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Sunday, November 25, 2012

अंबेडकर स्मारक राजनीतिक वर्चस्ववाद की दांव पर

अंबेडकर स्मारक राजनीतिक वर्चस्ववाद की दांव पर
पलाश विश्वास

इस पूरी कथा का सार यह है कि मनुस्मृति रंगभेदी व्यवस्था के वर्चस्ववाद को यथावत बनाये रखने और उसे महिमामंडित करने के लिए​ ​ मूर्तियां और स्मारक बेहद अनिवार्य हैं। व्यक्ति की मूर्ति बनाकर उसकी विचारधारा और उसके मिशन को तिलांजलि देने का श्राद्धकर्म सबसे महान कर्मकांड है, जिसकी जनमानस में अमिट छाप बन जाती है।

भारत में व्यक्ति पूजा का चलन प्रबल है। अपने अपने हित साधने के लिए व्यक्ति को प्रतीक बनाकर उसकी मूर्तियों और स्मारकों के जरिए वर्चस्ववाद की राजनीति चलती है।बाकी राजनीति से न उस व्यक्ति और न उसके विचारों और जीवनदर्शन का कोई लेना देना होता है।धर्मराष्ट्रवाद भी​ ​ मूर्तिपूजा के दम पर फलता फूलता है। धर्म को अफीम मानने वाले वामपंथी भी धर्मांधों की तरह विचारधारा और वर्गहीन शोषणविहीन ​​राष्ट्रसत्ता से मुकत समता और न्याय आधारित समाज के लक्ष्य के बजाय मूर्तियों और स्मारकों के जरिये सत्ता की राजनीति में अभ्यस्त है।​​देशी महान स्त्री पुरुषों की अपने अपने हितों के मुताबिक मूरित बनाने की आपाधापी भी हम देखते रहते हैं। समाजिक वर्चस्व के लिए यह मूर्तिपूजा बेहद काम की है।

बाल ठाकरे का स्मारक बनाए जाने पर भी विवाद हो गया है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे ने इंदु मिल परिसर में बाल ठाकरे का स्मारक बनाने की मांग की है। शिवसेना पहले ही शिवाजी पार्क में ठाकरे का स्मारक बनाने की मांग कर चुकी है। राज ठाकरे की मांग से नया विवाद खड़ा हो गया है। दरअसल महाराष्ट्र के दलित संगठनों ने इंदु मिल परिसर में डॉ. भीमराव अंबेडकर का स्मारक इंदु मिल परिसर में बनाने की मांग की थी जिसके लिए सरकार ने मौखिक अनुमति भी दे दी थी। राज ठाकरे का तर्क है कि शिवाजी पार्क स्मारक के लिए छोटा साबित होगा, वहीं शिवसेना ने पूरे मामले पर अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।

इसी बीच इंदु मिल की केंद्र से अधिग्रहित की जाने वाली जमीन पर डॉ बाबासाहेब आंबेडकर को छोड़कर किसी और का स्मारक नहीं बनेगा। दलित वोट बैंक में नाराजगी की आशंका से चिंतित महाराष्ट्र की कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने शुक्रवार को यह स्पष्ट कर दिया। मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने इस मुद्दे पर दलित नेताओं की बैठक बुलाकर यह सफाई दी है। इसके बावजूद अधिग्रहण में ढिलाई को लेकर क्षुब्ध रिपब्लिकन नेता रामदास आठवले ने बैठक का बहिष्कार किया। बैठक में आठवले के विरोधी दलित नेता आनंदराज आंबेडकर और जोगेंद्र कवाडे जैसे नेता मौजूद थे। दलित नेताओं ने इंदु मिल की जमीन पर बालासाहेब ठाकरे का स्मारक बनाने के मनसे के प्रस्ताव को 'मूखर्तापूर्ण' बताया है।

इधर, आठवले समेत दलित नेताओं से सरकार को चेतावनी दी है कि बाबासाहेब के स्मारक की जगह पर दूसरे विकल्प पर सोचा गया तो इसके परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। आठवले ने संसद घेरने और इसके बाद 6 दिसंबर को इंदु मिल में घुसकर कब्जा करने की धमकी दे डाली है।

