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Wednesday, October 31, 2012

कारपोरेट राज के भंडाफोड़ से कांग्रेस और भाजपा दोनों को गुस्सा आया। क्यों?

कारपोरेट राज के भंडाफोड़ से कांग्रेस और भाजपा दोनों को गुस्सा आया। क्यों?

दूसरी ओर, जो आरोप केजरीवाल ने लगाये हैं, उनमें नया कुछ भी नहीं है।जल जंगल जमीन और आजीविका से बहुसंख्य जनता को बेदखल ​​करके, उत्पादन प्रणाली को तहस नहस करके, उत्पादक जनसमूहों के कत्लेआम के जरिये प्रकृतिक संसाधनों की बंदरबांट के सिद्धांत पर आजादी के तुरंत बाद से कारपोरेट राज जारी है। पूंजी के इस खुल्ला खेल फर्ऱूखाबादी के खिलाफ आजतक कोई प्रतिरोध नहीं हुआ। भंडाफोड़ करने की ​​रघुकुल रीति चली आयी, पर उसका क्या अंजाम हुआ केजरीवाल अपने गुरिल्ला युद्ध को किस अंजाम तक कैसे लि जायेंगे, इसका अभी​ ​ खुलासा नहीं है। इसके बावजूद सत्तवर्ग का एकजुट होकर उनके खिलाफ मोर्चा खोलना हैरतअंगेज है। क्या कहीं कुछ टूटने लगा है? केजरीवाल और प्रशांत भूषण के आरोपों के जवाब में भाजपा प्रवक्ता मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि केजरीवाल टीम हिट एंड रन (वार करो और फरार हो जाओ) की मासिक मंडी और साप्ताहिक बाजार बनकर रह गई है। रंजन भट्टाचार्य और नीरा राडिया के ऑडियो के बाबत कोई टिप्पणी करने से उन्होंने इनकार कर दिया।

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

केजरीवाल ने रिलायंस को केजी बैसिन का आबंटन रद्द करने की मांग की है।अरविंद केजरीवाल ने इस बार मशहूर उद्योगपति और रियायंस इंडस्ट्री के मुकेश अंबानी को निशाने पर लिया।रिलायंस इंडस्ट्रीज में 2017 तक शेयर मूल्य के हिसाब से 100 अरब डॉलर की हैसियत की कंपनी बनने की क्षमता है।अरबपति और रिलायंस इंडस्ट्रीज के मुखिया मुकेश अंबानी देश के सबसे धनी व्यक्ति हैं। हालांकि उनका नेटवर्थ पिछले एक साल में 1.6 अरब डॉलर कम होकर 21 अरब डॉलर रहा, लेकिन इसके बावजूद वह दूसरे पायदान पर रहे लक्ष्मी मित्तल से आगे हैं। केजरीवाल ने आरोप लगाए हैं कि सरकार ने मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज को 1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का फायदा पहुंचाया है।भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी और गांधी परिवार के दामाद रॉबर्ट वाड्रा पर सवाल खड़े करने के बाद अरविंद केजरीवाल ने बुधवार को प्रेसवार्ता कर भारत की दिग्गज कार्पोरेट कंपनी रिलायंस पर सवाल खड़े किए।केजरीवाल ने एक बार फिर चौंकाया और निशाने पर लिया देश के सबसे बड़े बिजनेसमैन मुकेश अंबानी को। केजरीवाल ने अंबानी की कंपनी रिलायंस को मिले केजी बेसिन के ठेके और उसमें हुई कथित गड़बड़ियों का मामला उठाया और सरकार के कंपनी के सामने नतमस्तक होने का आरोप मढ़ा। केजरीवाल का कहना है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों मुकेश अंबानी की जेब में हैं। उन्होंने कहा कि बढती महंगाई के लिए उद्योगपति और राजनेता जिम्मेदार हैं। केजरीवाल जब अंबानी पर आरोप लगा रहे थे इसी दौरान उनकी प्रेस कांफ्रेंस में हंगामा हो गया। यह हंगामा सवाल पूछने की बात को लेकर हुआ।कृष्णा-गोदावरी बेसिन यानी केजी बेसिन आबादी से 25 किलोमीटर दूर बंगाल की खाड़ी में बना है। देश की सबसे अमीर शख्सियत मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्री ने यहां से 2008 में तेल निकालना शुरू किया था और इसी के साथ उनकी कंपनी पानी के नीचे से तेल निकालने वाली पहली कंपनी बन गई थी।

इंडिया अगेंस्ट करप्शन के तीन सवाल  

1. क्या केजी बेसिन में स्थित गैस सिर्फ रिलायंस की है? जबकि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट कह चुका है गैस देश के लोगों की है।
2. क्या इस सरकार को देश के उद्योग घराने चला रहे हैं?
3. क्या प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह किसी मजबूरी में इन फैसलों पर अमल कर रहे हैं?  

दो मांग  

1. इन खुलासों के साथ ही केजरीवाल ने कहा कि सरकार रिलांयस इंडस्ट्रीज का केजी बेसिन का ठेका रद्द करे।
2. गैस निकासी का ठेका नए सिरे से किसी बिजली बनाने वाली सरकारी कंपनियों को दे।  

पेट्रोलियम मंत्रालय ने रिलायंस इंडस्ट्रीज के केजी-डी6 क्षेत्र में हुए खर्च की कैग की लेखापरीक्षा के लिये तय बैठक आगे के लिये टाल दी।कैग ने केजी डी6 गैस ब्लॉक के दूसरे दौर की लेखापरीक्षा शुरु करने के लिये रिलायंस इंडस्ट्रीज और पेट्रोलियम मंत्रालय के साथ शुरुआती बैठक बुलाई थी।इसमें रिलायंस इंडस्ट्रीज के केजी-डी6 क्षेत्र में 2008-09 और 2011-12 में किए गए खर्च की लेखापरीक्षा की जानी है।मामले से जुड़े सूत्रों ने बताया कि मंत्रालय ने 29 अक्टूबर को सभी पक्षों को पत्र लिखकर बैठक स्थगित होने के बारे में सूचित किया।बताया जाता है कि यह बैठक इसलिए स्थगित की गई, क्योंकि कैग के ऑडिट की प्रकृति और दायरे को लेकर मतभेद थे।रिलायंस ने यह लिखित आश्वासन मांगा था कि कैग की लेखापरीक्षा केवल उत्पादन भागीदारी करार 'पीएससी' के तहत सिर्फ बहीखातों और रिकार्ड तक सीमित होगी।कंपनी को पीएससी के तहत लेखा प्रक्रियाओं की धारा 1.9 से अलग कोई दस्तावेज उपलब्ध कराने को नहीं कहा जाएगा और न ही किसी तरह का स्पष्टीकरण मांगा जाएगा।
इसके साथ ही कंपनी ने यह शर्त भी रखी कि लेखापरीक्षा उसके परिसर में होनी चाहिये और रिपोर्ट को पीएससी के तहत पेट्रोलियम मंत्रालय को सौंपा जाए, संसद को नहीं।वहीं दूसरी ओर मंत्रालय ने जोर देकर कहा था कि कंपनी कैग को अपने बही खातों को बिना किसी रुकावट के दिखाए।इसके लंबित रहने तक मंत्रालय ने कंपनी के निवेश प्रस्तावों को मंजूरी रोकी हुई है.
सूत्रों ने बताया कि यह बैठक इसीलिए स्थगित की गई ताकि मतभेदों को सुलझाया जा सके।

