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Monday, April 1, 2013

मथुरा : जहां गुजरात दोहराया गया

मथुरा : जहां गुजरात दोहराया गया


ज़ुल्म और बर्बरता की हदों तक कोसी कलां मथुरा दंगा 1 जून 2012

 

जस्टिस राजेंदर सच्चर द्वारा जारी जांच रिपोर्ट

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घटना की पृष्ठभूमि

संबन्धित प्रथम सूचना रिपोर्ट- 1 जून 2012 को कोसी कलां, मथुरा, उत्तर

प्रदेश में हुए दंगे के सम्बंध में पुलिस द्वारा मुकदमा अपराध संख्या 344

सन 2012 अन्तर्गत धारा 147, 148, 149, 307, 336, 332, 353, 427 आईपीसी व

धारा 7 सीएलए दर्ज करायी गई। जिसके वादी जमादार सिंह यादव एसआई हैं। इस

मुकदमें में 34 हिंदू और 29 मुसलमानों को नामजद अभियुक्त बनाया गया।

मुकदमा अपराध संख्या 344 ए एसआई पंकज कुमार द्वारा अन्तर्गत धारा 147,

148, 149, 307, 436, 427, 340 व 7 सीएलए एक्ट 13 नामजद हिंदू एक 50-60

अन्य अज्ञात के विरुद्ध दर्ज कराया गया। मुकदमा अपराध संख्या 344 बी

जिसके वादी एसओ राजवीर सिंह यादव हैं ने अन्तर्गत धारा 147, 148, 149,

307, 332, 336, 353, 143, 436, 427, 336 आईपीसी व 7 सीएलए एक्ट हैं। इस

मुकदमें में 17 मुस्लिम व 700-800 अज्ञात मुस्लिम अभियुक्त बनाए गए हैं

और 18 हिंदू व 700-800 अज्ञात हिंदू अभियुक्त बनाए गए हैं। उपरोक्त तीनों

मुकदमों में पुलिस द्वारा अन्तर्गत धारा 120 बी आपराधिक षडयंत्र रचने

वालों को अभियुक्त नहीं बनाया गया। इन तथ्यों और इनसे संबन्धित साक्ष्यों

को खोजकर निष्पक्ष विवेचना का होना आवश्यक है।

 

दंगे की साजिश-

हिंदू लड़कियों के बलात्कार और हत्याओं की झूठी अफवाहें फैलाना-

1 जून 2012 को सराय शाही मस्जिद के बाहर खालिद और अन्य व्यक्तियों द्वारा

नमाजियों और आम जनों को पिलाने के लिये बड़े ड्रम में शर्बत बनवाया गया

था। देबो पंसारी नामक व्यक्ति जिसकी पास में ही दुकान भी है, पेशाब करके

आया और शर्बत भरे ड्राम में हाथ डाल कर शर्बत निकाला और हाथ धो लिये।

उसने ऐसा जानबूझ कर किया था। क्योंकि हाथ पास में लगे नल पर भी धोए जा

सकते थे और खुद उसकी दुकान पर भी पानी रहता है। यह घटना अनेक व्यक्ति जो

नमाज के लिये आ रहे थे ने देखी। खालिद ने यह देख कर ऐतराज करते हुये देबो

पंसारी से कहा सुनी की। लगभग पौन घंटे बाद जब नमाजी मस्जिद से नमाज पढ़

कर आये तो ढ़ाई-तीन सौ हिंदुओं की भीड़ इकठ्ठा हो गयी थी। जिसमें भगवत

प्रसाद रूहेला (वर्तमान चेयरमैन नगरपालिका परिषद, कोसी कलां), बंटी

बीजवाला, सुरेश घी वाला, गिरधारी अचारवाला, घोटू बरफवाला, भगवत अचारवाला,

लांगोरिया बैंड मास्टर, हरी शंकर सैनी, दिनेश बठैनिया, मुकेश गिडोहिया,

महेश चक्की वाला, बांके पटवारी आदि व्यक्ति थे। जो कि चिल्ला-चिल्ला कर

उपस्थित व्यक्तियों को उकसा रहे थे और मोबाईल फोनों पर कह रहे थे कि

मुसलमानों ने हिंदुओं की लड़कियों को उठा लिया है और बलात्कार करके उनकी

हत्याएं कर दी हैं। इसलिए आप लोग अपने अपने गांवों से ज्यादा से ज्यादा

लोगों को लेकर आ जओ। मंत्री लक्ष्मी नारायण आ रहे हैं और विधायक लेखराज

भी लखनऊ से चल दिये हैं। और उन्होंने कहा है कि मुसलमानों की ईंट से ईट

बजा दो।

नोट - उपरोक्त तथ्य गवाहों द्वारा वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक मथुरा को भेजे

गये शपथ पत्रों के आधार पर उल्लिखित हैं।

इसके पश्चात कोसी कलां नगर में मुसलमानों की दुकानों को चुन-चुन कर,

उनमें लूट पाट व आगजनी की गयी। शाम चार बजते बजते आस पास के ग्रामीण

इलाकों से लगभग बीस हजार से अधिक लोगों की भी कोसी कलां आ गयी। दि हिंदू

समाचार पत्र को दिये अपने साक्षात्कार में तत्कालीन जिलाधिकारी श्री संजय

कुमार ने भी यह स्वीकारा है कि हिंदुओं की लड़कियों के साथ बलात्कार और

उनकी हत्या करने की भी अफवाह फैलायी गयी थी। जिसका हमने खंडन किया था।

परन्तु हथियार बंद भीड़ से लड़ने के लिये हमारे पास पर्याप्त सुरक्षा बल

मौजूद नहीं थे। वहीं एक दूसरे वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से उसी अखबार में

छपा कि विधान सभा चुनाव में मुस्लिम और जाट मतदाताओं ने लोकदल उम्मीदवार

तेज पाल सिंह को समर्थन दिया था और यह दंगा श्री तेजपाल सिंह के

विरोधियों को नगरपालिका चुनाओं में मदद करेगा। यह उल्लेखनीय है कि भगवत

प्रसाद रूहेला जिनकी भूमिका गवाहों ने बतायी है जिसका विवरण उपर आया है

नगरपालिका चुनाव में भाजपा की तरफ से अध्यक्ष पद के उम्मीदवार बने और

चुनाव जीत गये।

 

दंगे में पूर्व मंत्री लक्ष्मी नारायण, उनके भई लेखराज सिंह एमएलसी और

नरदेव पुत्र लेखराज सिंह एमएलसी की भूमिका

गवाहों द्वारा वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक मथुरा को संबोधित अपने शपथपत्रों में

कहा गया है कि दिनांक 1 जून 2012 की रात्री में करीब साढ़े दस बजे एमएलसी

लेखराज सिंह, पूर्व मंत्री लक्ष्मी नारायण और नरदेव मोहल्ला नकासा में

भगवत प्रसाद रूहेला और कई अन्य (जिनके नाम शपथपत्रों में दिये गये हैं)

