इसमे भारत सरकार ने कहा है कि हम देश के सभी परिवारों को इसमे शामिल इसलिए नहीं कर रहे हैं क्योंकि हम इतना अनाज खरीद नहीं पायेंगे. उन्होंने यह नहीं कहा कि बचे हुए ३३ फ़ीसदी लोग भुखमरी से मुक्त हैं इसलिए हम उन्हे इस अधिकार में शामिल नहीं कर रहे हैं.
इसमे भारत सरकार ने कहा है कि हमने इस अध्यादेश में खाने के तेल और दालों को इसलिए शामिल नहीं किया है क्योंकि हम इन दोनों चीज़ों के मामले में आत्मनिर्भर नहीं हैं और आयात पर निर्भर हैं. मेरा सवाल यदि इनके आयात से भुगतान संतुलन बिगड़ता है तो भारत की सरकार ने किसानों को संरक्षण देकर खाने के तेल और दालों के उत्पादन को उतना क्यों नहीं बढ़ाया जितना गेंहूँ और चावल का बढ़वाया है.
President of India promulgates the National Food Security Ordinance 2013 |
The President of India, Shri Pranab Mukherjee promulgated the National Food Security Ordinance, 2013 today (July 5, 2013). Rashtrapati Bhawan July 05, 2013 SC/LM (Release ID :97046) |
The National Food Security Ordinance – Highlights |
The National Food Security Ordinance is a historic initiative for ensuring food and nutritional security to the people. It gives right to the people to receive adequate quantity of foodgrains at affordable prices. The Food Security Bill has special focus on the needs of poorest of the poor, women and children. In case of non-supply of foodgrains now people will get Food Security Allowance. The bill provides for grievance redressal mechanism and penalty for non compliance by public servant or authority. Other features of the Ordinance are as follows.
Coverage of two thirds population to get highly susidized foodgrains
Upto 75% of the rural population and upto 50% of the urban population will have uniform entitlement of 5 kg foodgrains per month at highly subsidized prices of Rs. 3, Rs. 2, Rs. 1 per kg. for rice, wheat, coarse grains respectively .It will entitle about two thirds of our 1.2 billion population to subsidised foodgrainsunder the Targeted Public Distribution System (TPDS.
Poorest of the poor continue to get 35 kg per household The poorest of poor households would continue to receive 35 Kgfoodgrains per household per month under Antyodaya Anna Yajna at subsidized prices of Rs 3, Rs 2 and Rs 1. It is also proposed to protect the existing allocation of foodgrains to the States/Uts, subject to it being restricted to average annualofftake during last three years.
Eligible households to be identified by the States
Corresponding to the coverage of 75% rural and 50 % of urban population at all India level, State wise coverage will be determined by the Central Government. The work of identification of eligible households is left to the States/UTs, which may frame their own criteria or use Social Economic and Caste Census data, if they so desire. Special focus on nutritional support to women and children There is a special focus on nutritional support to women and children. Pregnant women and lactating mothers, besides being entitled to nutritious meals as per the prescribed nutritional norms will also receive maternity benefit of at least of Rs. 6000/-. Children in the age group of 6 months to 14 years will be entitled to take home ration or hot cooked food as per prescribed nutritional norms. Food Security Allowance in case of non supply of foodgrains The Central Government will provide funds to States/UTs in case of short supply of food grains from Central pool, In case of non-supply of food grains or meals to entitled persons, the concerned State/UT Governments will be required to provide such food security allowance as may be prescribed by the Central Government to the beneficiaries. States to get assistance for intra-State transportation and handling offoodgrains In order to address the concern of the States regarding additional financial burden, Central Government will provide assistance to the States towards cost of intra-State transportation, handling of foodgrains and FPS dealers' margin, for which norms will be developed. This will ensure timely transportation and efficient handling of foodgrains. Reforms for doorstep delivery of foodgrains The Bill also contains provisions for reforms in PDS through doorstep delivery of foodgrains, application of information and communication technology (ICT) including end to end computerisation, leveraging 'Aadhaar' for unique identification of beneficiaries, diversification of commodities under TPDS etc for effective implementation of the Food Security Act. Some of these reforms are already underway. Women Empowerment-- Eldest women will be Head of the household Eldest woman of eighteen years of age or above will be head of the household for issue of ration card, and if not available, the eldest male member is to be the head of the household. Grievance redressal mechanism at district level There will be state and district level redressal mechanism with designated officers. The States will be allowed to use the existing machinery for District Grievance Redressal Officer (DGRO), State Food Commission, if they so desire, to save expenditure on establishment of new redressal set up. Redressal mechanism may also include call centers, helpline etc. Social audits and vigilance committees to ensure transparency and accountability Provisions have also been made for disclosure of records relating to PDS, social audits and setting up of Vigilance Committees in order to ensure transparency and accountability.
