अब सिर्फ आर्थिक सुधारों के जरिए अमेरिकी कंपनियों के हितों की रक्षा की गरज से ही नहीं, बल्कि आतंक के खिलाफ अमेरिका के युद्ध में भारत की भागेदारी भी अमेरिका के लिए अहम!
पलाश विश्वास
आर्थिक सुधारों में पिछड़ने के कारण जो अमेरिकी मीडिया डा. मनमोहन सिंह को अंडर एचिवर कह रहा था, रातोंरात उसकी नजर में भारतीय प्रधानमंत्री का कायाकल्प हो गया है। अमेरिकी मीडिया एक तरफ तो मनमोहन की तारीफों का पुल बांधने लगा है, दूसरी ओर उनकी सरकार की सहत के लिए फिक्रमंद है।मजे की बात है कि विदेसी मीडिया के मर्जी मुताबिक मुताबिक सरकार और अर्थ व्यवस्था चलाने में अभ्यस्त बारत सरकार को सोशल मीडिया मे अपनी आलोचना नागवर गुजरती है। कारपोरेट मीडिया तो विदेशी मीडिया और अमेरिकी हितों, कारपोरेट लाबिंइंग की तरह जनता का ब्रेनवाश करने में लगी है। सोशल मीडिया में ही सरकार की खुलकर आलोचना होती है। वहां भी हिंदुत्ववादी ताकतों का वर्चस्व है। वहां भी मनोरंजन और सनसनी हावी है। इसके बावजूद जनता को संबोधित करने की यह एक अकेली खिड़की बची है, जिसे बंद करने की पूरी तैयारी है।हाल के दिनों में इंटरनेट और सोशल मीडिया के दुरुपयोग को ध्यान में रखते हुए सरकार ने त्रिआयामी रणनीति तैयार किया है, जिसमें एक साइबर सर्विलांस एजेंसी की स्थापना भी किया जाना है जो इस तरह की स्थिति के बारे में पहले ही आगाह करेगी।
इस वक्त अरब वसंत के उलटवार के कारण अमेरिका खास परेशान है। दुनियाभर में अपने आर्थिक हितों की सुऱक्षा के लिए उसने अपनी और नाटो की सेना तैनात कर रखी है। अरब और बाकी दुनिया में इजराइल को कुछ भी करने की छूट दे रखी है। पर ओसामा बिन लादेन की हत्या के बाद पहली बार अल कायदा का भूत अमेरिका को बेहद डराने लगा है। अब सिर्फ आर्थिक सुधारों के जरिए अमेरिकी कंपनियों के हितों की रक्षा की गरज से ही नहीं, बल्कि आतंक के खिलाफ अमेरिका के युद्ध में भारत की भागेदारी भी अमेरिका के लिए अहम है। अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजंसियों के जरिये लगातार सुधारों के लिए दबाव बनाने वाले अमेरिकी नीति निर्धारकों ने मनमोहन की लगाम अपने और भारतीय मीडिया के जरिए थाम ली है।अपनी भारत सरकार को अमेरिकी मीडिया की आलोचना के लिए सरकार, संसद, नीति निर्धारण और कानून बनाने, बदलने की प्रक्रिया में रातोंरात तब्दीली करने में गर्व महसूस हो रहा है।लेकिन अपने ही लोकतांत्रिक बंदोबस्त के तहत न शरीक दलों, न संघीय ढांचे के मुताबिक राज्यों के मुख्यमंत्रियों और न विपक्ष की राय की कोई परवाह है।राष्ट्र का इस हद तक सैन्यीकरण हो चुका है कि किसी भी जनांदोलन को कुचलने में उसे तनिक परवाह नहीं है।
खुले बाजार की अर्थ व्यवस्था में काला धन और विदेशी पूंजी का वर्चस्व इस कदर है और कारपोरेट चुनावी चंदा की वजह से राजनीतिक दलों पर शिकंजा इतना जबर्दस्त है , सिविल सोसाइटी और जनांदोलन के लिए बने तमाम संगठन कारपोरेट उपहार के लिए खुद को राजनीतिक दल में तब्दील करने को बेताब है, ऐसे में मनमोहन की प्रतिबद्ध अमेरिकी कवायदों का प्रतिरोध करें, ऐसा माई का लाल कौन है?आर्थिक मोर्चे पर कड़े फैसले लेने के बाद अब सरकार का चेहरा बदलने की बारी है। खबरों के मुताबिक, केंद्र से लेकर कांग्रेस शासित राज्यों तक फेरबदल किए जा सकते हैं। फेरबदल के दौरान यह सवाल भी अहम होगा कि सहयोगी दलों को कितनी तवज्जो मिलती है। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के पं. बंगाल दौरे से वापस आते ही कैबिनेट में फेरबदल किया जा सकता है।सूत्रों के मुताबिक, अहम मंत्रालय मसलन गृह, वित्त, रक्षा और विदेश में बदलाव होने की उम्मीद नहीं है। लेकिन उन मंत्रियों पर से काम का दबाव कम किया जा सकता है जिनके पास एक से ज्यादा महत्वपूर्ण मंत्रालय है। वीरप्पा मोइली, वायलार रवि, कपिल सिब्बल से एक मंत्रालय लिया जा सकता है। ये सभी एक से ज्यादा मंत्रालय के कामकाज को देख रहे हैं।2014 के आम चुनाव और बीच में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले कैबिनेट में फेरबदल के साथ ही आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान के मु?यमंत्रियों के बदले जाने की भी खबर है। खबरों के अनुसार आंध्र प्रदेश के एन. किरण कुमार रेड्डी, महाराष्ट्र के पृथ्वीराज चव्हाण और राजस्थान के अशोक गहलोत को सीएम पद से हटाकर नई जि?मेदारी दी जा सकती है। इन्हें या तो कैबिनेट या फिर कांग्रेस संगठन में जगह दी जा सकती है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विदेश से लौटने के बाद आंध, प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान के नेताओं ने उनसे मुलाकात भी की है।जाहिर है कि न मनमोहन और न कांग्रेस को सरकार गिरने का डर सता रहा है।सरकार द्वारा अचानक ही जोरदार तरीके से आर्थिक सुधारों को बढ़ाने की पहल के बाद अब उद्योग जगत की उम्मीदें भारतीय रिजर्व बैंक की सोमवार को पेश होने वाली मौद्रिक नीति की मध्य तिमाही समीक्षा पर टिकीं हैं। उद्योग जगत को इसमें ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद है। एसोचैम के अध्यक्ष राजकुमार धूत ने एक बयान में कहा कि अब समय आ गया है जबकि रिजर्व बैंक को महंगाई को लेकर लगी धुन से कुछ दूरी बनानी चाहिए।