आए। और इनके साथ चल रहे बंदूक धारियों ने हवाई फायरिंग भी की। नरदेव ने

चिल्ला चिल्लाकर मुसलमानों को गालियां देते हुये कहा कि तुम्हारे तीन मार

दिये हैं और जिसकी ख्वाहिश हो बाहर आ जाओ।

 

दंगे में हुयी हत्याएं

कोसी कलां दंगे में शाम 6 बजे के बाद स्थिति और भयावह हो गयी जब राठौर

नगर में गोली बारी के दौरान तीन व्यक्ति घायल हुये और जिनकी मृत्यु हो

गयी। गवाहों ने अपने शपथपत्रों में कहा है कि मोहल्ला राठौर नगर में शाम

लगभग 6 बजे बठैन गेट की तरफ से नरदेव, भगवत रूहेला, हरिशरण बिछौरिया,

राजेंद्र उर्फ रज्जी, महिंदर व सोना पुत्रगण बलवंत, दिनेश बठैनिया, मुकेश

गिडोहिया, राजू सैनी, गोविंद बरहानिया एवं अन्य जिनके नामों का उल्लेख

किया गया है, पचास साठ अन्य आये और मुसलमानों के घरों में लूटपाट व आगजनी

शुरू कर दी और अधाधुंध फायरिंग भी की। गवाहों ने देखा कि इसी फायरिंग में

सोना और महिंदर की गोलियां सलाहुदीन पुत्र इस्लाम को लगीं और वह मौके पर

ही गिर गया। जिसे घायल अवस्था में भी लाठी और हाकीयों से मारा। इसी

फायरिंग में सोना और महिंदर की गोलियां भूरा को भी लगीं। कलवा (भूरा का

जुड़वा भाई ) भी पास में खड़ा था जिसे गोली नहीं लगी। हमलावरों के जाने

के बाद गवाहों ने और कलवा ने भूरा को रिक्शे में लिटा दिया। सलाहुदीन और

भूरा दोनों को जिन स्थलों पर गोलियां लगीं उनके बीच की दूरी लगभग पचास

कदम की है। और उन स्थलों से लगभग डेढ़ सौ मीटर की दूरी पर उनके घर बने

हैं। इन्हें गोली लगने की सूचना मिलते ही फरजाना (भूरा की सास), भूरा की

पत्नी सीबीया, कलवा की पत्नी शबनम, सलाहुदीन की पत्नी आसमा भी आ गये।

घायल अवस्था में ही सलाहुदीन और भूरा ने अपनी अपनी पत्नियों और फरजाना,

इकराम, कलवा सहित अन्य की मौजूदगी में भी बताया कि उन्हें गोली सोना और

महिंदर ने ही मारी है। यह उल्लेखनीय है कि सोना और महिंदर का घर तीन सौ

मीटर के फासले पर उसी दिशा में है जिधर से हमलावर आए थे।

कलवा अपने भाई भूरा को माल ढ़ोने वाले रिक्शे पर लिटा कर गली के पिछले

रास्ते से जीटी रोड की तरफ चल दिया जिसके पीछे पीछे फरजाना गयी। कलवा जब

चैहान नसिंर्ग होम पर पहंुचा तो वहां मौजूद लोगों ने उसे चले जाने को कहा

तब फरजाना के कहने पर वह निरंजन अस्पताल जाने के लिये वापस मेन रोड पर

आया कि तभी नरदेव बुलैरो से वहां से गुजरा और बठैन चैराहे की तरफ गया।

कलवा रिक्शा लेकर घायल भूरा और फरजाना के साथ जब बठैन चैराहे पर पहंुचा

तब नरदेव, सोना और महिंदर व अन्य जिनके नाम गवाहों के शपथपत्रों में आये

हैं एवं अन्य अज्ञात कलवा और भूरा सहित फरजाना पर टूट पड़े। धारदर

हथियारों से कलवा और भूरा को मारा गया और घटना स्थल पर ही कबाड़े की

गोदाम/दुकान के बाहर भारी मात्रा पर पड़े टायर, प्लास्टिक और लकडि़यों

में दोनों को फेंक दिया और आग लगा दी। जलती हुयी आग से भी छटपटाते हुये

जब कलवा ने प्रयास किया तो उसे वापस आग में धकेल दिया गया जहां दोनों की

मृत्यु हो गयी। फरजाना की आबरूरेजी की कोशिश की गयी और उसे बुरी तरह मारा

गया। इस घटना का गवाह एक छोटा बच्चा भी बताया जाता है। इस घटना की बाबत

मुकदमा अपराध संख्या 344 ई थाना कोसी कलां में मृतक कलवा और भूरा के भई

सलीम उर्फ सबुआ द्वारा दर्ज हुआ है।

इस रिपोर्ट को तैयार करते समय जब उक्त सलीम से पूछ ताछ की गयी तब उसने

कुछ और चैकाने वाली बातें बतायीं। उसने कहा कि मैं सदमे में बदहवास था

इसलिये पूरी बात मेरे मुंह से नहीं निकल पा रही थीं। रिपोर्ट में लिखा

गया है कि हमलावरों के साथ लेखराज सिंह एमएलसी भी आए थे। जब कि मैंने

रिपोर्ट लिखने वाले पुलिस कर्मी को बताया था कि नरदेव पुत्र लेखराज

हमलावरों में था परंतु रिपोर्ट में लेखराज का भी नाम जोड़ दिया गया है।

जबकि मुझे पता चला है कि वह उस दिन लखनऊ में थे और रात में नौ दस बजे

कोसी कलां पहुंचे थे। उसने कहा कि मेरे बताने के बावजूद एफआईआर में यह

नहीं लिखा गया कि सलाहुदीन की मृत्यु भी इसी गोलीबारी में हुयी। और ना ही

मेरे बताने के बावजूद कलवा और भूरा के जिंदा जलाने की घटना का उल्लेख

किया गया। उसने यह भी बताया कि पूर्व मंत्री लक्ष्मी नारायण, एमएलसी

लेखराज और नरदेव मुझको धमका रहे हैं और गवाही बदलने के लिये कह रहे हैं।

मै बहुत डरा और सहमा हूं। सरकार ने मुझे सुरक्षा गार्ड दिया है परंतु

मेरी हत्या हो सकती है।

 