Penalty for non compliance The Bill provides for penalty to be imposed on public servants or authority, if found guilty of failing to comply with the relief recommended by the District Grievance Redressal Officer (DGRO).
Expenditure At the proposed coverage of entitlement, total estimated annual foodgrainsrequirement is 612.3 lakh tons and corresponding estimated food subsidy for 2013-14 costs is about Rs.1,24,724 crore.
***** NCJ/RV (Release ID :97050) |
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अध्यादेश से संबंधित प्रश्नोत्तरी | ||||
1. अध्यादेश के अनुसार, टीपीडीएस के अंतर्गत केवल 67प्रतिशत जनसंख्या को इसको लाभ मिलेगा. इसका लाभ सभी लोगों को क्यों नहीं दिया जा सकता ? अध्यादेश में प्रस्तावित पात्रता हाल ही में हुए खाद्यान्नों के उत्पादन और इसकी सरकारी खऱीद पर आधारित है। वर्ष 2007-08 से2011-12 तक औसतन प्रतिवर्ष लगभग 60.24 मिलियन टन खाद्यान्न की सरकारी खरीद की गई है। इसकी तुलना में टीपीडीएस के अंतर्गत हर व्यक्ति को प्रति माह 5 किलो खाद्यान्न प्रदान करने के लिए 72.6मिलियन टन खाद्यान्न की आवश्यकता होगी। इसके अलावा ओडब्ल्यूएस के लिए भी अतिरिक्त आवश्यकता है। खाद्यान्नों के वर्तमान उत्पादन और सरकारी खऱीद को ध्यान में रखते हुए खाद्यान्नों की इस मांग को पूरा कर पाना संभव नहीं होगा।
2. गरीबी रेखा से नीचे वाले परिवारों को 5 किलो अनाज देने से उनको वर्तमान में टीपीडीएस के अंतर्गत मिलने वाले अनाज में कटौती होगी. इससे उनको नुकसान नहीं होगा? वर्तमान में टीपीडीएस के अंतर्गत गरीबी रेखा से नीचे के 6.52करोड़ परिवारों को अनाज दिया जाता है, जिसमें 2.50 करोड़ परिवार अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई) भी शामिल है। इसके लिए भारत के महापंजीयक के 1999-2000 के लिए जनसंख्या के अनुमानों और योजना आयोग के वर्ष 1993-94 के आधार पर निर्धन लोगों के 36प्रतिशत होने को आधार माना गया है। शेष परिवारों को गरीबी रेखा से ऊपर (एपीएल) के अंतर्गत अनाज दिया जाता है। एएवाई और बीपीएल परिवारों को प्रति माह 35 किलो अनाज दिया जाता है। एपीएल परिवारों को अनाज इसकी उपलब्धता के आधार पर दिया जाता है। केंद्रीय वितरण मूल्य (सीआईपी) गेहूं/चावल प्रति किलो एएवाई को रूपए 2/3, बीपीएल परिवारों को 4.15/5.65 रूपए और एपीएल परिवारों को 6.10/8.30 रूपए की दर से दिया जाता है।
यहां यह उल्लेखनीय है कि वर्तमान में कुल प्रस्तावित परिवारों में से एक-चौथाई को ही 35 किलो प्रति परिवार के आधार पर नियत खाद्यान्न दिया जा रहा है। वहीं एनएफएसबी में अखिल भारतीय स्तर पर कुल जनसंख्या के 67 फीसदी हिस्से को 5 किलो खाद्यान्न देने का प्रस्ताव किया गया है। इसमें एएवाई परिवारों को, जो निर्धन में निधर्नतम हैं, को 35 किलो प्रति परिवार प्रति माह खाद्यान्न सुनिश्चित किया गया है। इसके साथ ही टीपीडीएस में अध्यादेश के तहत सभी परिवारों को वर्तमान के एएवाई मूल्यों के समान गेंहूं 3 रूपए और चावल 2 रूपए की दर से दिया जाएगा। परिणाम स्वरूप वर्तमान में बीपीएल श्रेणी में आने वाले परिवार जिन्हें खाद्यान्न की मात्रा कम मिलेगी, उन्हें सब्सिडी दरों पर अनाज मिलने का फायदा मिलेगा।
