अब फिर वीआरएस ! कर्मचारियों की व्यापक छंटनी का मौसम!राहुल गांधी की ताजपोशी होते न होते बीएसएनएल के एक लाख कर्मचारियों की नौकरी जाना तय!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों की व्यापक छंटनी का मौसम आ गया है।राहुल गांधी की ताजपोशी होते न होते बीएसएनएल के एक लाख कर्मचारियों की नौकरी जाना तय हो गया है।आगे आगे देखिये, क्या क्या होने जा रहा हैष सरकारी कर्मचारियों को खुश रखकर देश की बाकी जनता को नरसंहार संसकृति के तहत खुले बाजार के आखेट क्षेत्र में साफ करके विकासगाथा और शेयर बाजार के मार्पत सुपरपावर इंडिया बनाने वाले अब अपनी गोद में खेलते खाते राजदुलारों की बलि चढ़ाने की तैयारी में है।बेरहम विनिवेश मुहिम तेज है ही। स्थाई नियुक्तियों का रिवाज खत्म है।अब फिर वीआरएस!तमाम जरुरी सेवाओं शिक्षा,चिकित्सा, परिवहन, संचार, बिजली, खाद्य एवंय आपूर्ति, आधारभूत संरचना, आदि को बाजार और क्रयशक्ति से जोड़ दिया जाता रहा है। इस बुनियादी बदलाव को सरकारी कर्मचारियों और सार्वजनिक उपक्रमों के मोटे वेतन और भारी सुविधाओं वाले वर्ग ने लगातार समर्थन दिया है। कर्मचारी संगठन और ट्रड यूनियनें लगातार वेतन और सुविधाओं के अर्थवादी मांगों के दायरे में भटकती रहीं। उनके नेता एक के बाद एक समझौते करते रहे। विदेश यात्राओं में मौज मस्ती करते रहे। वातानुकूलित कांच के दड़बों में आम जनता की दर्दभरी चीखे सुनायीं नहीं पड़ी। अब एअरइंडिया के पायलटों की हालत देखकर कर्मचारियों की आंखें नहीं खुली तो बीएसएनएल क्या, सभी सरकारी कर्मचारियों की नियति एक सी है।राजकोष में सबसे ज्यादा व्यय इन्हीं कर्मचारियों को पटाये रखने में होता है। हर सरकारी दफ्तर की लालफीताशाही में आम आदमी का दम घुटता है। इन कर्मचारियों का न जनता, न समाज और न देश से कोई सरोकार है। सरकारी कारपोरेट नीतियों को बेरहमी से लागू करने वाले आत्मघाती इस वर्ग के लिए आम आदमी के मन में तनिक सहानुभूति नहीं है।वेतन, भत्तों, पेंशन और भविष्यनिधि के सहारे इसी वर्ग का बाजार पर कब्जा है। इन्हीं की वजह से बाजार भाव आसमान छू रहे हैं। इसलिए सरकारी नीति निरधारण की तलवार से जब यह वर्ग लहूलुहान हो रहा है, तो मारे जा रहे, जख्मी , लहूलुहान लोगों की क्या प्रतिक्रिया होगी?
सार्वजनिक क्षेत्र की टेलीकॉम कंपनी बीएसएनएल के एक लाख कर्मचारियों की नौकरी खतरे में है। दरअसल, यह जानी-मानी कंपनी अपने एक लाख कर्मचारियों को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति स्कीम (वीआरएस) की पेशकश करना चाहती है ताकि उसका वेतन बोझ कम हो सके। इससे कंपनी को अपना घाटा कम करने में भी मदद मिलेगी।बीएसएनएल के एक शीर्ष अधिकारी ने बताया, 'कंपनी में तकरीबन एक लाख कर्मचारी जरूरत से ज्यादा हैं।यही कारण है कि कंपनी इन्हें वीआरएस की पेशकश किए जाने के पक्ष में है।' उन्होंने कहा कि वीआरएस संबंधी प्रस्ताव सरकार को पेश किया जा चुका है। गौरतलब है कि बीएसएनएल के कुल राजस्व का तकरीबन 48 फीसदी उसके कर्मचारियों को तनख्वाह देने में ही चला जाता है।सरकारी पक्ष यह है कि इसके अतिरिक्त कर्मचारियों का बोझ ही इसके लिए सबसे बड़ी मुसीबत बन चुका है क्योंकि एक समय में जब लैंडलाइन की बहुत आवश्यकता होती थी तो इसमें बड़े पैमाने पर भर्ती की गयी थी। पर अब मोबाइल युग के तेज़ी से आने के बाद इसकी लैंडलाइन सेवा पर सबसे बुरा असर पड़ा है। पर आज भी पूरे देश के महानगरों को छोड़कर किसी भी जिला मुख्यालय की बात की जाये तो आज भी आधुनिक सेवाओं के लिए संचार निगम के अलावा लोगों के पास कोई विकल्प नहीं है। फिर भी इस लाभ की स्थिति से निगम कुछ नहीं कर पा रहा है। इसमें आज की तकनीक के अनुसार दक्ष कर्मचारियों की भर्ती करने को प्राथमिकता देनी चाहिए और पुराने कर्मचारियों के सामने वीआरएस का विकल्प रखा जाना चाहिए।
सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) का घाटा 2010-11 में तीन गुना बढ़कर 6,000 करोड़ रुपये पर पहुंच गया।कंपनी ने कहा है कि 3जी और ब्रॉडबैंड वायरलेस एक्सेस (बीडब्ल्यूए) स्पेक्ट्रम के भुगतान तथा कर्मचारियों को वेतन मद में भारी राशि की अदायगी से उसका घाटा बढ़ गया।कंपनी को 2009-10 में 1,823 करोड रुपये का शुद्ध घाटा हुआ था। कंपनी के अनांकेक्षित नतीजों के अनुसार 2010-11 में उसका घाटा 5,997 करोड रुपये रहा है।बीते वित्त वर्ष में कंपनी की कुल आमदनी भी करीब 10 प्रतिशत घटकर 28,876 करोड रुपये रह गई, जो इससे पिछले वित्त वर्ष में 32,072 करोड रुपये थी। बीएसएनएल सूत्रो के अनुसार घाटा बढने की मुख्य वजह सरकार को 3जी और बीडब्ल्यूए लाइसेंस के लिए किया गया भुगतान है।कंपनी ने इन दोनों के लिए 18,500 करोड रूपये चुकाए हैं। इससे बीते साल में कंपनी को 4,000 करोड रूपये की अन्य आमदनी का नुकसान हुआ।
कंपनी की 47 प्रतिशत से अधिक आमदनी कर्मचारियों को किए गए भुगतान में चली गई। घाटे से उबरने के लिए विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के अनुरूप अपने श्रमबल को घटाने के लिए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (वीआरएस) ला सकती है। कंपनी ने 99,700 कर्मचारियों का आंतरिक लक्ष्य बनाया है। प्रस्तावित वीआरएस से बीएसएनएल पर 2,700 करोड रूपये का बोझ पड सकता है। सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम पुनर्गठन बोर्ड ने दूरसंचार कंपनियों, आईटीआई और एमटीएनएल के बीएसएनएल में विलय की भी सिफारिश की है. केंद्र सरकार इस कंपनी को दी जाने वाली 2,000 करोड रूपए की सालाना सब्सिडी रोकने की भी बात कही है। दिल्ली और मुंबई को छोड़कर बीएसएनएल समूचे देश में सेवाएं देती है। 31 जुलाई तक इसके मोबाइल ग्राहकों की संख्या 9.51 करोड़ थी।कुछ समय पहले सुना था कि सार्वजनिक क्षेत्र की दूरसंचार कंपनी बीएसएनएल को घाटे से उबारने के लिए दूरसंचार विभाग खास रणनीति तैयार कर रहा है। इसके तहत दूरसंचार क्षेत्र से जुड़े अन्य सार्वजनिक उद्यमों, मसलन- आईटीआई लिमिटेड और सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ टेलीमेट्रिक्स (सीडॉट) के साथ बेहतर तालमेल के साथ संसाधनों के अधिकतम इस्तेमाल की संभावना तलाशी जा रही है।विभाग ऐसी योजना बना रहा है, जिससे इन कंपनियों के संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल हो सके और यह निजी क्षेत्र से मुकाबला करने में भी सक्षम हो।