एमएलसी लेखराज को क्लीनचिट देना गलत

षडयंत्रकारी भूमिका की जांच क्यों नहीं

यहां यह उल्लेखनीय है कि सरकार द्वारा विधान परिषद में माननीय सदस्यों को

यह जानकारी दी गयी कि विवेचना में लेखराज सिंह को क्लीनचिट मिल गयी है।

जबकि सत्य यह है कि गवाहों ने शपथपत्र में उल्लेख किया है कि एमएलसी

लेखराज के नाम का उल्लेख करते हुए भगवत रूहेला और अन्य उक्त लोगों ने

गांव-गांव फोन करके ग्रामीणों को कोसी कलां बुलाया और हिंदू लड़कियों के

साथ बलात्कार और कत्ल की झूठी खाबर प्रसारित की गयी। जिसकी प्रतिक्रिया

और उकसावे में लगभग बीस हजार ग्रामीण कोसी कलां आ गये। जिन्होंने जमकर

लूटपाट और आगजनी, हत्याएं कीं जिनमें नरदेव पुत्र लेखराज एमएलसी शामिल

रहा। रात के करीब साढ़े दस बजे नकासा में पूर्व मंत्री लक्ष्मी नारायण,

लेखराज सिंह एमएलसी, नरदेव व अन्य उक्त लोगों के साथ गये जहां नरदेव ने

हवाई फायरिंग अपने समर्थकों से करायी और मुसलमानों से कहा कि तुम्हारे

तीन मार दिये हैं। किसी और की ख्वाहिश हा तो आ जाओ।

इन तीनों व्यक्तियों और भगवत प्रसाद रूहेला सहित अन्य लोगों की

षडयंत्रकारी भूमिका की जांच पुलिस द्वारा अन्र्तगत धारा 120 बी आईपीसी

नहीं की गयी। और इनके टेलीफोन डिटेल भी नहीं खंगाले गये। इस प्रकार

अखिलेश सरकार की पुलिस ने असल षडयंत्रकारी और दंगाई राजनीतिज्ञयों को

बचाया, एफआईआर में सम्पूर्ण तथ्य नहीं लिखे बल्कि उलटे खालिद को ही

राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत बंद कर दिया गया। यह सब बहुसंख्यक वोट

बैंक को खुश करने के उद्येश्य से किया गया। जबकि अभी दो दिन पूर्व खालिद

पर सेे रासुका को हटा लिय गया और यह सियासी नगाड़ा बजाया जा रहा है कि

हमारी सरकार ने खालिद को रिहा कर दिया। प्रश्न यह है कि खालिद को झूठे

आरोपों में रासुका के तहत बंद क्यों किया गया। जबकि जिन्होंने दंगा

षडयंत्र रचकर कराया रासुका उन पर लगाया जाना चाहिए है। परन्तु रासुका तो

दूर उन्हें सामान्य दफाओं के अन्तर्गत भी मुल्जिम नहीं बनाया गया। मुकेश

गिडोहिया को भी रासुका के तहत बंद किया गया था परन्तु उसे खालिद की रिहाई

से तीन सप्ताह पूर्व ही छोड़ दिया था। खालिद की रिहाई के लिए सरकार इस

लिए भी मजबूर हुई क्योंकि खालिद ने अपनी रासुका निरुद्धी के विरुद्ध उच्च

न्यायालय इलाहाबाद में पिटीशन फाइल की थी जहां सरकार को इस निरुद्धी को

जायज ठहराना मुश्किल पड़ रहा था।

 

खालिद पर रासुका लगा कर आखिर सरकार ने क्या संदेश दिया

क्या सरकार ने यह केवल खानापूर्ती के लिए किया या हिंदुत्ववादियों के

तुष्टीकरण के लिए किया? लेकिन इससे एक संदेश यह गया कि खालिद मुसलमानों

का एक ऐसा चेहरा है जिसने दंगा कराया और वह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए

खतरा है। अगर इस बात को हम उपलब्ध तथ्यों और साक्ष्यों की कसौटी पर कसें

तो तस्वीर इसके एकदम उलट है। आम जनता को न्याय उपलबध कराने का सर्वप्रथम

दायित्व सरकार पर है क्योंकि जो आरोप पत्र सरकारी एजेंसियां न्यायालय में

प्रस्तुत करती हैं। न्यायालय उसी पर विचार करता है और यदि मामले की

विवेचना करते समय जांच एजेंसी पक्षपता पूर्ण रवैया अपनाए, तथ्यों को तोड़

मरोड़कर झूठी कहानी बनाए और साक्ष्य गढ़े, जिसका मकसद असल अपराधियों को

बचाना हो तो फिर न्याय के लिए ऐसी सरकार से आशा करना कैसे संभव हो सकता

है। खालिद पर रासुका लगाकर सरकार ने जहां एक निर्दोष को बे बजह मानसिक

यातना दी उसकी स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर कुठराघात किया वहीं परे

समाज को यह संदेश भी दिया कि ये लोग राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है।

इससे अल्पसंख्यक वर्ग में भी एक संदेश गया कि यदि आप अपने साथ होने वाली

किसी बत्तमीजी का विरोध करते हैं तो यह आपका अपराध होगा और आपको रासुका

में बंद किया जा सकता है। शर्बत भरे ड्रम में हाथ डालकर पेशाब के हाथों

को धोना यदि बदतमीजी न माना जाए और इसका विरोध न किया जाए तो कल कोई भी

मुसलमान अपनी जान और माल कि सुरक्षा अपनी प्रतिष्ठा और नागरिक स्वतंत्रता

की सुरक्षा, अपनी मस्जिद और मदरसों की सुरक्षा, यहां तक कि सड़क पर चलती

अपनी महिलाओं की सुरक्षा नहीं कर पाएगा। इससे अल्पसंख्यकों के मन में

असुरक्षा व्याप्त हुई है कि यदि खालिद पर मामूली बात के विरोध करने पर

रासुका लगाई जा सकती है तो किसी बड़ी घटना का विरोध कोई मुसलमान कैसे कर

सकता है। खालिद पर रासुका लगाकर सरकार ने मुसलमानों का दमन किया है।

उन्हें न्याय से वंचित किया है और उनमें असुरक्षा की भावना पैदा की है,

जिससे वे अपने अधिकारों के प्रति लड़ने की हिम्मत व भावना न पैदा कर सकें

और खुद को दो नम्बर का शहरी महसूस करें। साथ ही सरकार ने वही काम किया है

जिसको करने के लिए हिन्दुत्वादी कहते हैं कि यदि हम सरकार में होते तो

ऐसा करते। सरकार का यह कदम लोकतंत्र विरोधी है।

 

खालिद द्वारा दर्ज कराई गई रिपोर्ट

खालिद द्वारा अपने घर, धोबी की दुकान, मुजफ्फर नगर वाले मुस्लिम कपड़ा

व्यापारी के शो रुम को लूटने और जलाने के संबन्ध में दिनेश आढ़तिया, राजू

महावर, उसके भाई योगेश और भगवत बिसायती व अन्य अज्ञात की भूमिका बताते

हुए, मुकदमा अपराध संख्या 341 चिक संख्या 344/12 दर्ज कराई। परन्तु इस पर

विवेचना ठंडे बस्ते में डाल दी गई।

 

खालिद एवं अन्य 54 के विरुद्ध दर्ज मुकदमें का सच

वक्फ प्रापर्टी पर कब्जा करने वाले और दंगे का षडयंत्र रचने वाले हरि

शंकर सैनी द्वारा खालिद एवं अन्य के विरुद्ध मुकदमा अपराध संख्या 408 एच

दर्ज कराया गया। खालिद वक्फ संख्या 53 की निगरानी के लिए उत्तर प्रदेश

सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड द्वारा बनाई गई कमेटी में सचिव बनाया गया था।

