बिहार की राजधानी पटना में टेश लाल वर्मा नगर झोपड़पट्टी है। यहां पर रहने वाले 274 परिवार के ऊपर विस्थापन की तलवार लटकी हुई है। विस्थापन के विरोध में गांधी, विनोबा, जयप्रकाश आदि के बताये मार्ग पर सत्याग्रह भी किया । जिस तरह ऐतिहासिक गांधी मैदान में महात्मा गांधी की प्रतिमा के समक्ष मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हालही में विशेष राज्य का दर्जा हासिल करने के लिए सत्याग्रह पर डटे थे वहीँ पर बेघर लोगों ने 9 माह लगातार सत्याग्रह करते रहे मगर सत्याग्रह करने वाले मुख्यमंत्री ने इन बेघरों की सुध नहीं ली. आलोक कुमार की रिपोर्ट;
यह कैसी मजबूरी है? एक तरफ दीवार है। दूसरी तरफ नहर और बीच में लोग रहने को मजबूर हैं। आखिर किस तरह से और कैसे लोग रहते हैं? कहां चले गए है केन्द्र और राज्य सरकार के अलाप लगाने वाले नेतागण? ऐसे लोग कहा करते हैं कि हमने यह कर दिया और हमने वह कर दिया। विभिन्न तरह की तकलीफों से दो-दो हाथ होने वाले आने वाले ही लोगों के समक्ष यह यक्ष सवाल खड़ाकर देते हैं कि आपने विस्थापितों को पुनर्वास के लिए कानून बना दिए हैं। आखिर सरकार क्यों नहीं पालन करती है?
सर्वविदित है कि भारत की आत्मा गांव में ही बसती है। वहां से तो मजबूरी में निकलकर लोग शहर की ओर आए हैं। यहां पर आने के बाद जिल्लतभरी जिंदगी जीने को बाध्य हो जाते हैं। एक जगह नहीं दर्जनों बार स्थल बदलते हैं। तब जाकर स्थानीपन्न प्राप्त हो जाता है। इसी तरह गांव से चलकर लोग दीघा नहर के तटबंध पर रहने आए थे। तटबंध के बीच में रहते थे। जब पूर्व मध्य रेलवे के द्वारा दीघा से सोनपुर तक गंगा नदी पर रेल सह सड़क सेतु निर्माण करने का शोरगुल हुआ। तब तटबंध के मध्य से हटाकर नहर के किनारे रहने को कह दिया गया। अब स्थिति बदल गयी है। नहर के किनारे भी आफत खड़ी की जा रही है। सावधानी हटी और दुर्घटना घटी के आलोक में पूर्व मध्य रेलवे ने सुरक्षात्मक दीवार खड़ी कर रही है। दीवार को पाइप लगाकर मजबूती प्रदान किया जाएगा। ताकि कोई दीवार पार करके रेलवे स्टेशन और रेलवे पटरी पर न जा जाए। इस समय जोरशोर से कार्य जारी है। इसी तरह लोगों की परेशानी भी जारी है।
यहां के लोगों के पास न घर और न द्वार ही बच रहा है। इसके कारण एक लड़की की शादी मंदिर में जाकर रचानी पड़ गयी। इस लड़की के घर के सामने ढलाई करने के लिए छड़ बांध दिया गया। शादी वाले घर में लोगों को आवाजाही करने में दिक्कत होने लगी। तब लड़की की नानी ने छड़ को राह से हटाने का प्रयास करने लगी। ईंट से मार मारकर बंधनयुक्त छड़ को हटा देने में कामयाबी हासिल कर ली। उसी समय एक मनचला ने कहा शुरू कर दिया। चल रे डोली उठाओं कहार पिया मिलन की रीत आई..........। यहां तो डोली उठाने की नहीं छड़ हटाने की नौबत आ गयी थी। नानी के द्वारा छड़ हटाने के बाद ही लड़की और परिजन बाहर निकल पाने में सहजता महसूस करने लगें।