बाकायदा बाजार केंद्रित कारपोरेट नीति निर्धारण का फोकस यह है कि नुकसान में चलने वाली सार्वजनिक क्षेत्र इकाइयों को या तो बंद कर देना चाहिए या फिर फ़ौरन विनिवेश की दिशा में बढ़ते हुए सरकार को अपना हिस्सा इकदम कम कर देना चाहिए। जो इकाइयाँ लाभ अर्जित करने की स्थिति में लग ही नहीं रही हैं उन का पूर्णतया निजीकरण कर देना चाहिए। विलयन, पुनर्गठन, आकार घटाना और विभिन्न सरकारी कामकाज की आउटसोर्सिंग कुछ अन्य उपाय हैं जिनसे सार्वजनिक उद्यमों में सुधार आ सकता है।
राजग शासनकाल में विनिवेश के लिए गठित निजी कंपनियों के मालिकों की ममिति ने ऐसी ही शिपारिश की थी, जिसपर तुरंत अ्मल शुरु हो गया। तत्कालीन राजग सरकार ने तो बाकायदा विनिवेश मंत्रालय में अरुण शौरी को मंत्री बनाकर विनवेश और स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति स्कीम (वीआरएस) की मुहिम चलायी थी। सरकर बदलने के बावजूद वही पुरानी सूची और पुराने कार्यक्रम पर अमल हो रहा है। सिर्फ विनिवेश मंत्रालय नहीं रहा।
नीति निर्धारकों का स्पस्ट मत है कि आज के समय में सरकार की वो भूमिका नहीं रह गयी है जिसकी आज़ादी के समय परिकल्पना की गयी थी। आज जिस तरह निजी सेक्टर और दूसरे नागरिक संगठन समाज की ज़रूरतों को पूरा करने में लगे हुए हैं, उसे देखते हुए सरकार को अपनी भूमिका सिर्फ आवश्यक जिम्मेदारियों के निर्वहन तक ही सीमित कर देनी चाहिए।
बड़ी सरकारी मशीनरी और हानि में चलने वाली सार्वजनिक इकाइयों से राष्ट्रीय कोष को लगातार नुकसान होता है। ऋण में रहना तो किसी भी तरह से हमारी सरकार के लिए हितकारी नहीं है। इसीलिए आवश्यक है की हम राज्य सरकारों और उनके द्वारा चालित इकाइयों को छोटा करें और उनका प्रदर्शन सुधारे।कार्यसंस्कृति में सुधार के तहत राज्य सरकारें भी इसी नीति पर अमल कर रही हैं।
यह सबसे कठिन हालत है कि सरकार बखूब जानती है कि सरकारी कर्मचारियों के साथ चाहे जो सलूक किया जाये, उनकी करनी ऐसी है कि उनके समर्थन में कहीं एक पत्ता तक नहीं खड़केगा। यही वजह है कि पिछले बीस सालों के दरम्यान निजीकरण और विनिवेश के अभियान के खिलाफ कोई जनांदोलन राज्यों में वामपंथी सरकारों के मजबूत जनाधार होने और नीतिगत तौर पर उनके उदारीकरण के खिलाफ होने के बावजूद संबव ही नहीं हुा। अलग थलग पद और वेतनमान, सत्ता और क्षमता , काला धन और दो नंबर के रोजगार में निष्मात इस वर्ग का अवसान अब होने ही वाला है और विडंबना है कि उनके लिए कोई रोने वाला नहीं है। नौकरी बचाने की फिक्र में पद और सुविदाएं जारी रखने के फिराक में उनके अपने साथी तक उनके साथ नहीं खड़े है, तो आम आदमी उनके लिए आंसू क्यों बहायेगा?
नीति निर्धारकों का स्पस्ट मत है कि सरकार पर आने वाले वित्तीय भार का प्रमुख हिस्सा होता है वेतन बिल, पेंशन और ब्याज भुगतान। पिछले कुछ वर्षों से राज्यों का वेतन बिल उनके संपूर्ण राजस्व व्यय का करीब 35 प्रतिशत हिस्सा बना हुआ है और ब्याज भुगतान संपूर्ण राजस्व प्राप्ति का 25 प्रतिशत हिस्सा खाता आ रहा है वित्त आयोग के अनुसार राज्यों को अपनी भर्ती और वेतन पॉलिसी ऐसी बनानी चाहिए कि वो सरकार के राजस्व खाते पर सेंध ना लगाए। इस दिशा में सरकारी मशीनरी का आकार बहुत महत्वूर्ण होता है।जवाहरलाल नेहरु नैशनल अरबन रुरल मिशन के अंतर्गत राज्यों में प्रशासनिक सुधार आने चाहिए। इन सुधारों के अंतर्गत स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति स्कीम, सेवानिवृत्ति से होने वाली रिक्तियों को ना भरा जाना, सेवानिवृत्ति की उम्र घटाना, सर्विंग अधिकारियों को ही विभिन्न पोस्ट पर तैनात करना ना कि रिटायर्ड लोगों को, कठोर वर्क कांट्रेक्ट का सर्जन, अतिरिक्त/भार रुपी स्टाफ की छंटनी और अन्य उपायों से सरकारी संस्थापनाओं को छोटा और कुशल बनाना है। नीति निर्धारकों का आकलन है कि दुर्भाग्यवश वेतन आयोग के प्रशासनिक सुधार सम्बंधित सुझावों की तो अनदेखी कर दी गयी पर वेतनों को और बढ़ा दिया गया जिस से राज्यों पर अतिरिक्त वित्तीय भार पड़ा। आयोग ने कहा था कि सिविल सर्विस को 30 प्रतिशत तक कट किया जाए पर उस पर अधिक अमल नहीं किया गया। बाज़ार की सच्चाइयों को मद्देनज़र रखते हुए वेतन बढ़ाना ज़रूरी है पर अगर साथ ही साथ दूसरे सुधारों से भी सरकार का प्रदर्शन ठीक किया जाए, तो ये पूरे देश के विकास के लिए अच्छा होगा।
कर्मचारियों का बोझ
बीएसएनएल के खर्च का करीब 50 फीसदी कर्मचारियों के वेतन में जाता है
वित्तीय सेहत सुधारने के लिए कर्मचारियों की संख्या घटाना बेहद जरूरी है
योजना - दोनों सार्वजनिक क्षेत्र की टेलीकॉम कंपनियां वित्तीय सेहत सुधारने के लिए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति को जरूरी मानती हैं। कंपनियों ने इसके लिए प्रस्ताव डॉट को दे रखा है, लेकिन नवंबर में होने वाली 2जी बोली के मद्देनजर ये प्रस्ताव अटके हैं। बीएसएनएल अपने 1,00,000 कर्मचारियों को स्वैच्छिक सेवानिवृति (वीआरएस) देना चाहती है तो एमटीएनएल 15,000 कर्मचारियों को। दोनों कंपनियों को इसके लिए तकरीबन 15,000 करोड़ रुपये की जरूरत है।
देश की दोनों सार्वजनिक टेलीकॉम कंपनियों की वीआरएस योजनाओं पर डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकॉम (डॉट) नवंबर 2012 के बाद फैसला कर सकता है। डॉट के सूत्रों का कहना है कि नवंबर में बोली प्रक्रिया के समाप्त होने के बाद मंत्रालय भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) और महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड (एमटीएनएल) की स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) की योजनाओं पर फैसला ले सकता है।
सूत्रों का कहना है कि दोनों कंपनियों ने जो प्रस्ताव डॉट को दिया है उसके मुताबिक तकरीबन 15,000 करोड़ रुपये की जरूरत होगी। लेकिन, फिलहाल इस संबंध में वित्त मंत्रालय से कोई संवाद नहीं हो रहा है। सूत्रों ने कहा कि दोनों सार्वजनिक टेलीकॉम कंपनियों की वित्तीय सेहत सुधारने के लिए वीआरएस बेहद जरूरी है। लिहाजा, इस पर नवंबर में होने वाली बोली प्रक्रिया के समाप्त होने के बाद कार्यवाही शुरू हो सकती है।
