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Thursday, March 29, 2012

कोयला रेगुलेटर से क्रांति की अपेक्षा! कारपोरेट लाबिइंग और राजनीतिक दबाव के आगे​ कोल इंडिया प्रबंधने के लिए न निगलने की हालत है और न उगलने की हालत।


कोयला रेगुलेटर से क्रांति की अपेक्षा! कारपोरेट लाबिइंग और राजनीतिक दबाव के आगे​ कोल इंडिया प्रबंधने के लिए न निगलने की हालत है और न उगलने की हालत।

मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

कोयला मंत्रालय ने कहा है कि वह जल्द ही कोल रेगुलेटरी बिल 2012 लाएगा।कोयला रेगुलेटर यानी कोयला नियामक प्राधिकरण  से अब कोयला सेक्टर में क्रांति की अपेक्षा है। सरकार इसे कोयला घोटाले की कालिख मिटाने के काम में लगाने की तैयारी​​ में है। कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने कहा , मंत्रालय ने बिल को मंजूरी दे दी है। अब सिर्फ कैबिनेट की मुहर लगनी बाकी है। बिल में कंपनियों को कोयला खदानों के आवंटन में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के अलावा सभी भागीदारों को विकास के समान अवसर उपलब्ध कराने की कोशिश की गई है।बिल के मुताबिक , कोयला क्षेत्र का नियामक कोयले की कीमत से जुड़े विवादों को हल करने में तेजी लाएगा। इस क्षेत्र में कंपनियों के निष्पादन के लिए मानक तय किए जाएंगे। मालूम हो कि कोयला खदानों की आवंटन प्रक्रिया पर कैग की ड्राफ्ट रिपोर्ट लीक होने के बाद संसद में जमकर बवाल हुआ था। ड्राफ्ट रिपोर्ट में सरकार को भारी नुकसान होने की बात कही गई थी।प्रस्तावित विधेयक में नियामक को यह अधिकार दिया जाएगा कि वह कोयला ब्लॉक खनन प्रक्रिया से संतुष्ट नहीं होने पर उन कंपनियों के आवंटन को रद कर दे या उन पर जुर्माना लगाए। नियामक प्राधिकरण के अधिकार क्षेत्र में यह शामिल किया जा रहा है कि वह कोयला ब्लॉक आवंटन की प्रक्रिया को पूरी तरह से प्रतिस्प‌र्द्धी बनाये। साथ ही कोयला खान से निकल कर ग्राहक के हाथ तक किस तरह से पहुंच रहा है और बीच में उसकी कीमत किस तरह से बढ़ती है, इस पर भी प्राधिकरण की नजर रहेगी।

दावा यह है कि सरकार से कोयला ब्लॉक हासिल कर उसे वर्षो तक बेकार रखने वाले कंपनियों के खिलाफ अब कोयला नियामक प्राधिकरण ही डंडा चलाएगा। कोयला मंत्रालय ने दो वर्ष पहले इन कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करने की प्रक्रिया शुरू की थी, लेकिन कई तरह के दबाव में उसे स्थगित कर देना पड़ा है। अब कोयला मंत्रालय के अधिकारी बताते हैं कि नियामक प्राधिकरण के गठन के बाद इन कंपनियों के लिए जवाब देना मुश्किल हो जाएगा।प्रस्तावित विधेयक नियामक प्राधिकरण के साथ ही एक अपीलीय ट्रिब्यूनल के गठन का भी रास्ता साफ करेगा। सरकार की मंशा इन दोनों का गठन अगले छह महीने में करने की है। इस विधेयक का प्रारूप वर्ष 2010 में ही तैयार हो गया था, लेकिन उसके बाद यह केंद्र सरकार की नीतिगत अनिर्णय का शिकार हो गया। केंद्र सरकार पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक [कैग] की एक आरंभिक रिपोर्ट के आधार पर कोयला खनन आवंटन में लाखों करोड़ रुपये के घोटाले की बात सामने आई है। इसके बाद ही विधेयक को आनन-फानन आगे बढ़ाया जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक नए आरोपों के संदर्भ में प्रस्तावित विधेयक में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए जा रहे हैं। ब्लॉक लेने के बावजूद उसे विकसित नहीं करने का मामला निश्चित तौर पर कोयला नियामक प्राधिकरण के पास जाएगा। वर्ष 1993 के बाद से सरकार 213 कैप्टिव कोयला ब्लॉक निजी व सरकारी कंपनियों को सौंप चुकी है। इनमें से सिर्फ 28 ब्लॉकों में ही खनन का काम शुरू हो पाया है। पिछले तीन वर्षो के दौरान भी 42 ब्लॉक आवंटित किए गए, लेकिन इनमें से एक बी ब्लॉक में खनन शुरू नहीं हो सका है। कंपनियों के स्तर पर लेट-लतीफी पर पहले तो कोयला मंत्रालय ने काफी सख्ती दिखाई। कंपनियों को कोयला ब्लॉक आवंटन रद करने की धमकी भी दी गई, लेकिन फिर मामला ठंडा पड़ गया।