सरकार में शामिल कांग्रेसी मंत्रियों नितिन राऊत, वर्षा गायकवाड और आरिफ नसीम खान ने मंत्रिमंडल की बैठक में इस मुद्दे पर वाद खड़ा कर दिया था। इसी के मद्देनजर मुख्यमंत्री को शुक्रवार को मामला साफ करने के लिए बैठक बुलानी पड़ी। हालांकि केंद्र सरकार से अनुमति के इंतजार के अलावा कोई विशेष जानकारी देने को नहीं थी। मौजूदा चैत्यभूमि की जमीन का भी काम 'सीआरजेड जोन' पर निर्माण की अनुमति न मिलने की वजह से थमा होने की बात उन्हें स्वीकारी पड़ी।

मुख्यमंत्री ने वैसे इस बात का ध्यान रखा कि शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे के स्मारक को लेकर कोई विवाद इस बैठक में न उठे। इंदु मिल की जमीन को लेकर उन्होंने सिर्फ बाबासाहेब आंबेडकर के स्मारक का उल्लेख करके परोक्ष रूप से साफ कर दिया कि इसके अलावा कोई दूसरा विकल्प सरकार के सामने नहीं है। चूंकि मुंबई महानगरपालिका में एक दिन पहले मनसे के साथ कांग्रेस नगरसेवकों ने भी इंदु मिल में ठाकरे के स्मारक की बात कही थी, इसलिए बीएमसी में कांग्रेस पार्टी के नेता ज्ञानराज निकम को खास तौर पर बैठक में बुलवाया गया था।

दलित नेताओं के अलावा मंत्री शिवाजीराव मोघे, जयंत पाटील, वर्षा गायकवाड, सचिन अहिर, आईएएस अफसर जयंत कुमार बांठिया, अजितकुमार जैन, मनुकुमार श्रीवास्तव व श्रीकांत सिंह मौजूद थे।


