Sunday, 03 February 2013 13:09 |
ओम थानवी लेखक और पत्रकार अक्सर वाल्तेयर की इस उक्ति को याद किया करते हैं कि भले मैं आपकी बात से सहमत न होऊं, पर उसे कहने के आपके अधिकार का आखिरी सांस तक पक्ष लूंगा। काश! जरूरत के वक्त हम वाल्तेयर को भुलाने के आदी न होते। ब वापस कुछ साहित्योत्सव की बात। अंगरेजी और हिंदी में यह भेद है कि अंगरेजी में कोई भी लेखक- चेतन भगत से ओरहान पामुक तक- साहित्योत्सव में शरीक कर लिया जा सकता है। कथेतर भी। हिंदी में साहित्य की शर्तों का खयाल रखने की कोशिश रहती है। यही वजह है कि जयपुर में कवि-कथाकार-आलोचक तो मिलते ही हैं, फिल्मकार, गीतकार, चित्रकार, मूर्तिकार, समाजविज्ञानी, इतिहासकार, पुरातत्त्वी, वास्तुकार, पत्रकार, खिलाड़ी आदि भी मिलते हैं। यानी जिनका लेखन से किसी तरह का वास्ता हो। वहां श्रोताओं के हुजूम की फितरत भी निराली होती है। कोई एक तबका नहीं। फैशनपरस्त युवा मिलते हैं तो साधारण-सहज विद्यार्थी भी, अमीर और गरीब, जमीनी और अभिजात, नकचढ़े और शालीन, वाचाल और मौन, हिंदी-अंगरेजी और भाषाई, वामपंथी, दक्षिणपंथी, मध्यमार्गी, हाशियापंथी- हर रंग के श्रोताओं की उपस्थिति लेखकों को रिझाती है और उनकी परीक्षा भी लेती है! इसीलिए मैं इसे लेखक मेला कहना बेहतर समझता हूं। लेखक-पाठक मेला। मेला इसलिए कि उसमें मेले की रंगीनी, रौनक, कौतुक और चुहल अर्थात मौज-मस्ती भी भरपूर होती है। वरना साहित्य समारोहों की गोष्ठियां सत्र-दर-सत्र अक्सर अकादमिक बोझिलता की भेंट चढ़ जाया करती हैं। खासकर पत्र-वाचनों के कारण। जयपुर समारोह में किसी सत्र में लिखित परचे नहीं पढ़े जाते। विषय पर मौखिक उद्बोधन, आपस में चर्चा और फिर श्रोताओं के साथ सीधा संवाद। मुश्किल यह पेश आती है कि आप कब, कहां, कितना सुनें! छह समांतर सत्रों के सामने आपकी रुचियां आपस में टकराती हैं! मसलन पहले रोज (24 जनवरी) कार्यक्रमों की लंबी सूची देख तय किया कि ह्यसुनील दा (गंगोपाध्याय) की याद मेंह्ण गोष्ठी सुनूंगा, 'द आर्ट आॅफ शॉर्ट स्टोरी' और हिंदी गोष्ठी 'अधूरा आदमी, अधुना नारी' चाहकर भी नहीं सुन पाऊंगा। तीनों का समय एक ही था! इसी तरह 'द ग्लोबल शेक्सपियर' छोड़कर 'भाषा और भ्रष्टाचार' नामक हिंदी चर्चा में जा बैठा, जहां क्षमा शर्मा के साथ अनामिका, अजय नावरिया और गौरव सोलंकी वार्तामग्न थे। अनामिका भाषा और संवेदना के अनुशासन पर सलीके से बोलीं, पर अजय नावरिया भटक गए। एक वक्त तो वे मांसाहार के पक्ष में बोलते हुए घास-पत्ती में जीव वाली दलील पर उतर आए। मुझे खयाल आया कि पाकिस्तान के अंगरेजी लेखक मोहम्मद हनीफ ने नावरिया को दूसरा प्रेमचंद बताया है! मैंने अजय का गद्य नहीं पढ़ा। फिर भी मैं उनसे भाषा पर बेहतर