पेंटागन ने कहा है कि वह भारत के साथ हथियारों की बिक्री सहित घनिष्ठ सैन्य संबंध विकसित करना चाहता है। पेंटागन ने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि हथियारों की बिक्री सहित भारतीयों के साथ सैन्य मोर्चे पर हमारे संबंध मजबूत होंगे। हम लोग इसे लेकर बहुत स्पष्ट हैं। संवाददाताओं से बातचीत में पेंटागन के प्रेस सचिव जॉर्ज लिटल ने कहा कि प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के मुद्दे पर हम लोग विशेष रूप से काम कर रहे हैं। भारत को हथियारों की बिक्री के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में लिटल ने बताया कि अमेरिका भारत के साथ इस क्षेत्र में नजदीकी संबंध विकसित करना चाहता है। पाकिस्तान के मुद्दे पर लिटिल ने कहा कि दोनों देशों के बीच संबंध बेहतर हुए हैं। उन्होंने कहा कि हम लोग लगातार अपने पाकिस्तानी सहयोगियों के साथ मिल कर काम कर सकते हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति बाराक ओबामा ने कहा है कि अमेरिकियों पर हमले बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे। उन्होंने अपने देशवासियों को भरोसा दिलाया है कि उन पर हमले करने वाले कानून के शिकंजे से बच नहीं पाएंगे। लीबिया में मारे गए अमेरिकियों की लाशें अमेरिका पहुंचने के एक दिन बाद ओबामा ने ये बातें कहीं। गौरतलब है कि लीबिया के बेनगाजी में अमेरिकी दूतावास पर हुए हमले में राजदूत क्रिस्टोफर स्टीवंस और तीन अन्य अमेरिकी मारे गए थे। विस्कांसिन गुरुद्वारे में खूनखराबे के बाद अमेरिका ने सिख विरोधी घृणा और हिंसा के मामले को गंभीरता से लिया है। दलगत भावनाओं से ऊपर उठते हुए करीब अस्सी सांसदों ने अमेरिकी संसद में सिख विरोधी घृणा के खिलाफ एक प्रस्ताव पेश किया है। अगर इस प्रस्ताव को मंजूरी मिल जाती है तो अमेरिका में सिखों के खिलाफ नफरत फैलाने वालों की खैर नहीं। अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में पेश प्रस्ताव में सिखों के योगदान को सराहा गया है।
इस्लाम विरोधी वीडियो को लेकर मुस्लिम दुनिया के करीब 20 देशों में अमेरिका विरोधी प्रदर्शनों के फैल जाने के बाद अमेरिका ने उन देशों को हिंसा रोकने की कड़ी चेतावनी दी है।इसके बावजूद गूगल ने विवादास्पद वीडियो को हटाने से इनकार कर दिया है। विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने यूट्यूब पर उपस्थित फिल्म 'इनोसेंस ऑफ मुस्लिम्स' की क्लिपिंग को एक भयानक इंटरनेट वीडियो बताया और कहा कि उससे अमेरिका का कुछ भी लेना-देना नहीं है। क्लिंटन ने इसके साथ ही देशों से कहा कि जो लोग अमेरिकी कूटनीतिक मिशनों पर हमले कर रहे हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए, अन्यथा अमेरिका खुद ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई करेगा।
शुक्रवार को ट्यूनीशिया, सूडान, यमन, अफगानिस्तान, गाजा, सीरिया, और लेबनान सहित अन्य देशों में विरोध प्रदर्शन की खबर है।ट्यूनीशिया में विरोध प्रदर्शनों के दौरान दो व्यक्तियों की मौत हो गई और 20 से अधिक घायल हो गए।इसके अलावा ईरान, इराक, पाकिस्तान, तुर्की, इंग्लैंड, इजरायल, नाईजीरिया, मलेशिया, बगदाद और भारत में भी विरोध प्रदर्शन हुए हैं।
काबुल के पूर्व में सुदूरवर्ती क्षेत्र में रविवार सुबह से ठीक पहले किए गए नाटो के हवाई हमले में आठ महिलाओं की मौत हो गई और आठ अन्य जख्मी हो गईं। अमेरिका नीत अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सहायता बल ने कहा कि उसने विद्रोहियों को निशाना बनाया था लेकिन आईएसएएफ द्वारा संभावित तौर पर पांच से आठ लोगों के मारे जाने के बारे में उसे जानकारी है और जान के नुकसान पर अपनी गहरी संवेदना प्रकट करता है।