वक्फ बोर्ड द्वारा दिनांक 4 जुलाई सन 2009 को अनतर्गत धारा 54 (3) वक्फ

एक्ट 1995 के अन्तर्गत अपनी शक्तियों का उपयोग करते हुए रमेश शाहबुद्दीन,

रईश, वहीद, ओम प्रकाश, नशरु, हरमुख सैनी व चेतन बिज को निर्देश दिया था,

कि वे अपना कब्जा हटाकर उसका कब्जा सचिव खालिद अली पुत्र सगीर अली को दे

दें। ओम प्रकाश और हरमुख सैनी ने वक्फ बोर्ड में कहा कि दुकान में हरि

पुत्र नवल किराएदार है और वे उसकी दुकान में नौकर का कार्य करते हैं।

वास्तविकता यह है कि हरि पुत्र नवल ने अपनी सब्जी आढ़त की दुकान का

कारोबार बंद कर दिया था, क्योंकि सब्जी मंडी दूसरे स्थल पर जो सरकार

द्वारा बनाया गया था, स्थानांतरित हो गई थी। इसलिए प्रश्नगत दुकान में

उंची किराया दर पर हरि पुत्र नवल ने सिकमी किराएदार हरमुख और ओम प्रकाश

को रख लिया था जो गैर कानूनी था। इसीलिए वक्फ बोर्ड द्वारा अपनी शक्तियों

का उपयोग करते हुए बेदखली के आदेश दिए थे। किन्तु  4 जुलाई 2009 के इस

आदेश पर जिला प्रशासन के सहयोग न करने के कारण अमल नहीं हो सका। हरि

द्वारा रईश पुत्र मोहम्मद दीन को नौ हजार रुपए मासिक किराए पर सिकमी

किराएदारी पर दे दी गई। 1 जून 2012 को जिस दिन दंगा हुआ दुकान पर रईस

पुत्र मोहम्मद दीन का ही सिकमी किराएदार के रुप में कब्जा था जिसकी दुकान

में भी लूटपाट व आगजनी हुई प्रशासन द्वारा लूटपाट व आगजनी के पीडि़तों की

जो सूची तैयार की गई उसमें भी रईस पुत्र मोहम्मद दीन का नाम है जिसको

आर्थिक सहायता राशि तीस हजार रुपए स्वीकार की गई थी। दुकान लूटपाट व

आगजनी की घटना के बाद खाली पड़ी थीं जिस पर हरि पुत्र नवल ने फिर से अपना

कब्जा कर लिया और निर्माण कार्य कराने लगा। इस सम्बन्ध में खालिद के

पैरोकार व वक्फ बोर्ड द्वारा बनाई गई कमेटी के सदस्य गफ्फार द्वारा 30

अगरस्त 2012 को थाना कोसी कला में प्रार्थना पत्र भी दिया कि अवैध रुप से

निर्माण कार्य कराया जा रहा है।

हरि पुत्र नवल ने दुर्भावनावश दिनांक 31 जुलाई 2012 को मुकदमा अपराध

संख्या 410 एच  दर्ज कराया, जिसमें उसने खालिद की  वलिदयत न मालूम लिखी

और गफ्फार को घड़ी वाला लिखा। इसमें उसने लिखा कि 55 नामजद लोगों ने

150-200 अज्ञात के साथ उसनी प्रश्नगत दुकान पर लूटपाट व आगजनी की उस समय

दुकान पर उसका पुरत्र छेल बिहारी बैठा था। यह मुकदमा दो महीने की देरी से

दर्ज कराया गया था। विवेचना अधिकारी ने दिनांक 8 अगस्त 2012 को घटना

स्थल का निरिक्षण किया, जिसमें उसने लिखा है कि रईस पुत्र मोहम्मद दीन

ने भी इस दुकान को अपनी किराएदारी पर बताया और वादी (हरि) का पुत्र

(छैलबिहारी) इस समय मौजूद नहीं हैं। 7 सितंबर 2012 को उक्त हरि शंकर ने

विवेचक को दिए अपने बयान में कहा कि खालिद, गब्बर, रऊफ, रईश, अजीज टेलर,

शरीफ पुत्र बशीर, शरीफ पुत्र कल्लू, नवाब पुत्र कल्लू, ही वास्तविक

हमलावर थे और फिर 13 सितंबर 2012 को छेलबिहारी ने अपने बयान में कहा कि

यही आठ आदमी लूटपाट व आगजनी करने वाले थे बाकी लोगों के नाम किसी के कहने

पर लिखा दिए गए है। यही बयान वादी हरि शंकर और छैल बिहारी ने 22 दिसंबर

2012 को फिर से दोहराया। जिसमें उन्होंने कहा कि उपरोक्त आठ  व्यक्तियों

के अलावां बाकी 46 नामजद लोगों के नाम हमने किसी के कहने पर लिखा दिए थे।

विवेचक द्वारा उक्त आठ व्यक्तियों के खिलाफ आरोप पत्र न्यायालय में दाखिल

कर दिया गया। विवेचक द्वारा रईस पुत्र मुहम्मद दीन के बयान दर्ज नहीं किए

गए जिसका कहना था कि दुकान पर वह किराए दार के रुप में काबिज हैं। यदि

विवेचक द्वारा इस तथ्य की छानबीन की जाती कि 1 जून 2012 के दिन रईस इस

दुकान पर काबिज था और लूटपाट और आगजनी की घटना में उसी का नुकसान हुआ तो

दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता। परन्तु विवेचक द्वारा राजनीतिक दबाव

में इस तथ्य को अनदेखा करते हुए आरोप पत्र दाखिल कर दिया गया। यह

उल्लेखनीय है कि खालिद अली को रासुका लगाने के आधारों में एक आधार मुकदमा

अपराध संख्या 310 एच भी था। जिसमें हरिशंकर द्वारा खालिद को लूटपाट व

आगजनी करने वाला बताया था।

 

कब्रिस्तान भूमि पर पूर्व मंत्री लक्ष्मीनारायण परिवार का कब्जा

जांच दल को यह जानकारी भी प्राप्त हुयी कि खसरा नं 1254 रकबा नं 178 और

खसरा नं 1259 रकबा 0ः 182 में कब्रिस्तान दर्ज है जो एक लम्बे समय तकरीबन

सौ वर्षों से कब्रिस्तान चले आ रहे हैं। जांच दल को प्रतिलिपी खसरा ग्राम

कोसी कलां जेड ए तहसील छाता जिला मथुरा सन 1396 फसली की स़त्र प्रतिलिपी

उप्लब्ध करायी गयी। जिसमें कब्रिस्तान दर्ज है। इस भूमि पर श्रीमति ममता

पुत्री अमीरचंद पत्नी लक्ष्मी नारायण और राजेंद्र प्रसाद उर्फ रज्जी,

जयन्ती प्रसाद आदि लोगों ने गैरकानूनी तरीके से कब्जा कर चारदिवारी करा

ली। इस सम्पत्ति पर मुकदमेबाजी चल रही है जिसकी पैरोकारी खालिद और गफ्फार

द्वारा की जा रही है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अनेक वादों में यह