मूर्तियों और स्मारकों  पर राजनीति में कांग्रेस सबसे आगे है। राजधानी नई दिल्ली में जबकि लोगों को सर छुपाने की जगह मिलनी मुश्किल है, राजधानी की सबसे बेशकीमती जमीन जिंदा और मुर्दा मूर्तियों के नाम आबंटित हैं। समाजिक न्याय का झंडा उठाकर उत्तरप्रदेश​ ​ में बदलाव की बहार लानेवाली मायावती ने जब इसी फार्मूले को अपनाया और बजट स्मारकों और मूर्तियों पर खर्च होने लगा तो मीडिया ने खूब हल्ला मचाया, जिन्होंने देश के हर कोने पर गांधी नेहरु परिवार के नाम मूर्तियों, स्मारकों के अलावा राष्ट्रीय बजट का बड़ा हिस्सा राजनीतिक परिवारों  की मूर्तियों और स्मारकों पर खर्च करने के अलावा सामाजिक योजनाओं और विकास परियोजनाओं पर भी उन्हीं नामों की बारंबार पुनरावृत्ति ​​पर कभी आपत्ति नहीं जतायी। इस परंपरा का, और खासकर सामाजिक जीवन व धर्मआधारित व्यवस्था के रोजमर्रा के संस्कारों में ​​पहचान, अस्मिता, अधिकार और वर्चस्व के लिहाज से मूर्तियों की खास भूमिका का असर यह है कि बहिष्कृतों को इसका कोई आभास ही​​ नहीं होता कि मूर्तियों और स्मारकों से समस्याओं का समाधान कभी नहीं होता, यह महज समाधान का विभ्रम रचना करता है। इसीलिए जीते जी जब मायावती अपनी ही मूर्तियां लगा देती हैं, इसकी दृश्य अश्लीलता के  बजाय उनके समर्थक अछूत बहुजन समाज को यह आत्मगौरव की अभिव्यक्ति बखूब समझ में आती है। सवर्ण मानस के मीडिया को बहिष्कृतों के दृष्टिकोम से कोई लेना देना नहीं होता, इसलिए प्रचार इस तरह होता है​ ​ कि जैसे स्मारकों और मूर्तियों की राजनीति सिर्प मायावती ही कर रही है।​
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​इस प्रक्रिया को बंगाल में खूब समझा जा सकता है , जहां चैतन्य महाप्रभू से पहले विष्णु अजनबी थे, जहां सेन वंश के राज से पहले बौद्ध ​​पाल वंस के राज बारहवीं शताब्दी तक वर्ण व्यवस्था अनुपस्थित थी। आज भी बंगाली समाज मे राजपूत और क्षत्रिय नहीं है।उनकी जगह शूद्र जातियों कायस्थ और वैश्य ने अछूतों और दूसरी शूद्र जातियों की क्या कहें, वर्ण व्यवस्था के मुताबिक तीसरे पायदान पर अवस्थित वैश्यों तक की सामाजिक भूमिका ही खत्म कर दी ब्राह्मण राज में। पूजा को संस्कृति में बदलने बंगाल देश में सबसे आगे है। धर्म राष्ट्रवाद को भारतमाता की वंदना का कर्मकांड बनाने का श्रेय भी बंगाल को जाता है।व्यक्तियों को मूर्ति में तब्दील करके सामाजिक वर्चस्व का खेल इतना प्रबल है कि पूरा बंगाल रवींद्रमय​ ​ है, पर वंचितों के प्रति रवींद्र के दलित विमर्श की चर्चा तक नहीं होती। ​
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​दिल्ली की सत्ता जिनके कब्जे में हैं, गांधी जवाहर नेहरु की मूर्तियों और स्मारकों से जिनका सारा कारोबार चलता है, वे उनके जीवन दर्शन और विचारधारा की कितनी परवाह करते हैं?क्या महात्मा गांधी खुले बाजार की अर्थ व्यवस्था, कृषि और ग्रामीण भारत के सर्वनाश की नींव पर अंधाधुंध औद्योगीकरण शहरी करण के ​​जरिये जल जंगल जमीन के बेदखली के राष्ट्र के सैन्यीकरण, अंधी उपभोक्ता संस्कृति, पूंजी का अबाध प्रवाह और कारपोरेट राज के पक्ष में थे​?​ क्या कांग्रेस इंदिरा गांधी की समाजवादी नीतियों की वाहक है? निर्गुट विदेशनीति की निरंतरता बनाये हुए हैं? क्या गांधी नेहरु और इंदिरा रक्षा व्यय पर सबसे ज्यादा खर्च करने वाले देश के तौर पर भारत के दक्षिण एशिया के हितों के विपरीत, ​मध्यपूर्व, मध्य एशिया और दक्षिण एशिया  से भारत के रेशम यात्रा पथ के जमाने की मैत्री संबंधों की ऐसी तैसी करते हुए अमेरिका और इजराइल की अगुवाई में परमाणु गठजोड़ और आतंक के विरुद्ध अमेरिका और इजराइल के युद्ध में पार्टनर की हैसियत पसंद करते?

मूर्तियों और स्मारकों की राजनीति में ताजा विवाद महाराष्ट्र में हाल में दिवंगत बाला साहेब ठाकरे का स्मारक उस इंदु मिल परिसर में बनाने ​​की राज ठाकरे की मुहिम से जुडा़ है, जो न सिर्फ बाबासाहेब की स्मृतियों से जुड़ी है, बल्कि वहां अंबेडकर स्मारक बनाने में बाल ठाकरे की भी सहमति थी। वहां अंबेडकर स्मारक बनाने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने मिल की जमीन के अधिग्रहण की प्रक्रिया भी शुरु कर दी है। इस स्मारक के लिए आंदोलन की अगुवाई कर रही थी रामदास अठावले की रिपब्लिकन पार्टी, जिसका शिवसेना के साथ गठबंधन है। बाला साहेब इसे शिवशक्ति भीमशक्ति​ ​ युति  बतौर अपने पुत्र उद्धव ठाकरे के राजनीतिक भविष्य का चेहरा दे गये। राज ठाकरेके निशाने पर अठावले उद्धव शिवशक्ति भीम शक्ति ​​गठबंधन है। रोहिंगा मुसलमानों पर अत्याचारों के विरुद्ध मुंबई में जवाबी रैली के दौरान बांग्लादेशी घुसपैय़ियों और उत्तर भारतीय को मुंबई​ ​ से निकालने की मांग करने वाले राज ठाकरे ने तब सभी मराठा बंधुों को संबोधित करते हुए रामदास अठावले से लेकर मायावती तक को निशाना बनाते हुए इंदु मिल को अंबेडकर स्मारक बनाने पर अश्लील इशारे किये थे।