सरकार के लिए कोयला ब्लाकों के आवंटने में घोटाले के अलावा बिजली कंपनियों को राहत पहुंचाने का मसला सरदर्द का सबब बना हुआ ​​है। उद्योग जगत को आंकड़ों की हकीकत अच्छी तरह मालूम है। ग्रोथ के आंकड़े बदल दिये जाने से कोयला उत्पादन में रातोंरात क्रांति नहीं​ ​ हो सकती। न ही कोयला रेगुलेटर कानून पास हो जाने से कोयलांचल भ्रष्टाचार मुक्त हो जायेगा। भूमिगत आग की तरह अवैध खनन और अवैध कारोबार कोयला उद्योग की शिरा और धमनी हैं। इनके बिना कोयला सेक्टर का कोई वजूद ही नहीं है। निजी बिजली कंपनियों को कोयला​ ​ आपूर्ति सुनिश्चित करने के चक्कर में कोल इंडिया की मुश्किलें और बढ़ाते हुए सरकार इस नवरत्न कंपनी को एअर इंडिया की परिणति​ ​ तक ले जाने की मुहिम चला रही है। कोल इंडिया शुरू से इसके खिलाफ रही है। पर कारपोरेट लाबिइंग और राजनीतिक दबाव के आगे​ ​ कोल इंडिया प्रबंधने के लिए न निगलने की हालत है और न उगलने की हालत। अब हालत ऐसी बनी हुई है कि देश में बिजली का उत्पादन बढ़ाने और बिजली कंपनियों की दिक्कतों को दूर करने की प्रधानमंत्री की कोशिशों को झटका लग सकता है। लगातार दूसरे दिन हुई कोल इंडिया के बोर्ड बैठक में फ्यूल सप्लाई एग्रीमेंट पर आम सहमति नहीं बन पाई है। बोर्ड के ज्यादातर सदस्य फ्यूल सप्लाई एग्रीमेंट की शर्तों के खिलाफ हैं।कोल इंडिया बोर्ड के ज्यादातर सदस्यों का तर्क है कि पीएमओ के निर्देशों के मुताबिक पावर कंपनियों के साथ करार करने से कंपनी को घाटा हो सकता है। लिहाजा कोल इंडिया बोर्ड की ओर से कोयला मंत्रालय को एफएसए नियमों में बदलाव करने पर प्रस्ताव भेजा जाएगा। कोल इंडिया बोर्ड के 80 फीसदी इंडीपेंडेंट डायरेक्टरों ने एफएसए पर आपत्ति जताई है। बुधवार को भी कोल इंडिया के बोर्ड बैठक में पावर कंपनियों के साथ फ्यूल सप्लाई एग्रीमेंट (एफएसए) पर कोई सहमति नहीं बन पाई थी।

