Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Monday, October 19, 2015

देखिए, कैसे दो-तीन दिनों के भीतर ही सारी बहस ''साहित्‍यकार बनाम सरकार'' की बना दी गई है। इसका आशय क्‍या है?

मैं दो दिन से सोच रहा था कि टीवी वालों को साहित्‍य से इतना अनुराग अचानक क्‍यों हो आया भला। अब समझ में आ रहा है। देखिए, कैसे दो-तीन दिनों के भीतर ही सारी बहस ''साहित्‍यकार बनाम सरकार'' की बना दी गई है। इसका आशय क्‍या है? आशय यह है कि सत्‍ता का एक छोर सरकार है जिसके बरक्‍स सत्‍ता का दूसरा छोर साहित्‍यकार को बना दिया गया है। इस छोर पर सबसे मुखर कौन है? मुनव्‍वर राणा- वह शख्‍स जिसने पुरस्‍कार लौटाने वालों का विरोध करते-करते खुद लाइव शो में नाटकीय ढंग से पुरस्‍कार लौटाया और आज यहां तक कह डाला कि लेखकों को मोदी से जाकर मिलना चाहिए। राणा बोले कि मोदी अगर आश्‍वस्‍त करते हैं कि देश में ''सबका साथ सबका विकास'' होगा तो वे मोदी के हाथों पुरस्‍कार वापस ले लेंगे।

अराजनीतिक लोगों के हाथों में बहस चले जाने से यही सब होता है। अब आप देखते जाइए। जिन्‍हें हम राष्‍ट्रीय चैनल कहते हैं, उस पर अशोक वाजपेयी जैसे बड़े लेखक नदारद हैं क्‍योंकि सब जानते हैं कि वे कांग्रेस के लाभार्थी रहे हैं, इसलिए उनके आने से मामला फंस जाएगा। उदय प्रकाश जैसे समझदार लेखक निजी चैनल पर आने से बचेंगे, राज्‍यसभा जैसे चैनल पर ही अपनी बात रखते रहेंगे। राजेश जोशी भोपाल से तो स्‍टूडियो आने से रहे। बचे मंगलेशजी, तो सुधांशु त्रिवेदी, राकेश सिन्‍हा और संबित पात्रा की तिकड़ी के सामने उनकी आवाज़ ही नहीं निकल रही है। दूसरी भाषाओं के लेखक राष्‍ट्रीय चैनल पर आएंगे नहीं। कुल मिलाकर मुनव्‍वर राणा ही वह शै हैं जो दोनों ओर से खेलेंगे- बल्कि खेलाए जाएंगे।

पॉपुलर माध्‍यम पर पॉपुलर चीजें ही चलती हैं। पॉपुलर चीजें बहस को डाइल्‍यूट करती हैं। दिक्‍कत यह है कि गंभीर लोग इस माध्‍यम से डील करना नहीं जानते। नतीजा यह होगा कि दो दिन के भीतर चैनल वाले सब लीप-पोत कर बराबर कर देंगे और लेखकों की बची-खुची इज्‍जत भी जाती रहेगी। यह बहस सत्‍ता के दो ध्रुवों के बीच की बहस में तब्‍दील कर दी जाए और अराजनीतिक लेखक मदारी एंकरों की धुन पर नाचने लगें, उससे पहले लेखकों को सड़क पर आना होगा। नहीं आए, तो अगली बार इन कमज़ोर लेखकों के नाम पर कोई खड़ा नहीं होगा। खतरे की घंटी बजनी शुरू हो चुकी है। सावधान!


কমরেড,এই আমাদের দেশ,সোনা দিয়ে বাঁধিয়ে রাখুন পুরস্কার সম্মান, মিছিলে হাঁটলেই হিটলার পরাজিত হবে!
Some notes on the only writer from Bengal, Mandakranta Sen,
who stands with writers,poets and artists of 150 nations against the Fascist Governance killing the greatest Pilgrimage of Humanity which merged so many streams of humanity as Tagore wrote! It is in Bengali to address Bengal!
Palash Biswas


