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Sunday, September 13, 2015

मजहबी मुक्तबाजारी सियासत का खेल यही चल रहा है कि कश्मीर को फिर बांग्लादेश बना दिया जाये। सच यही है कि कश्मीर को भारत से अलहदा करने की मुहिम में लगे हिंदू और मुसलमान दोनों संघ के ग्लोबल हिंदुत्व के एजंडे को अंजाम दे रहे हैं।कश्मीर का सच छुपाने वाले लोग भारत के बंटवारे को अंजाम दे रहे हैं नये सिरे से और कश्मीर में भी वही बंगाल के बंटवारे का किस्सा दोहराया जा रहा है। इस महादेश में अभी इंसानियत चैन से सो रही है और किसी की चीख किसी को सुनायी नहीं देती है।


मजहबी मुक्तबाजारी सियासत का खेल यही चल रहा है कि कश्मीर को फिर बांग्लादेश बना दिया जाये।


सच यही है कि कश्मीर को भारत से अलहदा करने की मुहिम में लगे हिंदू और मुसलमान दोनों संघ के ग्लोबल हिंदुत्व के एजंडे को अंजाम दे रहे हैं।कश्मीर का सच छुपाने वाले लोग भारत के बंटवारे को अंजाम दे रहे हैं नये सिरे से और कश्मीर में भी वही बंगाल के बंटवारे का किस्सा दोहराया जा रहा है।

इस महादेश में अभी इंसानियत चैन से सो रही है और किसी की चीख किसी को सुनायी नहीं देती है।



पलाश विश्वास

Scores attend Lashkar commander's funeral in Awantipora Bilal Habib Pulwama, September 13: Amid a complete shutdown in twin towns of Pulwama and Awantipora, Scores of people today participated in the funeral prayers of slain Lashkar-e-Toiba (LeT) commander Irshad Ahmad Ganai and staged pro-freedom demonstrations. Early morning, hundreds of people visited Padgampora in Awantipora to have last glimpse of Irshad, who was killed in a brief gun-battle with the government forces in Kakapora area on Saturday evening.




मजहबी मुक्तबाजारी सियासत का खेल यह चल रहा है कि कश्मीर को फिर बांग्लादेश बना दिया जाये।पाकिस्तान के हिस्से का आजाद कश्मीर भी पाकिस्तानी कैद से रिहाई के लिए छटफटा रहा है।संघ परिवार को इस पर ऐतराज नहीं है।


सच यही है कि कश्मीर को भारत से अलहदा करने की मुहिम में लगे हिंदू और मुसलमान दोनों संघ के ग्लोबल हिंदुत्व के एजंडे को अंजाम दे रहे हैं।कश्मीर का सच छुपाने वाले लोग भारत के बंटवारे को अंजाम दे रहे हैं नये सिरे से और कश्मीर में भी वही बंगाल के बंटवारे का किस्सा दोहराया जा रहा है।


यूरोप में बड़े पैमाने पर सरहदों को खोल देने की मांग लेकर शरणार्थियों के समर्थन में प्रदर्शन हो रहे है।रगों में शरणार्थी का खून दौड़ रहा है।


हमारे लिए इससे बड़ी कोई खबर हो नहीं सकती है।


इसके बावजूद कि भारत ने अंतरराष्ट्रीय शरणार्थी समझौते पर दस्तखत अभी तक नहीं किया है।सन सैतालीस के ऐतिहासिक जनसंख्या स्थानांतरण और सरहदों के आरपार निरंतर जारी शरणार्थी सैलाब के बावजूद।


आइलान के भसान पर इंसानियत का जज्बा दुनियाभर में जाग गया है।फिरभी लगता है कि समूचा भारतीय महादेश इंसानियत के भूगोल के दायरे से बाहर है।


इस महादेश में सियासत हुकूमत और मजहब के त्रिशुल बिंधे लोगों को परवाह कतई नहीं है कि धर्मोन्मादी अधर्म के तांडव के तहत धर्म,अस्मिता और पहचान के आधार पर जब नये सरहद बनते हैं तो सरहद के आर पार बसे लोग कितने लहुलूहान होते हैं।


लोगों को अश्वत्थामा के अमरत्व का मिथक याद है,उसके जख्मों का अंदाजा नहीं है।

शरणार्थी भी पुश्त दर पुश्त वही जख्म जीते हैं अश्वत्थामा के।


अब फिर गालियों की बौछार होने लगी है।

गोलियों की जब बौछार होने लगी है तो गालियों की हम क्या परवाह करें।


मीडिया समूची कश्मीर घाटी में भारतीय नागरिक कोई देख नहीं रहा है और गोहत्या निषेध पर उनकी प्रतिक्रिया को उपद्रव बता रहा है।

मीडिया के मुताबिक घाटी में लागू कर्फ्यू भी कर्फ्यू जैसा है,कर्फ्यू हरगिज नहीं है।


