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Sunday, September 23, 2012

विश्व बैंक के कारिंदों से अब समझना होगा इस देश को!

विश्व बैंक के कारिंदों से अब समझना होगा इस देश को!

पलाश विश्वास

यह देश अब विश्वबैंक के शिकंजे में हैं। हम कैसे जिये और हमारी जरुरतें क्या हैं, इसे तय करना न हमारे बस में है और न हमारी संसद के​ ​ अखितयार में। पांच करोड़ व्यापारी परिवारों के विशाल वोट बैंक के मद्देनजर संघ परिवार खुदरा कारोबार में विदेशी पूंजी के खिलाफ हैं,​​ बाकी सुधारों पर उन्हें कोई एतराज नहीं है। अटल बिहारी वाजपेयी मंत्रिमंडल में  इतिहास बनाने वाले विनिवेश मंत्री अरुण शौरी सुधार मुहिम में मजबूती के साथ डां. मनमोहन सिंह के साथ खड़े हो गये।उनका मानना है कि रीटेल में एफडीआई के मुद्दे पर फिजूल में हो-हल्ला मचाया जा रहा है।अरुण शौरी ने कहा है कि खुदरा और विमानन क्षेत्रों में एफडीआई से न लोगों को बहुत नुकसान होगा और न ही कंपनियों को बहुत फायदा होगा। उन्होंने डीजल मूल्यवृद्धि का भी समर्थन किया।एक वैश्विक सम्मेलन के दौरान शौरी ने कहा कि खुदरा और विमानन में एफडीआई से ना तो बहुत फायदा होगा और ना ही बहुत नुकसान. यह दोनों पक्षों (कारोबारियों एवं उपभोक्ताओं) के लिए बहुत ज्यादा उपयोगी नहीं है। उन्होंने कहा कि पांच या छह साल पहले रिलायंस, एयरटेल और बिग बाजार जैसी प्रमुख कंपनियां खुदरा क्षेत्र में आई थीं, लेकिन इनसे छोटे व्यापारी प्रभावित नहीं हुए।शौरी ने कहा कि वास्तव में, आज फ्यूचर ग्रुप और रिलायंस जैसे बड़े खिलाड़ी मुश्किल में हैं न कि छोटे व्यापारी। बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां यहां बहुत बड़ी तादाद में नहीं आ रही हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि भारत में पैर जमाना उनके लिए आसान नहीं है। अरुण शौरी ने कहा कि सुशासन का मूल मंत्र है कि उसकी मलाई ऊपर आनी चाहिए, न कि काई। पूरे देश में बिहार और गुजरात ऐसे दो राज्य हैं, जहां सुशासन दिखता है। बिहार में नीतीश की सरकार में भाजपा शामिल है तो गुजरात में मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी है जिनके राज में आर्थिक सुधार सबसे तेज लागू हुए हिंदुत्व की आड़ में और नरसंहार भी हुआ तो उसे विकास के छाते से ढक दिया गया। नीतीश और मोदी दोनों प्रधामनमंत्रित्व के दावेदार हैं। आडवाणी ने पहले ही संकेत दिया है कि अगला प्रधानमंत्री गैरभाजपाई हो सकता है जबकि कारपोरेट जगत की पहली पसंद मोदी है। दोनों की तारीफ करके संघ परिवार के किस एजंडे को अंजाम दे रहे हैं शौरी?

गौरतलब है कि अरुण शौरी और मंटेक सिंह आहलूवालिया के विचारों में कोई फर्क नहीं हैं। देखें,खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से छोटी किराना दुकानों के प्रभावित होने की आशंका दूर करते हुए योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा कि आधुनिक खुदरा कारोबार विस्तार के दौर में है। इससे समूचे खुदरा क्षेत्र का स्वरुप बदलेगा और तेजी से विस्तार होगा।अहलूवालिया ने सीएनएन-आईबीएन टीवी कार्यक्रम डेविल्स ऐडवोकेट में कहा मुझे नहीं लगता कि छोटे खुदरा कारोबारियों को खुदरा क्षेत्र में एफडीआई से कोई खतरा है। आधुनिक खुदरा कारोबार विस्तार करता क्षेत्र है। जो कहते हैं कि छोटे कारोबारी प्रभावित होंगे मुझे लगता है कि वे गलत हैं।यह पूछने पर कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2002 में राज्य सभा में विपक्ष के नेता के तौर पर इस बहुचर्चित आर्थिक सुधार का विरोध किया था, अहलूवालिया ने कहा मुझे यह नहीं याद कि हर आदमी, हर दिन क्या कहता है। चीजें आगे बढ़ती हैं, धारणा तथा परिस्थितियां बदलती हैं।मुझे नहीं लगता कि खुदरा क्षेत्र में एफडीआई के संबंध में स्पष्टता में कोई कमी है। भाजपा उस वक्त सुधार के समर्थन में थी। थाइलैंड में खुदरा क्षेत्र में एफडीआई की अनुमति के बाद करीब 67 फीसदी किराने की दुकानें बंद हो गईं। यह पूछने पर उन्होंने कहा देखिए यह किसी अध्ययन पर आधारित है और मुझे इसकी जानकारी नहीं है। वृद्धि दर्ज करती अर्थव्यवस्था में मुख्य मुद्दा यह होना चाहिए कि यदि हमें आठ फीसदी की आर्थिक वृद्धि दर्ज करनी है तो ऐसे माहौल में खुदरा बाजार का कुल आकार बहुत जल्द दोगुने से अधिक हो जाएगा।

अरुण शौरी मशहूर पत्रकार भी है और उन्होंने ही इंदिरा राज के भ्रष्टाचार का ​​पिटारा खोला था, जिसकी परिणति विश्वनाथ प्रताप सिंह के प्रधानमंत्रित्व में अभिव्यकत् हुई थी। जाहिर है कि शौरी एक देह में हिंदुत्व,​​संघ परिवार, मीडिया और भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम के अवतार हैं। 1968–72 और  1975–77 की अवधि में वे विश्वबैंक में बाहैसियत ​​अर्थशास्त्री काम करते रहे हैं। अब डा. मनमोहन सिंह, मंटेक सिंह आहलूवालिया से लेकर महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी भी विश्वबैंक की ​​सेवा में रहे हैं।विनिवेश, निजीकरण और विदेशी पूंजी के जरिये भारत देश का कायाकल्प करने में इनसबका भारी योगदान है।मौजूदा​ ​ वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने १९६८ में हावर्ड बिजनेस स्कूल से बिजनेस मैनेजमेंट सीखा और देश को मैनेज कर रहे हैं। अमेरिका से बुलाये​ ​ गये  बंगाल के वित्तमंत्री अमित मित्र भी फिक्की के चेयरमैन हैं, जो समाजवादी अर्थशास्त्र से बंगाल की मां माटी और मानुष को आजादी दिलाने के लिए अवतरित हैं। सैम पित्रोदा भारत में राजीव गांधी के जमाने से तकनीकी क्रांति के मसीहा हैं तो नंदन निलकणि इंफोसिस की चेयरमैनी छोड़कर भारतीयों को पहचान दिलाने में जुट गये। शौरी भाजपा के हैं तो अमित मित्र तृणमूल कांग्रेस के।इन सज्जनों के अलावा जो भी नीति निर्धारक हैं, उनके तार या वाशिंगटन या विश्वबैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष  और डब्लूटीओ से जुड़े हैं। ​​ओड़ीशा में अपने पिता की विचारधारा के उलट कारपोरेट साम्राज्य तैयार करने वाले मौजूदा मुख्यमंत्री भी अमेरिका पलट हैं।ये तमाम ​​लोग आम भारतीयों के मुकाबले ज्यादा पढ़े लिखे अत्याधुनिक अमेरिकापरस्त सलोग हैं।आदिवासियों, हिमालय और पूर्वोत्तर के लोगों, ​​विस्थापितों, आत्महत्या कर रहे किसानों, बेरोजगार लोगों, छोटे व्यापारियों, मजदूरों और अर्थव्यवस्था से बाहर तमाम लोगों की तकलीफों​ ​ के बजाय उन्हें देश को अमेरिका बना देने की ज्यादा चिंता है और इसीको वे समावेशी विकास के तहत हमारी भलाई मानते हैं, यह ​​स्वाभाविक भी है।हमने ही तो उन्हें अपना भाग्य विधाता बना रखा है!