मंत्रालय ने 23 अक्टूबर को रिलायंस इंडस्ट्रीज को पत्र लिखकर कहा था कि कैग कंपनी के प्रदर्शन का ऑडिट नहीं करेगा और निगरानी समिति ने पहले ही कंपनी के विकास प्रस्तावों को मंजूरी दे दी है।सूत्रों ने हालांकि,बताया कि केजी-डी6 ब्लाक में 2010-11, 2011-12 और 2012-13 के लिए सालाना पूंजीगत खर्च के प्रस्ताव को अभी तक मंजूर नहीं किया गया है। केजी-डी6 ब्लॉक पर प्रबंधन समिति ने 7 अगस्त को पिछले तीन साल के लिए निवेश प्रस्ताव को मंजूर किया है, लेकिन अभी तक इस प्रस्ताव पर दस्तखत नहीं हुए हैं।

दो साल के लंबे इंतजार के बाद रिलायंस इंडस्ट्रीज को कृष्णा गोदावरी [केजी] बेसिन में 1.53 अरब डॉलर और निवेश करने की सरकार से मंजूरी मिल गई है। इस राशि का इस्तेमाल डी6 ब्लॉक के आसपास के चार क्षेत्रों के विकास में होगा। इससे इन क्षेत्रों से रोजाना एक करोड़ 36 लाख घनमीटर गैस का उत्पादन हो सकेगा।

पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस राज्य मंत्री आरपीएन सिंह ने गुरुवार को लोकसभा में यह जानकारी दी। इनमें डी2, डी6, डी19 और डी22 क्षेत्र शामिल हैं। यहां से वर्ष 2016 के मध्य तक गैस उत्पादन होने लगेगा। इन चार क्षेत्रों में 617 अरब घन मीटर गैस का भंडार है। यहां से आठ साल तक उत्पादन हो सकेगा। केजी-डी6 ब्लॉक की निगरानी समिति ने 3 जनवरी को इस निवेश योजना को मंजूरी दी। इस समिति में पेट्रोलियम मंत्रालय और हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय के अधिकारी शामिल हैं।

इन क्षेत्रों में ब्रिटेन की बीपी और कनाडा की निको रिसोर्सेज भी रिलायंस की भागीदार हैं। इस नए निवेश से केजी-डी6 ब्लॉक में घटते उत्पादन को संभाला जा सकेगा। पिछले 18 महीने में डी6 ब्लॉक के उत्पादन में 40 फीसदी की कमी आई है। यहां से फिलहाल 3.4 करोड़ घन मीटर गैस का रोजाना उत्पादन हो रहा है। पूर्व योजना के मुताबिक अब तक यहां से रोजाना आठ करोड़ घन मीटर गैस का उत्पादन होना था।

सरकार ने जब से सबसिडी वाले सिलेंडरों की गिनती तय कर दी है, तब से लोग इसी कोशिश में हैं कि किसी तरह उन्हें कम कीमत पर अधिक सिलेंडर मिल पाएं। हालांकि कई कुछ राज्यों में सस्ते सिलेंडरों की गिनती छह से नौ कर दी गई है, पर कुछ राज्यों में लोगों को महंगी एलपीजी से ही गुजारा करना पड़ेगा। ऐसे में इन लोगों के लिए यह खबर खुशखबरी साबित हो सकत है।सूत्रों से जानकारी मिली है कि रिलायंस इंडस्ट्रीज की घरेलू रसोई गैस के रिटेल कारोबार में उतरने की तैयारी में है। सूत्रों के मुताबिक अनसब्सिडाइज्ड एलपीजी मार्केट में पकड़ बनाने के लिए रिलायंस इंडस्ट्रीज आकर्षक कीमतें तय करेगी। गुजरात और महाराष्ट्र से कंपनी एलपीजी कारोबार शुरू करेगी। कंपनी के पास बाजार भाव पर 200-300 रुपये का मार्जिन है।


कारपोरेट राज का यह आलम भी देखिये।जानकारी मिली है कि जीएएआर को 1 और साल के टाला जा सकता है। जीएएआर को पहले ही वित्त वर्ष 2014 तक टाला जा चुका है।सूत्रों के मुताबिक सरकार वित्त वर्ष 2015 से जीएएआर लागू करने का मन बना रही है। माना जा रहा है कि शोम कमेटी ने जीएएआर को 3 साल के लिए टालने की सिफारिश की थी। मामले पर गुरुवार को सरकार अंतिम फैसला सुना सकती है।पुरानी तारीख से टैक्स वसूलने को लेकर शोम कमेटी में मतभेद हो गया है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिर कई सदस्य इस कानून के पक्ष में नहीं हैं।शोम पैनल में पिछली तारीख से टैक्स वसूलने को लेकर मतभेद हो गए हैं। सूत्रों के मुताबिक कई सदस्य पिछली तारीख से टैक्स वसूली के पक्ष में नहीं हैं। सूत्रों का ये भी कहना है कि सदस्य रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स लागू करने के पक्ष में नहीं हैं। रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स लागू करने के फैसले पर सहमति नहीं बन पा रही है।सूत्रों के मुताबिक वैलिडेशन क्लॉज पर कल चर्चा हो सकती है। पुरानी तारीख से टैक्स वसूली पर अंतिम फैसला वित्त मंत्री लेंगे।वित्त वर्ष 2013 की पहली छमाही खत्म हो गई है। इस दौरान बाजार में अच्छी तेजी जरूर देखने को मिली। तेजी के इस दौर में बाजार के 6,000 तक जाने की उम्मीद जताई जाने लगी। हालांकि अब बाजार पर दबाव दिख रहा है और निफ्टी के 6,000 तक पहुंचने के आसार नहीं दिख रहे हैं। लिहाजा बाजार के दिग्गज जानकार वित्त वर्ष 2014 में बाजार में जबर्दस्त तेजी आने की उम्मीद जता रहे हैं।

रिजर्व बैंक ने मंगलवार को मौद्रिक नीति की मध्यावधि समीक्षा में नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में 0.25 फीसदी की कटौती की, लेकिन रेपो और रिवर्स रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया गया। आरबीआई के इस कदम से कर्ज का बोझ कुछ कम होने की उम्मीद लगाए बैठे लोगों को तो निराशा हुई ही है, साथ ही केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदंबरम भी खासे खफा नजर आ रहे हैं।आगामी 3 नवंबर से सीआरआर 4.50 से 4.25 फीसदी हो जाएगा। आरबीआई के ऐलान के बाद ही बैंकों ने साफ संकेत दे दिया कि हाल-फिलहाल कर्ज सस्ता होने की संभावना नहीं है। इस बीच, चिदंबरम ने कहा कि महंगाई जितना ही महत्व आर्थिक विकास को भी दिया जाना चाहिए। आर्थिक विकास भी एक चुनौती है और अगर विकास के लिए सरकार को अकेले ही आगे बढ़ना होगा तो हम अकेले ही बढ़ेंगे।आरबीआई ने भले ही महंगाई का हवाला देते हुए रेपो रेट को यथावत रखा हो, लेकिन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम उसके इस तर्क से कतई सहमत नहीं हैं। चिदंबरम ने मंगलवार को यहां कहा, 'महंगाई को काबू में रखना जितनी बड़ी चुनौती है, उतना ही बड़ा चैलेंज विकास भी है।' इसके साथ ही वित्त मंत्री ने कुछ कठोर लहजे में कहा, 'अगर जरूरत पड़ी तो सरकार अकेले ही इस चुनौती का सामना करने के लिए निकल पड़ेगी।'मौद्रिक नीति की समीक्षा पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए चिदंबरम ने कहा, 'सरकार साफ-साफ शब्दों में यह संदेश दे रही है कि वह सरकारी खजाने की हालत दुरुस्त करने और राजकोषीय घाटे पर अंकुश लगाने की दिशा में अग्रसर है। मुझे उम्मीद है कि फिस्कल कंसोलिडेशन को लेकर सरकार द्वारा जताई जा रही प्रतिबद्धता को हर कोई समझने की कोशिश करेगा।'मौद्रिक नीति का आगे जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, 'मैंने इस स्टेटमेंट के अंत में लिखे कुछ पैराग्राफ नहीं पढ़े हैं। हालांकि, अगर उनमें भविष्य को लेकर उम्मीदें जाहिर की गई हैं तो मैं उस आने वाले समय को ध्यान में रखूंगा।' वित्त मंत्री ने यह टिप्पणी संभवत: मौद्रिक नीति के उस पैराग्राफ को ध्यान में रखकर की है जिसमें कहा गया है कि अंतिम तिमाही में रेपो रेट घटाया जा सकता है।