विधि व्यवस्था दी है कि किसी भी भूमि पर यदि एक बार कब्रिस्तान हो जाता

है, भले ही वह वक्फ बोर्ड में पंजीकृत हुआ हो या न हुआ हो, उसकी श्रेणी

कब्रिस्तान के रूप से नहीं बदली जा सकती। विधि का यह स्थापित मत है कि ''

एक बार कब्रिस्तान तो हमेशा के लिए कब्रिस्तान ''।

कोसी कलां में कब्रिस्तान सम्बंधी अन्य विवाद भी चल रहे हैं और

कब्रिस्तानों की जगह पर बहुसंख्यक समाज के राजनीतिक प्रभाव वाले लोग उन

पर कब्जा कर रहे हैं।

 

विवेचक द्वारा वादी पर दबाव बनाना कि वे अभियुक्तों से समझौता कर लें

सलाउद्दीन के हत्या के सम्बन्ध में उसके पिता द्वारा मुकदमा अपराध संख्या

344 डी दर्ज कराया गया यह एफआईआर दो जून को लिखाई गई। इस एफआईआर में

इमामुद्दीन और समद को गवाह बताया गया और सोना तथा महेन्द्र को गोली बारी

अपने पन्द्रह-बीस साथियों के साथ करते हुए बताया गया। दिनांक 11 जून 2012

तक कर्फ्यू लग रहा। 26 जून 2012 को इस्लाम द्वारा लिखित रुप से पुलिस के

उच्च अधिकारियों को बताया गया कि घटना के और भी गवाह हैं जिन्होंने घटना

में शामिल अन्य अभियुक्तों को भी देखा है। इसलिए उनके बयान दर्ज कराए

जाएं। परन्तु पुलिस अधिकारियों द्वारा इस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई एव

अन्य चश्मदीद गवाहों के बयान अन्तर्गत धारा 161 दर्ज नहीं किए गए। इस्लाम

का यह भी कहना है कि पुलिस ने कभी भी अन्तर्गत धारा 161 उसके बयान दर्ज

नहीं किए और न ही इमामुद्दीन और समद के बयान दर्ज किए। इस्लाम ने बताया

कि दिसम्बर 2012 में श्री बंशराज सिंह यादव जो क्षेत्राधिकारी मथुरा

रिफाइनरी है और इस मामले के विवेचक हैं, का एक पत्र उसे प्राप्त हुआ

जिसमें उसे बयान देने के लिए बुलाया गया था। परन्तुजब वह अपना और अपने

गवाहों का बयान दर्ज कराने उनके कार्यालय में पहुंच तो बयान दर्ज नहीं

किया गया उल्टे बंसराज यादव ने कहा कि तुम दो लाख रुपए लेकर अभियुक्तों

से समझौता कर लो। प्रश्न पैदा होता है कि क्या यह निष्पक्ष विवेचना है?

क्या यह अल्पसंख्यकों का दमन और  अभियुक्तों का हौसला बढ़ाना नहीं है।

एक अन्य व्यक्ति जिसका नाम सोनू पुत्र मंगल निवासी सैनी मोहल्ला है की

हत्या के सम्बंध में उसके परिजनों द्वारा मुकदमा अपराध संख्या 344 डी

2012, ंछलिया, मुन्ना व पप्पू (तीनों मुसलमान) के विरूद्ध दर्ज कराया गया

है। परंतु हमारी जांच के दौरान इसका क्रास वर्जन भी सामने आया है जिसमें

कुछ लोगों द्वारा बताया गया कि सोनू पुत्र मंगल को भी उसी समय गोली लगी

थी जब हुयी फायरिंग में सलाहुदीन और भूरा को गोलीयां लगी थीं और सोनू

पुत्र मंगल भी उन्हीं हमलावरों की गोलियों से घायल हुआ था।

 

घायलों द्वारा दर्ज कराए मुकदमें, जांच ठण्डे बस्ते में, घायलों को मुआवजा नहीं

मुकदमा अपराध संख्या 344 यू वादी बाबू ने अपने पुत्र आशु के घायल होने के

संबन्ध में दर्ज कराया। मुकदमा अपराध संख्या 344 वी शायर पुत्र हमीद ने

दर्ज कराया जिसमें यह भी उल्लेख किया है कि उसे उसकी बारह वर्षीय पुत्री

फरीन उसे जली हुई अवस्था में मिली। मुकदमा अपराध संख्या 402/12 फखरुद्दीन

पुत्र शाहबुद्दीन ने दर्ज कराया। मुकदमा अपराध संख्या 402 एफ/12 आमिल

पुत्र यामीन द्वारा दर्ज कराया गया। मुकदमा अपराध संख्या 403 एम/12 हारुन

पुत्र नजीर द्वारा दर्ज कराया गया। मुकदमा अपराध संख्या 405 डी शहजाद

पुत्र करीमुल्ला द्वारा दर्ज कराया गया। मुकदमा अपराध संख्या 406 /12 रईस

पुत्र गफ्फार द्वारा दर्ज कराया गया जिसमें उसने अपने भाई जाकिर के

घायल होने का उल्लेख किया। मुकदमा अपराध संख्या 409/बी अश्फाक पुत्र दौला

ने अपने पुत्र इरफान के घायल होने के संबन्ध में दर्ज कराया जबकि इरफान

द्वारा अपने घायल होने के सम्बन्ध में मुकदमा अपराध

संख्या 403 ई/12 दर्ज कराया। मुकदमा अपराध संख्या 402/12 प्रथम सूचना

रिपोर्ट संख्या 267 अफसर  द्वारा अपने पिता के घायल होने के सम्बन्ध में

दर्ज कराया गया। अल्लादिया पुत्र डलवा ने भी मुकदमा अपराध संख्या 402 ई

प्रथम सूचना रिपोर्ट नम्बर 386 दर्ज कराई। वकील पुत्र खलील, नकीम पुत्र

मुबीन, नाजिम पुत्र इलियास, सईम उर्फ चोंचू पुत्र कल्लू द्वारा भी अपने

घायल होने के सम्बन्ध में मुकदमा दर्ज करने के प्रार्थना पत्र दिए गए है।

 