अब यह भी समझना चाहिए कि इस अमेरिकीकरण के पीछे हिंदुत्ववादी पुनरूत्थान का कितना बड़ा हाथ है। मीडिया की क्या भूमिका है। भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम की असलियत क्या है।अमेरिका के एक प्रमुख विश्वविद्यालय ने हिंदुत्व पर नए पाठ्यक्रम को मंजूरी दी है, जिसमें छात्र उपनिवेशवादी काल से वर्तमान समय तक के हिंदुत्व के विकास के बारे में अध्ययन करेंगे। इंडियाना के ग्रीनकैसल में स्थित निजी क्षेत्र के नेशनल लिबरल आर्ट्स कॉलेज से संबद्ध डीम्ड विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने आधुनिक हिंदुत्व विषय पर नए कोर्स को मंजूरी प्रदान कर दी है। १९८० में जब इंदिरा गांधी दुबारा सत्ता में आयी, उससे पहले जेपी आंदलन के जरिये संघ परिवार देश​ ​ की राजनीति में बड़ी ताकत बन गया।जनता राज के दरम्यान ही मीडिया में हिंदुत्व की घुसपैठ और वर्चस्व भड़ता ही गया। तमाम भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के पीछे संग परिवार का समर्थन रहा है। इंदिरा गांधी हमेशा नरम हिंदुत्व को राजनीतिक हथियार बनाती रही, लेकिन राजीव गांधी ने राम मंदिर का ताला तोड़कर १९८४ में आपरेशन ब्लू स्टार और इंदिरा गांधी के अवसान के बाद संघ परिवार के समर्थन से जो भारी जनादेश ​​पाया, राम मंदिर का ताला खुलवाकर उसे उग्र हिंदू राष्ट्रवाद में तब्दील करने में भी उन्हींकी निर्णायक भूमिका रही। राजीव के जमाने में ही सैम पित्रोदा भारत में सूचना विस्फोट के जनक बन गये। उदारीकरण का सारा श्रेय मनमोहन सिंह को देना गलत है। अमेरिकीकरण में सूचना विस्फोट ​​की  भूमिका भी है। विश्वनाथ सिंह के उत्थान के पीछे मीडिया का सबसे बड़ हाथ था। मंडल बनाम कमंडल विवाद में हिंदुत्व की निर्णायक ​​जीत के पीछे  भी मीडिया रहा है और वहां भी हथियार भ्रष्टाचार विरोदी अभियान को बनाया गया। राजनीतिक अस्थिरता हिंदुत्व के ​​पुनरूत्थान से हुई और इसी परिदृश्य में विश्वबैंक के अवतारों ने देश की बागडोर संभाल ली। विदेश नीति और राजनय की दिशा बनाने में​ ​ बतोर जनताई विदेशमंत्री और फिर भाजपा के इकलौते प्रधानमंत्री की भूमिका के बिना आज की विकासगाथा अधूरी ही रहती। भारत ​​अमेरिकी परमाणु संधि की नींव वाजपेयी ने ही रखी और इजराइल से संबंध भी उन्होने बनाये। भारत में आर्थिक सुधार की नीतियां भले ही​ ​ नरसिंह राव ने तैयार कर दी, पर देश के पूरी तरह केशरिया बने बिना ये नीतियां अमल में नहीं आयीं।विनिवेश मंत्रालय और कारपोरेट प्रेधानों की अगुवाई में विनिवेस परिषद बनाकर सार्वजनिक लाभदायक कंपनियों को बेचने की जमीन कतो भाजपा ने ही तैयार की। आज के वित्तमंत्री चिदंबरम तब उनके वित्तमंत्री हुआ करते थे। अब वैश्विक हिंदुत्व और अमेरिकी साम्राज्यवाद का मजबूत गठबंधन है,भारतीय सुरक्षा प्रणाली इजराइल पर निर्भर है तो आर्थिक नीतियां, विदेश नीति और राजनय सीधे वाशिंगटन से तय होती है। इसी परिपक्व संक्रमणकाल में जब नरमेध यज्ञ को पुर्णाहुति दी जानी है और नरसंहार संस्कृति चरमोत्कर्ष पर है, संयोगवश राजग का ही वित्तमंत्री यूपीए का वित्तमंत्री है जो बड़ी काबिलियत से अपने पुराने एजंडे को अमल में ला रहे हैं।​
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​अमेरिका को आश्वस्त करते हुए हाल ही में निरुपमा राव ने जो कहा कि सरकारें आती जाती रहीं, लेकिन १९९१ के बाद हमारी आर्थिक नीतियों में लगातार निरंतरता बनी हुई है। कम से कम सुधारों के सवाल पर, विदेशी पूजी के सवाल पर कांग्रेस भाजपा साथ साथ हैं। भाजपा किसी भी हालत में यह सरकार गिरा नहीं सकती, यह अंतरराष्ट्रीय गठबंधन की मजबूरी है। सरकार गिरे तो भाजपा आकर और तेजी से ही लागू करेगी आर्थिक एजंडा, इसमें कोई सुदार नहीं है। उसी तरह बाजार के समर्तन से परिवर्तन लाने वाली ममता भी विदेशी पूंजी के खिलाफ नहीं है, अमित मित्र इसके जीते जागते सबूत है। जाहिर है, खुदरा कारोबार में विदेशी निवेश के खिलाफ जिहाद सिर्फ वोट बैंक साधने का खेल है, कारपोरेट राज खत्म करने​ ​ की क्रांति तो कतई नहीं। ठीक उसीतरह जैसे कारपोरेट प्रयोजित भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का मकसद भी कारपोरेट लाबिइंग के तहत​ ​ कालेधन की व्यवस्था को बनाये रखना ही है।