अरविंद केजरीवाल ने प्रेस कांफ्रेंस में नीरा राडिया के टेप भी सुनवाए। उन्होंने नीरा राडिया और रिश्ते में पूर्व प्रधानमंत्री के दामाद रंजन भट्टाचार्य के बीच हुई बातचीत का टेप सुनवाया। इस टेप में नीरा राडिया और रंजन यह बात कर रहे हैं कि मंत्री वही बनेगा जिसे अंबानी परिवार चाहेगा। भट्टाचार्य ने कांग्रेस के बारे में टिप्पणी करते हुए कहा- कांग्रेस तो अपनी ही दुकान है। हालांकि अरविंद केजरीवाल ने सिर्फ कांग्रेस पर ही निशाना नहीं साधा बल्कि भाजपा को भी रिलायंस के हाथों बिका हुआ बताया। अरविंद केजरीवाल ने कहा कि भाजपा सरकार के वक्त अनुचित फायदा पहुंचाकर रिलायंस को गैस ब्लॉक दिए गए। गौरतलब है कि साल 2000 में रिलायसं को केजी बेसिन का ठेका मिला था। रिलायंस पर आरोप लगाते हुए अरविंद केजरीवाल ने कहा, 'सरकार को ब्लैकमेल करने के लिए रिलायंस ने गैस का उत्पादन कम कर दिया। रिलायंस ने सरकार को मजबूर करके अपनी पसंद के लोगों को मंत्री बनवाया ताकि देश में गैस के दाम बढ़ाए जा सके।'

अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री पर पद का दुरुपयोग कर मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाया है। केजरीवाल के मुताबिक पहले भाजपा नीत राजग सरकार ने इस कंपनी को फायदा पहुंचाने वाली शर्तो पर इसे प्राकृतिक गैस का ठेका दिया। इसके बाद कांग्रेस नीत संप्रग सरकार ने पहले से तय दर में वृद्धि कर दी। अरविंद ने रिलायंस पर गैस की जमाखोरी का आरोप भी लगाया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस-भाजपा दोनों मुकेश अंबानी की जेब में हैं। ऐसा लगता है देश को मुकेश अंबानी ही चला रहे हैं।

केंद्रीय मंत्रिपरिषद में रविवार को हुए फेरबदल पर उन्‍होंने पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री जयपाल रेड्डी को पद से हटाए जाने पर सवाल खड़ा किया है। केजरीवाल ने रेड्डी का पक्ष लेते हुए कहा क्‍या सरकार ने ईमानदार रेड्डी को पद रिलायंस को खुश करने के लिए हटाया?जयपाल रेड्डी के स्‍थान पर अब वीरप्पा मोइली नए पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हैं तो अब क्‍या एलपीजी और बिजली की कीमतें फिर बढ़ेंगी। जयपाल रेड्डी को ईमानदार होने की सजा मिली, सलमान खुर्शीद भ्रष्‍ट हैं इसलिए उन्‍हें प्रमोशन दिया गया। उन्‍होंने इस फेरबदल पर ट्विट किया और बोल भ्रष्‍ट मंत्रियों को प्रमोशन दिया गया है. उन्‍होंने कहा कि इस फेर बदल से कोई लाभ नहीं है।

अरविंद केजरीवाल ने कहा कि रिलायंस को एनडीए सरकार ने केजी बेसिन का ठेका दिया था ताकि वह गैस निकालकर देश की जरूरतें पूरी कर सके। ये गैस रिलायंस को साल 2017 तक सवा दो डॉलर प्रति यूनिट बेचनी थी लेकिन 2006 में ही इसके लिए कंपनी ने सवा चार डॉलर प्रति यूनिट मांगे। तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री मणिशंकर अय्यर इसके लिए राजी नहीं थे इसलिए हटा दिए गए और रिलायंस के आदमी माने जाने वाले मुरली देवड़ा को ये मंत्रालय मिला।इसके बाद वर्ष 2007 में तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में अधिकार प्राप्त मंत्रियों के समूह ने रिलायंस के दबाव के आगे झुकते हुए 2014 तक 4.25 डॉलर प्रति युनिट के हिसाब से अनुमति दे दी। आज रिलायंस सरकार से इसके लिए सवा 14 डॉलर प्रति यूनिट मांग रही है। रिलायंस की इसी मांग का विरोध करने के चलते पेट्रोलियम मंत्री जयपाल रेड्डी को हटाकर वीरप्पा मोइली को मंत्री बनाया गया है।

केजरीवाल ने कहा कि अगर मोइली ने रिलायंस की सवा 14 डॉलर प्रति यूनिट गैस की मांग मान ली तो इस देश में बिजली सात रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से मिलेगी। देश को करीब 43 हजार करोड़ रुपये का नुकसान होगा। अगर जनता को ये मंजूर है तो ठीक है लेकिन अगर नहीं है तो वो इसके खिलाफ खड़ी हो ताकि सरकार मजबूर होकर रिलायंस की मांग ठुकरा दे।
केजरीवाल ने कहा कि केजी बेसिन का ठेका रिलायंस को मिला लेकिन रिलायंस ने जुलाई 2011 में इसका एक हिस्सा ब्रिटिश पेट्रोलियम को 35 हजार करोड़ रुपये में बेच दिया। लेकिन किसी ने सवाल नहीं उठाए और सरकार देखती रही। रिलायंस गैस की जमाखोरी कर रही है ताकि जब सरकार दाम बढ़ा दे तब वो उसे बेचे और फायदा कमाए।

रिलायंस को सरकार को 8 हजार करोड़ यूनिट गैस देनी थी लेकिन उसने दी महज 2 हजार करोड़ यूनिट। रिलायंस ने गैस प्रोडक्शन जानबूझकर घटा दी। उसने 2009 से गैस का उत्पादन तय सीमा से एक तिहाई कर दिया। केजरीवाल ने कहा कि इसकी वजह से गैस आधारित बिजली घरों को बंद करना पड़ा।

केजरीवाल ने कहा कि जब जयपाल रेड्डी ने रिलायंस की कारगुजारियों के खिलाफ आवाज उठाई और 7000 करोड़ रुपये के जुर्माने का नोटिस भेजा तो उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ा। मुकेश अंबानी के दबाव में रेड्डी को मंत्रालय से हटा दिया गया।

