और बीच में रुक गया कलियुग के अश्वमेध का घोड़ा
इन सिद्ध महापुरुष के नाम के आगे श्री श्री 1008 एवं पूज्यपाद लिखा जाता है। इनकी खासियत यह है कि ये बर्षों से खड़े हुए हैं, नीचे नहीं बैठे हैं, मौन भी रहते हैं। इनके भक्त इन्हें दाता कह कर सम्मान देते हैं। इन्होंने आसीन्द के सवाईभोज से लगा कर बनेड़ा तहसील के दांता पायरा गाँव तक जितने भी यज्ञ करवाए हैं, उनसे दलितों को दूर रखने में सफलता पाई है। इनसे मिलने जब हम सब साथी पहुंचे और बाबा जी से बात करनी चाही तो पता चला कि दाता तो कुछ बोलेंगे नहीं फिर भी मिल लो, वे इशारों में ही संकेत देंगे। मैं और जगपुरावाले गिरधारी जी तथा अन्य साथी इस वार्तालाप हेतु आगेवान हुए। वाकई बाबाजी तो कुछ भी नहीं बोले, सिर्फ हमें आग्नेय नेत्रों से घूर-घूर कर देखते रहे। उनके भक्तों ने हमारा सामान्य ज्ञान बढ़ाया कि अगर दाता चाहे तो अभी का अभी आप लोगों को यहीं पर ‘भस्म‘ कर सकते हैं। एक बार तो मेरी भी भस्म होने की इच्छा हो आई। मैंने कहा– हम यज्ञ में दलितों को शामिल करवा कर जायेंगे या भस्म हो कर ही, बिना भस्म हुए यहाँ से जायेंगे नहीं, चाहे तो हमें यज्ञ की आहुति में डाल कर भस्म करें अथवा मन्त्रों के ज़रिये करें। या तो दलित भी इस यज्ञ का हिस्सा होंगे अथवा हम भस्म होने को तत्पर है।
खैर, भस्म तो क्या करते बेचारे, खुद ही भस्म भभूत शरीर के चुपड़े खड़े थे, लेकिन इस विवाद का असर अश्वमेध यज्ञ के इस पूरे आयोजन पर पड़ा और ज्यादातर यज्ञ वेदिकाएं खाली रह गयीं। इस तरह कलयुग के अश्वमेध का घोड़ा बीच में ही रुक गया, कथित धार्मिक लोग जो कि वास्तव में अधिकतर पाखंडी थे, उन्हें बहुत बुरा लगा।
बाद में इन्हीं महाराज के सानिध्य में दांता पायरा में हुए यज्ञ में भी दलितों के प्रति यही भेदभाव दौहराया गया। यहाँ इन बाबाजी का आश्रम भी बना है। आश्रम के लिए श्रमदान दलितों से करवाया गया। यज्ञ में धुँआ निकालने के लिए लकड़ियाँ दलितों से मंगवाई गयीं। दलितों के नाम चंदे की रसीदें भी काटी गयीं मगर जब यज्ञ वेदिकाओं में आहुतियां देने के लिए युगलों की आवश्यकता हुयी तो वे 108 हवनकुंडों में से एक पर भी दलित जोड़े को बिठाने को राज़ी नहीं हुए। इलाके के ग्रामीण जिला प्रशासन के पास शिकायत ले कर पहुंचे मगर सुनवाई नहीं हुयी। तब वे मेरे पास आये, हमारे पहुंचने भर की देर थी। प्रशासन और बाबाजी सब हरकत में आ गए। उन्हें लग गया कि यज्ञ विरोधी तत्व आ गए हैं, आयोजन बिगड़ जायेगा, इसलिए आनन-फानन में एक समझौता कमिटी बनाई गयी। बनेड़ा उपखंड कार्यालय में समझौता वार्ता हुयी। मैंने प्रस्ताव रखा कि 108 में से 8 हवन कुंडों पर दलित युगल बैठेंगे। यज्ञ कमिटी ने इस मांग को सिरे से ही नकार दिया और एक लिखित प्रस्ताव निकाल कर पढ़ कर सुनाने लगे, जिसमें लिखा था कि दलितों के लिए अलग हवन कुंड बनाये जायेंगे तथा कोई भी दलित भोजनशाला की तरफ नहीं जायेगा। उपखंड प्रशासन की मौजूदगी में पटवारी द्वारा पढ़े गए इस अपमानजनक प्रस्ताव ने मुझे आग बबूला कर दिया। मैंने प्रशासन को संबोधित करके कहा कि क्या