एफडीआई और डीजल मूल्यवृद्धि का भाजपा जमकर विरोध कर रही है। इन मुद्दों की आड में वह सरकार से इस्तीफा भी मांग रही है। लेकिन भाजपा के ही अरुण शौरी और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री खंडूरी सरकार के इन फैसलों का समर्थन कर रहे हैं। शौरी का कहना है कि डीजल के दाम में बढ़ोतरी,गैस पर दी जा रही सब्सिडी में कटौती और रिटेल में एफडीआई का फैसला देशहित में है। यह वक्त की जरूरत है। यहीं नहीं, शौरी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की भी जमकर तारीफ की है।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने रविवार को कहा कि जहां एक ओर भारत में वालमार्ट का स्वागत किया जा रहा है, उसी वालमार्ट के खिलाफ अमेरिका में प्रदर्शन हो रहे हैं और न्यूयार्क से उसका बोरिया-बिस्तर बांध दिया गया है। आडवाणी ने रविवार को अपने ब्लॉग में लिखा है, "प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जिस शुक्रवार (14 सितम्बर) को वालमार्ट के लिए लाल गलीचे बिछाए, उसी दिन अमेरिका के सबसे बड़े शहर न्यूयार्क ने वालमार्ट के बोरिया-बिस्तर बांध दिए।"
आडवाणी ने यह भी लिखा है कि जिस दिन संप्रग सरकार ने वालमार्ट को एफडीआई का तोहफा सौंपा और लॉबिस्टों ने भरोसा दिलाया कि छोटे खुदरा व्यापारी सुरक्षित हैं, उसी दिन वेब समाचार पत्र, अटलांटिकसिटीज ने विदेशी मामलों की प्रसिद्ध पत्रिका से एक विनाशकारी हेडलाइन दी थी-'रेडिएटिंग डेथ : हाउ वालमार्ट डिस्प्लेसेस नियरबाइ स्माल बिजनेसेस'।

आडवाणी ने लिखा है, "पहली जून को सैकड़ों की संख्या में प्रदर्शनकारियों ने वालमार्ट के खिलाफ वाशिंगटन डीसी में प्रदर्शन किया। पूरे अमेरिका में 'से-नो-टू-वालमार्ट' आंदोलन लगातार जारी है।"

यही नहीं आडवाणी ने राजग सरकार के दौरान घटी एक घटना का भी जिक्र किया है। कांग्रेस सदस्य प्रियरंजन दासमुंशी ने तत्कालीन केंद्रीय वाणिज्य मंत्री अरुण शौरी से खुदरा में एफडीआई को अनुमति देने की योजना पर स्पष्टीकरण मांगा था।
आडवाणी ने लिखा है, "राजग सरकार के दौरान खुदरा में एफडीआई के मुद्दे पर एक बार भाजपा और कांग्रेस के बीच तीखी नोक-झोंक हुई थी। यह घटना 16 दिसम्बर, 2002 की है।"

इसी बीच अरविंद केजरीवाल से राहें जुदा होने के बाद अन्ना हजारे को एक और झटका लगा है। लंबे समय से अन्ना के निजी सचिव रहे सुरेश पठारे ने भी उनका साथ छोड़ दिया है। पठारे का कहना है कि उन्होने निजी कारणों से ये फैसला लिया। लेकिन अन्ना के पूर्व ब्लॉगर राजू पारुलेकर का आरोप है कि पठारे ने इस्तीफा दिया नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते उन्हे बाहर निकाला गया है।अन्ना के ही गांव रालेगणसिद्धी के निवासी पठारे सोशल नेटवर्किंग साइट ट्विटर के जरिए अन्ना के तमाम संदेश जनता तक पहुंचाते थे लेकिन अचानक शनिवार को देर शाम ट्विटर पर पठारे का एक चौंकाने वाला संदेश आया। पठारे ने इस ट्विट में लिखा की मैने इस्तीफा दे दिया है। कुछ निजी कारणों की वजह से मैंने ये इस्तीफा दिया है। मैं अब अन्ना के साथ काम नही कर सकता। कुछ निजी कारणों से मैने ये निर्णय लिया है।लेकिन जानकारों की मानें तो पठारे के इस्तीफे की असल वजह कुछ और है। दरअसल उन पर लंबे समय से भ्रष्टाचार और घोटालों के आरोप लगते आ रहे हैं। इनमें सबसे पहला आरोप अहमदनगर जिले के रेत माफिया से रिश्तों को लेकर लगाए गए थे।समाजसेवी अन्ना हजारे ने अपने पूर्व सहयोगी अरविंद केजरीवाल के दो करोड़ रुपये के ऑफर को ठुकरा दिया। यह धनराशि भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के दौरान एकत्र की गई थी। हजारे के समर्थक उनसे यह धनराशि केजरीवाल से वापस लेने की मांग कर रहे थे। इसके बाद केजरीवाल ने यह पैसा लौटाने की पेशकश की थी।पार्टी बनाने के मुद्दे पर अलग होने के चार दिन बाद अरविंद केजरीवाल ने आज उम्मीद जताई कि राजनीति में अगर वे ईमानदारी से काम करें तो अन्ना हजारे अपने समूह के साथ 'तीन चार महीने' में लौट आएंगे। केजरीवाल ने यहां एक प्रदर्शन के दौरान समर्थकों से कहा, 'कुछ लोग कहते हैं कि अन्ना ने हमें छोड़ दिया है। उन्होंने छोड़ा नहीं है। वह हमारे दिलों में हैं। उन्हें कोई भी हमसे दूर नहीं कर सकता।

शौरी ने एक सेमीनार में कहा कि प्रधानमंत्री ने पहली बार अपनी ताकत दिखाई है। शौरी ने कहा कि रिटेल में एफडीआई को लेकर किया जा रहा विरोध बेमानी है। इससे न तो किसी को फायदा होगा और न ही किसी को नुकसान। एनडीए सरकार में मंत्री रह चुके शौरी अपनी बेबाकी बयानबाजी के लिए जाने जाते हैं। उनको आर्थिक सुधारों का प्रबल समर्थक माना जाता है।शौरी इससे पहले भी कई मौकों पर पार्टी की राय से अगल अपने विचार रख चुके हैं।घोटालों के आरोपों में घिरी संप्रग सरकार के मुखिया मनमोहन सिंह के इस्तीफे पर अड़ी विपक्षी भाजपा से अलग राय व्यक्त करते हुए उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी ने कहा कि प्रधानमंत्री का त्यागपत्र भ्रष्टाचार को मिटाने का कोई समाधान नहीं है।