कांग्रेस ने आज अरविंद केजरीवाल के आरोपों को 'निराधार' बताते हुए खारिज किया और पलटवार करते हुए इंडिया अगेंसट करप्शन की फंडिंग स्रोत को लेकर सवाल उठाए। केजरीवाल ने आरोप लगाया कि संप्रग सरकार मुकेश अंबानी का पक्ष ले रही है।कांग्रेस महासचिव बीके हरिप्रसाद ने संवाददाताओं को कहा, 'यह निराधार है। आजकल आईएसी के लिए आरोप लगाना फैशन हो गया है। आपके पास फंड कहां से आ रहे हैं? आईएसी को फंड कौन दे रहा है? रामलीला मैदान से लेकर इस संवाददाता सम्मेलन तक यह फोर्ड फाउंडेशन है।' भाजपा और केजरीवाल के बीच गठजोड़ की बात कहते हुए हरिप्रसाद ने सवाल किया, 'वह उन प्रदेशों में क्यों नहीं जा रहे जो आंकठ भ्रष्टाचार में डूबे हैं। उन्हें दूसरों पर आरोप लगाने से पहले अपने ऊपर लगे आरोपों पर सफाई देनी चाहिए।'उन्होंने कहा, 'अगर सरकार को मुकेश अंबानी चला रहे हैं तो आईएसी को विदेश में बैठे लोग चला रहे हैं।' उन्होंने आरोप लगाया कि अरविंद केजरीवाल मीडिया को आकर्षित करने के लिए ऐसा कर रहे हैं।

भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी के कारोबार की गड़बडिय़ां उजागर होने के बाद अब इंडिया अगेंस्ट करप्शन के नेता अरविंद केजरीवाल भाजपाइयों के निशाने पर हैं। मध्यप्रदेश भाजपा अध्यक्ष और पार्टी के राष्ट्रीय मुखपत्र कमल संदेश के संपादक प्रभात झा ने केजरीवाल के पीछे विदेशी करेंसी का खेल होने की आशंका जताई है। कमल संदेश के ताजा अंक में झा ने संपादकीय में तल्ख भाषा का इस्तेमाल करते हुए केजरीवाल और उनकी टीम को कुकुरमुत्तों जैसे शब्द से संबोधित किया है।तो दूसरी ओर,प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता अभय दुबे ने केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे को लिखे एक पत्र में अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसौदिया के एनजीओ को मिली विदेशी सहायता की जांच की मांग की है। दुबे ने उनके एनजीओ को मिली विदेशी सहायता पर सवाल खड़े करते हुए कहा है कि जो विदेशी एनजीओ केजरीवाल और सिसौदिया की मदद करते हैं, उनकी गतिविधियां संदिग्ध हैं।गडकरी को दूसरा कार्यकाल मिलने की संभावना के साथ ही झा भी दूसरा कार्यकाल मिलने की उम्मीद कर रहे थे। पार्टी भले ही गडकरी के बचाव की मुद्रा में हो, लेकिन संघ के हाथ खींच लेने से संगठन चुनाव असमंजस से घिर गए हैं। झा के संपादकीय को पार्टी में गडकरी के समर्थन में मुहिम के तौर पर देखा जा रहा है। झा ने कहा है कि केजरीवाल का खेल करेंसी का है।डा.मनमोहन सिंह को यह पता लगाना चाहिए कि यह करेंसी भारत की है या फिर भारत को कमजोर करने वाली शक्तियों की। झा ने गडकरी को केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार की क्लीन चिट को केजरीवाल के मुंह पर करारा तमाचा बताया है। झा ने केजरीवाल को ब्लैकमेलर, अन्ना के साथ विश्वासघात करने वाला बताते हुए लिखा कि केजरीवाल की चाहत पिटने की है, ताकि जनता का भावनात्मक समर्थन मिलने लगे। झा यहीं नहीं रुके उन्होंने न्यूज चैनलों के बारे में कहा कि उन्होंने कुकुरमुत्तों को मुंह लगाकर अपना कीमती समय बर्बाद किया और जनता को भी गुमराह किया।

अनिल अंबानी की अगुआई वाले रिलायंस समूह ने एक बार फिर मध्य प्रदेश को मोटे निवेश का भरोसा दिलाया है। अपनी विस्तार योजना की घोषणा करते हुए कंपनी ने कहा कि वह राज्य में अपने कुल निवेश के आंकड़े को 30,000 करोड़ रुपये के मौजूदा स्तर से बढ़ाकर 50,000 करोड़ रुपये के पार पहुंचा देगी। रिलायंस समूह के अध्यक्ष अनिल अंबानी ने प्रदेश सरकार के आयोजित वैश्विक निवेशक सम्मेलन में कहा, 'हम अगले कुछ साल के  दौरान प्रदेश में कोयला खनन, बिजली उत्पादन और सीमेंट निर्माण के क्षेत्र में 50,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश करेंगे।' उन्होंने बताया  कि  रिलायंस समूह प्रदेश में इन तीनों क्षेत्रों में 30,000 करोड़ रुपये की परियोजनाओं पर आगे बढ़ रहा है। अंबानी ने बताया, 'हमारी कोयला खनन परियोजना का पहला चरण शुरू हो चुका है। हम अपने सासन संयंत्र में 660 मेगावॉट बिजली उत्पादन जल्द शुरू कर देंगे।'


बिना किसी खास एजंडे के केजरीवाल के इस गुरिल्ला युद्ध पर बीबीसी ने मौजूं सवाल किया है।कौन है केजरीवाल का अगला निशाना? देखें:

सोनिया गाँधी के दामाद क्लिक करें रॉबर्ड वाड्रा , विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद और भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी के बाद क्लिक करें अरविंद केजरीवाल का अगला निशाना कौन होगा और उसका संबंध किस पार्टी के साथ होगा? बुधवार को अपनी प्रेसवार्ता से कुछ घंटे पहले इंडिया अगेंस्ट करप्शन सदस्य अरविंद केजरीवाल ने अपने ट्वीट में कहा, "आज के पर्दाफाश को देखें. ये बहुत बड़ा हो सकता है." जब अरविंद केजरीवाल ने क्लिक करें रॉबर्ड वाड्रा के खिलाफ डीएलएफ के साथ मिलकर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था, तब विपक्षी भाजपा ने जाँच की तो मांग की थी लेकिन बहुत शोर-शराबा नहीं मचाया.
http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/10/121031_kejriwal_attack_vk.shtml


दिल्ली के कंस्टीट्यूशन क्लब में आज अरविंद केजरीवाल की प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के सचिव जगदीश शर्मा ने सवाल पूछने को लेकर हंगामा किया। साथ ही उन्होंने केजरीवाल पर जूता फेंकने की कोशिश की। पीसी के दौरान एक आदमी घुस आया और उसने सवाल पूछने को लेकर हंगामा शुरु कर दिया। केजरीवाल ने इस पर कहा कि वो जानते हैं कि ऐसा उनके साथ होगा। उन्होंने कहा कि वो बड़ी शक्तियों के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे हैं तो ये तो होगा ही। उन्होंने कहा कि इसके बाद भी हमलोग भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते रहेंगे।केजरीवाल की प्रेस कांफ्रेंस में हंगामा करने वाले लोगों ने कहा कि वो भी भारत के आम आदमी है और ईमानदार प्रधानमंत्री पर सवाल उठाए जाने का विरोध कर रहे थे। हंगामा करने वाले लोग कांग्रेस से जुड़े बताए जा रहे हैं।