विस्थापन के दंश झेलने वालों का नेतृत्व करने वाले सुनील कुमार का कहना है कि फिलवक्त सरकार के समक्ष हम हो रहे विस्थापितों को पुनर्वास करने की दिशा में पहल नहीं की जा रही है। जबकि हमलोग मुख्यमंत्री से लेकर संतरी तक गुहार लगा चुके हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका और जनतंत्र के चतुर्थ स्तंभ के समक्ष फरियाद किए। सभी जगहों से निराशा ही हाथ लगा। कार्यपालिका और विधायिका के द्वारा आश्वासन के घुट पिलाने के बाद न्यायपालिका में जनहित याचिका दायर की गयी। पटना उच्च न्यायालय के द्वारा सरकार को आदेश दिया गया कि 6 माह के अंदर विस्थापितों को पुनर्वास कर दें। जो सरकार ने पूर्ण नहीं कर सकी।
आगे कहा कि राजधानी पटना में ही टेश लाल वर्मा नगर झोपड़पट्टी है। यहां पर में रहने वाले 274 परिवार के ऊपर विस्थापन की तलवार लटक गयी है। इसको लेकर गांधी,विनोबा,जयप्रकाश,पी.व्ही.राजगोपाल आदि के बताये मार्ग पर चलकर सत्याग्रह किए। जिस तरह ऐतिहासिक गांधी मैदान में महात्मा गांधी जी के प्रतिमा के समक्ष मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी के द्वारा सत्याग्रह किया गया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विशेष राज्य का दर्जा हासिल करने के लिए सत्याग्रह पर डटे थे। हमलोगों ने दानापुर प्रखंड के परिसर में 9 माह लगातार सत्याग्रह करते रहे गए। मगर सत्याग्रह करने वाले मुख्यमंत्री ने सुधि ही नहीं लिए।
साबूत के तौर पर समय-समय पर सरकार के पास प्रेषित पत्रों को दिखाना शुरू कर दिया। इसमें उल्लेख किया गया कि प्रभावित दानापुर अंचल अन्तर्गत ग्राम टेश लाल वर्मा नगर के लोग नवनिर्मित गंगा रेल-सड़क सेतु के निर्माण से 274 परिवार विस्थापन के कगार पर हैं। आरंभ में शेखपुरा स्थित जे.डी.विमेंस कॉलेज के निर्माण होने से 1982 में विस्थापित होकर टेश लाल वर्मा नगर में रहने आये थे। यह दीघा नहर के किनारे है। 1995 में सरकार ने झोपड़पट्टी को मान्यता देकर मतदाता सूची में नाम दर्ज करके मतदाता पहचान पत्र थमा दिये। इसके बाद बुनियादी सुविधाओं को उपलब्ध कराने के उद्देश्य से गरीबी रेखा के नीचे भी शामिल करने कार्ड दे दिया। सभी तरह का प्रमाण उपलब्ध है। आंगनबाड़ी और स्कूल भी खोल दिये। दोनों पर खतरा मडराने लगा है।
पूर्व मध्य रेलवे ने लोगों को 2002 में नहर के मध्य से झोपड़ी हटवाकर नहर के किनारे करवा दिया। इसके बाद रेल परियोजना का कार्य शुरू किया गया। लोगों ने सवाल उठाया है कि आखिर पूर्व मध्य रेलवे के अधिकारी किस तरह से लोगों को रेलवे की जमीन को अतिक्रमण करने की बात कर रहे हैं। हम लोग 21 साल से दीघा नहर पर रहते आ रहे हैं। पूर्व मध्य रेलवे का कार्य 11 साल से शुरू किया गया है।
विस्थापन और पुनर्वास की मांग को लेकर पटना उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की गयी। 19 अप्रैल, 2010 को पटना उच्च न्यायालय ने प्रस्ताव पारित कर बिहार सरकार को आदेश निर्गत किया कि चार माह के अंदर विस्थापित होने वाले लोगों को पुनर्वास करने की व्यवस्था कर दी जाए। पटना उच्च न्यायालय के इस आदेश की धज्जियां उड़ायी गयी जब पुनर्वास करने के बदले झोपड़ियों को जेसीबी से तोड़वा दिया गया। बिना अग्रिम सूचना के ही हड़बड़ी में खाकी वर्दीधारी उतावले हो गये और तानाशाही रवैया अपना कर झोपड़ी को तहसनहस कर दिया। लोग खुले आकाश में रहने लगे। इस क्रम में एक महिला की सिर भी फट गयी। कई बकरी दबाकर परलोक सिधार गयी। बी.