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Tuesday, June 3, 2014

भारत में वामपंथ को बचाना है तो छीन लेंगे लालझंडा बेशर्म नेतृत्व से,वक्त का तकाजा मुखर होने लगा!

भारत में वामपंथ को बचाना है तो छीन लेंगे लालझंडा बेशर्म नेतृत्व से,वक्त का तकाजा मुखर होने लगा!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

भारत में वामपंथ को बचाना है तो छीन लेंगे लालझंडा बेशर्म नेतृत्व से,वक्ता का तकाजा मुखर होने लगा!जबकि  पश्चिम बंगाल और केरल विधानसभा चुनावों में पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद,और लोकसभा चुनावं में करारी शिकस्त के जमीनी हकीकत को सिरे से नजरअंदाज करते हुए माकपा ने नेतृत्व में किसी बदलाव की संभावना से लगातार इनकार किया है।माकपा नेतृत्व संकट से जूझ रहा है। माकपा में 35 वर्षो से विधायक मंत्री रहे अब्दुर्रज्जाक मोल्ला ने कहा है कि पार्टी में नेता व कैडर नहीं हैं बल्कि अब मैनेजर व कुछ कर्मचारी रह गए हैं।


इतिहास गवाह है कि पूंजीवाद और साम्राज्यवाद के खिलाफ जंगी विचारधारा का मेनतकशखून रंगा लाल झंडा उठाये लोगों ने भारत में मुक्ताबाजारी कायाकल्प के मध्य देश के कारपोरेट जायनवादी अमेरिकी उपनिवेश बनाने के साझा उपक्रम में सत्तासुख का छत्तीस व्यंजन परिपूर्ण भोग लगाते हुए पिछले सात दशकों क दरम्यान सर्वस्वहारा बहुसंख्य बहिस्कृत भारतीय जनगण की पीठ पर निरंतर छुरा भोंका है।इतिहास गवाह है कि वर्गसंघर्श की हुंकार लगाते हुए वामपंथ नेतृत्व लगातार सत्तावर्ग का पालतू बनकर पूंजीवादी सामंती कारपोरेट अमेरिकी जायनवादी हित साधते हुए विचारधारा के पाखंड के घटाटोप में भारतीय लोकतंत्र को अस्मिता राजनीति कारोबार में केसरिया रामराज में तब्दील करने में मनुस्मृति राज बहाल करने के अपने वर्ग हित ही साधे हैं।तेलंगाना ढिमरीब्लाक मरीचझांपी सिंगुर नंदीग्राम लालगढ़ तक अंसख्य सिसिला है लालफौज के नस्ल गेस्टापो बन जाने के निर्मम कथाक्रम का।इतिहास गवाह है कि मजदूर आंदोलन और मजदूर संगठनं पर सार्वभौम वर्चस्व के बावजूद मजदूरों के हक हकूक की लड़ाी से हमेशा गैरहाजिकर रहे कामरेड। किसानसभा में करोड़ों की सदस्यता के बावजूद खेतों को सेज,इंफ्रास्ट्रक्चर के बहाने प्रमोटरों बिल्डरों की रियल्टी में बदल देने का कमीशन कारपोरेटफंडिंग की क्रांति को अमली जामा पहनाते रहे कामरेड।इतिहास गवाह है कि भारत में क्रयशक्ति में तब्दील हो रही अनिवार्य सेवाओं को बहाल रखने की कोई लड़ाई नहीं लड़ी कामरेडों ने।भूमि सुधार का एजंडा बंगाल की खाड़ी में विसर्जित करके अवसरों और संसाधनों के न्यायपूर्ण बंटवारे जरिये समता सामाजिक न्याय के बदले वर्गहित विपरीत वर्ग शत्रुओं के साथ सत्ता सौदागरी में तब्दील कर दी विचारधारा और जाति क्षेत्रीय अस्मिताओं के मध्य विसर्जित कर दिया पार्टी संगठन और जनाधार समूचे देश में।जिस बंगाल लाइन के मनुस्मृति राज की बहाली के लिए भारतीय वामपंथ को तिलांजलि देदी वाम नेतृत्व ने,उस बंगाल में चहुंदिसा में वाम कार्यकर्ता नेता पिटते पिटते केसरिया हुआ जाये क्योंकि तीसरे विकल्प के झूठ का पर्दापास होने,सच्चर  रपट से मुसलमानों के खिलाफ साजिशाना धोखाधड़ी धर्मनिरपेक्षता के नाम अब खुल्ला तमाशा है और मुसलिम वोट बैंक के भरोसे ,बिना विचारधारा महज सत्तासमीकरणी वोटबैंक साधो राजकाज के जरिये बिना कुछ किये 35 साल तक सत्ता में रहने के बाद ढपोरशंखी वाम सत्ताबाहर है।


