बाजार के सिवाय अर्थ व्यवस्था में बचता क्या है?कुछ कसर बाकी है तो कानून और संविधान में संशोधन करके , लोकतंत्र को पलीता लगाकर आर्थिक सुधार के अश्वमेध में हासिल कर लेंगे!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
भारतीय अर्थ व्यवस्था का पर्याय बना सेनसेक्स की सेहत वित्तीय प्रबंधन की सर्वोच्च प्राथमिकता है। इस हिसाब से भाजपा के इस आरोप में कोई दम नहीं है कि पिछले आठ साल के मनमोहन राज में कोई प्रगति नहीं हुई। दुनिया के तमाम बाजारों को पछाड़ नेशनल स्टॉक एक्सचेंज [एनएसई] ने नया मुकाम हासिल किया है। सूचकांकों के टर्नओवर और शेयरों के वायदा कारोबार के मामले में एनएसई दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बाजार बनकर उभरा है। ताजा आकड़ों से इसका पता चलता है।तो क्या यह उपलब्ध भाजपा की मान लेनी चाहिए। वित्तमंत्री अर्थ व्यवस्था की बुनियादी समस्याओं से बेपरवाह उपभोक्ता बाजार के विस्तार के जरिये सारी समस्याओं के समाधान का दावा करते हैं, तो अकारण नहीं।उपभोक्ता संस्कृति के जरिये ही भारत में बाजार का अकल्पनीय विस्तार हुआ है। हर हाथ में मोबाइल हर घर में टेलीविजन और हर कोई बायोमैट्रिक नागरिक नेटजेन, ये मंजिलें तय करने के बाद बाजार के सिवाय अर्थ व्यवस्था में बचता क्या है? न कृषि बची और न उत्पादन प्रणाली। उपभोक्ता बाजार के अलावा बाकी कुछ है तो वे हैं, निजी क्षेत्र के आधिपात्य वाली गैर जरूरी और जरूरी सेवाएं। ऐसे में वित्त मंत्री को वित्तीय या मौद्रिक नीतियों को लेकर सर खपाना क्यों चाहिए।मनोमहनी अवतरण के बाद से अब तक भारतीय बाजार का कायाकल्प ही तो होता रहा है। कुछ कसर बाकी है तो कानून और संविधान में संशोधन करके, लोकतंत्र को पलीता लगाकर आर्थिक सुधार के अश्वमेध में हासिल कर लेंगे!
इस पर तुर्रा यह कि अगला लोकसभा चुनाव अभी दूर है। फिर भी 2014 में केंद्र में सरकार को लेकर भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की भविष्यवाणी के बाद सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के ताजा बयान ने राष्ट्रीय राजनीति में अनायास ही हलचल मचा दी है। मुलायम की तरफ से केंद्र में तीसरे मोर्चे की अगली सरकार की संभावना क्या व्यक्त की गई, भाजपा और कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दल बेचैन हो गए। दोनों दलों ने मुलायम के दावे को सिरे से खारिज कर दिया है।सत्ता की राजनीति में उलझे राजनेताओं को न आम जनता से कुछ लेना देना है और न अर्थ व्यवस्था से।नीति निर्धारण कारपोरेट लाबिइंग की क्षमता मुताबिक बाजार तय करता है। अर्थशास्त्री और अफसरान सरकार चलाते है। आम जनता अर्थ शास्त्र नहीं जानती तो क्या हमारे राजनेता जानते हैं? जानते होते तो बुनियादी आर्थिक मसलों पर खामोशी क्यों?इस बाजार में कारें सस्ती होती है, तेल मंहगा और अनाज भी मंहगा।घर हो या नहो, जल जंगल जमान से बेदखल होते रहें, पर क्रज लेकर बाजार की सेहत बढ़ाते रहे। उत्पादन और कृषि के बिना उपभोक्ता बाजार और सेवाओं के दम पर ही तो विकास की गाथा है, शाइनिंग इंडिया का फील
