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Wednesday, March 11, 2015

सड़कों पर आने वाले लोगों को हो नहीं है बंद होंगे एअर इंडिया,एमटीएनएल और हिंदुस्तान शिपयार्ड समेत तमाम बीमार सार्वजनिक उपक्रम,रेलवे बेधड़क बिकने लगा पलाश विश्वास

सड़कों पर आने वाले लोगों को हो नहीं है


बंद होंगे एअर इंडिया,एमटीएनएल और हिंदुस्तान शिपयार्ड समेत तमाम बीमार सार्वजनिक उपक्रम,रेलवे बेधड़क बिकने लगा

पलाश विश्वास

कल सुबह सवेरे आनंद तेलतुंबड़े का फोन आ गया। वे यह जानना चाहते थे कि हस्तक्षेप पर लिखे  आलेख दीदी दुर्गति - महाबलि क्षत्रपों की मूषक दशा निरंकुश सत्ता की चाबी

बहुसंख्य बहुजनों को अस्मिताओं से रिहा करके वर्गीय ध्रुवीकरण के रास्ते पर लाये बिना मुक्तिमार्ग लेकिन खुलेगा नहीं (http://www.hastakshep.com/intervention-hastakshep/rajynama/2015/03/09/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B6-%E0%A4%B8%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A5%80) पर किसी की कोई प्रतिक्रिया आयी या नहीं।हम उनसे बात नहीं कर पाये।जबसे मोबाइल लिया है,एअरटेल से देश भर से संपर्क साधता रहा हूं।इधर एअरटेल के नेटवर्क का हल यह है कि न सविता बाबू के फोन पर किसी से बात हो पाती है और न मेरे फोन पर।लैंडलाइन माशाअल्ला है।आनंद से पूरी बातचीत हो नहीं पायी है।


फिलहाल कल से बेड रेस्ट पर हूं।महीनेभर ढीली तबीयत के बावजूद गाड़ी खींचता रहा।कल खांसी के इतने भयानक दौरे पड़े और कमजारी इतनी हो गयी कि डाक्टर की शरण में जाना पड़ा।गनीमत है कि शुगर नार्मल है।डाक्टर के मुताबिक बिना एंंटीबायोटिक के शुगर के मरीज को हुए इंफेक्शन का कोई इलाज नहीं है और यह इंफेक्शन कैसा आकार ले सकता है,कहना मुश्किल है।उन्होंने बेहद महंगे एंटीबायोटिक दे दिये।


कल रातभर और आज दिनभर लगभग सोता ही रहा।लेकिन सार्वजनिक उपक्रमों के बारे में जो ताजा जानकारी मिली है.उसे शेयर किये बिना चलेगा नहीं,इसलिए रात के नौ बज पीसी पर बैठ गया हूं।



हमारे लोग आनंद और मेरे लिखे को पढ़ते जरुर हैं,लेकिन कोई प्रतिक्रिया देते नहीं है।हम लोग बामसेफ में जब तक थे तब तक आर्थिक मुद्दों पर लगातार देश के कोने कोने में आम जनता के बीच वर्कशाप,प्रेजेंटेशन और सभाएं करते रहे हैं।दस साल लगातार बजट का विश्लेषण व्यापक स्तर पर हुआ है।


हम चाहते थे कि बहुजन कैडरों को हम आर्थिक कैडरों में बदलें।हर सेक्टर के कर्मचारियों को अलग अलग संबोधित करते हुए विनिवेश कौंसिल,विनिवेश मंत्रालय,विनिवेश आयोग और विशेषज्ञ समितियों की रपटें सामने रखकर बताते रहे हैं कि कैसे संपूर्ण निजीकरण के रास्ते पर अबाध पूंजी की यह मुक्तबाजारी व्यवस्था है और कैसे बहुजनों के सरकारी नौकरियों से हटाकर सड़क पर लाने की तैयारी है।