कारपोरेट राज के भंडाफोड़ से कांग्रेस और भाजपा दोनों को गुस्सा आया। क्यों?रिलायंस की प्रतिक्रिया समझ में आती है। लोकतंत्र में रिलायंस को अपना बचाव करने का हक है। पर कारपोरेट राज के भंडाफोड़ से एक ही सुर में क्यों बोल रहे हैं कांग्रेसी और भाजपाई नेता?दूसरी ओर, जो आरोप केजरीवाल ने लगाये हैं, उनमें नया कुछ भी नहीं है।जल जंगल जमीन और आजीविका से बहुसंख्य जनता को बेदखल ​​करके, उत्पादन प्रणाली को तहस नहस करके, उत्पादक जनसमूहों के कत्लेआम के जरिये प्रकृतिक संसाधनों की बंदरबांट के सिद्धांत पर आजादी के तुरंत बाद से कारपोरेट राज जारी है। पूंजी के इस खुल्ला खेल फर्ऱूखाबादी के खिलाफ आजतक कोई प्रतिरोध नहीं हुआ। भंडाफोड़ करने की ​​रघुकुल रीति चली आयी, पर उसका क्या अंजाम हुआ केजरीवाल अपने गुरिल्ला युद्ध को किस अंजाम तक कैसे लि जायेंगे, इसका अभी​ ​ खुलासा नहीं है। इसके बावजूद सत्तवर्ग का एकजुट होकर उनके खिलाफ मोर्चा खोलना हैरतअंगेज है। क्या कहीं कुछ टूटने लगा है?

अरविंद केजरीवाल  ने हंगामे पर कहा- जब हम कांग्रेस, भाजपा और कार्पोरेट जगत के खिलाफ आवाज उठाएंगे तो ऐसे हंगामा करके हमें रोकने की कोशिश भी की जाएगी लेकिन हमारी आवाज नहीं दबेगी। हम तमाम अरवोधों के बावजूद भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलते रहेंगे।

रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) ने केजी-डी6 गैस परियोजना मामले में सरकार द्वारा उसका पक्ष लिए जाने के इंडिया अगेंस्ट क्रप्शन (आईएसी) के आरोपों को खारिज किया और कहा कि ये आरोप निहित स्वार्थी तत्वों के उकसावे पर लगाए गए हैं। कंपनी ने जारी एक वक्तव्य में कहा ''आईएसी ने जो वक्तव्य दिया है, उसमें कोई सच्चाई और तथ्य नहीं है और हम उसका खंडन करते हैं।'' आरआईएल ने कहा केजी-डी6 परियोजना सबसे गहरे समुद्र की परियोजना है और इसे छह महीने के रिकॉर्ड समय में तैयार किया गया।

अरविंद केजरीवाल ने अपने आरोपों में कहा-

'साल 2006 में मणिशंकर अय्यर को मंत्रीपद से हटाकर मुरली देवड़ा को मंत्री बनाया गया था ताकि रिलायंस की गैस की कीमत को 2.34 डॉलर प्रति ब्रिटिश थर्मल यूनिट (एमएमबीटीयू) से बढ़ाकर 4.2 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू किया जा सके।

साल 2012 में पेट्रोलियम मंत्री जयपाल रेड्डी को भी मंत्रीपद से हटा दिया गया ताकि एक बार फिर रिलायंस की मांग के आगे झुका जा सके क्योंकि जयपाल रेड्डी रिलायंस की ब्लैकमेलिंग के आगे नहीं झुक रहे थे। रिलायंस ने गैस का उत्पादन कम करके सरकार को ब्लैकमेल करने की कोशिश भी की थी। रिलायंस ने 14.2 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू की मांग की थी जबकि जयपाल रेड्डी ने मना कर दिया था।

यदि अब सरकार रिलायंस की इस मांग के आगे झुक गई और कीमतों को बढ़ाकर 14.2 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू कर दिया गया तो देश में खाद की कीमतें बढ़ जाएंगी और कई गैस चलित पॉवर प्लांट बंद हो जाएंगे। इससे रिलायंस को 43 हजार करोड़ रुपये का फायदा होगा।

केजरीवाल ने आगे कहा- रिलायंस को गैस के फील्ड इसलिए नहीं दिए गए थे ताकि वो इन पर अपना मालिकाना हक जमा लें। बल्कि इसलिए दिए गए थे ताकि देश की गैस की जरूरतें पूरी हो सकें लेकिन पिछले साल ही रिलायंस ने गैस फील्ड का 30 प्रतिशत ब्रिटिश पेट्रोलियम को बेचकर 35 हजार करोड़ का मुनाफा कमाया।

अरविंद केजरीवाल ने यह भी कहा कि देश को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह नहीं बल्कि मुकेश अंबानी चला रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री और उनकी सरकार मुकेश अंबानी की जेब में है। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि मुरली देवड़ा ने करीब एक लाख करोड़ रुपये का अनुचित फायदा रिलायंस को पहुंचाया।

केजरीवाल ने सीधे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर सवाल खड़ा करते हुए कहा, 'क्या कांग्रेस मुकेश अंबानी की दुकान है?' भ्रष्टाचार की परिभाषा के मुताबिक सिर्फ रिश्वत लेने वाला व्यक्ति ही नहीं, अपने पद का दुरुपयोग कर किसी को फायदा पहुंचाने वाला भी भ्रष्टाचार का उतना ही दोषी माना गया है। इस लिहाज से प्रधानमंत्री इस मामले में सीधे दोषी हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद का खुलासा कर चुके केजरीवाल ने इस बार भाजपा के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के दामाद रंजन भंट्टाचार्य की बातचीत के टेप भी सुनवाए। अंबानी की लॉबिस्ट नीरा राडिया से बातचीत में भंट्टाचार्य दावा कर रहे हैं कि मुकेश ने उनसे कहा कि कांग्रेस तो अब अपनी दुकान है। यह टेप सुनवाते हुए उन्होंने कहा कि ये वही भंट्टाचार्य हैं, जिनके बारे में कुछ दिन पहले दिग्विजय सिंह ने कहा था कि ये भाजपा के पूर्व प्रधानमंत्री के दामाद हैं, इसलिए वह इनके बारे में कुछ नहीं बोलेंगे।

केजरीवाल ने कहा, '2006 में तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री मणिशंकर अय्यर को प्रधानमंत्री ने इसलिए हटाया था क्योंकि उन्होंने रिलायंस को अनुचित फायदा पहुंचाने से मना कर दिया था। उनकी जगह प्रधानमंत्री ने मुरली देवड़ा को पेट्रोलियम मंत्री बना दिया, जिनके बारे में कहा जाता है कि वह रिलायंस के आदमी हैं। उन्होंने मंत्री बनते ही रिलायंस से खरीदी जा रही गैस की दर 2.34 डॉलर से बढ़ाकर 4.2 डॉलर प्रति यूनिट कर दी। साथ ही इस योजना पर कंपनी के खर्च की सीमा भी लगभग तीन गुना बढ़ा दी।'

