हम फिर मई दिवस मनाने की अपील कर रहे हैं।
मेहनतकश तबके के हक हकूक की लड़ाई तेज करके ही चूंकि देश बेचो फासिस्ट फरेबी बजरंगियों से देश को बचाने की चुनौती है
पलाश विश्वास
हम फिर सड़कों,खेतों और बाजारों,कालेजों और विश्वविद्यालयों में मई दिवस मनाने की अपील कर रहे हैं।इस केसरिया कयामती मंजर में मिलियन बिलियनर सत्ता वर्ग से बाहर हर इंसान ,हर औरत की जिंदगी अब वंचित मेहनतकश की जिंदगी है।जितनीजल्दी हम मेहनतकश तबके के साथ अपनी अपनी पहचान खूंटी पर टांगकर लामबंद हो सकेंगे, उतनी ही तेजी से टूटेगा मुक्तबाजारी फासिस्ट जायनी जनसंहारी यह केसरिया हिंदू साम्राज्यवादी तिलिस्म।
मेहनतकश तबके के हक हकूक की लड़ाई तेज करके ही चूंकि देश बेचो फासिस्ट फरेबी बजरंगियों से देश को बचाने की चुनौती है।
हमारे साथ मीडिया नहीं है तो हमें खुद जिंदा मीडिया बनकर जन जागरण का तूफान खड़ा करना होगा।
नगर महानगर कस्बे गांव से परचे निकालकर बुलेटिन छापकर देश भर में मेहनतकश तबके को सच से वाकिफ करना होगा,उनके बीच पहुंचना होगा और उन्हें संगठित करके देशव्यापी आंदोलन शुरु करना होगा।
शुरुआत के लिए दुनियाभर की मेहनतकश तबके के खून से रंगे मई दिवस के अलावा कोई और बेहतर दिन रक्तनदियों के इस देश में हो नहीं सकता।
जो भी पढ़ रहें हों हमारी यह अपील और हमसे सहमते हों तो न केवल हमारी यह अपील वे दसों दिशाओं में प्रसारित करें बल्कि अपनी अपनी भाषा में स्थानीय हाल हकीकत और मुद्दे जोड़कर अपनी अपील अपना परचा,अपना बुलेटिन छापकर करें तो इस देश में बदलाव का बवंडर मई दिवस से ही उठेगा यकीनन।
जिन बाबासाहेब को हिंदुत्व में समाहित करके भारत की अर्थव्यवस्था से नब्वे फीसद जनता को बहिस्कृत करके मुक्तबाजार के हिसाब से गैरजरुरी जनसंख्या,खासतौर पर विधर्मियों और गैर नस्ली लोगों के नरसंहार का आयोजन हैं,भारत में ब्रिटिश राज के वक्त श्रममंत्री बतौर मेहनतकश तबके के सारे हकहकूक उन्हीं बाबासाहेब के दिये हुए हैं।
श्रमिक संगठनों को वैध बनाया बाबासाहेब ने तो काम के घंटे भी उनने तय किये और महिलाओं को मातृत्व अवकाश से लेकर स्थाई नौकरी के कायदे कानून भी उन बाबासाहेब ने बनाये।
बाबासाहेब को केसरिया रंग से पोतकर उन्हें नाथूराम गोडसे बनाने का खेल जो संघ परिवार कर रहा हैै,उसकी बिजनेस फ्रेंडली सरकार ने तमाम श्रम कानूनों को अबाध विदेशी पूंजी निवेश के तहत हजारों हजार ईस्ट कंपनियों के मुनाफे के लिए मेहनतकश तबके को बंधुआ मजदूर बनाने,संपूर्ण निजीकरण और रोजगार के मौकों से वंचित करने और भूखों मारने के लिए सिरे से खत्म कर दिया है।
मिलियनरों बिलियनरों की संसद में श्रम कानूनों को खत्म करने का कोई विरोध,किसी किस्म का विरोध नहीं हुआ तो मेहनतकश तबके के स्वयंभू रहनुमा लाल झंडे के दावेदारों और बाबासाहेब के अनुयायी होने का दावा करने वाले नीले झंडे के पहरुओं के लिए कम से कम मई दिवस से कोई बेहतर दिन नहीं हो सकता कि मेहनतकश तबके के हक हकूक की आवाज नये सिरे से देश भर में एक साथ उठायी जाये।
अभी अभी अमाजेन, फ्लिप कर्ट,स्नैप डील,और अलीबाबा के खुदरा कारोबार दखल कर लेने के बाद ओला कंपनी ने चार अरब डालर की पूंजी देशी विदेशी निवेशकों से बटोरी है कि भारत के खुदरा बाजार से इस देश के कारोबारियों को बेदखल कर दिया जाये।थोक दरों पर किसानों की आत्महत्या खेती और देहात को मेहनतकश तबके में शामिल होकर रोज कुंआ खोदो रोज पानी पिओ की हैसियत में लाकर पटका है।
रोजगार के लिए अब अति दक्ष अति कुशल चुनिंदे लोगों के अलावा हमारे बच्चों के लिए संपूर्ण निजीकरण ,संपूर्ण विनिवेश,संपूर्ण विनियंत्रण,संपूर्ण विनियमन और संपूर्ण अबाध विदेशी पूंजी के कारपोरेटएफडीआई राज में बिना आरक्षण मुक्तबाजार के संपूर्ण पीपीपी माडल परमाणु विध्वंस बुलेट विकास में मेकिंग इन में कोई जगह नहीं है।