We,the apolitcal activists of creativity from 150 nations stand United Rock solid to sustain Humanity and nature!
दुनियाभर के लेखकों,कलाकारों,कवियों को मेहनतकश जनता का लाल सलाम।
बहुजन समाज का नील सलाम!
মন্দাক্রান্তা তাঁর কিশোরী মেয়েবেলায় আনন্দ পুরস্কার পেয়েছিল,তখন থেকেই তাঁর কাব্য গদ্য লেখা আমার সমাজবাস্তবের নিরিখে জ্বলজ্বল করছে!বাজার খাবে,এমনে লেখা আমি পাইনি তাঁর কলমে!সেই মেয়েটি আজ সারা পৃথীবী জোড়া ফ্যাসিবাদ প্রতিরোধের বাঙালি মুখ আর যতজন ভূষণ বঙ্গবিভুষণ বিভীষণ জগতজোড়া আমাদের মাতৃভাষার বেদিয়া সৌদাগর আছেন,তাহারা শারদোত্সবে অসুর নিধনে ব্যস্ত!


প্রতিবারই আধপাগলী ঔ মেয়েটির লেখা তাঁর দায়বদ্ধতার কথা জানান  দিয়েছে!ইতিমধ্যে বাজার গুচ্ছ গুচ্ছ রগরগে লেখক লেখিকা আমদানি করেছে,সমাজ বাস্তবের বদলে নাগরিক যৌণ জীবনই যাহাদের একমাত্র প্রতিপাদ্য,যাহা বুবুক্ষু জনগণের মুখে সুস্বাদু,জনগণ যাহা খায়!
বাংলার সুশীল সমাজ 1857 সালে মহাবিদ্রোহে সুশীল বালক ছিল!
তাঁরা চুয়াড় বিদ্রোহ,সন্যাসী বিদ্রোহ,নীল বিদ্রোহ,সাঁওতাল মুন্ডা ভীল বিদ্রোহের সমর্থনে দাঁড়াননি!তাঁরা চিরকালই শাসক শ্রেণীর অন্তর্ভুক্ত!
আজও তাঁরা নিরুত্তাপ!প্রতিবাদ করবেন কিন্তু সম্মান পুরস্কার ফেরত নৈব নৈব চ!শুধু এই শারদে মন্দাক্রান্তা বাংলার মুখ!ভালোবাসার মুখ!
সারা বিশ্বের শিল্প সাহিত্য সংস্কৃতির দায়বদ্ধতার মুখ!ভালোবাসা!



বাংলায় এখন মহিষাসুর বধ চলছে!তবু ভালো,এখনো গৌরিকায়ণের কুরুক্ষেত্র থেকে এখনো বাংলা বহুদুরে!আল্লাহো আকবর ও পাল্টা হর হর মহাদেবের প্রলয়ন্কর আবাহন দেবীর বোধন সত্যি বড়  দুর্গার মত বিপর্যয় ডেকে আনতে পারে যে কোনো সময়,যেহেতু দাবানলের মত মনুস্মৃতি শাসনের জিহ্বা সারা দেশ গ্রাস করেছে! সেই দাবানল প্রতিহত করার কোনো দায়বদ্ধতা নন্দীগ্রাম সিঙ্গুর খ্যাত পৃথীবী বিখ্যাত বাংলার সুশীল সমাজের নেই!সারা পৃথীবীর এক শো পন্চাশটি দেশের লেখক কবি শিল্পীদের মধ্যে বাংলার শুধু একজন,সে আমাদের মন্দাক্রান্তা!


বাংলার সুশীল সমাজ 1857 সালে মহাবিদ্রোহে সুশীল বালক ছিল!
তাঁরা চুয়াড় বিদ্রোহ,সন্যাসী বিদ্রোহ,নীল বিদ্রোহ,সাঁওতাল মুন্ডা ভীল বিদ্রোহের সমর্থনে দাঁড়াননি!তাঁরা চিরকালই শাসক শ্রেণীর অন্তর্ভুক্ত!
আজও তাঁরা নিরুত্তাপ!প্রতিবাদ করবেন কিন্তু সম্মান পুরস্কার ফেরত নৈব নৈব চ!শুধু এই শারদে মন্দাক্রান্তা বাংলার মুখ!ভালোবাসার মুখ!
সারা বিশ্বের শিল্প সাহিত্য সংস্কৃতির দায়বদ্ধতার মুখ!ভালোবাসা!