पहले डीजल मूल्यवृद्धि और रियायती दर पर रसोई गैस सिलिंडरों की संख्या सीमित करने का फैसला, अगले ही दिन बहुब्रांड रिटेल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का फैसला और इसके साथ ही आर्थिक मोर्चे पर लिए गए कुछ अन्य फैसलों ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के भविष्य पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है।लेकिन जैसे कि आसार थे, एफडीआई पर कड़े आर्थिक फैसलों के बाद सरकार पर मंडरा रहा संकट फिलहाल कमजोर पड़ता नजर आ रहा है। सूत्रों के मुताबिक ममता बनर्जी भले ही सरकार से अपने मंत्रियों को बाहर खींच लें लेकिन वो सरकार से समर्थन वापिस लेने के पक्ष में नहीं दिख रही हैं। टीएमसी सांसद कुणाल घोष ने भी कहा कि टीएमसी सरकार को अस्थिर नहीं करना चाहती। वहीं समाजवादी पार्टी ने भी आज संकेत दिए हैं कि सड़क पर विरोध का असर सरकार की सेहत पर नजर नहीं आएगा।डीजल के दाम, रसोई गैस में कोटा और रिटेल में एफडीआई के फैसलों के बाद पंश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सरकार को फैसले वापस लेने के लिए 72 घंटे का अल्टीमेटम दे डाला। कोलकाता में रोड शो के दौरान सरकार को सीधी धमकी दी कि आम आदमी के लिए जान भले चली जाए लेकिन वो समझौता नहीं करेंगी। लेकिन ममता की अपनी राजनीति है और अपना वोटबैंक है। अल्टीमेटम की मियाद खत्म होने से पहले ही ममता के तेवरों में नरमी आ गई है।तृणमूल कांग्रेस सरकार से समर्थन वापस नहीं लेगी। मंगलवार को संसदीय पार्टी की बैठक में ममता अपने मंत्रियों को सरकार से इस्तीफा देने को कह सकती है। यानि तृणमूल सरकार में शामिल नहीं रहेगी लेकिन बाहर से समर्थन जारी रख सकती है। यूपीए सरकार में तृणमूल के कोटे से 1 केन्द्रीय और 5 राज्य मंत्री हैं। इनमें रेल मंत्री मुकुल रॉय, शहरी विकास राज्य मंत्री सौगत रे, पर्यटन राज्यमंत्री सुल्तान अहमद, स्वास्थ्य राज्यमंत्री सुदीप बंदोपाध्याय, ग्रामीण विकास राज्यमंत्री शिशिर कुमार अधिकारी और सूचना प्रसारण राज्यमंत्री चौधरी मोहन जटुआ शामिल हैं।
अमेरिका में सैन्य खर्चों में भले ही कटौती की जा रही हो, लेकिन सरकार ने परमाणु हथियारों के बड़े पैमाने पर आधुनिकीकरण करने की योजना बनाई है।समाचार पत्र द वाशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि परमाणु हथियारों को उन्नत करने की योजना में होने वाले खर्च के बारे में कोई अनुमान नहीं लगाया गया है।वाशिंगटन स्थित थिंक टैंक स्टिमसन सेंटर का अनुमान है कि परमाणु हथियारों के आधुनिकीकरण में कम से कम 352 अरब डॉलर का खर्च आएगा।ईरान की शक्तिशाली रिवॉल्यूशनरी गाडर्स ने आज चेतावनी दी कि अगर उसपर हमला किया गया तो वह हरमुज जलड़मरूमध्य, पश्चिम एशिया में अमेरिकी ठिकानों और इस्राइल को निशाना बनाएगा।तेहरान में संवाददाता सम्मेलन में जनरल मोहम्मद अली जाफरी ने यह भी कहा कि सैन्य कार्रवाई के लिए अगर उसे निशाना बनाया गया तो ईरान परमाणु अप्रसार संधि को त्याग देगा।इस चेतावनी ने ईरान और उसके विवादास्पद परमाणु कार्यक्रम को लेकर तनाव को रेखांकित किया है। उसके बारे में इस्राइल ने चेतावनी दी है कि वह अमेरिकी मदद से या बिना अमेरिकी मदद के हवाई हमलों के जरिए उसे बाधित कर सकता है।
दूसरी ओर, बराक ओबामा पर करेंसी से छेड़छाड़ करने वाले चीन को अमेरिका भर में लूट मचाने की छूट देने का आरोप लगाते हुए राष्ट्रपति पद के रिपब्लिकन उम्मीदवार मिट रोमनी ने दावा किया है कि राष्ट्रपति की चीन संबंधी नीतियां देश को प्रतिस्पर्धा की दृष्टि से कमजोर बना रही हैं।रोमनी ने अपने साप्ताहिक प्रसारण में कहा कि 2008 में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में ओबामा ने चीन को परास्त करने का वादा किया था। लेकिन उसके बाद से उन्होंने देशभर में लूट मचाने की छूट दे दी।उन्होंने आरोप लगाया कि चीन के मुद्रा के साथ फर्जीवाड़ा करने से रोजगार के हजारों अवसर बर्बाद हो गए हैं और राष्ट्रपति ओबामा ने इस साजिशकर्ता के खिलाफ मजबूती से खड़े होने के सात मौके गंवा दिए।एक सदी से अधिक समय में पहली बार अमेरिका दुनिया का प्रमुख विनिर्माता नहीं रहा है। वर्ष 2010 में हमने अपना यह पहला स्थान चीन के हाथों गंवा दिया।ओबामा ने कहा कि मेरी राय में ज्यादातर अमेरिकी, चाहे वह डेमोक्रेटस हों या रिपब्लिकन, यह समझते हैं कि कई बार हमें राजनीति को दरकिनार करना होता है, खास कर तब जब दूसरे देशों में रह रहे अमेरिकियों को सीधा खतरा हो।राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने रिपब्लिकन प्रतिद्वंद्वी मिट रोमनी पर आरोप लगाया है कि वह उनकी विदेश नीति की, विशेष तौर पर लीबिया और मिस्र में अमेरिकी मिशन पर हुए हमलों से निपटने को लेकर आलोचना करने से पहले अपने तथ्यों की जांच नहीं करते।अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि यहां एक विस्तृत सीख लेने की जरूरत है और ऐसा लगता है जैसे गवर्नर रोमनी की पहले गोली मारने और बाद में निशाना साधने की आदत है। और बतौर राष्ट्रपति मैंने एक बात जो सीखी है वह यह कि हम ऐसा नहीं कर सकते।
