अमर्त्य की टिप्पणी से खाद्य सुरक्षा योजना के औचित्य पर सवाल और बंगाल के इंकार को वैधता
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
विश्वविख्यात अर्थशास्त्री नोबेल विजयी डा.अमर्त्य सेन ने खाद्य सुरक्षा अध्यादेश की आलोचना की है। उन्होंने खाद्य सुरक्षा विधेयक पेश करने की पद्धति पर भी आपत्ति जतायी है।प्रेसीडेंसी कालेज में छात्रों के सवाल के जवाब में डा. सेन ने कहा कि अफसोस इसका है कि संसद में विधेयक पेश करने के बजाय खाद्य सुरक्षा योजना लागू करने के लिए संसद को बाई पास करके अध्यादेश जारी कर दिया गया।खाद्य सुरक्षा कानून को लोकप्रिय योजना माना जा रहा है और कांग्रेस इसे 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर पासा पलटने वाली योजना मान रही है।
हालांकि उन्होने इस योजना के महत्व को भी रेखांकित किया और कहा कि यह भी ध्यान रखना होगा कि शिक्षा पर खर्च में कटौती न की जाये।उन्होंने कहा कि तकनीकी तामझाम केदायरे से बाहर निकलकर कुपोषण रोकने का इंतजाम पहले होना चाहिए। खाद्य योजना के तहत दिये जाने वाले भोजन के पुष्टिगगुण पर भी उन्होंने ध्यान दिये जाने की जरुरत बतायी।उन्होंने बिजली के लिए दी जाने वाली सब्सिडी का ख्याल रखने की भी जरुरत बतायी।
डा. सेन प्रेसीडेंसी कालेज में पूर्व अध्यापक दीपक बंद्योपाद्याय स्मारक फर्स्ट थिंग्स फर्स्ट शीर्षक भाषण दे रहे थे।
मालूम हो कि बंगाल सरकार ने खाद्य सुरक्षा योजना का यह कहकर लागू करने से इंकार कर दिया कि मां माटी मानुष की सरकार कर्ज लेकर भोजन नहीं दे सकती। जबकि कांग्रेसी राज्य सरकारें राजीव गांधी की जयंती पर ही यह योजना लागू करने की तैयारी में हैं।
डा. सेन के इस मंतव्य से राज्य सरकार की प्रतिक्रिया को वैधता मिलती है। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने आज कहा कि उनकी सरकार 20 अगस्त से खाद्य सुरक्षा योजना शुरू करने के लिये तैयारी कर रही है। 20 अगस्त पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की जयंती है। एक दिन पहले ही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कांग्रेस शासित राज्यों से खाद्य सुरक्षा कानून क्रियान्वित करने को कहा था। दिल्ली में नवंबर में विधानसभा चुनाव होने है। इसको ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री ने पिछले सप्ताह यह घोषणा की थी कि दिल्ली योजना शुरू करने वाला देश का पहला राज्य होगा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपने सभी मुख्यमंत्रियों से कहा है कि वो खाद्य सुरक्षा योजना को जल्द से जल्द लागू करने के लिए जी-जान से जुट जाएं!
सिर्फ बंगाल की अर्थव्यवस्था ही नहीं, भारत की अर्थव्यवस्था की हालत संगीन है। वित्तीय घाटा बढ़ता जा रहा है। मंहगाई पर नियंत्रण नहीं है।एक तिहाई जनसंख्या की खाद्य सुरक्षा के लिए राजीव गांधी की ही जयंती पर यह योजना लागू करने के लिए अध्यादेश जारी करने की कार्रवाई की डा. अमर्त्य सेन जैसे अर्थशास्त्री की आलोचना के मद्देनजर इस योजना का सच उजागर होता है। डा. सेन ने इसीके साथ कुपोषण और पुष्टि के प्रसंग रखकर इस टोजना के सच को बेपर्दा कर दिया है।इस बीच, वित्त मंत्री पलानीअप्पन चिदम्बरम विदेशी कारोबारों और सरकारी अगुवाओं को कह रहे हैं कि दिल्ली अपने वित्त घाटे (31 मार्च को खत्म हुए वित्त वर्ष में जीडीपी का 5.2 फीसदी) को कम करने के प्रति गंभीर है।
सरकार की योजना इस नए कानून को इन गर्मियों के उत्तरार्ध में संसद का एक विशेष सत्र बुलाकर पारित करने की है। इस कानून के तहत भारत की दो-तिहाई आबादी अथवा करीब 800 मिलियन लोगों को पांच किलो चावल, गेहूं और दूसरे अनाज भारी सब्सिडी पर बेचे जाएगें। अनाजों के दाम एक से तीन रूपए प्रति किलो के बीच होगें, जो मौजूदा बाज़ारीय दामों से 90 फीसदी तक कम है। एक विशाल सरकारी कंपनी, भारतीय खाद्य निगम, अनाज का वितरण तथाकथित "राशन की दुकानों" के व्यापक राष्ट्रव्यापी नेटवर्क के ज़रिए करेगी।
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