इस बारे में पूछे जाने पर एमटीएनएल के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर ए. के. गर्ग ने कहा कि कंपनी ने प्रस्ताव डॉट को दे दिया है। लेकिन, अभी इस बारे में डॉट से किसी भी प्रकार का संवाद नहीं हुआ है। वहीं, बीएसएनएल के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर आर. के. उपाध्याय ने कहा कि कंपनी का 49 फीसदी खर्च कर्मचारियों की तनख्वाह में जाता है।
ऐसे में कंपनी को दोबारा पटरी पर लाने के लिए वीआरएस स्कीम को अमली-जामा पहनाना बेहद जरूरी है। उन्होंने बताया कि वीआरएस का प्रस्ताव अभी तक पेंडिंग है। वहीं, सूत्रों का कहना है कि दोनों कंपनियों को घाटे से उबारने के लिए वीआरएस योजना लागू करना बेहद जरूरी है। लेकिन, इस पर फैसला बोली प्रक्रिया के पूरा होने के बाद ही संभव हो पाएगा।
गौरतलब है, बीएसएनएल अपने 1,00,000 कर्मचारियों को स्वैच्छिक सेवानिवृति (वीआरएस) देना चाहती है तो एमटीएनएल 15,000 कर्मचारियों को। लेकिन, दोनों ही कंपनियों को इसके लिए कुल मिलाकर तकरीबन 15,000 करोड़ रुपये की जरूरत है। दोनों ही कंपनियां इस संबंध में डॉट को प्रस्ताव दे चुकी हैं लेकिन अभी तक इस मसले पर कुछ नहीं हुआ है।
नीति निर्धारकों का स्पस्ट मत है कि एयर इंडिया के बाद बीएसएनएल का भी हाल देख कर भारत के सार्वजनिक उपक्रम क्षेत्र की खस्ता हालत का खुलासा हो जाता है। आर्थिक सुधारों के बीस साल बाद और निजीकरण के स्वाभाविक सुपरिणामों को देख कर भी संप्रग सरकार अगले फेज़ के सुधारों को लेकर निष्क्रिय देखी पड़ती है। बीएसएनएल और एमटीएनएल के विलय से अगर एयर इंडिया जैसी हालत हो गई तो फिर दो कंपनियों के कर्मचारी वेतन भत्ते और वरिष्ठता आदि मुद्दों को लेकर जंग छिड़ी रहेगी। वर्षों से घाटे में चल रही कई अन्य सार्वजनिक इकाईयों को बोझ की तरह ढोने के बजाय उनके विनिवेश और निजीकरण से यदि हम उत्पादकता और रोज़गार सृजन कर सकते हैं तो यह सभी के लिए अच्छा सौदा साबित होगा।
भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) के कर्मचारियों को अगले छह महीने के दौरान स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति स्कीम (वीआरएस) का विकल्प मिलने की उम्मीद है। डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकॉम (डॉट) के सूत्रों का कहना है कि बीएसएनएल के प्रस्ताव को जल्द ही वित्त मंत्रालय को भेजे जाने की उम्मीद है। सूत्रों ने बताया कि इस योजना के तहत बीएसएनएल के तकरीबन 1,00,000 कर्मचारियों को वीआरएस देने का प्रस्ताव है। यह पूरी योजना तकरीबन 19,000 करोड़ रुपए की है जिसमें से डॉट की तरफ से 16,000 करोड़ रुपए देने का प्रस्ताव है। सूत्रों का कहना है कि डॉट द्वारा बीएसएनएल की वीआरएस पर अंतिम फैसला लेने के बाद इसे वित्त मंत्रालय के पास भेजा जाएगा। इस पूरी प्रक्रिया में तकरीबन छह महीने का समय लग सकता है। बीएसएनएल ने डॉट को जो प्रस्ताव दिया है, उसके मुताबिक कंपनी में तकरीबन 2.80 लाख कर्मचारी हैं जिनकी औसत उम्र 49 वर्ष है। वहीं, कंपनी की कुल आमदनी में तनख्वाह का खर्च 45 फीसदी से ज्यादा है। ऐसे में कंपनी की तकरीबन आधी कमाई सिर्फ तनख्वाह में चली जाती है। इस कारण कंपनी भारी घाटे में जा रही है। वहीं, निजी टेलीकॉम कंपनियों की कुल आमदनी का महज 4-5 फीसदी ही तनख्वाह के रूप में खर्च होता है। इस कारण से बीएसएनएल लगातार बाजार में पिछड़ती जा रही है। सूत्रों ने बताया कि बीएसएनएल को घाटे से उबारने के लिए वीआरएस बेहद जरूरी है। बीएसएनएल की वीआरएस को 45 वर्ष से ज्यादा उम्र वाले सभी कर्मचारियों के लिए खोला जाएगा। एक अनुमान के मुताबिक नॉन-एक्जीक्यूटिव-1 श्रेणी वाले कर्मचारियों को वीआरएस से तकरीबन 11 लाख रुपए मिलेंगे।
अधिकारी ने कहा, अगर ये सभी एक लाख कर्मचारी वीआरएस की पेशकश पर अपनी हामी भर दें तो कंपनी का वेतन बोझ घटकर महज 10 से 15 फीसदी रह जाएगा। मालूम हो कि 31 मार्च, 2011 को बीएसएनएल में कुल मिलाकर 2.81 लाख कर्मचारी थे। जहां तक बीएसएनएल के मुनाफे का सवाल है, इसमें लगातार गिरावट देखने को मिल रही है।
देश की सार्वजनिक क्षेत्र और लैंडलाइन सेवा देने वाली देश व्यापी दूरसंचार कम्पनी भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) में जिस तरह से प्रबंधन से जुड़ी ख़ामियों के कारण घाटा बढ़ता ही जा रहा है वहीं उसमें आज भी शीर्ष पर फ़ैसले लेने के लिए बैठे हुए लोगों पर इसका कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा है। एक समय में हज़ारों करोड़ का लाभ अर्जित करने वाली कम्पनी में लगातार ग़लत फ़ैसलों के कारण आज यह स्थिति बन चुकी है कि वह सेवाओं में फिसड्डी साबित हो रही है और उसके कर्मचारियों में एक निगम के स्थान पर सरकारी विभाग के रूप में काम करने की मंशा आज भी पली हुई है। यह सही है कि कई सामजिक दबावों के चलते आज भी निगम को देश के उन दूर दराज़ के क्षेत्रों में सेवाएं देनी पड़ती हैं जहाँ पर उनसे कोई आर्थिक लाभ नहीं मिलता है। फिर भी देश के सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी होने के कारण वह अपना दायित्व निभाती रहती है। आख़िर ऐसा क्या रहा कि एक समय अपनी सेवाओं के लिए तत्पर रहने वाले इस निगम में सब कुछ इतना बिगड़ गया कि अब उसके सामने परिचालन को बनाये रखने तक की चुनौती भी आने लगी है? २ जी घोटाले की सबसे बड़ी मार निगम पर ही पड़ी है। क्योंकि उसके बाद फिर से भ्रष्टाचार होने के डर से सभी तरह की खरीद प्रक्रिया में ही रोक लग गयी, जिसका असर नगम के नेटवर्क को विस्तृत करने और आज के अनुरूप सेवा देने पर पड़ गया। आज भी निगम के पास पूरे देश में ३ जी सेवा देने का अधिकार तो है पर उसके नेटवर्क में ३ जी लायक उपकरण ही नहीं हैं, जो उपभोक्ताओं को यह सेवा दे सकें। केवल राजमार्गों और बड़े शहरों तक ही इसकी यह सेवा ठिठक कर रह गयी है। जबकि उपभोक्ताओं को यह काफी पहले मिल जानी चाहिए थी। निगम में जब तक कर्मचारियों और अधिकारियों की संख्या का अनुपात ठीक नहीं किया जायेगा, तब तक कुछ भी नहीं सुधर सकता है। क्योंकि आज के समय में जब केवल बेतार संचार को ही प्राथमिकता दी जा रही है तो लैंडलाइन सेवाओं के लिए तैनात कर्मचारियों के बड़े बोझ को ढोने की क्या आवश्यकता है ?