आडवाणी के उलट भाजपाइयो के विचार कारपोरेट इंडिया से अलग नहीं है, तो इसे क्या कहिये!कारोबार जगत ने शनिवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सराहना करते हुए कहा कि मजबूत राजनीतिक विरोध के बाद भी वह सुधार को आगे बढ़ा रहे हैं। पिछले हफ्ते सरकार के फैसले और देश के नाम संबोधन में मनमोहन सिंह ने स्पष्ट संकेत दिया कि सरकार सुधार के रास्ते पर पीछे नहीं हटने वाली है। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने कहा कि यह उत्साहवर्धक है। सीआईआई प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल सहयोगियों को सुधार के पथ पर बने रहने के लिए बधाई देती है।परिसंघ के अध्यक्ष आदि गोदरेज ने एक बयान में कहा कि परिसंघ को उम्मीद है कि यह सुधार की शुरुआत है, जो आर्थिक गिरावट को रोकने और उच्च तथा समावेशी विकास के लिए जरूरी है। परिसंघ ने 1990 के दशक की शुरुआत में आर्थिक उदारीकरण के पहले दौर का जिक्र करते हुए कहा कि उस समय काफी चिंता जताई गई थी। गोदरेज ने कहा कि तब से दो दशक बीत चुके हैं। मुझे नहीं लगता कि पीछे मुड़ कर देखने पर देश में कोई भी यह महसूस करेगा कि हम गलत रास्ते पर थे।

खंडूरी ने बातचीत में कहा, 'प्रधानमंत्री का इस्तीफा भ्रष्टाचार को मिटाने का कोई समाधान नहीं है। उनके बाद फिर कोई और आयेगा, और फिर यही सब होगा। हम समस्या का तुरंत हल चाहते है और राजनीतिक तंत्र में सुधार लाकर समस्याओं को जड़से समाप्त करने की कोशिश नहीं करते।इस संबंध में भाजपा नेता खंडूरी ने केंद्र सरकार से एक बार फिर आग्रह किया कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास लंबित पडे उत्तराखंड के लोकायुक्त अधिनियम को अंतिम मंजूरी दे दें।

गौरतलब है कि खंडूरी ने पिछले साल राज्य के दोबारा मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद एक सशक्त लोकायुक्त अधिनियम विधानसभा से पारित कराया था, जिसके लिये उन्हें भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आंदोलन कर रहे प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे से भी प्रशंसा हासिल हुई थी।गत नवंबर में पारित हुए इस अधिनियम को उत्तराखंड की तत्कालीन राज्यपाल माग्रेट आल्वा ने तुरंत हस्ताक्षर करके अंतिम मंजूरी के लिये केंद्र को भेज दिया था। खंडूरी ने प्रधानमंत्री को एक अच्छा 'अर्थशास्त्री' बताया और कहा कि वह अत्यधिक दबाव के कारण सहज रुप से काम नहीं कर पा रहे हैं।


अटल बिहारी वाजपेयी मंत्रिमंडल में केंद्रीय सडक और राजमार्ग मंत्री रहे खंडूरी ने कहा, 'गठबंधन राजनीति का दबाव सुधारों के रास्ते में अडंगे लगाता है, लेकिन हमें समस्याओं को जड से समाप्त करने पर ध्यान देना चाहिये।राजनीतिक सुधारों की बात करते हुए खंडूरी ने कहा कि अब जरुरत आ चुकी है कि देश को ऐसा तंत्र विकसित करना चाहिये, जहां सरकारों के कार्यकाल निश्चित हों।उन्होंने कहा, 'सरकारों के कार्यकाल निश्चित होने चाहिये, क्योंकि अस्थिर सरकारें अपने कार्यक्रमों को गंभीरता से लागू नहीं कर पाती।यह पूछे जाने पर कि क्या भ्रष्ट व्यक्ति के प्रधानमंत्री बन जाना देश के लिये घातक हो सकता है, खंडूरी ने कहा कि हमारे देश में भी सरकार के मुखिया के लिए अमेरिका की तरह महाभियोग का प्रावधान होना चाहिये। खंडूरी ने कहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय को बदनाम होने से बचाने के लिये कुछ कदम उठाये जा सकते हैं, लेकिन जबावदेही तो सबकी होनी चाहिये।अन्ना हजारे के बारे में खंडूरी ने कहा कि उन्होंने ईमानदारी से भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाया है। उन्होंने कहा, 'यद्यपि भ्रष्टाचार को मिटाने का समाधान फिलहाल नहीं दिखाई दे रहा है, लेकिन कम से कम देश में लोग इसके बारे में बात तो कर रहे हैं।

सरकार के खुदरा क्षेत्र में एफडीआई को अधिसूचित करने के फैसले की प्रशंसा करते हुए अहलूवालिया ने कहा यह बुनियादी परिवर्तन है। मुझे नहीं लगता कि आधुनिक खुदरा में इस कदर तेजी होगी कि वास्तविक मजदूरी में पर्याप्त वृद्धि हो सके। जो थाइलैंड में हुआ वह इस बात का सूचक नहीं है वैसा ही यहां होगा। अगले 20 से 30 साल में क्या आप चाहते हैं कि छोटे खुदरा कारोबारियों की हिस्सेदारी उतनी ही हो जितनी आज है। मुझे लगता है कि यह पूरी तरह से गलत है। यह कुछ ऐसी बात हुई कि जब टैक्सी आई तो तांगे का उपयोग घटा, क्या उसे वापस लाया जा सकता है, नहीं।

यह पूछने पर कि खुदरा क्षेत्र पर क्या असर होगा जो देश का दूसरा सबसे बड़ा नियोक्ता है और जो 4.4 करोड़ लोगों को रोजगार मुहैया कराता है उन्होंने कहा मुझे लगता है कि यह सोचना बिल्कुल गलत है क्योंकि आपको यह देखना है कि आपको खुदरा क्षेत्र का आधुनिकीकरण करना है या नहीं। यदि आप खुदरा क्षेत्र का आधुनिकीकरण करना चाहते हैं तो आप रोजगार की गुणवत्ता पर दबाव चाहते और आधुनिक खुदरा कारोबार में बेहतर किस्म के रोजगार मिलेंगे।

अहलूवालिया ने कहा मेरा कहना का मतलब है कम रोजगार, यदि श्रमिकों की वृद्धि एक प्रतिशत घट रही है और सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि 8 से 9 प्रतिशत चल रही है। रोजगार के अवसर विभिन्न क्षेत्रों में सृजित हो रहे हैं। आप इस मामले में पर भी गौर करें कि परंपरागत खुदरा क्षेत्र में रोजगार की गुणवत्ता किस तरह की है।

अहलूवालिया का कहना है उस तरह के रोजगार की गुणवत्ता कमजोर है। शिक्षित और नौजवान पीढ़ी पुराने परंपरागत खुदरा कारोबार के बजाए आधुनिक खुदरा क्षेत्र में काम करने में ज्यादा खुश होंगे।

Sat, 25 Aug 2012
भाजपा को असहज कर देने वाले एक बयान में पूर्व दूरसंचार मंत्री अरुण शौरी ने कहा है कि कोल ब्लाक आवंटन पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को संसद में सफाई पेश करने का मौका मिलना चाहिए। विपक्ष को इस मसले पर संसद की कार्यवाही बाधित करने से कुछ भी हासिल नहीं होगा।