दो लोकसभा सीटों में सिमट जाने के बाद वाम जनाधार गुब्बारे की तरह हवा हवाई है और नेतृत्व पर वर्ण वर्चस्व नस्ली वर्चस्व बेनकाब है। यूपीए की जनसंहारी नीतियों को जारी रखने के खेल में जल जंगल जमीन की लड़ाई में कहीं नहीं थे कामरेड।सत्ता की राजनीति करते हुए शूद्र ज्योति बसु को प्रधाननमंत्री बनने से रोकने वाले नेतृत्व ने भारत अमेरिकी परमाणु संधि का क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के बाद जनपधधर धर्मनिरपेक्ष पाखंड का मुलम्मा बचाने के लिए विचारधारा की दुहाी देकर सोमनाथ चटर्जी की बलि दे दी,तो पार्टी की शर्मनाक हार के लिए पार्टी नेतृत्व से पदत्याग और संघठन में सभी व्रगों,तबकों प्रतिनिधित्व देने की मांग करने वाले किसान सभा के राष्ट्रीय नेता रज्जाक मोल्ला समेत हर आवाज उठानेवाले शख्स को बाहर का दरवाजा दिखा दिया।


लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद अब गली गली शोर है कि कामरेड चोर है। गली गली नारे लगने लगे कि पार्टी हमारी है,पार्टी तुम्हारी है,पार्टी किसी के बाप की नहीं है।नेताओं को भगाओ और वामपंथ को बचाओ।पार्टी जिला महकमा दफ्तरं से लेकर फेसबुक तक पोस्टरबाजी होने लगी तो आत्मालोचना के बजाय कामरेडों ने बहिस्कार निष्कासन का खेल जारी रखा और बेशर्मी से विचारधारा बखानते रहे।प्रकाश कारत सीताराम येचुरी के इस्तीफे के साथ साथ बंगाल के राज्य नेतृत्व को बदलने के लिए बंगाल माकपा मुख्यालय में जुलूस निकलने लगा तो भी कामरेडों को होश नहीं आया।


अब मदहोश माकपा नेतृत्व पर गाज गिर ही रही है।लाल झंडा बेशर्म कबंधों से छीनने का चाकचौबंद इंतजाम होने लगा है।


कामरेड प्रकाश कारत,कामरेड सीताराम येचुरी और कामरेड माणिक सरकार की मौजूदगी में राज्य कमिटी के अधिकांश सदस्यों ने खुली बगावत करते हुए राज्यऔर पोलित ब्यूरो तक में नेतृत्व परिवर्तन की मांग कर दी है और साफ साफ बता दिया कि धर्मनिरपेक्ष तीसरा विकल्प झूठ और प्रपंच की  सत्ता सौदागरी के अलावा कुछ भी नहीं है।


वामपंथ के दुर्भेद्य गढ़ कहे जाने वाले पश्चिम बंगाल में 34 साल के शासन का अंत और फिर 16वीं लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार। यही वजह है कि अब मा‌र्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर विरोधी सुर तेज होने लगे हैं। कोलकाता में माकपा की राज्य कमेटी की बैठक के दौरान कमेटी के सदस्यों ने नेतृत्व परिवर्तन की मांग की।


इतना ही नहीं, माकपा नेताओं ने लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के लिए पार्टी महासचिव प्रकाश करात के गलत राजनीतिक फैसलों को जिम्मेदार बताया।


1960 के दशक से चुनाव मैदान में आई माकपा का प्रदर्शन इस लोकसभा चुनाव में अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन रहा है। जिसके चलते पिछले कुछ दिनों से अयोग्य नेतृत्व को बदलने की मांग तेज होने लगी है।


राज्य कमेटी के नेताओं ने पार्टी के बड़े नेताओं प्रकाश करात, प्रदेश सचिव विमान बोस, पोलित ब्यूरो के सदस्य व पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भंट्टाचार्य और प्रदेश में विपक्ष के नेता सूर्यकांत मिश्रा पर चुनाव के दौरान बेहतर नेतृत्व नहीं दे पाने का आरोप लगाया।

इस बैठक में करात के साथ साथ त्रिपुरा के मुख्यमंत्री मानिक सरकार और पोलित ब्यूरो के सदस्य सीताराम येचुरी भी मौजूद थे।


पश्चिम बंगाल में 2011 में तृणमूल कांग्रेस ने वाम मोर्चा के 34 साल के शासन का अंत किया था। जिसके बाद इस लोकसभा चुनाव में 42 सीटों वाले पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा सिर्फ दो सीटें ही जीतने में कामयाब हो पाई। जबकि 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी ने 15 में से 9 सीटों पर जीत हासिल की थी। राज्य समिति के एक नेता ने कहा कि क्षेत्रीय दलों के साथ मिल कर बने तीसरे मोर्चे ने 2009 की तरह कोई कमाल नहीं दिखाया। उन्होंने कहा कि शीर्ष नेतृत्व की गलत नीतियों की वजह से ही तीसरा मोर्चा यूपीए सरकार के विकल्प के रुप में अपने आप को साबित नहीं कर पाई।


गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव में माकपा के निराशाजनक प्रदर्शन की पृष्ठभूमि में पार्टी के पूर्व दिग्गज नेता सोमनाथ चटर्जी ने सबसे पहले कहा कि पार्टी नेतृत्व में तत्काल बदलाव होना चाहिए।

पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने कहा कि माकपा का मौजूदा नेतृत्व लंबे समय से है और इसे तत्काल हट जाना चाहिए। उन्होंने साफ साफ कहा कि पार्टी दिग्गज वामपंथी नेता ज्योति बसु की उस सलाह का अनुसरण करने में विफल रही है, जिसमें उन्होंने कहा था कि पार्टी को हमेशा जनता के साथ संपर्क में रहना चाहिए।

चटर्जी ने कहा कि ज्योति बसु अक्सर पार्टी नेताओं से कहा करते थे कि वे जनता के साथ निरंतर संपर्क में रहें, लेकिन माकपा नेतृत्व लोगों से दूर हो गये और ज्वलनशील मुद्दों पर कोई एक आंदोलन भी नहीं खड़ा कर पाये। इस लोकसभा चुनाव में भाजपा के शानदार प्रदर्शन के पीछे की एक वजह यह भी है कि वाम पक्ष ने देश में ज्वलनशील मुद्दों पर आवाज बुलंद नहीं की। साल 2008 में संसद के भीतर भारत-अमेरिका परमाणु करार को लेकर विश्वास मत प्रस्ताव पर मतदान के बाद माकपा ने श्र चटर्जी को निष्कासित कर दिया था। उस वक्त सोमनाथ चटर्जी लोकसभा अध्यक्ष थे।

मालूम हो कि जुलाी 2013 में ही तृणमूल कांग्रेस पर पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव के तीसरे चरण में गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए माकपा नेता अब्दुर रज्जाक मुल्ला ने अपनी पार्टी के नेतृत्व के पुनर्गठन का आह्वान किया।


दक्षिण 24 परगना जिले में मतदान जारी रहने के बीच एक टीवी चैनल से मुल्ला ने कहा कि पूरी तरह गड़बड़ी हो रही है। सुबह से ही मुझे बमों की आवाजें सुनाई दे रही हैं। मैं नहीं मानता कि मेरे समय में गड़बड़ी हुई होगी, हां कुछ एवजी मतदान (दूसरों की जगह मतदान) हुए होंगे।


तब कोलकाता के तीन निकटवर्ती जिलों -उत्तरी 24 परगना, दक्षिण 24 परगना और हावड़ा- में शुक्रवार को मतदाता ग्राम परिषदों के करीब 13000 प्रतिनिधियों का चुनाव हो रहा था। राज्य में पांच चरणों में होने वाले चुनाव के तीसरे चरण में करीब एक करोड़ मतदाता 12,656 मतदान केंद्रों पर अपने मताधिकार का प्रयोग कर रहे थे।


लेकिन पार्टी नेतृत्व ने नेतृत्व परिवर्तन की मांग से आजिज आकर आखिरकार मोल्ला को पार्टी से बाहर निकाल दिया।


तभी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के कार्यकर्ताओं और लाल झंडे की गैरहाजिरी के बारे में पूछे जाने पर मोल्ला ने सत्ता में आने के लिए पार्टी को पुन: संगठित और पुनर्गठित किए जाने का आह्वान किया।


मोल्ला ने कहा था कि नेतृत्व को पुन:संगठित और पुनर्गठित किए जाने की जरूरत है, केवल ऐसा करने पर ही पार्टी अपनी लहर को वापस पा सकती है।


पूर्व की वाम मोर्चा सरकार में भूमि सुधार मंत्री रहे मुल्ला पार्टी नेतृत्व के एक धड़े का असमय विरोध करने के कारण राजनीतिक गलियारे में ढुलमुल माने जाते रहे हैं। उनके निशाने पर खास तौर से पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य और पूर्व उद्योग मंत्री निरुपम सेन रहे हैं।

गौरतलब है कि अपने मंत्रित्व काल में मोल्ला ने हुगली जिले के सिंगूर में टाटा मोटर्स के नैनो कार संयंत्र के लिए भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया का खुलकर विरोध किया था।


