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Sunday, July 12, 2015

पढ़ रहा था हबीब जालिब की गजल का वो मिसरा है जिसमें ज़ुल्म की रात के बाद का नया सवेरा होगा नहीं इन मुल्कों में अमरीका का कोई डेरा फ़क़्र से कहेगे हिंदुस्तान भी मेरा पाकिस्तान भी मेरा गहन अंधेरे ने लेकिन फिर से हम सबको घेरा है पूरी दुनिया मे अब तो अमरीका का ही डेरा है अाया है जब से भूमंडलीकरण का दौर तीसरी दुनिया बन गया साम्राज्यवादी ठौर

   
Ish Mishra
July 12 at 5:05pm
 
पढ़ रहा था हबीब जालिब की गजल का वो मिसरा 
है जिसमें ज़ुल्म की रात के बाद का नया सवेरा 
होगा नहीं इन मुल्कों में अमरीका का कोई डेरा 
फ़क़्र से कहेगे हिंदुस्तान भी मेरा पाकिस्तान भी मेरा 
गहन अंधेरे ने लेकिन फिर से हम सबको घेरा है 
पूरी दुनिया मे अब तो अमरीका का ही डेरा है 
अाया है जब से भूमंडलीकरण का दौर 
तीसरी दुनिया बन गया साम्राज्यवादी ठौर 
लॉर्ड क्लाइव की नहीं है अब कोई दरकार 
सिराज्जुदौली भी निभाता मीरज़ाफरी किरदार 
खत्म होना ही है सबको है जिसका भी वजूद 
ये घना अंधेरा भी रहेगा न सदा मौजूद 
आयोगा ही धरती पर इक नया सवेरा 
स्वतंत्रता समानता का बनेगा बसेरा 
अपनी ही चालों में फंस रहा जब पूंजीवाद 
हिंद-ओ-पाक में फैला रहा है वो फासीवाद 
जगेगा जमीर जब दोनों मुल्कों का आवाम का 
समझेगा वह हकीकत विश्वबैंक के पैगाम का 
भूमंडलीय पूंजी की साजिश नाकाम कर देगा 
फासीवाद को उसके अंजाम तक ले जायेगा 
हिंद-पाक मिल साथ हिंदुस्तान बन जायेगा 
बचेंगी न बंटवारे की कड़वी स्मृतियां शेष 
हिंदुकुश से अरबसागर तक होगा एक ही देश 
(ईमिः12.07.2014)

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