विमर्श की आस लगाए था। न चाहते हुए भी उठकर बगल के 'मुगल तम्बू' में शेक्सपियर की शरण में चला गया। यह प्रसंग समारोह के एक पहलू की झलक दिखाने भर के लिए। ऐसी जद्दोजहद और आवाजाही का अपना सुख और अपना कष्ट होता है। और यह शिरकत करने वाले हर संभागी श्रोता को हासिल हुआ होगा! कुछ इसी तरह गणतंत्र दिवस के रोज का मोहभंग। सुबह आशीष नंदी के बयान के बाद संगोष्ठी स्थल डिग्गी पैलेस के बाहर- और भीतर भी- विरोध जताने वाले सक्रिय हो गए थे। काफी वक्त आपसी चर्चा और चाय-पान में गया। दोपहर एक सत्र था- 'आओ गांव चलें'। असल में यह पद राजस्थान पत्रिका के संस्थापक-संपादक कर्पूरचंद कुलिश- जो कवि भी थे- की देन था। गांवों से उन्हें मोह था। उन्होंने प्रदेश के हर गांव की कहानी लिखवाने का अभियान शुरू किया। स्व. बिशनसिंह शेखावत ने जयपुर क्षेत्र के सैकड़ों गांव पैदल छाने होंगे। बीकानेर जिले के अनेक गांवों में मैं भी गया। बहरहाल, गांव की याद दिलाने वाली हमारी चर्चा शहरी मनोभावों में उलझ कर रह गई। नीलेश मिश्र गांवों के आधुनिक झुकाव पर मुग्ध थे। मेरा कहना था कि गांव को पर्यटक की तरह देखने की दरकार नहीं है। गांव एक मूल्य है, जिसकी सादगी, सचाई, साफगोई, खान-पान हम जहां जाते हैं साथ ले आ सकते हैं। चर्चा का संयोजन दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने किया। लक्ष्मी शर्मा और ईशमधु तलवार भी साथ थे। शाम को नई कहानी पर चर्चा थी। निरुपमा दत्त के संयोजन में दुष्यंत, क्षमा शर्मा, मालचंद तिवाड़ी और पाकिस्तान की फहमीदा रियाज। फहमीदा ऊंचे दरजे की कवयित्री हैं। जिया उल- हक के जमाने में वे कई बरस महेंद्र कुमार मिश्र के घर दिल्ली में रहीं। उस दौरान अंगरेजी में लिखी एक दास्तान उन्होंने सुनाई, जो उनके अनुसार सच्ची कथा थी। यानी संस्मरण। और उसके नायक थे पुलिसिया लेखक विभूतिनारायण राय! श्रोता ही नहीं, निरुपमा दत्त भी राय पर इतना लंबा पाठ सुनकर असहज जान पड़ीं। दुष्यंत की छोटी कहानी ज्यादा पसंद की गई। क्षमा शर्मा और मालचंद तिवाड़ी ने कहानी पर सिर्फ बात की। प्रश्नोत्तर में फहमीदा मुखर रहीं। उठते-उठते उन्होंने श्रोताओं की मांग पर अपनी कविता 'तुम भी हम जैसे निकले' भी सुनाई। समारोह में और पाकिस्तानी लेखकों ने भी शिरकत की। सीमा पर मंडराए तनाव के बावजूद पाकिस्तान के लेखकों के प्रति श्रोताओं में सम्मान का भाव जयपुर की उदार और सहिष्णु परंपरा के प्रति आश्वस्त करता था। हालांकि जब-तब छुटभैये कट्टर संगठन भी सिर उठाते रहे हैं, पर उनसे मोर्चा लेने की इच्छाशक्ति राज्य को दिखानी होगी। वरना बात-बेबात बात-बतंगड़का सामान तो हर सम्मेलन में निकल आएगा। जैसा पहले कहा, मेले की रिपोर्टिंग मेरा प्रयोजन नहीं है। इस