जल जंगल जमीन और नागरिकता,आजीविका,संसाधनों,पर्यावरण,नागरिक और मानवाधिकारों से निरंकुश बेदखली का खुलासा ही मेरे लेखन के मुद्दे रहे हैं।हमने एअरइंडिया,बैंकिंग,पोर्ट,जीवनबीमा,रेलवे जैसे सेकटरों के अफसरों और कर्मचारियों से लगातार संवाद करके निरंतर बताने का प्रयास किया है कि मुक्त बाजारी अर्थव्यवस्था किस कयामत का नाम है।


देश भर के शरणार्थियों,आदिवासियों,बंजारा समुदायों,किसानों के भी हमने यथासंभव संबोधित करने की कोशिश की है।


जनांदोलन की बात कहकर राजनीति करने वाले लोगों को हमारे कहे लिखे पर खास तकलीफ होती है।अंबेडकरी आंदोलन को जाति और पहचान की तिलिस्म से निकालने की हमारी हर कोशिश फेल हो गयी है और तमाम मसीहा हमारे खिलाफ हैं और उनके अंध भक्त अपनी इंद्रियों पर ताला डालकर बैठे हुए हैं।किसी को खबर है ही नहीं कि जंगल की आग उनके घर,नौकरी,जान माल सबकुछ स्वाहा करने वाली है।


हम शुरु से ही मनमोहन सिंह को कोयला घोटाला के लिए जिम्मेदार मानते रहे हैं और देश की आजादी के बाद तमाम घोटालों के जिम्मेदार महामहिम संप्रदाय को मिले संवैधानिक रक्षा कवच को तोड़ने की जरुरत बताते रहे हैं।


गौरतलब है कि ओडिशा में 2005 में तालाबीरा-2 कोयला ब्लॉक आवंटन से जुड़े कोयला घोटाला के एक मामले में विशेष अदालत ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पांच अन्य को आज आरोपी के तौर पर समन जारी किए और आठ अप्रैल को पेश होने के लिए कहा है।  


आज मीडिया की सबसे बड़ी खबर यही है।लेकिन घोटालों का जो अनंत सिलसिला अब मुक्तबाजारी अश्वमेध है,जो डाउ कैमिकल्स औक मनसैंटो की हुकूमत है,कारपोरेट फंडिंग की जो राजनीति है और कारपोरेटलाबिइंग का जो राजकाज बिजनेस फ्रेंडली है,विकास गाथा के अच्छे दिनों में सूचकांक के उछल कूद में जैसे आम जनता को दिवालिया बनाने का चाकचौबंद इंतजाम है,उसपर दिंगतव्यापी सन्नाटा है और फोकस आप है क्रिकेट है।


हम जबसे 2010 से बामसेफ से अलग हो गये,हमारे पास को राष्ट्रव्यापी न मंच है और न कोई संगठन।हम जनता को संबोधित नहीं कर सकते सीधे तौर पर और न अब तक के विचारधारा के नाम पर चलनेवाले संगठनों की भूमिका के मद्देनजर देश भर के साथियों की मांग के मुताबिक नये सिरे से संगठन बनाने की कवायद कर सकते हैं क्योंकि ऐसे संगठनों का नतीजा उसी तरह सिफर है जैसे विचारधारा के नाम पर चलने वाले राजनीतिक दलों का।


फौरी जरुरत इस अश्वमेधी नरमेधी घोड़ों और निरंकुश सांढ़ों को रोकने की है।जिसके लिए देशव्यापी जनमोर्चा भारतीय जनता का बनना चाहिए,अस्मिताओं को तोड़कर आम जनता को गोलबंद करने की जरुरत है।


जिस सर्वहारा तबके की बात हम करते हैं,वे परस्परविरोधी लाल और नीले खेमों में एक दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं,दोनों तरफ से वहींच अस्मिता राजनीति।


सरकारी उपक्रमों और रेलवे जैसे सबसे बडें सरकारी महकमे के संपूर्ण निजीकरण के बाद पीपीपी माडल पर जाति और पहचान के नाम पर किन लोगों को दो करोड़,तीन करोड़ की नौकरियों मिल सकती है,यह हमारे लोगों को समझ में नहीं आ रही है।


सरकारी महकमों और उपक्रमों में ट्रेडयूनियन वर्चलस्व लेकिन वाम विचारधारा का है और हमारे वामपंथी मित्र अर्थव्यवस्था और अर्थ शास्त्र हमसे बेहतर जानते हैं।लेकिन उनने पिछले तेईसे साल से कुछ किया नहीं है।