अल कायदा ने अरब जगत और पश्चिमी देशों में अमेरिकी ठिकानों पर नए सिरे से हमलों का आह्वान किया है।अलकायदा ने अरब जगत तथा पश्चिम में स्थित अमेरिकी मिशनों एवं कर्मियों पर और हमले करने का आह्वान किया है। इसके साथ ही अमेरिका को अपने दूतावासों की सुरक्षा के लिए मैरीन भेजने के कदम पर खाड़ी देशों से विरोध का सामना करना पड़ रहा है।
अमेरिका ने कहा है कि वह सूडान और ट्यूनीशिया से अपने गैर जरूरी दूतावासकर्मियों को वापस बुला रहा है।बीबीसी के अनुसार, विदेश विभाग ने एक बयान में ट्यूनीशिया में मौजूद अमेरिकी नागरिकों से भी आग्रह किया है कि वे उस देश को छोड़ दें।मालूम हो कि अमेरिका में निर्मित इस्लाम विरोधी एक फिल्म को लेकर मुस्लिम दुनिया में हो रहे अमेरिका विरोधी प्रदर्शनों के सिलसिले में ट्यूनीशिया और सूडान की राजनधानियों में स्थित अमेरिकी दूतावासों पर हमले हुए हैं।साइट इंटेलिजेंस ग्रुप के मुताबिक, अरब प्रायद्वीप की अल कायदा शाखा ने मध्य-पूर्व और अफ्रीकी देशों में मौजूद अमेरिकी राजनयिक प्रतिष्ठानों के खिलाफ भी हिंसा का आह्वान किया है। उसने पश्चिमी देशों में रह रहे मुस्लिमों से अमेरिका हितों को निशाना बनाने को कहा है। दूसरी तरफ अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने सूडान और ट्यूनीशिया में मौजूद सभी गैर जरूरी दूतावासकर्मियों को अमेरिका लौटने का आदेश दिया है। एक इस्लाम विरोधी विडियो सामने आने के बाद अरब देशों में भड़की हिंसा से चिंतित अमेरिका ने अपने नागरिकों को सूडान और ट्यूनीशिया न जाने की चेतावनी दी है। गौरतलब है कि बीते शुक्रवार को प्रदर्शनकारियों ने खारतूम स्थित अमेरिकी दूतावास को निशाना बनाया था। अमेरिका ने दूतावास की सुरक्षा के लिए सूडान सरकार से विशेष बल भेजने की गुजारिश की थी, जिसे उसने ठुकरा दिया था।
मुसलिम देशों में अपने राजनयिकों एवं दूतावास पर बढ़ते हमलों से निपटने के लिए अमेरिका सैन्य दस्ते को 17 से 18 जगहों पर तैनात करने जा रहा है। रक्षा मंत्री लियोन पनेटा ने कहा कि प्रदर्शनों के नियंत्रण से बाहर जाने की स्थिति के लिए हमें तैयार रहना होगा। एक मैगजीन को दिए साक्षात्कार में पनेटा ने यह जानकारी दी।
हालांकि उन्होंने विस्तार से ज्यादा कुछ नहीं बताया। अधिकारियों का कहना है कि हिंसा से बुरी तरह प्रभावित सूडान के अमेरिकी दूतावास के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित नौसैनिक कमांडो को भेजने पर विचार हो रहा है।
गौरतलब है इस्राइली-अमेरिकी द्वारा बनाई गई कथित रूप से इसलाम विरोधी वीडियो के सामने आने के बाद अरब जगत समेत दुनिया के कई देशों में अमेरिका विरोधी प्रदर्शन हो रहे हैं।
दुनिया भर के देशों से अमेरिका ने साफ कह दिया है कि हमारे राजनयिकों और दूतावास की सुरक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी उनकी है। इसके लिए पर्याप्त सुरक्षा बलों की तैनाती की जाए। व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव जे कार्नी ने कहा कि ओबामा प्रशासन को आशंका है कि यह प्रदर्शन अभी कुछ समय तक जारी रहेंगे। उधर, एंड्रयू एयरबेस पर आयोजित शोक समारोह में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा, 'लीबिया में अमेरिकी राजनयिक समेत चार अमेरिकियों का बलिदान भुलाया नहीं जाएगा।
हम दोषियों को सजा दिलाकर रहेंगे, जिन्होंने उन्हें हमसे छीना है।' यहीं पर लीबिया से लाए गए चारों अमेरिकियों के शवों को रखा गया था। उन्होंने कहा कि विदेशों में तैनात अमेरिकियों की सुरक्षा के लिए हम कुछ भी करेंगे। ओबामा ने कहा कि क्रिस स्टीवेंस सभी लीबियावासियों के मित्र थे। विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने कहा कि इस तरह की मूर्खतापूर्ण हिंसक कार्रवाई को जायज नहीं ठहराया जा सकता।
क्लिंटन ने कहा, 'मिस्र, लीबिया और ट्यूनीशिया के लोगों ने भीड़ के अत्याचार के लिए तानाशाह का अत्याचार समाप्त नहीं किया है।' क्लिंटन ने यह बात लीबिया के बेंगाजी में मारे गए अमेरिकी राजदूत क्रिस स्टीवेंस सहित चार लोगों के शव पहुंचने के मौके पर कही।