गुड है। कालाधन है और स्विस बेंक खाते हैं, जिनके दम पर चलती है सत्ता की राजनीति और मारे जाने के लिए नियतिबद्ध होते रहते हैं असहाय आम जन!ल्ली कैग भले ही बगैर नीलामी प्रक्रिया से कोयला ब्लॉकों के आवंटन के कारण सरकारी खजाने को 1.86 लाख करोड़ रुपये का चूना लगने की बात कह रहा है, लेकिन सरकार इसे मानने को तैयार नहीं है। सरकार ने कैग के आकलन के तरीके को ही गलत करार दे दिया है। सरकार ने वर्ष 2004 में अपनाई गई स्क्रीनिंग कमेटी के मैकेनिज्म को भी उस समय की मांग को देखते हुए सबसे बेहतर और कारगर तरीका बताया है।पर आरोपों से घिरे प्रधानमंत्री की शानोशौकत भी तो देखिये!देश के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को राजनीति में एक साफ सुथरा नेता माना जाता है। भारतीय अर्थव्यवस्था और अर्थशास्त्र दोनों पर उनकी तगड़ी पकड़ है। 1990 के दशक में उदारीकरण के दौरान उन्होंने देश को आर्थिक विकास की राह पर लाकर इस बात का सबूत भी दे दिया था। यूपीए 1 और यूपीए 2 में प्रधानमंत्री की गद्दी संभालने वाले सिंह एक करोड़पति नेता है।
भारतीय शेयर बाजार विदेशी संस्थागत निवेशकों [एफआइआइ] के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। इस साल अब तक वे इनमें 11 अरब डॉलर [करीब 612 अरब रुपये] से ज्यादा की पूंजी झोंक चुके हैं। अकेले अगस्त में अब तक उन्होंने एक अरब डॉलर के शेयरों की खरीद की है। सरकार के जनरल एंटी-एवॉयडेंस रूल्स [गार] व अन्य कर संबंधी मामलों पर नरम रवैया अपनाने के संकेतों से एफआइआइ का निवेश बढ़ा है। वैसे, कमजोर मानसून और घटती आर्थिक विकास दर जैसे कारकों ने उनकी चिंता बढ़ाई भी है।देश को और क्या चाहिए क्योंकि हम लोगों को अर्थ व्यवस्था से खास परहेज है। कैग रपट में कोयला ब्लाकों के आबंटन में दस लाख करोड़ के घाटे की बात थी, संसद में पेश होते न होते घाटा घटकर दो लाख करोड़ से कम हो गयी। यह करिश्मा अगर समझ में नहीं आये तो रोजाना बत्तीस या सत्रह रुपये से गुजारा करने के फरमान के साथ उपभोक्ता बाजार में खप जाने की नियति किसी बागवत खता से कम क्या होगी!अब तो सरकार ने देश में मौसम आधारित स्मार्ट खेती को बढ़ावा देने की तैयारी कर ली है। इस साल सूखे और बाढ़ के असर से सबक लेते हुए किसानों को स्मार्ट खेती की ओर मोड़ा जाएगा। इसके लिए 100 जिलों में गांव समिति बनेंगी। ये समितियां मौसम के आधार पर खेती करने के नए तौर-तरीकों को बढ़ावा देंगी।ये समितियां संबंधित गांव में मौसम की स्थिति का आकलन करेंगी और किसानों को उसी हिसाब की खेती करने की सलाह देंगी। उदाहरण के तौर पर यदि किसी गांव में सूखे जैसी स्थिति बनी रहती है तो किसानों को ऐसी फसलें पैदा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा जिनमें पानी की ज्यादा जरूरत न होती हो। मल्टी ब्रांड रिटेल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश [एफडीआइ] की अनुमति पर फैसला लंबित होने के बावजूद आपूर्ति श्रृंखला का आधारभूत ढांचा खड़ा करने के लिए सरकार ने घरेलू संगठित क्षेत्र को प्रोत्साहित करने पर जोर दिया है। मनमोहन व प्रणब दोनों ने कहा रिटेल में एफडीआइ को अनुमति मिलने से पहले घरेलू निवेशकों को मजबूत बनाने की जरूरत है। तभी कृषि क्षेत्र का समुचित विकास होगा। मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआइ के आने पर स्वस्थ प्रतिस्पर्धा हो सकेगी। इससे कृषि क्षेत्र के साथ उपभोक्ताओं को लाभ मिल सकेगा। दोनों इस मुद्दे पर सहमत थे कि खेतों से उपभोक्ताओं तक पहुंचने में कृषि उत्पादों का मूल्य कई गुना बढ़ जाता है।
वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने बैंकों से कर्ज सस्ता करने और ईएमआई को मुनासिब रखने को कहा है तकि टिकाऊ उपभोक्ता सामान की मांग बढे और विनिर्माण उद्योग का पहिया फिर तेजी से घूमने लगे। वित्त मंत्री ने पब्लिक सेक्टर के बैंकों के प्रमुखों के साथ एक समीक्षा बैठक के बाद सूखा प्रभावित राज्यों में एग्रिकल्चर लोन के पुनर्गठन और शिक्षा के लिए बैंक लोन मंजूर करने की प्रक्रिया आसान बनाने की घोषणा की।रिटेल ग्राहकों को राहत देने के लिए बैंकों ने फेस्टिवल ऑफर की शुरूआत कर दी है। फेस्टिव ऑफर के तहत यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने होम लोन और ऑटो लोन की प्रोसेसिंग फीस नहीं लेने की घोषणा की है। यूनियन बैंक का ये ऑफर 15 अगस्त से 26 जनवरी के बीच चलेगा।यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ऑटो लोन के लिए लोन की रकम का 0.5 फीसदी प्रोसेसिंग चार्ज लेता है। साथ ही होम लोन के लिए भी बैंक, लोन की रकम का 0.5 फीसदी या अधिकतम 15,000 रुपये प्रोसेसिंग फीस लेता है।
बाजार की ज्यादा फिक्र है इसीलिए न आइपीओ में निवेश करने वाले छोटे खुदरा निवेशकों के धन की सुरक्षा पर अब सेबी अगले महीने विचार करेगा। निवेश बैंकरों और उद्योग के कुछ धड़ों द्वारा इसका विरोध किए जाने पर सेबी ने 16 अगस्त की बोर्ड बैठक में इस पर फैसला टाल दिया था।सेबी चेयरमैन यूके सिन्हा के मुताबिक इस मसले पर व्यापक विचार विमर्श की जरूरत है। पूंजी बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड [सेबी] के निदेशक मंडल की अगली बैठक के एजेंडे में इसे शामिल किया जाएगा। इसके तहत प्राथमिक बाजार के निवेशकों के हितों की रक्षा की जाएगी। साथ ही इससे आइपीओ का सही कीमत दायरा तय किया जा सकेगा। फिलहाल आरंभिक सार्वजनिक निर्गम [आइपीओ] के जरिये पूंजी बाजार में उतरने वाली तमाम कंपनियां इश्यू की कीमत बढ़ा चढ़ाकर रखती हैं। सूचीबद्धता के बाद इनके शेयरों में गिरावट का खामियाजा छोटे निवेशकों को ज्यादा भुगतना पड़ता है।सेबी छोटे खुदरा निवेशकों के निवेश पर गारंटी का प्रावधान करना चाहता है। इसके तहत आइपीओ में निवेश के कुछ हिस्सों को कुछ निश्चित अवधि [छह महीने तक] तक सुरक्षा देने का प्रस्ताव है। इस दौरान अगर शेयर का भाव आइपीओ के आवंटन मूल्य से नीचे रहता है तो निवेशकों द्वारा शेयर बेचे जाने पर कंपनी के प्रमोटरों और इश्यू के तहत अपनी हिस्सेदारी बेचने वाली कंपनियों को अपनी ओर से इस अंतर की भरपाई करनी होगी। प्रस्ताव के मुताबिक कंपनियां चाहें तो इसका बोझ निवेश बैंकरों पर डाल सकती हैं। वे उनकी फीस में कटौती के जरिये इसकी भरपाई कर सकती हैं क्योंकि आइपीओ का कीमत दायरा तय करने में उन्हीं की भूमिका अहम होती है। इसी वजह से निवेश बैंकर इसका विरोध कर रहे हैं।
बाजार नियामक सेबी के जुलाई बुलेटिन में बताया गया कि शेयर बाजारों में शेयर या सूचकांक आधारित अनुबंध होते हैं। जून में एनएसई को सूचकांक आधारित वायदा कारोबार के टर्नओवर के मामले में दूसरा पायदान हासिल हुआ। इस दौरान पहले स्थान पर यूरोपीय बाजार यूरेक्स रहा। सेबी ने वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ एक्सचेंज [डब्ल्यूईएफ] के हवाले से आंकड़े पेश किए हैं।