सुप्रीम कोर्ट ने डीएमके लीडर दयानिधि मारन के खिलाफ दायर एक याचिका की सुनवाई करते हुए शुक्रवार को बीएसएनएल और सीबीआई को नोटिस जारी किया है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि मारन के चेन्नै स्थित घर में गलत तरीके से एक्सचेंज स्थापित कर 323 लाइंस की सुविधा उनकी पारिवारिक कंपनी सन टीवी नेटवर्क को दी गई।
एक पत्रकार द्वारा मारन के खिलाफ दायर इस याचिका पर जस्टिस आफताब आलम की अगुआई वाली बेंच ने सीबीआई और बीएसएनएल से जवाब मांगा है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि जांच एजेंसी ने पॉलिटिकल प्रेशर के कारण इस मामले को दफन कर दिया, जबकि जांच में इस बात का खुलासा हुआ था कि मामले में 440 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ है। याचिकाकर्ता स्वामीनाथन गुरुमूर्ति का कहना है, 'इस तरह की गलत व्यवस्था सन टीवी नेटवर्क को समुचित रूप से डाटा ट्रांसफर करने के लिए की गई थी। सीबीआई ने अपनी शुरुआती जांच में पता लगाया था कि इसकी वजह से बीएसएनएल को 440 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।'
बहरहाल दूरसंचार आयोग ने सरकारी दूरसंचार कंपनी भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) को ग्रामीण क्षेत्रों में लैंडलाइन परिचालन को बढ़ावा देने के लिए 1,500 करोड़ रुपये की सब्सिडी को मंजूरी दे दी।
दूरसंचार आयोग के चेयरमैन और दूरसंचार विभाग (डॉट) के सचिव आर चंद्रशेखरन ने कहा, 'बीएसएनएल को पहले साल में सहयोग दिए जाने के लिए हरी झंडी दे दी गई है और उनसे अन्य जानकारियां मांगी गई हैं।'
दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने दो साल के लिए 2,750 करोड़ रुपये की सब्सिडी की सिफारिश की थी। इसमें से 1,500 करोड़ रुपये पहले साल के लिए और बाकी 1,250 करोड़ रुपये दूसरे साल के लिए प्रस्तावित थे।
बीएसएनएल ने इसके लिए प्रति वर्ष 2,580 करोड़ रुपये के सहयोग की मांग की थी। यह सब्सिडी 1 अप्रैल, 2002 से पहले सरकारी दूरसंचार कंपनी द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में जारी किए गए लैंडलाइन कनेक्शनों को सहयोग देने के लिए मांगी गई थी। दूरसंचार आयोग की सिफारिशों के आधार पर डॉट इस संबंध में अंतिम फैसला करेगा।
बैठक में दूरसंचार आयोग ने टेलीकम्युनिकेशंस कंसल्टैंट इंडिया (टीसीआईएल) और भारती एयरटेल के संयुक्त उपक्रम भारती हेक्साकॉम में टीसीआईएल की 30 फीसदी हिस्सेदारी बेचने पर भी विचार-विमर्श किया। यह राजस्थान सर्किल में मोबाइल सेवाएं देती है।
चंद्रशेखर ने कहा, 'आज भारती हेक्साकॉम के मामले में फैसले पर कोई बात नहीं हुई। बैठक में सिर्फ इससे संबंधित जानकारियों पर बात हुई। कुछ अन्य जानकारियां मांगी गई हैं और उचित मूल्यांकन के लिए कुछ और काम किया जाना है।'
सार्वजनिक क्षेत्र की दूरसंचार सेवा देने वाली कंपनी भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) अपने सीडीएमए नेटवर्क को लीज पर देने की तैयारी कर रही है। कंपनी लगातार बढ़ रहे घाटे को कम करने के मकसद से यह कदम उठाने की तैयारी कर रही है। बीएसएनएल के सूत्रों का कहना है कि कंपनी अपने सीडीएमए नेटवर्क को लीज पर देने की तैयारी कर रही है। कंपनी जल्द ही इस संबंध में कंसल्टेंट नियुक्त करने जा रही है। सूत्रों ने बताया कि कंसल्टेंट नियुक्त करने की प्रक्रिया जल्द ही शुरू हो जाएगी। कंसल्टेंट बाजार की स्थिति के मुताबिक आकलन करेगा कि किस तरह कंपनी को अपना सीडीएमए नेटवर्क लीज पर देना चाहिए जिससे कि कंपनी को ज्यादा से ज्यादा राजस्व हासिल हो सके। सूत्रों का कहना है कि कंपनी के सामने कुछ नियामक अड़चनें भी सामने आ सकती हैं। लिहाजा, बीएसएनएल इस संबंध में डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकॉम (डॉट) से यह राय-मशविरा लेगी कि किस प्रकार सीडीएमए नेटवर्क को लीज पर दिया जा सके। सूत्रों का कहना है कि नई टेलीकॉम नीति आने के बाद बीएसएनएल के लिए सीडीएमए नेटवर्क को लीज पर देना ज्यादा आसान हो जाएगा जिसमें स्पेक्ट्रम शेयरिंग की इजाजत मिल जाएगी। सूत्रों का कहना है कि कंसल्टेंट से कंपनी यह जानना चाहेगी कि सीडीएमए नेटवर्क को लीज पर देने से ज्यादा राजस्व कैसे हासिल होगा। कंपनी के सामने दो विकल्प हैं। पहला तो यह कि कंपनी सीडीएमए नेटवर्क पर वायरलेस डाटा सर्विसेज की इजाजत दे। दूसरा यह कि किसी कंपनी को स्पेक्ट्रम शेयरिंग पर दिया जाए और वह कंपनी वॉयस एवं डाटा सेवाएं मुहैया कराए। गौरतलब है, बीएसएनएल के पास 800 मेगाहट्र्ज बैंड में सीडीएमए स्पेक्ट्रम मौजूद है। कंपनी के पास देश भर के सभी सर्किलों (दिल्ली और मुंबई को छोड़) में सीडीएमए स्पेक्ट्रम मौजूद है। लेकिन, कंपनी के पास इस नेटवर्क पर ज्यादा ग्राहक नहीं हैं।
एचसीएल इंफोसिस्टम्स लिमिटेड ने सोमवार को कहा कि उसे सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) से 250 करोड़ रुपये की परियोजना का ठेका मिला है।ठेके के तहत कम्पनी अगले सात सालों तक बीएसएनएल के उत्तरी और पश्चिमी क्षेत्र में बिल जारी करने की प्रक्रिया का प्रबंधन करेगी। इसके अलावा आधुनिकतम हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर का उपयोग कर बीएसएनएल के लिए अन्य सुविधाएं भी लगाएगी।एचसीएल इंफोसिस्टम्स के अध्यक्ष और मुख्य संचालन अधिकारी जे. वी. राममूर्ति ने एक बयान जारी कर कहा कि उनकी कम्पनी ने कई सिस्टम इंटिग्रेशन समाधान का विकास किया है। कम्पनी को मिले इस ठेके से इस क्षेत्र में उसकी विशेषज्ञता का पता चलता है।
भारत संचार निगम लिमिटेड(बी एस एन एल के नाम से जाने जाने वाला भारतीय संचार निगम लिमिटेड भारत का एक सार्वजनिक क्षेत्र की संचार कंपनी है। ३१ मार्च २००८ को २४% के बाजार पूँजी के साथ यह भारत की सबसे बड़ी, संचार कंपनी है। इसका मुख्यालय भारत संचार भवन,हरीश चन्द्र माथुर लेन , जनपथ , नई दिल्ली में है। इसके पास मिनी - रत्न का दर्जा है - भारत में सम्मानित सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को दिया गया एक दर्जा।