संक्षिप्त ब्योरे से आप बस वहां की विविधता का अंदाजा लगा सकते हैं। हां, दो-तीन सत्रों का जिक्र और करना चाहूंगा। एक सत्र बौद्ध मत और दलित बोध पर केंद्रित था, जिसमें कांचा इलैया बहुत अच्छा बोले। उनका कहना था यह चरम हताशा की धारणा है कि भारत में जातिवाद और ऊंच-नीच कभी खत्म नहीं हो सकते, मैं उम्मीद का दीया हमेशा जलाए रखता हूं। महाश्वेता देवी पर एक छोटी फिल्म के बाद उनसे दिलचस्प सवाल-जवाब थे। उनसे पूछा गया कि क्या आप अब भी अपने को मार्क्सवादी लेखिका समझती हैं? वे बोलीं, यह तो पढ़ने वाले की आंख पर निर्भर है कि वह मुझे कैसे देखता है। नंद भारद्वाज के संयोजन में राजस्थानी सत्र 'निर्वाली पिछाण' जानदार था। अफगानिस्तान के भविष्य, संस्कृत की सनातनता, भविष्य का उपन्यास, लेखक और सत्ता, रवींद्रनाथ और स्त्रियां, कुंभ मेला, कलाकार की आंख, शाह अब्दुल लतीफ, गांधी बनाम गांधी, जातक पाठ, कश्मीर और पलायन भी महत्त्वपूर्ण सत्र थे। दो हिंदी सत्र विचारोत्तेजक रहे- स्त्री होकर सवाल करती हो और पिक्चर अभी बाकी है। भानु भारती का एकल सत्र था: मैं रंगकर्म क्यों करता हूं। वे अच्छा बोले। पर अंगरेजी में, हालांकि रंगकर्म हिंदी में करते हैं। एक सत्र में अशोक वाजपेयी और मैंने मुकुंद लाठ की कविताओं पर कवि से बात की। दो और सत्र भाषा पर केंद्रित थे। दोनों का जीवंत संयोजन मेरे मित्र रवीश कुमार ने किया। मैथिली पर केंद्रित: 'एक भाषा हुआ करती है'। दूसरा: 'अंगरेजी-हिंदी भाई-भाई'। पहले में ताराचंद वियोगी और विभा रानी ने समां बांधा। दूसरी चर्चा में अशोक वाजपेयी छाए रहे। भालचंद्र नेमाड़े और इरा पांडे ने भी काम की बातें कहीं। नेमाड़े की यही बात मुझे नहीं जमी कि दो भाषाएं सीखना (बाइलिंगुअल होना) अच्छा काम नहीं, एक काफी होगी! उत्सव में कई किताबों का लोकार्पण हुआ। सबसे महत्त्वपूर्ण लगा प्रभा खेतान की आत्मकथा अन्या से अनन्या के अनुवाद का आयोजन। अनुवाद इरा पांडे ने किया है। कमला दास की आत्मकथा की अंगरेजी में बहुत चर्चा होती रही है। पर दो आत्मकथाएं- प्रभा खेतान और अजीत कौर की लिखी हुर्इं- मेरी समझ में उस पर बहुत भारी पड़ेंगी। अकेली स्त्री का साहस और अदम्य जिजीविषा उनमें आपको कदम-कदम पर मिलेगी। उर्वशी बुटालिया ने 'जुबान' के जरिए हिंदी कृति का दायरा बढ़ाया है; मन में उनके प्रति कृतज्ञता जागी। |
Sunday, February 3, 2013
उम्मीद का दीया
उम्मीद का दीया
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Followers
Blog Archive
-
▼
2013
(6088)
-
▼
February
(471)
- Round Table India | Marichjhapi and the Revenge of...
- No fare hike this time but 5-6% every year!Govt pu...
- Release Aparna Marandi!