পদ ছাড়তে বার্তা বুদ্ধ-বিমানকে, বিপাকে কারাটও

cpm

নেতৃত্ব বদলের যে দাবিতে এতদিন সোচ্চার ছিলেন নিচুতলার কর্মীরা, এবার দলের সাধারণ সম্পাদক প্রকাশ কারাট ও ত্রিপুরার মুখ্যমন্ত্রী মানিক সরকারের উপস্থিতিতে সেই দাবি উঠল সিপিএম রাজ্য কমিটির বৈঠকে৷ নির্বাচনী বিপর্যয়ের জন্য নেতাদের সরে যাওয়ার আহ্বান জানালেন রাজ্য কমিটির চার সদস্য৷ সরে যাওয়ার স্পষ্ট বার্তা দেওয়া হল, প্রকাশ কারাত, বুদ্ধদেব ভট্টাচার্য এবং বিমান বসুদের৷


একদল সদস্য যখন নেতৃত্ব বদলের পক্ষে সওয়াল করলেন, তখন হুড়োহুড়ি করে নেতৃত্ব বদল না করে নেতৃত্বর কর্মপদ্ধতি উন্নত করার পক্ষে পালটা সওয়াল করলেন রাজ্য কমিটির তিন হেভিওয়েট সদস্যও৷ রাজ্য কমিটির সভায় নেতৃত্ব বদল নিয়ে এই নজিরবিহীন মতপার্থক্য প্রকাশ্যে এলেও দলের রাজনৈতিক লাইনের ব্যর্থতা নিয়ে কমবেশি সহমত সকলেই৷ নরেন্দ্র মোদীকে ঠেকানোর জন্য তৃতীয় বিকল্প সরকার গঠনের স্লোগান জনমানসে কোনও দাগ কাটেনি তা এই বিকল্পর প্রধান হোতা প্রকাশ কারাটের সামনেই খোলাখুলি বললেন রাজ্য কমিটির সংখ্যাগরিষ্ঠ সদস্য৷ বিমান বসুর পেশ করা লোকসভা নির্বাচনের খসড়া পর্যালোচনা রিপোর্টেও উল্লেখিত হল তা৷ সোমবার থেকে শুরু হয়েছে সিপিএমের দু-দিনের রাজ্য কমিটির বৈঠক৷ দলের সাধারণ সম্পাদক প্রকাশ কারাট ছাড়াও মানিক সরকার, সীতারাম ইয়েচুরি সহ পলিটব্যুরোর ছয় সদস্য উপস্থিত রয়েছেন রাজ্য কমিটির এই বৈঠকে৷