इस बीच गूगल ने शुक्रवार को कहा कि वह घृणित भाषण प्रतिबंध के नियम के आलोक में यूट्यूब पर इस्लाम विरोधी वीडियो पर पुनर्विचार करने के व्हाइट हाउस के अनुरोध पर विचार नहीं करेगा।मुस्लिम जगत में लगातार बढ़ते विरोध प्रदर्शन के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति कार्यालय व्हाइट हाउस ने गूगल के स्वामित्व वाली यू-ट्यूब कंपनी से कहा कि वह इस्लाम धर्म के लिए अपमानजनक मानी जा रही विवादास्पद फिल्म को लगातार अपलोड किए जाने की समीक्षा करे। पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीकी देशों में अमेरिका विरोधी हिंसक प्रदर्शनों के मद्देनजर ओबामा प्रशासन ने यू-ट्यूब से कहा कि वह इस बात की समीक्षा करे कि क्या यह वीडियो शर्तों का पालन करता है। राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता टोमी विक्टर ने शुक्रवार को स्वीकार किया कि व्हाइट हाउस ने यूट्यूब से कहा था कि वह इस बात की जांच करे कि कहीं यह उसके उपयोग की शर्तों का उल्लंघन तो नहीं कर रहा है।
ईरान के 'खोराद फाउंडेशन' ने भारतीय मूल के प्रख्यात ब्रिटिश लेखक सलमान रुश्दी की जान पर घोषित ईनाम की धनराशि में इजाफा कर दिया है। फाउंडेशन की ओर से यह भी कहा गया कि यदि रुश्दी की हत्या पहले ही कर दी गई होती तो जिस इसलाम-विरोधी फिल्म पर मुसलमान गुस्सा हो रहे हैं वह बनाई ही नहीं गई होती।खोराद फाउंडेशन के मुखिया और धर्मगुरु हसन सनेई के हवाले से ईरान की मीडिया ने खबर दी है कि जो कोई भी रुश्दी की जान लेगा उसे मिलने वाली ईनाम की राशि में 500,000 अमेरिकी डॉलर का इजाफा कर दिया गया है। ईनाम की राशि में इजाफे के बाद अब रुश्दी के हत्यारे को 33 लाख अमेरिकी डॉलर दिए जाने की घोषणा की गई है।
पहले अमेरिका की टाइम पत्रिका ने मनमोहन सिंह को अंडर अचीवर बताया था । वॉशिंगटन पोस्ट का कहना था कि कभी बेहद ईमानदार, विनम्र और बुद्धिजीवी प्रधानमंत्री की छवि अब फैसले न ले सकने वाले, बेअसर नौकरशाह प्रधानमंत्री की रह गई है और वो एक बेहद भ्रष्ट सरकार के प्रमुख हैं।अखबार ने मनमोहन सिंह की चुप्पी का मजाक उड़ाते हुए कहा है कि अब लोग मीटिंग में कहते हैं कि फोन को मनमोहन सिंह मोड में रख दो। एक और जोक का जिक्र अखबार ने किया है, मनमोहन सिंह एक बार डेंटिस्ट के यहां गए तो उसने कहा कि क्लीनिक में तो मुंह खोलिए।अमेरिकी पत्रिका 'टाइम' और ब्रिटिश समाचारपत्र 'द इन्डिपेन्डेन्ट' के बाद अब अमेरिका के प्रमुख समाचारपत्र 'द वॉशिंगटन पोस्ट' ने भी कहा कि 'चुप्पी साधे रहने वाले' भारतीय प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह 'दुखद व्यक्तित्व' हैं और उन पर इतिहास में 'नाकामयाब' के रूप में दर्ज होने का खतरा मंडरा रहा है।वाशिंगटन पोस्ट ने साफ कह दिया कि भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से खेद जताने का कोई सवाल ही नहीं उठता। जबकि, पीएमओ के सूत्रों का दावा था कि अखबार ने लेख पर खेद जताया है। अखबार अब प्रधानमंत्री का पक्ष भी छापेगा। भारत सरकार ने वाशिंगटन पोस्ट को आधारहीन बताते हुए इसे पीत पत्रकारिता बताया। जबकि, प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से कहा गया कि वाशिंगटन पोस्ट की खबर से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।इस बीच इंग्लैण्ड और अमेरिका के कुछ और पत्रों ने इसी के अनुसरण में अनेक लेख छापे हैं।अब प्रमुख अमेरिकी अखबारों ने भारत द्वारा बहु-ब्रांड खुदरा कारोबार और विमानन में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को अनुमति देने के फैसले को पिछले दो दशक का सबसे ब़डा आर्थिक सुधार बताया है!इससे पहले अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने कहा है कि आरोपों को लगातार नजरअंदाज करने और चुप रहने की वजह से पीएम मनमोहन सिंह की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है और इस बीच कैबिनेट में उनके सहयोगी अपनी जेबें भरते रहे हैं। 'इंडियाज साइलेंट प्राइम मिनिस्टर बिकम्स ए ट्रैजिक फिगर' शीर्षक वाले इस आर्टिकल में कहा गया है कि मनमोहन सिंह ने भारत को आधुनिकता, समृद्धि और शक्तिशाली बनने की राह पर ले जाने में मदद की। सिंह की सबसे बड़ी खासियत उनकी भ्रष्टाचार मुक्त छवि और आर्थिक मामलों में उनकी समझ है जो उनकी सरकार की छवि के बिल्कुल उलट है। भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार में आई मंदी और लगातार बढ़े भ्रष्टाचार की वजह से खराब होती सरकार की छवि के मद्देनजर भारत के ग्लोबल पावर बनने की बात लगातार सवालों के दायरे में है। मीडिया रपटों के मुताबिक, वॉशिंगटन पोस्ट ने पीएम पर लिखे आर्टिकल के लिए किसी किस्म की माफी मांगने से इनकार कर दिया। टीवी चैनलों में दावा किया गया था कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने अखबार से माफी मांगने कहा जिसे अखबार ने मान लिया था। अखबार के ब्यूरो चीफ सिमोन डेनयर ने माफी न मांगने की बात अपने एक ट्वीट में साफ किया।