3. सभी को खाद्यान्न देने की योजना को केवल अनाजों तक ही सीमित क्यों रखा गया है और इसमें दालों और खाद्य तेलों आदि को शामिल क्यों नहीं किया गया है? दालों और खाद्य तेलों की घरेलू मांगों को पूरा करने के लिए हम मुख्यत: आयात पर निर्भर हैं। इसके साथ ही दालों और तिलहन की खऱीद के लिए आधारभूत ढांचा और संचालन प्रक्रिया भी मजबूत नहीं है। घरेलू स्तर पर इसकी उपलब्धता के सुनिश्चित न होने और खऱीद प्रकिया के कमजोर होने के कारण इनकी कानूनी रूप से आपूर्ति कर पाना संभव नहीं होगा। हांलाकि सरकार सस्ती दरों पर लक्षित लोगों को दाल और खाद्य तेल देने की योजना को चला रही है, साथ ही साथ दालों और तिलहन की खरीद को बढाने के प्रयास भी किए जा रहे हैं।
4. ऐसा प्रतीत होता है कि अध्यादेश में केवल खाद्यान्नों की आवश्यकता पूरी करने पर ध्यान केद्रिंत किया है और इसमें पोषकता पर कम ध्यान दिया है। इसलिए इसे खाद्य सुरक्षा प्रदान के लिए व्यापक हल कैसे कहा जा सकता है? कुपोषण एक गंभीर समस्या है जिसका पूरा देश सामना कर रहा है। लेकिन यह कहना गलत होगा कि अध्यादेश में इसे पूरी तरह से नकारा गया है। इसमें गर्भवती महिलाओं और बच्चों के बीच कुपोषण की समस्या पर ध्यान केंद्रित करना जरूरी है जो हमारी इस समस्या के समाधान की रणनीति का केंद्रबिंदु होगा। महिलाओं और बच्चों को पोषण प्रदान करने पर विधेयक में खास ध्यान दिया गया है। गर्भवती महिलाओं और दूध पिलाने वाली माताओं को निर्धारित पोषकता मानकों के तहत पौष्टिक भोजन का अधिकार देने के साथ-साथ कम से कम 6000 रूपए के मातृत्व लाभ भी मिलेंगे। 6 माह से 6 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों को घर में भोजन ले जाने या निर्धारित पोषकता मानकों के तहत गर्म पका हुआ भोजन पाने का अधिकार होगा। इसी आयु वर्ग के कुपोषण के शिकार बच्चों के लिए उच्च पोषकता मानक निर्धारित किए गए हैं। निचली और उच्च प्राथमिक कक्षाओं के बच्चों को निर्धारित पोषकता मानकों के तहत विद्यालयों में पोषक आहार दिया जाएगा।
5. क्या सरकार के पास विधेयक के नियमों के अंतर्गत पर्याप्त खाद्यान्न है? प्रति वर्ष अन्य लाभकारी योजनाओं के लिए खाद्यान्न की कुल मिलाकर 612.3 लाख टन खाद्यान्न की आवश्यकता होगी। खाद्यान्नों की खऱीद (गेंहू और चावल) जिसमें कुल मात्रा और उत्पादन का प्रतिशत शामिल है उसमें हाल के हाल के वर्षों में प्रगति हुई है। औसतन खाद्यान्न की वार्षिक खऱीद जो वर्ष 2000-2001 से 2006-07के दौरान कुल औसतन वार्षिक उत्पादन के 24.30 प्रतिशत के आधार पर 382.2 लाख टन थी वो वर्ष 2011-12 के दौरान औसतन वार्षिक उत्पादन 33.24 प्रतिशत होकर 602.4 लाख टन पर पहुंच गई । इसलिए वर्तमान में खाद्यान्नों के उत्पादन और इसकी खरीद के आधार पर आवश्यकता पूरी की जा सकेगी। यहां तक कि वर्ष 2012-13 के दौरान खाद्यान्न के उत्पादन में हल्की कमी होने के अनुमान के बावजूद विधेयक की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकेगा।