बीएसएनएल भारत का सबसे पुराने संचार सेवा प्रदाता ( CSP ) है। बीएसएनएल को वर्तमान में 72,34 लाख ( बेसिक तथा मोबाइल टेलीफोनी )एक ग्राहक आधार है। इसके पद चिह्न महानगरों मुंबई और नई दिल्ली (New Delhi) जो एम् टी एन एल (MTNL)के द्वारा प्रबंधित प्रबंधित है,को छोड़ कर पूरे भारत में है। ३१ मार्च२००८ के अनुसार बी एस एन एल ३१.५५ मिलियन बेतार, ४.५८ मिलियन की दी एम् ऐ -डब्लू एल एल और ३६. २१ मिलियन जी एस एम् मोबाइल ग्राहकों का नियंत्रण था। ३१ मार्च २००७ को समाप्त हुए वित्तीय साल में बी एस एन एल की कमाई ३९७.१५ बिलियन रुपये (९.६७ बी ) थी। आज बी एस एन एल भारत का सबसे बड़ा टेल्को और और १०० बिलियन अमेरिकी डालर के अनुमान के साथ सबसे बड़े सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों में से एक है।
बीएसएनएल द्वारा प्रदान की जा रही मुख्य सेवाएँ
बीएसएनएल लगभग हर दूरसंचार सेवा प्रदान करता है लेकिन निम्नलिखित मुख्य दूरसंचार सेवाओं में भूमिका है
१. विश्व व्यापी दूरसंचार सेवा :नियत वायरलाइन और की दी एम् ऐ तकनीक कहे जाने वाले बी फ़ोन और तरंग क्रमशः बेतार सेवाओं में स्थानीय लूप ( डब्ल्यूएलएल ) बीएसएनएल नियत लाइन में प्रमुख प्रचालक है३१ दिसम्बर २००७ के अनुसार ,बी एस एन एल का नियत लाइन में ८१ % की बाजार हिस्सेदारी है
२ सेलुलर मोबाइल टेलीफोन सेवा : बी एस एन एल सेलुलर मोबाइल टेलीफोन सेवा को सेल वन (CellOne)[1] ब्रांड नाम के तहत जी एस एम् प्लेट फॉर्म के उन्तार्घट प्रदाता है बीएसएनएल के एक्सेल [2] को पूर्व भुगतान किया सेल्यूलर सेवा के रूप में जानते हैं३१ मार्च2007 के अनुसार बी एस एन एल के पास देश में मोबाइल टेलीफोन में १७ % हिस्सा है
3 . इंटरनेट : बी एस एन एल इन्टरनेट को डायल उप कनेक्शन के रूप में संचार नेट (Sancharnet) को , प्री पेड़ के रूप में नेट वन को पोस्ट पेड़ और ऐ दी एस एल - ब्रोड बंद को प्रदान कर रहा है बीएसएनएल के पास भारत में लगभग ५० % बाजार शेयर है बीएसएनएल ने मौजूदा वित्तीय वर्ष में आक्रामक रोल्लौत की योजना बनाये है
4 . इंटेलिजेंट नेटवर्क ( आई एन ) बीएसएनएल टेली वोटिंग की , टोल फ्री फोन , फोन आदि प्रीमियम जैसी आई एन सेवाए प्रदान कर रहा है
बीएसएनएल इकाई
बीएसएनएल कई प्रशासनिक इकाइयों में दूर संचार क्षत्रों मेट्रो जिलों विशेष परियोजना हलकों में बिवाजित है
4 .दूरसंचार फैक्टरी , कोलकाता
प्रशिक्षण संस्थानों
1 उन्नत स्तरीय दूरसंचार प्रशिक्षण केन्द्र ( ALTTC )
2 भारत रत्न भीम राव अम्बेडकर दूरसंचार प्रशिक्षण संस्थान
3 नेशनल एकेडमी ऑफ टेलीकॉम और वित्त प्रबंधन
अन्य इकाइयों
1दूरसंचार स्टोर
2 टेलीकॉम इलेक्ट्रिकल शाखा
3दूरसंचार नागरिक विंग
स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (वीआरएस)
वर्तमान वैश्वीकृत परिदृश्य में, किसी संगठन में नियोजित जनशक्ति को सही आकार देना, बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धा का सामना करने के उद्देश्य से एक महत्वपूर्ण प्रबंधन कार्य नीति बन गई है। स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति योजना (वीआरएस) कर्मचारियों की मौजूदा संख्या में समग्र कमी की व्यवस्था करने के लिए सर्वाधिक मानवीय तकनीक है। यह तकनीक कंपनियों द्वारा औद्योगिक इकाई में नियोजित कार्य बल में कमी लाने के लिए प्रयोग की जाती है। अब यह अधिक जनशक्ति को कम करने और संगठन के कार्य निष्पादन में सुधार लाने के लिए आम तौर पर प्रयोग में लाई जाती है। कर्मचारियों को कंपनी से स्वैच्छिक रूप से सेवानिवृत्त होने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए एक उदार, कर-मुक्त पृथक्करण भुगतान है। यह 'गोल्डन हैंडशेक' नाम से भी जानी जाती है क्योंकि यह छंटनी का एक स्वर्णिम माध्यम है।
भारत में औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 छंटनी द्वारा, प्रतिष्ठानों को बंद करके, अधिक स्टाफ में कमी करने के मामले में नियोजकों पर प्रतिबंध लगाता है और छंटनी प्रक्रिया में बहुत वैधताएं और जटिल प्रक्रियाएं अंतर्निहित हैं। इसके अतिरिक्त छंटनी की किसी भी योजना और स्टाफ तथा श्रमिकों की कमी का ट्रेड यूनियनों द्वारा जोरदार विरोध किया जाता है। अत: इस समस्या का समाधान करने के लिए एक वैकल्पिक कानूनी समाधान के रूप में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना की शुरूआत की गई, इसने सरकारी उपक्रमों सहित नियोजकों को अधिशेष जन शक्ति को कम करने के लिए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजनाओं की पेशकश करने की अनुमति दी और किसी भी कर्मचारी पर बाहर निकलने के लिए कोई दबाव नहीं दिया जाता है। स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजनाओं का यूनियनों द्वारा भी अधिक विरोध नहीं किया गया क्योंकि इसकी प्रवृत्ति स्वैच्छिक है और कोई दबाव का प्रयोग नहीं किया जाता है। यह सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में लागू किया गया। तथापि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना की पेशकश करने और कार्यान्वित करने से पूर्व सरकार का पूर्व अनुमोदन प्राप्त करना होता है।
एक कारोबारी फर्म निम्नलिखित परिस्थितियों में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना का विकल्प अपना सकती है :-
कारोबार में मंदी के कारण।
तीव्र प्रतिस्पर्धा के कारण, जब तक कार्मिक संख्या में कमी न की जाए, प्रतिष्ठान जीवनक्षम नहीं हो पाता है।
विदेशी सहयोगियों के साथ संयुक्त उद्यमों के कारण।
अधिग्रहणों और विलयनों के कारण।
उत्पाद/प्रौद्योगिकी के पुराने पड़ने के कारण