पी.एल.कार्ड से राशन-किरासन गिराकर बर्बाद कर दिये। इतने से मन नहीं भरा तो लोगों के नेतृत्व करने वालों को झूठे मुकदमे में फंसाने की भी धमकी दी जाने लगी। गीता देवी, रेखा देवी आदि कहने लगे कि सरकार ने मंशा बना ली है। हम किसी तरह से लाठी के बल पर लोगों को नहीं खदेड़ेंगे। पहले रेलवे लाइन के किनारे खड़े झोपड़ी को बुलडोजर से साफ कर दिया। इसके बाद चहारदीवारी खड़ा करने के लिए नींव खोदनी शुरू कर दी गयी। फिर ढलाई करके मोटी दीवार खड़ी कर दी गयी है। हमलोगों को आने जाने में काफी दिक्कत हो रही है। कहीं सीढ़ी तो कहीं बालू का बोरा लगाकर दीवार को पार किया जा रहा हैै। अब आप खुद ही समझे कि मासूम बच्चे किस तरह से पार करेंगे। और तो और एम्स की ओर से दीघा जाने के लिए रोड निर्माण किया जा रहा है। जब रोड निर्माण झोपड़पट्टी तक पहुंच जाता है तो निश्चित ही विस्थापन हो जाएगा। हमलोग सड़क पर आ जाएंगे। तो साबित हो जाएगा कि सरकार किसी को खदेड़ नहीं रही है परन्तु परिस्थितिवष लोग खुद ही चले गए।
जो भी सरकार के पास विस्थापन का दंश झेलने वालों को सरकार के समक्ष पुनर्वास करने की व्यवस्था है। मगर सरकार नहीं चाहती हैं कि इनको पुनर्वास करें। नौकरशाहों से मिलने पर बताया जाता है कि सरकार पुनर्वास के बाद ही विस्थापित किया जाएगा।
पूर्व मध्य रेलवे और सरकार के समक्ष पाटलिपुत्र रेलवे स्टेशन को चालू करने की चिन्ता है। इन दोनों का प्रयास है कि किसी तरह से पाटलिपुत्र रेलवे स्टेशन को चालू कर दिया जाए। कई बार प्रयास किया गया मगर लोगों की मांग उठने पर पूर्व मध्य रेलवे और सरकार झुक जाते हैं। नवनिर्मित पाटलिपुत्र रेलवे स्टेशन के उद्घाटन की तारीख तय कर दी गयी है। हालांकि कई बार टलने के बाद 31 अक्तूबर,2013 को पाटलिपुत्र रेलवे जंक्शन का उद्घाटन रेल मंत्री मल्लिकार्जुन खडगे करेंगे। लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस मौके पर विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद रहेंगे। कई तरह के झंझटों के बीच पाटलिपुत्र रेलवे स्टेशन के उद्घाटन का मामला अब तक दो-बार टल चुका है। पाटलिपुत्र रेलवे स्टेशन से चंडीगढ़ और बंगलोर के लिए दो ट्रेनों को भी हरी झंडी दिखायी जाएगी।
अब देखना है कि इस खेल में जीत किसकी होगी? वह आने वाले कल ही पता चल सकेगा।
यह कैसी मजबूरी है? एक तरफ दीवार है। दूसरी तरफ नहर और बीच में लोग रहने को मजबूर हैं। आखिर किस तरह से और कैसे लोग रहते हैं? कहां चले गए है केन्द्र और राज्य सरकार के अलाप लगाने वाले नेतागण? ऐसे लोग कहा करते हैं कि हमने यह कर दिया और हमने वह कर दिया। विभिन्न तरह की तकलीफों से दो-दो हाथ होने वाले आने वाले ही लोगों के समक्ष यह यक्ष सवाल खड़ाकर देते हैं कि आपने विस्थापितों को पुनर्वास के लिए कानून बना दिए हैं। आखिर सरकार क्यों नहीं पालन करती है?