महापुरुषों की पूजा के मामले में, कर्मकांड के मामले में बंगाल और महाराष्ट्र की दशा दिशा  एक ही है। दोनों जगह महापुरुषों , महान स्त्रियों ​​और संतों के नाम जापने का कारोबार खूब फलता फूलता है। दोनों जगह पुज्य व्यक्तियों के कृतित्व व्यक्तित्व की तथ्यपरक वस्तुनिष्ठ​​ समीक्षा और मूल्यांकन के बजाय किंवदंतियां, मुहावरे और नारे गढ़कर राष्ट्रीयता का उन्माद रचने की बहुत ही उर्बर जमीन है। मराठा ​​मानुष के हक हकूक से सत्ता वर्ग के क्या हित सध सकते हैं, यह विवेचनीय है। पर मराठा मानुष के हितों के बजाय कांग्रेस ने उग्रतम हिंदू राष्ट्रवाद पर अपना वर्चस्व कायम करने के लिए ही बालासाहेब के अवसान के  अवसर को राष्ट्रीय शोक के जश्न में तब्दील कर दिया। शिवाजी पार्क में ​​सार्वजनिक अंतिम संस्कार तो हुआ ही, मुंबई को जबरन ठप करके श्रद्धांजलि की वसूली भी हुई। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और उद्धव ठाकरे​ ​ वहीं शिवाजी पार्क में ही बालासाहेब का स्मारक बनाने की तैयारी में हैं। शिव सैनिक खुलेाम धमकी देने लगे हैं कि जिन्हें शिवाजी पार्क पर बाला साहेब के स्मारक बनाने पर आपत्ति है, उन्हें मुंबई में रहने का अधिकार नहीं है। फेसबुक पर मंतव्य और लाइक की परिणति के मद्देनजर इस धमकी का आशय समझना बहुत मुश्किल नहीं है। पर उद्धव की मुश्किल यह है कि इस उद्यम का विरोध तो खुद उनके भाई राज ठाकरे कर रहे हैं, जो बालासाहेब के राजनीतिक उत्तराधिकार के मामले में उनके प्रबल प्रतिद्वंध्वी हैं। दो भाइयों के महाभारत में फंस गया है अंबेडकर स्मारक। अब मौका रामदास अठावले के लिए हैं, दूसरे अंबेडकरवादियों के लिए भी हैं, जो अंबेडकर के जाति उन्मूलन या बहिष्कृत मूक समाज के आर्थिक भौतिक सशक्तिकरण, सामाजिक बदलाव, समता और  न्याय के सिद्धांतों के विपरीत जाति  अस्मिता की राजनीति के जरिये में सत्ता में अपने अपने हिस्से की मलाई काटने या ​सत्ताविरोध में संतों महापुरुषों का नाम जापते हुए पराया माल अपना बनाने के मिशन में कारपोरेट तौर तरीके से काम करने की महारत हासिल कर चुके हैं।​