हम बोल रहे हैं तो हमसे पूछा जा रहा है कि भोच..वाले ,तेरे सरदर्द का सबब क्या है।

हम बोल रहे हैं और लिख रहे हैं तो मां बहन की गालियां नत्थी करके पूछ रहे हैं अंध देशभक्ति से लबालब लोग कि गां..,तेरी क्यों फट रही है।


हम बोल रहे हैं तो हमसे पूछा जा रहा है कि हम कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग मान रहे हैं और मान रहे हैं कि कश्मीर जबतक भारत में बना रहेगा ,तब तक भारत के हिंदू राष्ट्र बनने के आसार नहीं है तो धमकी दी जा रही है कि चुप हो जा बै देशद्रोही।


बंगाल में भी शरणार्थी समस्या पर बोलना मना है।

पंजाब में फिरभी बंटवारा का किस्सा लिखा गया है लेकिन बंगाल में विभाजन पीड़ितों की कोई कथा लिखी नहीं गयी है।


लिखा गया है जमींदार तबके के जमींदारी और गुलाम प्रजा खोने की महिमामंडित कथाएं,जो विभाजन पर साहित्य है।


ऋत्विक घटक के आगे पीछे सरहदों के आर पार अब तक झांका नहीं है किसीने और न बंटवारे का किस्सा अभी खुला है।


बंगाल पूरब पश्चिम में बंटा है तो पंजाब भी बंटा है और खस्मीर का बंटवार हो गया है।बंटवारा हो गया है मोहंजोदोड़ो और हड़प्पा की विरासत का।बंट गया हिंदुस्तान जिसकी जुबानी आजादी से पहले नेताजी और आजाद हिंद फौज की हिंदुस्तानी थी और आजादी की लड़ाई भी हिंदुओं और मुसलमानों ने लड़ी थी।


हम न पूरब के हैं।

हम न पश्चिम के हैं।

और न हम दक्खिन हैं।


हम उत्तर के हैं जन्मजात और हम हिमालय के हैं।

हमें उतना डर भी नहीं है भूस्कलन,बाढ़,भूकंप और सुनामी का।


सबसे घनघोर लड़ाई लाहौर के इर्द गिर्द थी तो ढाका और चटगांव से भी आजादी के लिए सरफरोशी की तमन्ना थी।


वे सारी शहादतें भी बांट दी और भूल गये हम कि गांधी के अलावा भी एक और गांधी थे,जिनके बिनाआजादी की लड़ाई अधूरी थी ।वे थे सीमांत गांधी।

किसी को अंदाजा नहीं कि सीमांत गाधी कैसे कैसे फूट फूटकर रो रहे होंगे आजादी के वक्त वे जहां भी होंगे।


आजादी की वह विरासत भी बांट दी है वतनफरोशों ने।

अब वे फिर अंध राष्ट्रभक्ति और अधर्म के उन्माद के तहत वतन बेच रहे हैं तरक्की के नाम पर कायनात बेच रहे हैं अबाध विदेशी पूंजी और विदेशी हितों के हक में।


सत्ता दखल के बाद भारत में भी गांधी का कोई किस्सा कोई वर्धा सेवाग्राम के दायरे से बाहर नहीं है और हत्यारों ने गांधी के सीने पर गोलियां बरसा दीं तो अब उनका साबरमती भी लहूलुहान है।


हमें गालियां देने वाले लोग अब उस गांधी के हत्यारे के मंदिर भी तामीर करने लगे हैं।


हमने आज सुबह बांग्ला में बंटवारे का किस्सा खोला है और बताया है कि कश्मीर में फिर बंटवारा दोहराया जा रहा है।


बंगाल एक हुआ रहता तो दलित और मुसलमान,बहुजन सत्ता में होते इसलिए मुस्लिम बहुल पूर्वी बंगाल के ना के बावजूद बंगाल बंटा हिंदू बहुल पश्चिम बंगाल के हां के तहत।


तब कामरेडों ने असेंबली से वाकआउट किया था जैसे वे आज भी वे सुधारों के विरोध के वास्ते अल्पमत सरकारों की बैसाखी बने सत्ता सुख भोग रहे हैं और विरोध दर्ज कराने के लिए ही विरोध कर रहे हैं और इस संसदीय विरोध का कोई किस्सा भी नहीं है क्योंकि जमीन पर कहीं प्रतिरोध की आहट भी नहीं है।

जनता के लब सिले हुए हैं और सड़कों पर सन्नाटा है।

खेत खलिहान कल कारखाने बागान सारे के सारे कब्रिस्तान हैं।


दो सितंबर की हड़ताल के बाद पक्के तौर पर श्रमिक कानून खत्म हो रहे हैं।

विरोध के लिए विरोध की वोट बैंक रस्म अदायगी के बाद आंदोलन के मोरचे पर सन्नाटा है और मजदूर यूनियनों को सातवें वेतन आयोग के इंतजार में त्योहारी मौसम में खरीददारी से फुरसत नहीं है।