6. ऐसा कहा जा रहा है कि इस विधेयक से किसानों, विशेष तौर पर छोटे और मझौले किसानों की खेती करने में कम रूचि कम होगी, क्योंकि उन्हें अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सस्ती दरों पर अनाज का आश्वासन दिया जाएगा। इस संबध में आपका क्या कहना है? खाद्यान्नों का उत्पादन किसानों के लिए आजीविका का एक माध्यम है जिसके लिए उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाता है। न्यूनतम समर्थन मूल्य की पंहुच हर वर्ष बढ़ रही है और विधेयक के लागू होने के फलस्वरूप आवश्यकता बढने के कारण ज्यादा से ज्यादा किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य के दायरे में आएंगे। इसलिए किसानों को हतोत्साहित करने के बजाय विधेयक किसानों को अधिक उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करेगा। इसके अतिरिक्त सस्ती दरों पर खाद्यान्न मिलने से छोटे किसानों की सीमित आमदनी पर बोझ कम होगा और वो बचाई हुई रकम को अन्य आवश्यकताओं पर खर्च कर अपने जीवनस्तर में सुधार कर सकेंगे।
7. राज्य खाद्य सुरक्षा विधेयक के कारण उन पर पड़ने वाले वित्तीय बोझ को लेकर शिकायत कर रहे हैं? केंद्र सरकार इस बारे में राज्य सरकारों को अपने साथ कैसे जोडे़गी, क्योंकि राज्यों को ही इस विधेयक को लागू करना है? विधेयक का मुख्य वित्तीय प्रभाव खाद्य सब्सिडी पर पडेगा। प्रस्तावित क्षेत्र और पात्रता के अधिकार पर सालाना 612.3 लाख टन खाद्या्न्न की आवश्यकता होने और वर्ष 2013-14 आधार पर खाद्य सब्सिडी की लागत 1,24,747 करोड़ रूपए होने का अनुमान है। वर्तमान की टीडीपीएस और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के लिए खाद्य सब्सिडी से तुलना करने पर सालाना 23,800 करोड़ रूपए अधिक की आवश्यकता होगी। इस अतिरिक्त आवश्यकता को केंद्रीय सरकार पूर्ण रूप से वहन करेगी। राज्यों ने खुद पर पडने वाले बोझ विशेष तौर पर शिकायतें दूर करने की प्रणाली, खाद्यान्नों की ढुलाई पर होने वाले व्यय और उचित मूल्य की दुकानों के डीलरों को दी जाने वाली अतिरिक्त राशि आदि मुद्दों पर अपनी शंकायें व्यक्त की है। ये शंकायें दिसंबर 2011 में लोकसभा में पेश किए गए मूल विधेयक के प्रावधानों पर आधारित हैं। हांलाकि स्थायी समिति की सिफारिशों और राज्य सरकारों के विचारों को ध्यान में रखने के बाद विधेयक में अब केंद्र सरकार दवारा राज्यों को एक राज्य के भीतर खाद्यान्न की ढुलाई में होने वाले व्यय में सहायता देने, इसको संभालने और एफपीएस डीलरों को दिए जाने वाली अतिरिक्त राशि के संबध में नियमों के अनुसार देने के नियम निर्धारित किए गए हैं। इसके अतिरिक्त शिकायतें दूर करने के संबध में विधेयक में इस बारे में अलग से प्रणाली बनाने या वर्तमान में लागू प्रणाली को जारी करने के विकल्प राज्य सरकारों को दिए गए हैं।
8. एक केंद्रीय कानून में, राज्यों के उपर खाद्य सुरक्षा भत्ता देने की जिम्मेदारी डालना कितना जायज है? यह कहना गलत है कि यह जिम्मेदारी सिर्फ राज्य सरकारों पर डाली गई है। इस संबध में राज्यों पर जिम्मेदारी केवल केंद्र सरकार द्वारा दिए गए खाद्यान्न या भोजन का वितरण ना कर पाने की स्थिति में ही होगी। विधेयक के खंड 22 के अंतर्गत केंद्रीय भाग से राज्यों को खाद्यान्न की कम आपूर्ति होने पर केंद्र सरकार विधेयक के प्रावधानों के पूरा करने के लिए राज्य सरकारों को आर्थिक सहायता देगी। हांलाकि खंड 8 के तहत लाभार्थियों को खाद्य सुरक्षा भत्ता देने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होगी, क्योंकि खाद्यान्न और भोजन के वितरण की जिम्मेदारी उनकी है।
