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Wednesday, December 15, 2021

किसान आंदोलन के नतीजे हमेशा सकारात्मक। पलाश विश्वास

 किसान जब भी आंदोलन करते हैं,उसका नतीजा हमेशा सकारात्मक होता है।

पलाश विश्वास






यूरोप के किसानों ने विद्रोह नहीं किया होता तो धर्मसत्ता और राजसत्ता के दोहरे शासन से जनता को मुक्ति न मिलती।न सामंती व्यवस्था का अंत होता।   


फ्रांसीसी क्रांति में मेहनतकश शामिल नहीं होते तो समता,भ्रातृत्व,न्याय और स्वतंत्रता के मूल्य स्थापित होते। रूसी और चीनी क्रांति की कथा सबको मालूम है।


 अखण्ड भारत में दो सौ साल के किसिन आंदोलनों और विद्रोह की विरासत से आज का भारत बना है।


 कृषि समाज सभ्यता और संस्कृति की बुनियाद है।


हाल का किसिन आंदोलन विश्व के इतिहास में सबसे लंबा शांतिपूर्ण और सफल आंदोलन है,जिसने धर्म,जाति, वर्ग,नस्ल और भाषा में विभाजित जनता को एकताबद्ध कर दिया।


 इस आंदोलन की सबसे बड़ी उपलब्धि धर्म,जाति की राजनीति की हार है।


कल शाम हम बिन्दुखत्ता गए थे। तराई भाबर में किसान आंदोलन से हुई क्रांति की जमीन है बिन्दुखत्ता। 


पूरा पहाड़ वहां बस गया है। 


लालकुआं और पन्तनगर शांतिपुरी के बीच।एक तरफ गोला नदी है तो दूसरी तरफ किच्छा काठगोदाम रेलवे लाइन।


 करीब 50 वर्ग किमी इलाका,जिसे पहाड़ के हर जिले से,कुमायूं और गढ़वाल से भी नीचे उतरे किसानों ने आबाद किया है। 


यह जमीन खम यानी ब्रिटिश राज परिवार की सम्पत्ति है। सुप्रीम कोर्ट ने निर्णयक फैसला दे दिया कि इस जमीन पर सरकर का कोई हक नहीं है।


इससे पहले लालकुआं और गुलरभोज के बीच ढिमरी ब्लॉक में किसान सभा ने 40 गांव बसाए थे।।  उस आंदोलन के नेता थे पुलिन बाबू,हरीश ढूंढियाल,  सत्येंद्र,बाबा गणेश सिंह और चौधरी नेपाल सिंह।


 भारी दमन हुआ था। सेना,पीएसी और पुलिस की मदद से किसानों को वहां से हटाया गया था।


चालीस के चालीस गांव फूंक दिए गए थे। निर्मम लाठीचार्ज के बाद हजारों किसान गिरफ्तार हुए थे। 


तेलंगना के तुरन्त बाद हुए इस आंदोलन से कम्युनिस्ट पार्टी ने पल्ला झाड़ लिया था।


 अस्सी के दशक में शक्तिफार्म इलाके के कोटखर्रा आंदोलन को भी भारी दमन से कुचल दिया गया था।


ढिमरी ब्लॉक की तरह बिन्दुखत्ता को सत्ता कुचल नहीं सकी।जमीनी लड़ाई के साथ अदालती लड़ाई को भी किसानों ने बखूबी अपने हक में अंजाम दिया।


कल हम प्रेरणा अंशु परिवार के पुराने सदस्य कुंदन सिंह कोरंगा की भतीजी की शादी के महिला संगीत कार्यक्रम में पहुंचे। मास्साब की पत्नी गीताजी हमारे साथ थी।


कुंदन की पत्नी रीना ने समाजोत्थान विद्यालय से पढ़ाई की थी। दोनों का प्रेम विवाह हुआ जाति तोड़कर। रीना भी मास्साब के आंदोलनों में शामिल रही हैं।


हमने शाम के  धुंधलके में बिन्दुखत्ता के साथियों को प्रेरणा अंशु की प्रतियां दी। रात में मोबाइल सें कैमरा का काम नहीं होता। तस्वीरें अगली बार।


तराई भाबर और पहाड़ में सड़के खस्ताहाल है। हमने लगभग बिन्दुखत्ता का पूरा इलाका घूम लिया है। फसल से लहलहाते खेतों के बीच सभी गांवों की सड़कें चकाचक न जाने किस हीरोइन के गाल की तरह है।


 कुंदन का तिवारी गांव गोला नदी से सिर्फ दो किमी और शांतिपुरी से पांच किमी दूर है।बहुत अंदर। उसका घर भूरिया की मशहूर दुकान के पाश है।पुरे इलाके में सडकों के साथ किसानों की खुशहाली देखते ही बनती है।


यह किसान आन्दोलन की ताकत है।

इस दुनिया में किसी को कुछ बिना मांगे मिलता नहीं है और बेदखली के खिलाफ प्रतिरोध अनिवार्य है।

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