यहां शनिवार को एक कार्यक्रम से इतर शौरी ने कहा कि प्रधानमंत्री उस दौरान कोयला मंत्रालय संभाल रहे थे। उन्होंने तथ्यों को स्वयं देखा है, लिहाजा उन्हें सफाई पेश करने का अवसर जरूर दिया जाए। भाजपा द्वारा संसद की कार्यवाही बाधित किए जाने पर शौरी ने कहा, 'जहां तक मैं समझता हूं, विपक्ष को बहस से कोई शिकायत नहीं है, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं होती।

कई नेता ऐसे ही छोड़ दिए जाते हैं, यही उनकी शिकायत है।' लेकिन अगर सरकार कार्रवाई करने का मंसूबा बनाती है और उस पर आगे बढ़ेगी तो कहीं कोई दिक्कत नहीं होगी। वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे शौरी ने हिदायत दी कि अगर विपक्ष कोई रुख [संसद ठप कराने का] अख्तियार करता है तो उसे पांच दिन बाद इस पर आगे न बढ़ने की वजह भी तलाशनी होगी। 2जी मामले में वित्त मंत्री पी चिदंबरम के इस्तीफे की मांग को लेकर भाजपा की बहिष्कार की रणनीति की याद दिलाते हुए उन्होंने कहा कि कुछ दिनों बाद सब भूल गए और चिदंबरम ने संसद में बोलना जारी रखा।

अगर सांसद आक्रोशित हैं तो उन्हें गांधीवादी होना चाहिए और समझौता नहीं करना चाहिए। काले धन पर शौरी ने आरोप लगाया कि केंद्र का इसे वापस लाने का कोई इरादा नहीं है। चिदंबरम को दोबारा वित्त मंत्री बनाए जाने पर शौरी ने उन्हें पसंदीदा और बुद्धिमान बताते हुए उम्मीद जताई कि आने वाले बजट पिछले की तुलना में बेहतर होंगे।

सुभाष गाताडे  ने अपनी पुस्तकों गोडसेज् चिल्ड्रेन: हिंदुत्व टेरर इन इंडिया:फारोस मीडिया एंड पब्लिशिंग पृ.: 400, मूल्य: रू. 360 और द सेफ्रन कंडीशन: पॉलिटिक्स आफ रिप्रेरशन एंड एक्सक्लूजन इन निओलिबरल इंडिया: थ्री एस्सेज् कलेक्टिव, पृ.: 475, मूल्य: रु. 500 में हिंदुत्व की काफी सटीक व्याख्यो की है।रोहिणी हेन्समान ने समायंतर में जो लिखा है , उस पर गौर करें:

अगर इन दोनों किताबों के सार को एक ही वाक्य में कहा जाए तो वह इस प्रकार होगा: भारत में फासीवाद का खतरा मंडरा रहा है। जहां 'गोडसेज चिल्ड्रेन' (इसके आगे 'जीसी') हिंदुत्व आतंकवाद की परिघटना पर केंद्रित करती है, वहीं 'द सेफ्रन कंडीशन' (इसके आगे टीएससी) तीन हिस्सों में बंटी हुई है: केसरियाकरण एवं नवउदारवादी राज्य, भारत में जाति की सियासत और राज्य तथा मानवाधिकार। इस तरह दोनों किताबों में एक हिस्सा एक तरह का साझा है, जहां हिंदुत्व आतंक का प्रश्न 'सेफ्रन कंडीशन' में आता है, मगर गोडसेज चिल्ड्रेन में उस पर अधिक विस्तार से चर्चा की गई है।

गाताडे पूछते हैं कि "आजाद भारत में आतंकवाद की पहली कार्रवाई किसे कहा जा सकता है ?" और जवाब देते हैं, "हर कोई इस बात से सहमत होगा कि नाथूराम गोडसे नामक हिंदू अतिवादी द्वारा 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या स्वतंत्र भारत की सबसे पहली आतंकवादी कार्रवाई कही जा सकती है। "(जीसी 41) अगर 'आतंकवाद' का मतलब राजनीतिक मकसद के लिए नागरिकों के खिलाफ हिंसा या हिंसा की धमकी, तो महात्मा गांधी की हत्या निश्चित ही एक आतंकी कार्रवाई कही जा सकती है। यहां इस बात को रेखांकित किया जा रहा है कि भारत में 'हिंदू राष्ट्र' निर्माण के हिंदुत्व एजेंडे के लिए आतंकवाद कोई नई चीज नहीं है। लेखक हिंदू महासभा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विनायक दामोदर सावरकर के बीच गांधी हत्या के लिए जारी षडयंत्र पर रोशनी डालता है। यहां एक दिलचस्प बात सामने आती है कि 1934 के बाद गांधी की हत्या के लिए कम से कम पांच कोशिशें हुई थीं, जिनकी परिणति 1948 में हुई। यह इस बात को खारिज करता है कि बंटवारे के लिए गांधी का समर्थन उनकी हत्या का कारण बना।

गांधी एक श्रद्धालु हिंदू थे और सामाजिक तौर पर काफी रूढिवादी थे; आखिर ऐसी क्या बात हुई कि हिंदू राष्ट्रवादी उनसे इतनी घृणा करते हैं कि उन्होंने उन्हें मारने के लिए कई प्रयास किए जिसमें अंतत: वह सफल हुए?

दरअसल नस्ल, धर्म, लिंग, आदि को लांघते हुए लोगों की एकता का विचार, जिसकी गांधी ने ताउम्र हिमायत की ..वह संघ और हिंदू महासभा के एकांतिक/गैरमिलनसारी, हिंदू वर्चस्ववादी विश्व दृष्टिकोण के लिए शाप है। और, जबकि हिंदुत्ववादी ताकतों के कल्पनाजगत में 'राष्ट्र' के मायने एक नस्लीय/धार्मिक गढंत है, वहीं गांधी एवं बाकी राष्ट्रवादियों के लिए वह एक इलाकाई गढ़ंत या विभिन्न समुदायों को अपने में समाहित करनेवाला सीमाबद्ध इलाका था। (जीसी 44)

महात्मा गांधी की हत्या भारत को एक बुनियादी तौर पर सेक्युलर, जनतांत्रिक संविधान अपनाने से रोक नहीं सकी। हिंदू राष्ट्र के लिए काम करने का एक दूसरा तरीका था समय-समय पर मुसलमानों के, और कभी-कभार अन्य अल्पसंख्यकों के, कत्लेआमों का आयोजन करना। इसमें हम 1983 के नेल्ली कत्लेआम को रख सकते हैं जब अनुमानत: 3, 300 मुसलमान पुरुष, महिलाएं एवं बच्चे मार दिए गए। आम बोलचाल की भाषा में इन्हें 'दंगे' कहा जाता है लेकिन यह गलत शब्द है जो हिंसा के स्वत:स्फूर्त उभार की तरफ संकेत करता है, जबकि ऐसे मामलों में संपन्न सभी जांचें यही बताती हैं कि इन घटनाओं की सुचिंतित योजनाएं बनायी गईं और उन पर अमल किया गया; इनके लिए अधिक उचित शब्द होगा 'जनसंहार'। जैसा कि गाताडे रेखांकित करते हैं, इन जनसंहारों का सबसे विचलित करनेवाला पहलू यही है कि निम्न स्तर के चंद कार्यकर्ताओं को छोड़ दें तो ऐसे मामलों में असली कर्णधार कभी दंडित नहीं किए जा सके हैं। इसके अलावा " वही नागरिक समुदाय जो आतंकवाद की मुखर मुखालफत करता दिखता है वह ऐसी अंधा-धुंध हिंसा और आगजनी के प्रति अजीब किस्म की अस्पष्टता बरतता है। " (जीसी 62) जहां आतंक के शिकार अल्पसंख्यक या दलित होते हैं वहां दंडमुक्ति ही नियम दिखता है।