लिहाजा किसानों और मजदूरोें के अलावा इस देश के बच्चों,छात्रों,महिलाओं का भविष्य भी यही बेहिसाब तेजी से बढ़ती वंचित मेहनतकश दुनिया है।जिसमें ग्रामीण भारत का महाश्मशान,बेदखल जल जंगल जमीन पहाड़ मरुस्थल रण,खुदरा बाजार,विस्थापितों और शरणार्थियों की गंदी बस्तियों से लेकर मध्यवर्ग के बसेरे तक को हिंदुत्व के इस फासीवादी मुक्तबाजारी विध्वंसक दावानल ने चारों तरफ से घेर लिए।सारा देश अब जलती हुई बुलेट ट्रेन है और इसमें से बच निकलने की सारी खिड़कियां और तमाम दरवाजे बंद हैं।
इस दुनिया को अब हिंदू साम्राज्यवाद के खिलाफ खड़ा ही होना है और मेहनतकश तबके की लड़ाई ,जल जंगल जमीन की लड़ाई से कतई अलहदा नहीं है।हमारी सारी लड़ाई अब विदेशी अबाध पूंजी के ईस्ट इंडिया कंपनी कारपोरेट केसरिया राज और मुक्तबाजारी नस्ली वर्णवर्चस्वी हिंदू साम्राज्यवाद के खिलाफ है।
अब पूरे देश को जोड़कर हिंदू साम्राज्यवादी कारपोरेट केसरिया के खिलाफ तमाम रंगों के इंद्रधनुष बनाकर लड़ने के सिवाय इस मृत्यु उपत्यका से बच निकलने का कोई रास्ता बचा नहीं है।
आपको याद होगा कि हमने पिछले 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाने की अपील की थी।तब देशभर में हमारे साथियों ने संविधान दिवस मनाया।महाराष्ट्र और दूसरे राज्यों में गैर अंबेडकर अनुयायी भी हर साल संविधान दिवस मनाते हैं।
महाराष्ट्र सरकार ने इसे राजकीय उत्सव बना डाला तो वहां बहुजनों के संगठित होने का मौका हाथ से निकल गया।
संविधान की मसविदा कमेटी के अध्यक्ष बाबासाहेब अंबेडकर हैं और इसलिए देश भर में बहुजन उनकी जयंती,उनके परानिर्वाण दिवस और उनकी दीक्षा तिथि मनाने की रस्म अदायगी की तरह सालों से संविधान दिवसे मनाते रहे हैं।
संविधान और संप्रभुता,स्वतंत्रता और लोकतंत्र का कोई किस्सा इस भावावेग में होता नहीं है।अंबेडकरी आंदोलन केसरिया सुनामी की तरह ही अब तक भावनाओं का कारोबार रहा है और देश के आम लोगों,वंचित, बहुजनों, स्त्रियों, बच्चों, किसानों, कर्मचारियों, छात्रों,युवाओं मजदूरों और समूचे मेहनतकश वर्ग के लिए वंचितों के साथ साथ बाबासाहेब की जो आजीवन सक्रियता रही है,उसकी कोई निरंतरता इसीलिए नहीं है।
अंबेडकर के नाम भावनाओं पर आधारित पहचान की राजनीति से न सिर्फ बाबासाहेब के जाति उन्मूलन के एजंडे के विपरीत मनुस्मृति शासन एक तहत बहुजनों का संहार कार्निवाल बन गया है यह केसरिया कारपोरेट मुक्तबाजारी समय,बल्कि इसी आत्मघाती विचलन की वजह से हिंदुत्व सुनामी में समाहित हैं अंबेडकरी आंदोलन और स्वयं अंबेडकर भी।
हमने हस्तक्षेप पर संघ परिवार के झूठे दावों के खिलाफ बहुजनों और मुसलमानों से खासतौर पर लिखने का खुला न्यौता दिया हुआ है।
मुसलमानों को इसलिए कि उनके खिलाफ बाबासाहेब के हवाले से इस्लाम मुक्त भारत के संघी एजंडा के तहत अभूतपूर्व घृणा अभियान छेड़ दिया गया है और बहुजनों से इसलिए कि वे बाबासाहेब के आंदोलन और विरासत के वे सबसे बड़े दावेदार है।
अभी तक इन तबकों से कोई प्रतिक्रिया भी नहीं मिली है।
जैसे कि बहुजन पलक पांवड़े बिछाये हिदुत्व के बव्य राममंदिर में बाबासाहेब की हत्या के बाद बाबासाहेब की स्वर्ण प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा का इंतजार ही नहीं कर रह कर रहे हैं,बल्कि कतारबद्ध हैं विष्णु भगवान के नये बाबासाहेब अंबेडकर गोडसे सावरकर गोलवलकर अवतार समरस की शास्त्रसम्मत पूजा अर्चना के लिए।
हम फिर मई दिवस मनाने की अपील कर रहे हैं।मेहनतकश तबके के हक हकूक की लड़ाई तेज करके ही चूंकि देश बेचो फासिस्ट फरेबी बजरंगियों से देश को बचाने की चुनौती है।
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