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Monday, April 29, 2013

जब मुख्यमंत्री के भतीजे जो कि उनकी राजनीति के उत्तराधिकारी भी हैं, खुद चिटफंड चला रहे हैं, तो शारदा समूह के सुदीप्त सेन और दूसरी सौ से ज्यादा चिटफंड कंपनियों के खलाफ कार्रवाई कैसे संभव है!​

जब मुख्यमंत्री के भतीजे जो कि उनकी राजनीति के उत्तराधिकारी भी हैं, खुद चिटफंड चला रहे हैं, तो शारदा समूह के सुदीप्त सेन और दूसरी सौ से ज्यादा चिटफंड कंपनियों के खलाफ कार्रवाई कैसे संभव है!​


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


जब मुख्यमंत्री के भतीजे जो कि उनकी राजनीति के उत्तराधिकारी भी हैं, खुद चिटफंड चला रहे हैं, तो शारदा समूह के सुदीप्त सेन और दूसरी सौ से ज्यादा चिटफंड कंपनियों के खलाफ कार्रवाई कैसे संभव है!​


बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी क्रमशः चिटफंड संकट में बुरी तरह फंसती जा रही है। मुख्यमंत्री की ईमानदार छवि आहिस्ते आहिस्ते टूटती जा ​​रही है।सादगी पर सवाल खड़े होने लगे हैं। उनके परिजनों पर पहले भी आरोप लगते रहे हैं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। दीदी ने हमेशा अपनी​​ छवि बचाने में परिजनों को लताड़ पिलाकर मामला रफा दफा करती रही हैं। सत्तादल के युवानेतृत्व बतौर अपने भतीजे अभिषेक बंद्योपाध्याय को प्रोजेक्ट करने के राजनीतिक नतीजे अब दीदी को भुगतने पड़ रहे हैं।माकपा ने सीधे अभिषेक की संपत्ति और गतिविधियों पर सवालिया निशाना लगाकर दीदी को बुरी तरह घेर लिया है। रविवार की शाम पानिहाटी में माकपा की रैली से पहले पूरे इलाके में तृणमूल की ओर से माकपाविरोधी पोस्टर लगे। इससे पहले बागुईहाटी में माकपा की सभा पर त-णमूल के हमवले की खबर फैलने से और चारों तरफ माकपा की रैली के मौके पर तृणमूली झंडे की बाढ़ और तृणमूली सक्रियता को देखकर स्थानीय लोग सही सलामत यह रैली निपट जाने की दुा मांग रहे थे। रैली हुई। लेकिन इस रैली में एक राजनीतिक धमाका​​ हुआ जिसकी गूंज दूर , बहुत दूर तलक पहुंच रही है। कोई हमला या संघर्ष तो नहीं हुआ पर माकपा ने सीधे मुख्यमंत्री को कटघरे पर खड़ा कर​​ दिया।पार्टी के नेताओं, सांसदों, विधायकों, बुद्धिजीवियों के खिलाफ चिटफंड गोरखधंधे में शामिल होने के सबूत मिलने पर भी राज्यवासी इसमें सीधे तौर पर मुख्यमंत्री को शामिल मानने के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं। हालांकि चिटफंड प्रकरण में कार्रवाई न होने और दोषियों को बचाने के आरोपों के साथ राजनीतिक प्रदर्सन में मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग दिनोदिन तेज होती जा रही है।अब अभिषेक बंदोपाध्याय की बेहिसाब संपत्ति और उनकी संदिग्ध व्यवसायिक गतिविधियों को लेकर सवालों का जवाब देना दीदी के लिए सचमुच बारी पड़ सकता है।इन आरोपों को मौजूदा परिप्रेक्ष्य में महज दुष्प्रचार कहके भी वे खारिज नहीं कर सकतीं।उनका निजी और सार्वजनिक जीवन अब एकाकार होने लगा है।इससे बड़ा संकट हो ही क्या सकता है?