घरेलू बाजार का जून में टर्नओवर छह गुना से अधिक बढ़कर 351.65 अरब डॉलर रहा। यह मई में सिर्फ 47.36 अरब डॉलर था। सूची में 179.17 अरब डॉलर के साथ एनवाईएसई लाइफ यूरोप ने तीसरा स्थान हासिल किया। जबकि हागकाग एक्सचेंज [149.65 अरब डॉलर] चौथे व इजरायल का तेल अवीव स्टॉक एक्सचेंज [149.55 अरब डॉलर] पाचवें स्थान पर रहा।शेयरों के वायदा कारोबार के लिहाज से भी एनएसई ने जून में दूसरा स्थान हासिल किया। जून में शेयरों का वायदा कारोबार 54.58 अरब डॉलर रहा। मई में यह 53.95 अरब डॉलर था। शेयर वायदा श्रेणी में एनएसई यूरेक्स से भी आगे रहा। यूरेक्स में इस दौरान 48.78 अरब डॉलर का कारोबार हुआ, जबकि एनवाईएसई लाइफ यूरो 73.34 अरब डॉलर के साथ पहले पायदान पर रहा। शेयर कारोबार की यह रैंकिंग दुनिया के 12 प्रमुख स्टॉक एक्सचेंजों के आंकड़ों पर आधारित है।
गौरतलब है कि सरकार और अर्थव्यवस्था की सुस्ती के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था से दुनिया का भरोसा डगमगा गया है। तभी तो रेटिंग आउटलुक निगेटिव होने के दो महीने के अंदर ही भारत का निवेश दर्जा घटने की नौबत आ गई है। अंतराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स [एसएंडपी] ने चेतावनी दी है कि अगर हालात नहीं सुधरे तो वह देश की रेटिंग को निवेश ग्रेड से घटाकर जंक [कूड़ा] कर सकती है। इसके लिए एजेंसी ने राजनीतिक नेतृत्व के संकट की ओर अंगुली उठाई है।
बहरहाल सरकार और उद्योग जगत की बुनियादी चिंता इस बात की है कि दलाल स्ट्रीट में इस हफ्ते दबाव बना रह सकता है। कोयला आवंटन में अनियमितताओं को लेकर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक [कैग] की रिपोर्ट के बाद निवेशक सहम गए हैं। फिलहाल, खुदरा महंगाई की दर में नरमी को देखते हुए सरकार की बैंकों से ब्याज दर घटाने की अपील बाजार को सहारा दे सकती है। बीते हफ्ते विदेशी पूंजी प्रवाह के चलते बाजार में तेजी रही। 17 अगस्त को समाप्त सप्ताह में बंबई शेयर बाजार [बीएसई] का सेंसेक्स 0.75 प्रतिशत सुधरकर 17691.08 अंक पर बंद हुआ। लगातार तीसरे सप्ताहांत बाजार ने बढ़त दर्ज की।
जमीन और कोयले की कमी ऊर्जा क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौती बन चुकी है। इसकी वजह से देश में सस्ती दरों पर बिजली मुहैया करवाने में दिक्कत हो रही है। टाटा समूह के चेयरमैन रतन टाटा ने एक बार फिर उद्योग की इस दुखती रग पर हाथ रखा है। टाटा का यह बयान उस दिन आया, जब कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि निजी कंपनियों को बिना नीलामी के कोयला ब्लॉक दिए जाने से सरकारी खजाने को भारी नुकसान हुआ। वहीं, इन कंपनियों ने जमकर मलाई काटी। रिपोर्ट में टाटा स्टील और टाटा पावर का नाम भी आया है।
रतन ने समूह की कंपनी टाटा पावर की सालाना आम बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि ऊर्जा पैदा करने के लिए सबसे जरूरी कच्चा माल कोयला है। लेकिन, कोयला नीलामी प्रक्रिया पर सवालिया निशान लगा हुआ है। सबसे बड़ी चुनौती है कि कैसे सस्ती दरों पर लोगों को बिजली उपलब्ध कराई जाए। साल के अंत में रिटायर हो रहे रतन ने कहा कि उनकी कंपनी टाटा पावर के सामने जमीन का अधिग्रहण और पर्यावरण मंजूरी भी मुश्किल बने हुए हैं।