9. इस विधेयक को राज्य सरकारों द्ववारा कब लागू किया जाएगा? विधेयक को कार्यान्वित करने से पहले कुछ प्रारंभिक कार्य किया जाना आवश्यक है। उदाहरण के लिए नियमावली के तहत टीडीपीएस के अंतर्गत प्रत्येक राज्य और संघ शासित प्रदेशों में घरों की वास्तविक पहचान की जानी है। इसलिए राज्य सरकारों को इनकी पहचान के लिए उचित मानक बनाने और उसके बाद पहचान का वास्तविक कार्य करने की आवश्यकता है। विधेयक के तहत लाभार्थी घरों की पहचान पूरी होने के बाद ही खाद्यन्न का आवंटन और वितरण किया जा सकता है। इसलिए विधेयक में पहचान के कार्य के प्रारंभ होने के बाद इसे 180 दिनों में पूरा किए जाने का प्रावधान किया गया है। यह अवधि हर राज्य में अलग-अलग हो सकती है और यदि कोई राज्य इसे पहले लागू करना चाहता है तो उसे इसके लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। विधेयक को जारी करने के लिए इसमें वर्तमान में राज्य में लागू योजना और दिशानिर्देश आदि के जारी रहने के अस्थायी प्रावधान किए गए हैं।
10. कोई भी विधेयक तभी सफल हो सकता है जब इसमें शिकायतें दूर करने के लिए स्वतंत्र शिकायत निवारण दूर करने की व्यवस्था हो। विधेयक में इस संबध में क्या प्रावधान किए गए हैं। विधेयक में शिकायतें दूर करने के लिए जिला और राज्य स्तर पर एक प्रभावी और स्वतंत्र शिकायत निवारण प्रणाली का प्रावधान किया गया है। इसमें हर जिले के लिए पात्रता लागू करने और शिकायतें की जांच करने और दूर करने के लिए जिला शिकायत निवारण अधिकारी शामिल है। इसके अतिरिक्त पात्रता के उल्लंघन होने संबधी शिकायत प्राप्त होने या स्वंय से जांच करने के लिए राज्य खाद्य आयोग की स्थापना करने का भी प्रावधान है। आयोग डीजीआरओ के आदेशों के विरूद्ध सुनवाई करेगा और उसे दंड लगाने की शक्ति भी दी जाएगी। कोई भी शिकायतकर्ता इनका रूख कर सकता है।
11. घरों की पहचान किए जाने का कार्य राज्यों से कराने का प्रावधान है। हर राज्य अलग अलग मानदंड अपनाएगा और इससे एक राज्य में सामाजिक-आर्थिक स्थिति के आधार पर लाभ पाने वाले परिवार को दूसरे राज्य में इसका लाभ नहीं मिलेगा, इसे कैसे रोका जाएगा लोकसभा में दिसंबर 2011 में विधेयक को प्रस्तुत करते समय पहचान के लिए दिशा-निर्देश राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित करने का प्रावधान किया गया था। राज्य सरकारों ने इस संबध में विचार-विमर्श के दौरान पहचान के मानदंड निर्धारित करने में अधिक भूमिका होने संबधी विचार प्रस्तुत किया था। इस संबध में स्थायी समिति ने भी राज्य सरकारों से परामर्श के बाद मानदंड निर्धारित करने की सिफारिश की थी। इन विचारों और सिफारिशों पर ध्यानपूर्वक विचार किया। सामाजिक-आर्थिक कारणों के संबध में अलग-अलग राज्यों में अंतर होने के कारण इस संबध में केंद्र सरकार द्वारा मानदंड बनाए के उचित न होने और इसकी आलोचना होने की शंका थी। इसके साथ ही मानदंड के मुददे पर राज्य सरकारो के साथ आमसहमति बनाना भी कठिन था। इसलिए पहचान का कार्य अब राज्य सरकारों पर छोड़ दिया है जो उसके लिए खुद के मानदंड बनाएंगे।
वि.कासोटिया/सुधीर/जुयाल/सुजीत-3099
(Release ID 23071)
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