लूट-पाट और आगजनी के सम्बन्ध में दर्ज मुकदमें

लूट-पाट और आगजनी के मामलों में 27 मुसलमानों द्वारा नामजद अभियुक्तों के

विरुद्ध मुकदमें दर्ज कराए गए। जिनको सूची ए में  उल्लेख किया है। जबकि

सौ मुसलमानों द्वार अज्ञात अभियुक्तों के विरुद्ध मुकदमें दर्ज कराए गए,

जिनको सूची बी में उल्लेख किया गया है। 35 मुसलमानों द्वारा रजिस्टर्ड

द्वारा मुकदमा दर्ज करने के प्रार्थना पत्र दिए गए। जिनको सूची सी में

उल्लेख किया गया है। इन सभी की जांच ठंडे बस्ते में है।

सूची ए-

1- मुकदमा अपराध संख्या 397 जी/12 वादी सलीम पुत्र इमामुद्दीन

2- मुकदमा अपराध संख्या 395/12 वादी चुन्नू पुत्र हनीफ

3- मुकदमा अपराध संख्या 389 सी/12 जाबिर पुत्र इरशाद

4- मुकदमा अपराध संख्या 401/12  अब्दुल सलाम पुत्र जमालुद्दीन

5- मुकदमा अपराध संख्या 401 एफ/12 रईस पुत्र साबू

6- मुकदमा अपराध संख्या 401 जी/ 12 नूरद्दीन पुत्र कल्लू

7- मुकदमा अपराध संख्या 405 डी/12 नूर मोहम्मद पुत्र हीरे खां

8- मुकदमा अपराध संख्या 407 बी/12 मोहम्मद आरिफ पुत्र हबीब

9- मुकदमा अपराध संख्या 401 आई/12 निजामुद्दीन पुत्र नन्हें

10- मुकदमा अपराध संख्या 395/12 कयूम पुत्र निजामुद्दीन

11- मुकदमा अपराध संख्या 401 जे/12 जाकिर पुत्र निजामुद्दीन

12- मुकदमा अपराध संख्या 395 बी/12 सुफियान पुत्र बशीर

13- मुकदमा अपराध संख्या 405/12 हाजी रईस पुत्र फैयाज

14- मुकदमा अपराध संख्या 406/12 अब्दुल अजीज पुत्र अल्लादीन

15- मुकदमा अपराध संख्या 406/12 चांद पुत्र बबुआ- प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 458

16- मुकदमा अपराध संख्या 407/12 शहजाद पुत्र हाजी शुबराती

17- मुकदमा अपराध संख्या 403/12 जाहिद पुत्र शौकत

18- मुकदमा अपराध संख्या 341/12 ताहिर उर्फ काले पुत्र अहमद हुसैन- प्रथम

सूचना रिपोर्ट  259

19- मुकदमा अपराध संख्या 401/12 घसीटा पुत्र शफी

20- मुकदमा अपराध संख्या 406 ए/12 अनवार पुत्र मुंशी

21- मुकदमा अपराध संख्या 397 सी/आशिक पुत्र हाजी इस्लाम

22- मुकदमा अपराध संख्या 401 बी/12 अब्दुल मजीद पुत्र हाजी बाबू

23- मुकदमा अपराध संख्या 394 एच/12 रईस पुत्र हाजी सद्दीक

24- मुकदमा अपराध संख्या 402 डी/12 शब्बीर पुत्र मानदीन

25- मुकदमा अपराध संख्या 344 एस इमरान पुत्र गोरे खां

26- मुकदमा अपराध संख्या 401 सी/12 अमीना पत्नी मसरुद्दीन

 

सूची बी-

1- मुकदमा अपराध संख्या 341, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 258 हनीफ पुत्र

मोहम्मद हुसैन

2- मुकदमा अपराध संख्या 341, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 261 शहीद पुत्र गफ्फूर

3-मुकदमा अपराध संख्या 401, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 266 कल्लों पुत्र इबरी

4- मुकदमा अपराध संख्या 407, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 272 शहजाद

कुरैशी पुत्र हाजी  कुरैशी

5- मुकदमा अपराध संख्या 410, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 275 इलियास

पुत्र हाजी हप्पन

6- मुकदमा अपराध संख्या 409, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 274 रईस पुत्र कल्लू

7- मुकदमा अपराध संख्या 394, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 276 यूनूस पुत्र शरीफ

8- मुकदमा अपराध संख्या 410 ए, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 282 इसराइल

पुत्र इस्माइल

9- मुकदमा अपराध संख्या 397 ए, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 284 हफीज पुत्र रशीद

10- मुकदमा अपराध संख्या 405 ए, ईदू मास्टर

11- मुकदमा अपराध संख्या 407 ए, आरिफ पुत्र यूनूस

12- मुकदमा अपराध संख्या 394 बी, गुलजार पुत्र हबीब

13- मुकदमा अपराध संख्या 397, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 313 साबू पुत्र बाबू

14- मुकदमा अपराध संख्या 397 सी, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 314 आशिक

पुत्र हाजी  इस्लाम

15- मुकदमा अपराध संख्या 410 बी, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 316 मुन्ना पुत्र अलीम

16- मुकदमा अपराध संख्या 410 सी, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 317 मुनव्वर

पुत्र मजीद

17- मुकदमा अपराध संख्या 410 डी, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 318 नत्थी

खां पुत्र भूरे खां

18- मुकदमा अपराध संख्या 410 ई, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 319 चांद

मोहम्मद पुत्र घसीटा

19- मुकदमा अपराध संख्या 410 एफ, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 320 अब्दुल

पुत्र हाजी बाबू

20- मुकदमा अपराध संख्या 410 जी, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 321 मजीद

पुत्र हाजी बाबू

21- मुकदमा अपराध संख्या 406 बी, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 325 इदरीश

पुत्र हाजी नन्नू

22- मुकदमा अपराध संख्या 401 बी, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 322 अब्दुल

मजीद पुत्र हाजी बाबू

23- मुकदमा अपराध संख्या 394 सी, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 328 पप्पू

पुत्र इस्लाम

24- मुकदमा अपराध संख्या 394 डी, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 329 इलफान

पुत्र शब्बीर

25- मुकदमा अपराध संख्या 394 ई, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 330 रिजवान कुरैशी

26- मुकदमा अपराध संख्या 394 एफ, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 331 शेर

मुहम्मद पुत्र. शब्बीर

27- मुकदमा अपराध संख्या 394 जी, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 332 शौकत पुत्र लाला

28- मुकदमा अपराध संख्या 394 एच, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 333 रईस

पुत्र हाजी सद्दीक

29- मुकदमा अपराध संख्या 394 आई, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 334 इलियास पुत्र मजीद

30- मुकदमा अपराध संख्या 394 जे, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 325 आबिद

उर्फ काला बाबू पुत्र फारुख

31- मुकदमा अपराध संख्या 397 डी, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 338 वफाती

पुत्र इमामद्दीन

32- मुकदमा अपराध संख्या 397 ई, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 339 एहसान कुरैशी

33- मुकदमा अपराध संख्या 397 एफ, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 340 इरशाद पुत्र एहशान

34- मुकदमा अपराध संख्या 397 एच, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 345 अशगर

चैधरी पुत्र इस्माइल

35- मुकदमा अपराध संख्या 397 जे, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 346 हाजी इस्लाम