सर्वविदित है कि भारत की आत्मा गांव में ही बसती है। वहां से तो मजबूरी में निकलकर लोग शहर की ओर आए हैं। यहां पर आने के बाद जिल्लतभरी जिंदगी जीने को बाध्य हो जाते हैं। एक जगह नहीं दर्जनों बार स्थल बदलते हैं। तब जाकर स्थानीपन्न प्राप्त हो जाता है। इसी तरह गांव से चलकर लोग दीघा नहर के तटबंध पर रहने आए थे। तटबंध के बीच में रहते थे। जब पूर्व मध्य रेलवे के द्वारा दीघा से सोनपुर तक गंगा नदी पर रेल सह सड़क सेतु निर्माण करने का शोरगुल हुआ। तब तटबंध के मध्य से हटाकर नहर के किनारे रहने को कह दिया गया। अब स्थिति बदल गयी है। नहर के किनारे भी आफत खड़ी की जा रही है। सावधानी हटी और दुर्घटना घटी के आलोक में पूर्व मध्य रेलवे ने सुरक्षात्मक दीवार खड़ी कर रही है। दीवार को पाइप लगाकर मजबूती प्रदान किया जाएगा। ताकि कोई दीवार पार करके रेलवे स्टेशन और रेलवे पटरी पर न जा जाए। इस समय जोरशोर से कार्य जारी है। इसी तरह लोगों की परेशानी भी जारी है।
यहां के लोगों के पास न घर और न द्वार ही बच रहा है। इसके कारण एक लड़की की शादी मंदिर में जाकर रचानी पड़ गयी। इस लड़की के घर के सामने ढलाई करने के लिए छड़ बांध दिया गया। शादी वाले घर में लोगों को आवाजाही करने में दिक्कत होने लगी। तब लड़की की नानी ने छड़ को राह से हटाने का प्रयास करने लगी। ईंट से मार मारकर बंधनयुक्त छड़ को हटा देने में कामयाबी हासिल कर ली। उसी समय एक मनचला ने कहा शुरू कर दिया। चल रे डोली उठाओं कहार पिया मिलन की रीत आई..........। यहां तो डोली उठाने की नहीं छड़ हटाने की नौबत आ गयी थी। नानी के द्वारा छड़ हटाने के बाद ही लड़की और परिजन बाहर निकल पाने में सहजता महसूस करने लगें।
विस्थापन के दंश झेलने वालों का नेतृत्व करने वाले सुनील कुमार का कहना है कि फिलवक्त सरकार के समक्ष हम हो रहे विस्थापितों को पुनर्वास करने की दिशा में पहल नहीं की जा रही है। जबकि हमलोग मुख्यमंत्री से लेकर संतरी तक गुहार लगा चुके हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका और जनतंत्र के चतुर्थ स्तंभ के समक्ष फरियाद किए। सभी जगहों से निराशा ही हाथ लगा। कार्यपालिका और विधायिका के द्वारा आश्वासन के घुट पिलाने के बाद न्यायपालिका में जनहित याचिका दायर की गयी। पटना उच्च न्यायालय के द्वारा सरकार को आदेश दिया गया कि 6 माह के अंदर विस्थापितों को पुनर्वास कर दें। जो सरकार ने पूर्ण नहीं कर सकी।
आगे कहा कि राजधानी पटना में ही टेश लाल वर्मा नगर झोपड़पट्टी है। यहां पर में रहने वाले 274 परिवार के ऊपर विस्थापन की तलवार लटक गयी है। इसको लेकर गांधी,विनोबा,जयप्रकाश,पी.व्ही.राजगोपाल आदि के बताये मार्ग पर चलकर सत्याग्रह किए। जिस तरह ऐतिहासिक गांधी मैदान में महात्मा गांधी जी के प्रतिमा के समक्ष मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी के द्वारा सत्याग्रह किया गया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विशेष राज्य का दर्जा हासिल करने के लिए सत्याग्रह पर डटे थे। हमलोगों ने दानापुर प्रखंड के परिसर में 9 माह लगातार सत्याग्रह करते रहे गए। मगर सत्याग्रह करने वाले मुख्यमंत्री ने सुधि ही नहीं लिए।
साबूत के तौर पर समय-समय पर सरकार के पास प्रेषित पत्रों को दिखाना शुरू कर दिया। इसमें उल्लेख किया गया कि प्रभावित दानापुर अंचल अन्तर्गत ग्राम टेश लाल वर्मा नगर के लोग नवनिर्मित गंगा रेल-सड़क सेतु के निर्माण से 274 परिवार विस्थापन के कगार पर हैं। आरंभ में शेखपुरा स्थित जे.डी.विमेंस कॉलेज के निर्माण होने से 1982 में विस्थापित होकर टेश लाल वर्मा नगर में रहने आये थे। यह दीघा नहर के किनारे है। 1995 में सरकार ने झोपड़पट्टी को मान्यता देकर मतदाता सूची में नाम दर्ज करके मतदाता पहचान पत्र थमा दिये। इसके बाद बुनियादी सुविधाओं को उपलब्ध कराने के उद्देश्य से गरीबी रेखा के नीचे भी शामिल करने कार्ड दे दिया। सभी तरह का प्रमाण उपलब्ध है। आंगनबाड़ी और स्कूल भी खोल दिये। दोनों पर खतरा मडराने लगा है।