खास बात तो यह है कि सुदीप्त सेन ने छह अप्रैल को सीबीआई को पत्र लिखा, १० को फरार हुए और १६ को उनके खिलाफ जिस चैनल की ओर से एफआईआर दाखिल किया गया ,वह सत्तादल और ममता बनर्जी का नंदीग्राम सिंगुर आंदोलन के समय से लगातार समर्थन करता आ रहा है। लेकिन राज्य सरकार की ओर से अभीतक कोई एफआईआर नहीं दायर हुआ और सबूत मिलने के बावजूद सत्तादल के नेताओं, मंत्रियों, सांसदों के खिलाफ कोई  कार्रवाई भी ​​नहीं हुई है।नया कानून बनाने के लिए विधानसभा का विशेष अधिवेशन शुरु हो चुका है, वहां भी मुख्यमंत्री केइस्तीफे की मांग लेकर  कांग्रेस ने जमकर प्रदर्शन किया। इस मामले में गौरतलब खास बात यह है कि केंद्र और राज्य सरकार जब चिटपंड विपर्यय से निपटने के लिए कानून अब बनाने जा रही हैं, तब असम में पहले से कानून मौजूद है, जिसके तहत सुदीप्त ससेन की दस साल तक की सजा हो सकती है। असम ही नहीं मेघालय तलक पूरे पूर्वोत्तर में आरदा समूह का कारोबार फैसला हुआ है। ऐसे में असम पुलिस और असम सरकार का सहयोग लेकर शारदा समूह के खिलाफ कारगर कार्रवाई कर सकती है राज्य सरकार जिससे निवेशकों को पैसा वापस  भी मिल सकता है। पर राज्य सरकार ऐसा कुछ नहीं कर रही है।


जिन गौतम देव ने विधानसभा चुनावों में चिटफंड मीडिया की विश्वसनीयता और ममता बनर्जी के उलके साथ संबंध पर विदधानसभा चुनावों से पहले आरोप लगाये थे और लोगों ने इसे उनका बड़बोलापन कहकर खारिज कर दिया था, वही गौतम देव ने अभिषेक बंदोपाद्याय की संदिग्ध व्यवसायिक गतिविधियों और बेहिसाब संपत्ति पर पानिहाटी की रैली में सवाल खड़े किये हैं। चिटफंड और मीडिया संबंधी उनके आरोप अब सही पाये जा रहे हैं, तो अभिषेक के बारे में सच जानने को भी व्याकुल हो ही सकती है चिटफंड फर्जीवाड़े की शिकार गरीब आम जनता, जो कि सत्तादल का मुखय जनाधार भी है।


मुख्यमंत्री से सीधे सवाल करते हुए गौतम देव ने पूछा है कि आखिर उन्हें सीबीआई जांच पर इतनी आपत्ति क्यों हैं? क्या डर है? गौरतलब है कि बतौर विपक्ष की नेता दीदी ने १९९१ से लेकर २०११ तक दर्जनों मामलों में सैकड़ों बार सीबीआई जांच की मांग करती रही हैं और अब जबकि असम सरकार ने चिटफंड फ्रजीवाड़े की सीबीआई जांच कराने की मांग कर रही है तब खुद आरोपों के कटघरे में कड़े होकर वे सीआईडी जांच और ​​अपने जांच आयोग के जरिये खुद को और अपनी पार्टी को बेदाग साबित करने लगी है। याद करें कि गौतम देब ने यह चुनौती भी दी थी करोड़ों रुपये के बदले दीदी के चित्र खरादनेवालों के नामों का खुलासा किया जाये। वह खुलासा भी होने लगा है।


अभिषेक बंद्योपाध्याय पर अब सीधा हमला करते हुए हजारों लोगों और मीडिया की उपस्थिति में गौतम देब ने एक संस्था का नाम लिया और  पूछा कि तीन सौ रुपये के कारोबार वाली इस संस्था का मालिक कौन है? कौन है संचालक?फिर खुद ही उन्होंने जवाब दियाः अभिषेक बंदोपाध्याय। कहा कि यह संस्था निर्माण का कारोबार करती है। जिस प्रोमोटर सिंडिकेट के राज्य राजनीति और  अर्थव्यलवस्था पर हावी होने का आरोप अबतक लग रहा था, उसपर टंगे गोपनीयता का पर्दा एक झटके से उतारकर रख दिया गौतम देब ने।गौतम देव ने कहा कि यह संस्था एक माइक्रोफाइनेंस कंपनी है जिसे हम चिटफंड कहा करते हैं।उन्होंने अभिषेक के परिचय का खुलासा करते हुए कहा कि वे युवा तृणमूल के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।फिर उन्होंने मुख्यमंत्री को चिुनौती दी कि वे बताये कि उनके भतीजे की यह कंपनी आखिर चिटफंड नहीं है तो क्या है? उन्होंने मुख्यमंत्री से यह भी पूछा कि यह संस्था किसकी इजाजत से धंधा कर रही है। रिजर्व बैंक की? सेबी की?


गौतम देव ने आरोप लगाया कि जब मुख्यमंत्री के भतीजे जो कि उनकी राजनीति के उत्तराधिकारी भी हैं, खुद चिटफंड चला रहे हैं, तो शारदा समूह के सुदीप्त सेन और दूसरी सौ से ज्यादा चिटफंड कंपनियों के खलाफ कार्रवाई कैसे संभव है!​

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​पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टचार्य नेभी चिटफंड कारोबार में सत्तादल की भूमिका पर जमकर बरसे।




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