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Sunday, June 8, 2014

कैरन यंग मैं एक स्पष्ट “न” की प्रबल समर्थक हूँ साथ ही आनाकानी और टालमटोल की समर्थक भी जिससे कि किसी भी तरह से, साम दाम दंड और भेद, कुछ भी इस्तेमाल कर के उन परिस्थितियों से बचा जाये जहां आप यौन हिंसा का शिकार बन सकते हैं. अपनी न को न ही बने रहने दें, न का मतलब हां न निकलने दें और अगर दुर्भाग्यवश कुछ होता भी है तो अपनी लाज शर्म और डर का बुरखा उतारने के लिए तैयार रहे. सही जगह सूचना दें, रिपोर्ट लिखवायें जिससे कि न्याय प्रक्रिया मज़बूत बने.

एक विदेशी लेखिका कैरन यंग ने यौन हिंसा पर एक लेख लिखा था जिसमें कुछ सवाल भी उठाये थे जो आज भी उतने ही प्रासंगिक है.. इसलिए मैं उस लेख के हिंदी में अनुवादित प्रमुख अंश यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ.. शायद आप लोगों के काम आ जाये..
कैरन यंग

मैं एक स्पष्ट “न” की प्रबल समर्थक हूँ साथ ही आनाकानी और टालमटोल की समर्थक भी जिससे कि किसी भी तरह से, साम दाम दंड और भेद, कुछ भी इस्तेमाल कर के उन परिस्थितियों से बचा जाये जहां आप यौन हिंसा का शिकार बन सकते हैं. अपनी न को न ही बने रहने दें, न का मतलब हां न निकलने दें और अगर दुर्भाग्यवश कुछ होता भी है तो अपनी लाज शर्म और डर का बुरखा उतारने के लिए तैयार रहे. सही जगह सूचना दें, रिपोर्ट लिखवायें जिससे कि न्याय प्रक्रिया मज़बूत बने.
अब उन सभी मर्दों के लिए एक बात, जो अपने सख्त अंगों को नकार नहीं पाते, और उन सभी के लिए ताकीद जो किसी औरत पर जोर आज़माइश को बुरा नहीं समझते, मैं हर स्त्री के लिये बोलती हूँ, मैं अपने शब्दों में कांट छांट नहीं करूंगी. इसे धीरे धीरे और समझ कर पढ़िए :
जब वो संघर्षरत होती है, और तुम्हारे नीचे छटपटाती है बुरी तरह,
जब उसका चीखना तब तक चलता है, जब तक सूखे गले से आवाज़ बंद न हो जाये
जब वो एक बिन माँ के बच्चे की तरह रोती है, धुंधलके में
जब उसकी निरीह शांत सी कातर आँखें तुमसे दया की भीख मांगती हैं,
जब उसके सूखे से होठों पर “नहीं” की आवाज़ करता एक ही शब्द उभरता है,
उसका मतलब सिर्फ न ही होता है ...
समय के साथ बड़ी होती समझ लिए हुए मैं हमेशा जवाब तलाशती रहती हूँ. दुष्कर्म के विरुद्ध अपनी छातियाँ पीट लेने से, बाल नोच लेने से और दहाड़ मार मार कर रो लेने से ही बात नहीं बनेगी. इतना काफी नहीं है. शिकायतें कभी समस्या का हल नहीं होतीं हैं. असल बात तो इस समस्या का हल खोजना है, जिससे इस समस्या को जड़ से ख़त्म किया जा सके. आखिर ये सब जानते हैं कि हर समस्या के साथ उसका हल भी जन्म लेता है.
कुछ सवाल मैं खुद से करती रहती हूँ.. वो कुछ यूं है:
“इस खौफनाक अपराध की पुनरावृत्ति किस तरह कम हो सकती है”?
“क्या अदालतों को इन अपराधियों से और सख्ती से निपटना चाहिए“?
“क्या अपराधियों को सज़ा देने के बाद पीड़ित में अपनी बात कहने के लिए साहस का संचार होगा”?
“क्या महिलाओं के लिए आत्मरक्षा और विशेष परिस्थितियों में खुद को बचाने के लिए जागरूक करने की आवश्यकता नहीं है या फिर हम अपनी सारी ऊर्जा रोकथाम में ही खर्च कर चुके हैं”?
मैं आप सब से अपील करती हूँ कि एक बार इस बारे में सोचें ज़रूर, मेरे सवालों का मूल्यांकन करें अपने नज़रिए से, खुद से और सवाल करिये और हम सबको इस बात का यकीन दिलाइये कि ये अपराध जड़ से मिटाया जा सकता है.

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