Rajan Kumar | 5:04pm Jun 4 |
जयपाल सिंह मुंडा ‘नस्लीय व सांप्रदायिक’ राजनीति के शिकार हुए थे.
भारत के लोग जिस ध्यान चंद पर फिदा हैं और जिसे हॉकी का जादुगर कहा जाता है, वह शख्स अपने उस कैप्टन पर आजीवन फिदा रहे, जो एक आदिवासी था. ध्यान चंद भारतीय हॉकी टीम के पहले कैप्टन जयपाल सिंह मुंडा को आजीवन नहीं भूल पाए और 1952 में लिखित व प्रकाशित अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘गोल’ में यह संदेह व्यक्त किया है कि जयपाल सिंह मुंडा ‘नस्लीय व सांप्रदायिक’ राजनीति के शिकार हुए थे.
ध्यान चंद ने ‘गोल’ में लिखा है कि उन्हें और पूरी टीम को यह जान कर धक्का लगा कि अगले मैचों में जयपाल सिंह मुंडा उनकी कप्तानी नहीं करने वाले हैं. वे लिखते हैं कि जयपाल सिंह के कैप्टनशिप से हटने संबंधी कई कहानियां हवा में थीं, पर सच क्या था इसका किसी को भी पता नहीं था. हम शुरू से ही टॉप लेवल पर चल रहे अंतरविरोधों से अवगत थे. क्या जयपाल सिंह टॉप लेवल पर चल रही भेदभाव की राजनीति के शिकार हुए थे, इसका जवाब हमें कभी नहीं मिला.
हम जो स्वयं को भारतीय कहते हैं, हॉकी और उसके जादुगर को बार-बार याद करते हुए एक बार भी जयपाल सिंह मुंडा को याद नहीं करते, जिसके नेतृत्व में ध्यान चंद हॉकी खेले थे. जिसका प्यारा कैप्टन नस्लीय हिंसा का शिकार बना और जिसे मनुवादी मुख्यधारा ने हॉकी की दुनिया से षड्यंत्रपूर्वक ‘गायब’ कर दिया, क्या वह अगली कई सदियों तक जयपाल सिंह मुंडा का, उसके आदिवासी समुदायों के प्रति कृत्घन ही बना रहेगा?
भारत के लोग जिस ध्यान चंद पर फिदा हैं और जिसे हॉकी का जादुगर कहा जाता है, वह शख्स अपने उस कैप्टन पर आजीवन फिदा रहे, जो एक आदिवासी था. ध्यान चंद भारतीय हॉकी टीम के पहले कैप्टन जयपाल सिंह मुंडा को आजीवन नहीं भूल पाए और 1952 में लिखित व प्रकाशित अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘गोल’ में यह संदेह व्यक्त किया है कि जयपाल सिंह मुंडा ‘नस्लीय व सांप्रदायिक’ राजनीति के शिकार हुए थे.
ध्यान चंद ने ‘गोल’ में लिखा है कि उन्हें और पूरी टीम को यह जान कर धक्का लगा कि अगले मैचों में जयपाल सिंह मुंडा उनकी कप्तानी नहीं करने वाले हैं. वे लिखते हैं कि जयपाल सिंह के कैप्टनशिप से हटने संबंधी कई कहानियां हवा में थीं, पर सच क्या था इसका किसी को भी पता नहीं था. हम शुरू से ही टॉप लेवल पर चल रहे अंतरविरोधों से अवगत थे. क्या जयपाल सिंह टॉप लेवल पर चल रही भेदभाव की राजनीति के शिकार हुए थे, इसका जवाब हमें कभी नहीं मिला.
हम जो स्वयं को भारतीय कहते हैं, हॉकी और उसके जादुगर को बार-बार याद करते हुए एक बार भी जयपाल सिंह मुंडा को याद नहीं करते, जिसके नेतृत्व में ध्यान चंद हॉकी खेले थे. जिसका प्यारा कैप्टन नस्लीय हिंसा का शिकार बना और जिसे मनुवादी मुख्यधारा ने हॉकी की दुनिया से षड्यंत्रपूर्वक ‘गायब’ कर दिया, क्या वह अगली कई सदियों तक जयपाल सिंह मुंडा का, उसके आदिवासी समुदायों के प्रति कृत्घन ही बना रहेगा?
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