- বাংলায় দিদি সত্তর হাজার কোটির প্রকল্প ঘোষণা করেছিল...
- दिल्ली तक शरणार्थियों के लिए लड़ेंगे प्रफुल्ल पटेल!
- ममता दीदी की शुरु की हुई परियोजनाएं खटाई में!महंगा...
- Torture in police station & prison (correctional h...
- Rape of human rights,Human Rights defender getting...
- हम अंबेडकर विचारधारा के मुताबिक देश की उत्पादक व स...
- मोदीवादी छद्म धार्मिक राष्ट्रवाद
- जमीन अधिग्रहण खत्म हो मेधा पाटकर
- पेंशन बिल यानी कामगारों की तबाही पीयूष पंत
- एक मामूली ‘गालिब’ की कहानी, जो असदउल्ला खां नहीं ...
- रिहाई मंच ने शिंदे से पूछे सात सवाल
- सुरक्षा-सुविधा की गारंटी दीजिये रेलमंत्री
- मजदूरों को एक सिरे से देश का घाटा कराने और असुविधा...
- वर्धा विश्विद्यालय में यौन उत्पीड़न
- Fwd: New Biometric Face Recognition Attendance Tim...
- पूरे देश की अर्थव्यवस्था अब चिट फंड में तब्दील!
- Ex-IAF chief SP Tyagi named! Tough most task for C...
- বধ্যভূমিতে দাঁড়িয়ে শপথ,দ্বিতীয় মুক্তযুদ্ধের প্রথম ...
- THE CENTRE CANNOT HOLD - New Delhi’s dilemma over ...
- गुमशुदा बच्चों की फिक्र
- ममता, सिंगूर आंदोलन का उपहास उड़ाने के कारण फिल्म प...
- ऑस्कर: ‘आरगो’ और ‘लाइफ ऑफ पाई’ का धमाल, डे-लूइस सर...
- बंगाल में हिन्दुओं का कत्लेआम !इस दुष्प्रचार के भय...
- बंगाल में हिंदुओं के नरसंहार का यह दुष्प्रचार!
- Threat to Indian Constitution is more serious from...
- সিরাজসিকদাররচনা জাতীয় মুক্তিযুদ্ধে কৃষকের ওপর নির্...
- এবার পশ্চিমবঙ্গ ? জামাত-রাজাকারদের শাস্তি নিয়ে যখন...
- बजट के खेल से हमें क्या? हमारी आंखें बंद हैं, श्रद...
- स्टालिन के असम्मान और सिंगुर की चर्चा के बहाने `का...
- শাহবাগের প্রজন্ম আন্দোলনে যে বাঙ্গালী জাতিসত্তার ন...
- रेल बजट: यात्री किराया व मालभाड़ा बढ़ाने को रेलवे मजबूर
- [Marxistindia] Sangharsh Sandesh Yatra flagged off
- दिल्ली के अधिकांश अख़बार कर रहे हैं भूमाफियाओं की ...
- पश्चिम बंगाल में सांप्रदायिक दंगा
- সেন্সরের কোপে `কাঙাল মালসাট`, ফ্যাতাড়ুদের মহাবিপদ...
- State’s monitoring of PDS unsatisfactory: Activists
- वे अचानक स्मृति शेष हो गए
- सोनी सोरी को रिहा करो!
- Fwd: PRESS CONFERENCE: Observations, Analysis of t...
- रेलबजट पर रेलमंत्री दगड़ मुखाभेंट
- Rail Budget: Will Railway Minister Pawan Bansal bi...
- Tata's old pillars suffer erosion in brand value, ...
- $8.8 bn missing link in exports figures: How gover...
- Are Muslim voters in Gujarat really supporting Nar...
- Budget 2013: Government’s strained finances will b...
- कश्मीर का इतिहास भूगोल फिर से लिखेगा ♦ हिमांशु कुमार
- ஆப்கான் உளவுத்துறை அலுவலகம் மீது இன்று காலை தலிபான...
