Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Saturday, April 28, 2012

इस गांव की बेटियां बिकने के लिए मुंबई भेज दी जाती हैं

http://www.news.bhadas4media.com/index.php/yeduniya/1250-2012-04-28-10-17-40

[LARGE][LINK=/index.php/yeduniya/1250-2012-04-28-10-17-40]इस गांव की बेटियां बिकने के लिए मुंबई भेज दी जाती हैं   [/LINK] [/LARGE]
Written by अब्‍दुल रशीद Category: [LINK=/index.php/yeduniya]सियासत-ताकत-राजकाज-देश-प्रदेश-दुनिया-समाज-सरोकार[/LINK] Published on 28 April 2012 [LINK=/index.php/component/mailto/?tmpl=component&template=youmagazine&link=8755f1b3256b59cccacbb2dccaac6d5e6ee76bdd][IMG]/templates/youmagazine/images/system/emailButton.png[/IMG][/LINK] [LINK=/index.php/yeduniya/1250-2012-04-28-10-17-40?tmpl=component&print=1&layout=default&page=][IMG]/templates/youmagazine/images/system/printButton.png[/IMG][/LINK]
देश का हृदय कहा जाने वाला मध्य प्रदेश देश का इकलौता ऐसा प्रदेश है जहां बेटी के जन्म पर मनाए जाने वाले जश्न में सरकारी अमले के आला अधिकारी शामिल होते हैं और जहां कि सरकार बेटी के जन्म होते ही उसके शादी और शिक्षा का पूरा इंतजाम करती है। और बड़े प्यार से कहती है कि बेटी बोझ नहीं वरदान है। लेकिन इसे इस प्रदेश की त्रासदी ही कहेंगे कि तमाम कोशिशों के बावजूद इसी प्रदेश के पथरौंधा गांव में बेटी को ब्याहने के बजाय बेचने की शर्मनाक प्रथा मौजूद है। यह अजीबो गरीब गांव सतना जिले में नौगद – मैहर रोड में नौगद से लगभग 11 कि मी कि दूरी पर है। आम तौर पर बेटे के जन्म पर जश्न मनाया जाता है, लेकिन इस गांव में बेटी के जन्म पर जश्न मनाया जाता है। कारण है कि बेटी कमाकर उनका पेट भरेगी।

कन्यादान महादान है और इस महादान को पूरा करने के लिए एक पिता अपने बेटी के जन्म से ही इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए तैयारी शुरू कर देता है ताकि जब बेटी शादी के उम्र तक पहुंचे तो कोई कमी न रह जाए। वहीं लड़कीयों की भी यही हसरत होती है कि उनके घर बारात आए, अपने राजकुमार के साथ डोली में बैठकर ससुराल विदा हो और एक नई जिंदगी की शुरुआत करें। लेकिन सतना जिले के पथरौंधा गांव की कहानी ही कुछ और है। यहां बेटी के किशोरावस्था में आते ही उसे मुम्बई भेज दिया जाता है, जहां अय्याश किस्म के अमीर बोली लगा कर महंगे दाम पर खरीदते हैं और फिर शुरु हो जाता है अमानवीय खेल। इस अमानवीय खेल से मिलने वाले पैसे के एक हिस्से से परिवार का गुजर बसर होता है। इस अमानवीय खेल की प्रथा को कायम रखने के लिए बिरादरी में अपना एक तानाशाही कानून है जिस कानून के तहत बेटी का ब्याह करना बहुत बड़ा गुनाह है।

आज के इस आधुकनिक दौर में भी ऐसी मानसिकता के लोगों की मौजूदगी इस बात का एहसास कराती है कि पुरुष प्रधान समाज नारी जाती को किस प्रकार के रुढ़िवादी प्रथाओं की जंजीर में बांधकर शोषण करता रहा है। अपने स्वार्थ की खातिर बेटी के अरमानों की बलि देकर, कन्यादान महादान को महापाप कह कर शोषण करने से भी परहेज नहीं किया जाता। कहते हैं अन्धेरे को कोसने से बेहतर है एक चिराग जला कर, अंधेरे को दूर कर रोशनी कर लिया जाए। लेकिन एक कहावत यह भी है के चिराग़ तले अंधेरा होता है ऐसे रुढ़िवादी नज़रिये भी चिराग तले अंधेरे की मानिंद है जिसे दूर करना मुश्किल जरुर है लेकिन नामुमकिन नहीं। बस जरुरत है आदमी को इंसान बनने की।

[B]लेखक अब्‍दुल रशीद मध्‍य प्रदेश के सिंगरौली में पत्रकार हैं. [/B]

No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Welcome

Website counter

Followers

Blog Archive

Contributors