এবার লোকসভা ভোটে সিপিএম যে বিপর্যয়ের মুখোমুখি হয়েছে পার্টির জন্মের ৫০ বছরে তার নজির নেই৷ আবার নির্বাচনী বিপর্যয়ের কারণে রাজ্য কমিটির বৈঠকে নেতৃত্ব বদলের দাবি তোলার নজিরও খুব একটা নেই৷ কারণ, কমিউনিস্ট পার্টি যৌথ নেতৃত্বে বিশ্বাস করে৷ বস্ত্তত কমিউনিস্ট পার্টিতে মতাদর্শগত বিরোধেই তেমন দাবি উঠে থাকে৷ যেমন, ইন্দিরা গান্ধী ও জরুরি অবস্থাকে সমর্থন সিপিআই এসএ ডাঙ্গেকে বহিষ্কার করেছিল৷ ১৯৭৭-এর নির্বাচনী বিপর্যয়ের পর এই সিদ্ধান্ত হয়ে থাকলেও শাস্তিমূলক ব্যবস্থা নেওয়া হয়েছিল মতাদর্শগত কারণেই৷ কিন্ত্ত এবার নির্বাচনে ভরাডুবির পর থেকেই নেতৃত্ব বদলের দাবি এতটাই জোরালো হয়েছে যে ভোট পরবর্তী পলিটব্যুরোর বৈঠকে বিমান বসু নৈতিক দায় নিয়ে সরে যাওয়ার প্রস্তাব দেন৷ তবে তা খারিজ করে পলিটব্যুরো৷ লোকসভা নির্বাচনে ঐতিহাসিক বিপর্যয়ের জন্য নেতৃত্ব বদলের দাবিতে কয়েক দিন আগে আলিমুদ্দিন স্ট্রিটে সিপিএম রাজ্য দপ্তর মুজফফর আহমেদ ভবন থেকে ঢিল ছোঁড়া দূরত্বে প্রকাশ্যে বিদ্রোহ করেছিলেন নিচুতলার একদল নেতা কর্মী৷ নির্বাচনী বিপর্যয়ের দায় নিয়ে অবিলম্বে দলের শীর্ষ নেতৃত্ব সরে যাওয়া উচিত বলে প্রকাশ্যে সোচ্চার হয়েছিলেন আলিমুদ্দিন স্ট্রিট-মল্লিকবাজার লোকাল কমিটির সদস্যরা৷ নিচুতলার এই নেতা-কর্মীদের এই ক্ষোভের আঁচ এবার রাজ্য কমিটির সভায় বসে টের পেলেন প্রকাশ কারাট, বিমান বসু, বুদ্ধদেব ভট্টাচার্যর মতো সিপিএমের শীর্ষ নেতারা৷ রাজ্য কমিটির সভার প্রথম দিনেই বর্ধমানের জেলা সম্পাদক অমল হালদার, উত্তরবঙ্গের হেভিওয়েট নেতা অশোক ভট্টাচার্য, প্রাক্তন দুই সাংসদ শমীক লাহিড়ি ও মইনুল হাসান খোলাখুলি নেতৃত্ব বদলের পক্ষে সওয়াল করেন৷ তাত্‍পর্যপূর্ণ বিষয় অমল হালদার ছাড়া কোনও জেলা সম্পাদক কিংবা জেলাওয়াড়ি রিপোটিংর্‌ যে নেতারা করেছে তাঁদের কেউ নেতৃত্ব বদলের পক্ষে সওয়াল করেননি৷ জেলা সম্পাদকের দায়িত্বে না থাকা নেতারা মূলত সরব হয়েছেন নেতৃত্ব বদলের দাবিতে৷ যার কারণ ব্যাখ্যা করতে গিয়ে রাজ্য কমিটির এক সদস্যর যুক্তি, 'নেতৃত্ব বদলের পক্ষে জেলা সম্পাদকরা সওয়াল করলে নিজেদের জেলায় তাঁদেরও একই দাবির মুখে পড়তে হবে৷ তাই কৌশলগত কারণে জেলা সম্পাদকের পদে যে নেতারা নেই তাঁরা নেতৃত্ব বদলের পক্ষে সওয়াল করেছেন৷' এ দিনের সভায় এই পরিবর্তনের দাবিতে প্রথম সোচ্চার হন অমলবাবু৷ বর্ধমান জেলায় ফল খারাপ হওয়ার জন্য শাসক দলের রিগিংকে মুখ্যত দায়ী করার পাশাপাশি বিজেপি পক্ষে জনসমর্থনের চোরাস্রোত যে এতটা মারাত্মক ভাবে বইছে তা যে বোঝা যায়নি বলে মেনে নিয়েছেন তিনি৷ শাসক দলের রিগিং প্রতিরোধ করার কথা ভাবা হলেও তা শেষ পর্যন্ত বাস্তবায়িত করা যায়নি বলেও মেনে নেন তিনি৷ জেলা সম্পাদক হিসেবে নিজের এই ব্যর্থতার কথা মেনে নিয়ে অমলবাবু বলেন, 'এই বিপর্যয়ের জন্য প্রয়োজনে যদি আমাদের সরে যেতে হয় তা হলে তা করা বাঞ্ছনীয়৷' এখানেই থেমে না থেকে তিনি সরাসরি বিমান বসুকে আক্রমণ করেছেন৷ লোকসভা ভোটের ফল প্রকাশের দিন আলিমুদ্দিন স্ট্রিটে সাংবাদিক বৈঠক করতে গিয়ে অপ্রিয় প্রশ্নের মুখে বিমানবাবু যে ভাবে উত্তেজিত হয়ে সংবাদমাধ্যমকে আক্রমণ করেছিলেন তা দলের ভাবমূর্তিকে আরও নষ্ট করেছে বলে মন্তব্য করেন তিনি৷


নিজে থেকে জেলা সম্পাদকের পদ ছেড়ে দেওয়ার কথা বলে আদতে বিমান বসু, বুদ্ধদেব ভট্টাচার্যকে নেতৃত্ব থেকে সরে যাওয়ার জন্য কৌশলী চাপ তৈরি করেছেন বর্ধমানের এই দাপুটে নেতা৷ অমল হালদারের পথে হেঁটে পরপর আরও খোলাখুলি নেতৃত্ব বদলের দাবি করেন অশোক ভট্টাচার্য, মইনুল হাসান, শমীক ভট্টাচার্য৷ ঘুরিয়ে একই বার্তা দিয়েছেন মানব মুখোপাধ্যায়৷ এদের মধ্যে শমীক লাহিড়ি ও মইনুল হাসান দলের সাংগঠনিক সম্মেলন এগিয়ে এনে সর্বস্তরে র্যাংক অ্যান্ড ফাইলকে বদল করার কথা বলেন৷ একদা, একের পর এক রাজ্য কমিটির সভায় এই নেতৃত্ব বদলের পক্ষেসওয়াল করতেন রেজ্জাক মোল্লা৷ পরবর্তী সময়ে লক্ষ্মণ শেঠের মতো নেতারা রেজ্জাক মোল্লার সঙ্গে প্রকাশ্যে নেতৃত্ব বদলের পক্ষে করা শুরু করেন তিনি৷ যদিও তাঁদের সেই দাবিতে গ্রাহ্য করা হয়নি উল্টে বহিষ্কৃত রেজ্জাক ও লক্ষ্মণ শেঠ দু-জনে বহিষ্কৃত হয়েছেন৷ তাঁদের সেই দাবি এবার রাজ্য কমিটির সভায় ওঠায় রেজ্জাক মোল্লা এ দিন বলেন, 'আমি যখন নেতৃত্ব বদলের কথা বলতাম তখন অমলরা তাকে গ্রাহ্য করত না, নেতারা অবজ্ঞা করতেন৷ এখন ওরা ঠেকে শিখেছে৷ এর ফলে একটা ধাক্কা অন্তত দেওয়া যাবে৷' যদিও তাড়াহুড়ো করে নেতৃত্ব বদল করলে আদতে কোনও ফল হবে না বলে পালটা যুক্তি দিয়েছেন অসীম দাশগুপ্ত, বাসুদেব আচারিয়া, বিপ্লব মজুমদারের মতো কয়েক জন নেতা৷ এদের যুক্তি, নেতৃত্ব বদল করলে অবস্থার পরিবর্তন হবে এর কোনও বাস্তব ভিত্তি নেই৷ বরং নেতৃত্বর কর্মতত্‍পরতা আরও বাড়ানোর পক্ষে তাঁরা৷