अटल जमाने से जो निजीकरण और विनिवेश का ब्लू प्रिंट अमल में लाया जा रहा है विकास,रोजगार,निवेश और वित्तीयघाटा के बहाने,उसकी परिणति अब डिफेंस में भी शत प्रतिशत एफडीआई है और खुदरा बाजार अलीबाबाओं के हवाले हैं।


इसे अमली जामा पहनाने में लाल नील पक्ष का हाथ भी कम नहीं है क्योंकि उदारीकरण जमाने में उनका केंद्र की स्ता से नाभि नाल का संपर्क है।

लिविंग इन तौ है ही।

गजब का तालमेल है और मौसम के मिजाज मुताबिक रुक रुककर हानीमून का सिलसिला बेशर्म।


हम शुरु से कहते रहे हैं कि नागरिकता संशोधन विधेयक न सिर्फ मुसलामानों और न सिर्फ विभाजनपीड़ित हिंदू शरणार्थियों के देश निकाले के लिए है,यह आदिवासियों,बंजारा समुदाओं ,किसानोंऔर नगरों, महानगरों में विस्तापित आबादियों की बेदखली का ब्लू प्रिंट है।


हम शुरु से कहते रहे हैं कि डिजीटल इंडिया दरअसल बिलिनियर मिलिनियर इंडिया है और बाकी लोगों के सफाये के लिए नाटो की यूनिक परियोजना आधार है,जिसके तहत भारत का हर नागिरिक डिजिटल,बायोमेट्रिक,रोबोटिक क्लोन है और उसकी निराधार को पहचान नहीं है और अमेरिकी हितों,अबाध विदेशी पूंजी  के वधस्थल बने देश में हर शख्स अमेरिकी निगरानी में है।


हमारी सुरक्षा और आंतरिक सुरक्षा पेंटागन, नासा, नाटो, मोसाद,एनएसए,एफबीआई,सीआईए और रंगबिरंगी अमेरिकी और इजराइसी एजंसियों के हवाले में है और पूरा का पूरा राज्यतंत्र सैन्यतंत्र है,आफसा है और सलवा जुड़ुम है।


इन मुद्दों पर बाकी जनता की क्या सोच है,जो नख से शिख तक बजरंगी हैं.समझना मुश्किल नहीं है।


रेल बजट और बजट के मुताबिक देश में बहारो बहार है और धकाधक सार्वजनिक उपक्रों और विभागों,राष्ट्र और जनता  के तमाम संसाधनों को बजने देश भर में दौड़ने लगी है बुलेट ट्रेनें।अध्यादेश हो या बाकायदा संसद में पारित कानून,हो या नहो कुछो फर्क नहीं पड़ता।





मनुस्मृति अनुशासन और जाति व्यवस्था की बुनियाद पर बहाल है मुक्तबाजारी अर्थ व्यवस्था।जबतक भारतीय जनता जाति और अस्मिता के तिलिस्म से बाहर निकलने की हिम्मत न करें ,जबतक राष्ट्रव्यापी गोलबंदी न हो,हम पटाखों और फूलझड़ियों की बहार पर खुश होते रहेंगे और गला हमारा रेंता जाता रहेगा।


फिर भी हम कबंध बनकर अपने अपने मसीहा और अपनी अपनी विचारधारा के मोर्चे से देश बेचो ब्रिगोड का हाथ मजबूत करेंगे और हमारे कुछ ज्यादा काबिल लोग सत्ता में हिस्सेदारी के सिद्धांत के मुताबिक कतई नहीं,बाकी बहुसंख्य जनता को पहचान और अस्मिता के आधार पर  सता शिखर पर चमकते नजर आते रहेंगे।



ताजा खबर यह हैः

Five public sector undertakings (PSUs) will be closed down by the government, which has included some of the best known state-run enterprises like Air India, MTNL and Hindustan Shipyard, in the list of 65 sick PSUs, Lok Sabha was informed on Tuesday.


Shares of Mahanagar Telephone Nigam (MTNL) plunged 19 percent intraday and HMT lost 13 percent on Wednesday after these companies will be shut down by the government soon.