सार्वजनिक स्थल पर किये जा रहे इस आयोजन में इस प्रकार का भेदभाव किया जा सकता है। मैं वहीँ अड़ गया कि हमें अब यज्ञ में नहीं बैठना है। हम चाहते हैं कि ऐसा प्रस्ताव लाने वालों के विरुद्ध अजा जजा ( अत्याचार निवारण ) अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया जाये। बात बनने के बजाय बिगड़ गयी। प्रशासन ने यज्ञ समिति को साफ कह दिया कि अपना सामान तुरंत समेटो। अब यह यज्ञ नहीं हो सकता। बाद में यज्ञ समिति के लोग यज्ञ में दलितों की भागीदारी के लिए भी राज़ी हो गए पर दलितों ने इसे स्वीकार नहीं किया, हमारी सिर्फ यही मांग रही कि सार्वजनिक भूमि पर यह यज्ञ नहीं किया जाये।
अंततः यज्ञ तो हुआ लेकिन किसी व्यक्ति विशेष की खातेदारी जमीन में करना पड़ा। यज्ञ हेतु बनाई गयी समिधाएँ और यज्ञ का झंडा बहुत दिनों तक वहीँ लहराता रहा, जो बाद में अपने आप ही फट भी गया। परम पूज्य ‘दाता‘ जिला कलेक्टर के पास गए और वहां रो पड़े। इससे उनके भक्त काफी भड़क गए। शिवसेना कमांडो फ़ोर्स के जिला प्रमुख ने मुझे भावनात्मक धमकी भरा फ़ोन किया कि- पहले के ज़माने में राक्षस यज्ञ बिगाड़ देते थे और अब कलयुग में तुम जैसे लोग यज्ञ में विघ्न डालते हैं। आज तुम्हारी वजह से पहली बार दाता की आँखों में आंसू आ गए हैं। मैंने उनकी बात सम्पूर्ण धैर्य के साथ सुनी और बस इतनी सी बात कह कर फ़ोन काट दिया कि- आप मुझे राक्षस कहें या कुछ और मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। रही बात आपके दाता की आँखों में आये आंसूओं की तो ऐसे लोगों की वजह से देश के मेरे करोड़ों करोड़ दलित भाई बहनों की आँखों में आंसू हैं। मैं किनके आँसू देखूँ और किनके साथ रोऊँ। मुझे किसी दाता या बाबा की आँख के आँसू से ज्यादा चिंता मेरे लोगों की आँखों के आँसुओं की है, यह यज्ञ सरकारी जमीन पर नहीं होगा, और कहीं कर लो, हमें कोई दिक्कत नहीं है।
इसके बाद यज्ञ समिति के एक संरक्षक और क्षेत्र के नामी गिरामी एक भाजपा नेता की धमकी आई कि इन धर्मद्रोहियों को गोली मार देंगे। हमने उसी भाषा में जवाब भेज दिया कि हमारी बंदूकों में भी गोलियां ही भरी हुयी हैं, हम कौन भूसा भरे, हाथों पे हाथ धरे बैठे हैं, तैयार है हम भी, जब चाहे तब जोर आजमाईश कर लें। उन्हें तो लगा था कि गोली के नाम पर ही हम बेहोश हो जायेंगे, लेकिन जब ईंट का जवाब पत्थर से मिलने की संभावना बनी तो वो महाशय इस पूरी लडाई से ही अलग हो गए। कुल मिलकर उस सार्वजनिक स्थान पर हमने यज्ञ नहीं होने दिया।
एक और यज्ञ इसी क्रम में तिलोली गाँव में किन्ही बाबा बालकनाथ महाराज ने करवाया। वहां भी दलितों से पहले तो सारा काम काज करवाया गया और अंत में कह दिया गया कि तुम लोग सिर्फ जीमने आ सकते हो, यज्ञ में बैठ नहीं सकते। इस गाँव की कुल आबादी का 60 प्रतिशत दलित समुदाय के लोग हैं। पढ़े लिखे सक्षम और संगठित भी, बाबा साहब के मिशन से भी जुड़े हुए हैं। उन्होंने बहुत ही जोरदार तरीके से इस मसले को उठाया। घटना की जाँच और दलित संघर्ष के प्रति एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए मैं, पी एल मीमरोठ और गोपालदास के नेतृत्व में एक टीम तिलोली पहुंची। हम उस अक्खड़ किस्म के बाबा से भी मिले। निरा मूर्ख, बोला–नीची जाति के लोग नहीं बैठ सकते हैं। हमारा धर्म यही कहता है। फिर भी बैठना चाहें तो उन्हें गाय का गोबर खाना होगा और गौमूत्र पी कर पवित्र होना होगा। यह सुन कर हम आक्रोशित हो गए हमने इसे अमानवीय करार दिया और कहा कि कोई भी स्वाभिमानी और समझदार इन्सान किसी भी पशु का मलमूत्र नहीं खा-पी सकता है। यह आप सरीखे लोग ही कर सकते हैं। आपको इसकी सजा मिलनी चाहिए। वहां हमें चारों और से यज्ञ समर्थकों ने घेर रखा था, फिर भी हम उन्हें चुनौती दे कर निकल आये अगर दलितों के खिलाफ आपके ऐसे घटिया विचार हैं तो यह यज्ञ हम नहीं होने देंगे।
दूसरे ही दिन मैं तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मिला और उनसे सीधे सपाट शब्दों में पूछा कि क्या अब आपके राज में दलितों को गोबर खाना होगा। जब उन्होंने और कई सारे वरिष्ठ अधिकारियों ने इस बात को सुना तो उन्हें भी आश्चर्य हुआ कि इस तरह से भेदभाव और अपमानजनक तरीके से दलितों को ज़लील किया जा रहा है। उन्होंने दलितों के प्रति न्याय करने का आश्वासन दिया। गहलोत ने पूरी संवेदनशीलता से इस मामले को लिया, मुख्यमंत्री कार्यालय में इस हेतु एक प्रशासनिक अधिकारी नियुक्त किया, जिसने उपखंड और जिला प्रशासन के साथ मिल कर मामले का निस्तारण किया।
बाद में सवर्ण हिन्दुओं की खूब सारी मिन्नतों के बावजूद कोई भी दलित यज्ञ में बैठने को राज़ी नहीं हुआ, लेकिन उन्होंने स्थापित किया कि अगर उनके साथ भेदभाव किया जायेगा तो वे किसी भी कीमत पर इसे स्वीकार नहीं करेंगे।
इस यज्ञ के दौरान निकाली गयी कलश यात्रा में विवाद की वजह से कोई भी ग्रामीण महिला शामिल नहीं हुयी, क्योंकि यज्ञ संचालकों ने कहा था कि यह सार्वजानिक नहीं बल्कि पारिवारिक यज्ञ है। इसलिए पंडितों के सिर पर कलश रख कर यात्रा प्रारम्भ की गयी। लोगों ने हँसी उड़ाई कि अरे पंडितों के सिर पे कलश ! यह सुनकर पंडितों ने अपने सिरों से कलश नीचे उतार दिए, मजबूरन ट्रेक्टर की ट्रोली में कलश रख कर यात्रा निकाली गयी। यह यज्ञ भी सफल नहीं हो सका, अब तक 5 बड़े और कई छोटे यज्ञ असफल हो गए थे, जिसके लिए हमें जम कर गालियाँ दी जाने लगीं और मुझे राक्षस कहा जाने लगा। इस नए तमगे को मैंने मन से स्वीकार लिया, यह सोच कर कि ऐसा तो हमारे पूर्वजों को कितनी ही बार कहा गया था, इसमें नया क्या है ? हालाँकि मैं यज्ञ हवन जैसी अवैज्ञानिक बातों का समर्थक नहीं हूँ, ना ही मुझे लगता है कि यज्ञ में बैठने से दलितों की स्थिति में कोई सुधार आ सकेगा, लेकिन अगर कुछ दलित इस प्रकार के सार्वजानिक आयोजनों में हिस्सेदारी चाहते हैं तो यह उनका संवैधानिक हक है, जिसे प्राप्त करने में मैं उनके साथ कंधे से कन्धा मिला कर खड़ा रहता हूँ और भविष्य में भी रहना चाहता हूँ।