নেতৃত্ব বদলের দাবির পাশে ভোটের মুখে জোড়াতালি নিয়ে তৃতীয় বিকল্প গঠনের রাজনৈতিক লাইন সম্পূর্ণ ভুল বলে সাফ জানিয়েছেন মানব মুখোপাধ্যায়৷ পরমানু চুক্তির মতো দুরূহ বিষয়ে সমর্থন তুলে নিয়ে তা আমজনতাকে বোঝাতে যেমন বেগ পেতে হয়েছিল তেমনই নির্বাচনী আঁতাত যে দলগুলির মধ্যে হয়নি তাদের নিয়ে তৃতীয় বিকল্প সরকার গড়ার ডাককে মানুষ কোনও গুরুত্ব দেয়নি বলে মন্তব্য করেছেন তিনি৷ একই ভাবে বিজেপি পক্ষে যে সমর্থনের চোরাস্রোত বইছে তা পুরোপুরি আঁচ করা যায়নি বলে একাধিক নেতা কবুল করেছেন৷ এই সমালোচনার মুখে আজ মঙ্গলবার রাজ্য কমিটির সভায় জবাবি ভাষণ দেবেন বিমান বসু, প্রকাশ কারাট ও বুদ্ধদেব ভট্টাচার্য৷ নেতৃত্ব বদলের দাবির মুখে নেতৃত্ব কী বলেন সেই দিকে এখন তাকিয়ে রয়েছে সমগ্র সিপিএম৷

নেতা বদলের দাবি উঠল রাজ্য কমিটিতে

নিজস্ব সংবাদদাতা

কলকাতা, ৩ জুন, ২০১৪, ০৩:২২:১৭


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রাজ্য কমিটির বৈঠকে প্রকাশ কারাট, মানিক সরকার, সীতারাম ইয়েচুরি এবং বুদ্ধদেব ভট্টাচার্য। - নিজস্ব চিত্র

বিপর্যয়ের পরে বাইরে থেকে দলের সদর দফতরে কামান দাগা হচ্ছিল। এ বার দলের সদর দফতরের অন্দরেই গোলাগুলি বর্ষণ হল!

লোকসভা ভোটে বেনজির ভরাডুবির পরে সিপিএমের প্রথম রাজ্য কমিটির বৈঠকই সরগরম হল নেতৃত্বের বিরুদ্ধে লাগাতার তোপে। কেউ বললেন, 'প্রতিবন্ধী' রাজ্য সম্পাদকমণ্ডলীকে দিয়ে কাজ চালানো দুরূহ। কেউ বললেন, দিল্লিতে বিকল্প সরকারের জন্য জোড়াতালি দিয়ে তৃতীয় ফ্রন্ট গঠনের চেষ্টা বারবার ব্যর্থ হয় দেখেও একই পরীক্ষা-নিরীক্ষা চলে কেন? কেউ আবার আপৎকালীন পরিস্থিতিতে গোটা রাজ্য কমিটিই ভেঙে দেওয়ার প্রস্তাব দিলেন! সবাই সরাসরি নাম করে সমালোচনায় না গেলেও আক্রমণ থেকে রেহাই পেলেন না প্রকাশ কারাট, বিমান বসু, বুদ্ধদেব ভট্টাচার্য বা সূর্যকান্ত মিশ্রদের কেউই।