केजरीवाल ने कहा कि इस मामले में भाजपा और कांग्रेस बराबर के दोषी हैं। क्योंकि वर्ष 2000 में इस कंपनी को भारी फायदा पहुंचाने वाली एकतरफा शर्तो पर राजग सरकार ने ही इसे ठेका दिया था। इन शर्तो के मुताबिक कंपनी इस परियोजना पर जितनी चाहे लागत बढ़ा सकती है। यह लागत जितनी बढ़ेगी उसका फायदा उतने ही अनुपात में बढ़ा दिया जाएगा। केजरीवाल के सहयोगी और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के मुताबिक ऐसी शर्तो पर कोई सौदा नहीं किया जाता। उन्होंने रिलायंस इंडस्ट्रीज को दिए गए इस ठेके को तुरंत रद करने की मांग की।

केजरीवाल के मुताबिक इस बार जयपाल रेड्डी को हटाकर वीरप्पा मोइली को पेट्रोलियम मंत्री बनाकर रिलायंस से खरीदी जा रही गैस की दर 14.25 डॉलर प्रति यूनिट करने की तैयारी की जा रही है। इस दौरान कंपनी जानबूझकर गैस का उत्पादन कम कर इसकी जमाखोरी कर रही है। ताकि सरकार की ओर से दर बढ़ाने के बाद जबरदस्त मुनाफा कमा सके। कंपनी ने बार-बार शर्तो का उल्लंघन किया तब प्रधानमंत्री को कोई चिंता नहीं हुई। मगर जैसे ही अंबानी ने उनसे गैस की दर बढ़ाने का अनुरोध किया तो उन्होंने उनकी मांग पर तुरंत अटार्नी जनरल से कानूनी राय मांग ली। ऐसे में सवाल है कि क्या प्रधानमंत्री का दिल सिर्फ रिलायंस जैसी कंपनियों के लिए धड़कता है। केजरीवाल की प्रेस कांफ्रेस के दौरान ही कुछ लोगों ने हंगामा करने की भी कोशिश की। एक व्यक्ति ने जूता उन पर फेंकने के लिए हाथ में उठा लिया था, मगर उसे पहले ही पकड़ लिया गया।

जवाब देने लायक नहीं आरोप: रिलायंस इंडस्ट्रीज

रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड [आरआइएल] ने कहा है कि अरविंद केजरीवाल ने कुछ स्वार्थी ताकतों के इशारे पर बेबुनियाद आरोप लगाए हैं। केजरीवाल को इस उद्योग की सामान्य समझ भी नहीं है, इसलिए उनके आरोप जवाब देने के लायक नहीं हैं। कंपनी की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन की प्रेस कांफ्रेंस में जो आरोप लगाए गए हैं, वे सच्चाई से परे हैं और इनमें कोई तथ्य नहीं।

केजी-डी 6 बेसिन में गहरे पानी के अंदर गैस निकालने के काम में बेहतरीन तकनीकी संसाधनों का इस्तेमाल किया जा रहा है। तेल और गैस उद्योग ने इस तरह की परियोजनाओं में इसे बेहतरीन माना है। इस परियोजना ने देश की अर्थव्यवस्था में बहुत योगदान किया है। हर मायने में यह ऐसी परियोजना है, जिस पर देश गर्व कर सकता है।'

रिलायंस इंडस्ट्रीज के खिलाफ सीबीआइ खाली हाथ

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआइ पिछले तीन सालों की जांच के बाद भी यह तय नहीं कर पाई है कि केजी बेसिन मामले में रिलायंस इंडस्ट्रीज के खिलाफ एफआइआर दर्ज की जाए या नहीं। इसके लिए भी सीबीआइ को अटार्नी जनरल की राय का इंतजार करना पड़ रहा है। केजी बेसिन से गैस निकालने की लागत में दो साल के भीतर तीन गुना बढ़ोतरी को हरी झंडी देने के मामले की सीबीआइ 2009 से ही प्रारंभिक जांच कर रही है।

दरअसल, सीबीआइ के कुछ अधिकारी गैस उत्पादन की लागत तीन गुना से अधिक बढ़ाए जाने की साजिश के लिए रिलायंस इंडस्ट्रीज और हाईड्रोकार्बन निदेशालय के तत्कालीन महानिदेशक वीके सिब्बल व अन्य अधिकारियों के खिलाफ एफआइआर दर्ज करना चाहते हैं। उनके अनुसार जांच के बाद ही इस साजिश से पर्दा उठ सकता है। लेकिन सीबीआइ के विशेष निदेशक स्तर के अधिकारी एफआइआर दर्ज करने के पक्ष में नहीं है। इसी विशेष निदेशक ने मामले पर इस साल मई में अटार्नी जनरल की राय लेने का सुझाव दिया था, जिसे सीबीआइ निदेशक एपी सिंह ने स्वीकार कर लिया। जांच से जुड़े अधिकारियों की मानें तो रिलायंस इंडस्ट्रीज की तरफदारी करने वाले वरिष्ठ अधिकारी ने जानबूझकर मामले को उलझा दिया है।

क्या है केजी डी6-ब्लॉक

- कृष्णा-गोदावरी [केजी] बेसिन आंध्र प्रदेश में स्थित है। यह कृष्णा और गोदावरी नदी के बीच करीब 50 हजार वर्ग किमी में फैला हुआ है।

- 2002 में रिलायंस इंडस्ट्रीज ने इसी बेसिन में देश के सबसे बड़े प्राकृतिक भंडार की खोज की थी। । इस क्षेत्र को डी6-ब्लॉक नाम दिया गया

कैग रिपोर्ट :

- आठ सितंबर, 2011 को नियंत्रण एवं महालेखा परीक्षक [कैग] ने संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में सरकार द्वारा केजी बेसिन के डी6-ब्लॉक को पूरी तरह रिलायंस को देने पर आपत्ति दर्ज की थी।

- कैग ने रिलायंस को कायदे कानून को ताक पर रख कर सहयोग देने के लिए पेट्रोलियम मंत्रालय और हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय [डीजीएच] की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े किए थे

क्या है विवाद

वर्ष 2000 में नई अन्वेषण लाइसेंसिंग नीति [नेल्प] के तहत केजी बेसिन डी6 गैस ब्लॉक रिलायंस व निको रिर्सोसेज को दिया गया। सरकार व कंपनी के बीच समझौते के मुताबिक पहले पेट्रोलियम उत्पादों की खोज के बाद ही दूसरे चरण में जाना था। जितने हिस्से में पेट्रोलियम खोज नहीं हो रही है, उसका एक चौथाई हिस्सा कंपनी को सरकार को लौटा देना था।

रिलायंस ने ऐसा नहीं किया, बल्कि सरकार से पूरे डी6 क्षेत्र को अपना डिस्कवरी क्षेत्र मानने के लिए दबाव बनाती रही। वर्ष 2004 में पेट्रोलियम मंत्री मणिशंकर अय्यर के कार्यकाल में पेट्रोलियम मंत्रालय ने रिलायंस की अर्जी खारिज कर दी। मुरली देवड़ा के पेट्रोलियम मंत्री बनने के बाद सरकार का मन बदला। केजी बेसिन का जो हिस्सा रिलायंस को दिया गया था, उस पूरे 7645 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कंपनी का खोज क्षेत्र मान लिया गया।

बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी पर खुलासे के बाद पार्टी ने अपने मुखपत्र में अरविंद केजरीवाल पर जोरदार हमला बोला है। बीजेपी ने मुखपत्र कमलसंदेश में केजरीवाल के आंदोलन के पीछे विदेशी हाथ होने के संगीन आरोप लगाए हैं और सरकार से इसकी जांच कराने की मांग की है। अरविंद केजरीवाल को कमलसंदेश में अन्ना आंदोलन का ब्लैकमेलर तक करार दिया गया है।