अखबारों ने आशंका जताई कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार के लिए ये प्रस्ताव बड़े राजनेतिक जोखिम भरे हैं।
न्यूयार्क टाइम्स ने कहा कि सिंह की कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार पर भारत की नरम पड़ती अर्थव्यवस्था में तेजी लाने,रोजगार बढ़ाने व देश के बुनियादी ढांचे में सुधार का भारी दबाव है।
इन अखबारों ने देश में वालमार्ट जैसे प्रमुख विदेशी ब्रांडों को कारोबार की मंजूरी देने के निर्णय को इस दिशा में उठाया गया एक बड़ा कदम बताया है।
अमेरिका के इस प्रमुख अखबार ने कहा कि खुदरा, विमानन और प्रसारण क्षेत्र को विदेशी निवेश के लिए खोलना पिछले दो दशक के सबसे बड़े आर्थिक सुधार हैं। लेकिन ये योजनाएं विवादास्पद बनी रहेंगी, विवाद पैदा करेंगी और यह साफ नहीं है कि सरकार का ढीला-ढाला गठबंधन इन योजनाओं पर अमल करने के लिए लंबे समय तक बरकरार रहेगा या नहीं।
अखबार ने कहा 'सिंह आर्थिक प्रस्तावों के साथ बड़े राजनेतिक जोखिम ले रहे हैं जो उनके सत्तारुढ़ गठबंधन को तोड़ सकता है।'
वाशिंगटन पोस्ट ने कहा कि मनमोहन के ये सुधार 2004 से लेकर अब तक के सबसे बड़े और कड़े आर्थिक सुधार हैं जब उन्होंने प्रधानमंत्री का पद ग्रहण किया था।
अखबार के मुताबिक आर्थिक वृद्धि में नरमी, उच्च मुद्रास्फीति और एक के बाद एक घोटाले के कारण दो साल तक रक्षात्मक रवैया अख्तियार करने के बाद भारत की गठबंधन सरकार अब इस सप्ताह कड़े फैसले लेने के लिए तैयार है।
एक अन्य अखबार द वाल स्ट्रीट जर्नल ने सुधार को देश की आर्थिक नरमी की दिशा बदलने और विदेश पूंजी प्रवाह को प्रोत्साहित करने के लिए नाटकीय पहल करार दिया।
हाल के दिनों में इंटरनेट और सोशल मीडिया के दुरुपयोग को ध्यान में रखते हुए सरकार ने त्रिआयामी रणनीति तैयार किया है, जिसमें एक साइबर सर्विलांस एजेंसी की स्थापना भी किया जाना है जो इस तरह की स्थिति के बारे में पहले ही आगाह करेगी।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन की अध्यक्षता में एक बैठक में ऐसी स्थिति में अफवाहों को रोकने के लिए टेलीकॉम ऑपरेटर के लिए भी दिशा-निर्देश तैयार करने का फैसला किया गया। जैसा कि पिछले कुछ सप्ताह में इंटरनेट और सोशल मीडिया का इस्तेमाल अफवाह फैलाने के लिए किया गया, खासकर असम में झड़पों के मामले में। बैठक के ब्यौरे के मुताबिक, इसमें गृह मंत्रालय, पीएमओ, खुफिया एजेंसियों और नेशनल सिक्यूरिटी कौंसिल सेक्रेटरियट (एनएससीएस) के वरिष्ठ अधिकारियों ने हिस्सा लिया और इंटरनेट, सोशल मीडिया पर कुछ सामग्रियों को ब्लॉक करने को लेकर सरकार की कार्रवाई की वैधता, असर पर भी विमर्श किया।
बताया गया है कि इस तरह की स्थिति से निपटने के लिए भविष्य में समय रहते मुस्तैदी और सुसंगत तरीके से कदम उठाया जाना चाहिए। बैठक में प्रभावी निगरानी तंत्र के साथ ही तकनीकी रूप से सक्षम साइबर मॉनिटनिंग और सर्विलांस एजेंसी की बात कही गयी जो इंटरनेट और सोशल मीडिया के किसी भी गलत रूप से इस्तेमाल के लिए समय रहते सरकार को आगाह करेगी। इंटरनेट और सोशल मीडिया के दुरुपयोग के लिए इस तरह की स्थिति में सरकार द्वारा मंजूर एक कानूनी व्यवस्था तैयार करने का भी फैसला किया गया जो सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम में मौजूदा खामियों को भी पाटने का काम करेगी।
ऐसी स्थिति से निपटने के लिए सार्वजनिक दिशा-निर्देश और मानक प्रावधान की जरूरत महसूस की गयी है। इसमें कहा गया है कि हमारी एजेंसियों को कानूनी और वित्तीय रूप से मजबूत बनाए जाने की जरूरत है ताकि इंटरनेट संबंधी कानूनी प्रावधानों को लेकर स्पष्टीकरण हो। इस कदम से उन इंटरनेट ऑपरेटरों को भी कानून के दायरे में लाया जा सकेगा जो अपने देश के कानून लागू होने का हवाला देते हैं, जहां वे पंजीकृत हैं। बैठक के बाद खुफिया ब्यूरो, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान तथा तीन अन्य संस्थानों को वेब, सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक कंटेंट पर नजर रखने को कहा गया।