পরাজয়ের পর্যালোচনার জন্য সোমবার থেকে আলিমুদ্দিনে দু'দিনের রাজ্য কমিটির বৈঠকে উপস্থিত আছেন দলের সাধারণ সম্পাদক কারাট ও আরও দুই পলিটব্যুরো সদস্য সীতারাম ইয়েচুরি ও মানিক সরকার। রয়েছেন এ রাজ্য থেকে নির্বাচিত সাংসদ তপন সেনও। তাঁদের সামনেই এ দিন রাজ্য কমিটির একের পর সদস্য সব স্তরের নেতাদের গ্রহণযোগ্যতা নিয়ে প্রশ্ন তুলেছেন। প্রয়াত জ্যোতি বসুকে প্রধানমন্ত্রী হতে না দেওয়ার প্রসঙ্গ টেনে আনেন। ভোটের প্রচারে কৌশল নির্ণয়ে ভুলের কথা বলেছেন। সিপিএম সূত্রের খবর, নেতৃত্বকে তোপ দাগার তালিকায় এ দিন প্রথম সারিতে ছিলেন তিন প্রাক্তন সাংসদ মইনুল হাসান, শমীক লাহিড়ী ও নেপালদেব ভট্টাচার্য, দুই প্রাক্তন মন্ত্রী অশোক ভট্টাচার্য ও মানব মুখোপাধ্যায়। বাদ যাননি বর্ধমানের জেলা সম্পাদক অমল হালদারও। আবার এর বিপরীতে নেতৃত্বের সমর্থনে উঠে দাঁড়িয়েছেন দুই পরাজিত প্রার্থী বাসুদেব আচারিয়া ও অসীম দাশগুপ্ত এবং দুই জেলা সম্পাদক সুমিত দে ও বিপ্লব মজুমদার।

বৈঠকের শেষ দিনে আজ, মঙ্গলবার জবাবি বক্তৃতা করার কথা রাজ্য সম্পাদক বিমানবাবু এবং কারাট, দু'জনেরই। মুখ খুলতে পারেন প্রাক্তন মুখ্যমন্ত্রী বুদ্ধবাবুও। দিনভর আক্রমণের পরে নেতা-কর্মীদের আস্থা ফেরাতে তাঁরা কী বলেন, সেই দিকে নজর রয়েছে গোটা সিপিএম এবং বামফ্রন্টেরও। দলের রাজ্য সম্পাদকমণ্ডলীর এক সদস্য অবশ্য বলেন, "ফলাফলের পর্যালোচনায় খোলাখুলি মতপ্রকাশকেই আহ্বান জানানো হয়। এতে নতুন কিছু নেই!"

তাৎপর্যপূর্ণ ভাবে, বৈঠকে এ দিন অমলবাবু ছাড়া জেলা সম্পাদকেরা কেউ বিশেষ রাজ্য বা কেন্দ্রীয় নেতৃত্বের দিকে সরাসরি আঙুল তোলেননি। কারণ, লোকসভা ভোটের ফলাফলে সব জেলা একই রকম বিধ্বস্ত! জীবেশ সরকার বা কান্তি গঙ্গোপাধ্যায়ের মতো জেলা স্তরের প্রথম সারির নেতারা অবশ্য দলের ভুল লাইনের কথা বলেছেন। নেতৃত্ব নিয়ে তুলনায় বেশি সরব হয়েছেন সেই ধরনের নেতারা, যাঁরা নানা কারণে বেশ কিছু দিন ধরেই দলের কাজকর্মে ক্ষুব্ধ বা অভিমানী। দলীয় সূত্রের খবর, ব্যক্তিগত আক্রমণ সরিয়ে রেখে ঝাঁঝালো বক্তব্যে বিমানবাবুদের বেশি কোণঠাসা করে দেন মইনুলই। তাঁর যুক্তি, এখনকার রাজ্য সম্পাদকমণ্ডলীর দুই সদস্য ইতিমধ্যে প্রয়াত। দু'জন অসুস্থ। আরও তিন জন নিজেরা প্রার্থী হওয়ায় তাঁদের কাজ সীমাবদ্ধ ছিল নিজেদের কেন্দ্রেই। বাকিদের মধ্যে বুদ্ধবাবু শারীরিক কারণে সব জায়গায় যেতেই পারেন না। এত প্রতিবন্ধী সম্পাদকমণ্ডলী নিয়ে কী লাভ? তার চেয়ে সব নতুন করে গড়লে এর চেয়ে খারাপ আর কী হবে? দলের সাধারণ সম্পাদককে ইঙ্গিত করে তিনি এ-ও বলেন, এ বারের বিপর্যয় প্রকাশ কারাট থেকে মইনুল হাসান সকলের বিশ্বাসযোগ্যতাকে প্রশ্নের মুখে দাঁড় করিয়ে দিয়েছে! অথচ নতুন মুখ তুলে আনার প্রয়াস হচ্ছে কই? কেন্দ্রীয় কমিটিতেই বা ক'টা তরুণ মুখ আছে?