इस पर हम 1998 से ही चेतावनी जारी करते रहे हैं।तमाम रपटों,सिफारिशों को सार्वजनिक करते रहे हैं।


Disinvestment Commission - Department of Disinvestment ...

www.divest.nic.in/discommission.asp

The Commission was reconstituted vide Ministry of Disinvestment resolution ... theDisinvestment Commission, would be referred to Board for Reconstruction of ...

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Disinvestment Policy - Department of Disinvestment ...

www.divest.nic.in/chap5.asp

Designated Authority · Authorized Officer to receive Complaints · Procedure ... Text Box: " It has been decided that Government would disinvest up to 20 per ...

Prime Minister's Council on Trade and Industry - India Image

indiaimage.nic.in/pmcouncils/reports/disinvest/disinvest.html

But more than these two, what has been reported in the media about the government's intentions is the really positive signal. Why is disinvestment necessary?

You've visited this page many times. Last visit: 10/8/14



इस पर भी गौर करें कि ग्लोबल इकनॉमिक हालत देखते हुए अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (IMF) ने चालू वित्त वर्ष के लिए भारत की आर्थिक विकास दर के अनुमान को बढ़ाकर 7.2 फीसदी कर दिया है। साथ ही IMF ने भारत सरकार से कहा है कि वह निवेश के लिए बेहतर माहौल बनाए रखने के लिए सुधार की रफ्तार में तेजी बनाए रखे। आईएमएफ ने 2014-15 में भारत की आर्थिक विकास दर 5.6 प्रतिशत और अगले वित्त वर्ष (2015-16) में 6.4 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया था। अपनी सालाना आकलन रिपोर्ट में IMF ने कहा है कि उभरते बाजार वाली अर्थव्यवस्थाओं में भारत तेज गति से वृद्धि हासिल करने वाले देशों में से एक है..कि आर्थिक नीतियों को आकार देने वाले लोग कहां बैठे हैं।


इसी बीच भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने ऋण सूचना देने वाली सबसे बड़ी कंपनी क्रेडिट इन्फॉमेशन ब्यूरो इंडिया लिमिटेड (CIBIL) में अपनी 4 फीसदी हिस्सेदारी आईआईएफएल को करीब 72 करोड़ रुपये में बेच दी है। एसबीआई के उप प्रबंध निदेशक एवं मुख्य वित्त अधिकारी पी के गुप्ता ने कहा, 'हमारे पास सिबिल की 10 प्रतिशत हिस्सेदारी थी। इसमें से 4 प्रतिशत हमने आईआईएफएल की दो अनुसंगियों को बेच दी है।'सिबिल देश का सबसे बड़ा व सबसे पुराना क्रेडिट ब्यूरो है, जिसने वर्ष 2000 में बाजार में प्रवेश किया था। ऋण सूचना बाजार में उसका करीब 90 प्रतिशत तक कब्जा है।


इस खबर का आशय भी समझने की तनिको कोशिश करेंःविदेश मंत्रालय में सचिव (पूर्व) अनिल वाधवा ने कहा कि भारत-आसियान व्यापार का वर्तमान स्तर इसकी संभावनाओं से बहुत कम है। उन्होंने कहा कि व्यापक क्षेत्रीय आर्थिक भागीदारी (आरसेप)समझौते से भारत आसियान व्यापार को 2022 तक 200 अरब डॉलर करने में मदद मिलेगी। इस समझौते के इस साल पूरी होने की उम्मीद है। उन्होंने कहा, 'वस्तुओं के मुक्त व्यापार संबंधी समझौते से हमें मदद मिली है लेकिन अब हमने व्यापक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किया है। असियान के अभी सिर्फ तीन देशों ने ही इसे अनुमोदित किया है। हम बाकी देशों के अनुमोदन का इंतजार कर रहे हैं।


यह बजट और रेलबजट का कुलो पीपीपी फंडा है और निवेश  से इसी के तहत महमहायेगा मुक्तबाजार भारत।