यही वह पृष्ठभूमि है जिसमें अधिक सीमित अर्थां में कहें तो हिंदुत्व आतंक का प्रादुर्भाव होता है। 'जीसी' में उल्लेखित घटनाएं (जिनमें ऐसी घटनाएं भी शामिल हैं जहां आतंकियों ने दुर्घटना में खुद को ही खत्म कर दिया, संभावित आतंकियों को दिया जानेवाला प्रशिक्षण और मुसलमानों को फंसाने के लिए बनायी गई बम विस्फोटों की योजनाएं) तमाम सारी हैं, जिनमें एस एम मुशरिफ की किताब 'हू किल्ड करकरे ?' में उद्धृत घटनाएं भी शामिल की गई हैं। सूची इस प्रकार है: जीलेटिन की छडिय़ों के उपयोग के लिए प्रशिक्षण कैम्प (पुणे, महाराष्ट्र, 2000); हथियारों और बम बनाने के लिए ट्रेनिंग कैम्प (भोसला मिलिटरी स्कूल, नासिक, महाराष्ट्र, 2001); मस्जिदों एवं मदरसों पर बम हमलों का सिलसिला (सहारनपुर, उत्तर प्रदेश, 2002); आग्नेयास्त्र प्रशिक्षण शिविर (भोपाल, मध्यप्रदेश, 2002); एक मुस्लिम समागम में रखे गए बम (भोपाल, 2002); गुजरात दंगों में बमों का निर्माण एवं प्रयोग (2002); महिलाओं के लिए हथियार प्रशिक्षण कैम्प (कानपुर, उत्तर प्रदेश, 2003); मस्जिदों पर बमबारी (परभणी, महाराष्ट्र, 2003); मदरसे एवं मस्जिदों पर बम फेंकने की घटनाएं (पूरणा, महाराष्ट्र, 2004); विस्फोटकों के रखरखाव के दौरान आकस्मिक बमविस्फोट (नांदेड, महाराष्ट्र, 2006); मुस्लिम उत्सव पर खतरनाक बमविस्फोट (मालेगांव, महाराष्ट्र, 2006); भारत-पाकिस्तान समझौता एक्स्प्रेस में बमविस्फोट (हरियाणा, 2007); मक्का मस्जिद बम विस्फोट (हैदराबाद, आंध्र प्रदेश, 2007); अजमेर शरीफ बम विस्फोट (अजमेर, राजस्थान, 2007); मुस्लिम व्यापारियों को दिए गए विस्फोटक (वर्धा, महाराष्ट्र, 2007); एक और आकस्मिक बमविस्फोट (नांदेड, 2007); मस्जिद के बाहर रखे गए बम (पेण महामार्ग, महाराष्ट्र, 2007); नए बस स्टैंड पर बम विस्फोट (तेनकासी, तमिलनाडु, 2008); राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्यालय पर बम हमला (तेनकासी, तमिलनाडु, 2008); ऑडिटोरियम में बम विस्फोट (ठाणे, महाराष्ट्र, 2008); ऑडिटोरियम में मिले एवं बेकार कर दिए गए बम (वाशी, महाराष्ट्र, , 2008); सिनेमा हाल में बम (पनवेल, महाराष्ट्र, 2008); आकस्मिक बमविस्फोट (कानपुर, 2008); बेलगांव-हुबली रास्ते पर बरामद जिंदा बम(कर्नाटक, 2008); बाजार में बमविस्फोट (मालेगांव, 2008); बाजार में बम धमाका (मोडासा, गुजरात, 2008); निम्न तीव्रता का बम विस्फोट (कानपुर, 2008); चर्च में बम विस्फोट (ललितपुर, नेपाल, 2009); मडग़ांव में बम धमाका (गोवा, 2009); जिंदा बम बरामद (सन्कोले, गोवा, 2009); प्रायमरी हेल्थ सेंटर में बम विस्फोट (कानपुर, 2010)

वे लोग जो हिंदुत्व आतंकवादी हमलों की खबरों पर निगाह नहीं रखते हैं, उन सभी के लिए इन हमलों की संख्या एवं उनका व्यापक भौगोलिक वितरण अचंभित कर सकता है और यह उजागर कर सकता है, जैसे कि लेखक का कहना है कि यह एक तरह से 'फासीवाद निर्माण की प्रतिक्रियावादी राजनीतिक परियोजना' में सांप्रदायिक दंगों के बजाय आतंकी हमलों का इस्तेमाल करने की नई रणनीति है। (जीसी: 320-21) यह स्पष्ट है कि इक्कीसवी सदी में, भारत में इस्लामिक आतंक के बजाय हिंदुत्व आतंक अधिक सक्रिय रहा है। आखिर क्यों, इस सच्चाई को अधिक व्यापक स्तर पर स्वीकारा नहीं गया है ? इस प्रश्न का जवाब अत्यधिक विचलित करनेवाला लग सकता है, और इस संभावना को खोल सकता है कि अन्य आतंकी हमले जिनके लिए मुसलमानों को जिम्मेदार ठहराया गया उन्हें भी हकीकत में हिंदुत्व आतंकवादियों ने ही अंजाम दिया हो।

इनमें से सभी मामलों में हम पाते हैं कि इन आतंकी हमलों में सबसे पहले मुसलमानों को ही जिम्मेदार ठहराया गया था।
http://www.samayantar.com/hindu-terrorism-fascism-and-two-collections/


शौरी का असली चरित्र जानने के लिए इसे जरूर पढ़ें!