एक के बाद नेताओं पर आरोप लगा रहे अरविंद केजरीवाल बीजेपी के निशाने पर आ गए हैं। पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी पर केजरीवाल के खुलासे के बाद बीजेपी ने उन पर जोरदार हमला बोला है। बीजेपी ने अपने मुखपत्र कमल संदेश के संपादकीय लेख में आरोप लगाया है कि अरविंद केजरीवाल की टीम लोकतंत्र के प्रति अविश्वास पैदा करने की साजिश में जुटी है। केंद्र सरकार को इस आशय की गंभीर छानबीन करनी चाहिए। केजरीवाल का खेल करेंसी का हो सकता है। अब जानना ये है कि ये करेंसी भारत की है या फिर भारत को कमजोर करने वाली शक्तियों की।

केजरीवाल के खिलाफ बीजेपी के गुस्से की आग यहीं नहीं थमी। लेख में आगे लिखा है कि केजरीवाल है क्या? क्या उनके बारे में लोगों को नहीं मालूम कि वो अन्ना आंदोलन का ब्लैकमेलर या यूं कहें कि अन्ना के साथ विश्वासघात करने वाला है। जिस अन्ना ने अरविंद केजरीवाल को अपने आंदोलन के आंचल का दूध पिलाकर बड़ा किया उसी ने अन्ना का साथ छोड़ अपना नाम देश के विश्वासघातियों में शामिल कर लिया।

टीम केजरीवाल ने बीजेपी के मुखपत्र में लगाए गए आरोपों पर सधी हुई प्रतिक्रिया दी है। अरविंद के सहयोगी संजय सिंह का कहना है कि बीजेपी से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है। जब केजरीवाल ने रॉबर्ट वाड्रा पर आरोप लगाए तो बीजेपी ने कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा। लेकिन जब आरोप गडकरी पर लगे तो बीजेपी की नजर बदल गई। अब देखना ये है कि बीजेपी बनाम केजरीवाल की लड़ाई क्या रंग दिखाती है।

राजेन्द्र धोड़पकर, एसोशिएट एडीटर, हिन्दुस्तान ने खूब लिखा है।

इन दिनों सारी राजनैतिक पार्टियां भ्रष्टाचार को मुद्दा बना रही हैं और सारी पार्टियों के बड़े-बड़े नेताओं के भ्रष्टाचार के किस्से सामने आ रहे हैं। इससे यह लगने लगा है कि सारी ही पार्टियां लगभग बराबरी के स्तर पर भ्रष्ट हैं, बहुत हुआ तो उन्नीस बीस का फर्क होगा। इससे एक और निष्कर्ष यह निकलता है कि अगर जनता की दिली तमन्ना के मुताबिक सारे भ्रष्ट नेताओं को जेल में डाल दिया जाए तो देश की राजनैतिक व्यवस्था ठप्प हो जाएगी, विधायिका के तमाम संस्थानों में सन्नाटा छा जाएगा और पार्टियों के दफ्तर में सुबह ताला खोलने के लिए भी कोई नहीं होगा। लेकिन ऐसा नहीं है कि सिर्फ राजनेता ही भ्रष्ट हैं, हालांकि सबको भ्रष्ट राजनेताओं को भला बुरा कहना अच्छा लगता है।

नौकरशाही में हमारे आपके जैसे मध्यमवर्गीय, अपेक्षाकृत पढ़े-लिखे लोग होते हैं और वे भी राजनेताओं जितने ही भ्रष्ट होते हैं। अगर हर आदमी यह सोचे कि उसने क्या किसी मंत्री को कभी रिश्वत दी थी, तो ज्यादातर लोग इसका जवाब 'नहीं' में पाएंगे। इसके बरक्स अगर हर व्यक्ति अपने आप से पूछे कि उसने क्या किसी सरकारी कर्मचारी को कभी रिश्वत दी थी, तो शायद हर बार जवाब 'हां' में हो। एक बड़े सरकारी विभाग के एक सतर्कता अफसर ने बताया कि वह इधर-उधर इक्का-दुक्का लोगों को पकड़कर अपनी नौकरी बजाते रहते हैं, अगर सारे भ्रष्ट कर्मचारियों को पकड़ लिया जाए, तो विभाग बंद हो जाएगा।

भ्रष्ट लोगों पर गुस्सा जायज है लेकिन सारे भ्रष्ट लोगों को जेल में ठूंस देना व्यावहारिक नहीं है और संभव भी नहीं है। अच्छा हो अगर भारतीय मध्यवर्ग अपने गुस्से को कम करके कुछ गंभीरता से इस समस्या पर सोचे। तब कईं मिथ टूटेंगे, शायद हल भी सूझे। पहला भ्रम तो यही है कि सिर्फ राजनीति में भ्रष्टाचार है, जबकि हमारे जैसे मध्यवर्गीय लोग भी उतने ही भ्रष्ट हो सकते हैं। नेता तो भ्रष्टाचार से कमाया काफी कुछ पैसा वापस जनता के लिए खर्च भी करते हैं, मध्यमवर्गीय लोग तो पूरा ही डकार जाते हैं। दूसरे, दुनिया के जिन देशों में भ्रष्टाचार बहुत कम है, लगभग सभी विकसित लोकतांत्रिक देश हैं। सिंगापुर जैसा एकाध अपवाद है लेकिन वह तो एक शहर बराबर देश है।

मध्यमवर्गीय लोगों का एक मिथ यह है कि लोकतंत्र से भ्रष्टाचार बढ़ता है और इसका इलाज फौजी शासन है। हालांकि निरपवाद रूप से सारी फौजी तानाशाहियां बहुत ज्यादा भ्रष्ट रही हैं। बल्कि यह कहना चाहिए कि किसी भी किस्म की तानाशाही में भ्रष्टाचार पनपता है, चाहे वे दक्षिणपंथी हों या वामपंथी। पूर्व साम्यवादी देशों में और लातिन अमेरिका के अमेरिका परस्त फौजी तानाशाहियों के तंत्र में भारी भ्रष्टाचार रहा है। यह बहुत साफ है कि जिस व्यवस्था में कठोर सेंसरशिप हो और किसी बड़े आदमी का विरोध करने पर जेल या मृत्युदंड मिल सकता हो उसमें भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना सबसे खतरनाक हो सकता है।

लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी होती है और लोगों को विरोध करने का हक होता है, इसलिए भ्रष्टाचार का शोर बहुत होता है, लेकिन भ्रष्टाचार घटाने की गुंजाइश भी होती है।

तमाम लोकतांत्रिक देश अपने यहां लोकतंत्र के विकास के दौर में एक ऐसी स्थिति से जरूर गुजरे हैं, जब वहां भ्रष्टाचार बहुत रहा है। लोकतंत्र के परिपक्व होते-होते लोग अपने हक के प्रति सचेत होते हैं और तब उन्हें यह महसूस होता है कि साफ-सुथरा और ईमानदार प्रशासन पाना उनका बुनियादी हक है। हम इस प्रक्रिया से अभी गुजर रहे हैं, जब आम नागरिकों को यह लग रहा है कि वे उस तरह के साफ-सुथरे प्रशासन के हकदार हैं, जैसा कई विकसित लोकतांत्रिक देशों में है। भ्रष्टाचार का इलाज किसी तरह की तानाशाही नहीं, बल्कि और ज्यादा लोकतंत्र है।