कंपनी को इन चुनौतियों से जल्द निपटना होगा। देश में जनसंख्या बढ़ रही है। लोगों का जीवन स्तर बढ़ता जा रहा है। ऐसे में देश की ऊर्जा जरूरत वर्ष 2030 तक बढ़कर दोगुनी हो जाएगी। रतन टाटा ने गैस आधारित बिजली परियोजनाओं को गति देने के लिए नीतिगत सुधारों की मांग भी की।
अर्थव्यवस्था की रफ्तार घटने के तमाम अनुमानों के बीच प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद [पीएमईएसी] ने भी चालू वित्त वर्ष 2012-13 के लिए आर्थिक विकास दर का अनुमान कम कर दिया है। अपने ताजा 'इकोनॉमिक आउटलुक' में पीएमईएसी ने 6.7 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर पाने की उम्मीद जताई है। पहले यह अनुमान 7.5-8 फीसद का था।
अलबत्ता परिषद ने स्पष्ट कर दिया है कि अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ानी है तो खुदरा कारोबार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश [एफडीआइ] जैसे आर्थिक सुधारों पर कदम आगे बढ़ाने होंगे। परिषद ने सरकार से सुधारों पर आम सहमति बनाने की कोशिशें तेज करने को भी कहा है।
इसके बावजूद पीएमईएसी ने इस रिपोर्ट में वित्त वर्ष के अंत तक महंगाई की दर के साढ़े छह से सात प्रतिशत के बीच ऊंची बने रहने की आशंका व्यक्त की है। परिषद के चेयरमैन सी रंगराजन ने अर्थव्यवस्था की तस्वीर पेश करते हुए कहा कि कमजोर मानसून की वजह से न सिर्फ महंगाई की दर ऊंची बनी रहेगी, बल्कि कृषि विकास दर भी प्रभावित होगी। चालू वित्त वर्ष में कृषि क्षेत्र के लिए 0.5 प्रतिशत की विकास दर का अनुमान लगाया गया है।
औद्योगिक विकास की दर 5.3 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है। परिषद का मानना है कि सेवा क्षेत्र के विकास की रफ्तार 8.9 प्रतिशत रहेगी। अर्थव्यवस्था की मौजूदा हालत पर गहरी चिंता जताते हुए परिषद ने वित्तीय घाटे को नियंत्रित करने, निवेश और घरेलू बचत की दरों को बढ़ाने के उपाय करने और मल्टी ब्रांड रिटेल व एविएशन क्षेत्र में विदेशी एयरलाइनों को एफडीआइ की इजाजत देने की पुरजोर सिफारिश की है। रंगराजन ने सोने के आयात को कम करने और म्यूचुअल फंड व बीमा क्षेत्र में निवेश बढ़ाने के उपाय करने का सुझाव दिया है।
इससे पहले भारतीय रिजर्व बैंक भी आर्थिक विकास दर के अनुमान को घटा चुका है। रिजर्व बैंक ने इसे 7.3 से घटाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया है। रंगराजन ने कहा कि बीते वित्त वर्ष की दूसरी छमाही से ही अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी पड़ने लगी थी। अनुमान है कि अब दूसरी छमाही में ही यह रफ्तार पकड़ना शुरू करेगी।
अर्थव्यवस्था की रफ्तार [प्रतिशत में]
क्षेत्र 2011-12 2012-13*
कृषि 2.8 0.5
खनन -0.9 4.4
मैन्यूफैक्चरिंग 2.5 4.5
बिजली 7.9 8.0
कंस्ट्रक्शन 5.3 6.5
व्यापार, होटल 9.9 9.3
वित्तीय सेवाएं 9.6 9.5
सामुदायिक सेवा 5.8 7.0
जीडीपी 6.5 6.7
[नोट: 2012-13 की वृद्धि दर अनुमानित है]
Sunday, August 19, 2012
बाजार के सिवाय अर्थ व्यवस्था में बचता क्या है?कुछ कसर बाकी है तो कानून और संविधान में संशोधन करके , लोकतंत्र को पलीता लगाकर आर्थिक सुधार के अश्वमेध में हासिल कर लेंगे!
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