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​इस पूरी कथा का सार यह है कि मनुस्मृति रंगभेदी व्यवस्था के वर्चस्ववाद को यथावत बनाये रखने और उसे महिमामंडित करने के लिए​ ​ मूर्तियां और स्मारक बेहद अनिवार्य हैं। व्यक्ति की मूर्ति बनाकर उसकी विचारधारा और उसके मिशन को तिलांजलि देने का श्राद्धकर्म सबसे महान कर्मकांड है, जिसकी जनमानस में अमिट छाप बन जाती है।

क्या कहते हैं नेता

चैत्यभूमि के लिए तय जगह पर बालासाहेब का स्मारक बनाने का ( मनसे का ) प्रस्ताव मूर्खतापूर्ण है। डॉ आंबेडकर के स्मारक के लिए इंदु मिल की जगह पाने के लिए संसद पर मोर्चा निकाला जाएगा। 6 दिसंबर को मिल की जमीन में घुसकर रिपब्लिकन कार्यकर्ता इसे अपने कब्जे में ले लेंगे।
- रामदास आठवले
रिपब्लिकन नेता

बालासाहेब ठाकरे के स्मारक का मुद्दा शिवसेना और सरकार के बीच का मसला है। दूसरी पार्टियों को इसमें नाक घुसेड़ने की जरूरत नहीं है। वैसे भी , जो कोई बालासाहेब के स्मारक का विरोध करता है , उसे महाराष्ट्र की धरती पर रहने का अधिकार नहीं हैं।
- संजय राऊत
शिवसेना सांसद - प्रवक्ता

डॉ . आंबेडकर के स्मारक के लिए इंदु मिल की जमीन पाने के मुद्दे पर प्रधानमंत्री का रुख अनुकूल है। केंद्रीय कपड़ा मंत्री से भी चर्चा हुई है। इस पर जल्द ही निर्णय का इंतजार है। महाराष्ट्र से संबंधित केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों की मदद ली जा रही है।
- पृथ्वीराज चव्हाण
मुख्यमंत्री , महाराष्ट्र


महाराष्ट्र में इसे लेकर जो बवंडर उठा है, इन खबरों से उसका थोड़ा अंदाजा लगाया जा सकता है:

शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने दलितों से आग्रह किया है कि बाबा साहब अंबेडकर के स्मारक को बनाने के लिए इंदु मिल की जगह देने संबंधी कांग्रेस के वादों पर भरोसा नहीं करें। ठाकरे ने पार्टी के मुखपत्र सामना के संपादकीय में लिखा है कि कांग्रेस ...

15 अप्रैल 2012 – चैत्यभूमि के नजदीक इंदु मिल परिसर में रिपब्लिकन सेना के कार्यकर्ताओं ने आनंदराज अंबेडकर के नेतृत्व में प्रदर्शन किया और दलितों के शीर्ष नेता के लिए वहां वृहद स्मारक बनाने की मांग की। मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व ...

18 अगस्त 2012 – महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण के नेतृत्व में एक सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडल ने आज यहां प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात करके इंदु मिल की जगह बाबासाहब अंबेडकर स्मारक के लिए दिए जाने का अनुरोध किया. चव्हाण ने ...

18 दिसं 2011 – आरपीआई कार्यकर्ताओं ने कथित तौर पर इंदु मिल के ढांचे को ढहाने की कोशिश की। महाराष्ट्र सरकार ने मिल की चार एकड़ जमीन पर डॉ . भीमराव अंबेडकर का स्मारक बनाने के लिए स्वीकृत की है , जबकि आरपीआई की मांग है कि उन्हें स्मारक के ...