अरुण शौरी (जन्म- 2 नवम्बर, 1941, पंजाब) भारत के अदम्य निर्भीकता वाले पत्रकार, बुद्धिजीवी, प्रसिद्ध लेखक और राजनेता हैं। 1968 से 1972 और फिर 1975 से 1977 तक एक अर्थशास्त्री के रूप में इन्होंने विश्व बैंक में अपनी महत्त्वपूर्ण सेवाएँ दी हैं। भारत के योजना आयोग में सलाहकार के पद पर भी वे काम कर चुके हैं। प्रसिद्ध अंग्रेज़ी समाचार पत्र 'इंडियन एक्सप्रेस' और 'द टाइम्स ऑफ़ इंडिया' के सम्पादक भी अरुण शौरी रहे हैं। सन 1998-2004 तक भारत सरकार में मंत्री के पद को भी अरुण शौरी सुशोभित किया है।

जन्म तथा शिक्षा

अरुण शौरी का जन्म 2 नवम्बर, 1941 में जालन्धर (पंजाब) में हुआ था। वह अपने पिता हरिदेव शौरी और माता दयावंती की प्रथम संतान थे। इन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा दिल्ली से और 'सेन्ट स्टीफेंस कॉलेज', 'दिल्ली विश्वविद्यालय' से अर्थशास्त्र में आनर्स की डिग्री प्राप्त की थी। 1966 में न्यूयार्क, साइराकस यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। अरुण शौरी का विवाह अनीता शौरी के साथ हुआ था, जिनसे ये एक पुत्र के पिता भी बने। पत्रकारिता में पूरी तरह से उतरने से पहले एक अर्थशास्त्री के रूप में विश्व बैंक तथा अन्य महत्त्वपूर्ण संस्थानों में कार्य किया।

लेखन कार्य
अरुण शौरी ने हिन्दू धर्म के ग्रन्थों का अध्ययन किया। वह जयप्रकाश नारायण के जन-आंदोलन से सक्रिय रूप से जुड़े और इस दौरान उन्होंने दस महत्त्वपूर्ण लेखों के माध्यम से राजनीतिक शक्तियों के भ्रष्टाचार तथा लोकतंत्र की अवमानना जैसे विषयों पर अपने विचार प्रकट किये, जो सेमिनार, मेन स्ट्रीम तथा इण्डिया टुडे जैसी महत्त्वपूर्ण पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। इन आलेखों का पुस्तक रूप में भी प्रकाशन हुआ, जो 'सिंप्टम्स ऑफ़ फ़ॉसिज्म' तथा 'वाशिंगटन एसेज़' शीर्षक से सामने आईं।

पुरस्कार

अरुण शौरी को उनकी पत्रकारिता के लिए 1982 का 'मेग्सेसे पुरस्कार' प्रदान किया गया। वह तीन बार राज्य सभा के सदस्य भी रहे। सन 1990 में उन्हें 'जर्नलिस्ट ऑफ़ द ईयर' चुना गया था। इसी वर्ष (1990) में उन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए 'पद्मभूषण' सम्मान भी प्राप्त हुआ। सन 2002 में बिजनेस वीक ने उन्हें "स्टार ऑफ़ इण्डिया' से सम्मानित किया तथा 'द इकॉनोमिक टाइम्स' ने उन्हें 'द बिजनेस लीडर ऑफ द ईयर' चुना। अरुण शौरी को 'दादाभाई नौरोजी पुरस्कार', 'फ़्रीडम टू पब्लिक अवार्ड', 'एस्टर पुरस्कार' और 'इंटरनेशनल एडिटर ऑफ द ईयर अवार्ड' से भी सम्मानित किया जा चुका है।
अल्लाह गणित नहीं जानता है: अरुण शौरी
सलीम ख़ान   Sunday August 28, 2011

अरुण शौरी ने अपनी एक किताब (!) में लिखा है कि अल्लाह गणित नहीं जानता है. यह सन 2001 की बात है. अरुण शौरी के मुताबिक़ "कुरआन में कुछ गणितीय त्रुटियां हैं. कुरआन के अध्याय 4 (सुरह निसा) के श्लोक (आयत) संख्या 11 व 12 के मुताबिक  जब आप वसीयत करते है तो उत्तराधिकारी का हिस्सा जोड़ने पर एक से ज़्यादा मिलता है और यह संभव नहीं है अर्थात जब आप उत्तराधिकार के विभिन्न भागों/वारिसों को दी गई जोड़ का गठन करते हैं तो वह एक से अधिक है. इस प्रकार से कुरआन के लेखक को गणित का बिलकुल भी ज्ञान नहीं है."

अरुण शौरी और उनके जैसे ही हमारे समाज में रहने वाले और लोगों को जो तर्क (कुतर्क) के सहारे अध्ययन करे बिना इस्लाम के बारे में गलतफहमी पाल रखें है, को बता दूं कि अल्लाह ने अपने अंतिम ग्रन्थ अल-कुरआन में कई जगह वसीयत और उत्तराधिकार के बारे में बताया है.

जैसे:
सुरह अल-बक़रह- अध्याय 2 आयत संख्या 180
सुरह अल-बक़रह- अध्याय 2 आयत संख्या 240
सुरह अल-निसा- अध्याय 4 आयात संख्या 7 व 9
सुरह अल-निसा- अध्याय 4 आयात संख्या 19 व 33
सुरह अल-मायेदः- अध्याय 5 आयत संख्या 105 व 108

कुरआन में सुरह निसा- अध्याय 4 आयत संख्या 11, 12 व 176 में उत्तराधिकारियों के अंश के बारे में बिलकुल साफ़-साफ़ लिखा है.

अब अरुण शौरी के द्वारा इंगित आयतों सुरह निसा- अध्याय 4 आयत संख्या 11 व 12 का परीक्षण करते है.

सुरह निसा- अध्याय 4 आयत संख्या 11 व 12 के अनुसार--

"अल्लाह  तुम्हारी संतान के विषय में तुम्हें आदेश देता है कि दो बेटियों के हिस्से के बराबर एक बेटे का हिस्सा होगा; और यदि दो से अधिक बेटियाँ ही हों तो उनका हिस्सा छोड़ी हुई संपत्ति का दो तिहाई है. और यदि वह अकेली हो तो उसके लिए आधा है. और यदि मरनेवाले की संतान हो तो उसके माँ-बाप में से प्रत्येक का उसके छोडे हुए माल का छठा हिस्सा है. और यदि वह निःसंतान हो और उसके माँ-बाप ही उसके वारिस हों, तो उसकी माँ का हिस्सा तिहाई होगा. और यदि उसके भाई भी हों, तो उसकी माँ का छठा हिस्सा होगा. ये हिस्से, वसीयत जो वह कर जाये पूरी करने या ऋण चुका देने के पश्चात् हैं. तुम्हारे बाप भी है और तुम्हारे बेटे भी. तुम नहीं जानते कि उनमें से लाभ पहुँचने की दृष्टि से कौन तुमसे अधिक निकट है. या हिस्सा अल्लाह का निश्चित किया हुआ है. अल्लाह सब कुछ जानता समझता है."
- अल-कुरआन, सुरह 4, अन-निसा आयत संख्या 11