ताजा स्टेटस यह है कि श्रमिक कानून खत्म है और अब सलवा जुडुम में शामिल है मेहनतकशों के हक हकूक।


मेहनतकशों के खिलाफ भी वही फतवा जीरो टोलारेंस का है जो देशद्रोही तत्वों के खिलाफ अमेरिकी जंग का पापुलर जुलमा है और मीडिया का पोस्तो है।

एफडीआई राज का किस्सा भी वही है जो बंटवारे का किस्सा है।


जनता के पास धर्म और आस्था के सिवाय कुछ नहीं होता।

जड़ों में फिर वही आस्था है और खून में भी बहती है वही आस्था।


बाजार को भी खूब मालूम है हिंदुस्तान फतह करने का यह हाईवे ,जो दरअसल फासिज्म का हाईवे बन गया है और धार्मिक लोगों को कतई नहीं मालूम पड़ा है कि धर्म के मुताबिक सबकुछ नैतिक नहीं हो रहा है और जो हो रहा है वह अधर्म के सिवाय कुछ नहीं है।


राम की सौगंध खाकर भी लोग राम को बदनाम करने लगे हैं और राम के नाम कत्लेआम करने लगे हैं।


यह किस्सा कुछ वैसा ही है जैसे श्रीलंका में बौद्ध धर्म के अनुयायी तमिलों पर कहर बरपा रहे हैं और म्यांमार में बौद्ध सैन्य जुनता में शामिल हैं जो गौतम बुद्ध की अहिंसा और सत्य,उनके पंचशील,उनके समता और न्याय की ऐसी की तैसी करके उनकी प्रतिमा को खून से नहला रहे हैं।


मुसलमान रोहिंगा शरणार्थियों का किस्सा यही है और बांग्लादेश उन्हें उसीतरह खदेड़ने के फिराक में है जैसे विभाजन पीड़ित हिंदू शरणार्थी भारत में बेनागरिक और घुसपैयिया बताये जा रहे हैं।


क्योंकि उन्हें,पूर्वी बंगाल के हिंदू विभाजन पीड़ित  जिन जंगलात में आदिवासियों के साथ नये सिरे से बसाया गया है ,वहां पूंजी निवेश सबसे ज्यादा है और जल जंगल जमीन से बेदखली के लिए आदिवासी मारे जा रहे हैं तो शरणार्थियों का देश निकाला भी विदेशी पूंजी और मुक्तबाजार के लिए अनिवार्य है।


हकीकत यही है कि न मुसलमानों को मुसलमान शरणार्थी से कोई खास मुहब्त होती है और न हिंदुओं को हिंदू शरणार्थियों से कास मुहब्बत होती है ।


जबकि कश्मीरी पंडितों के सिवाय भी इस देश में शरणार्थी करोड़ों हैं और किसी को किसी शरणार्थी से कोई सहानुभूति उसी तरह नहीं होती जैसे पाकिस्तान में मुहाजिरों से किसी को कोई मुहब्बत होती नहीं है।


मजहब के नाम गैरमजहबी इस कत्लेआम का दरअसल हम विरोध कर रहे हैं और मजहब के नाम गैरमजहबी लोग सिर्फ दाभोलकर और कलबुर्गी ही नहीं,उन तमाम लोगों के सर काटने के लिए नंगी तलवारें लेकर घूम रहे हैं जो इस मजहबी सियासत और मजहबी बाजार के खिलाफ  बोल रहे हैं।


इस्लामी दुनिया को इस्लाम की परवाह उतनी ही है,जितनी हिंदुत्व की ग्लोबल सुनामी को हिंदुत्व की परवाह है।


हिंदुत्व और इस्लाम के नाम जो भी सियासतऔर हुकूमत कर रहे हैं वे दरअसल इंसानियत के खात्मे पर तुले हैं और वे कायनात के खात्मे पर तुले हैं।


आइलान की लाश चीख चीखकर यह कहती रहेगी और उस लाश की चीखों से यूरोप में इंसानियत जागने लगी है।


इस महादेश में अभी इंसानियत चैन से सो रही है और किसी की चीख किसी को सुनायी नहीं देती है।


मुसलमान मध्यपूर्व की तबाही का मंजर देखकर भी होशोहवाश में नहीं है कि जिहाद का बाजार वे वैसे ही नहीं बूझ रहे हैं जैसे हिंदुत्व के एजंडे को अंजाम देने में बेताब बजरंगी फौजों को इसके अंजाम मालूम नहीं है।


अभी हम कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग मानते हैं लेकिन कश्मीर के लोगों को और खासतौर पर कश्मीर घाटी त के मुसलमानों को हम भारतीय नागरिक नहीं मानते हैं।


मजहबी मुक्तबाजारी सियासत का खेल यह चल रहा है कि कश्मीर को फिर बांग्लादेश बना दिया जाये।पाकिस्तान के हिस्से का आजाद कश्मीर भी पाकिस्तानी कैद से रिहाई के लिए छटफटा रहा है।संघ परिवार को इस पर ऐतराज नहीं है।



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