पूर्व मध्य रेलवे ने लोगों को 2002 में नहर के मध्य से झोपड़ी हटवाकर नहर के किनारे करवा दिया। इसके बाद रेल परियोजना का कार्य शुरू किया गया। लोगों ने सवाल उठाया है कि आखिर पूर्व मध्य रेलवे के अधिकारी किस तरह से लोगों को रेलवे की जमीन को अतिक्रमण करने की बात कर रहे हैं। हम लोग 21 साल से दीघा नहर पर रहते आ रहे हैं। पूर्व मध्य रेलवे का कार्य 11 साल से शुरू किया गया है।
विस्थापन और पुनर्वास की मांग को लेकर पटना उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की गयी। 19 अप्रैल, 2010 को पटना उच्च न्यायालय ने प्रस्ताव पारित कर बिहार सरकार को आदेश निर्गत किया कि चार माह के अंदर विस्थापित होने वाले लोगों को पुनर्वास करने की व्यवस्था कर दी जाए। पटना उच्च न्यायालय के इस आदेश की धज्जियां उड़ायी गयी जब पुनर्वास करने के बदले झोपड़ियों को जेसीबी से तोड़वा दिया गया। बिना अग्रिम सूचना के ही हड़बड़ी में खाकी वर्दीधारी उतावले हो गये और तानाशाही रवैया अपना कर झोपड़ी को तहसनहस कर दिया। लोग खुले आकाश में रहने लगे। इस क्रम में एक महिला की सिर भी फट गयी। कई बकरी दबाकर परलोक सिधार गयी। बी.पी.एल.कार्ड से राशन-किरासन गिराकर बर्बाद कर दिये। इतने से मन नहीं भरा तो लोगों के नेतृत्व करने वालों को झूठे मुकदमे में फंसाने की भी धमकी दी जाने लगी। गीता देवी, रेखा देवी आदि कहने लगे कि सरकार ने मंशा बना ली है। हम किसी तरह से लाठी के बल पर लोगों को नहीं खदेड़ेंगे। पहले रेलवे लाइन के किनारे खड़े झोपड़ी को बुलडोजर से साफ कर दिया। इसके बाद चहारदीवारी खड़ा करने के लिए नींव खोदनी शुरू कर दी गयी। फिर ढलाई करके मोटी दीवार खड़ी कर दी गयी है। हमलोगों को आने जाने में काफी दिक्कत हो रही है। कहीं सीढ़ी तो कहीं बालू का बोरा लगाकर दीवार को पार किया जा रहा हैै। अब आप खुद ही समझे कि मासूम बच्चे किस तरह से पार करेंगे। और तो और एम्स की ओर से दीघा जाने के लिए रोड निर्माण किया जा रहा है। जब रोड निर्माण झोपड़पट्टी तक पहुंच जाता है तो निश्चित ही विस्थापन हो जाएगा। हमलोग सड़क पर आ जाएंगे। तो साबित हो जाएगा कि सरकार किसी को खदेड़ नहीं रही है परन्तु परिस्थितिवष लोग खुद ही चले गए।
जो भी सरकार के पास विस्थापन का दंश झेलने वालों को सरकार के समक्ष पुनर्वास करने की व्यवस्था है। मगर सरकार नहीं चाहती हैं कि इनको पुनर्वास करें। नौकरशाहों से मिलने पर बताया जाता है कि सरकार पुनर्वास के बाद ही विस्थापित किया जाएगा।
पूर्व मध्य रेलवे और सरकार के समक्ष पाटलिपुत्र रेलवे स्टेशन को चालू करने की चिन्ता है। इन दोनों का प्रयास है कि किसी तरह से पाटलिपुत्र रेलवे स्टेशन को चालू कर दिया जाए। कई बार प्रयास किया गया मगर लोगों की मांग उठने पर पूर्व मध्य रेलवे और सरकार झुक जाते हैं। नवनिर्मित पाटलिपुत्र रेलवे स्टेशन के उद्घाटन की तारीख तय कर दी गयी है। हालांकि कई बार टलने के बाद 31 अक्तूबर,2013 को पाटलिपुत्र रेलवे जंक्शन का उद्घाटन रेल मंत्री मल्लिकार्जुन खडगे करेंगे। लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस मौके पर विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद रहेंगे। कई तरह के झंझटों के बीच पाटलिपुत्र रेलवे स्टेशन के उद्घाटन का मामला अब तक दो-बार टल चुका है। पाटलिपुत्र रेलवे स्टेशन से चंडीगढ़ और बंगलोर के लिए दो ट्रेनों को भी हरी झंडी दिखायी जाएगी।
अब देखना है कि इस खेल में जीत किसकी होगी? वह आने वाले कल ही पता चल सकेगा।
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