"और तुम्हारी पत्नियों जो कुछ छोड़ा हो, उसमें तुम्हारा आधा है, यदि उनके संतान न हो. लेकिन यदि उनकी संतान हों तो वे जो छोडें, उसमें तुम्हारा चौथाई होगा. इसके पश्चात् जो कि जो वसीयत वें कर जाएँ वह पूरी कर दी जाये, या जो ऋण (उनपर) हो वह चुका दिया जाये. और जो कुछ तुम छोड़ जाओ, उसमें उनका (पत्नियों का) चौथाई हिस्सा होगा, यदि तुम्हारी कोई संतान न हो. लेकिन यदि तुम्हारी संतान है, तो जो कुछ तुम छोड़ोगे, उसमें से उनका (पत्नियों का) आठवां हिस्सा होगा. इसके पश्चात् कि जो वसीयत तुमने की हो वह पूरी कर दी जाये, या जो ऋण हो चुका हो उसे चुका दिया जाये. और यदि कोई पुरुष या स्त्री के न तो कोई संतान हों और न उनके माँ-बाप ही जीवित हों और उसके एक भाई या बहन हों तो उन दोनों में से प्रत्येक का छठा हिस्सा होगा. लेकिन यदि वे इससे अधिक हों तो फिर एक तिहाई में वे सब शरीक होंगे, इसके पश्चात् कि जो वसीयत उसने की वह पूरी कर दी जाये या जो ऋण उस पर हो वह चुका दिया जाये, शर्त यह है कि वह हानिकर ना हो. यह अल्लाह के और से ताकीदी आदेश हैं और अल्लाह सब कुछ जानने वाला, अत्यंत सहनशील है."
-अल-कुरआन, अन-निसा- आयत संख्या 12

इस्लाम में उत्तराधिकार के नियम को बहुत वृहद् तरीके से वर्णित किया गया है. खुले तौर पर और प्राथमिक रूप से उत्तराधिकार के नियम को कुरआन में दिया गया है और डिटेल में अ-हदीस (मुहम्मद<अल्लाह की उन पर शांति हो> की परंपरा और आदेश) में विस्तृत रूप से दिया है. इस्लाम में दिए गए उत्तराधिकार के नियम के गणितीय रूप और कोम्बिनेशन को जानने के लिए एक व्यक्ति अपनी पूरा जीवन भी व्यतीत कर दे तो भी कम है. कुरआन की दो आयातों के बिनाह पर अरुण शौरी इस्लाम के उत्तराधिकार के नियम के गणितीय रूप को समझ जाने की और उस पर गलत टिपण्णी कर रहें है जबकि उन्होंने इन आयातों को भी ठीक से समझा नहीं! उन्हें ये भी नहीं पता कि इस्लाम में उत्तराधिकार के नियम के गणितीय रूप का क्राइ  ेरिया क्या है.

(मैं आगे अरुण शौरी की टिप्पणियों का विस्तार से जवाब दूंगा, इससे पहले मैं यह पूछना चाहता आम ब्लोगर्स से कि दुनिया में कौन सा ऐसा धर्म जिसने संपत्ति वितरण और वसीयत के बारे में सभी को अधिकार दिए हैं, खास कर औरत को... इस्लाम ही दुनिया में एक वाहिद (केवल) मज़हब है जिमें औरतों को केवल अधिकार ही नहीं दिए बल्कि उनको संपत्ति में भी हिस्सा देने का प्रावधान किया है.)

ख़ैर, तो मैं बात कर रहा था कि अरुण बाबू की कुरआन के खिलाफ़ टिपण्णी की...  तो यह तो कुछ ऐसे ही हुआ कि कोई इंसान गणित के समीकरण को बिना गणित के प्राथमिक नियम जाने बिना हल करना चाहता है. और ऐसा संभव नहीं है कि आप गणित के सामान्य नियम न जाने और समीकरण हल करना शुरू कर दें. मिसाल के तौर पर गणित के समीकरण हल करने में जो सामान्य नियम लागु होता है वह है - BODMAS [Bracket-Off, Division, Multiplication, Adition, Substraction] यानि गणित के समीकरण को हल करने में गणित के प्रमुख चिन्हों को किस प्रकार से एक के बाद एक हल किया जाता है. समीकरण को हल करने के लिए BODMAS को इस्तेमाल करेंगे तो सबसे पहले ब्रेकेट हटाएँगे (हल करेंगे), फिर दुसरे नंबर पर डिविज़न (भाग) को हटाएँगे (हल करेंगे), फिर तीसरे नंबर पर मल्टीप्लिकेशन (गुणा) को हटाएँगे (हल करेंगे), चौथे नंबर पर एडिशन (धन) को हटाएँगे (हल करेंगे) और फिर पांचवें नंबर पर सब्स्ट्रेक्शन (ऋण) को हटाएँगे (हल करेंगे).

अगर अरुण शौरी को गणित नहीं आती हो और वो पहले मल्टीप्लिकेशन (गुणा) को फिर सब्स्ट्रेक्शन (ऋण) को फिर ब्रेकेट ऑफ फिर भाग को फिर आखिरी में प्लस को हटा रहे है तो ज़ाहिर है उत्तर ग़लत ही आएगा.

ठीक उसी तरह से, क़ुरान के अध्याय 4 के श्लोक 11 व 12 में उत्तराधिकार और वसीयत के बारे में बच्चों के बारे में सबसे पहले आदेश है फिर माँ-बाप और पति अथवा पत्नी के बारे में फरमाता है. इसलाम के वसीयत क़ानून के मुताबिक़ पहले जो बिना देनदारी या ऋण हो उसे चुकता किया जे फिर वसीयत लागू होगी, तदोपरांत पति अथवा पत्नी और माँ-बाप (निर्भर करता है कि वे अपने पीछे संतान छोडें है या नहीं) और फिर जो भी बची संपत्ति है उसे लड़को और लड़कियों में दिए गए अंश के मुताबिक़ बाँट दी जाती है.

अब जब ऊपर लिखे तरीके से वसीयत का उत्तराधिकारियों के मध्य वितरण हो जा रहा है तो यह सवाल कैसे उत्पन्न हो सकता है कि किसी का हिस्सा एक से ज्यादा हो जायेगा. यह बात किसी को भी बहुत आसानी    े समझ आ जायेगी. दरअसल अरुण शौरी और उनकी तरह के और लोग जो क़ुरान की आयतों का हवाला देते है और भ्रमित करते है दरअसल वो कुरान की आयतों को आधा या वो भाग जिसका अर्थ अलग हो को उठाते है और बीच की या उसके बाद की आयतों को नहीं उठाते जिसमें उस बात का समाधान भी होता है या उसका अर्थ पूर्ण हो जाता है और हुआ यही, अरुण शौरी ने अपने ढंग से कुतर्क के ज़रिये यह सिद्ध करने की कोशिश करी कि अल्लाह गणित नहीं जानता है.

अरे जनाब! यह अल्लाह नहीं जो गणित नहीं जानता (नउज़ुबिल्लाह), यह अरुण शौरी है जो गणित नहीं जानता है.
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/swachchhsandesh/entry/%E0%A4%85%E0%A4%B2-%E0%A4%B2-%E0%A4%B9-%E0%A4%97%E0%A4%A3-%E0%A4%A4-%E0%A4%A8%E0%A4%B9-%E0%A4%9C-%E0%A4%A8%E0%A4%A4-%E0%A4%B9-%E0%A4%85%E0%A4%B0-%E0%A4%A3-%E0%A4%B6-%E0%A4%B0

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