रही बात इन बाबा लोगों की तो मैंने कभी भी इनकी परवाह नहीं की और ना ही इनकी सिद्धियों से डर लगा है। मैंने सदैव ही बाबागिरी पर सवाल उठाये हैं और भविष्य में भी उठाते रहना चाहता हूँ, क्योंकि मेरा स्पष्ट मत है कि हमारा देश भी अजीब किस्म की मूर्खताओं पर पलता है, यहाँ किसी ने चिमटा थाम लिया तो वो ‘चिमटा बाबा‘ हो गए। किसी ने सालों से स्नान नहीं किया, मुंह तक नहीं धोया और दुनिया भर की गन्दगी के साथ जी रहे है इसलिए ‘औघड़ बाबा‘ हो गए, एक रंगीले रतन थे तो ‘रंगीलेशाह बाबा‘ कहे गए तो दूसरे औरतखोर थे इसलिए ‘रंडीशाह बाबा‘ कहलाये, कईओं ने जटाजूट बढ़ा रखी है तो हजारों नंग धडंग खड़े हैं। नागा बाबाओं की पूरी फौज तो कुम्भ में शाही स्नान के लिए दौड़ते हुए नदी में कूद पड़ती है। ऐसी ‘नंगदौड़‘ भला विश्व में और कहाँ मिलेगी ? बिना कपडे पहने कड़वे प्रवचन दिए जा रहे हैं, एक बाबा पेट से साँस ऊपर खींचने और वापस छोड़ कर पेट फूलाने मात्र से ही योगिराज हो कर राजऋषि हो गए और पूरे देश को लौकी का रस पिला पिला कर हज़ारों करोड़ के मालिक बन बैठे हैं। एक स्वामीजी लोगों को खुद का मूत पीने का आत्मज्ञान बाँट रहे हैं तो आशाराम एंड संस वीर्यरक्षा के उपाय बताते-बताते यौन उत्पीडन के गंभीर आरोपों में जेल पहुंच गए हैं। कोई नित्यानंद है जो नित्य प्रतिदिन ही काम का आनंद भोग रहा है, तो किसी का नारा ‘धन निकाल‘ है, किसी का डेरा सच्चा है तो किसी ने खांप पंचायतों के प्रदेश में सतलोक निर्मित कर लिया है, कोई निरीह गाय के नाम पर देश भर में घूम-घूम कर धन इकट्ठा कर रहा है तो कोई गंडे ताबीज और झाड़ फूंक के ज़रिये ही रोजी रोटी चला रहा है।
पूरा देश बाबाओं, पंडितों, मुल्लाओं- मोलवियों, गरंथियों- रागियों, मुनियों- साध्वियों, ननों, पास्टरों- फादरों,लामाओं- कर्मपाओं, भिक्खुओं से भरा पड़ा है, बड़े बड़े टेंट तान कर सदाचार के प्रवचन सुबह से लेकर शाम तक पेले जा रहे हैं, धर्मोपदेशो की बाढ़ सी आई हुयी है। फिर भी बलात्कार, व्यभिचार, जातिवाद, अन्याय अत्याचार, भ्रष्टाचार, जूठ, फरेब और हत्या जैसे कुकर्म निरंतर बढ़ते ही जा रहे हैं। अपने आपको जगद्गुरु कह कर पीठ ठोंकने वाला हमारा देश दुनिया का सबसे पाखंडी देश है, जहाँ जानवरों की पूजा की जाती है, कुत्ते और बिल्लियाँ घरों में पलती है, साथ में बैठ कर खाती हैं, मगर दलितों को छूने से भी परहेज़ किया जाता है, उन्हें इन्सान तक नहीं माना जाता है और हमसे उम्मीद की जाती है कि हम अपनी राष्ट्रभक्ति को साबित करें तथा ‘सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा‘ गायें और इस महान सनातन संस्कृति पर बलि-बलि जाएँ..निकर पहन लें और सुबह शाम सिर्फ ‘नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे‘ गायें। कुछ भी हो जाएँ, सिर्फ सहन करते जाएँ। क्या यह संभव है, कभी नहीं, कतई नहीं, किसी भी कीमत पर नहीं, हमें राक्षस कहा जाये या हिन्दू विरोधी, धर्मद्रोही माना जाये या कुछ और कोई बात नहीं। हम हर हाल में अपने लोगों की आवाज़ उठायेंगे, जबान खोलेंगे और पूरी ताकत के साथ बोलेंगे। ……………………………………….( जारी )
-भंवर मेघवंशी की आत्मकथा ‘ हिन्दू तालिबान ‘ का पैंतीसवा अंश
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