अंबेडकर स्मारक के लिए रास्ता जामकर पीएम का पुतला फूंका
मुंबई,एजेंसी : रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (आरपीआइ) के कार्यकर्ताओं ने बाबा साहेब अंबेडकर के प्रस्तावित स्मारक के लिए अतिरिक्त भूमि की मांग को लेकर गुरुवार को ईस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे जाम कर प्रधानमंत्री एवं केंद्रीय मंत्रियों का पुतला फूंका। इस दौरान उन्होंने दादर स्थित इंदु मिल पर जमकर उत्पात मचाया। इस दौरान मिल के पुराने लकड़ी के ढांचे को आग लगा दी। प्रदर्शनकारी स्मारक के निर्माण के लिए मिल की 12.5 एकड़ भूमि की मांग कर रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित अंबेडकर स्मारक के निर्माण के लिए इंदु मिल की 12.5 एकड़ के बजाय चार एकड़ भूमि ही आवंटित करने के विरोध में यह प्रदर्शन शुरू हुआ। आरपीआइ प्रमुख रामदास अठावले ने एजेंसी को बताया कि अगर स्मारक के लिए इंदु मिल की पूरी 12.5 एकड़ भूमि आवंटित नहीं की गई तो हम पुन: विरोध करेंगे। उन्होंने कहा कि यह केंद्र सरकार की भूमि है और जब तक हम इसे प्राप्त नहीं कर लेते चैन से नहीं बैठेंगे। पार्टी कार्यकर्ताओं ने अपनी मांगों के समर्थन में ईस्टर्न एक्प्रेस हाईवे पर यातायात ठप कर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एवं केंद्रीय मंत्रियों का पुतला फूंका। राज्य सभा में केंद्रीय कपड़ा राज्य मंत्री पानाबाका लक्ष्मी ने घोषणा की कि राष्ट्रीय वस्त्र निगम स्मारक के लिए चार एकड़ भूमि देगा। अंबेडकर की जयंती के अवसर पर छह दिसंबर को आरपीआई कार्यकर्ताओं ने हिंसात्मक रूख अख्तियार करते हुए पुलिस बैरिकेड तोड़ दिए और स्मारक की मांग करते हुए इंदु मिल पर कब्जा कर लिया।

31 दिसं 2011 – नयी दिल्ली, 31 दिसंबर (एजेंसी) केंद्र ने मुंबई के दादर इलाके में स्थित इंदु मिल की 12.5 एकड़ जमीन को बाबासाहब भीमराव अंबेडकर के स्मारक का निर्माण करने के लिए महाराष्ट्र सरकार को देने पर सिद्धांत रूप में आज सहमति दे दी।

2 दिन पहले – शिवसेना की मांग से अलग राज ठाकरे का कहना है कि बाला साहब ठाकरे का स्मारक शिवाजी पार्क में नहीं बल्कि इंदु मिल वाली जमीन पर बनना चाहिये. इंदु मिल वाली जमीन पर बाबासाहब भीमराव अंबेडकर का स्मारक बनाए जाने की मांग पहले से ...

11 जून 2012 – आरपीआई की मांग है कि दादर इंदु मिल की जमीन बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर की स्मारक के लिए दी जाए। अंबेडकर स्मारक के लिए RPI कार्यकर्ताओं ने रोकी ट्रेनें. अठावले के समर्थकों ने राज्यभर में इस मांग को लेकर आंदोलन छेड़ा हुआ है।

9 नवं 2012 – ... नहीं की गई है. खबरों के मुताबिक विधानसभा में विपक्ष के नेता विनोद तावडे ने डॉ. बी आर अंबेडकर स्मारक को इंदु मिल की भूमि हस्तांतरित किये जाने की मांग को लेकर प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान विरोध प्रदर्शन की धमकी दी है.

इंदूमिलमध्ये डॉ. आंबेडकरांचे स्मारक उभारण्यासाठी यापूर्वी शिवसेनाप्रमुख व उद्धव ठाकरे यांनीही सहमती दर्शवली होती. असे असताना मनसेच्या कार्यकर्त्यांनी बाळासाहेबांच्या स्मारकासाठी या जागेची मागणी करून चूक केली. शिवसैनिक व भीमसैनिकांत वाद लावण्यासाठीच ही मागणी केल्याचा आरोप रिपाइं अध्यक्ष  रामदास आठवले यांनी शुक्रवारी पत्रकार परिषदेत केला.

