महल-चौबारे बह जायेंगे……………..
महल-चौबारे बह जायेंगे
खाली रौखड़ रह जायेंगे
बूँद-बूँद को तरसोगे जब -
बोल व्योपारी – तक क्या होगा ?
नगद-उधारी – तब क्या होगा ??
लेकिन डोलेगी जब धरती-बोल व्योपारी – तब क्या होगा ?
वल्र्ड बैंक के टोकनधारी – तब क्या होगा ?
योजनकारी – तब क्या होगा ?
नगद-उधारी तब क्या होगा ?
- गिरीश तिवाड़ी 'गिर्दा' (दिसम्बर 2007)
दुःख से निकसे दस दोहे…
हर परबत नंगा हुआ, खींच ली गई खाल
देवभूमि श्मशान बनी. अफसर मालामाल
गंगा पाइप में बहे, बुझी न फिर भी प्यास
जमना जी की लाश पर, दिल्ली करे विकास
कोई न बच पाएगा, परलय है विकराल
बना हिमाला काल जो, लोभ-लाभ का जाल
शिव मंदिर बस बचा रहे, है पूरा टकसाल
करे पुजारी प्रार्थना, भरा शवों से थाल
मंदिर थर-थर काँपता, शिव प्रतिमा जल माहिं
कबिरा कब से कह रहा, पाहन में हरि नाहिं
गिद्धों को क्या चाहिए, लाशों का अंबार
गुजराती कि देहलवी, सभी उड़े केदार
दान पात्र भरने गया, डाकू काल के गाल
साधू ले भागा मगर, मंदिर का सब माल
सैलानी जो फँस गए, उनकी बात हजार
जो पहाड़ घुट-घुट जियें, उनका कौन भतार
सुख में तीरथ-हज हुआ, जाप, दान, अगियार
दुःख में सब चु्प साधते, काबा क्या केदार
धरती-नदिया बेच दी, बेचा गया पहाड़
कैद रोशनी भी हुई, अब तो खोल किवाड़
- पंकज श्रीवास्तव
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