এই সুরেই শমীক প্রশ্ন তোলেন রাজ্য সম্পাদকমণ্ডলীর কার্যকারিতা নিয়ে। সম্পাদকমণ্ডলী ভেঙে দেওয়ার দাবিও তোলেন তিনি। অশোকবাবু সরব হন ভোটের ফলে বিপর্যয়ের দিনও রাজ্য সম্পাদকের সাংবাদিক সম্মেলনের ভঙ্গি নিয়ে। কলকাতার নেতা মানববাবু বলেন, আমার দায় না তোমার দায় এই নিয়ে বিতর্ক না বাড়িয়ে গোটা রাজ্য কমিটিটাই আপাতত ভেঙে দেওয়া হোক। পরে আবার তা নতুন করে নির্বাচিত হয়ে আসুক সম্মেলনে। বর্ধমানের  অমলবাবু কায়দা করে বলেন, প্রয়োজনে দল তাঁকে সরিয়ে দিক। সেই সঙ্গে সরে দাঁড়ান রাজ্য নেতৃত্বও। আর নেপালদেব দাবি করেন, বুথভিত্তিক মানুষের সঙ্গে কথা বলে তিনি দেখেছেন, বাঙালি সিপিএমকে দিল্লির জন্য বিশ্বাস করতে চাইছে না কেন্দ্রীয় স্তরে তেমন বাঙালি নেতা নেই বলে। বসু প্রয়াত, সোমনাথ চট্টোপাধ্যায়কে বহিষ্কার করা হয়েছে। তাঁর বক্তব্যের ইঙ্গিত ছিল স্পষ্টতই কারাটের দিকে। কারাট-বিমান-বুদ্ধের মতো না হলেও সমালোচনার তির এসেছে বিরোধী দলনেতা সূর্যবাবুর দিকেও। নির্বাচনী প্রচারে তৃণমূলের বিরুদ্ধে বেশি সরব হলেও বিজেপি-র বিপদ বোঝাতে কেন তিনি আরও সক্রিয় হলেন না, উঠেছে সেই প্রশ্নও।

বাসুদেববাবু, অসীমবাবুরা অবশ্য এর মধ্যেই বোঝানোর চেষ্টা করেছেন, এ বার যে পরিস্থিতিতে বিপর্যয় হয়েছে, তার জন্য শুধু নেতৃত্বকে দায়ী করা অযৌক্তিক। সুমিতবাবু বা বিপ্লববাবুর মতো জেলা সম্পাদকেরাও নেপাদেবদের পাল্টা যুক্তি দিয়েছেন, হাতে-গোনা সাংসদ নিয়ে প্রধানমন্ত্রিত্বে বসতে যাওয়া বিচক্ষণ কাজ হতো না। এখন আর সেই প্রসঙ্গ টেনে লাভও নেই।

যুক্তি-পাল্টা যুক্তির মধ্যেও কারাটকে কিন্তু সারা দিন বসে শুনতে হয়েছে, বিকল্প শক্তির সরকার গঠনের জন্য তাঁদের উদ্যোগ দলের মধ্যেই কতটা গুরুতর প্রশ্নের মুখে! শুনতে হয়েছে সেই পরমাণু চুক্তির কথা। কথা উঠেছে, পরমাণু চুক্তি খায় না মাথায় দেয়, তা-ই লোকে ঠিক করে বুঝল না! আর তার জন্য দলটাকে এখন অনুবীক্ষণ দিয়ে খুঁজতে হচ্ছে! একের পর এক জেলার নেতারা প্রশ্ন তুলেছেন, যে সব আঞ্চলিক দলের বিশ্বাসযোগ্যতা নিয়ে নানা সংশয় আছে, তাদের একজোট করে ভোটের আগে প্রতি বার বিকল্প খাড়া করার চেষ্টার কী অর্থ?

সিপিএমেরই একাংশে অবশ্য পাল্টা প্রশ্ন আছে, কংগ্রেস ও বিজেপি-র থেকে দূরত্বে দাঁড়িয়ে বিকল্প সরকার ছাড়া বামেরা আর কী-ই বা বলতে পারত? কংগ্রেস এবং বিজেপি ছাড়া সরকার গড়ায় নির্ণায়ক ভূমিকা নেওয়ার কথা বলেই তো মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় ৩৪টি আসন পেয়েছেন! কারাটের লাইনের সমালোচনা যাঁরা করছেন, তাঁদের বিকল্প প্রস্তাবটা কী? দলের এই অংশের মতে, পরাজয়ের গ্লানিতে কিছু নেতা এমন বিষয়কে বড় করে দেখাচ্ছেন, যেটা হয়তো বিপর্যয়ের মূল কারণ নয়। এই পরিস্থিতিতেই আজ জবাব দিতে হবে বিমান-কারাটদের।



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