मसलन, दैनिक हिंदुस्तान की खबर यह है कि,पैसे के अभाव में रेलवे के जर्जर होते बुनियादी ढांचे में नई जान फूंकने के लिए रेल मंत्री 1,50,000 करोड़ का इंतजाम कर लिया है। इस धन से रेलवे ट्रैक की क्षमता बढ़ाई जाएगी जिससे अधिक नई यात्री ट्रेनें और मालगाड़ियों चलाई जा सकेंगी।


वहीं, यात्री सुरक्षा व संरक्षा से जुड़ी रेल परियोजनाएं फास्ट ट्रैक पर दौड़ने लगेंगी। खास बात यह है कि प्रभु ने इतनी बड़ी धनराशि का जुगाड़ रेल बजट पेश करने के 15 दिनों के भीतर कर लिया है।


विदित हो कि हिंदुस्तान ने रेल बजट 26 फरवरी को सरकारी उपक्रम से 30-35 हजार करोड़ कर्ज मिलने संबंधित खबर को प्रमुखता से छापा था। भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) व रेलवे के बीच बुधवार को सहमति करार (एमओयू) पर हस्ताक्षर हो गए हैं। एलआईसी हर साल 30 हजार करोड़ रुपये व्यावसायिक रेल परियोजनाओं में निवेश करेगी। इस मौके पर रेल मंत्री सुरेश प्रभु व वित्त मंत्री अरुण जेटली मौजूद थे।


एलआईसी रेलवे के उपक्रम रेलवे वित्त निगम (आईआरएफसी) जैसी कंपनियों के माध्यम से अगले वित्तीय वर्ष में बॉड के जरिए रेलवे में निवेश करेगी। कर्ज पर ब्याज की दरें अभी तय नहीं हुईं हैं। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि यह वाणिज्यिक फैसला है। इससे रेलवे और एलआईसी दोनों को फायदा होगा। रेल मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि वर्षो से वित्तीय संकट के दौर से गुजर रही रेलवे के लिए डेढ़ लाख करोड़ की राशि ऑक्सीजन का काम करेगी। रेलवे इस धनराशि को हैवी फ्रीक्वेंसी व चोक हो चुके रेलवे मार्गो पर तीसरी व चौथी लाइन बिछाने का काम करेगी। अधिक यात्री ट्रेनें चलने से लोगों को बर्थ मिल सकेगी वहीं मालगाड़ियों की संख्या व रफ्तार बढ़ने से रेलवे के राजस्व में भारी बढमेत्तरी होगी। उन्होंने बताया कि उक्त धन से सिग्नलिंग सिस्टम को आधुनिक बनाया जाएगा।


टक्कररोध उपकरण लगाए जाएंगे। कोच-वैगन-इंजन के उत्पादन को बढमया जाएगा। एलआईसी की मदद से भारतीय रेलवे के आधुनिकीकरण की पटरी पर दौड़ने के दिन शुरू होने वाले हैं।

- See more at: http://www.livehindustan.com/news/desh/national/article1-railway-suresh-prabhu-rail-minister--39-39-473533.html#sthash.8xOm3cRi.dpuf



गौरतलब है कि पहले ही वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि सार्वजनिक क्षेत्र की बीमार पड़ी 79 कंपनियों में से सरकार कुछ का निजीकरण कर सकती है। उनके मुताबिक 2012-13 में इन कंपनियों को कुल 55,656 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था।

सरकार की परिभाषा के मुताबिक किसी केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (सीपीएसई)  को वैसी स्थिति में बीमार माना जाता है जब उसका कुल घाटा किसी वित्त वर्ष में, पिछले चार साल के औसत नेटवर्थ का 50 फीसदी के बराबर या इससे ज्यादा हो या फिर जिस कंपनी को बीमार औद्योगिक कंपनी (विशेष प्रावधान) कानून, 1985 के तहत उसे बीमार घोषित किया जाए।

2012-13 में सार्वजनिक उपक्रमों के सर्वेक्षण के मुताबिक 2004-05 में 90 केंद्रीय उपक्रम बीमार श्रेणी में थीं, जिसकी संख्या मार्च 2012 में घटकर 2012 रह गई लेकिन मार्च 2013 में ऐसी कंपनियों की संख्या बढ़कर 79 हो गई। 2013-14 के लिए सर्वेक्षण अभी चल रहा है।