36- मुकदमा अपराध संख्या 397 एल, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 347 इशहाक

37- मुकदमा अपराध संख्या 397 के, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 348 रईस

पुत्र मोहम्मद दीन

38- मुकदमा अपराध संख्या 397 क्यू, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 349 दानिश

कुरैशी पुत्र अहमद कुरैशी

39- मुकदमा अपराध संख्या 410 एच, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 327 इमाम

मोहम्मद अख्तर रजा पुत्र सुभान

40- मुकदमा अपराध संख्या 403 जी, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 420 आसिफ पुत्र हनीफ

41- मुकदमा अपराध संख्या 403 जी, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 419 नवाब पुत्र सूखा

42- मुकदमा अपराध संख्या 403 टी, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 418 शरीफ

पुत्र हाजी बाबू

43- मुकदमा अपराध संख्या 403 आर, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 416 अनीश पुत्र हनीफ

44- मुकदमा अपराध संख्या 403 क्यू, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 415 हनीफ पुत्र मजीद

45- मुकदमा अपराध संख्या 403 पी, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 416 आबिद पुत्र उस्मान

46- मुकदमा अपराध संख्या 403 ओ, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 413

नकीमुल्ला पुत्र अल्ला बख्श

47- मुकदमा अपराध संख्या 403 एन, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 412 इकराम पुत्र नत्थी

48- मुकदमा अपराध संख्या 403 सी, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 410 चांद

मोहम्मद पुत्र हनीफ

49- मुकदमा अपराध संख्या 403 के, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 409 शाहिद

पुत्र सलाउद्दीन

50- मुकदमा अपराध संख्या 403 जे, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 408 नाजरीन पत्नी अहमद

51- मुकदमा अपराध संख्या 403 आई, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 407

जुल्फकार पुत्र इस्लाम

52- मुकदमा अपराध संख्या 403 एच, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 406 मोहम्मद खलील

53- मुकदमा अपराध संख्या 403 जी, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 405 फारुख पुत्र नसीर

54- मुकदमा अपराध संख्या 403 एफ, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 440 सलीम पुत्र नत्थी

55- मुकदमा अपराध संख्या 403 ओ, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 402 तनवीर पुत्र इस्लाम

56- मुकदमा अपराध संख्या 403 सी, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 401 नईम

उर्फ काले पुत्र नूर मोहम्मद

57- मुकदमा अपराध संख्या 402 सी, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 384 इकराम

पुत्र मोहम्मद शफी

58- मुकदमा अपराध संख्या 402 बी, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 382 सलीम पुत्र साबू

59- मुकदमा अपराध संख्या 401 डी, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 376 हाजरा

उर्फ कल्लन पत्नी खलील

60- मुकदमा अपराध संख्या 401 एच, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 381 शहजाद

पुत्र सुबराती

61- मुकदमा अपराध संख्या 410 के, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 362 इलियास पुत्र सईदा

62- मुकदमा अपराध संख्या 410 जे, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 362 जाकिर

हुसैन उर्फ पप्पू

63- मुकदमा अपराध संख्या 410 आई, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 360 महतू

पुत्र नूर मोहम्मद

64- मुकदमा अपराध संख्या 395 ए, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 356 अलीशेर

पुत्र कमरुद्दीन

65- मुकदमा अपराध संख्या 397 के, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 355 नदीम

कुरैशी पुत्र कल्लू मियां

66- मुकदमा अपराध संख्या 397 क्यू, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 354 शाकिर

पुत्र बाबू

67- मुकदमा अपराध संख्या 397 पी, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 353 नईम पुत्र शकील

68- मुकदमा अपराध संख्या 3997 ओ, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 352

ताजुद्दीन पुत्र इमामुददीन

69- मुकदमा अपराध संख्या 397 एम, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 350 नन्हें पुत्र बशीर

70- मुकदमा अपराध संख्या 403 बी, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 399 हाजिक

पुत्र गुलदीन

71- मुकदमा अपराध संख्या 407, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 448 अयूब ईदगाह

कालोनी मदरसा

72- मुकदमा अपराध संख्या 403 के, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 409 शाहिद

पुत्र सलाउद्दीन

73- मुकदमा अपराध संख्या 406, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 461 इशहाक

पुत्र नूर मोहम्मद

74- मुकदमा अपराध संख्या प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या रमजान पुत्र हाजी खुर्ररम

75- मुकदमा अपराध संख्या प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या असलम पुत्र फारुख

76- मुकदमा अपराध संख्या 341, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 258 हनीफ पुत्र

मोहम्मद हुसैन

 

सूची सी-

शफीक पुत्र मोहम्मद दीन, अली शेर पुत्र कमरुद्दीन, नकीम पुत्र मुबीन, सईम

उर्फ चोचूं पुत्र कल्लू, नाजिम पुत्र इलियास, इकराम पुत्र इलियास, इकराम

पुत्र इस्लाम, मिस्टर पुत्र कल्लू, वसीम पुत्र शरीफ, यूसुफ और नईम, सुभान

पुत्र टील्ली, रमजान पत्र नबी बख्श, उस्मान पुत्र गल्लू, हबीब और हनीफ

किसान आलू कम्पनी, इजहारुद्दीन पुत्र जहीरुद्दीन, सईद अहमद पुत्र मोहम्मद

जीमल, चांद पुत्र रमजान, चमन पत्नी छलिया, हकीम पुत्र हकीमुद्दीन, नईम

पुत्र हारुन, हारुन पुत्र बशीर, जाकिर पुत्र निजामुद्दीन, बुइया वाइफ आॅफ

मोहम्मद, जलालुद्दीन, फारुख पुत्र नशीर, मीना पुत्र हकीम, बानो पत्नी

पप्पू, खलील पुत्र लतीफ, सायरा पत्नी बदरुद्दीन, शकील पुत्र बाबू खां।

इस रिपोर्ट में शपथपत्र देने वाले गवाहों और जानकारी देने वाले

व्यक्तियों के नाम उनकी सुरक्षा के दृष्टिकोण से नहीं दिये जा रहे हैं।

क्योंकि अभियुक्तों द्वारा लगातार वादियों और गवाहों को धमकाया जा रहा

है।

 

नवीन मंडी स्थल पर हुयी आगजनी

कोसी कलां स्थित नयी मंडी में भी दुकानों में लूट पाट और आगजनी हुयी।

यहां दुकानें और टिन शेड व्यापारियों को आवंटित किये गये थे जो लूट पाट

और आगजनी में बर्बाद हो गये थे। अब सरकार और जिला प्रशासन पीडि़तों को

वही स्थल आवटिंत नहीं कर रहा है जो दंगे से पूर्व उनके पास थे। जिला

प्रशासन का कहना है कि अब नीलामी द्वारा इनका आवंटन किया जाएगा। जो

अनुचित है।

 