यद्यपि वीआरएस के लिए पात्रता मानदण्ड एक कंपनी से दूसरी कंपनी में भिन्न होते हैं, लेकिन सामान्यता जिन कर्मचारियों की आयु 40 वर्ष हो चुकी है और जिन्होंने 10 वर्ष की सेवा पूरी कर ली है, स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के पात्र हैं। यह योजना कामगारों और कार्यपालकों सहित सभी कर्मचारियों पर लागू होती है परन्तु कंपनी के निदेशकों पर नहीं। वह कर्मचारी, जो स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का विकल्प चुनता है, पूरी की गई सेवा के प्रत्येक वर्ष के लिए पैंतालीस दिन की परिलब्धियां अथवा सेवानिवृत्ति के समय पर मासिक परिलब्धियों को सेवा की सामान्य तारीख से पूर्व सेवा के शेष महीनों से गुणा करके प्राप्त राशि, जो भी कम हो, का पात्र है। इन फायदों के साथ ही, कर्मचारी अपनी भविष्य निधि और ग्रेच्युटी देयताएं भी प्राप्त करते हैं। स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के समय पर प्राप्त मुआवजा कुछ निर्धारित शर्तों को पूरा करने पर निर्धारित राशि तक आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 10 (10 ग) के अधीन कर से छूट प्राप्त है। तथापि सेवानिवृत होने वाले कर्मचारी को उसी प्रबंधन से संबंद्ध किसी अन्य कंपनी या संस्था में नियोजित नहीं किया जाना चाहिए।
कंपनियां अपने कर्मचारियों की विभिन्न श्रेणियों के लिए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की भिन्न योजनाएं बना सकती हैं। तथापि इन योजनाओं को नियम 2 ख क के आयकर नियमों में निर्धारित दिशानिर्देशों के अनुरूप होना चाहिए, आयकर अधिनियम की धारा 10 (10 ग) के प्रयोजनों के लिए दिशानिर्देश नियम 2 ख क के आयकर नियामवली में निर्धारित किए गए हैं। इन दिशानिर्देशों में यह उपबंध है कि कंपनी द्वारा तैयार की गई स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की योजना निम्नलिखित अपेक्षाओं के अनुसार होनी चाहिए, अर्थात् :-
(i) यह कंपनी के उस कर्मचारी पर लागू हो जिसने 10 वर्ष की सेवा पूरी कर ली है अथवा 40 वर्ष की आयु पूरी कर ली हैं ;
(ii) यह कंपनी के निदेशकों के अतिरिक्त कंपनी के कामगारों और कार्यपालकों सहित सभी कर्मचारियों (चाहे उन्हें किसी भी नाम से पुकारा जाए) पर लागू हों;
(iii) स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की योजना इस तरह तैयार की गई है कि इसके परिणामस्वरूप कंपनी के कर्मचारियों की मौजूदा संख्या में समग्र कटौती हो;
(iv) स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति द्वारा उत्पन्न रिक्ति को नहीं भरा जाता है, न ही सेवानिवृत्त हो रहे कर्मचारी को उसी प्रबंधन से संबद्ध अन्य कंपनी या संख्या में नियोजित किया जाना चाहिए।
(v) कर्मचारियों के स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के कारण प्राप्य राशि सेवा के प्रत्येक पूरे किए गए वर्ष के लिए डेढ़ माह के वेतन अथवा सेवानिवृत्ति के समय पर मासिक परिलब्धियों को अधिवर्षिता पर उसकी सेवानिवृत्ति की तारीख से पूर्व बचे सेवा के शेष महीनों से गुणा करके प्राप्त राशि से अधिक नहीं होगी, किसी भी स्थिति में, राशि प्रत्येक कर्मचारी के मामले में पांच लाख रुपए से अधिक नहीं होनी चाहिए।
( vi ) कर्मचारी ने विगत में किसी अन्य स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना का लाभ नहीं उठाया हो।
कुछ कंपनियां वीआरएस चुनने वाले कर्मचारियों के लिए लाभों का आकर्षक पैकेज प्रदान करती है। उदाहरणार्थ वीआरएस योजना में कर्मचारियों को उनके भविष्य के बारे में परामर्श देना; स्कीम के अंतर्गत प्राप्त निधियों का प्रबंधन; उन्हें पुनर्वास सुविधाएं प्रदान करना आदि भी शामिल हो सकता है।
कंपनी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना कार्यान्वित करते समय निम्नलिखित घोषणाएं कर सकती हैं :-
संगठन का आकार छोटा करने के कारण
स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना के लिए पात्रता मानदण्ड
योजना के लिए आवेदन कर सकने वाले कर्मचारियों की आयु सीमा और न्यूनतम सेवा अवधि
स्वैच्छिक रूप से सेवानिवृत्ति की पेशकश करने वाले कर्मचारियों को प्रस्तुत किए गए लाभ
स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए किसी आवेदन को स्वीकार करने या अस्वीकार करने क नियोजक के अधिकार
तारीख जब तक योजना खुली है
योजना से जुड़े आयकर संबंधी फायदे और आयकर का प्रभाव क्षेत्र
यह भी उल्लेख किया जाना चाहिए कि जो कर्मचारी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का विकल्प चुनते हैं और इस योजना के अधीन लाभ स्वीकार करते हैं, भविष्य में संगठन में रोजगार के पात्र नहीं होंगे।
यह पाया गया है कि स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना कानूनी दृष्टि से नियोजकों, कर्मचारियों और उनकी यूनियनों को कोई समस्या पैदा नहीं कर रही हैं। परन्तु किसी संगठन की छंटनी योजनाएं इसकी कार्यनीति संबंधी योजनाओं के संगत होनी चाहिए। इसकी कार्यविधि और लागू करने के कारणों पर शीर्ष प्रबंधन सहित सभी सभी प्रबंधन स्टाफ के साथ चर्चा की जानी चाहिए। संगठन को उन विभागों और कर्मचारियों की पहचान करने की आवश्यकता है जिन पर वीआरएस लागू है और इस तरह इसकी शर्तें तैयार करने तथा स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने वालों के लिए उपलब्ध लाभ बताने की आवश्यकता है। यह सूचना संगठन के प्रत्येक कर्मचारी को उपलब्ध कराई जानी चाहिए। जिसमें उस अवधि का उल्लेख हो जिसके दौरान योजना खुली रहेगी। इसके अतिरिक्त मौजूदा कर्मचारी भी अपनी नौकरी गंवाने के भय के कारण असुरक्षा महसूस कर सकते हैं। स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति की एक संभावित कमी यह है कि सक्षम कर्मचारी कंपनी छोड़ सकते हैं जबकि अक्षम कर्मचारी कंपनी में बने रह सकते हैं। अत: यह नियोजक का उत्तरदायित्व है कि उन्हें प्रेरित करे और उनकी आशंकाओं और डर को दूर करे।
निर्गम नीति