- Workshop: UID, National Population Register (NPR) ...
- कचरे से रेडियोधर्मी तत्वों के रिसाव से एक बार फि...
- অবাধ পুঁজির খেলায় যে ছাড় প্রতিবছর দেওয়া হয় রাজস্ব...
- Fwd: RNI Exclusive in Hindi for free use: "Uttar P...
- Fwd: [গুরুচন্ডা৯ guruchandali] বাংলাদেশ সরকার বলে,...
- मजदूर महाबदं से खुलेंगे नये रास्ते
- आदिवासियों के लिए नहीं आकाशवाणी
- खामोश होतीं भारत की भाषाएं
- माओवाद का विकल्प नहीं बन पायी सरकार
- A NOVELIST IN THE ASHRAM - Between Gandhi and Ambe...
- Trinamul eye-opener on ear - Arrested suspects our...
- Sec 144 for Kejriwal protest? Court asks Delhi pol...
- आहत आस्थाओं का देश
- असुरक्षा बोध से पनपी सियासत
- यौन हिंसा की जड़ें
- आतंकवाद के नाम पर किसी तबके पर निशाना ठीक नही: अखिलेश
- क्या दीदी ने टाटा मोटर्स को हरी झंडी दे दी?
- লোক দেখানো হৈ হাঙ্গামা যাই হোক না, সংস্কার কর্মসুচ...
- My Daughter Attacked
- সব ধর্মের মৌলবাদের বিরুদ্ধে সক্রিয় হন বন্ধুরা: বাং...
- The Origins of Communalism Book Review by Aria Thaker
- Fwd: Rihai Manch statement on UPA govt intention t...
- Fwd: James Petras: Israel's Coming "Civil War": Th...
- Fwd: [भीमसागर] हम एक अनुसूचित जाति के रूप में संवै...
- HYDERABAD BLASTS Terror Returns Till more evidence...
- Terror Returns Till more evidence is forthcoming, ...
- What next, hand in boiling oil? Brutality in name ...
- “हाँ” और “ना” के हाशिये पर खड़ा है “बलात्कार का आर...
- जाति एवं भ्रष्टाचार
- JATI EVAM BHRASHTACHAR डॉ. उदित राज
- Dalits ‘barred’ from taking part in temple function
- No to begging yes to dignity By Vidya Bhushan Rawat
- More Questions for Sri Lanka to Answer about War C...
- TIED IN A KNOT- Cross-region Marriages in Haryana ...
- विश्लेषण : सोन्याचे मोल?
- NORTHEAST NEWS
- नागरिकता प्राप्तीमा कठिनाइ
- गोर्खाल्याण्ड राज्य गठनको मांगको समर्थनमा गोजमुमो ...
- ਮਾਂ-ਬੋਲੀ ਪੰਜਾਬੀ ਲਈ ਜਲੰਧਰ 'ਚ ਲਾਮਿਸਾਲ ਮਾਰਚ
- आनंद बल्लभ उप्रेती का आकस्मिक निधन
- Ultra vires regulations- does association with a b...
- ஹைதராபாத்தில் குண்டு வைத்தவர்கள் ‘ஸ்லீப்பர் செல்’ ...
- संकट में है कहने की आज़ादी और इंसान!महामहिम का भी ...
- অথ সিংহ কথা
- Fwd: [Right to Education] Appeal to join Demostrat...
- बुड्या मरणु बि नी!: याने एक अभिनव आन्दोलनs जड़नाश
- फिर बिगड़ेंगे प्रणव और दीदी के रिश्ते
- Only an impeachment may break the presidential imm...
- কপ্টার চুক্তির ফ্যাক্টশিটে ইতিমধ্যেই প্রণব মুখার্জ...
- ওপার বাংলাঃ প্রতিবাদে প্রজন্ম আন্দোলন, বাংলাদেশে প...
-
▼
February
(471)
No comments:
Post a Comment