मुआवजा

दंगे में कलवा, भूरा, सलाउद्दीन और सोनू पुत्र मंगल की हत्याएं हुई हैं।

जिनके परिजनों को राज्य सरकार द्वारा पांच-पांच लाख रुपया सहायता राशि दी

गई है जो कि अपर्याप्त है। भूरा का डेढ़ वर्षीय पुत्र फरमान और तीन

वर्षीय पुत्री चाहत है। उसकी 24 वर्षीय पत्नी सीबिया है जो अपने बच्चों

के साथ अपनी मां फरजाना के साथ रहती है। कलवा का डेढ़ साल का पुत्र इमरान

और तीन वर्ष की पुत्री सोनिया है। उसकी पत्नी शबनम अपनी माता-पिता के साथ

रहती है। सलाउद्दीन के दो बच्चे जिनमे एक पुत्र व एक पुत्री थे, आर्थिक

तंगियों के कारण इलाज न होने की वजह से दोनों को मृत्यु हो गई और उसकी

पत्नी आसमां बेसहारा है जो अपने ससुराल में ही रहती है।

मृतक सोनू पुत्र मंगल के चार बच्चे हैं जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है।

सीबिया पत्नी भूरा मृतक कक्षा आठ तक पढ़ी है। बच्चों की कम उम्र और

विधवाओं पर उनकी परवरिश के बड़े भार को देखते हुए यह राशि बहुत कम है।

इसमे बच्चों की शिक्षा-दिक्षा का प्रबंध नहीं हो सकता। सरकार द्वारा जनपद

प्रतापगढ़ के ग्राम बलीपुर में (जहां सीओ जियाउल हक की हत्या हुई है) में

नन्नू और सुरेश प्रधान के परिजनों को 20-20 लाख रुपया आर्थिक सहायता

राशि/मुआवजा दिया गया है। नन्नू और सुरेश की भी हत्या हो गई थी।

सरकार की मुआवजा राशि देने की नीति में समानता नहीं है। यह एक समान होनी

चाहिए। परन्तु यह पक्षपातपूर्ण दिखाई देती है। समानता के आधार पर मृतकों

की विधवाओं को 15-15 लाख रुपए सहायता राशि और मिलनी चाहिए और भूरा की

पत्नी सीबिया को सरकारी नौकरी मिलनी चाहिए। शेष विधवओं को जो कि अशिक्षित

हैं, उपयुक्त रोजगार के अवसर दिए जाने चाहिए। जिससे कि वे अपने बच्चों की

शिक्षा का प्रबंध कर सकें।

भूरा की सास फरजाना जिसकी बेरहमी से पिटाई हुई और आबरुरेजी की कोशिश की

गई और जिसकी आखों के सामने कलवा और भूरा की हत्या ओर उन्हें जला देने की

घटना हुई उसको मिली यातना मानसिक पीड़ा को दृष्टिगत रखते हुए विशेष रुप

से दो लाख रुपए की आर्थिक सहायता मिलनी चाहिए।

मृतक भूरा, कलवा और सलाउद्दीन की मासिक आय 15 हजार रुपया थी।

दंगों के दौरान घायल हुए हिंदू और मुस्लिम दोनों वर्गो के व्यक्तियों को

भी दो-दो लाख रुपया प्रति व्यक्ति आर्थिक सहायता राशि मुआवजा मिलना

चाहिए।

 

निष्कर्ष

1- मुकदमा अपराध संख्या 341 (वादी खालिद), मुकदमा अपराध संख्या 408 एच,

वादी  हरिशंकर, मुकदमा अपराध संख्या 344 डी वादी इस्लाम, मुकदमा अपराध

संख्या 344 ई वादी सलीम, मुकदमा अपराध संख्या 344 सी वादी द्वारका,

मुकदमा अपराध संख्या 344 वादी जमादार सिंह एसआई, मुकदमा अपराध संख्या 341

ए वादी पंकज कुमार एसआई, मुकदमा अपराध संख्या 344 बी वादी राजबीर सिंह

यादव एसओ एवंम सूचि ए व बी में उल्लेखित सभी मामलों की विवेचना सीबीआई

द्वारा करायी जाए

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि दिनांक 1 जून 2012 को कोसी कला में हुआ

दंगा सुनियोजित आपराधिक षडयंत्र था जो कि नगर पालिका चुनावों में हिंदू

वोटों का साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करते हुये, चुनाव में राजनीतिक लाभ लेना

था। पुलिस द्वारा इस आपराधिक षडयंत्र की रचने वालों के विरूद्ध जिनके नाम

गवाहों द्वारा दिये गये शपथपत्रों में आए हैं, निष्पक्ष विवेचना नहीं गयी

है और ना ही उन्हें आरोपी बनाया गया है। पुलिस द्वारा किये गये इस कृत्य

से साबित है कि वह असल अपराधियों को बचा रही है। इसलिये न्याय और जनहित

में आवश्यक है कि उन सभी मामलों की निष्पक्ष विवेचना स्वतंत्र जांच

एजेंसी सीबीआई द्वारा करायी जाए, जिन मामलों का उल्लेख इस रिपोर्ट में

मुकदमा अपराध संख्या सहित किया गया है।

2- दंगे के मृतकों को अतिरिक्त आर्थिक सहायता राशि 15-15 लाख रूप्ये और

उन्हें सरकारी नौकरी/ रोजगार के अवसर दिये जाएं। केंद्र सरकार की योजना

के तहत साम्प्रदायिक दंगों के दौरान मरने वाले व्यक्तियों के आश्रितों को

सहायता के रूप में मिलने वाली तीन लाख रूप्ये की राशि को भी पीडि़त

विधवाओं और उनके बच्चों को दिलवाया जाए।

3- दंगे के दौरान घायल हुये फरजाना सहित अन्य लोगों को 2-2 लाख रूपये

आर्थिक सहायता राशि दी जाए।

4- दंगे के दौरान लूट-पाट और आगजनी की घटनाओं के पीडितों के नुकसान का

वास्तविक आंकलन करने के लिये एक जांच कमेटी बनायी जाए जो उनके नुकसान का

आंकलन पीडि़तों के बयानों और साक्ष्यों के आधार पर करे और अपनी रिर्पोट

सरकार को सौंपे जिसके आधार पर पीडि़तो को मुआवजा दिया जाए।

5- नवीन मंडी स्थल में आगजनी से पीडि़त दुकानदारों को वही स्थल आवंटित

किये जाएं जो दंगे से पूर्व उनके कब्जे में थे और उन्हें पुर्ननिमार्ण के

लिये भी आर्थिक सहायता राशि उपलब्ध कराए जाएं।

तथ्यों एवं साक्ष्यों का संकलन व प्रस्तुति

असद हयात (महासचिव अवामी काउंसिल फार डेमोक्रेसी एण्ड पीस), राजीव यादव

एवं, शाहनवाज आलम (प्रवक्ता रिहाई मंचं), मो. शाहिद (पीस हिंद सोशल

सोसाइटी कोसी कलां मथुरां)

 

रिहाई मंच की तरफ से जनहित में जारी।

 

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