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Monday, August 5, 2013

डियोडेरेंट को वियाग्रा की तरह बेचने वाले भयंकर महिला विरोधी विज्ञापनों की भी ऐसी तैसी की जाए

[LARGE][LINK=/print/13551-2013-08-04-17-55-33.html]डियोडेरेंट को वियाग्रा की तरह बेचने वाले भयंकर महिला विरोधी विज्ञापनों की भी ऐसी तैसी की जाए[/LINK] [/LARGE]

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Details Category: [LINK=/print.html]प्रिंट-टीवी...[/LINK] Created on Monday, 05 August 2013 13:25 Written by B4M
Mayank Saxena : भास्कर और जेएनयू मामले पर जब कईयों की नींद खुल ही गई है...तो अब ज़रा इस बारे में भी बात कर ली जाए कि क्यों नहीं टीवी पर सारी महिलाओं को सिर्फ एक डियो की खुशबू सूंघ भर कर एक पुरुष से सेक्स करने के लिए उतावला दिखाने वाले...महिलाओं को सिर्फ सेक्स ऑब्जेक्ट दिखाने वाले...और डियोडेरेंट को वियाग्रा की तरह बेचने वाले... भयंकर महिला विरोधी विज्ञापनों की भी ऐसी तैसी की जाए...उनके खिलाफ़ भी लड़ाई बुलंद की जाए...

पूछा जाए कि शेविंग क्रीम और रेज़र बेचने के लिए महिलाओं को सेक्शुअल ऑब्जेक्ट की तरह इस्तेमाल करने का क्या तुक है...चड्ढी पहनने भर से आपके पीछे चल पड़ने वाली महिलाओं को दिखाने का मतलब क्या है... क्यों ये सब भी महिला विरोधी लगता है आपको या नहीं...या फिर ये सब ठीक है...ऐसे ही चलते देना चाहिए... लड़ाई सिर्फ एक ही मोर्चे पर होगी क्या...???

xxx

Mayank Saxena : Dainik Bhaskar के पत्रकार (तथाकथित वरिष्ठ) विजय कुमार झा वही हैं जो वेब पत्रकारिता के नाम पर सॉफ्ट पोर्न और महिला विरोधी सामग्री छापने के एक्सपर्ट हैं...देखिए ये अपने खिलाफ चल रहे अभियान पर कितनी विनम्रता से कितनी महान बात कह रहे हैं...

[B]"फेसबुक कई मायनों में बड़े काम की चीज है, पर इसने स्‍वयंभू सुधारकों की एक बड़ी फौज के रूप में गंभीर समस्‍या खड़ी की है। जो बोलना नहीं जानते वे तमीज-तहजीब की नसीहत देने और जो लिखना नहीं जानते वे पत्रकारिता का 'अलख जगाने' निकल पड़ते हैं। इन मगजमूढ़ों से निपटना भी बहुत बड़ी समस्‍या है। इस दिशा में सरकार के प्रयास भी अभी कम उत्‍साहजनक ही कहे जा सकते हैं। दरअसल, अलग-अलग तरीकों से दलाली का कारोबार करने वालों को लगता है कि वे फेसबुक की यूएसपी (नेटवर्किंग) का इस्‍तेमाल कर अपनी दुकानदारी बेहतर चमका सकते हैं। इसलिए हर एक बात पर आंदोलन, लड़ाई और न जाने कौन-कौन से अभियान चलाने लगते हैं। फट से आंदोलन का ऐलान और अगले ही पल विजय की घोषणा भी! भगवान इन्‍हें सद्बुद्धि दे।"[/B]

झा जी...(संभवतः आपको ये ही उद्बोधन सुहाता हो...) फेसबुक पर आपकी अश्लीलता और महिला विरोधी मानसिकता पर विरोध के स्वर आपको गंभीर समस्या लगते हैं...लगते रहें...और लगना भी चाहिए...ये ही उन विरोधी स्वरों की ताकत और आपके डर का प्रमाण हैं...

जो बोलना नहीं जानते वो तमीज़ की बात कर रहे हैं...और आप जो बोलना जानते हैं...वो उसकी तो फट गई जैसे जुमले छाप रहे हैं... (हां, अब बाकी भी हटा लीजिए कोर्ट की उंगली से पहले...चोर कहीं के) जो लिखना नहीं जानते वो पत्रकारिता का अलख जगा रहे हैं...जी नहीं अलख तो आप ही जगाएंगे...जैसे आप के पत्रकार तो दुनिया का सबसे उत्कृष्ट साहित्य लिख रहे हैं...पढ़िएगा ज़रा बार बार अपना और अपने तमाम साथियों का लिखा हुआ एक एक समाचार...शर्म तो कीजिए...न स्वीकारिए अपनी गलती पर कुछ कहिए भी मत...सरकार के प्रयास तो वाकई उत्साहजनक नहीं हैं...वरना आप इस वक्त जेल में होते...
रही बात दलाली के कारोबार की...तो आइए बात करते हैं...आपकी कम्पनी जो कोयले के खनन के कारण नीतीश कुमार की दलाली करती है...गुजरात में व्यापारिक हितों के चलते नरेंद्र मोदी की दलाली करती है...टाटाओं और राडियों की दलाली करती है...मध्य प्रदेश में व्यापारिक हितों के चलते किस तरह की ख़बरें भास्कर लिखता और करता रहा है इस बारे में क्या लिखने की ज़रूरत है...झारखंड बिहार में तो हॉकरों की पिटाई भी करवा दी थी...और ये किस तरह की दलाली ङै कि हिट्स बढ़वाने के लिए महिला विरोधी कंटेंट छापा जाए...दलाली की बात आप मत कीजिए विजय कुमार झा...
भगवान ... वैसे मैं इसे नहीं मानता...लेकिन संभवतः आप उससे सद्बुद्धि की मांग कर रहे हैं...तो थोड़ी खुद के लिए भी मांग लीजिएगा...याद दिलाता हूं एक सूक्त...
परदारेषु मातृवत् आत्मवत् सर्वभूतेषु पश्यति यः सः पंडितः...

इसको पढ़ कर समझिएगा....बाकी आपको लोग समझाते रहेंगे...

और हां...आइए अदालत...देख लेते हैं हम सब कि कौन क्या कर लेता है...आप की ऐसी की तैसी...

हम भी देखना चाहते हैं कि आपकी बात में कितना दम है...अदालत में केस डालिए, नहीं तो हम डालेंगे...केस...समझ रहे हैं न...वकील सबके पास हैं...दम सबके पास नहीं होता...

ज़िंदाबाद....

[B]युवा पत्रकार और सोशल एक्टिविस्ट मयंक सक्सेना के फेसबुक वॉल से.[/B]

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