सर्वे में कहा गया है कि परिचालन वाले केंद्रीय उपक्रमों जो बी.आई.एफ.आर. में पंजीकृत हैं, उनकी संख्या 2012-13 में 44 पर स्थिर हैं और अच्छी बात यह है कि 2011-12 में इनका समेकित घाटा कम होकर 65,642 करोड़ रुपए रहा। बीमार कंपनियों की सूची में प्रमुख गैर-सूचीबद्घ कंपनियों में एयर इंडिया, हिंदुस्तान केबल्स, हिंदुस्तान फर्टिलाइजर कॉर्पोरेशन और हिंदुस्तान फोटो फिल्म्स शामिल हैं।

वित्त वर्ष 2013 में एयर इंडिया की नेटवर्थ -15,642 करोड़ रुपए रही और इसका घाटा पिछले 6 साल में कुल  33,000 करोड़ रुपए रहा। अन्य 3 कंपनियों का नेटवर्थ भी 2012-13 में नकारात्मक ही रहा। हिंदुस्तान केबल्स का नेटवर्थ नकारात्मक 5,312 करोड़ रुपए, हिंदुस्तान फर्टिलाइजर 8,550 करोड़ रुपए और हिंदुस्तान फोटो फिल्म्स 19,897 करोड़ रुपए रहा। इसके अलावा, एच.एम.टी., इंडियन ड्रग्स ऐंड फार्मास्युटिकल्स और एसटीसीएल का नेटवर्थ भी नकारात्मक रहा और मार्च 2013 में समाप्त वित्त वर्ष में इन कंपनियों को भारी घाटा उठाना पड़ा।

कैपिटालाइन के आंकड़ों के मुताबिक सूचीबद्घ सार्वजनिक उपक्रमों (पीएसयू) में हिंदुस्तान फ्लोरोकार्बन्स, हिंदुस्तान ऑर्गेनिक केमिकल्स, एच.एम.टी. और आई.टी.आई. को मार्च 2014 में कुल 6,503 करोड़ रुपए का घाटा हुआ। इनमें से कई कंपनियों की आय में पिछले 3 से 5 साल के दौरान गिरावट आई है, जबकि कुछ का इस दौरान घाटा बढ़ा है। इन कंपनियों कर्ज और इक्विटी का अनुपात भी काफी ज्यादा है।

विशेषज्ञों का कहना है कि खराब प्रशासनिक रवैया और बदलते माहौल में खुद को नहीं ढाल पाने के कारण इन कंपनियों की हालत पस्त हुई है। 2012-13 का सर्वेक्षण बताता है कि उपयुक्त ऑर्डर नहीं मिलने, कर्मचारियों की लागत ज्यादा होने और वित्तीय कमी, तकनीक का अभाव, ज्यादा लागत और सस्ते आयात से बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण ये कंपनियां बीमार श्रेणी में चली गईं।

हालांकि ज्यादातर लोगों का मानना है कि खराब कर्ज-इक्विटी अनुपात, निर्णय लेने में देरी और कमजोर मार्केटिंग रणनीति से ये कंपनियां पिछड़ती चली गईं। उदाहरण के तौर पर पिछले 61 सालों में एचएमटी ने घड़ी, ट्रैक्टर आदि क्षेत्र में कारोबार का विस्तार किया। लेकिन पिछले 10 वर्षों से कंपनी को घाटा उठाना पड़ रहा है और 2013-14 में इसका कुल घाटा बढ़कर 3,382 करोड़ रुपये हो गया।

विशेषज्ञों का कहना है कि एच.एम.टी. किसी समय घड़ी कारोबार में बाजार की अगुआ कंपनी थी लेकिन टाइटन से मिली प्रतिस्पर्धा में वह पीछे छूटती चली गई। इस साल सितंबर में सरकार ने एचएमटी के घड़ी कारोबार को चरणबद्घ तरीके से बंद करने का निर्णय किया। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार अगर इन कंपनियों का निजीकरण या सुधार के कदम उठाती है तो इसके शेयरधारकों को फायदा हो सकता है।

amale

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