भारत में सुधार की पुन:स्थापना और फलस्वरूप आर्थिक उदारीकरण ने उद्यमियों को बढ़ती प्रतिस्पर्धा के दौर पर ला खड़ा किया है। तब से भारतीय कंपनियों की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा अनेकानेक उपाय किए गए हैं। एक महत्वपूर्ण सुधार उपायों की नीति श्रम क्षेत्रक सुधारों के संबंध में है। परन्तु अत्यन्त विवादस्पद मुद्दा इस क्षेत्रक में समाधान करना बाकी है, वह है निर्गम नीति। चूंकि कंपनियां लचीली निर्गम नीति की पर विवाद कर रही हैं जबकि श्रम संगठन ऐसे कदमों के विरुद्ध हैं चूंकि इससे उनकी नौकरी की सुरक्षा समाप्त होने का डर है। परन्तु फर्मों के प्रवेश और विस्तार के लिए उदा नीति केवल तब लाभदायक होगी यदि इसके साथ अव्यावहारिक फर्मों के निर्गम के लिए यौक्तिक नीति भी हो। प्रतिस्पर्धा प्रवृत्त करने और संसाधन के उपयोग का विस्तार करने के लिए यह अनिवार्य शर्त है।
एग्जिट शब्द उद्योग में प्रविष्टि का अपभ्रंश शब्द है। यह औद्योगिक यूनिटों के उद्योग छोड़ने या हटने या दूसरे शब्दों में बंद करने का अधिकार या क्षमता है। निर्गम नीति प्रवृत्त करने के प्रस्ताव पहली बार 1991 में किया गया जब ऐसा महसूस किया गया था कि श्रम बाजार के लचीला हुए बिना सक्षम औद्योगीकरण हासिल करना कठिन है। ऐसी नीति की आवश्यकता आधुनिकीकरण, प्रौद्योगिकीय उन्नयन, पुनर्गठन तथा औद्योगिक यूनिटें बंद होने के परिणामस्वरूप हुई। ऐसी नीति नियोक्ताओं को कर्मगारों को एक यूनिट से दूसरे में अंतरित करने और अधिक श्रम की छंटाई करने के लिए अनुमत करेगी। भारत में औद्यागिक विवाद अधिनियम,1947 नियोक्ताओं की छंटाई द्वारा, प्रतिष्ठान बंद करने के द्वारा अधिक कर्मचारियों को कम करने संबंधित मामले में प्रतिबंधित बंद करने के द्वारा अधिक कर्मचारियों को कम करने संबंधित मामले में प्रतिबंधित करता है और छंटाई प्रक्रिया में बहुत अधिक कानूनी औपचारिकताएं एंव जटिल प्रक्रियाएं शामिल हैं। श्रम बल की छंटाई और कम करने संबंधी किसी भी योजना का ट्रेड यूनियनों द्वारा कड़ा विरोध किया जाता है।
व्यावहारिक औद्योगिक निर्गम नीति विकसित करने के लिए मुख्य मुद्दा कर्मगारों के वैध हितों की रक्षा करना है यह सरकारी और निजी दोनों क्षेत्र में लागू होता है। इसलिए सरकार की नीति यह रही है कि यदि यूनिटों का पुनर्गठन करके और श्रमिकों का पुनर्प्रशिक्षण एवं पुन:तैनाती करके आर्थिक रूप से व्यावहारिक बनाई जाए तो इसको करने के अथक प्रयास किए जाने चाहिए केवल ऐसी यूनिटों के मामले में जहां भी श्रम पर यूनिट बंद होने के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिए अनेकानेक विकल्पों जैसे सामाजिक सुरक्षा नेट, बीमा योजनाएं और अन्य कर्मचारी के लिए लाभदायक योजनाएं तथा कर्मचारियों को छटाई का लाभ का भुगतान करने के लिए निधि का सृजन किया जा रहा है। पुन: स्थापित किए गए कुछ उपाय निम्नलिखित हैं :-
अति महत्वपूर्ण उपाय स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना शुरू कला है। इसकी शुरूआत इस समस्या का समाधान करने के लिए वैकल्पिक कानूनी समाधान के रूप में की गई थी। विद्यमान कर्मचारी क्षमता को समग्र रूप से कम करने की व्यवस्था करने हेतु अत्यन्त मानवीय तकनीकी है। यह औद्योगिक यूनिटों में नियुक्त श्रम बल की छंटाई करने के लिए कंपनियों द्वारा प्रयुक्त की जाने वाले तकनीकी है। यह आम प्रविधि हो बन गई है जो अधिक श्रम शक्ति कम करने के लिए उपयोग किया जाता है और इस तरह से संगठन के निष्पादन में सुधार किया जाता है। यह उदार कर शुक्र भुगतान है जिसके द्वारा कंपनी से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के लिए कर्मचारियों को दिया जाता है। यह गोल्डन हैंडशेक के रूप में भी जाना जाता है चूंकि यह छंटाई करने का स्वर्णिम मार्ग है।
वीआरएस नियोक्ताओं को सरकारी उपक्रमों के नियोक्ताओं सहित अधिशेष श्रम शक्ति हटाने के लिए स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति योजना की पेशकश करना अनुमत करती है इस तरह से कंपनी छोड़ने के लिए कर्मचारी पर किसी प्रकार का दबाव नहीं डला जाता है। इन योजनाओं का यूनियनों द्वारा जोरदार विरोध भी नहीं किया जाता है चूंकि इसकी स्वैच्छिक प्रकृति होती है और इसमें कोई जबरदस्ती नहीं की जाती है। इसकी शुरूआत सरकार और निजी दोनों क्षेत्रकों में की गई थी। सरकारी क्षेत्र के उपक्रम को तथापि, वीआरएस की पेशकश और क्रियान्वयन करने के पहले सरकार का अनुमोदन प्राप्त करना होता है।
व्यापारिक फर्म निम्नलिखित परिस्थितियों के अधीन स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना लागू कर सकती है :-
व्यापार में मंदी के कारण।
बहुत अधिक प्रतिस्पर्धा के कारण जब तक इसका आकार छोटा न किया जाए प्रतिष्ठान अव्यावहारिक हो जाता है।
विदेशी सहयोगियों के साथ संयुक्त उद्यम के कारण।
उत्तरदायित्व लेने और आमेलन करने के कारण
उत्पाद/प्रौद्योगिकी का लुप्तप्राय होने के कारण।
कामगारों के हितों की रक्षा करने के लिए सरकार ने वर्ष 1992 में नेशनल रिन्यूअल फंड की स्थापना की है। नेशनल रिन्यूअल फंड के उद्देश्य और विस्तार निम्नानुसार थे :- (क) आधुनिकीकरण, तकनीकी उन्नयन और औद्योगिक पुनर्संरचना के परिणामस्वरूप उभर रहे कर्मचारियों को पुन:प्रशिक्षण देने और फिर से नियुक्त करने में उसकी लागत को कवर करने में सहायता प्रदान करना। (ख) सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में पुनर्संरचना अथवा औद्योगिक इकाइयों के बंद होने के कारण प्रभावित कर्मचारियों के यदि आवश्यक हो, तो मुआवजा स्वरूप राशि मुहैया कराना (ग) औद्योगिक पुनर्संरचना के परिणामस्वरूप मजदूरों की जरूरतों के लिए निवल सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराने के मद्देनजर संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों में रोजगार सृजन स्कीमों के लिए राशि मुहैया कराना।
नेशनल रिन्यूअल फंड के दो संघटक थे :-