ममता सिर्फ इन मंत्रियों को वापस बुलाकर सरकार को जीवनदान दे सकती हैं। दरअसल उनकी कोशिश सरकार को खतरे में डालने से ज्यादा कांग्रेस से अलग दिखने पर है। ममता के नरम पड़ने की वजह अगले साल पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव होने हैं और ममता ये चुनाव अकेले लड़ना चाहती हैं। इसके लिए कांग्रेस से अलग दिखना जरुरी है। रिटेल में एफडीआई और डीजल के बढ़े दाम जैसे अलोकप्रिय फैसलों से ममता खुद को अलग दिखाना चाहती हैं। यही वजह है कि इन फैसलों पर हुई कैबिनेट मीटिंग में तृणमूल की तरफ से केन्द्रीय मंत्री मुकुल रॉय ने शिरकत नहीं की।
मल्टी ब्रांड रिटेल सेक्टर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति दिए जाने को लेकर हो रही आलोचना के बीच प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने पिछले एक दशक के दौरान विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक सुधारों के लाभ गिनाए हैं।
पीएमओ ने माइक्रो ब्लागिंग साइट टि्वटर पर लिखा है, 'एक दशक में 7.7 करोड़ से अधिक घर बैंकिंग सेवा से जुड़े हैं। देश में 3.4 करोड़ से अधिक परिवारों को पक्की छत मिली है। सिर्फ एक दशक में 6 करोड़ घरों को नया बिजली कनेक्शन मिला।' प्रधानमंत्री कार्यालय ने यह भी कहा है कि 3.7 करोड़ से अधिक घरों को तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) तथा पाइप के जरिये रसोई घर तक प्राकृतिक गैस (पाइप गैस) पहुंची है।
पीएमओ ने कहा, 'पिछले 10 साल में 13.7 करोड़ घरों में टेलीफोन पहुंचा।' यह दुनिया में दूसरी सबसे तेज वृद्धि है। मल्टी-ब्रांड रिटेल सेक्टर में 51 प्रतिशत एफडीआई के अलावा विमानन क्षेत्र तथा प्रसारण क्षेत्र में विदेशी निवेश की अनुमति को लेकर विभिन्न तबकों की आलोचना के बीच पीएमओ ने यह ट्वीट किया है।
12वीं पंचवर्षीय योजना की मंजूरी के लिये बुलाई गई योजना आयोग की पूर्ण बैठक का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री ने शनिवार को कहा था, 'मेरा मानना है कि हम परिस्थितियां अनुकूल बना सकते हैं जिसमें 8.2 प्रतिशत आर्थिक वृद्धि हासिल की जा सके। इसमें साहस और कुछ जोखिम होगा लेकिन हमें ध्यान रखना होगा कि इसे कार्यान्वित कर लिया जाए।'
पश्चिम बंगाल कांग्रेस ने केंद्र में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार में साझेदारी को लेकर तृणमूल की धमकियों पर रविवार को कहा कि पार्टी हालांकि तृणमूल को साथ रखना चाहती है, लेकिन यदि वह साथ छोड़ना चाहती है, तो कांग्रेस को कोई समस्या नहीं है। पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष प्रदीप भट्टाचार्य ने कहा कि हम तृणमूल को संप्रग में चाहते हैं, लेकिन यदि वह सरकार से समर्थन वापस ले लेती है तो वह ऐसा कर सकती है। इससे सरकार की स्थिरता पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
हालांकि कांग्रेस से पूरी तरह अलग होने का फैसला भी ममता नहीं ले सकती। ममता को अपनी पहली पारी में अभी साढ़े तीन साल सरकार और चलानी है। ऐसे में बंगाल के लिए अलग आर्थिक पैकेज का मोह वो नहीं छोड़ सकती। आर्थिक पैकेज बिना कांग्रेस से दूरी बनाने का सीधा मतलब है लेफ्ट का फायदा। इसलिए मंगलवार को होने वाली बैठक में ममता बीच का ही रास्ता निकालेंगी। सरकार में शामिल भी नहीं रहेंगी और ना ही सरकार के फैसलों का बोझ अपने कंधों पर लेंगी। ममता के अलावा समाजवादी पार्टी का रुख भी केंद्र सरकार पर मुलायम ही होता नजर आ रहा है। पिछले 8 सालों से सरकार को लगातार बेलआउट करती आ रही समाजवादी पार्टी सड़क पर यूपीए सरकार के फैसलों का विरोध करते हुए नजर आएगी लेकिन सरकार से दूरी बनाने का रिस्क वो भी नहीं लेना चाहती।
पार्टी ने संकेत दिया है कि वो 20 सितंबर को भारत बंद में शामिल जरूर होगी लेकिन समर्थन पर फैसले का वक्त अभी नहीं आया है। दरअसल अनुभवी मुलायम की राजनीति भी फिलहाल फंसी हुई है। मुलायम तब तक समर्थन वापिस लेना नहीं चाहते जब तक सरकार गिरने की स्थिति में ना हो। ममता के साथ के बिना ये संभव नहीं है।
यही वजह है कि मुलायम को 18 तारीख तक ममता के फैसले का इंतजार करना ही होगा। मुलायम और ममता साथ आकर समर्थन वापिस भी ले लें तो यूपीए की कुंजी मायावती के पास चली जाएगी जिसके हक में मुलायम कभी नहीं होंगे।
मायावती ने 10 अक्टूबर तक अपना फैसला सुनाने का ऐलान कर मुलायम को फंसा दिया है। वैसे भी उत्तर प्रदेश में अखिलेश सरकार को सिर्फ 6 महीने हुए हैं। ऐसे में मुलायम केन्द्र सरकार से तब तक दूरी नहीं बनाएंगे जब तक उन्हे यकीन न हो कि चुनाव जल्दी होगा और अगली सरकार में उनकी भूमिका अहम होगी। सहयोगियों के बदतले रुख ने कांग्रेस को बड़ी राहत दी है। हालांकि फिर भी पार्टी ममता को मनाने में लगी हुई है। ममता का सरकार में बने रहना यूपीए की स्थिरता के लिए अहम है।
पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष प्रदीप भट्टाचार्य का बयान तृणमूल कांग्रेस के रविवार को यह कहे जाने के बाद आया है कि यदि संप्रग सरकार 72 घंटे के भीतर बहुब्रांड रिटेल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) और डीजल मूल्य वृद्धि का फैसला वापस नहीं लेती तो उनकी पार्टी कड़े फैसले लेने को मजबूर होगी।
भट्टाचार्य ने कहा, `हम चाहते हैं कि तृणमूल मंत्रिमंडल और सरकार में बनी रहे। वे सरकार में रहते हुए विरोध कर सकते हैं और अपना प्रस्ताव रख सकते हैं। इसके लिए उन्हें सरकार छोड़ने की जरूरत नहीं है। बहुत समझाने-बुझाने के बाद भी यदि उन्होंने सरकार का साथ छोड़ने का निर्णय ले लिया है तो वे जा सकते हैं। हमें कोई समस्या नहीं है।`
उधर, नई दिल्ली में तृणमूल कांग्रेस ने रविवार को कहा कि अगर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार 72 घंटे में बहुब्रांड रिटेल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का फैसला और डीजल मूल्य वृद्धि वापस नहीं लेती तो उनकी पार्टी कड़े फैसले लेने को मजबूर होगी। तृणमूल नेता और केंद्रीय शहरी विकास राज्य मंत्री सौगत रॉय ने कहा कि पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी इस बारे में पार्टी की संसदीय दल की बैठक बुलाएंगी जिसमें अंतिम निर्णय लिया जाएगा। बनर्जी ने शुक्रवार को सरकार को इस मुद्दे पर 72 घंटे का अल्टीमेटम दिया था।
उल्लेखनीय है कि तृणमूल कांग्रेस संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की दूसरी सबसे बड़ी घटक है। तृणमूल के लोकसभा में 19 सांसद हैं और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार में उसके छह मंत्री हैं। शनिवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक रैली में प्रधानमंत्री पर अप्रत्यक्ष रूप से हमला करते हुए कहा था, `हम सरकार को गिराने के पक्ष में नहीं हैं। लेकिन उन्हें लक्ष्मण रेखा का ध्यान रखना चाहिए। हम जनविरोधी फैसले को स्वीकार नहीं करेंगे।`
तृणमूल के 19, समाजवादी पार्टी के 22 और बीएसपी के 21 सांसदों के अलावा दूसरे सहयोगियों और छोटी बड़ी पार्टियों के साथ मिलकर इस वक्त यूपीए के पास 314 सांसदों का समर्थन है। इसमें से अगर बाहर से समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी और बीएसपी को हटा दें तो सरकार के पास 271 सांसदों का समर्थन है जो मैजिक फिगर से एक कम है। ऐसे में ममता का सरकार से बाहर जाने का मतलब है सरकार का बाहरी समर्थन पर टिके रहना।
कोयला मुद्दे पर गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे के बयान की विपक्षी दलों ने जमकर आलोचना की है। विपक्षी दलों ने उन्हें याद दिलाया कि बोफोर्स कांड के बाद कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई थी और उसके बाद इसे अकेले दम पर कभी बहुमत नहीं मिला। गौरतलब है कि शिंदे ने कहा था कि बोफोर्स की तरह कोयला मुद्दे को भी लोग जल्द ही भूल जाएंगे।
भाजपा नेता बलबीर पुंज ने कहा, '1984 में इंदिरा गांधी की मौत के बाद जब चुनाव हुए तो कांग्रेस को 400 से ज्यादा सीटें मिलीं। बोफोर्स कांड के पांच वर्ष बाद कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई और इसके सीटों की संख्या आधी हो गई। यह अलग मामला है कि लोग बोफोर्स मामले को भूले हैं या नहीं लेकिन कांग्रेस भूल गई है कि बोफोर्स के बाद उसके साथ क्या हुआ। इसके बाद कांग्रेस को अपने बूते बहुमत नहीं मिला।'
भाकपा के डी. राजा ने भी सत्तारुढ़ पार्टी को याद दिलाया कि बोफोर्स के बाद वह चुनाव हार गई थी और लोगों ने तत्कालीन सरकार को यह संदेश दिया था। उन्होंने कहा, 'कांग्रेस पार्टी और शिंदे को यह याद रखना चाहिए।' जद यू अध्यक्ष शरद यादव ने शिंदे को अपना पुराना मित्र बताया लेकिन अपनी अप्रसन्नता नहीं छिपा सके। यादव ने कहा, 'वह हाल में दिल्ली आए हैं। उनका महत्व कांग्रेस पार्टी के कारण है। बेहतर है वह केवल गृह मंत्रालय के बारे में बोलें। राजनीतिक मुद्दों पर उन्हें कम बोलना चाहिए।'
पुणे में शनिवार को एक समारोह को संबोधित करते हुए शिंदे ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा था कि 'पहले बोफोर्स पर चर्चा होती थी। लोग उसे भूल गए। अब कोयले पर चर्चा हो रही है। लोग इसे भी भूल जाएंगे।'
Sunday, September 16, 2012
अब सिर्फ आर्थिक सुधारों के जरिए अमेरिकी कंपनियों के हितों की रक्षा की गरज से ही नहीं, बल्कि आतंक के खिलाफ अमेरिका के युद्ध में भारत की भागेदारी भी अमेरिका के लिए अहम!
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