज दिया। मगर बुलंद इरादों के आगे सरकार को यहां भी झुकना पड़ा और 1988 में राशन कार्ड बनाने के आदेश जारी हो गए। उसके बाद यहां सड़क भी बनवाई गई औ लोगों के घरों में रोशनी भी हुई।
अब भी खत्तो को राजस्व गांव का दर्जा देने की मांग को लेकर संघर्ष कर रहे जंगी जी कहते हैं कि भूमिहीन किसानों को हक-हकूक दिलाने के लिए करीब 37 मुकदमे झेले और और 13 बार जेल जा चुका हूं मगर हिम्मत अब भी नहीं हारूंगा !
(आभार:दैनिक जागरण)
होश था पर जोश दिखाने का जुनून नहीं, जुबान थी तो बोलने की हिम्मत नहीं पड़ती थी, अत्याचार भी सहते रहे लेकिन विरोध का साहस कभी नहीं जुटा पाए। इस बीच जन्मे एक बहादुर,श्री बहादुर सिंह जंगी ने जब हक-हकूक की अलख जगाई तो उन्हीं लोगों में होश के साथ जोश भी दिखने लगा और अधिकारों के लिए तनकर खड़े होने का जज्बा भी आ गया। बरेली रोड स्थित फत्ताबंगर में भूमिहीन परिवार में 16 अक्टूबर 1949 को जन्मे बहादुर सिंह जंगी के परिजन मजदूरी करते थे। शिक्षा-दीक्षा हासिल करने के दौरान 18 वर्ष की आयु में ही श्री जंगी का चयन 1966 में भारतीय सेना में हो गया। तैनाती जम्मू के कुपवाड़ा क्षेत्र में मिली।
उसी दौरान दिसंबर 1967 में किसान नेता चारु मजूमदार के नेतृत्व में भूमिहीन किसानों ने बड़ा किसान आंदोलन छेड़ दिया। स्थितियां बिगड़ती चली गई। किसान विद्रोह को रोकने के लिए केंद्र की इंदिरा गांधी सरकार को सेना की मदद लेनी पड़ी। इस क्रम में आंध्र प्रदेश में जिन जबानों की बटालियन लगी थी। उनमें श्री जंगी भी थे। किसान विद्रोह को कुचलने के लिए जब अधिकारियों ने लाठी चार्ज और फिर गोली चलाने के निर्देश दिए।
बस, यहीं आकर श्री जंगी की मन बदल गया और उन्हें यह याद आ गया कि उनका परिवार भी एक भूमिहीन किसान परिवार है। मन ने जब साथ नहीं दिया तो उन्होंने फौज की नौकरी छोड़ने की पेशकश कर दी। अधिकारियों ने समझाते हुए प्रार्थनापत्र को निरस्त कर दिया। समझाने के बाद भी जब जंगी नहीं माने तो इसे अनुशासनहीनता करार देते हुए उन्हें एक माह के लिए जेल भेज दिया। उसके बाद ड्यूटी पर फिर ले लिया। 1970 में अरूणांचल प्रदेश में लगाया गया, वहां फौज के कई भ्रष्टाचार के मामले देखे तो उसका विरोध शुरू कर दिया। आखिरकार जंगी को सेना से बाहर करना ही पड़ा।
सरकारी बेडि़यों से मुक्त हुए जंगी ने भूमिहीन किसानों की आवाज बुलंद करने का बीड़ा उठाया और लौटकर अपने घर फत्ताबंगर आ गए। यहां देखा कि फत्ताबंगर, बिंदूखत्ता, खुडि़याखत्ता (श्रीलंका टापू), बिरखन, कूल और मदकीना क्षेत्र के भूमिहीन लोगों के मन में भी भूमि पर मालिकाना हक पाने की कसक है तो श्री जंगी ने भी हक-हकूक के लिए तनकर खड़े होने का जज्बा पैदा कर दिया। फिर क्या था, किसान विद्रोह की सुलग रही चिंगारी ने भी आग का रूप ले लिया। जन बल के हथियार को लेकर संघर्ष करने वाले श्री जंगी ने फत्ताबंगर, मोतीनगर की सरकारी भूमि पर भूमिहीन किसानों को बसाया। 1972 में बिंदुखत्तावासियों को बसाने के लिए संघर्ष किया।
उस वक्त प्रदेश में काबिज चौधरी चरण सिंह सरकार ने इस संघर्ष को कुचलने के लिए भारी पुलिस बल और सेना लगाई। मगर आंदोलन नहीं डिगा, बल्कि भूमिहीन परिवारों ने बिंदुखत्ता की जमीन को जोत डाला। संघर्ष के लिए हरित श्वेत क्रांतिकारी परिषद का गठन कर लिया। सोसलिस्ट और कम्युनिस्ट विचारधारा के लोग इस परिषद के बैनर तले एकत्र हुए और फिर सरकार से मोर्चा लेते हुए चरणबद्ध आंदोलन चलता रहा। सरकार का दमन भी झेलते रहे। सरकार को जब आंदोलन थमता नहीं दिखा तो 1983 में आंदोलन के अगुवा बहादुर सिंह जंगी और उनके दो साथी अंबादत्त खोलिया व सूबेदार बहादुर सिंह चुफाल पर नेशनल सिक्योरिटी एक्ट (रासुका) लगा दी।
पहले हल्द्वानी जेल में रखा फिर इन्हें बरेली सेंट्रल जेल भेज दिया। बावजूद आंदोलन नहीं टूटा और इससे जुड़े लोग इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंच गए। हाईकोर्ट के निर्देश पर श्री जंगी को छोड़ना पड़ा। जेल से छूटे जंगी ने आंदोलन को और धार दी, जिसका परिणाम यह रहा कि वन विभाग समेत सरकार ने उन पर अलग-अलग तरह से करीब 32 मुकदमे लगा दिए। वर्ष 1986 और 87 में इन्हें फिर जेल भेज दिया गया। इनकी गिरफ्तारी का लाभ उठाकर शासन ने बिंदुखत्ता में बसे करीब छह हजार भूमिहीन परिवारों को बेदखली का नोटिस भेज दिया और हल्द्वानी व रुद्रपुर एसडीएम कोर्ट में सभी पर मुकदमे लगा दिए। जेल से छूटने पर जंगी ने मुकदमे की पैरवी बंद करने का निर्णय लिया। ऐसे में कोई भी मुकदमा की तारीख पर नहीं गया। आखिरकार सरकार को बेदखली की कार्रवाई भी रोकनी ही पड़ी।
इसी बीच श्री जंगी ने राशन कार्ड मुहैया कराने की आवाज बुलंद कर दी। सरकार ने फिर श्री जंगी समेत 13 लोगों को जेल भेज दिया। मगर बुलंद इरादों के आगे सरकार को यहां भी झुकना पड़ा और 1988 में राशन कार्ड बनाने के आदेश जारी हो गए। उसके बाद यहां सड़क भी बनवाई गई औ लोगों के घरों में रोशनी भी हुई।
अब भी खत्तो को राजस्व गांव का दर्जा देने की मांग को लेकर संघर्ष कर रहे जंगी जी कहते हैं कि भूमिहीन किसानों को हक-हकूक दिलाने के लिए करीब 37 मुकदमे झेले और और 13 बार जेल जा चुका हूं मगर हिम्मत अब भी नहीं हारूंगा !
(आभार:दैनिक जागरण)
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