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Friday, July 26, 2013

अब इंतजार कीजिये, इस बरसात या उस बरसात पलता परियोजना के अवसान का और सोचते रहें कि पीने को पानी कहां से मिलेगा!

अब इंतजार कीजिये, इस बरसात या उस बरसात पलता परियोजना के अवसान का और सोचते रहें कि पीने को पानी कहां से मिलेगा!


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


महानगर कोलकाता में सत्ता बदल जाने के बावजूद नागरिक सेवाएं बेहतर होने  के लक्षण नहीं हैं। मौजूद हालात  जो बन रहे हैं और बने हुए हैं उससे परिस्थितयां बेलगाम हो जाने की ही आशंका है।पूर्व कोलकाता और पश्चिम कोलकाता ही नहीं, बारासात कल्याणी से लेकर बारुईपुर सोनारपुर तक अब महानगर है। भले ही वह कोलकाता नगर निगम से बाहर हो। इस व्यापक इलाके में बढ़ती हुई आबादी और महानगर  के सीमित दायरे में अंधाधुध बहुमंजिली निर्माण से सारी व्यवस्था टूटने के कगार पर है। आर्थिक बदहाली की वजह से नागरिक सेवाएं सुधारने के लिए नया निवेश असंभव  है। जलनिकासी अब एक बेहद असंभव समस्या हो गयी है। अब पेयजल की बारी है। कोलकाता और हावड़ा नगरनिगम इलाकों के अलावा उपनगरों में भी गर्मी हो या बरसात पेयजल संकट बना रहता है और नागरिक त्राहि त्राहि करते हैं।कोलकाता और उपनगरों में भी जलापूर्ति का सारा दारोमदार शताब्दी प्राचीन इंदिरा गांधी  पलता जल परियोजना पर निर्भर है। अब बंगाल में नदी प्रबंधन की बदहाल तस्वीर सुंदरवन और उत्तर बंगाल से कोलकाता तक स्थानांतरित होने लगी है। हुगली नदी के कगार कोलकाता में लगातार कट रहे हैं और जिसकी शिकार हो रही है पलता जलपरियोजना। कोलकाता नगरनिगम के इंजीनियरों के मुताबिक इसका कोई पुख्ता इंतजाम नहीं हो पाया तो पलता जलपरियोजना के गंगा गर्भ में समा जाने की आशंका है। पुख्ता इंतजाम राज्यसरकार कर नहीं सकती। इसके लिए केंद्रीय मदद की दरकार है। बंगाल में केंद्र में काबिज सत्तादल के नेताओं, मंत्रियों के राज्य नेतृत्व से जो मधुर संबंध हैं, उसके मद्देनजर समीकरण रातोंरात बदले बिना केंद्रीय मदद असंभव है। अब इंतजार कीजिये, इस बरसात या उस बरसात पलता परियोजना के अवसान का और सोचते रहे कि पीने को पानी कहां से मिलेगा!


अभी हालत यह है कि 'सिटी ऑफ जॉय' के नाम से मशहूर कोलकाता शहर में 70 हजार से अधिक लोगों के सर पर छत नहीं है।यहां तक कि उन्हें शुद्ध और सुरक्षित पेयजल, स्वच्छ प्रसाधन जैसी नागरिक सुविधायें तक उपलब्ध नहीं है।रोजाना इस शहर में नौकरी और रोजगार केलिए करीब एक करोड़ से ज्यादा लोगो की आवाजाही है। दिनभर रातभर कोलकाता में कामकाजी इस आबादी के लिए भी स्थाई आबादी के अतिरिकत शुद्ध पेयजल जुटाने की जि्मेवारी है कोलकाता नगरनिगम की। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पेयजल ऐसा होना चाहिए जो स्वच्छ, शीतल, स्वादयुक्त तथा गंधरहित हो। कोलकाता नगर निगम (के.एम.सी) के अनुरक्षन में कोलकाता शहर का क्षेत्रफल 185 कि.मी.२ (71 वर्ग मील) है।हालांकि कोलकाता की शहरी बसावट काफ़ी बढ़ी है, जो २००६ में कोलकाता शाहरी क्षेत्र 1,750 कि.मी.२(676 वर्ग मील) में फैली है। इसमें १५७ पिन क्षेत्र है। यहां की शहरी बसावट के क्षेत्रों को औपचारिक रूप से ३८ स्थानीय नगर पालिकाओं के अधीन रखा गया है। इन क्षेत्रों में ७२ शहर, ५२७ कस्बे एवं ग्रामीण क्षेत्र हैं।कोलकाता महानगरीय जिले के उपनगरीय क्षेत्रों में उत्तर २४ परगना, दक्षिण २४ परगना, हावड़ा एवं नदिया आते हैं।इस पूरे इलाके की आबादी २ करोड २९ लाख है।