कोल इंडिया की मुश्किलों का कोई ओर छोर नहीं दीख रहा है।खबर है कि खनन मंत्रालय खनन परियोजनाओं से प्रभावित होने वाले परिवारों के लिए 100 फीसदी अनिवार्य रॉयल्टी की सिफारिश करने जा रहा है। यह प्रावधान खननकर्ताओं की मुनाफा साझेदारी की व्याख्या करता है। मौजूदा स्वरूप में विधेयक को वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता में गठित 10 सदस्यीय मंत्रिसमूह मंजूरी दे चुका है और इसे संसद में भी पेश किया जा चुका है। अगर इस अनुशंसा पर सचमुच अमल हुआ तो इससे कोयला खनन में लगी कंपनियों का मुनाफा बुरी तरह से प्रभावित होगा। इससे न केवल कोल इंडिया लिमिटेड को अपने सालाना खर्च में इजाफा करना पड़ेगा बल्कि टाटा, रिलायंस, एस्सार, जीएमआर, जीवीके और आदित्य बिड़ला समूह समेत निजी खनन कंपनियों को मुनाफा साझा करना होगा। खनन एवं खनिज विकास एवं नियमन विधेयक (एमएमडीआर) की समीक्षा कर रही तृणमूल कांग्रेस के सांसदकल्याण बनर्जी की अध्यक्षता वाली संसद की स्थायी समिति के समक्ष खनन मंत्रालय ने ये सुझाव रखे हैं। कोयला मंत्रालय ने समिति के सामने यह प्रस्ताव रखा था कि कोयला खनन करने वाली कंपनियों को 26 फीसदी रॉयल्टी का भुगतान करने के लिए कहा जाए न कि उनके मुनाफे का 26 फीसदी। मुनाफे का आकलन किए जाने की प्रक्रिया में निजी खननकर्ता छूट जाते हैं क्योंकि ये कंपनियां व्यावसायिक तौर बिक्री नहीं करती हैं। कोयला मंत्रालय के इस प्रस्ताव की प्रतिक्रिया में खनन मंत्रालय ने रॉयल्टी को 26 फीसदी से बढ़ाकर 100 फीसदी करने का प्रस्ताव रखा है।  मंत्रालय ने बाद में मसौदा विधेयक की धारा 43 में संशोधन का प्रस्ताव रखा।

बहरहाल डांवाडोल बाजार के मद्देनजर घोटालों में फंसी सरकार के लिए अच्छी खबर यह है कि वित्त वर्ष 2011-12 खत्म होते-होते औद्योगिक उत्पादन में सुधार के संकेत दिखने लगे हैं। बुनियादी उद्योगों के उत्पादन में फरवरी में 6.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इस सुधार में बड़ी हिस्सेदारी कोयला क्षेत्र की रही। कोयला उत्पादन में 17.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। इस साल जनवरी में यह वृद्धि दर 0.5 फीसद थी।

वैसे, चालू वित्त वर्ष के पहले 11 महीने में आठ प्रमुख उद्योगों की विकास दर 4.4 प्रतिशत रही है। इनमें सीमेंट, कोयला, तैयार स्टील, बिजली, रिफाइनरी उत्पाद, कच्चा तेल, उर्वरक और प्राकृतिक गैस शामिल हैं। इन प्रमुख उद्योगों के प्रदर्शन से अनुमान लगाया जा रहा है कि इसका असर देश के औद्योगिक उत्पादन पर भी दिखाई देगा। महंगाई की दर घटी है। रिजर्व बैंक ने उद्योगों को कर्ज मुहैया कराने के लिए बैंकों की नकदी की स्थिति सुधारने के भी कदम उठाए हैं। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी भी संकेत दे चुके हैं कि केंद्रीय बैंक अगले महीने मौद्रिक नीति की समीक्षा के दौरान ब्याज दरों में कटौती का सिलसिला शुरू कर सकता है। सरकार के इन कदमों का असर अगले वित्त वर्ष 2012-13 की शुरुआत से ही औद्योगिक गतिविधियों पर पड़ सकता है।

प्रमुख उद्योगों के उत्पादन के ताजा आंकड़ों के मुताबिक सबसे महत्वपूर्ण बदलाव कोयला क्षेत्र में देखा गया है। पिछले साल फरवरी में कोयले के उत्पादन में 5.8 प्रतिशत की कमी हुई थी। चालू वित्त वर्ष में भी अक्टूबर के महीने तक कोयले के उत्पादन में कमी रही। इसके बाद से उत्पादन में सुधार के संकेत दिखे।

-बुनियाद का हाल-

क्षेत्र, फरवरी,12, फरवरी,11

सीमेंट, 10.8, 6.5

कोयला, 17.8, -5.8

बिजली, 8.0, 7.2

स्टील , 4.3, 18.5

पेट्रो रिफाइनरी, 6.2, 3.2

कच्चा तेल, 0.4, 12.2

उर्वरक, 4.1, 4.8

प्राकृतिक गैस, -7.6,

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