कोलकाता और उपनगरों के डाक्टरों के दीदी अब गांवों में भेज रही हैं!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
कोलकाता के सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कालेजों में डाक्टरों का जमावड़ा है। लेकिवन जरुरत से ज्यादा डाक्टरों की मौजूदगी के बावजूद न सिर्फ इन अस्पतालों से मरीज लौटाये जाते हैं, बल्कि किसी तरह अस्पताल में दाखिला मिलने के बावजूद मरीजों की चिकित्सा हो नहीं पाती। क्योंकि ज्यादातरडाक्टर निजी प्रक्टिस में लगे हैं। महानगर और उपनगरों में निजी अस्पतालों, नर्सिंग होम और क्लीनिक में ऐसे सरकारी चिकित्सकों के कारण अब कोलकाता स्वास्थ्य पर्यटन का बड़ा केंद्र बन गया है। जबकि गांवों के अस्पतालों में डाक्टर तो हैं ही नहीं, दूसरे कर्मचारी भी नही ंहैं। जबकि हालत यह है कि सरकारी कर्मचारियों में हर तीसरा व्यक्ति स्वास्थ्य विभाग का कर्मचारी है।अब ग्राम बांग्ला जीत लेने के बाद दीदी यह परिदृश्य बदलने की तैयारी कर रही हैं।अब कोलकाता और उपनगरों के डाक्टरों को जिलोंऔर गावों में भेजने की तैयारी है।किस अस्पताल में कितने डाक्टर चाहिए और कितनी नर्सें, कितने दूसरे कर्मचारी चाहिए, इसकी बाकायदा समीक्षा की जा रही है।विशेषज्ञों की रपट मिलते ही दीदी यह काम प्राथमिकता के आधार पर करने जा रही हैं। अब तक हालत यह थी कि सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कालेजों में डाक्टरों ौर दूसरे कर्मचारियों की बाकायदा गिरोहबंदी रही हैऔर वे किसी भी आलोचक का मुंहतोड़ जवाब देते रहे हैं।बरसों से एक ही जगह डेरा जमाये लोग मनमर्जी से इन स्स्थाओं को चलात रहे हैं और निजी धंधा करते हुए मपरीजों की सेहतपर खेलते रहे हैं। जबभी गंभीर शिकायतें चर्चा में आयीं, बुनियदी सुविधाओं और डाक्टरों नर्सों और स्वास्थ्य कर्मियों की कमी का बहाना बनाया जाता रहा है और दोषी कर्मचारियों डाक्टरों के खिलाफ कार्वाई का इतिहास ही नहीं है। जब भी कार्रवाई हुई है कि यूनियनों ने इतनाहंगामा बरपा दिया कि सरकार और प्रशासन ने हाथ खड़े कर दिये।लेकिन किसी अस्पताल में कितने डाक्टर चाहिए, कितनी नर्से और दूसरे कर्मचारी, इसकी समीक्षा के साथ साथ बुनियादी सुविधाओं की पड़ताल करके दीदी इस व्यवस्था को बदलने की जुगत में हैं।
स्वास्थ्य सवा में निरंतर व्यवधान की परंपरा तोड़ने के लिए डाक्टरों ौर कर्मचारियों के विन्यास को अब सिरे से बदलने की तैयारी है।स्वास्थ्य विभाग में कर्मचारियों की नियुक्ति ौर तैनाती के दिशानिर्देश तैयार हो रहे हैं। जिसे एस्टाब्लिसमेंट लिस्ट कहा जा रहा है।कहा जा रहा है कि राजनीतिक कारम से ्वैज्ञानिक तरीके से महानगर कोलकाता और उपनगरों में डाक्टरों, नर्सों और स्वास्थ्यकर्मियों का जमावड़ा हो गया है जबकि गांवों में स्वास्थ सेवा पर कोई ध्यान कभी दिया नहीं गया। इसलिए जंगलमहल हो या पहाड़, उत्तर बंगाल हो या फिर कोयलांचल, लोग अपना इलाज कराने के लिए कोलकाता दौड़ परने को मजबूर है।कोलकाता और उपनगरों की सड़कों पर हर वक्त रात दिन चौबीसों घंटे अबुलेंस दौड़ती रहती है। मरीज की हालत थोड़़ी सी बिगड़ी नहीं कि तुरंत जिलों के अस्पतालों से मरीजो को दम तोड़ने क लिए कोलकाता के अस्पतालों में भेज दिया जाता है। हाल के वर्षों में कोलकाता में बड़ी संख्या में शिशु मृत्यु की सबसे बड़ी वजह यही है कि जिलों में उनका इलाज नहीं हो पाया और मरणासन्न या मृतप्राय शिशुओं को मरने केलिए कोलकाता भेज दिया गया।
दरअसल राज्य में डाक्टरों, नर्सों ौर स्वास्थकर्मीइफरात हैं।लेकिन कर्मचारी विन्यास को कोई पैमाना न होने के कारण वे वर्षों से एक ही जगह गिरोहबंद हैं। राज्य सर्कार अब इस तिलिस्म को तोड़ने के मूड में है।कहा जा रहा है कोलकाता और उपनगरों में बड़ी संख्या में ऐसे डाक्टर और दूसरे कर्मचारी है, जिनके लिए कोई काम ही नहीं है। वे सरकार से वेतन बतौर पेंशन ले रहे हैं और मजे में अपना निजी कारोबार चला रहे हैं।
इस सभी पहलुो पर सुब्रत मैत्र की अग्वाई में दीदी ने एक मल्टी डिसिप्लिनरी एक्सपार्ट ग्रुप बनाकर समीक्षा करा दी है और अब उसी समीक्षा रपट को लागू करने की बारी है।इस समिति ने राज्य के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के दफ्तर में अपनी समीक्षा रपट पेश कर दी है, जिसे दीदी ने मंजूर भी कर लिया है।इसी बीच स्वास्थ्य सचिव सतीशतिवारी ने इसी सिलसिले में स्वास्थ्य शिक्षा अधिकर्ता और स्वास्थ्य अधिकर्ता के सात बैठकर इस व्यापक आपरेशन का नक्शा बना लिया है।
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