भ्रष्टाचार के बारे में एक और मिथक यह खासतौर पर समाजवादी रुझान के लोगों में लोकप्रिय है कि आर्थिक उदारीकरण से भ्रष्टाचार बढ़ा है। यह सही है कि उदारीकरण के बाद भ्रष्टाचार का आकार बढ़ा है लेकिन इसकी वजह यह है कि हमारी अर्थव्यवस्था का ही आकार तेजी से बढ़ा है। पिछले दस साल में हमारी अर्थव्यवस्था का आकार दुगना हो गया है, इतनी तेज रफ्तार से विकास में लुटेरों के हाथ भी ज्यादा लूट लग जाती है। इसके बावजूद तथ्य यह है कि हमारे देश में भारी भ्रष्टाचार की जड़ें नियंत्रित लाइसेंस परमिट वाले राज में थीं। जब हर कदम पर चार सरकारी विभागों से मंजूरी लेनी हो और मामूली घरेलू बिजली का कनेक्शन जैसे काम में दजर्न भर प्रक्रियाओं से गुजरना हो, तो हर कदम पर रिश्वत ही आसानी पैदा कर सकती है।

नियंत्रित अर्थव्यवस्था में चीजों की वास्तविक या कृत्रिम कमी होती है और ऐसे में काला बाजार और भ्रष्टाचार की अर्थव्यवस्था को बल मिलता है। 30-40 साल पहले कई लोगों ने स्कूटर या ट्रकों के कालाबाजार का धंधा खूब किया था। गैस और टेलीफोन कनेक्शन के ब्लैक का भी बाजार था। अब ये धंधे लगभग बंद हो गए। सरकारी प्रक्रियाओं में गड़बड़ी और भ्रष्टाचार रोकने के लिए एक और नया जांच का स्तर बना दिया जाता है और इस तरह भ्रष्टाचार का एक और ठिकाना बन जाता था। इसी के साथ अगर आयकर की दर 90 प्रतिशत तक हो तो कर बचाने में लोगों की दिलचस्पी जागेगी ही और काले पैसे की अर्थव्यवस्था मजबूत होती जाएगी। भ्रष्टाचार रोकने का उपाय ज्यादा कठोर सरकारी नियंत्रण नहीं है, सरकारी प्रक्रियाओं को सरल बनाना और अर्थव्यवस्था को उदार बनाना है। ज्यादा सरकारी नियंत्रण वाली व्यवस्थाएं अनिवार्य रूप से ज्यादा भ्रष्ट होती हैं।

सारी दुनिया में लोगों को राजनेताओं के भ्रष्टाचार पर चर्चा करने में दिलचस्पी होती है, लेकिन यह धारणा गलत है कि भ्रष्टाचार ऊपर से शुरू होता है, इसलिए उसका खात्मा भी ऊपर से ही होना चाहिए। 'जब नेता हजारों करोड़ डकार रहे हैं तो मैं बीस रुपये ज्यादा क्यों न लूं' यह ऑटो रिक्शा वाले का तर्क समाजवादी जरूर होगा लेकिन व्यावहारिक तौर पर गलत है। दुनिया के जिन देशों में भ्रष्टाचार लगभग न्यूनतम है, उन देशों में भी राजनैतिक भ्रष्टाचार खत्म नहीं हुआ है। जापान के आम नागरिक को रोजमर्रा के कामकाज में भ्रष्टाचार नहीं सहना पड़ता लेकिन वहां पिछले सालों में न जाने कितने प्रधानमंत्रियों को भ्रष्टाचार के आरोपों में इस्तीफा देना पड़ा, यहां तक कि स्वीडन और नार्वे जैसे लगभग आदर्श सार्वजनिक जीवन वाले देशों में भी राजनैतिक भ्रष्टाचार है।

वैसे भी आम आदमी को असली परेशानी बिजली, पानी, सड़क के सरकारी विभागों के भ्रष्टाचार से होती है, और यहां भ्रष्टाचार खत्म होना हमारे आपके लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है। यह बात बराबरी के सिद्धांत के खिलाफ लग सकती है लेकिन व्यावहारिक और यथार्थपरक तो यही है। नेताओं के भ्रष्टाचार पर हम बिल्कुल विरोध प्रकट करें लेकिन क्या भारतीय मध्यमवर्ग को अपने गिरेबान में भी नहीं झांकना चाहिए। रिश्वत लेने वाले, बाबू, अफसर, इंजीनियर, डॉक्टर, शिक्षक सब हमारे आसपास के ही लोग तो हैं, आखिर हम इनके भ्रष्टाचार को नेताओं के भ्रष्टाचार के शोर में कब तक नजरअंदाज करते रहेंगे।
http://www.livehindustan.com/news/editorial/guestcolumn/article1-story-57-62-276952.html


भाजपा नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के लिए पार्टी पर निशाना साधते हुए कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने आज विपक्षी पार्टी से पूछा कि उसने इस तरह के आरोपों का सामना कर रहे अपने नेताओं के खिलाफ क्या कार्रवाई की।

भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी का परोक्ष तौर पर उल्लेख करते हुए गांधी ने कहा, 'जहां भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे हमने कार्रवाई की। उनके नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगे तो क्या उन्होंने कोई कार्रवाई की। उन्होंने एक भी शब्द कहा।' एक रैली को यहां संबोधित करते हुए गांधी ने लोगों को याद दिलाया कि कांग्रेस ही आरटीआई लाई और यह भाजपा है जिसने राज्यसभा में लोकपाल विधेयक के पारित होने में बाधा पहुंचाई। उन्होंने एफडीआई के भाजपा के विरोध को भी खारिज कर दिया। उन्होंने उसपर गलत सूचना फैलाने का आरोप लगाया। गांधी ने कहा कि एफडीआई किसानों के लाभ के लिए है।

गांधी ने कहा, 'जब भाजपा नीत राजग की सरकार दिल्ली में थी तो वे एफडीआई के खिलाफ नहीं थे। अब जब हम इसे ला रहे हैं तो वे सिर्फ इसलिए इसका विरोध कर रहे हैं क्योंकि ऐसा कांग्रेस कर रही है।' गांधी ने कहा, 'विपक्ष कहेगा कि मनरेगा गलत है। किसानों की कर्ज माफी गलत है, सर्वशिक्षा अभियान गलत है और एफडीआई गलत है क्योंकि इसे कांग्रेस कर रही है।' उन्होंने राज्य में भूमि आवंटन के मुद्दे पर भाजपा की आलोचना की। गांधी ने कहा कि लोग शिकायत करते हैं कि उनकी भूमि मनमाने तरीके से बाहरी लोगों को बेच दी गई।

गांधी ने इस अवसर का इस्तेमाल युवाओं से राजनीति में आने और इसे बदलने का आह्वान करने के लिए भी किया। गौरतलब है कि गांधी जल्द ही पार्टी मामलों में बड़ी भूमिका निभाने वाले हैं। गांधी ने कहा, 'जब तक आप व्यवस्था से बाहर रहेंगे, जब तक नई पीढ़ी राजनीति में नहीं आएगी, यह व्यवस्था नहीं बदल सकती। मैं नए लोगों, युवकों और खासतौर पर महिलाओं को राजनीति में लाना चाहता हूं। जिन राज्यों में महिलाएं राजनीति में आईं और सचेत थीं उनका विकास तेजी से हुआ।'

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