ते म्हणाले,  मनसे व काँग्रेस कार्यकर्त्यांनी जाणीवपूर्वक ही जागा मागून खोडसाळपणा केला आहे. या दोन्ही पक्षांतील कार्यकर्त्यांना मेंटल हॉस्पिटलमध्येच दाखल करायला हवे. बाळासाहेबांचे स्मारक व्हावे ही आमचीही इच्छा आहे पण ते े शिवतीर्थावर, ही आमची मागणी असल्याचे ते म्हणाले. 29 नोव्हेंबरला रिपाइंतर्फे संसदेवर मोर्चा काढण्यात येणार आहे. 5 डिसेंबरपर्यंत इंदू मिलच्या जागेचा प्रश्न सुटावा, मराठा समाजाला आरक्षण मिळावे, अशी आमची मागणी आहे, असा पुनरूच्चारही आठवलेंनी केला.


शिवसेनाप्रमुख बाळासाहेब ठाकरे यांचे स्मारक शिवाजी पार्कवरच उभारावे तसेच या भव्य स्मारकाची उभारणी पालिकेने करावी, अशी आग्रही मागणी सत्ताधारी शिवसेना-भाजपच्या नगरसेवकांनी केली. बाळासाहेबांना श्रद्धांजली अर्पण करण्यासाठी गुरुवारी महासभेचे आयोजन केले होते. या वेळी मुंबईतील उड्डाणपूल, विमानतळ, रस्ते, रेल्वेस्टेशन यांना बाळासाहेबांचे नाव देण्याचे प्रस्ताव समोर आले, तर  मनसे नगरसेवकांनी इंदू मिलच्या जागेवर स्मारकाची अधिकृत मागणी करत एका नव्या वादाला तोंड फोडले.

शिवडीजवळील न्हावा-शेवा पूल तसेच कांदिवली ते नरिमन पॉइंट या आठ हजार कोटी रुपये   खर्चून बांधण्यात येणा-या किनारी महामार्गास बाळासाहेबांचे नावे द्यावे, अशी मागणी शिवसेनेचे सभागृह नेते यशोधर फणसे यांनी केली, तर भाजपचे गटनेते दिलीप पटेल यांनी नवी मुंबईत उभारण्यात येत असलेल्या विमानतळास नाव देण्याची मागणी मांडली. विधी समितीचे सभापती राजू पेडणेकर यांनी शालेय अभ्यासक्रमात बाळासाहेबांचा धडा समाविष्ट करण्याची कल्पना मांडली. मनसेचे दादर येथील नगरसेवक संदीप देशपांडे यांनी इंदू मिलच्या जागेवर बाळासाहेब ठाकरे यांचे स्मारक उभारण्याची मागणी केली. पालिका सभागृहात मनसे नगरसेवकाने मागणी केल्याने इंदू मिलवरील बाबासाहेब आंबेडकरांच्या स्मारकाला मनसेचा असणारा विरोध पहिल्यांदाच प्रकाशात आला आहे.

इंदू मिल जमीन प्रकरणी राजकारण करू नये!

मुंबई। दि. २३ (प्रतिनिधी)
भारतरत्न डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर यांच्या राष्ट्रीय स्मारकासाठी इंदू मिलच्या संपूर्ण जमिनीची मागणी सर्वप्रथम सामाजिक समता मंचच्या वतीने केल्यानंतर या मागणीची चेष्टा करणार्‍यांना मुख्यमंत्री आता बैठकांना बोलावून राजकारण करीत असल्याचा आरोप या मंचचे अध्यक्ष विजय कांबळे यांनी केला आहे.

मुंबई महानगरपालिका आयुक्त सीताराम कुंटे यांनी इंदू मिलच्या जमीन प्रश्नी सह्याद्री अतिथीगृहावर शुक्रवारी आयोजित केलेल्या बैठकीला मुख्यमंत्र्यांनी मुंबईतील खासदार, आमदार, मंत्री व रिपब्लिकन सेनेचे अध्यक्ष आनंदराज आंबेडकर, रिपाइं नेते रामदास आठवले यांना निमंत्रित केले होते. मात्र, कांबळे यांना निमंत्रित करण्यात आले नाही, त्या पार्श्‍वभूमीवर कांबळे यांनी संतप्त भावना व्यक्त केल्या.