অনুবাদক কমলেশ সেন 2003 সালে কলকাতা পুস্তক মেলায় এই মেয়েটির সঙ্গে পরিচয় করিয়েছিল।তারপর আমার আর বইমেলায় যাওয়ার সুযোগ হয়নি!


প্রথম দফা গৌরিক সরকার সর্বদলীয় সম্মতিতে বাঙালি উদ্বাস্তদের বেনাগরিক করে দেওয়ার যে কালা কানুন পাস করল,তাতে বাংলার জনপ্রতিনিধিদেরও সম্মতি ছিল!
মরিচঝাঁপি গণসংহারের প্রতিবাদ করেননি জন আন্দোলনের জননী মহাঅরণ্যের মা,আমাদের নবারুদার মা মহাশ্বেতা দেবীও!


উদ্বাস্তুদের নাগরিকত্বের দাবীতে আমরা তাঁকে বা সুশীল সমাজের কাউকে পাশে পাইনি!


রবীন্দ্রনাথের রাশিয়ার চিঠি কিংবা অচলায়াতন নিয়ে এই কুলীণ সুশীল সমাজের আদৌ কোনো মাথাব্যথা আছে কিনা জানা নেই!


মন্ত্রহীণ,ব্রাত্য,জাতিহারা রবীন্দ্রনাথের দীণ হীণের প্রতি যে দায়বদ্ধতা.দুই বিঘা জমির মালিকের প্রতি তাঁর মরম বেদনা তাঁর সঙ্গীতে,গানে ও কবিতায় কতটা আছে,তা নিয়েও আলোচনার অবকাশ নেই কারও!


শাসকের রক্তচক্ষুকে যারা প্রতিনিয়ত প্রিতিহত করার দাবি করতে পিছপা নন,কেনদ্র ও রাজ্য সরকারের পুরস্কারে ভূষিত সেই সব বঙ্গভূষণ ও বঙ্গবিভূষণের মুখ দর্শন করতে চাইনা ,তাই 2003 সাল থেকে নন্দন চত্বরে অথাবা বইমেলায় আমার যাওয়া হযনা!


তাতে কারও কিছু যায় আসে না,যেহেতু হাজার জন্মেও আমি ঔ সুশীল সমাজের কেউকেটা হতে পারব না,যেহেতু নবারুণদার ফ্যাতাডু বাহিনীতে আমার ততদিনে নাম লেখানো হয়ে গেছে!


মন্দাক্রান্তা তাঁর কিশোরী মেয়েবেলায় আনন্দ পুরস্কার পেয়েছিল,থখন থেকেই তাঁর কাব্য গদ্য লেখা আমার সমাজবাস্তবের নিরিখে জ্বলজ্বল করছে!বাজার খাবে,এমনে লেখা আমি পাইনি তাঁর কলমে!সেই মেয়েটি আজ সারা পৃথীবী জোড়া ফ্যাসিবাদ প্রতিরোধের বাঙালি মুখ আর যতজন ভূষণ বঙ্গবিভুষণ বিভীষণ জগতজোড়া আমাদের মাতৃভাষার বেদিয়া সৌদাগর আছেন,তাহারা শারদোত্সবে অসুর নিধনে ব্যস্ত!


প্রতিবারই আধপাগলী ঔ মেয়েচির লেখা তাঁর দায়বদ্ধতার কথা জানান  দিয়েছে!ইতিমধ্যে বাজার গুচ্ছ গুচ্ছ রগরগে লেখক লেখিকা আমদানি করেছে,সমাজ বাস্তবের বদলে নাগরিক যৌণ জীবনই যাহাদের একমাত্র প্রতিপাদ্য,যাহা বুবুক্ষু জনগণের মুখে সুস্বাদু,জনগণ যাহা খায়!
এই আমাদের দেশ,সোনা দিয়ে বাঁধিয়ে রাখুন পুরস্কার সম্মান,মিছিলে হাঁটলেই হিটলার পরাজিত হবে!


মন্ত্রহীণ,ব্রাত্য,জাতিহারা রবীন্দ্র,রবীন্দ্র সঙ্গীত!
--
Pl see my blogs;


Feel free -- and I request you -- to forward this newsletter to your lists and friends!

No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Welcome

Website counter

Followers

Blog Archive

Contributors