विशेषज्ञों की राय है कि इस संकट से बचने का एकमात्र उपाय है कि पलता जलपरियोजना के दायरे में गंगा किनारे करीब दो किलमीटर इलाके में भूगर्ब में इंटरलाकिंग शीट पाइल यानी भूग्रभीय लौह प्राचीर बना दी जाये।नगर निगम ने इस आशय का फैसला भी कर लिया है। इस दीवाल की औसत उच्चता 30-35 फीट होनी है और इस परियोजना का खर्च आयेगा 119 करोड़ रुपये का। नगरनिगम के कोषागार से इतनी बड़ी रकम निकाली नहीं जा सकती और राज्य सरकार भी नही दे सकती। लिहाजा कोलकाता नगरनिगम ने केंद्र सरकार क दरख्वास्त भेजी है किकि केंद्रीय जवाहर लाल नेहरु शहरी विकास मिशन के मार्फत उसे यह राशि उपलब्ध करा दी जाये। अभ इतने बड़े मसले पर सर्वदलीय प्रयास के बिना कोई प्रगति तो होने से रही। बंगाल में दलबद्ध राजनीति बंगाल के हितों की कितनी खबर लेती है, यह बार बार साबित हो चुका है। अब सवाल है कि कोलकाता और उपनगरों में पेयजल संकट से बचने के लिए क्या नये ितिहास का निर्माण होगा और गौरतलब है कि इसी पर निर्भर है कोलकाता और उपनगरों में बहुआकांक्षित नागरिक जीवन का भविष्य।


नगर निगम का प्रस्ताव है कि मिशन से उसकी शर्त मुताबिक 35 फीसद परियोजना लागत अदा कर दी जाये। राज्य सरकार भी उतनी ही रकम दे दें। बाकी 33 करोड़ रुपये कोलकाता नगर निगम खर्च करने को तैयार है। केंद्र सरकार राजी हो भी जाये ौर नगरनिगम संसाधन जुटा भी लें तो यक्ष प्रशन यहै कि केंद्र के बराबर रकम बंगाल सरकार कहां से निकालेगी।बहरहाल यह प्रस्ताव केंद्र को भेज दिया गया है।नगर निगम अधिकारियों और इंजीनियरों को उम्मीद है कि केंद्र से मंजूरी मिलते ही काम शुरु हो जायेगा।


पलता परियोजना अंग्रेजी शासन काल में 480 एकड़ जमीन पर बनायी गयी और इसमें कुल 53 जलाशय हैं. जहां से मिले जल से कोलकातावासी ौर उपनगरों के लोग भी अपनी प्यास बुझाते हैं।


गौरतलब है कि नई राष्ट्रीय जल नीति, 2012 में देश में जल संसाधनों के बेहतर प्रबंधन हेतु कई सिफारिशें की गई हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की व्यवस्था करने के लिए राज्यों को राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के अंतर्गत पेयजल आपूर्ति स्कीमों की आयोजना, निष्पादन और कार्यान्वयन का अधिकार दिया गया है, जबकि शहरी विकास मंत्रालय, जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन, पूर्वोत्तर क्षेत्र शहरी विकास कार्यक्रम, संसाधनों का गैर समापनीय केंद्रीय पूल (नॉन लैप्सऐबल सैंट्रल पूल) और उपग्रह की व्यवस्था वाले नगरों में शहरी अवसंरचना विकास स्कीम जैसी स्कीमों, कार्यक्रमों के अंतर्गत, शहरी क्षेत्र, महानगरों में जलापूर्ति की व्यवस्था करने में राज्य सरकारों, शहरी स्थानीय निकायों के प्रयासों में सहयोग कर रहा है।




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