इंदू मिलच्या जमिनीवर डॉ. आंबेडकरांचे स्मारक करावे, या मागणीसाठी मंचच्या वतीने १९९८पासून महाराष्ट्रात ठिकठिकाणी आंदोलने करण्यात आली. मात्र, ४ डिसेंबर २0११ रोजी रिपब्लिकन सेनेचे अध्यक्ष आनंदराज यांनी मिलमध्ये घुसखोरी केल्यानंतर या आंदोलनाला भडक स्वरूप देण्यात आले. या आंदोलनाआधी आनंदराज आंबेडकर यांना कोणीही ओळखत नव्हते, अशा नेत्यांना आता इंदू मिलचा प्रश्न निर्णायक टप्प्यात असताना मुख्यमंत्री बैठकांना का बोलवत आहेत, असा सवाल कांबळे यांनी उपस्थित केला आहे.

मुंबई: बाळासाहेबांच्या निधनाने अवघा महाराष्ट्र पोरका झाला आहे. मात्र आता बाळासाहेबांच्या स्मारकाच्या मागणीवरून राजकीय पक्षात चढाओढ निर्माण झाली आहे. शिवसेनाप्रमुख बाळासाहेब ठाकरे यांच्या स्मारकाबाबत राजकीय वर्तुळ चांगलंच तापू लागलं आहे. इंदू मिलच्या जागेवर बाबासाहेबांच स्मारक उभारावं अशा मागणीने रिपब्लिकन नेते आक्रमक झालेत.

मनसेच्या संदीप देशपांडे यांनी बाळासाहेबांचे स्मारक इंदू मिल मध्ये उभारावा अशी मागणी केली. याला उत्तर देत रामदास आठवले यांनी या जागेवर बाबासाहेब आंबेडकर यांच्या स्मारक उभारण्यासाठी सरकारने परवानगी दिली असल्याचा दावा करत, मनसेच्या नगरसेवकांचे डोकं फिरलं असून संदीप देशपांडे यांना पक्षातून हाकलण्याची मागणी राज ठाकरेंकडे करणार असल्याच त्यांनी सांगितलं. तसंच २९ नोव्हेंबर रोजी दिल्ली येथे संसदेवर भव्य मोर्चा काढणार असल्याचा इशारा रामदास आठवले यांनी दिला. मात्र मोर्चानंतरही ५ डिसेंबरपर्यंत इंदू मिलचा ताबा न मिळाल्यास ६ डिसेंबर रोजी इंदू मिलचा ताबा हजारो कार्यकर्ते घेतील. कायदा आणि सुव्यवस्थेचा प्रश्न निर्माण झाल्यास त्याला सर्वस्वी सरकार जबाबदार राहील असेही त्यांनी यावेळी स्पष्ट केले.
तर बाळासाहेबांच्या स्मारकाबाबत शिवसेना आक्रमक होत, 'बाळासाहेबांच्या स्मारकावर कोणत्याही पक्षाने बोलू नये, त्याचा निर्णय सरकार आणि शिवसैनिक घेतील त्यामुळे यात कोणीही लुडबुड करू नये', असा संजय राऊत इशारा दिला आहे. 'बाळासाहेबांच्या स्मारकाला विरोध करणाऱ्यांना महाराष्ट्रात राहण्याचा अधिकार नाही', असेही ते म्हणाले. दुसरीकडे राज्य सरकारने याबाबत सावध भूमिका घेतली आहे. बाळासाहेबांच्या स्मारकावर प्रस्ताव आल्यास विचार करू मात्र कोणत्याही महापुरुषाचा अपमान होईल असा वाद करू नये, असं गृहमंत्री आर.आर. पाटील म्हणाले.

बाळासाहेबांच स्मारक हा भावनिक मुद्दा असल्याने यावर होणाऱ्या वादंगावर आता राज ठाकरे आणि उद्धव ठाकरे काय भूमिका घेतात हे पाहण गरजेचे आहे.

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