Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Thursday, June 28, 2012

देशद्रोह कैदियों के पक्ष में लखनऊ में धरना

देशद्रोह कैदियों के पक्ष में लखनऊ में धरना


लखनऊ. लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन तथा मानवाधिकार व सामाजिक.राजनीति कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न के विरोध में खासतौर से मानवाधिकार कार्यकर्ता सीमा आजाद की रिहाई की मांग को लेकर लखनऊ के लेखक, बुद्धिजीवी, मानवाधिकार व सामाजिक कार्यकर्ता तथा जन संगठनों के प्रतिनिधि बड़ी संख्या में उत्तर प्रदेश विधान सभा के सामने धरना दिया। 

पीयूसीएल की पहल पर हुए इस धरने में मांग की गई कि लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमले बंद हों, सीमा आजाद सहित तमाम मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को रिहा किया जाय तथा यूएपीए जैसे काले कानून को वापस लिया जाय। धरने के बाद मोमबत्तियां  जलाकर विधान सभा से लेकर पटेल प्रतिमा तक मार्च भी निकाला गया। इसके द्वारा जेलों में बंद मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के साथ लोगों ने अपनी एकजुटता प्रदर्शित  की।

इस मौके पर हुई सभा को पीयूसीएल उत्तर प्रदेश  की महासचिव वंदना दीक्षित जन संस्कृति मंच के संयोजक कौशल किशोर, एपवा की राष्ट्रीय  उपाध्यक्ष ताहिरा हसन, डॉ राही मासूम रज़ा एकेडमी के महामंत्री रामकिशोर, ऑल इण्डिया वर्कस कांउसिल के ओपी सिन्हा, इंसाफ के उत्कर्ष सिन्हा, रिक्शा  मजदूर यूनियन के आशीष  अवस्थी, दिशा के लालचंद, आइसा के सुधांशु  बाजपेई, डग के रामकुमार आदि ने संबोधित किया। सभा का संचालन आवाज संस्था के आदियोग ने किया।

इस मौके पर हुई सभा को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि 37 वर्ष पहले 26 जून के दिन आपातकाल की घोषणा की गई थी। भारत की जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन करते हुए हजारों लोगों को जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया गया था। आज भी स्थितियाँ बहुत बदली नहीं है। राज्य द्वारा अनेक काले कानून लागू कर जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन की प्रक्रिया जारी हैं। सरकार जन दबाव की वजह से भले ही कोई बदनाम हो गया काला कानून वापस ले ले, लेकिन हम देखते हैं कि उसकी जगह वह उससे भी भयानक व जन विरोधी कानून जनता पर वह थोप देती है। 

वक्ताओं का कहना था कि मानवाधिकार कार्यकत्र्ताओं का उत्पीड़न दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है। किसी को भी आतंकवादी या माओवादी कहकर या यूएपीए जैसे कानूनों का सहारा लेकर जेल में डाल दिया जाता है। न्ययापालिका की भूमिका भी कार्यपालिका जैसी हो गई है। ऐसा हम बथानी टोला सहित तमाम मामलों में न्यायपालिका की भूमिका संदेह के घेरे में है। 

आज तो पुलिस प्रशासन की नजर में शहीद भगत सिंह का साहित्य भी आतंकवादी साहित्य है। ऐसे ही वामपंथी व क्रान्तिकारी साहित्य रखने को आधार बनाकर पहले मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ  विनायक सेन को छत्तीसगढ़ की अदालत ने उम्रकैद की सजा दी है और अभी हाल में इलाहाबाद की निचली अदालत ने मानवाधिकार कार्यकर्ता सीमा आजाद को उम्रकैद की सजा सुनाई है। सीमा आजाद को देशद्रोही कहा जा रहा है जबकि सांप्रदायिक हत्यारे, माफिया से लेकर कारपोरेट घोटालेबाज आज सत्ता  की शोभा बढ़ा रहे हैं। वक्ताओं ने सीमा आजाद सहित अन्य कार्यकर्ताओं की रिहाई के संबंध में प्रदेश  सरकार से हस्तक्षेप करने की भी मांग की। 

No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Welcome

Website counter

Followers

Blog Archive

Contributors