नेशनल रिन्यूअल ग्रांट (एनआरजीएफ) कमजोर यूनिटों के बंद होने अथवा पुनर्रुद्धार से उत्पन्न होने वाले मजदूरों की तत्काल होने वाली जरूरतों को पूरा करने से संबंधित कार्य करता है। औद्योगिक उपक्रमों के पुनर्रुद्धार करने और तकनीकी उन्न्यन औद्योगिक उपक्रमों के पुनर्रुद्धार करने और तकनीकी उन्नयन, आधुनिकीकरण, पुनर्निर्माण के कारण प्रभावित कर्मचारियों को सेवा में रखने और उन्हें परामर्श देने के लिए पुन:प्रशिक्षण और पुन:तैनाती से संबंधित अनुमोदित योजनाओं के लिए निधियों का वितरण किया जाता है। इन विधियों का उपयोग निम्नलिखित के लिए किया जाता है। औद्योगिक उपक्रमों और इसके मार्गों में यौक्तिकीकरण द्वारा प्रभावित कर्मचारियों को क्षतिपूर्ति का भुगतान करना। संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों के लिए अनुमोदित रोजगार सृजन योजनाओं हेतु रोजगार सृजन तिथि (ईजीएफ) अनुदानों का वितरण करना किया। इसमें निम्नलिखित योजनाएं शामिल थीं :- (क) औद्योगिक पुनर्गठन द्वारा प्रभावित क्षेत्रों में रोजगार के अवसर सृजित करने हेतु विशेष कार्यक्रम का निर्माण किया गया।(ख) पारिभाषित क्षेत्रों में असंगठित क्षेत्रकों के लिए रोजगार सृजन योजनाएं।
यद्यपि यह निधि समाप्त कर दी गई परन्तु सरकार लगातार इस दिशा में प्रयास कर रही है।
केंद्रीय सरकारी क्षेत्रक उद्यमों (सीपीएसयू) के यौक्तिकीकृत कर्मचारियों के परामर्श, पुन:प्रशिक्षण, पुन:तैनाती (सीआरआर) की स्कीम
स्कीम का उद्देश्य और विस्तार केंद्रीय सरकारी क्षेत्रक उद्यमों के यौक्तिकीकृत कर्मचारियों के परामर्श, पुन:प्रशिक्षण, पुन:तैनाती की व्यवस्था करना, जो केंद्रीय पीएसई में आधुनिकीकरण प्रौद्योगिकी उन्नयन और श्रम शक्ति पुनर्गठन के परिणामस्वरूप बेकार हो गए हैं। इसमें तीन मुख्य घटक शामिल हैं।
परामर्श : यह विस्थापित कर्मचारियों के पुनर्वास कार्यक्रम की बुनियादी पूर्वापेक्षा है। विस्थापित कर्मचारियों को अपने और अपने परिवार दोनों के लिए नौकरी से हाथ धोने और इसके परिणामस्वरूप चुनौतियों का सामना करने के कारण उनके द्वारा उठाई जाने वाली पीड़ा से निजात पाने के लिए मनोवैज्ञानिक परामर्श की आवश्यकता होती है। उसे नए बाजार अवसरों के प्रति जागरूक होने की आवश्यकता होती है जिससे कि वह अपनी बुद्धि और विशेषज्ञता के आधार पर उपयुक्त आर्थिक क्रियाकलाप आरंभ कर सके।
पुनर्प्रशिक्षण : यह कर्मचारियों के पुनर्वास के लिए उन्हें यौक्तिकीकृत बनाने में सहायता करता है। प्रशिक्षुओं की नए कार्यकलाप प्रारंभ करने और अपनी नौकरी चली जाने के बाद उत्पादकता प्रक्रिया में पनु: प्रवेश करने के लिए आवश्यक कौशल/विशेषज्ञता/अभिमुखीकरण प्राप्त करने में सहायता करेगा।
पुन:तैनाती : उत्पादन प्रक्रिया में ऐसे यौक्तिकीकृत कर्मचारियों में से परामर्श और पुन:प्रशिक्षण द्वारा की जाती है। कार्यक्रम के अंत में वे स्व रोजगार के वैकल्पिक व्यवसाय करने के लिए समर्थ होने चाहिए। यद्यपि इसकी कोई गारंटी नहीं हो सकती कि यौक्तिकीकृत कर्मचारी को वैकल्पिक रोजगार का आश्वासन दिया जाए तथापि अभिचिन्हांकित नोडल प्रशिक्षण एजेंसी तथा संबंधित केंद्रीय सरकारी क्षेत्रक उपक्रमों से नया व्यवसाय शुरू करने के लिए उन्हें सहायता दी जा सकती है। इस योजना की पुन:स्थापना सरकारी उद्यम विभाग द्वारा की गई थी और इसको अपने सीआरआरसैल के जरिए योजना क्रियान्वित करने की जिम्मेदारी दी गई है।
इस योजना की पुन: स्थापना लोक उद्योग विभाग द्वारा की गई थी और इसे अपने सीआरआर प्रकोष्ठ के जरिए योजना कार्यान्वित करने की जिम्मेदारी दी गई। सीआरआर योजना के लिए विभिन्न कार्यकलाप करने हेतु बहुत से नोडल प्रशिक्षण अभिकरणों की स्थापना की गई है जिनके अनेकानेक कर्मचारी सहायता केंद्र पूरे देश में योजना के तहत प्रशिक्षण की जरुरतों को पूरी करने के लिए स्थित हैं।
Disinvestment Policy
The present disinvestment policy has been articulated in the recent President's addresses to Joint Sessions of Parliament and the Finance Minister's recent Parliament Budget Speeches.
The salient features of the Policy are:
(i)
Citizens have every right to own part of the shares of Public Sector Undertakings
(ii)
Public Sector Undertakings are the wealth of the Nation and this wealth should rest in the hands of the people
(iii)
While pursuing disinvestment, Government has to retain majority shareholding, i.e. at least 51% and management control of the Public Sector Undertakings
Approach for Disinvestment
On 5th November 2009, Government approved the following action plan for disinvestment in profit making government companies:
(i)
Already listed profitable CPSEs (not meeting mandatory shareholding of 10%) are to be made compliant by 'Offer for Sale' by Government or by the CPSEs through issue of fresh shares or a combination of both
(ii)
Unlisted CPSEs with no accumulated losses and having earned net profit in three preceding consecutive years are to be listed
(iii)
Follow-on public offers would be considered taking into consideration the needs for capital investment of CPSE, on a case by case basis, and Government could simultaneously or independently offer a portion of its equity shareholding
(iv)
In all cases of disinvestment, the Government would retain at least 51% equity and the management control
(v)
All cases of disinvestment are to be decided on a case by case basis
(vi)
The Department of Disinvestment is to identify CPSEs in consultation with respective administrative Ministries and submit proposal to Government in cases requiring Offer for Sale of Government equity
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